दलित और गरीब मजदूर के लिये श्रमिक ट्रेने भी सफर को सुहाना नहीं कर सकी है. भूख, प्यास, बीमारी और गर्मी कई मजदूरों की मौत का कारण भी बन रही है. इसके बाद भी गरीब दलितों की अगुवाई करने वाले नेता खामोश है. गरीबों की जगह अगर हवाई जहाज से लाये जा रहे विदेशी प्रवासियों के साथ ऐसा हादसा होता तो पूरे देश में हंगामा मच जाता. पासपोर्ट और राशनकार्ड का फर्क इस तरह दिख रहा है. मजदूरों के प्रति सरकार की अनदेखी जातीय भेदभाव को दिखाती है.
मजदूरों के सफर को सरल बनाने के लिये सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन शुरू करके खुद अपनी पीठ थपथपाई. महाराष्ट्र सरकार और केन्द्र सरकार के बीच तो इसको लेकर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति भी चली. श्रमिक ट्रेनों की बुरी हालत सबसे सामने है. कही यह ट्रेने रास्ता भटक जा रही तो कहीं कहीं यह घंटो विलंब से चल रहीं है. हालात यह है कि यह ट्रेनें घंटो के विलंब से दिनों के विलंब तक पहंुच गई. सूरत से सिवान के लिये चली टेªन दो दिन के बदले 9 दिन में अपनी जगह पंहुची. ऐसी अपवाद स्वरूप घटनाओं को छोड दिया जाय तो भी श्रमिक स्पेशल ट्रेनो खानापानी की दिक्कत के साथ ही साथ रास्तें में बीमार पडना और सफर के दौरान ही यात्रियों के मरने तक की घटनांए सामने आई. ऐसे में साफ है कि मजदूरों को राहत देने के नाम पर चली श्रमिक ट्रेने आफत बन गई है.
झांसी ने गोरखपुर जा रही 04175 श्रमिक स्पेशल में आजमगढ के जहानगंज थाने के रहने वाले राम अवध चैहान सफर कर रहे थे. 45 साल के राम अवध चैहान अपने परिवार के साथ पहले मुम्बई से झांसी पहंुचे थे. वहां से आजमगंढ जाने के लिये ट्रेन पर सवार हुये थे. मुम्बई से शुरू हुये सफर में उनको सही तरह से खानापानी और दवायें नहीं मिल सकी जिसकी वजह से वह रास्ते में ही मर गये. इसी ट्रेन में एक और यात्री की मौत हो गई. कई ट्रेनों मंे इस तरह की घटनायें सामने आई.
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भूख, प्यास, बीमारी और गर्मी
श्रमिक स्पेशल ट्रेनों मंे मजदूरों की सबसे बडी परेशानी भूख, प्यास, बीमारी और गर्मी है. सरकार ने दावा किया था कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों मंे डिसटेंसिग का पालन किया जायेगा. हकीकत में इन ट्रेनों मंे में ऐसा कुछ नहीं किया जा रहा है. यह ट्रेने खचाखच भर कर आ रही है. दूसरे शहरों की बात कौन करे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वाराणसी में रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों मंे से उतर रही भीड इसकी गवाही देती है. 26 मई को करीब 10 हजार प्रवासी मजदूर ट्रªेनो के जरीये यहां आये. वाराणसी कैंट से गुजरने वाली सूरत जौनपुर स्पेशल 13 घंटे लेट पहुंची तो उसको यही कैंसिल कर दिया गया. एलटीटी वाराणसी स्पेशल 8 घंटे देर से पहुंची. इसमें यात्री बुरी तरह से ठंूस कर आये थे. निजामुददीन वाराणसी और बोरीवली से आई श्रमिक ट्रेन में मजदूरों का यही हाल था. मुंबई और सूरत से गाजीपुर, बलिया, गोपालगंज जाने वाली ट्रेनों मंे के लेट होने से रास्ते में खानापानी नहीं मिलने से मजदूरों को काफी दिक्कत हुई. सफर जानलेवा बन गया. ट्रेनों मंे सफर कर रहे यात्रियों की हालत पानी के लिये स्टेशनों पर टूट पडने से ही समझ आ जाती है.
ट्रेनों में यात्रियों की भीड कम नहीं हो रही है. मुम्बई और गुजरात से आने वाली ट्रेने चलने से पहले ही भर जाती है. भूख, प्यास, बीमारी और गर्मी में अच्छे अच्छे यात्री की हालत खराब हो जा रही. रेलवे की तरफ से यात्रियांे को पीने के लिये पानी तक सही से मुहैया नहीं कराया जा पा रहा है. कुछ पढे लिखे और सोशल मीडिया का प्रयोग करने वालों ने रेलमंत्री से लेकर बाकी नेताओं और अफसरो तक अपनी बात पहंुचाने का काम टिवीटर पर शिकायत करके किया. तब कहीं कहीं पर मदद मिली. झांसी से कानपुर के रास्ते लखनऊ के प्लेटफार्म नम्बर 3 पर श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सफर करने वाले निशांत कुमार ने कहा ‘हम गुजरात से चले है. 6 दिन में अलग अलग ट्रेनों में सफर करके लखनऊ पहंुचे है. यहां से बस के द्वारा सीतापुर जायेगे. हम कपडा बनाने की फैक्ट्री में काम कर रहे थे. कामधंधा बंद होने से भागना पडा.’
निशांत के बताया कि स्पेशल ट्रेनों में बुरे हालत है. कई बार तो मुसीबत देखकर ऐसा लगता है जैसे जिंदा घर पहंुच पायेगे भी या नहीं ? बच्चे, महिलायें और बीमार लोगों के सामने बुरे हालत है. हमारे सामने की सीट पर बैठी एक महिला के पास बच्चे को देने के लिये दूध नहीं था. बच्चा छोटा था. भूख से बेहाल था. ऐसे में उसकी मां को कोई और उपाय नहीं दिखा तो उसने चीनी घोलघोल कर पिलाने लगी. पसीना और उमस से प्यास और भी अधिक लग रही थी पर पीने के लिये पानी नहीं था. कई स्टेशनों पर पानी को लेने के लिये इतनी लंबी लाइनें लगी थी कि अकेले सफर कर रहे लोगों के लिये तो पानी ले पाना अंसभव था.’
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अव्यवस्था का आलम :
श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में अव्यवस्था की बहुत सारी बातें देखने को मिल रही. लुधियाना से बलिया जा रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन का सुल्तानपुर में स्टापेज नहीं था. इसके बाद भी ट्रेन में सुल्तानपुर में उतरने वाले 1263 लोगों को बैठा दिया गया. 26 मई को जब ट्रेन बिना रूके ही सुल्तानपुर पार करने लगी तो क्रासिंग के पास पहंुच कर यात्रियों ने चेन पुलिंग करके ट्रेन कोे रोक दिया. यात्री ट्रेन से उतर कर भाग गये. यात्रियों ने कहा कि उनको यह कह कर बैठाया गया था कि ट्रेन सुल्तानपुर रूकेगी. 04642 नम्बर की यह ट्रेन लुधियाना से बलिया जा रही थी. रेलवे पुलिस और प्रशासन के बीच किसी भी तरह से आपस में कोई तालमेल नहीं दिखा रहा है.
सरकार ने जिस तरह से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को लेकर वादे किये वह पूरी तरह से खोखले निकले. श्रमिक ट्रेनों के चलने के बाद भी मजदूरों की हालत में कोई सुधार नहीं आया. उनको मुसीबतों का सामना करते हुये सफर तय करना पडा. तमाम लोगों के लिये यह सफर अंतिम सफर भी साबित हांे रहा है. मजदूरों का मरना भी सरकार के लिये कोई बडी बात नहीं है. शायद मजदूर की किस्मत में मरना ही लिखा है सफर चाहे ट्रेन बस और पैदल किसी भी तरह का हो. गरीब मजदूर की मौत से इसलिये भी किसी को कोई फर्क नहीं पडता क्योकि यह दलित और पिछडी जाति के है. जिनके लिये इस वर्ग का कोई नेता आवाज उठाने को भी तैयार नहीं है