एमजीएम कालेज इंदोर की डीन डा ज्योति बिंदल ने 2 दिन पहले एक आवेदन कलेक्टर इंदोर मनीष सिंह को भेजा था  . यह आवेदन भगवा गेंग के प्रमुख चेहरों में शुमार पतंजलि कंपनी के मुखिया बाबा रामदेव का था  . ज्योति बिंदल के मुताबिक इस आवेदन में लिखा था कि एक आयुर्वेदिक दवा कोरोना मरीजों को देने और परिणाम टेस्ट करने की बात लिखी थी इसलिए आवेदन प्रमुख सचिव को भेजा गया  . इस आवेदन में यह जिक्र भी था कि इस दवा ( दरअसल में आयुर्वेदिक काढ़ा ) को कुछ मरीजों पर परखा गया है जिसके परिणाम सार्थक मिले हैं इसलिए इसे इंदोर के कोरोना ग्रस्त मरीजों को देकर कंपनी परिणाम देखना चाहती है  . इस काढ़े को अश्वगंधा से तैयार हुआ बताया गया  .

इसके बाद क्या हुआ , यह जानने से पहले डा ज्योति बिंदल के बारे में यह जान लेना अहम है कि वे पूर्व में एक आईएएस अधिकारी टीनू जोशी की मदद के चलते बर्खास्त की जा चुकी हैं  .  आरोप था कि उन्होने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे टीनू जोशी का इलाज उसकी फ़रारी के दौरान किया  .  लेकिन बाद में आरोप साबित न होने पर वे बरी कर दी गईं थीं  . ज्योति 20 सितंबर 2018 को भी सुर्खियों में रहीं थीं जब उन्हें एमजीएम कालेज इंदोर का डीन बनाया गया था इसमें खास बात यह थी कि उन्हें ही यह पद देने कई सीनियर प्रोफेसर्स को नजरंदाज कर दिया गया था जिस पर खूब हल्ला मचा था  . तब वे ग्वालियर के गजराराजे मेडिकल कालेज के स्त्री रोग विभाग की अध्यक्ष हुआ करती थीं  . उनकी नियुक्ति से सीनियर्स काफी क्षुब्ध हुये थे कि यह तो सरासर धांधली और जाने क्या क्या है  .

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साफ दिख रहा है कि बाबा रामदेव पर वे मेहरबान थीं और नीम हकीमी बाले एक काढ़े का क्लीनिकल ट्रायल करने तैयार हो गईं थीं  . आवेदन इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह की तरफ भेजा गया तो उन्होने भी इस पर स्वीकृति की मोहर लगा दी लेकिन इसी बीच जाने कैसे मामला लीक हो गया और खासा बवंडर मच गया  . इन दोनों के जो बयान आए उनसे यह कोई नहीं समझ पाया कि आखिर किस नुस्खे से रामदेव के काढ़े को क्लीनिकल ट्रायल की इजाजत मिल गई थी और दरअसल में यह दी किसने थी  .

मनीष सिंह ने बड़ी मासूमियत से सफाई दी कि प्रशासन ने दवा के ट्रायल की अनुमति नहीं दी  . आयुर्वेदिक या होम्योपेथी दवाइयों के क्लीनिकल ट्रायल नहीं होते हैं  . एलोपेथिक के ट्रायल होते हैं  . उसकी प्रोटोकाल और प्रक्रिया है  . इन सभी तथ्यों को देखते हुए आवेदन और अनुमति निरस्त कर दी गई  . जाहिर है जो भी अनुमति आई थी वह ऊपर कहीं से आई थी लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अनुमति कलेक्टर ने ही दी जिसका कि उन्हें अधिकार ही नहीं था  .

दरअसल में ग्वालियर दक्षिण सीट से कांग्रेसी विधायक प्रवीण पाठक ने  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा था कि पतंजलि समूह को कोविड – 19 मरीजों के इम्यूनिटी बूस्टर दवाओं का क्लीनिकल ट्रायल करने की अनुमति देना मरीजों की ज़िंदगी से खिलवाड़ नजर आता है  . दूसरी तरफ जन स्वास्थ अभियान मध्यप्रदेश और राजस्थान नागरिक मंच ने भी इस मामले की शिकायत ड्रग कंट्रोलर , स्वास्थ मंत्रालय और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ( आईसीएमआर ) से की थी जिसमें कहा गया था कि जिस तरह पतंजलि को अनुमति दी गई है वह वैधानिक नहीं है  . क्लीनिकल ट्रायल एक गंभीर विषय है जिसकी अनुमति के लिए एक विशेष प्रक्रिया है  . इसमें सबसे बड़ा मुद्दा मरीज की जानमाल की हिफाजत का होता है  . इन सभी का परीक्षण करने के बाद ही संबन्धित एजेंसियां अनुमति देती हैं  .

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बिना किसी भूमिका के कहा जाये तो इस गोरखधंधे के तार शिवराज सिंह और रामदेव के याराने से जुड़े हैं इस अनुमति के 2 दिन पहले ही एक वीडियो कान्फ्रेंसिंग में शिवराज सिंह रामदेव से कोरोना को लेकर मदद मांगते कलेक्टरों से कह भी रहे थे कि आयुर्वेद को लेकर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान रामदेव से कर सकते हैं  . इस पर शिवराज सिंह का जमकर मज़ाक सोशल मीडिया पर उड़ा था  . आइये देखें ऐसे कुछ कमेंट्स –

  • कोरोना से जंग में बाबा रामदेव से सीएम मदद मांग रहे हैं यह शर्म की बात है .
  • एक यूजर डाक्टर हारजीत सिंह ने लिखा , मैंने अपना एमबीबीएस जबलपुर के सरकारी कालेज से किया . मैं अपने कई सीनियर विशेषज्ञों को जानता हूँ जो दुनिया में किसी से कम नहीं हैं  . यह शर्मनाक है कि राज्य के मुख्यमंत्री एक ऐसे व्यापारी से मदद ले रहे हैं जो लोगों को अपने फायदे के लिए गलत जानकरियाँ देता है  . मुझे उम्मीद है ये लोग अपने इलाज के लिए पतंजलि जाएँगे  .
  • एक अन्य यूजर ने इस पर कमेन्ट किया – गाय , गोबर और गौ मूत्र बाली पार्टी से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं .
  • एक और यूजर के मुताबिक – मुख्यमंत्री को आचार्य बलकृष्ण से सलाह लेनी चाहिए जो खुद एम्स में अपना इलाज कराकर आए हैं .
  • एक और ने इसका समर्थन करते लिखा – हाँ तभी तो वह खुद अपने चेले आचार्य बलकृष्ण का इलाज नहीं कर पाए थे जिन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था .

इन कटाक्षों से परे हकीकत यह है कि बाबा रामदेव और शिवराज सिंह दोनों ही गड़बड़ाए हुए हैं  .  लाख कोशिशों के बाद भी पतंजलि का कारोबार घटता चला जा रहा है और जुगाड़ तुगाड़ से चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह की कुर्सी सलामत रहेगी इसकी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि जल्द ही 24 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होना है अलावा इसके  शिवराज सिंह से भाजपाई खफा हो चले हैं कि क्या आलाकमान ने कुर्सी इनके नाम कर दी है और किसी और को अब मौका ही नहीं मिलेगा  .

देश में कोरोना भगाने के नाम पर पूजा पाठ , यज्ञ हवन और आयुर्वेद के नाम पर नीमहकीमी व  दुकानदारी का कारोबार शबाब पर है  . पंडे पुजारी और वैध जमकर लोगों को बेवकूफ बनाते चाँदी काट रहे हैं जिन्हें रोकने के बजाय सरकार उन्हें शह दे रही है क्योंकि लोगों को पिछड़ा रखना और जागरूक न होने देना उसका एजेंडा है  . इंदौर में बाबा रामदेव के काढ़े जिससे लोगों की जान खतरे में पड़ सकती थी का क्लीनिकल ट्रायल पौराणिक युग सी बात है जिसमें सरेआम विज्ञान और कानून को धता बताकर यह भी जता दिया गया कि एलोपेथी तो टाइम पास मूँगफली है असल तो आयुर्वेद है  . अगर खुद बाबा रामदेव को अपने काढ़े पर कोई भरोसा है तो पहला ट्रायल उन्हें खुद पर सार्वजनिक रूप से करना चाहिए और इसके लिए कोरोना संक्रमित होने से उन्हें घबराना नहीं चाहिए  .

ये वही बाबा रामदेव हैं जो बेटा पैदा करने की शर्तिया दवा सरेआम बेचकर कानून की पकड़ से साफ साफ बच निकलते हैं  .  इस बार उनका मकसद आपदा को अवसर में बदलते यह था कि शिवराज सिंह की मिलीभगत से यह प्रचार कर दिया जाये कि पतंजलि ने कोरोना की दवा बना ली है और फिर इसे बेचकर जितना हो सके पैसा बना लिया जाए  . मीडिया तो कुछ बोलने से रहा क्योंकि उसकी तो दुकान ही पतंजलि के विज्ञापनो से चलती है  .

लेकिन लोग भी वाकई अंधविश्वासी और बेवकूफ हैं जो हकीकत और साजिश उजागर होने के बाद भी पतंजलि का काढ़ा ढूंढते घूम रहे हैं यानि चित और पट दोनों बाबा की हैं लेकिन लोगों को बचाने जरूरी है कि इंदौर मामले की बारीक जांच हो कि क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति दी किसने थी और ऐसा होना मुमकिन न हो तो लखनऊ के उस तांत्रिक अहमद सिद्दीकी को भी कोरोना ताबीज बेचने की इजाजत दी जाए जिसे बीती 15 मार्च को पुलिस ने चारसौबीसी के आरोप में गिरफ्तार किया था  .  और और भी बेहतर होगा अगर बाबा रामदेव को राज वैध नियुक्त कर दिया जाये जिससे ऐसे फसाद ही खड़े न हों  .

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