मुद्दत बाद यह नाम सुनकर शायद आपके दिमाग की बत्ती जली हो और मुमकिन है उस में कुछ पुरानी बातों ने भी खलबली मचाई हो कि हाँ याद तो आ रहा है कि एक छोटे से लड़के ने बड़ा सा कोई कारनामा कर दिखाया था जिसके चलते खूब हल्ला मचा था और बुधिया को हाथों हाथ लिया गया था लेकिन अब उसके कहीं अते पते नहीं .
बिहार के दरभंगा की 15 साल की दलित लड़की ज्योति कुमारी पासवान उतनी ही सुर्खियों में है जितनी में कभी बुधिया हुआ करता था . ताजा बात ये कि दरभंगा डाक विभाग ने ज्योति के सम्मान में उसका फोटो छपा माई स्टाम्प टिकिट जारी किया है . डाकघर में उसका बचत खाता खोल दिया गया है और उसे 5100 रु का चेक देकर उसकी आर्थिक मदद की गई है . ज्योति के पिता मोहन पासवान जो पेशे से ड्राइवर हैं को भी चादर और अंगोछा या गमछा टाइप का कोई कपड़ा जिसे अंग वस्त्र कहा जा रहा है देकर इज्जत बख्शी गई है . ज्योति को लेकर किए गए इन और ऐसे कई ड्रामो के क्यों कोई माने नहीं हैं और इनका अंजाम क्या होता है इसे समझने से पहले बुधिया के बारे में कुछ बातें याद कर लेना जरूरी है .
- एक था बुधिया –
बुधिया की उम्र अब 18 साल हो गई है उसको लेकर आखिरी अहम खबर 9 नवंबर 2017 को यह आई थी कि उसे आनंद चन्द्र दास नाम के नए कोच मिल गए हैं . तब आनंद ने जोश खरोश से दावा किया था कि वे बुधिया को बड़ी चुनौतियों के लिए तैयार कर रहे हैं . इसके बाद बुधिया का क्या हुआ इसकी कोई खबर नहीं .
ये भी पढ़ें-एक राज्य से दूसरे राज्य की यात्रा : आसमान से गिरे खजूर पर लटके
बुधिया ओड़ीशा के एक गाँव के बेहद गरीब परिवार में साल 2002 में पैदा हुआ था . जन्म के कुछ अरसे बाद ही उसके पिता की मौत हो गई तो घर में खाने पीने के लाले पड़ने लगे . बुधिया तब 2 साल का था जब उसकी माँ सुकान्ति ने पैसों की जरूरत के किए उसे एक दलाल के हाथों महज 800 रु में बेच दिया था .
बुधिया की कहानी आकार लेने के पहले यहीं खत्म और दफन हो जाती लेकिन इसी दौरान बिरंची दास की इंट्री हुई जो एक अनाथालय चलाते थे और जूडो कोच भी थे . सुकान्ति ने बिराची से मदद मांगी तो उन्होने उस दलाल को 800 रु देकर बुधिया को वापस ले लिया लेकिन उसे अपने साथ रखा . एक दफा बिरंची ने किसी बात पर गुस्से में आकर फिल्मी और पौराणिक स्टाइल में बुधिया को तब तक दौड़ते रहने की सजा दी जब तक कि वे उसे रुकने न कहें .
कोई पाँच घंटे बाद बिरंची ने देखा कि बुधिया अब भी दौड़ ही रहा है तो उन्हें हैरत के साथ चिंता भी हुई . उन्होने बुधिया की डाक्टरी जांच करवाई तो पता चला कि उसका नन्हा दिल सामान्य तरीके से धडक रहा है . बिरंची को बुधिया में कुछ खास नजर आया तो उन्होने उसे दौड़ने की ट्रेनिंग देना शुरू कर दी नतीजतन 5 साल का होने से पहले बुधिया कोई 50 मेराथन दौड़ें अपने नाम कर चुका था .
ये भी पढ़ें-पैसा कमाने – काढ़े के कारोबार की जुगाड़ में बाबा रामदेव
बड़े पैमाने पर हल्ला तब मचा जब 2 मई 2006 को बिरंची ने बुधिया को पुरी के जगन्नाथ मंदिर से भुवनेश्वर तक समारोहपूर्वक 65 किलोमीटर दौड़ाया . बुधिया ने यह दूरी 7 घंटे 2 मिनिट में पुरी की थी . यह एक हाहाकारी इवैंट और वर्ल्ड रिकार्ड था जिसे लिमका बुक के 2006 के संस्करण में भी जगह मिली थी . इस दौड़ को तब सीआरपीएफ ने स्पंसर किया था और मीडिया ने इसे खासा कवरेज दिया था . बुधिया पर पैसों की बरसात तो नहीं हुई लेकिन बौछारें खूब पड़ीं थीं .
बुधिया रातों रात हीरो बन गया लेकिन बाल कल्याण विभाग ने उसके मेराथन दौड़ने पर रोक लगा दी थी . इस पर बुधिया के कारनामे से नाम और दाम दोनों कमा रहे बिरंची ने हाइकोर्ट का दरबाजा खटखटाया था लेकिन अदालत ने सरकार की दलीलों से इत्तफाक रखा कि इतनी कम उम्र में ज्यादा दौड़ने से बुधिया बर्नआउट का शिकार हो सकता है .
इस तरह 2007 में बुधिया और बिरंची अलग हो गए . बुधिया को साई हॉस्टल में दाखिला मिल गया और बिराची अपना अनाथाश्रम संभालने लगे लेकिन कुछ महीने बाद ही बिराची की हत्या पुरानी किसी रंजिश के चलते 2 लोगों ने कर दी तो बुधिया एक बार फिर अनाथ सा हो गया . इसके बाद उसकी ज़िंदगी पर साल 2016 में एक फिल्म बुधिया सिंह – बार्न टू रन बनी जो ज्यादा नहीं चली और धीरे धीरे वह गुमनामी का शिकार हो गया . आनंद और बुधिया दोनों कुछ दिनों तक ओलंपिक में मेडल लाने की बात करते रहे . अब बुधिया कहाँ है और क्या कर रहा है इसकी अधिकृत या अनाधिकृत जानकारी के भी कोई जरूरत और माने नहीं रहे इसलिए कोई उसकी खोज खबर भी नहीं ले रहा .
– एक है ज्योति-
ज्योति के कारनामे और कहानी में कुछ खास फर्क नहीं हैं . दोनों ही निहायत ही गरीब घरों से हैं और ज्योति ने भी एकाएक ही बुधिया सरीखा कारनामा जिसे लाक डाउन से उपजी बेबसी कहना ज्यादा बेहतर होगा कर दिखाया है . ज्योति को भी बुधिया की तरह भुनाया जा रहा है लोग उस पर गर्व कर रहे हैं या तरस खा रहे हैं यह कह पाना मुश्किल है . गरीब का बच्चा कभीकभार ही ब्रांड बनता है और बनता भी क्या है मनोरंजन के लिए कुछ दिनों के लिए बना दिया जाता है यह बुधिया के बाद ज्योति को देख समझ आ रहा है . साल दो साल बाद यह साबित भी हो जाएगा .
हालफिलहाल तो इतना भर हुआ था कि ज्योति अपने बीमार और घायल पिता मोहन पासवान को गुरुग्राम से साइकिल पर बैठालकर लगभग 1200 किलोमीटर दूर दरभंगा के नजदीक अपने गाँव सिरहुल्ली ले आई थी . अगर यह सच है तो बिलाशक एक साहसिक बात है लेकिन इस सच के कई पेंच भी उजागर होने लगे हैं . ज्योति पर सभी का ध्यान उस वक्त ज्यादा गया जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बेटी इवांका ट्रम्प ने उसके जज्बे और साहस की तारीफ की .
बस इतना होने भर की देर थी कि लोग संस्थाएं और राजनैतिक दलों में होड सी लग गई . सबसे पहले बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने 16 मई को एक टीम सिरहुल्ली भेजी इस टीम ने ज्योति का नामांकन सरकारी स्कूल में दर्ज किया . इस दिन पिंडारुछ गाँव के सरकारी स्कूल में उसका नाम 9बी कक्षा में लिखा दिया गया जिससे कोई प्राइवेट स्कूल बाला यह श्रेय न लूट ले जाए जैसा कि बुधिया के मामले में हुआ था .
कहीं ज्योति और उसका परिवार दाखिले से नानुकुर न करने लगे इसलिए ज्योति को एक नई साइकिल के साथ साथ दो जोड़ी यूनिफ़ार्म , जूता मोजा , स्कूल बेग और किताबों का सेट दिया गया . गौरतलब है कि पैसों की कमी के चलते ज्योति पढ़ाई अधूरी छोड़ अपने मजदूर पिता के साथ गुरुग्राम चली गई थी . लाक डाउन के चलते पिता को काम मिलना बंद हो गया और मकान मालकिन किराए का तकाजा करने लगी तो ज्योति पिता को साइकिल पर बैठालकर गाँव वापस चल दी क्योंकि गुरुग्राम में खाने पीने के भी लाले पड़ने लगे थे . जब उसका कारनामा मीडिया के जरिये उजागर हुआ तो उसकी मदद करने बालों की भीड़ उमड़ने लगी .
– सबने चमकाईं दुकानें –
स्कूली शिक्षा विभाग ने वाहवाही लूटी तो तुरंत ही चिल्ड्रन वेलफ़ेयरएसोशिएशन ने भी 5100 रु उसे देकर फोटो खिंचाए . इसके बाद सीएफआई यानि साइकिलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने ज्योति को ट्रायल के लिए आने का न्यौता दे डाला . इस फेडरेशन के चेयरमेन ओंकार सिंह ने उसे शुभकामनाओं के साथ साथ सफ़ेद दाढ़ी बाले ऋषि मुनियों की तरह आशीर्वाद भी दे डाला . ज्योति के दिन बिना पूजा पाठ और व्रत उपवास के सत्य नारायण की कथा की कलावती की तरह फिरने लगे और बुरे दिनों का श्राप सर से उतरने लगा .
राढ़ी पश्चिमी पंचायत के पटकोला स्थित डाक्टर गोविंद चन्द्र मिश्रा एज्यूकेशनल फाउंडेशन ने न केवल ज्योति को मुफ्त शिक्षा की पेशकश की बल्कि उसके पिता को भी नौकरी का ऑफर दे डाला . दरभंगा के एक और नामी डान बास्कोस्कूल ने भी ज्योति को मुफ्त पढ़ाई की पेशकश की .
इन पंक्तियों को लिखे जाने तक इमदाद , मदद और खैरात का सिलसिला जारी था हर कोई ज्योति को 5 – 10 हजार देकर अपना नाम और दुकान चमका रहा है . ये वे लोग और संस्थाएं हैं जिन्हें यह बेहतर मालूम है कि बिहार में ऐसी ज्योतियों की कमी नहीं जो गरीबी के चलते मिडिल स्कूल का मुंह भी नहीं देख पातीं और घर चलाने खुद भी मजदूरी करने लगती हैं लेकिन इन्हें ज्योति में काफी रोशनी यानि मुनाफा नजर आ रहा है लिहाजा हर कोई उस पर दांव लगा रहा है . ज्योति की शोहरत पर सुपर 30 के आनंद कुमार ने भी रोटियाँ सेंकी , उन्होने उसे मुफ्त आईआईटी की कोचिंग देने की बात कही . आनंद का मकसद भी अपनी कोचिंग का नाम चमकाना ही ज्यादा दिखता है हालांकि वे गरीब दलित बच्चों को कोचिंग देने जाने जाते हैं लेकिन शुरुआती नेकनामी के बाद कई विवाद भी उनके साथ जुड़ चुके हैं .
सियासी दल भी पीछे नहीं
अब भला सियासी दल क्यों पीछे रहते उन्होने भी मौका ताड़ते ज्योति की आड़ में राजनीति का खेल खेलना शुरू कर दिया . लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष , सांसद और दलित नेता केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने भी ज्योति के माँ बाप से बात की कि उनकी पार्टी ज्योति की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाएगी . ज्योति अपनी पसंद का विषय लेकर देश में जहां भी पढ़ना चाहे लोजपा मदद करेगी .
पासवान पिता पुत्र खुद उसी पासी समुदाय के हैं जिसकी कि ज्योति है . इनहोने लाक डाउन में किसी पासी या दूसरे किसी समुदाय के एक भी दलित की रत्ती भर भी मदद शायद ही की हो लेकिन ज्योति को मीडिया ने हिट कर दिया तो इनहोने भी बहती गंगा में हाथ धो डाले .
चिराग पासवान का मदद का जज्बा एक घबराहट की देन था जो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की वजह से पैदा हुआ था . अखिलेश यादव ने ज्योति के परिवार को एक लाख रु नगद दिये थे क्योंकि वह उनकी पार्टी के चुनाव चिन्ह साइकिल पर बैठकर आई थी . सपा ने यह राशि मामले के तूल पकड़ते ही ज्योति की माँ फूलोदेवी के खाते में ट्रांसफर कर वाहवाही लूट ली थी . अब हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर चिराग पासवान और अखिलेश दोनों ज्योति की शोहरत का फायदा चुनाव प्रचार में उठाने की कोशिश करें . चिराग पासवान ने तो ज्योति को राष्ट्रपति सम्मान दिलाने की भी पहल कर डाली .
अब भला राजद नेता बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी क्यों चूकतीं उन्होने भी वीडियो काल के जरिये ज्योति के माँ बाप से ऐसे बात की मानों वे उनकी सबसे सगी और असली हमदर्द हैं . राबड़ी ने ज्योति की मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था के साथ साथ उसकी शादी का खर्च भी उठाने की पेशकश कर डाली . राबड़ी के बेटे तेजस्वी यादव ने तो तुरंत दान महा कल्याण की तर्ज पर ज्योति को 50 हजार रु दे दिये . कल तक जो लड़की और उसके घर बाले भूखों मरने की कगार पर थे और कोई उनकी सुध लेने बाला नहीं था उनके एकाएक ही इतने मददगार और हमदर्द पैदा हो गए कि खुद उन्हें तय कर पाना मुश्किल हो रहा होगा कि किस की मदद लें और किसकी ठुकराएँ .
अब बारी भाजपा की थी जिसके सांसद और आरएसएस के नजदीकी नेता राकेश सिन्हा ने ज्योति को 25 हजार रु दान में दे डाले भाजपा ने ज्योति को एक साइकिल भी तोहफे में दी . राकेश सिन्हा ने ज्योति की तारीफ करते उसे युवाओं के लिए उदाहरण तक बता डाला .
कड़वा सच और हकीकत
इन मददगारों की असल मंशा समझने से पहले उस सच और शक पैदा करते कुछ सवालों पर भी एक नजर डालना जरूरी है जो ज्योति की साइकिल यात्रा को कटघरे में खड़ा करता है . मीडिया और सोशल मीडिया ने ज्योति को हाथों हाथ लिया और उसे श्रवण कुमार तक करार दे दिया वही रामायण का गरीब किरदार श्रवण कुमार जो अपने माँ बाप को काँवड़ में बैठालकर घुमाता रहा था और दशरथ के तीर का शिकार हो गया था .
मीडिया की खबरों और रिपोर्टों में विकट के विरोधाभास हैं जो पीपली लाइव फिल्म की याद दिलाते हैं . कहा जा रहा है और तर्क भी दिये जा रहे हैं कि टीआरपी की खातिर मीडिया ने सच छिपाया और कई बातें और तथ्य उड़ा या छिपा लिए और तो और फर्जीवाड़ा भी किया . एक रिपोर्ट के मुताबिक ज्योति अपने पिता को साइकिल पर बैठालकार 7 मई की रात को गुरुग्राम से चली थी और 15 मई की शाम को दरभंगा पहुँच गई . एक बड़े अखबार में छपी खबर के मुताबिक ज्योति और उसके पिता 10 मई को चले और 16 मई को घर पहुँच गए . यानि उसके चलने में ही विरोधाभास है .
एक नामी वेबसाइट की मानें तो मोहन पासवान का कहना है कि वे लोग 7 या 8 मई को चले थे और 15 मई को दरभंगा पहुँच गए थे . बहरहाल इस खबर को जब प्रमुख अमेरिकी न्यूयार्क टाइम्स ने प्रमुखता से प्रकाशित किया तो उससे प्रभावित होकर इवांका ट्रम्प ने ज्योति की तारीफ कर दी जिससे भारतीय मीडिया में खलबली मच गई और वे ज्योति के पीछे भागे . न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा था कि ज्योति ने अपनी साइकिल से रोजाना लगभग 160 किलोमीटर का सफर तय किया . एक अँग्रेजी पत्रिका के मुताबिक खुद ज्योति ने बताया था कि वह रोज 20 से 30 किलोमीटर साइकिल चलाती थी . इस हिसाब से उसे 1200 किलोमीटर की दूरी तय करने में 40 से 60 दिन लगने चाहिए .
जब इस अविश्वसनीय कारनामे पर सवाल उठने लगे तो एक समाचार एजेंसी ने दावा किया कि मोहन ने उसे बताया था कि रास्ते में एक जगह उन्होने एक ट्रक में सफर किया था . उक्त वेबसाइट ने भी दावा किया कि मोहन पासवान ने एक नहीं बल्कि दो बार ट्रक में सफर करने की बात कबूली इसके वीडियो भी उसके पास हैं . हालांकि ज्योति ने ट्रक में सफर करने की बात से साफ इंकार कर दिया .
तो फिर सच क्या है और बात का बवंडर कैसे मचा इस पेचीदे सवाल का जबाब गाँव सिरहुल्ली के ही एक नौजबान ने दिया कि जब ज्योति गाँव आई तो हमें लगा कि यह खबर छपनी चाहिए इसलिए हमने उसका वीडियो बनाकर लोकल मीडिया को भेजा . जैसे ही खबर आम हुई तो और भी मीडिया बाले आने लगे उन्होने अपने हिसाब से ज्योति और उसके पिता से बुलबाना शुरू कर दिया . यहीं से बात ने तूल पकड़ा और ज्योति और उसके पिता भी यही कहने लगे कि वे पैदल आए हैं .
अपनी बात में दम लाते इस नौजबान ने यह भी बताया कि ज्योति के वीडियो के बेकग्राउंड में जो स्कूल दिख रहा है वहाँ उन्हें क्वारंटीन किया गया था यह गाँव का स्कूल है . बात सच इस लिहाज से नजर आती है कि किसी मीडिया बाले ने यह नहीं कहा कि उसने ज्योति से 1200 किलोमीटर के सफर के बीच में कहीं बात की थी . उक्त नौजबान पूरे आत्मविश्वास से कहता है कि ज्योति के सारे वीडियो गाँव में ही शूट किए गए जितने भी रिपोर्टर गाँव आए उन्होने ज्योति से उसके पिता को पीछे बिठलबाकर साइकिल चलबाई और वीडियो बनाया . कुछ वीडियो में ज्योति की ड्रेस भी अलग दिख रही है .
वेबसाइट ने ज्योति और उसका गुणगान कर रहे मीडिया को गलत साबित करने भारतीय साइकिलिंग टीम के मुख्य कोच राजेंद्र शर्मा के हवाले से भी कहा कि रेसिंग बाली साइकिल से एक आदमी औसतन 30 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से अधिकतम 10 घंटे तक ही साइकिल नहीं चला सकता वह भी अकेले , जबकि ज्योति के पीछे उसके 70 – 80 किलो वजनी पिता बैठे थे . राजेंद्र शर्मा तो कई तर्कों और अनुभवों से सवाल खड़े कर ही रहे हैं लेकिन कोई मामूली अक्ल बाला आदमी भी ज्योति की उपलब्धि को आसानी से नकार सकता है .
तो क्या ज्योति का कारनामा मीडिया की मनगढ़ंत कहानी है , मुमकिन है ऐसा हो लेकिन ऐसा क्यों किया गया इसका एक अंदाजा तो टीआरपी बढ़ाने को बताया जा रहा है जबकि दूसरा उससे भी ज्यादा खतरनाक और घातक है कि मकसद लोगों का ध्यान बंटाकर सरकार का नकारापन और निकम्मापन ढकना था क्योंकि लाखों मजदूर तब भी चिलचिलाती गर्मी में फटेहाल , बदहाल पैदल चल रहे थे और अभी भी चल रहे हैं . इनकी हालत देख सरकार को अब दिल से कोसने लगे हैं . क्या सैकड़ों हजारों किलोमीटर पैदल चल रहे मजदूर ज्योति सरीखी वाहवाही , शाबाशी और इनामों के हकदार नहीं .
ज्योति का सच जो भी हो पर उसका हश्र बुधिया से इतर नहीं होगा ऐसा कहने की कोई वजह नहीं क्योंकि दोनों गरीब हैं और दोनों में से किसी के पास तकनीकी प्रतिभा नहीं है बल्कि हालातों ने इनसे हैरान कर देने बाले कारनामे करा लिए और मीडिया ने भी इन्हें खूब हवा दी जिससे टीआरपी बढ़े और दर्शक एक ऐसा तमाशा देखें जो आधी हकीकत और आधा फसाना है .