छतीसगढ प्रशासन की लालफीताशाही सोच का नतीजा़ है “पेड” क्वारंटाइन यह कहना है एक भुक्तभोगी का.भुक्तभोगी बताता है-सरकारी आदेशानुसार अन्य स्थानों से आए व्यक्तियों को चाहे वो सामान्य यात्री , विद्यार्थी ,व्यापारी , आॅफिसियल वर्कर या मजदूर हों उनको चौदह दिनों तक क्वारंटाइन रहना ही पड़ेगा के मद्दे नज़र स्थानीय प्रशासन के द्वारा तीन अलग अलग तरह और स्तर के क्वारंटाइन विकल्प सुझाए जाते हैं.
पहला- संस्थागत या समूह क्वारेंटाईन .
दूसरा- होम क्वरेंटाईन और तीसरा- पेड क्वारेंटाईन.
तीनों तरह के क्वारंटाइन सेंटर्स में मजदूरों को छोड़कर बाकी सभी को पेड क्वारंटाइन में रहने हेतु बहलाया फुसलाया जा रहा है . इसलिए इन दिनों छतीसगढ मे विभिन्न जिला प्रशासन द्वारा बनाए गए पेड क्वारेंटाईन सेंटर्स चर्चा का सबब बने हुए हैं.
दरअसल, एक खास वर्ग के लोगों को उपकृत करने के लिए शहर के कुछ नामीगिरामी होटलों को “पेड क्वारंटाइन” में तब्दील कर होटल मालिकों को मोटी मोटी रकम दिला और अपना कमीशन ले अपना उल्लू सीधा किया जा रहा है .
शासन- प्रशासन की शह
प्रशासन द्वारा एक बार क्वारंटाइन कर देने के बाद सात सात आठ आठ दिन तक न तो सरकारी स्वास्थ्य अमले द्वारा किसी प्रकार की जाँच की जा रही है या सैंपल लिया जा रहा है और न ही आपदा प्रबंधन के लोगों के द्वारा समय समय पर जाँच कर यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि पेड क्वारंटाइनसेंटर्स बनाए गए होटलों में सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन हो भी रहा है या नहीं .
हमारे संवाददाता की रिपोर्ट से पता चलता है कि पेड क्वारंटाइन की व्यवस्था करना जिला प्रशासन की से परिचित लालफीताशाही सोच का नतीजा है .अपने अपने आकाओं को खुश करने के लिए कुछ स्वार्थी और भ्रष्ट अफसरों द्वारा महामारी की विभीषिका को पैसा कमाने के अवसर में बदलने के लिए ये तरीका अपनाया गया है.
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एक ओर संस्थागत क्वारंटाइन सेन्टर्स हैं जहां लोगों को पीने का शुद्ध पानी और दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं हो पा रहा है.वहीं ऐसी भी खबरें आ रहीं हैं कि पेड क्वारेंटाईन सेंटर्स में विशेष मीनू के अनुसार भोजन और अतिरिक्त शुल्क के साथ विशेष पदार्थों की व्यवस्था होटल मालिकों द्वारा की जा रही है. पेड क्वारेंटाईन सेंटर्स में क्वारेंटाईन हुए लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग को अँगूठा दिखाते हुए होटल के गेट के बाहर अपने इष्ट मित्रों से मिलते हुए भी देखा गया है. यह सब प्रशासन की नाक के नीचे अफसरों की शह पर होटल संचालकों द्वारा खुलेआम किया जा रहा है.
लोग हलाकान परेशान
गाँधी के आदर्शों पर चलने वाली छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार का समाज के अलग अलग तबकों के लोगों में भेदभाव करते हुए अलग अलग तरह के क्वारेंटाईन सेंटर्स बनाने की मंशा के पीछे उसकी भ्रष्ट व्यवस्था को बढ़ावा देने वाली सोच को उजागर करता है.आभिजात्य एवं धनाढ्य वर्ग के लोग तो पेड क्वारेंटाईन का हाई फाई खर्चा उठा ले रहे हैं.लेकिन मध्यम वर्गीय लोग बडी़ ही मुश्किल से पैसे रुपये का जुगाड़ कर जैसे तैसे अपने पारिवारिक जनों को घर बुला ले रहे हैं.लेकिन बार बार होम क्वारेंटाईन की अनुमति देने का निवेदन करने के बाद भी जबरिया पेड क्वारेंटाईन सेंटर्स में जाने पर उन्हें मजबूर किया जा रहा है .यदि प्रशासन पेडक्वारंटाइन सेंटर्स की इस हकी़क़त को जानकर कोई ठोस कदम नहीं उठाता है तो घोर लापरवाही के कारण कभी भी और कहीं भी कोरोना विस्फोट हो सकता है. और यदि ऐसा हुआ तो जिला प्रशासन को ही इसका जिम्मेंदार ठहराया जाएगा.
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गांव में तो ठाठ है
सरकार द्वारा गांव-गांव में क्वारंटाइन सेंटर बनाए गए हैं. और मजे की बात यह है कि यहां सरपंचों को जिला प्रशासन की साफ शब्दों में हिदायत दी गई है कि बाहर से आने वाले कोरेंटाइन प्रवासी मजदूरों को पूरी सुविधा और देखरेख करने की जिम्मेदारी उन्हीं की है. इस तरह निशुल्क सेवा गांव गांव में प्रशासन द्वारा दी जा रही है. और ग्रामीण प्रवासियों के ठाठ तो यह है कि सरपंचों को आंख दिखा कर कह रहे हैं कि हमें मीट खिलाओ!! हमारी यह यह सुविधा तुम्हें देनी होगी.
प्रशासन से भयभीत सरपंच पंच और गांव के प्रमुख लोग प्रवासी मजदूरों को जी हुजूरी करते हुए पूरी सुविधा दे रहे हैं. गांव से आ रही खबरों के अनुसार अगर सरपंच इसमें कोताही करता है तो ग्रामीण प्रवासी कवारेंटाइन सेंटर में हंगामा करने लगते हैं.इस तरह कहा जा सकता है कि गांव-गांव के कवारेंटाइन सेंटर में शासन प्रशासन की वजह से बेहतरीन सुविधाएं मिल रही हैं मगर शहर में लोग अधिकारियों की लालफीताशाही के कारण परेशान हैं.