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गुड गर्ल- भाग 2: तान्या के साथ क्या हुआ था उस रात?

लेखक-चिरंजीव नाथ सिन्हा

“बेटा, एक बात और, विवाह के बाद अकसर यह स्कैनर एक नया स्वरूप धारण कर लेता है, जिस की फ्रीक्वैंसी कुछ अलग ही होती है.”

“लेकिन हम लड़कियां ही एकसाथ इतने जीवन क्यों जिएं?”

“बेटा, निश्चित तौर पर यह गलत है और हमें इस का पुरजोर विरोध जरूर करना चाहिए. लेकिन स्त्री के प्रति यह समाज कभी भी सहज या सामान्य नहीं रहा है. या तो हमें रहस्य अथवा अविश्वास से देखा जाता है या श्रद्धा से लेकिन प्रेम से कभी नहीं, क्योंकि हम स्त्रियों की जैंडर प्रौपर्टीज समाज को हमेशा से भयाक्रांत करती रही है. सभी को अपने लिए एक शीलवती, सच्चरित्र और समर्पित पत्नी चाहिए जो हर कीमत पर पतिपरायण बनी रहे लेकिन दूसरे की पत्नी में अधिकांश लोगों को एक इंसान नहीं बल्कि एक वस्तु ही दिखाई पड़ती है.”

“लेकिन मां, यह तो ठीक बात नहीं, ऐसा क्यों?”

“बेटा, हम स्त्रियों के मामले में पुरुष हमेशा से इस गुमान में जीता आया है कि यदि कोई स्त्री किसी पुरुष के साथ जरा सा भी हंसबोल ले तो कुछ न होते हुए भी वह इसे उस के प्रेम और शारीरिक समर्पण की सहमति मान लेता है.”

“तो क्या मैं किसी के साथ हंसबोल भी नहीं सकती?”

“नहीं बेटा, मेरे कहने का अभिप्राय यह बिलकुल भी नहीं है. मैं तो तुम्हें सिर्फ आगाह करना चाहती हूं कि समाज के ठेकेदारों ने हमारे चारो ओर नियमकानूनों का एक अजीब सा जाल फैला रखा है, जिस में काजल का गहरा लेप लगा हुआ है. लेकिन हमें भी अपनेआप को कभी कमजोर या कमतर नहीं आंकना चाहिए जबकि उन्हें यह एहसास करा देना चाहिए कि हम न केवल इस जाल को काट फेंकने का सामर्थ्य रखते हैं बल्कि हमारे इर्दगिर्द फैलाए गए इसी काजल को अपने व्यक्तित्व की खूबसूरती का माध्यम बना उसे आंखों में सजा लेना जानते हैं, ताकि हम सिर उठा कर खुले आकाश में उड़ सकें और अपनी खुली आंखों से अपने सपनों को पूरा होते देख सकें.”

“मां, यह हुई न झांसी की रानी लक्ष्मी बाई वाली बात.”

अपनी फूल सी बिटिया को सीने से लगाती हुईं कंचनजी बोलीं,”बेटा, मैं तुम्हें कतई डरा नहीं रही थी. बस समाज की सोच से तुम्हें परिचित करा रही थी ताकि तुम परिस्थितियों का मुकाबला कर सको. तुम वही करना जो तुम्हारा दिल कहे. तुम्हारे मम्मीपापा सदैव तुम्हारे साथ हैं और हमेशा रहेंगे.”

समय अपनी गति से पंख लगा कर उड़ता रहा और देखतेदेखते एक दिन छोटी सी तान्या विवाह योग्य हो गई. संयोग से रवि और कंचनजी को उस के लिए एक सुयोग्य वर ढूंढ़ने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.

एक पारिवारिक शादी समारोह में दिनकर का परिवार भी आया हुआ था. तान्या की निश्छल हंसी और मासूम व्यवहार पर मोहित हो कर दिनकर उसे वहीं अपना दिल दे बैठा. शादी की रस्मों के दौरान जब कभी तान्या और दिनकर की नजरें आपस में एक दूसरे से मिलतीं तो तान्या दिनकर को अपनी ओर एकटक देखता हुआ पाती. उस की आंखों में उसे एक अबोले पर पवित्र प्रस्ताव की झलक दिखाई पड़ रही थी. उस ने भी मन ही मन दिनकर को अपने दिल में जगह दे दिया.

दिनकर की मां को छोड़ कर और किसी को इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी. दरअसल, दिनकर की मां शांताजी अपने दूर के रिश्ते की एक लड़की को अपनी बहू बनाना चाहती थी जो कनाडा में रह रही थी और पैसे से काफी संपन्न परिवार की थी, दूसरे उन्हें तान्या का सब के साथ इतना खुलकर बातचीत करना पसंद नहीं था. लेकिन बेटे के प्यार के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा और कुछ ही समय के अंदर तान्या और दिनकर विवाह के बंधन से बंध गए.

सरल एवं बालसुलभ व्यवहार वाली तान्या ससुराल में भी सब के साथ खूब जी खोलकर बातें करती, हंसती और सब को हंसाती रहती.

पति दिनकर बहुत अच्छा इंसान था. उस ने तान्या को कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि वह मायके में नहीं ससुराल में है. उस ने तान्या को अपने ढंग से अपनी जिंदगी जीने की पूरी आजादी दी.

दिनकर की मां शांताजी कभी तान्या को टोकतीं तो वह उन्हें बड़े प्यार से समझाता, “मां, तुम अपने बहू पर भरोसा रखो. वह इस घर का मानसम्मान कभी कम नहीं होने देगी. वह एक परफैक्ट गुड गर्ल ही नहीं एक परफैक्ट बहू भी है.”

लेकिन कुछ ही दिनों मे तान्या को यह एहसास हो गया कि उस के ससुराल में 2 लोगों का ही सिक्का चलता है, पहला उस की सास और दूसरा उस के ननदोई राजीव का.

मजबूरी बन चुके हैं चीन और भारत

भारत-चीन सेनाओं के बीच हुई हालिया हिंसक झड़प के बाद देशवासियों द्वारा चीनी सामानों के बहिष्कार की उठती मांग पर देश की सरकार का कोई बयान नहीं आया है. उलटे, सरकार ने सोशल मीडिया पर वायरल किए जा रहे उस और्डर को पूरी तरह फेक बताया है जिस में दावा किया गया था कि सरकार ने चीन के ऐप्स पर रोक लगाने से जुड़े आदेश दिए हैं. वायरल हो रहे मैसेज में यहां तक कहा गया था कि गूगल और ऐपल को चाइनीज ऐप्स पर रेस्ट्रिक्शंस लगाने के निर्देश सरकार की ओर से दिए गए हैं. पत्र सूचना कार्यालय यानी पीआईबी के औफिशल ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर कहा गया है कि यह और्डर पूरी तरह फेक है और ऐसा कोई भी आदेश भारत सरकार या मंत्रालय द्वारा किसी को नहीं दिया गया है.

यह सच है कि आर्थिक व तकनीकी क्षेत्र में भारत और चीन का सहयोग बहुत ज्यादा आगे बढ़ चुका है. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि दोनों देश एकदूसरे की ज़रूरत बन गए हैं. इस समय दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और सामरिक स्तर पर गतिरोध पाया जाता है, लेकिन अगर इकोनौमी और टैक्नोलौजी के नजरिए से देखें, तो दोनों देशों के संबंध बहुत मज़बूत नज़र आते हैं.

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सामान के बायकौट पर अंतर्राष्ट्रीय रूल :

बिना सोचेसमझे कुछ भी बकने की भाजपाई अंधभक्तों में परंपरा चली आ रही है. सवाल यह उठता है कि क्या भारत चीनी उत्पादों पर नियंत्रण लगा सकता है? इस का उत्तर है – नहीं,  भारत ऐसा नहीं कर सकता है.

विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के नियमों के अनुसार, युद्ध की स्थिति और कूटनयिक संबंध नहीं होने पर भी किसी देश के आयात को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है.

हां, भारत पड़ोसी मुल्क चीन के उत्पादों पर अतिरिक्त आयात कर, एंटी-डंपिंग टैक्स और काउंटरवेलिंग टैक्स लगा सकता है. लेकिन, भारत के एंटी-डंपिंग टैक्स और काउंरवेलिंग टैक्स लगाने को चीन डब्लूटीओ में चुनौती दे सकता है. ऐसे में सिर्फ अतिरिक्त आयात कर ही ऐसी चीज है जो भारत किसी बहाने चीनी सामानों पर लाद सकता है. लेकिन ऐसा होने पर चीन भी भारतीय उत्पादों पर ऐसा टैक्स लाद सकता है.

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निर्यात उद्योग होगा प्रभावित :

भारत कृषि उत्पाद, कौटन टैक्सटाइल्स, कच्चा शीशा, लौह अयस्क, स्टील, तांबा, हीरे और दूसरे कई तरह के कैपिटल गुड्स चीन को निर्यात करता है. इन उद्योगों को दिक्क़तों का सामना करना पड़ेगा.

इस से क्या भारतीय अर्थव्यवस्था चौपट नहीं हो जाएगी?  क्या इस से चीन से ज़्यादा नुक़सान भारत को नहीं होगा? क्या इस से लाखों लोग बेरोज़गार नहीं हो जाएंगे, क्या इस से अरबों डौलर का नुक़सान नहीं होगा?

हां, इस के बदले में सिर्फ हमारे अहं की पूर्ति होगी कि हम ने चीनी उत्पाद नहीं ही लिया, भले ही हम बरबाद हो गए.

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चीन से आयात :

भारत इस समय चीन से जितना सामान इंपोर्ट करता है उतना किसी भी अन्य देश से नहीं करता. पिछले एक दशक के दौरान भारत और चीन ने टैक्नोलौजी पावर हाउसेज़ के क्षेत्र में मज़बूती से उभरने में एकदूसरे की मदद की है.

चीन की हाईटैक कंपनियों ने भारत के बड़े स्टार्टअप्स में अरबों डौलर का निवेश किया है. चीन की समार्टफ़ोन कंपनियां भारत के बाज़ार में छाई हुई हैं, जबकि टिकटौक जैसे चीनी ऐप्स भारतीय उपभोक्ताओं में धूम मचाए हुए हैं. भारत और चीन के बीच 87 अरब डौलर का व्यापार हो रहा है. भारत में मौजूदा और प्रस्तावित चीनी निवेश 26 अरब डौलर का है.

किसे कितना नुकसान :

आकड़ों पर नज़र डालते हैं. वर्ष 2019 में भारत ने चीन से 75 अरब डौलर मूल्य का सामान आयात किया लेकिन यह चीनी निर्यात का सिर्फ 3 प्रतिशत है. दूसरी ओर, उसी दौरान भारत ने चीन को 17 अरब डौलर मूल्य के सामान का निर्यात किया और यह भारतीय निर्यात का 5.3 प्रतिशत है. यानी, दोनों देशों ने एकदूसरे का सामान लेना बंद कर दिया तो जितना नुक़सान चीन को होगा, भारत को उस का लगभग दोगुना ज्यादा नुक़सान होगा.

भारत के तकनीक क्षेत्र में चीन :

चीन ने भारत के टैक्नालौजी सैक्टर में पिछले 5 वर्षों के दौरान महत्त्वपूर्ण पोज़ीशन हासिल कर ली है. इंडियन फ़ौरेन पौलिसी थिंकटैंक गेटवे हाउस की रिपोर्ट के अनुसार, चीन अपनी महत्त्वाकांक्षी योजना बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव में तो भारत को शामिल होने को तैयार नहीं कर पाया लेकिन भारत के टैक्नालौजी सैक्टर को चीन ने अपने सस्ते स्मार्टफ़ोन से पाट दिया है. ज़ियाओमी और ओप्पो जैसे ब्रैंड इंडियन स्टार्टअप्स में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहे हैं. गेटवे हाउस का अनुमान है कि 2015 से चीनी कंपनियों ने भारतीय स्टार्टअप्स में लगभग 4 अरब डौलर का निवेश कर डाला है.

चीनी कंपनी अलीबाबा ने भारत की ईकौमर्स कंपनी स्नैपडील, डिजिटल वैलेट पेटीएम और फ़ूड डिलीवरी प्लेटफ़ौर्म ज़ोमैटो में निवेश किया है. टेन्सेंट ने ओला ऐप को सपोर्ट किया है. गेटवे हाउस के अध्ययन से पता चला कि भारत की एक अरब डौलर से अधिक मूल्य वाली 30 स्टार्टअप्स में से आधी कंपनियां वे हैं जिन में चीन का निवेश है. हुवावी भारत में 5जी नैटवर्क के निर्माण में मदद के लिए तैयार खड़ी है. एक इंग्लिश डेली की रिपोर्ट के मुताबिक, गेटवे हाउस के एक शोधकर्ता अमित भंडारी का कहना है कि चीन इंटरनैट मार्केट में सब से प्रमुख खिलाड़ी के रूप में नज़र आने की योजना बना रहा है.

वाशिंगटन स्थित थिंकटैंक अलब्राइट स्टोनब्रिज ग्रुप की दक्षिण एशिया मामलों की हेड सुकंती घोष का कहना है कि ग्लोबल टैक के क्षेत्र में सब से बड़ी ताक़त बनने की चीन की योजना में भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण है. ऐसा नहीं लगता कि इस रिश्ते में कोई नुक़सान में है, दोनों देशों को इस से फ़ायदा पहुंचा है.

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मगर इस साल के शुरू में भारत ने संकेत दिया कि वह चीन के बढ़ते वर्चस्व पर अंकुश लगाना चाहता है. अप्रैल में क़ानून बना दिया कि भारत के साथ संयुक्त ज़मीनी सीमा रखने वाले देशों की ओर से भारत में किए जाने वाले निवेश की अधिक पड़ताल की जाएगी. इस क़ानून का निशाना चीन ही है क्योंकि भारत के साथ संयुक्त ज़मीनी सीमा रखने वाले देशों में चीन ही है जो भारत में बड़ा निवेश कर सकता है. भारत ने इस क़ानून से चीन को यह संदेश दिया कि वह भारत को हार्डवेयर और सौफ़्टवेयर बेच सकता है लेकिन भारतीय कंपनियों को अपने कंट्रोल में नहीं ले सकता. इस के नतीजे में चीन अब भारत के इंटरनैट सैक्टर में बड़ा पूंजीनिवेश करने का मौक़ा खो सकता है.

चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्ज़ ने इस पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि भारत सरकार स्थानीय चीनविरोधी भावनाओं से प्रभावित हो गई है. यदि भारत ने संकीर्ण सोच वाला राष्ट्रवाद साइंस और टैक्नालौजी के क्षेत्र में फैलने दिया, तो निश्चितरूप से वह अपने हितों को बलि चढ़ाएगा.

निर्भरता को नकारा नहीं जा सकता :

ब्रूकिंग इंडिया का हिस्सा रह चुके विशेषज्ञ अनंत कृष्णन का कहना है कि चीनी कंपनियां भारत में दीर्घकालिक उपस्थिति पर काम कर रही हैं और निवेश से उन्हें भारत के बाज़ार में टिकाऊ रसूख़ मिल गया है. वे कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि इस प्रकार की सोच व्यापक रूप से मौजूद है कि भारत चीन पर अपनी निर्भरता पूरी तरह ख़त्म कर सकता है. भारत हर चीज़ के लिए चीन पर निर्भर हो चुका है.  भारी मशीनरी से ले कर टैलिकौम, पावर इक्विपमैंट, दवाओं में प्रयोग होने वाले पदार्थों तक में भारत को चीन की ज़रूरत है. पिछले साल अमेरिका के बाद चीन ही भारत का दूसरा सब से बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा. मगर यह भी सचाई है कि चीन से भारत को निर्यात की मात्रा ज़्यादा है.

रोज़गार छिन जाएगा :

एक अन्य अर्थ विशेषज्ञ किरणजीत कौर का कहना है कि चीनी उत्पादों के बहिष्कार का मतलब यह है कि चीनी कंपनियों ने भारत में जो निवेश किया हुआ है और जिस के सहारे भारतीय युवाओं को रोज़गार मिला हुआ है उस को नुक़सान पहुंचेगा और भारतीय युवाओं का रोज़गार भी जाएगा. इस से पहले भी सीमा पर झड़प के समय चीनी उत्पादों के बहिष्कार का अभियान चलाया गया लेकिन वह ज़्यादा दिन नहीं चल सका. सो, नहीं लगता कि बहिष्कार के ताजा अभियान से भी कुछ ज़्यादा बदलाव आएगा.

दरअसल, भारत के लोग चीनी स्मार्टफ़ोन और उत्पादों पर इस तरह निर्भर हो चुके हैं कि उन के पास दूसरा विकल्प नहीं है. क्या सोशल मीडिया पर चीनी मोबाइल फोन से चीनी उत्पादों के बायकौट करने की अपील करने वाले इस पर सोचेंगे !

चीन, भारत और नेपाल

संपादकीय

लद्दाख की सीमा पर विवाद को इस बार चीन बहुत ही गंभीरता से ले रहा है. वह भारत के साथ एक लंबे मुकाबले की तैयारी कर रहा लगता है. उस ने न केवल भारत-चीन सीमा तक पहुंचने के लिए पक्की सड़कें बना ली हैं, पुल भी बना लिए हैं बल्कि हजारों सैनिक भी तिब्बत में सीमा से सिर्फ 200 किलोमीटर दूर जमा किए हैं. वह कम हवा में उड़ सकने वाले अपने जैट-20 हैलिकौप्टर भी ले आया है. वह ट्रकों पर कसी भारी पीसीएल-181 तोपें भी ले आया है जो 50 किलोमीटर दूर तक मार कर सकती हैं और औटोमैटिक निशाना भी लगाती हैं, बम लोड भी खुद करती हैं.

वहीं, भारतीय सेना भी कम नहीं है और यह 1962 भी नहीं जब जवाहरलाल नेहरू जैसे शांति का राग अलापने वाले प्रधानमंत्री थे.

चीन, कुछ कयासों के अनुसार,50 किलोमीटर तक भारतीय सीमा में घुस चुका है. अब वह बातचीत भी नहीं कर रहा. जो भी बातचीत हो रही है वह स्थानीय सीमा पर मौजूद सैन्य अधिकारियों के बीच हो रही है, दिल्ली और बीजिंग में बैठे विदेश मंत्रालयों के सचिवों, मंत्रियों या प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति के बीच नहीं.

चीन अभी 2 कदम आगे एक कदम पीछे वाली नीति अपना रहा है जिसे खींचो और ढीला छोड़ो भी कहा  जा सकता है यानी आगे बढ़ो, जमीन हथिया लो और फिर थोड़ा पीछे हट जाओ. दुश्मन जैसे ही थोड़ा सुस्ताए, फिर आक्रमण कर दो.

भारत और चीन के बीच खुल कर युद्ध होगा, इस की संभावना कोविडग्रस्त दुनिया में नहीं है. पर यह अवश्य है कि चीन इस का इस्तेमाल भारत की अमेरिका से बढ़ती दोस्ती में दरार डालने के लिए कर रहा है, साथ ही भारत के बहुत ही लंबी सोच वाले बैल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव से जुड़ने को सबक सिखाने के लिए सीमा विवाद का बहाना बना रहा है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पहले तो नरेंद्र मोदी से दोस्ती बढ़ाई पर जब उन्हें लगा कि भारत कुछ ज्यादा ही दंभी और ज्यादा ही सेना पर इतरा रहा है, तो उन्होंने 2-2 हाथ करने की नीति अपनाई है.

चीन ने न केवल सीमा विवाद सुलगा दिया है, बल्कि उस ने नेपाल जैसे छोटे और लगभग भारत के हिस्से जैसे देश को भारत से विवाद करने के लिए उकसा दिया है. नेपाल ने अपने देश में संवैधानिक संशोधन कर नया नक्शा बनाया जिस में कुछ भारतीय हिस्से नेपाली कब्जे में दिखाए हैं. नेपाल इस बारे में कोई बात करने की पहल भी नहीं कर रहा.

विदेश नीति के मोरचे पर सरकार की यह असफलता इस तरह चौंकाने वाली है कि भक्तों की फौज ने सोशल मीडिया पर वह अनर्गल बकवास भी शुरू नहीं की जो पाकिस्तान के लिए बिना किसी झड़प पर भी शुरू कर दी जाती है. कोविड-19 से कराह रहा सोशल मीडिया लड़ाकू, मजदूरों को ले कर सफाई देतेदेते ही लगता है थक गया है और नागरिकता संशोधन कानून व धारा-370 में संशोधनों से पैदा हुई ऊर्जा खत्म हो चुकी है. या फिर उन्हें आदेश दिया गया है कि चीन का मामला न उठाएं कि कहीं यह महंगा न पड़े.

देश की अर्थव्यवस्था इस समय युद्ध का जोखिम नहीं ले सकती, यह चीन

को भी मालूम है और देश को भी. कोविड-19 के लौकडाउन से पहले ही सब चीजें खस्ता होने लगी थीं. टैक्स कलैक्शन कम होने लगा था. लौकडाउन के कारण न केवल जनता की जेब खाली है बल्कि सरकार का खजाना भी पूरी तरह खाली है और वह बंद हो चुके कारखानों व व्यवसायों को आर्थिक सहायता तक नहीं दे सकती.

2 आणविक शस्त्रों से लैस देशों में युद्ध की संभावनाएं नहीं पर अब जिस तरह से भारत की छवि विश्वभर में है, हमें सहायता देने वाले भी इक्केदुक्के देश ही बचे हैं. अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप जरूर साथ दे रहे हैं क्योंकि वे चीन से बेबात में खफा हैं. पर यह नीति उन की निजी है, उन के देश की नहीं. अमेरिका तो ट्रंप को नवंबर में होने वाले चुनावों में हटाने की तैयारी कर रहा है क्योंकि वे अश्वेतों के बारे में अपनी घृणा जगजाहिर कर चुके हैं. अमेरिका अब खुद एक बड़ा बदलाव चाहता है जहां रंगभेद के खिलाफ

ऊंची आवाज उठ रही है, जो भारत की पौराणिक जातीय व्यवस्था की आलोचना भी उसी तर्ज पर करती है.

चीन से भारत की तनातनी अब दिल्ली को लगातार परेशान करेगी. देश अपने स्थानीय मुद्दों को सुलझाने की जगह चीन से निबटने की तैयारी में लगेगा.

चीन भारत से आर्थिक शक्ति के रूप में

6-7 गुना ज्यादा सक्षम है, जबकि 1962 में भारत की प्रतिव्यक्ति आय चीन से ज्यादा ही थी.

अमेरिकी हत्या का सबक

एक गोरे पुलिसमैन डेरेक चौविन का

एक अश्वेत नागरिक की गरदन को 8 मिनट तक अपने घुटने से दबाए रखने और उस के साथ खड़े 3 गोरे पुलिसमैनों के उस को समर्थन देने पर अमेरिका में तूफान आ गया है. अफ्रीका से लाए गए गुलामों, जिन्होंने अमेरिका के निर्माण में बड़ा हाथ बंटाया था, आज भी उन के साथ वहां वहशीपन से बरताव होता है. मिनेसोटा राज्य के शहर मिनियापोलिस में जौर्ज फ्लौयड को गाड़ी से निकाल कर उस का सरेआम गला दबाना, और 8 मिनट तक दबाए रखना उन वीडियो की याद दिलाता है जो अब भारत में भी खूब दिखने लगे हैं जिन में दलितों व अन्य को बेरहमी से मारापीटा, जलाया जाता है.

फर्क यह है कि जौर्ज फ्लौयड की हत्या पर पूरा अमेरिका उबल रहा है. अश्वेत कट्टर हिंदुओं को छोड़ कर भारतीय  मूल के अन्य अमेरिकी, लैटिनों व दूसरे अल्पसंख्यक ही नहीं, बहुत बड़ी संख्या में शिक्षित गोरे भी इस क्रूरता के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं. कोरोना के डर के बावजूद कम से कम 100 अमेरिकी शहरों में कर्फ्यू लगाने की नौबत आ गई क्योंकि बेशुमार लोग सड़कों पर उतर आए थे.

जहां राज्य सरकारें डैमोक्रेटिक पार्टी की हैं वहां तो गुस्सा कम था पर जहां रिपब्लिकन पार्टी की सरकारें हैं वहां हालात मुश्किल हुए हैं. क्योंकि वहां के गवर्नर (जो हमारे मुख्यमंत्री की तरह का होता है) इस हत्या को कानून व्यवस्था का मामला मानते हैं. दरअसल, गोरों को रेस का गर्र्व रहता है और इस गर्व के पीछे चर्च की लगातार होने वाली प्रचार फैक्ट्री की बमबारी है जो टेढे़सीधे उदाहरणों से कालों के साथ गलत व्यवहार को ईश्वरीय आदेश मानती है जैसे भारत में दलितों की दुर्गति का कारण उन के पिछले जन्मों का पाप माना जाता है.

कोई भी देश तभी बड़ा बना है जब हर जने में एक उत्साह हो और यह भरोसा हो कि उसे उस के उत्साह से किए गए काम का सही व पूरा मुआवजा मिलेगा, साथ ही, सरकार उस के पैसे व उस की इज्जत की रक्षा करेगी. अपवाद हर जगह होंगे, अपराधी हर जगह होंगे, जेलें हर जगह होंगी, पुलिस की आवश्यकता हर जगह होगी पर फिर भी जब एक न्याय व सुरक्षा की गारंटी होती है, तो ही समाज प्रगति करता है.

यूरोप ने पिछली 3-4 सदियों में और अमेरिका ने इस अनजान महाद्वीप पर पहुंचने के बाद उन्नति की तो इसलिए कि वे बहुत मामलों में उदार थे. अश्वेतों को ले कर अब्राहम लिंकन ने गृहयुद्ध तक किया, अमेरिका के विभाजन का जोखिम लिया. पर,

आज भी अमेरिका अगर अपने

15-18 प्रतिशत लोगों को न्याय नहीं दिला पा रहा है तो यह उस समाज में अंदर तक लगे घुन की निशानी है. डोनाल्ड टं्रप को चुन कर अमेरिका ने अपनी बीमारी जगजाहिर कर दी थी. लेकिन आज अमेरिका चीनी महाशक्ति के मुकाबले फीका पड़ता लग रहा है क्योंकि उस की कर्मठता पर रंगभेद का काला साया पड़ गया है.

यह भारत के लिए सबक है कि औरतों, पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों को दोयम दर्जा दे कर देश का विकास नहीं किया जा सकता. जौर्ज फ्लौयड का मामला कोरोना वायरस जैसा मील का पत्थर बन सकता है जो पूरी दुनिया की शक्ल को बदलने में सहायक हो, क्योंकि इस तरह की निर्मम घटना वीडियो पर शायद पहले नहीं आई थी.

दोषपूर्ण कदम

विश्व ख्याति वाली आर्थिक विश्लेषण करने वाली निजी संस्था मूडीज ने भारत के आर्थिक विकास की संभावनाओं पर गहरा सवाल खड़ा करते उस के भविष्य को संदेहजनक घोषित किया है. इस पर किसी को आश्चर्य नहीं हो रहा है क्योंकि कोरोना से पहले ही यह आभास हो चुका था कि भारत की हड्डियों में घुन लग गया है और देश बेहद मंदी की ओर बढ़ रहा है.

एकएक कर के बड़े उद्योग, बैंक, कारखाने, हवाई सेवाएं मंदी के शिकार होने लगे थे. नोएडा, जो कभी उछलता शहर था जिस में 20-30 मंजिले मकान बन रहे थे, 2019 तक ठंडा पड़ने लगा था. जेबी इंफ्राटैक और आम्रपाली जैसी कंपनियों ने हजारों करोड़ के अधूरे मकान बना कर छोड़ रखे थे.

2009 से 2014 तक 8 से 10 प्रतिशत विकास दर वाली अर्थव्यवस्था थम कर 5 फीसदी तक आ गई थी और यह

5 फीसदी का आंकड़ा भी सरकार पर ही टिका था क्योंकि इस देश में झूठ को सिर पर रखने की मान्यता तो है ही न. तभी तो राममंदिर यहीं है और यहीं विश्व का ज्ञान जैसी गलत कहानियां देश पाले रखता है.

सरकार का पूरा ध्यान पिछले 5-6 सालों में हिंदू पाखंडबाजी को बढ़ावा देने में रहा है. जब जबरन देश के गरीबों को भूख, बीमारी, बेरोजगारी से बचाने की बारी थी, तो पूरा मध्य व उच्च वर्ग अपनी जाति के अहम को बचाने के लिए हिंदू, मुसलिम और पाकिस्तान हायहाय करने में लगा था. ऐसे में देश का विकास कैसे होता? देश के कर्णधार तरहतरह के प्रपंच ढूंढ़ रहे थे कि लोगों में गहरी खाई को और गहरा किया जाए. मुसलमानों से तो द्वेष था ही, दलितों को भी नहीं बख्शा जा रहा था. आर्थिक विकास के लिए ये दोनों बहुत जरूरी हैं. देश की आबादी के 30-35 फीसदी से ज्यादा ये लोग देश को कहीं से कहीं ले जाने की क्षमता रखते हैं.

उत्पादक वर्ग को देश का दुश्मन बना कर मौज करने वाले पंडे, बाबू, अफसर, सेना, पुलिस आदि सब ने आर्थिक विकास की जड़ें खोद डालीं. देश की अर्थव्यवस्था, जो पहले ही नोटबंदी व जीएसटी के टिड्डी दलों से खाई जा चुकी थी, कोरोना का कहर सहने लायक बची ही नहीं थी.

मूडीज ने जिन आधारों पर देश की आर्थिक क्षमता पर सवाल खड़े किए हैं वे मार्च 2020 के पहले के हैं. लौकडाउन की मूर्खता, जिस ने 2 से 4 करोड़ कर्मठ मजदूरों को महीनों के लिए बेकार कर दिया है और उन्हें घर लौटने के चक्कर में बीमार कर दिया है. आज की सरकार ने देश को केवल भजन करने लायक छोड़ा है, वह भी खाली पेट, गंदा पानी पी कर.

 

Crime Story: शिवानी भाभी

सिंहराज को शराब पीने की लत थी. उस की इसी लत के चलते उस के दोस्त देवेंद्र ने घर आना शुरू किया. उस की निगाह खूबसूरत शिवानी भाभी पर थी, नतीजा यह निकला कि देवेंद्र और शिवानी ने रिश्तों के त्रिकोण में से एक कोण हटा कर सरल रेखा बना ली, नतीजतन… कुछ ही देर पहले शिवानी का अपने पति सिंहराज से झगड़ा हुआ था. वह आज की बात नहीं थी, हर रोज का वही हाल

था. सिंहराज एक नंबर का पियक्कड़ था. आज फिर सुबह होते ही अद्धा ले कर बैठ गया था. शिवानी ने उसे टोका लेकिन वह कहां मानने वाला था. कुछ देर तक तो वह पत्नी की बातें सुनता रहा, मगर 2-4 पैग हलक से नीचे उतरते ही उस का दिमाग घूम गया. बिना कुछ कहे उस ने शिवानी की चोटी पकड़ कर उसे रुई की भांति धुन दिया. फिर अद्धा बगल में दबाए घर के बाहर चला गया.

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28 वर्षीय सिंहराज सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर  जनपद के थाना चांदपुर के बागड़पुर गांव में रहता था. वह चांदपुर के एक ज्वैलर की गाड़ी चलाता था. उस के पिता किसान थे. भाईबहन सभी शादीशुदा थे और अपनेअपने परिवारों के साथ अलगअलग रहते थे.

सिंहराज सिंह का विवाह लगभग 4 वर्ष पूर्व पड़ोस के गांव केलनपुर निवासी शिवानी से हुआ था. शिवानी बीए पास थी. सुंदर पत्नी पा कर हाईस्कूल पास सिंहराज फूला नहीं समाया. आम नवविवाहितों की तरह उन दोनों के दिन सतरंगी पंख लगाए उड़ने लगे.

खूबसूरत बीवी पा कर सिंहराज खुद को दुनिया का सब से खुशनसीब व्यक्ति समझने लगा था. एक बेटी ने उस के घर जन्म ले कर उस की बगिया को महका दिया.

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सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि वक्त ने करवट बदली. नौकरी से सिंहराज सिंह की इतनी आमदनी हो जाती थी कि दालरोटी चल सके. दिक्कत उस समय होने लगी, जब उसे शराब की लत लग गई.

शिवानी कुशल गृहिणी थी. कम आमदनी में ही उसे गृहस्थी चलाना  आता था, परंतु पति की शराब पीने की लत ने घर के बजट को गड़बड़ा दिया. फलस्वरूप शिवानी परेशान रहने लगी. उस ने पति को हर तरीके से समझाना चाहा. बेटी की भी दुहाई दी, लेकिन सिंहराज को बीवीबेटी से ज्यादा शराब प्यारी थी.

सिंहराज सुधरा तो नहीं, उलटे शिवानी की सीख ने उसे ढीठ जरूर बना दिया. परिणाम यह हुआ कि पहले केवल शाम को पीने वाला सिंहराज अब दिनरात शराब में डूबा रहने लगा. उसे न बीवी की फिक्र सताती, न ही बेटी की चिंता. वेतन के सारे पैसे वह बोतलों में ही गर्क कर देता.

वह नशे में इतना डूब चुका था कि नौकरी में भी लापरवाही बरतने लगा. पैसों की किल्लत होती तो घर के कीमती बरतन व कपड़े शराब की भेंट चढ़ जाते. शिवानी रोकती तो बुरी तरह पिटती. वह अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहा कर रह जाती. बागड़पुर में ही रहता था देवेंद्र उर्फ बच्चू. वह अविवाहित था और अपने पिता सूरज सिंह के साथ खेती में हाथ बंटाता था. देवेंद्र और सिंहराज में दोस्ती थी. इसलिए देवेंद्र का सिंहराज के घर आनाजाना था.

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देवेंद्र ही वह शख्स था, जिसे शिवानी से हमदर्दी थी. उस ने भी सिंहराज को शराब छोड़ने और गृहस्थी पर ध्यान देने की सलाह दी थी, लेकिन उस ने सारी नसीहत एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल दी थी. मियांबीवी के झगड़े की वजह से देवेंद्र कभीकभार ही सिंहराज के घर चला जाता था.

उस रोज भी देवेंद्र कई दिनों बाद सिंहराज के घर गया था. उस के पहुंचने से कुछ देर पहले ही सिंहराज शिवानी को पीट कर बाहर गया था. जब वह पहुंचा तो शिवानी रो रही थी. उस की नजर जैसे ही देवेंद्र पर पड़ी, वह अपने आंसू पोंछने लगी. फिर मुसकराने का प्रयास करते हुए बोली, ‘‘अरे तुम, आज यहां का रास्ता कैसे भूल गए?’’

‘‘सच पूछो भाभी तो आज भी नहीं आता,’’ देवेंद्र ने शिवानी की नम आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मगर तुम्हारा दर्द मुझ से नहीं देखा जाता, इसलिए आ जाता हूं. लगता है सिंहराज अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा.’’

‘‘किसी को क्या दोष देना देवेंद्र, जब अपनी ही किस्मत खोटी हो.’’

देवेंद्र और शिवानी हमउम्र थे और एकदूसरे की भावनाओं से अच्छी तरह परिचित थे. शिवानी जहां देवेंद्र की सादगी और भोलेपन पर फिदा थी,

वहीं देवेंद्र उस की कोमल काया पर मोहित था.

शिवानी का पोरपोर जवानी से लबालब था. उस के तीखे नैननक्श एवं कटीली मुसकान किसी को भी घायल कर देने में समर्थ थी. लेकिन शराबी सिंहराज को प्यालों की गहराई मापने से फुरसत नहीं थी, वह पत्नी की आंखों के राज क्या समझता.

दूसरी ओर शिवानी की जिस्मानी ख्वाहिश पूरे जलाल पर थी. ऐसे में उस का झुकाव देवेंद्र की ओर होने में ज्यादा समय नहीं लगा. इधर देवेंद्र की हालत भी शिवानी से जुदा नहीं थी.

उस दिन शिवानी का रोना देख कर देवेंद्र तड़प उठा. उस ने भावावेश में शिवानी का हाथ पकड़ कर कहा,‘‘ऐसा न कहो भाभी, मैं सारी दुनिया की बातें तो नहीं जानता, लेकिन अपनी गारंटी देता हूं यदि तुम साथ दो तो सारी जिंदगी तुम पर वार दूंगा.’’

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यह सुनना था कि शिवानी देवेंद्र से लिपट कर जारजार रोने लगी. देवेंद्र उसे कस कर भींचते हुए बोला,‘‘असल में, तुम गलत आदमी से बंध गई…खैर, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, तुम चाहो तो फिर से सब कुछ बदल सकता है.’’

शिवानी ने कुछ कहने के बजाय देवेंद्र को चूम लिया. शिवानी के चूमते ही देवेंद्र उसे किसी बावले की तरह यहांवहां चूमने लगा. शिवानी उस के अनाड़ीपने पर रोतेरोते मुसकरा उठी. उस ने खुद को देवेंद्र से अलग करते हुए पहले दरवाजा बंद किया, फिर मुसकरा कर हाथ पकड़ा और उसे अंदर के कमरे में ले गई.

 

कामना की आंच में देवेंद्र की कनपटियां सनसना रही थीं. शिवानी ने पहले देवेंद्र के कपड़े उतारे, फिर खुद भी बेलिबास हो गई. देवेंद्र शिवानी का तराशा हुआ बदन देख चकित रह गया.

शिवानी देवेंद्र की हालत देख कर मंदमंद मुसकराने लगी. फिर धीरेधीरे दोनों के बदन एकदूसरे से गुंथते गए और फिर उन के दरमियान सारे फासले मिट गए.

दोनों अलग हुए तो बहुत खुश थे. उन्होंने बदकिस्मती को धता बताते हुए अपने रिश्ते की नई बुनियाद रखी थी.

उस दिन के बाद देवेंद्र और शिवानी की दुनिया ही बदल गई. दोनों पतिपत्नी का सा व्यवहार करने लगे.

अब देवेंद्र शिवानी का तो खयाल रखता ही, उस की घरगृहस्थी का खर्च भी उठाने लगा.

शिवानी की बेजान दुनिया में फिर से जीवन लौट आया. अब बढि़या खाना पकता और सिंहराज के साथ देवेंद्र भी उस के साथ जम कर भोजन करता.

ऐसी बात नहीं कि सिंहराज देवेंद्र और शिवानी के रिश्तों से अंजान था, उसे सब कुछ पता था, लेकिन वह यही सोच कर खुश था कि उसे अब कोई शराब पीने से नहीं रोकता था, बल्कि पैसे कम पड़ने पर देवेंद्र उस की मदद ही कर दिया करता था. इन सब की एवज में सिंहराज ने देवेंद्र और शिवानी के रिश्ते को मौन स्वीकृति दे दी थी.

15 मार्च की सुबह धनौरा मार्ग पर मिर्जापुर गांव के पास एक अज्ञात युवक की लाश पड़ी थी. गांव के लोगों ने देखा तो इस की सूचना चांदपुर थाने को दे दी.

सूचना पा कर थाने से इंसपेक्टर लव सिरोही पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 25 से 30 वर्ष के बीच रही होगी.

 

उस के सिर के पिछले हिस्से में गहरा घाव था, जिस से खून काफी बहा था. किसी भारी ठोस वस्तु से प्रहार कर के उसे मौत के घाट उतारा गया प्रतीत हो रहा था. घटनास्थल का निरीक्षण करने पर कोई भी सुराग हाथ नहीं लगा.

इंसपेक्टर सिरोही ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करने को कहा तो पता चला कि मृतक बागड़पुर गांव का सिंहराज सिंह है.

पुलिस ने मृतक के परिजनों को सूचना भेजी तो परिजन वहां पहुंच गए. शिवानी पति की लाश के पास बैठ कर फूटफूट कर रोने लगी. सिंहराज के भाई सुशील ने अपने भाई की लाश की शिनाख्त कर ली. शिनाख्त होने के बाद इंसपेक्टर सिरोही ने आवश्यक पूछताछ की, उस के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थाने वापस आ कर सुशील की लिखित तहरीर पुलिस ने अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

 

केस की जांच शुरू करते हुए इंसपेक्टर सिरोही ने सब से पहले मृतक सिंहराज की पत्नी शिवानी से पूछताछ की तो शिवानी ने बताया कि सिंहराज के किसी युवती से अवैध संबंध थे.

वह नशे का आदी था. नशे में वह उसे मारतापीटता था. सिंहराज हाईस्कूल पास था और वह बीए पास थी. इस के बावजूद भी वह अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए उस के साथ निभा रही थी. किसी ने भी उसे मारा हो, लेकिन उस के मरने से मुझे जिंदगी में सुकून मिल गया.

इंसपेक्टर सिरोही को उस की बातों में अपने पति के लिए बेपनाह नफरत की झलक मिली थी. इसलिए उन का शक शिवानी पर गया. इस के बाद उन्होंने शिवानी से उस का मोबाइल नंबर ले लिया. उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो शिवानी के नंबर पर एक नंबर से काफी काल होने का पता चला.

 

उस नंबर की जानकारी की गई तो वह  बागड़पुर गांव के देवेंद्र का निकला. देवेंद्र की जानकारी जुटाई तो पता चला कि देवेंद्र की दोस्ती मृतक सिंहराज से थी, देवेंद्र का उस के घर काफी आनाजाना था.

एक बार फिर इंसपेक्टर सिरोही ने शिवानी से पूछताछ की तो वह गोलमोल जबाव देने लगी. इंसपेक्टर सिरोही ने शिवानी का मोबाइल ले कर उस की जांच की तो पता चला कि वाट्सऐप पर शिवानी और देवेंद्र द्वारा एकदूसरे को भेजे गए फोटो डिलीट किए गए थे.

मोबाइल की गैलरी की जांच करने पर उस में शिवानी के जींस पहने कई फोटो देवेंद्र के साथ मिले, जिस के बाद इंसपेक्टर सिरोही ने शिवानी को हिरासत में ले लिया और थाने आ गए. वहां महिला कांस्टेबल की मौजूदगी में उस से कड़ाई से पूछताछ की तो शिवानी टूट गई. उस ने अपने प्रेमी देवेंद्र द्वारा अपने पति की हत्या करवाने की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद देवेंद्र को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

सिंहराज की मूक सहमति पाते ही देवेंद्र और शिवानी की बांछें  खिल उठी थीं. शराब के नशे ने सिंहराज को बेगैरत बना दिया था, लेकिन एक दिन नशे की हालत में सिंहराज की गैरत जाग उठी. उस ने शिवानी को टोका, ‘‘शिवानी, बस बहुत हो चुका रासरंग अब और नहीं… आज के बाद तुम देवेंद्र से कोई रिश्ता नहीं रखोगी. बेहयाई की भी हद होती है.’’

 

सिंहराज के इस बदले हुए रूप ने शिवानी को हैरान कर दिया. उस ने पूछा,‘‘आज अचानक क्या हुआ तुम को?’’

सिंहराज शिवानी को घूर कर बोला,‘‘क्यों, समझ नहीं आ रहा क्या, या बेगैरती ने तुम्हारा भेजा चाट लिया है?’’

‘‘गैरत और बेगैरती की बातें तुम्हारे मुंह से अच्छी नहीं लगतीं. अच्छा होगा, अब इस मामले में न ही पड़ो,’’ आवेश में शिवानी की सांसें फूलने लगी थीं. क्षण भर रुक कर वह पुन: बोली, ‘‘जरा सोचो, बेगैरती का यह रास्ता मुझे किस ने दिखाया? तुम ने… अगर तुम अच्छे पति, बढि़या पिता और सच्चे इंसान होते तो मैं राह क्यों भटकती? अब कुछ भी नहीं हो सकता, क्योंकि अब तीर %

 कपड़ों में जकड़ी आजादी

पितृसत्तात्मक समाज की चालाकी और लालच आज भी महिलाओं का अस्तित्व उस के शरीर से आगे स्वीकार करने को तैयार नहीं है और उस की देह पर अपना कब्जा जमाए रखने के लिए वह औरत को कपड़ों की जकड़ व आभूषणों की बेडि़यों में कसे रखना चाहता है. इन बेडि़यों को काटे बिना औरत की गति नहीं है. इस षड्यंत्र को समझना और इस से मुक्त होने के रास्ते औरत को ही निकालने होंगे.

अकसर देखा गया है कि किसी बिल्ंिडग में आग लगने पर हताहतों की संख्या में औरतों की संख्या मर्दों से ज्यादा होती है क्योंकि वे अपने कपड़ों के कारण जल्दी भाग नहीं पातीं, पुरुषों की तरह तीनतीन सीढि़यां फलांग कर उतर नहीं पातीं. खिड़की के रास्ते कूद नहीं पातीं. उन के लबादेनुमा कपड़े इस में बाधक बन जाते हैं. उन की साड़ी या दुपट्टा आग पकड़ लेता है और वे उस आग में घिर कर झुलस जाती हैं या मर जाती हैं.

दुर्घटना के वक्त ज्यादातर औरतों के कपड़े ही उन की जान जाने का कारण बनते हैं. इस के उलट मर्द जोकि पैंट या निक्कर में होते हैं, तेजी से बच कर भाग निकलते हैं. पैंट, जिस में चलनाफिरना आसान है, लगातार पहनते रहने के कारण उन को आदत होती है तेज चलने या भागने की, लिहाजा वे तेजी से सीढि़यां फलांग लेते हैं, खिड़कियों से कूद जाते हैं. वहीं सलवारकुरता या साड़ी में औरतों को धीमे चलने की ट्रेनिंग यह समाज देता है, लिहाजा दुर्घटना के वक्त भी उन के पैरों में गति नहीं आ पाती, और दूसरी ओर उन के पहने गए कपड़े भी रुकावट पैदा करते हैं. ऐसे समाचार भी अकसर सुनने को मिल जाते हैं कि बाइक या स्कूटर पर पीछे बैठी महिला का दुपट्टा उस के गले और बाइक के टायर के बीच फंस कर उस की मौत का कारण बन गया.

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अकसर देखा गया है कि बलात्कार, हिंसा, उत्पीड़न और छेड़छाड़ की शिकार वे महिलाएं ही ज्यादा होती हैं जो सलवारसूट या साड़ी में होती हैं. ये कपड़े उन को मानसिक व शारीरिक रूप से इतना कमजोर और लाचार बना देते हैं कि वे अपने ऊपर हो रहे अत्याचार का विरोध भी नहीं कर पाती हैं. अत्याचारी के चंगुल से निकल कर भाग नहीं पाती हैं. ये दब्बूपना, डर, आतंरिक कमजोरी और लाचारी की भावना उन को उन पर थोपे गए कपड़ों से मिलती है. जबकि जींसटीशर्ट पहनने वाली महिला को कोई अपराधी तत्त्व जल्दी छेड़ने की हिम्मत नहीं करता है क्योंकि वे पलटवार करती हैं. तेजी से बच निकलती हैं. ये हिम्मत और निडरता उन को उन के कपड़ों से मिलती है.

अकसर देखा गया है कि पैंटशर्ट या जींस पहनने वाली महिलाएं कहीं आनेजाने के लिए किसी पर आश्रित नहीं होती हैं. वे खुद स्कूटर या बाइक चला कर निकल जाती हैं. उन्हें कहीं जाने के लिए पति, पिता या भाई का रास्ता नहीं देखना पड़ता है, बस या रिकशा का इंतजार नहीं करना पड़ता है. वे खुद सक्षम हैं, यह आत्मविश्वास उन को उन के कपड़ों से मिलता है.

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जींसटीशर्ट या पैंटशर्ट पहनने वाली महिलाएं, साड़ी या सलवारसूट पहनने वाली महिलाओं के मुकाबले ज्यादा चुस्त, ऊर्जावान, शारीरिक रूप से फिट, खूबसूरत, आत्मविश्वास से भरी हुई और तेजी से काम निबटाने वाली होती हैं. कार्यालयों में उन की पूछ भी ज्यादा होती है. इस में दोराय नहीं कि यह चुस्तीफुरती उन को उन के कपड़ों से मिलती है.

सवाल यह उठता है कि जो कपड़े स्त्री को संबल, निडरता, ताकत, ऊर्जा और गति देते हैं, उन को पहनने के बजाय वे क्यों खुद को 6 गज लंबे कपड़े में लपेटे रखना चाहती हैं? क्यों इधरउधर लटके रहने वाले, मशीनों में फंस कर ऐक्सिडैंट कराने वाले कपड़े पहनती हैं? आखिर क्यों अपनी गति को बाधित करती हैं? दुनिया का हर घर चलाने वाली औरत, मर्द के मुकाबले दोगुना काम करने वाली औरत, घर और कार्यालय एकसाथ संभालने वाली औरत क्यों अपने मूवमैंट के लिए जीवनभर दूसरों की दया पर निर्भर रहती है?

सवाल यह भी उठता है कि क्यों फैशन वर्ल्ड, कपड़ा उद्योग, मनोरंजन की दुनिया में उन ड्रैसों का प्रचारप्रसार, दिखावा और ट्रैंड में होने का विज्ञापन ज्यादा है जो महिलाओं की आजादी और गति को बाधित करता है? दरअसल, यह पितृसत्तात्मक सोच है जो औरत को गुलाम बनाए रखने की कोशिश में आदिकाल से लगी है. औरत के वस्त्र हों या आभूषण अथवा अन्य साजशृंगार, ये सभी औरत को मर्द की दासी घोषित करने वाले प्रतीक माने जाते हैं.

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जिस दिन पति अपनी पत्नी के गले में मंगलसूत्र बांधता है, उस दिन वह उस को अपनी दासी घोषित करता है, क्योंकि आभूषण अगर धर्म, संबंध, धन और वैभव के प्रतीक के रूप में स्त्री को पहनाए जाते हैं, तो इस धर्म, संबंध, धन और वैभव का प्रदर्शन फिर पुरुष भी क्यों नहीं करता? भारी पायल सिर्फ स्त्री के पैरों में ही क्यों सजाई जाती है? सिर्फ इस उद्देश्य से ताकि उस की गति को रोका जा सके और पायल की छम्मछम्म से उस के मूवमैंट का पता चलता रहे. ये आभूषण नहीं स्त्री के शरीर पर बांधे गए झुनझुने हैं जो घर के पुरुष को पलपल इस बात की जानकारी देते रहते हैं कि उस की स्त्री किस जगह है और क्या कर रही है. शृंगार और कपड़ों के जरिए औरत को गुलाम बनाने की कोशिश सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि दुनियाभर में कमोबेश एक जैसी ही रही है.

पश्चिमी समाज की

गुलाम स्त्री

पहनावे की शैलियों का फर्क दुनियाभर के मर्दों और औरतों के बीच हमेशा से रहा है. विक्टोरियाई इंग्लैंड में महिलाओं को बचपन से ही आज्ञाकारी, खिदमती, सुशील व दब्बू होने की शिक्षा दी जाती थी. उन के पितृसत्तात्मक समाज में आदर्श नारी वही थी जो दुखदर्द सह सके. जहां मर्दों से धीरगंभीर, बलवान, आजाद और आक्रामक होने की उम्मीद की जाती थी, वहीं औरतों को क्षुद्र, छुईमुई, निष्क्रिय व दब्बू माना जाता था.

पहनावे में, रस्मोरिवाज में भी यह फर्क दिखाई देता था. छुटपन से ही लड़कियों को सख्त फीतों से बंधे और शरीर से चिपके कपड़ों में कस कर रखा जाता था. मकसद यह था कि उन के जिस्म का फैलाव न हो, उन का बदन इकहरा रहे. थोड़ी बड़ी होने पर लड़कियों को बदन से चिपके कौर्सेट पहनने होते थे. टाइट फीतों से कसी पतली कमर वाली महिलाओं को आकर्षक, शालीन व सौम्य समझा जाता था. इस तरह विक्टोरियाई महिलाओं की अबला दब्बू छवि बनाने में उन के कपड़ों ने अहम भूमिका निभाई.

महिलाओं ने इन तौरतरीकों को अपने बचपन से देखा. बच्ची ने देखा कि उस की मां कैसे कपड़े पहनती है, तो उस ने भी वही कपड़े अपनाए. उन कपड़ों को पहनने पर उसे अपने पुरुष पिता की ओर से शाबाशी और स्नेह मिला तो उस ने इस बारे में सोचा ही नहीं कि वह ऐसे कपड़े क्यों पहन रही है, जिस को पहन कर न तो वह खेल सकती है और न ही भागदौड़ कर सकती है.

उस ने कभी यह सवाल ही नहीं उठाया कि वह अपने पिता की तरह के कपड़े क्यों नहीं पहन सकती है. विक्टोरिया काल में आदर्श नारी की इस परिभाषा को बहुत सारी महिलाएं मानती थीं. यह संस्कार उन के माहौल में, उस हवा में जहां वे सांस लेतीं,  किताबें जो वे पढ़तीं, जो वह उन किताबों के चित्रों में देखतीं और घर व स्कूल में जो शिक्षा उन्हें दी जाती थी, सर्वव्याप्त था. बचपन से ही उन्हें घुट्टी पिला दी जाती थी कि पतली कमर रखना उन का नारीसुलभ कर्तव्य है. सहनशीलना महिलाओं का जरूरी गुण है. आकर्षक दिखने के लिए उन का शरीर से चिपका, कमर पर कसा और एड़ी तक लंबा कौर्सेट पहनना जरूरी था. इस के लिए शारीरिक कष्ट या यातना भोगना मामूली बात मानी जाती थी.

हालांकि कालांतर में इन मूल्यों को सभी औरतों ने स्वीकार नहीं किया. 19वीं सदी के दौरान कुछ विचार बदले. इंग्लैंड में 1830 के दशक तक महिलाओं ने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ना शुरू कर दिया. महिलाओं ने आंदोलन किया और पोशाक सुधार की मुहिम भी चल पड़ी. महिला पत्रिकाओं ने बताना शुरू कर दिया कि तंग कपड़े और कौर्सेट पहनने से युवतियों में कैसीकैसी बीमारियां और जटिलताएं आ जाती हैं. ऐसे पहनावे शारीरिक विकास में बाधा पहुंचाते हैं, इन से रक्तप्रवाह भी अवरुद्ध होता है. मांसपेशियां अविकसित रह जाती हैं और रीढ़ की हड्डी भी झुक जाती है.

पत्रिकाओं में इंटरव्यू के जरिए डाक्टरों ने बताया कि महिलाएं आमतौर पर कमजोरी की शिकायत ले कर आती हैं, बताती हैं कि शरीर निढाल रहता है, जबतब बेहोश हो जाया करती हैं.

अमेरिका में भी पूर्वी तट के गोरे प्रवासी लोगों के बीच ऐसा ही आंदोलन चला. पारंपरिक महिला कपड़ों को कई कारणों से बुरा बताया गया. कहा गया कि लंबे स्कर्ट, घाघरा, लहंगा आदि झाड़ू की तरह फर्श को बुहारते हुए चलते हैं और अपने साथसाथ कूड़ा व  धूल बटोरते हैं जो कई गंभीर बीमारियों का कारण है. फिर औरतों की स्कर्ट इतनी विशाल होती थी कि संभलती ही नहीं थी और चलने में परेशानी होने के कारण औरतों का काम करना  व जीविका कमाना मुश्किल था. कपड़ों में सुधार करने से महिलाओं की स्थिति में बदलाव आएगा, ऐसी बातों की लहर चलने लगी. कहा गया कि कपड़े अगर आरामदेह हों तो औरतें बाहर निकल कर कामधंधा कर सकती हैं, स्वतंत्र भी हो सकती हैं.

1870 के दशक में, श्रीमती स्टैंटन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय महिला मताधिकार संघ और अमेरिकी महिला मताधिकार एसोसिएशन के नेतृत्व में लुसी स्टोन ने ड्रैस सुधार के लिए बहुत प्रचार किया. उद्देश्य था पोशाक को आसान बनाना, स्कर्टों को छोटा करना और शरीर से कसे हुए कौर्सेट छोड़ना. उन का कहना था, ‘कपड़ों को सरल बनाओ, स्कर्ट छोटी करो और कौर्सेट का त्याग करो.’ इस तरह अटलांटिक के दोनों तरफ आसानी से पहने जाने वाले कपड़ों की मुहिम चल पड़ी.

सामाजिक मूल्यों में बदलाव तुरंत नहीं हुए

पाश्चात्य देशों में स्त्री पहनावे को ले कर कई आंदोलन हुए मगर पितृसत्तात्मक समाज से अपनी मांगें मनवाने में महिलाएं फौरन कामयाब नहीं हुईं. उन्हें उपहास और दंड दोनों झेलने पड़े. दकियानूसी तबकों ने हर जगह परिवर्तन का विरोध किया. उन का प्रलाप यह होता था कि पारंपरिक शैली की ड्रैसें नहीं पहनने से महिलाओं की खूबसूरती खत्म हो जाएगी. यही नहीं, उन की शालीनता भी गायब हो जाएगी. इन लगातार हमलों से त्रस्त हो कर कई महिला सुधारकों ने अपने कदम वापस घरों में खींच लिए और एक बार फिर पारंपरिक कपड़े पहनने लगीं.

फिर भी, 19वीं सदी के अंत तक हवा का रुख काफी बदल गया. कई तरह के दबावों में आ कर सौंदर्य के विचार और पहनावे की शैलियों में बुनियादी बदलाव आए. नए वक्त के साथ नए मूल्य भी चलन में आए. नए दौर में मध्य और उच्च वर्ग की महिलाओं के पहनावे में कई बड़े बदलाव आए और उन की स्कर्ट से लंबी झालरें गायब हो गईं.

प्रथम विश्व युद्ध ने औरत की पोशाक बदली

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान महिलाएं भी ब्रितानी हथियार फैक्ट्री में काम करने के लिए घरों से बाहर निकलीं. तब इसी पितृसत्ता ने, जो उन्हें लंबे लबादों में शालीन और सुंदर मानती थी, अपने मतलब के लिए उन के पहनावे में बदलाव को सहर्ष स्वीकार कर लिया. इस वक्त सहज गति की जरूरत के चलते महिलाओं के कपड़ों में बड़ा परिवर्तन आया और कार्यस्थलों पर महिलाएं पुरुषों की तरह के कपड़े करने लगीं.

ब्रिटेन में 1917 तक आतेआते करीब 70 हजार औरतें हथियार की फैक्ट्रियों में काम कर रही थीं. वे फैक्ट्री में ब्लाउज व पैंट वाली वर्दी पर स्कार्फ पहनने लगीं. बाद में इस वर्दी में स्कार्फ की जगह टोपी ने ले ली. जंग लंबी खिंची, शहीद मर्दों की संख्या बढ़ने लगी तो घरेलू महिलाओं के कपड़ों का भी चटख रंग गायब होने लगा. वे हलके रंग के सादे और सरल कपड़ों में आ गईं. स्कर्ट तो छोटी हुई ही, ट्राउजर भी जल्द ही पाश्चात्य महिला की पोशाक का अहम हिस्सा बन गया. इस से उन्हें चलनेफिरने की बेहतर आजादी हासिल हुई और सब से जरूरी बात, सहूलियत की खातिर औरतों ने बाल भी छोटे रखने शुरू कर दिए.

20वीं सदी आतेआते कठोर और सादगीभरी जीवनशैली गंभीरता और प्रोफैशनल अंदाज का पर्याय हो गई. बच्चों के स्कूलों में सादी पोशाक पर शोर दिया गया और तड़कभड़क को हतोत्साहित किया गया. लड़कियों के पाठ्यक्रम में जिमनास्टिक व अन्य खेलों का प्रवेश हुआ. खेलनेकूदने में उन्हें ऐसे कपड़ों की दरकार थी, जिस से उन की गति में बाधा न आए. उसी तरह काम के लिए बाहर जाने के वक्त उन्हें आरामदेह और सुविधाजनक कपड़ों की जरूरत हुई.

महिलाओं ने भारीभरकम, बेहद तंग और उलझाऊ वस्त्रों को 1870 के दशक तक धीरेधीरे त्याग दिया. कपड़े अब हलके, छोटे और पतले होने लगे. लेकिन फिर भी 1914 तक तो महिलाओं के कपड़े एड़ी तक होते ही थे और यह लंबाई 13वीं सदी से बदस्तूर चली आ रही थी. लेकिन अगले साल, 1915 में ही, स्कर्ट का पायंचा उठ कर अचानक पिंडलियों तक सरक आया.

दरअसल, यह बड़ा परिवर्तन विश्व युद्ध के कारण आया जब यूरोप में ढेर सारी औरतों ने जेवर और बेशकीमती कपड़े पहनने छोड़ दिए. उच्चवर्ग की महिलाएं अन्य तबकों की महिलाओं से घुलनेमिलने लगीं जो अपने कामधंधे के दौरान पिंडलियों तक की स्कर्ट पहनती थीं. उन की देखादेखी उच्चवर्ग की महिलाओं ने भी अपनी स्कर्ट छोटी की. इस से सामाजिक सीमाएं भी टूटीं और महिलाएं एकसी दिखने लगीं.

इस तरह औरत के कपड़ों का इतिहास समाज के वृहत्तर इतिहास से गुंथा रहा. पितृसत्ता ने अपने मतलब के लिए जब भी औरत की शारीरिक व मानसिक शक्ति का इस्तेमाल किया, उस ने उस के पहनावे में बदलाव को भी स्वीकार कर लिया. खूबसूरती की परिभाषा जरूरत के मुताबिक बदल ली जाती रही. मगर अधिकांश देशों में और खासतौर पर मुसलिम देशों में औरत को घर की चारदीवारी में समेटे रखने की मानसिकता के चलते उस के शरीर पर वजनी और गतिरोधक लबादे डाल कर रखे गए, जो आज तक बदस्तूर जारी है.

अरब देश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भारत हर जगह औरतों की हालत लगभग एकजैसी है. उन्हें सुंदर, शालीन, संस्कारी जैसी तारीफों के मकड़जाल में फंसा कर कपड़ों और जेवरों की बेडि़यों में जकड़ दिया गया है. कितनी हैरत की बात है कि धन की देवी लक्ष्मी को पूजने वाले अपने घर की बेटी लक्ष्मी को धनसंपत्ति में कोई अधिकार नहीं देना चाहते. वह एकएक पैसे के लिए घर के मर्दों के आगे भिखारी की तरह हाथ फैलाती है.

ज्ञान की देवी सरस्वती की आराधना करने वाले घर की ‘सरस्वतियों’ को स्कूल नहीं भेजना चाहते, उस को उच्च शिक्षा नहीं लेने देते, बल्कि उस के गले में एक मर्द से मंगलसूत्र बंधवा कर उस को उस की दासी घोषित करना अपना सब से बड़ा धर्म व गर्व समझते हैं. कहानियों में, लोककथाओं में, धार्मिक किताबों में, पूजा स्थलों में नारी को नर से आगे रखने वाले वास्तविक जीवन में नारी की गति और आजादी को बांध कर उसे हमेशा पीछे धकेले रखना चाहते हैं.

बंगलादेश में रेडीमेड कपड़ों की दुकानों पर नजर डालें, तो वहां पुरुषों के लिए शर्ट, पैंट, टाई या कुरता, पायजामा तो है, लेकिन महिलाओं के लिए बुर्के की तरह लंबी पोशाक है. सिर ढकने के लिए हिजाब भी है. कहींकहीं महिलाएं साड़ी के ऊपर बुर्के की जगह गाउन पहनती हैं. साड़ी पहनने पर पूरी बांह वाले ब्लाउज पहनने का चलन है. बंगलादेश में भीषण गरमी पड़ती है. फिर भी महिलाओं को लबादे पर लबादा ओढ़ने के लिए मजबूर किया जाता है. गरम मुसलिम इलाकों में बुर्के और हिजाब का चलन लागू करना धर्म के नाम पर उस की गति रोकने का वही तरीका है, जिसे औरत शताब्दियों से भुगत रही है.

दरअसल, पुरुष खुद अपने को बंधनमुक्त रख कर महिलाओं को संस्कारों के नाम पर बांधे रखना चाहता है ताकि महिलाओं को अपने बारे में सोचने की ही फुरसत न मिले. महिलाओं को भी अपनी उस पारंपरिक और तथाकथित पवित्र छवि से मोह हो गया है जो उन के लिए पुरुषों ने गढ़ी है. जबकि वे काम की जगहों पर अपने कपड़ों की वजह से पिछड़ रही हैं, अपने कपड़ों के कारण कई तरह की मुसीबतों का सामना कर रही है. वे खुद यह भी मानती हैं कि कपड़ा किसी के चरित्र का मापदंड नहीं होता है. वे सवाल भी उठाती हैं कि जहां महिलाएं घूंघट या बुर्के में रहती हैं, वहां क्या उन का बहुत सम्मान किया जाता है? क्या उन्हें वहां बराबरी के सारे अधिकार हासिल हैं? क्या कपड़े हमारे चरित्र का पैमाना हैं? बावजूद इन तमाम सवालों के, महिलाएं खुद आगे बढ़ कर गतिरोधक कपड़ों की बेडि़यां उतारना नहीं चाहतीं.

नजर से गिरने का थोथा डर

कपड़ों में बदलाव न करने की सब से बड़ी वजह है डर. यह डर है अपनों की नजरों से गिरने का. सिर से पल्ला हटाया तो ससुर क्या कहेगा? देवर कैसी नजरों से देखेगा? जेठ के सामने से कैसे निकलूंगी? सास ताने मारेगी. महल्ले वाले बातें बनाएंगे. कैसी असंस्कारी, असभ्य, निर्लज्ज बहू है, ऐसी बातों के बाण मारेंगे. मनचले छेड़ेंगे. यही डर बेटियों को है कि जींसटौप पहना, तो पापा गुस्सा होंगे, भाई चिल्लाएगा. इस डर का मुकाबला कर के इस को हरा कर जो लड़कियां आगे बढ़ गईं, जीवन उन के लिए आसान हो गया. जीवन में गति आ गई, आजादी और आत्मनिर्भरता आ गई, खुद में आत्मविश्वास जागा.

कुसुम को पति की मौत के बाद जब सरकारी फैक्ट्री में उस की जगह काम करने का मौका मिला तो उस की ससुराल वालों ने सहर्ष हामी भर दी. बल्कि उस को पति की जगह काम दिलवाने की कोशिश तो घर वालों की सलाह से उस के जेठ ने ही की और कुसुम को काम मिल गया. 2 नन्हे बच्चों की विधवा मां कुसुम को ससुराल में रहने के लिए पैसे की जरूरत थी और ससुराल वालों को भी उस धन की लालसा जो वेतन के रूप में पहले बेटा लाता था और अब उस के मरने के बाद उन की बहू लाएगी.

कुसुम काम के लिए फैक्ट्री जाने लगी. वह रोज सुबह साड़ी लपेट कर सिर पर माथे तक पल्ला निकाल कर घर से निकलती थी, महल्ला पार करती, बस में सवार होती और आधे घंटे के सफर के बाद पसीने से लथपथ फैक्ट्री पहुंचती थी. फैक्ट्री पहुंच कर वह सिर से पल्ला उतार कर कमर में खोंस लेती ताकि मशीन पर खड़ी हो कर काम कर सके. लेकिन कुसुम की तारीफ घर और महल्ले में थी कि देखो, काम पर जाती है पर क्या मजाल कि सिर से एक इंच भी पल्ला खिसक जाए, कैसी संस्कारी बहू है. बस, यही संस्कारी बहू वाले तमगे ने उसे अपने कपड़ों में बदलाव से रोका हुआ है.

मशीन पर खड़े होते वक्त वह साड़ी के कारण परेशान होती रहती है, रास्तेभर यह 6 गज का कपड़ा उसे तेज चलने से रोकता है, गरमी के कारण आए पसीने में पेटीकोट बारबार दोनों पैरों के बीच चिपकता और फंसता है, मगर संस्कारी बहू इन परेशानियों को जीवनभर झेलती है और यही घुटनभरा संस्कार वह अपनी बेटियों को भी परोसती है.

पाकिस्तान में औफिस में काम करने वाली कितनी महिलाएं और कालेज जाने वाले लड़कियां जींसटौप के ऊपर बुर्का पहनती हैं, जो औफिस या कालेज पहुंचने के बाद उतर जाते हैं. महज इस कारण से कि कहीं उन की तथाकथित ‘शालीनता’ और ‘लज्जा’ पर सवाल न खड़े हो जाएं. यह बिलकुल ऐसा है जैसे मन गतिमान है, वह उड़ना चाहता है मगर सामाजिक तमगों के कारण औरतें खुद कपड़े पर कपड़ा ओढ़ कर उस गति को रोक देती हैं.

धर्म डालता है आजादी में बाधा

औरत को आजाद होने और गतिशील होने में सब से बड़ा बाधक है धर्म. धार्मिक स्थलों पर पुरुष तो पैंटशर्ट पहन कर जा सकता है मगर औरत नहीं. पुरुष अगर लुंगी या धोती पहने है तो अपनी लुंगी या धोती को घुटनों तक चढ़ा कर अपने पैरों का प्रदर्शन कर सकता है मगर औरत की साड़ी एड़ी तक होनी चाहिए. औरत को पल्लू से सिर भी ढांकना होगा. धार्मिक स्थल पर वह स्कर्ट पहन कर नहीं घुस सकती. सलवारकुरता पहने है तो लंबे दुपट्टे से सिर और छाती को ढकना होगा. हिंदू औरत पति के साथ पूजा में बैठती है, तो पूरे शरीर सहित उस का सिर और आधा चेहरा भी साड़ी के पल्लू से छिपा रहता है.

ये तमाम नियम धर्म और धर्म के ठेकेदारों ने औरतों पर थोपे हैं. ये नियम सभी धर्मों में हैं. ईसाई औरत लंबे गाउन पहनती है और सिर पर स्कार्फ या दुपट्टा बांध कर चर्च जाती है. मुसलमान औरतों को तो मसजिद में आना ही मना है, हालांकि वे आ सकती हैं, मगर उन के घरों से ही इजाजत नहीं मिलती. अन्य कामों से बाहर निकलती हैं तो उन को अपने सिर सहित पूरा शरीर लाबादेनुमा बुर्के में लपेटना होता है.

औरतें कैसे कपड़े पहनें, यह उन के धर्म और उस के ठेकेदार तय कर के उन के समाज और परिवार के माध्यम से उन पर लागू करवाते हैं. मगर यही धर्म और उस के ठेकेदार वहां चुप्पी साध लेते हैं जहां औरतें तपती धूप में खेतों या फैक्ट्रियों में काम करती हैं. जहां वे अपनी साडि़यों को धोती की तरह दोनों पैरों के बीच इस तरह पहन लेती हैं कि काम करने के लिए उन के पैर कपड़े में न अटकें. धोतीनुमा पहनी गई साड़ी कभीकभी उन की जांघों तक चढ़ आती है. आमतौर पर धान की रोपाई के वक्त पानी से भरे खेतों में औरतों को आप इसी पोशाक में पाएंगे. तब उन के सिर पर कोई घूंघट भी नहीं होता. तब क्योंकि, औरत से शारीरिक श्रम लेना है तो वहां कपड़ों के कारण शालीनता खोने या स्त्रियों के गुण खत्म होने का कोई सवाल पैदा नहीं होता है. वाह रे, दोमुंहा पितृसत्तात्मक समाज.

अमेरिका में अब बुक बम

चुनावी बिसात बिछने से पहले सियासी बिसात. 3 नवंबर को होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनावों के लिए एक साल पहले से की जा रही तिकड़मबाजी की पोल खुल गई है. देश के सरबराह डोनाल्ड ट्रंप अगले कार्यकाल को पाने के लिए मौजूदा कार्यकाल के आखिरी दिनों में तरहतरह की राजनीतिक गोटियां चल रहे हैं, लेकिन समय साथ नहीं दे रहा क्योंकि उन की तकरीबन सभी गोटियां उलटी पड़ती दिख रही हैं.

दुनियावालों के लिए दिलचस्प यह है कि अमेरिकी चुनावी राजनीति में इस बार बुक्स (पुस्तकें) भूमिका निभाने जा रही हैं. अमेरिका में 2 किताबें, जिन्हें रिलीज़ किया जाना है, को ले कर ज़ोरदार हंगामा खड़ा हो गया है. जबकि, एक तीसरा सब्जैक्ट तैयार है जो अगली किताब का विषय बन सकता है.

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पहली किताब : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जौन बोल्टन की किताब ने छपने से पहले ही दुनियाभर में तहलका मचा दिया है. दरअसल, बोल्टन ने अपनी किताब में ट्रंप और चीन के संबंधों को ले कर चौंका देने वाला खुलासा किया है. उन्होंने कहा है कि ट्रंप ने साल 2020 में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में जीत के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से वर्ष 2019 में मदद मांगी थी. यह किताब साइमन ऐंड शस्टर पब्लिकेशन कंपनी से प्रकाशित होनी है.

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस किताब को छपने से रोकने के लिए हर हरबे का इस्तेमाल कर रहे हैं. हो सकता है कि अमेरिका की अदालत राज़दारी के क़ानून के हनन की वजह से इस किताब के प्रकाशन पर रोक लगा दे.

जौन बोल्टन द्वारा लिखित किताब ‘द रूम व्हेयर इट हैप्पेंड : द व्हाइट हाउस मेमौयर’ में वे रहस्य हैं जिन से ट्रंप की बड़ी बेइज़्ज़ती हो सकती है और यह साबित हो सकता है कि ट्रंप राष्ट्रपति पद के लिए फ़िट नहीं हैं. जैसे, किताब में बताया गया है कि ट्रंप ने पत्रकारों को फांसी देने की मांग की थी, वे समझते थे कि फ़िनलैंड रूस के अंदर है,  ट्रंप चीन में कैंपों के अंदर उइगर मुसलमानों की स्थिति से पूरी तरह सहमत हैं, उन्होंने चीन के राष्ट्रपति से मांग की थी कि चुनाव जीतने में उन की मदद कर दें आदि व अन्य अनेक

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चुनाव पर असर डालने की चीन की क्षमता :

बोल्टन की किताब के कुछ अंश ‘द वौल स्ट्रीट जर्नल’,  ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ और ‘द न्यूयौर्क टाइम्स’ में छापे गए हैं. इन में बोल्टन दावा करते हैं कि पिछले साल जून में जापान के ओसोका में जी-20 समिट के दौरान ट्रंप चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिले, तो अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के बारे में बात करने लगे कि किस तरह से चीन की आर्थिक क्षमता ऐसी है कि वह अमेरिका में जारी चुनावी प्रचार अभियान पर असर डाल सकती है. बोल्टन ने लिखा है कि ट्रंप ने शी से उन्हें जिताने की अपील की.

ट्रेड वौर ख़त्म करने की पेशकश :

किताब में बोल्टन के मुताबिक, ट्रंप ने अमेरिका के किसानों के महत्त्व पर जोर दिया और कहा कि कैसे चीन के सोयाबीन और गेहूं खरीदने से अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों पर असर पड़ सकता है. बोल्टन ने दावा किया है कि ट्रंप ने चीन से ट्रेड वौर खत्म करने और पश्चिम चीन में उइगर मुसलिमों के लिए कन्सन्ट्रेशन कैंप बनाने की पेशकश तक कर डाली.

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बात नहीं बनी तो :

अब जब बात नहीं बन पा रही तो ट्रंप ने 18 जून को उइगर मुसलिमों के खिलाफ चीन में हो रही कार्रवाई को ले कर चीन को सजा देने वाले बिल पर दस्तखत कर दिया है. इस के तहत उइगर मुसलिमों पर सर्विलांस करने वाले और उन्हें डिटेंशन सेंटरों में डालने वाले अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाया जाएगा. माना जा रहा है कि इस दिशा में चीन के खिलाफ किसी देश का उठाया यह सब से कड़ा कदम है.

कुछ समय पहले चीन से बात न बनते देख डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद के लिए अपने विपक्षी उम्मीदवार जो बाइडेन पर चीन से मिलीभगत का आरोप लगाते रहे हैं. उन्होंने चीन पर कई बार आरोप लगाया है कि वह बाइडेन को चुनाव जिताने के लिए कोशिशें कर रहा है. ट्रंप के इस कथन से साफ़ है कि अमेरिका के चुनाव में चीन का असर पड़ेगा, जिस का उन्हें सहयोग नहीं मिल पा रहा है.

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दूसरी किताबः अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की भतीजी मैरी ट्रंप एक किताब लिख रही हैं. इस किताब में उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के यौन स्कैंडलों और परिवार से उन के संबंधों का ख़ुलासा किया है. किताब में यह भी बताया है कि वे अपनी पत्नियों से क्यों अलग हुए और उन की संपत्ति का स्रोत क्या है. यह किताब भी साइमन ऐंड शस्टर पब्लिकेशन से अगले महीने के आख़िर तक छप जाएगी. इस किताब का नाम है – ‘Too Much and Never Enough: How My Family Created the World’s Most Dangerous Man.’ भतीजी मैरी ट्रंप ने अपने अंकल डोनाल्ड ट्रंप के बारे में बेहद संगीन और भयावह खुलासे करने की ठान ली है.

डोनाल्ड ट्रंप बनाम मैरी ट्रंप :

अमेरिका के एक इंग्लिश डेली ने यह खुलासा किया कि मैरी जल्द ही अपने अंकल डोनाल्ड ट्रंप से जुड़ी डरावनी और घिनौनी सचाइयां बयान करती किताब लाने जा रही हैं. इस किताब के कुछ हिस्से, जो मीडिया ने बयान किए हैं, उन से अंदाज़ा लगता है कि ट्रंप कितनी बड़ी मुसीबत में पड़ सकते हैं.

मैरी अपनी किताब में बताने जा रही हैं कि ‘कैसे दुनिया के सब से खतरनाक आदमी को रचने के लिए उन का परिवार ज़िम्मेदार रहा’. जुलाईअगस्त में आने वाली यह  किताब  चर्चाओं में है क्योंकि ट्रंप के लिए चुनाव में यह बड़ा झटका साबित हो सकती है. किताब में यह भी बताया गया है कि ट्रंप किस तरह टैक्स की चोरी करते थे और किस तरह अलज़ाइमर के मरीज़ अपने पिता का मज़ाक़ उड़ाते थे.

मालूम हो कि आने वाली किताब में एमेजौन ने मैरी एल ट्रंप के बारे में लिखा है कि वे एडवांस्ड साइकोलौजिकल स्टडी के डर्नर इंस्टिट्यूट से पीएचडी की डिग्री हासिल कर चुकी हैं और ट्रौमा साइकोपैथोलौजी के साथ ही डैवलपमैंटल साइकोलौजी के ग्रेजुएट कोर्सों के सब्जैक्ट्स पढ़ाती हैं. इस के अलावा वे क्लीनिकल साइकोलौजी की कोच भी हैं. 55 वर्षीय मैरी के पिता फ्रेड ट्रंप जूनियर 1981 में गुज़रे थे, जो डोनाल्ड ट्रंप के बड़े भाई थे.

लपेटे में ओबामा भी :

कच्चा चिट्ठा खोलने की इस लड़ाई में तीसरा नाम मालिक ओबामा का है जो पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा के सौतेले भाई हैं. उन्होंने एक बड़ा धमाका किया है जिस से यक़ीनन ट्रंप के सीने को ठंडक मिली होगी जो आजकल बड़े कठिन दौर से गुज़र रहे हैं. मालिक ओबाम ने दावा किया है कि उन के पास दस्तावेज़ हैं जिन से साबित होता है कि ओबामा अमेरिका में नहीं, केन्या के मोम्बासा में पैदा हुए थे. यदि यह बात सही है तो क़ानूनी और संवैधानिक दृष्टि से ओबामा को राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं था. अमेरिका के कुछ पब्लिकेशन हैं जो मालिक ओबामा से यह किताब लिखवाने की कोशिश में लगे हैं.

बहरहाल, रोचक यह है कि ये किताबें अमेरिका में 3 नवंबर को होने वाले राष्ट्रपति चुनावों से 3 महीने पहले प्रकाशित हो जाएंगी और संभावना है कि इन किताबों का राष्ट्रपति ट्रंप की साख पर बहुत गहरा असर पड़ेगा. वैसे भी, हालिया सर्वे रिपोर्टों से पता चलता है कि जो बाइडेन की स्थिति मज़बूत हो गई है.

वहीं,  ट्रंप अमेरिकी अदालत की मदद से बोल्टन की किताब का प्रकाशन रुकवाने या उस की कुछ बातें हटवाने में सफल होंगे या नहीं, यह तो समय बताएगा लेकिन इतना तो तय है कि इस समय तक उस किताब की जो बातें लीक हो चुकी हैं वे ट्रंप की साख पर बहुत बड़ा आघात लगा देंगी. हां, विपक्षी उम्मीदवार जो बाइडेन के लिए ये दिन सैलिब्रेट करने वाले हैं.

सोनाक्षी सिन्हा के बाद सलमान के इन दो करीबी लोगों ने भी डिलीट किया ट्विटर अकाउंट, जानें पूरा मामला

बॉलीवुड  एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या के बाद कई तरह के खुलासे हो रहे हैं. जिसमें कई बातें सामने आ रही है. वहीं कुछ स्टार्स मेंटल हेल्थ पर खुलकर बात कर रहे हैं. कुछ स्टार्स  सीधे ट्रोलर्स के निशाने पर आ गए है. जिसमें सोनाक्षी सिन्हा को जमकर ट्रोल किया गया है. आइए जानते हैं सोनाक्षी को यूजर्स ने क्या कहा.

कुछ दिनों पहले दबंग एक्टर सोनाक्षी सिन्हा ने जब सुशांत सिंह राजपूत को सोशल मीडिया पर श्रद्धांजली दी तो उन्हें यूजर्स ने खुलकर  ट्रोल किया था. सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स ने जमकर भड़ास निकाली थी.  इन सभी के बाद सोनाक्षी सिन्हा ने अपना ट्विटर अकाउंट भी डिलीट कर दिया है. हालांकि लोग अभी भी सोनाक्षी को ट्रोल करना नहीं छोड़ रहे हैं.

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Aag lage basti mein… mein apni masti mein! Bye Twitter ??

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सोनाक्षी के अलावा सलमान के जीजा आयुष शर्मा और जहीर इकबाल ने सोशल मीडिया को अलविदा कह दिया है. सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या के बाद गुस्साए लोग सभी को निशाने पर ले रहे हैं.

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गौरतलब है कि सलमान खान ने ही अपने जीजा आयष शर्मा और जहीर इकबाल को फिल्म में लॉन्च किया था. जिसके बाद लोग उनपर सीधा निशाना साधे हुए हैं. सलमान खान इसके अलावा और भी कोई लोगों के बॉलीवुड में लॉन्च कर चुके हैं. जैसे सोनाक्षी सिन्हा को भी सलमान खान ने ही लॉन्च किया था. जिसेक बाद से ये सभी सितारे लगातार सुर्खियोॆ में बने हुए हैं.

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अगर बात की जाए सोनाक्षी सिन्हा की तो उन्होंने अपने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट साझा किया है. जिसपर उन्होंने लिखा है कि इंसान को मानसिक तौर पर स्वस्थ्य रहना चाहिए.  किसी काम की शुरुआत करने से पहले खुद को नकारात्मक चीजों से दूर रखना चाहिए इसलिए मैं अपना ट्विटर अकाउंट डिलीट करने जा रही हूं. सबको बॉय शायद अब सब लोग खुश रहेंगे. आग लगे बस्ती में खुश रहे मस्ती में….सोनाक्षी का यह पोस्ट भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है.

सुशांत सिंह राजपूत के घर पहुंची भोजपुरी एक्ट्रेस अक्षरा सिंह, ऐसे दी श्रद्धांजलि

बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद पूरा बॉलीवुड अभी भी शोक में जूबा हुआ है. सुशांत के परिवार वालों का मनोबल बढ़ाने के लिए लोग उनके घर जाकर परिवार वालों से मिलकर उन्हें सांत्वना दे रहे हैं.

वहीं भोजपुरी फिल्म की मशहूर अदाकारा अक्षरा सिंह सुशांत सिंह राजपूत के घर उनके परिवार से मिलने पहुंची. पिता से मुलाकात करके अक्षरा सिंह ने गहरा शोक जताया.

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अक्षरा सिंह ने सुशांत सिंह राजपूत के परिवार वालों के साथ लंबा समय बिताया और ढेंर सारी बातें की , परिवार से बातचीत करते हुए अक्षरा सिंह ने कहा सुशांत एक जिंदादिल एक्टर थे उन्होंने बिना किसी सपोर्ट के इंडस्ट्री में खुद की पहचान बनाई थीं.

हमने देश के एक बड़े सुपरस्टार और एक अच्छे इंसान को खो दिया है.  वहीं सुसांत सिंह की मौत की खबर इंडस्ट्री में हर इंसान को रुलाकर रख दिया है.

सोशल मीडिया पर लोग अक्षरा सिंह के तस्वीर को खूब पसंद कर रहे हैं. लोगों का मानना है कि अक्षरा सिंह ने बहुत अच्छा कदम उठाया है. यह कदम उनके लिए सराहनीय है.

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वहीं सुशांत सिंह राजपूत के परिवार वालों से बातचीत करते हुए खेसारी लाल यादव ने नेपोटिज्म पर सीधा निसाना साधा था. उन्होंने कहा था कि नेपोटिज्म हमारे सिनेमा को बर्बाद कर रहा है. आगे उन्होंने कहा था कि यह कोई नई बात नहीं है बॉलीवुड में नेपोटिज्म लंबे समय से चली आ रही है.

सुशांत सिंह राजपूत के परिवार वालों के साथ-साथ यूपी बिहार के लोगों को भी सुशांत पर बहुत ज्यादा गर्व था. उन्हें सुशांत के जानें का बहुत ज्यादा दुख है. उन्हें लगता है कि उन्होंने अपना एक सितारा खो दिया है.

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वहीं बिहार और यूपी के कई जगहों पर कई रैलिया भी हुई हैं सुशांत के मौत के  बाद कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जिनको अभी भी भरोसा नहीं हो रहा है सुशांत सिंह राजपूत इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह चुके हैं.

5 रेसिपी: मानसून में बनाएं कुछ गरमागरम

मानसून की रिमझिम फुहार तीव्र गरमी से राहत देती है. इस मौसम में दूध बेहतर आहार है. सब्जियां, फल, अनाज आदि खाद्य पदार्थ ज्यादा खाएं जबकि मांस या मछली कम खाएं. इस मौसम में आलू अलगअलग तरीके से पकाया व खाया जाता है. यह बंगाल में खिचड़ी, बिहार में चोखा, राजस्थान और गुजरात में बेसन और आलू भुजिया के रूप में तला व खाया जाता है. इस मौसम में बीमारियां ज्यादा पनपती हैं, इसलिए अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार करने के लिए अपने भोजन में अदरक, लहसुन, हींग और हलदी ज्यादा इस्तेमाल करें.

1 पास्ता पकौड़ा

सामग्री
1/2 कप उबले शैल पास्ता, 1/2 कप चने की दाल, 2 बड़े चम्मच कसी चीज, 1/2 कप कटा पालक, 1-2 हरीमिर्चें, 1 बड़ा चम्मच कटी हरी शिमलामिर्च, 1 बड़ा चम्मच पीली कटी शिमलामिर्च, 1 कटा प्याज, नमक स्वादानुसार.

विधि
शिमलामिर्च, प्याज व हरीमिर्च में नमक व चीज मिला लें. चने की दाल पानी में भिगो कर पालक के साथ पीस लें. उबले पास्ता शैल में कटी शिमलामिर्च का मिश्रण भरें व चने की दाल के पेस्ट में लपेट कर गरम तेल में तलें. गरमागरम सौस के साथ परोसें.

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2 आलू के त्रिकोन

सामग्री 
1 कप मैदा, 2 उबले आलू, 2 बड़े चम्मच तेल, 1 हरीमिर्च, 1 बड़ा चम्मच तिल, 1 बड़ा चम्मच अरारोट पाउडर, तलने के लिए तेल, 1/4 छोटा चम्मच अमचूर, 1/4 छोटा चम्मच गरम- मसालापाउडर, नमक स्वादानुसार.

विधि 
मैदे में नमक व तेल डाल कर अच्छे से मिलाएं. पानी के साथ गूंध लें. उबले आलू को मैश कर नमक, हरी मिर्च, अमचूर व गरममसाला मिलाएं. मैदे की पतली परत बेल कर तिकोना काट लें. उस पर आलू मिश्रण फैलाएं. इस के ऊपर मैदे का एक पतला त्रिकोन रख कर अरारोट पाउडर से दोनों तिकोनों को किनारों से चिपका लें. ऊपर से तिल चिपका दें. गरम तेल में डीप फ्राई करें. चटनी या सौस के साथ परोसें.

 

3 भरवां बिस्कुट

सामग्री 
1 पैकेट नमकीन बिस्कुट, 2 उबले आलू, 1 कप बेसन, 1/4 छोटा चम्मच गरम मसाला पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच अमचूर, 1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर, 1 छोटा चम्मच लहसुनअदरक पेस्ट, तलने के लिए पर्याप्त तेल, नमक स्वादानुसार.

विधि
कड़ाही में तेल गरम कर के अदरक, लहसुन पेस्ट व मसाले डाल कर भूनें. इस में आलू मसल कर डालें व अच्छे से भूनें. 2 नमकीन बिस्कुट के बीच आलू का यह मसाला भरें. नमक डाल कर बेसन का घोल बना कर भरवां बिस्कुट को इस घोल में लपेट कर गरम तेल में तलें. गरमागरम चटनी के साथ परोसें.

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4 भुट्टे की टिक्की

सामग्री 
1 कप कच्चे भुट्टे के दाने, 1 उबला आलू, 1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट, 1-2 हरीमिर्चें, 1/2 कप ब्रैड का चूरा, तलने के लिए तेल, नमक स्वादानुसार.

विधि
भुट्टे के दाने मिक्सी में पीस लें. इस में उबले आलू मिला लें. अदरकलहसुन पेस्ट, हरीमिर्च व नमक डाल कर अच्छे से टिक्की का आकार दें. ब्रैड के चूरे में लपेट कर गरम तेल में तलें. गरमागरम चटनी के साथ परोसें.

 

5 आम का कलाकंद

सामग्री
1 लिटर दूध, 1 कप (बिना रेशे वाले) आम का गूदा, 1/2 कप चीनी, 3 बड़े चम्मच नीबू का रस, 4 बादाम, 8 पिस्ते, 4 छोटी इलायची.

विधि
नीबू रस से दूध को फाड़ कर पनीर बना लें. पनीर बनाने के लिए फटे दूध को किसी पतले सूती कपड़े में डाल कर व छान कर, ऊपर से थोड़ा पानी डाल कर पनीर को धो लें और कपड़े को चारों ओर से उठा कर हाथ से दबा कर अतिरिक्त पानी निकाल दें. तैयार पनीर को कपड़े से निकाल लें. बादाम और पिस्ते पतलेपतले काट लें. इलायची छील कर पाउडर बना लें. कड़ाही में आम का गूदा और चीनी मिला कर पकने के लिए रखें. आम का गूदा गाढ़ा होने व चीनी अच्छी तरह घुलने तक इसे पका लें. पके हुए आम के गूदे में पनीर डालें और लगातार चलाते हुए मिश्रण को गाढ़ा होने तक पकाएं, मिश्रण में आधे कतरे बादाम और पिस्ते डाल कर मिला दें, जब मिश्रण थोड़ा जमने लगे तब गैस बंद कर दें. अब मिश्रण में इलायची पाउडर डालें. प्लेट में थोड़ा सा घी डाल कर चिकना करें और कलाकंद का मिश्रण प्लेट में डाल कर, 3/4 इंच की मोटाई में फैला कर चौकोर आकार दें. जमे हुए कलाकंद को अपने मनपसंद आकार के टुकड़ों में काट लें. आम का स्वादिष्ठ कलाकंद तैयार है.

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