पिछले 11 माह में भारत ने चीन से 62 अरब डालर का सामान आयात किया है. चीनी सामान के बहिष्कार से भारतीय कारोबारियो को ही नुकसान होगा. चीन को इस बहिष्कार से तत्काल नुकसान नहीं होगा. चीन ने अपने नुकसान का अंदाजा लगाकर ही सीमा विवाद का फैसला किया होगा. भारत न तो सीमा पर तैयार था ना ही उसने कोई कारोबारी तैयारी की है.देष में सस्ता सामान न मिलने से उससे जुडे तमाम कारोबार प्रभावित होगे. जिससे देष में फैली बेकारी और बर्बादी के और बढने अनुमान लगाया जा सकता है.

देश की आजादी के समय अंग्रेजो का विरोध करने के लिये विदेषी सामानों की होली जलाई गई थी. ऐसे समय में पूरा देश एक सूत्र में बंध गया था. आजादी की लडाई में विदेषी सामानों का बहिष्कार एक प्रमुख मुददा बन गया था. देष में स्वदेषी आन्दोलन ने जोर पकडा. गांधी जी ने स्वदेषी सामानों के अपनाने की मुहिम के तहत ही चरखे से काटे गये सूत से बने कपडे पहनने पर जोर दिया. यही वजह है कि नेताओं ने खादी पहनना षुरू किया. धीरेधीरे नेताओं को स्वदेषी खादी की जगह विदेषी कौटन और लिनन से तैयार कपडे पहनने में फक्र महसूस होने लगा. 1990 के बाद इस तरफ तेजी से झुकाव होने लगा और भारत में विदेषी सामान तेजी से आने लगा. दुनिया भर की नजर में भारत एक बाजार बन गया था. हमारे नेता इस बात से खुष थे कि दुनिया हमें बाजार समझ रही थी.

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भारत की सरकारें भी विदेषियों की दबाव में उनके अनुकूल काम करने लगी. जिसका सबसे बडा लाभ चीन ने उठाया. चीन ने भारत से कच्चा माल मंगाना षुरू किया इससे सामान तैयार करके मंहगे दामों पर भारत के लोगों को ही बेचने लगा. 2019 में चीन ने भारत से 3900 करोड रूपये का लोहा मंगवाया और उसी लोहे से तैयार किये गये 12 हजार करोड का सामान भारत को बेच दिया. अगर चीन भारत को 10 वस्तुयें बेचता है तो उनमें से 9 वस्तुये भारत के ही कच्चे माल से तैयार होती थी. सस्ते के मोह और अपने देष में सामान तैयार ना होने के कारण भारत के लोग चीनी सामान खरीदने को मजबूर होते है.

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