प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महज 4 घंटे के नोटिस में पूरे देश में लौकडाउन की घोषणा की थी. इस कारण जो जहां थे वहीं थम गए. लौकडाउन के कारण जिस तबके को सब से बड़ी समस्या झेलनी पड़ी, वह प्रवासी मजदूर तबका था जो अपने गृहराज्य से दूसरे राज्य में काम की तलाश में गया था.

जाहिर सी बात है, कोरोना के डर से ज्यादा देश के गरीबों को भूख से मरने का डर था. यही कारण था कि प्रवासी मजदूरों ने पहले ही लौकडाउन को तोड़ते हुए तीसरे दिन से ही चहलकदमी शुरू कर दी थी. हजारों की संख्या में मजदूरों ने पैदल ही अपने घरों के लिए सैकड़ों किलोमीटर की लंबी यात्रा करनी शुरू की.

इस दौरान कई मजदूरों और उन के छोटेछोटे बच्चों ने भूख और थकान के कारण अपनी जान भी गंवाई. कइयों की रोड एक्सीडेंट में जान चली गई. दुधमुहे बच्चों से ले कर गर्भवती महिलाओं तक, जवान मजूरों से ले कर बुजुर्गों तक ने भूख और सरकार पर अति अविश्वास के कारण यह यात्रा शुरू की.

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जब सरकार ने इन मजदूरों को डंडे के जोर पर रोकने की कोशिश की तो कहींकहीं मजदूर और पुलिस के बीच टसल की खबरें भी आईं. पिटते, मार खाते जैसेतैसे इन की स्वकार्यवाहियों के आगे सरकार को झुकना पड़ा और लौकडाउन के ठीक 37 दिन बाद प्रवासी मजदूरों के लिए यातायात के लिए श्रमिक ट्रेन की व्यवस्था करनी पड़ी. जिसे ले कर कहा गया कि मजदूरों को ट्रेन से मुफ्त उन के गृह राज्य पहुंचाया जाएगा. जिसे ले कर केंद्र से लेकर राज्य सरकारें किराया को ले कर आएदिन अपनाअपना हिसाब समझाने में लगी रहती थी. उस समय भारतीय लोग समझ तो रहे थे कि सरकार मजदूरों से किराया वसूल रही है, लेकिन सरकारें अपनी पीठ थपथपा रही होती थीं. जिस कारण कन्फ्यूजन की स्थिति बनी रही, लेकिन अब धीरेधीरे सरकार के लौकडाउन का हिसाब सामने आ रहा है.

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