“मौसम विभाग के अनुसार दिल्ली में 20 जून तक मानसून दस्तक देगा और ताजनगरी आगरा के साथ-साथ प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी 20 जून से 25 जून के बीच मानसूनी हवाए धरती का प्यास बुझाने लगेगी . ”

* मानसून ने केरल तट पर दस्तक दिया :- एक हफ्ते की देरी के बाद दक्षिण पश्चिमी मानसून ने केरल तट पर शनिवार को दस्तक दे दिया है. दक्षिण पश्चिम मानसून ही उत्तर और मध्य भारत सहित देश के अधिकांश इलाकों में लगभग चार महीने तक चलने वाली बारिश की ऋतु का वाहक माना जाता है. देश में मानसून के दस्तक देने की खबर, भीषण गर्मी, किसानों की समस्या और जलाशयों के तेजी से गिरते जलस्तर की चिंता से राहत देने वाली साबित होगी.

* मॉनसून के लिए अनुकूल स्थितियां बन रही है :- देश में दक्षिण-पश्चिम मानसून अपनी सामान्य रफ्तार से आगे बढ़ रहा है. अबतक दक्षिण भारत के कई राज्यों के तटीय इलाकों में मानसून की झमाझम बारिश देखी गई है. भारत मौसम विभाग के अनुसार, अगले 24 घंटे में बंगाल की खाड़ी में एक निम्न दबाव का क्षेत्र बन सकता है. मौसम विभाग का कहना है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के लिए अनुकूल स्थितियां बन रही है. अगर ऐसा ही रहा तो महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना समेत देश के कई हिस्सों में बारिश हो सकती है. वहीं, दक्षिण पश्चिम मॉनसून अगले दो दिन में बंगाल की खाड़ी, पूर्वोत्तर के राज्यों, सिक्किम, ओडिशा के कुछ हिस्सों और गंगीय पश्चिम बंगाल में आगे बढ़ने के साथ बारिश भी हो सकती है. तटीय कर्नाटक और केरल के बाद पिछले दो दिनों में दक्षिणी आंतरिक कर्नाटक, तमिलनाडु के अधिकांश हिस्सों और रायलसीमा और दक्षिण तटीय आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में मानसून ने दस्तक दे दिया. पूर्वोत्तर भारत में मानसून अगले दो-तीन दिनों में दस्तक दे सकता है. इसके अलावा, कोंकण, महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बाकी हिस्सों में भी मानसून आगे बढ़ेगा.

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* अगले सप्ताह बिहारझारखंड में दस्तक :-  बंगाल की खाड़ी पर जल्द ही एक निम्न दबाव का क्षेत्र बनने की संभावना है. बंगाल की खाड़ी में यह पहला मानसून सिस्टम होगा. मानसून के शुरुआती समय में जब भी ऐसे मौसमी सिस्टम बनते हैं तो यह बहुत दूर तक नहीं जाते हैं. अनुमान है कि यह सिस्टम देश के पूर्वी तटों और इसके आसपास के पूर्वी भारत के भागों पर ही रहने की संभावना है. एजेंसी के अनुसार, दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 15 जून तक बिहार और झारखंड तक आ जाता है. यह मौसमी सिस्टम 12 जून को ओडिशा के तटों को पार करने के बाद पूर्वी भारत के ओर मुड़ सकता है और बिहार, झारखंड तथा पश्चिम बंगाल के ऊपर पहुंच जाएगा. आगे यह तराई क्षेत्रों में जा सकता है.

* तेज बारिश होने की संभावना:- अरब सागर पर दक्षिण-पश्चिमी हवाओं के सक्रिय होने के कारण आने वाले समय में मानसून कर्नाटक और रायलसीमा के भागों को पार करते हुए तेलंगाना पहुंच जाएगा. साथ ही मुंबई समेत महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र और मध्य महाराष्ट्र क्षेत्र में भी जल्द ही मानसून के आने की अच्छी खबर मिलेगी. आने वाले दिनों में मानसून के आगे बढ़ने के साथ ओडिशा, गंगीय पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 10 से 16 जून के बीच तेज बारिश होने की संभावना है. कृषि क्षेत्र के लिए मानसून की तरफ से अब तक सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं.

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* मानसूनी वर्षा कृषि क्षेत्र के लिए अत्यंत आवश्यक हैं :-   हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है. आज भी हमारे देश में मानसून का बहुत महत्त्व है. आज भी हमारे का बहुत बड़ा इलाकों की पैदावार मानसून पर निर्भर करती है. मानसूनी वर्षा होना भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि सिंचाई सुविधाओं के अभाव में यहां की कृषि मुख्यत, मानसून पर ही निर्भर है. देश का 60 प्रतिशत खेतीबाड़ी का इलाका आज भी प्राकृतिक सिचाई स्त्रोतों पर निर्भर रहा है, और बाकि बचे 40 प्रतिशत सिचाई के स्त्रोत अप्रत्यक्ष रूप से आश्रित है. किसी साल अगर वर्ष नहीं होती है, तो यह चालीस फीसदी वाले सिचाई स्त्रोत भी जवाब देने लगते है. जैसे कि वर्षा कम होने पर धरती का  जलस्तर  भी नीचे चला जाता है, जिसके फलस्वरूप नलकूप भी अधिक समय तक कम नही करते, ठीक वही होता है नदियों और नहरों के साथ वर्षा ना होने पर उनका जल स्तर नीचे गिरने लगता है, जिससे बंधो पर असर पड़ता है. मानसूनी वर्षा अधिक होने पर भारतीय किसानो के जीवन में खुशहाली का नवदीप जलाता है . अच्छी वर्षा होती है तो अच्छा पैदावार होता है और जब पैदावार उम्मीद के अनुसार होता है, तो खुशिया का आना ही होता है.

* मानसूनी वर्षा और भारत की अर्थव्यवस्था –  देश की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर टिकी हुई है और कृषि का साठ फीसदी भाग मानसून पर निर्भर है. यानि जिस साल मानसून बेहतर होगा उस साल की खेतीबाड़ी उत्तम होगी और रिकार्ड तोड़ पैदवार होगा. बीते दो सालो में मानसून के कारण ही खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ. अगर इस मानसून बेहतर रहा तो इस साल भी रिकार्ड उत्पादन होगा. रिकार्ड तोड़ उत्पादन से देश की अर्थव्यवस्था भी बेहतर होगा.

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*क्या है मानसूनी हवा मई-जून में देश के उत्तर-पश्चिमी भारत में भीषण गर्मी पड़ती है,  तब वहाँ कम दाव का क्षेत्र बनता है. इस कम दाव वाले क्षेत्र की ओर दक्षिणी गोलार्ध से भूमध्य रेखा के निकट से हवाएं दौड़ती हैं. दूसरी तरफ धरती की परिक्रमा सूरज के गिर्द अपनी धुरी पर जारी रहती है. निरंतर चक्कर लगाने की इस प्रक्रिया से हवाओं में मंथन होता है और उन्हें नई दिशा मिलती है. इस तरह दक्षिणी गोलार्ध से आ रही दक्षिणी-पूर्वी हवाएं भूमध्य रेखा को पार करते ही पलटकर कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर गतिमान हो जाती हैं. ये हवाएं भारत में प्रवेश करने के बाद हिमालय से टकराकर दो हिस्सों में विभाजित होती हैं. इनमें से एक हिस्सा अरब सागर की ओर से केरल तट में प्रवेश करता है और दूसरा बंगाल की खाड़ी की ओर से प्रवेश कर उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल हरियाणा और पंजाब तक बरसती हैं. अरब सागर से दक्षिण भारत में प्रवेश करने वाली हवाएं आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और राजस्थान में बरसती है. इन मानसूनी हवाओं पर भूमध्य और कश्यप सागर के ऊपर बहने वाली हवाओं के मिजाज का प्रभाव भी पड़ता है. प्रशांत महासागर के ऊपर प्रवाहमान हवाएं भी हमारे मानसून पर असर डालती हैं. वायुमंडल के इन क्षेत्रों में जब विपरीत परिस्थिति निर्मित होती है तो मानसून के रुख में परिवर्तन होता है और वह कम या ज्यादा बरसात के रूप में भारतीय सीमा के अन्दर बरसती है.

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* कैसे किया जाता है पूर्वानुमान मानसून का समय 1 जून से 30 सितंबर तक होता है यानी मानसून का पूरा समयावधि चार महीने की होती है. लेकिन इससे संबंधित भविष्यवाणी 16 अप्रैल से 25 मई के बीच कर दी जाती है. मानसून की भविष्यवाणी के लिए भारतीय मानसून विभाग कुल 16 तथ्यों का अध्ययन करता है. 16 तथ्यों को चार भागों में बांटा गया है और सारे तथ्यों को मिलाकर मानसून के पूर्वानुमान निकाले जाते हैं. पूर्वानुमान निकालते समय तापमान, हवा, दबाव और बर्फबारी जैसे कारकों का ध्यान रखा जाता है. भारत के विभिन्न भागों के तापमान का अलग- अलग अध्ययन किया जाता है. मार्च में उत्तर भारत का न्यूनतम तापमान और पूर्वी समुद्री तट का न्यूनतम तापमान, मई में मध्य भारत का न्यूनतम तापमान और जनवरी से अप्रैल तक उत्तरी गोलार्ध की सतह का तापमान नोट किया जाता है. तापमान के अलावा हवा का भी अध्ययन किया जाता है. वातावरण में अलग-अलग महीनों में छह किलोमीटर और 20 किलोमीटर ऊपर बहने वाली हवा के रुख को नोट किया जाता है. इसके साथ ही वायुमंडलीय दबाव भी मानसून की भविष्यवाणी में अहम भूमिका निभाता है. वसंत ऋतु में दक्षिणी भाग का दबाव और समुद्री सतह का दबाव जबकि जनवरी से मई तक हिंद महासागर विषुवतीय दबाव को मापा जाता है. इसके बाद बर्फबारी का अध्ययन किया जाता है. जनवरी से मार्च तक हिमालय के खास भागों में बर्फ का स्तर, क्षेत्र और दिसंबर में यूरेशियन भाग में बर्फबारी मानसून की भविष्यवाणी में अहम किरदार निभाती है. सारे तथ्यों के अध्ययन के लिए आंकड़े उपग्रह द्वारा एकत्र किए जाते हैं. इन सब काम में मौसम विभाग अपने सभी सभी केन्द्रों का मदद लेते है .

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* आधुनिक संसाधनों का निरंतर विस्तार हो रहा है :- हमारे देश में 1875 में मौसम विभाग की बुनियाद रखी गई थी. आजादी के बाद से मौसम विभाग में आधुनिक संसाधनों का निरंतर विस्तार होता चला आ रहा है. विभाग के पास 550 भू-वेधशालायें, 63 गुब्बारा केन्द्र, 32 रेडियो पवन वेधशालायें, 11 तूफान संवेदी और 8 तूफान सचेतक रडार केन्द्र हैं, 8 उपग्रह चित्र प्रेषण और ग्राही केन्द्र हैं. इसके अलावा वर्षा दर्ज करने वाले 5 हजार पानी के भाप बनकर हवा होने पर निगाह रखने वाले केन्द्र, 214 पेड़ पौधों की पत्तियों से होने वाले वाष्पीकरण को मापने वाले, 35 तथा 38 विकिरणमापी एवं 48 भूकम्पमापी वेधशालाएं हैं. इसके अलावा अंतरिक्ष में छोड़े गये उपग्रहों के माध्यम से सीधे मौसम की जानकारी कम्प्यूटरों में दर्ज होती रहती है. जिनके मदद से मौसम विभाग मौसम संबंधित आकंडे एकत्र करते है और पूर्वानुमान लगाते है. इन सारे तथ्यों की जांच पड़ताल में थोड़ी सी असावधानी या मौसम में किन्हीं प्राकृतिक कारणों से बदलाव का असर मानसून की भविष्यवाणी पर पड़ता है .

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