अब से 2 महीने पहले तक पेशे से प्रोफेसर डाक्टर सुमेर सिंह सोलंकी को बड़बानी स्थित शहीद भीमा नायक गवर्नमेंट कालेज के उनके छात्र और स्टाफ के लोग ही जानते थे लेकिन जैसे ही भाजपा ने उन्हें राज्यसभा का उम्मीदवार घोषित किया तो इस नए नाम से चौंके लोगों की उत्सुकता और जिज्ञासा उनमें बढ़ी . जन्मपत्री खँगालने पर निष्कर्ष यह निकला कि उनके तार आरएसएस से जुड़े हैं और वे अनुसूचित जाति के यानि दलित हैं जिन्हे राज्यसभा भेजकर भगवा खेमा निमाड मालवा इलाकों में इस समुदाय के वोटों पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है .
इसके लिए उसने कई दिग्गजों को किनारे करते यह जोखिम उठाया है . यह जोखिम दरअसल में एक निवेश भी है जिसका फायदा भगवा खेमा 2023 के विधानसभा चुनाव में तो उठाएगा ही लेकिन कभी भी 24 विधानसभा सीटों पर घोषित होने बाले उपचुनाव में भी गा गाकर कहेगा कि देखो हम दलित पिछड़े यानि बीसीएससी विरोधी नहीं हैं . इसलिए एक शिक्षित बुद्धिजीवी दलित को पार्लियामेंट भेज रहे हैं जिसका राजनीति से अब तक कोई लेना देना ही नहीं था .
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इसी भगवा खेमे से रोज बड़े दिलचस्प ट्वीट कांग्रेस को लेकर हो रहे हैं कि वह राज्यसभा में बजाय दिग्विजय सिंह को भेजने के दूसरे उम्मीदवार फूल सिंह बरैया को भेजे जो दलित समुदाय के हैं . हालांकि भाजपा से पहले कांग्रेस में ही अंदरूनी तौर पर यह मांग उठने लगी थी जिसे लेकर दिग्गी राजा के नाम से मशहूर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा हुआ है .
मध्यप्रदेश में भी 3 दिन बाद 19 जून को राज्यसभा की 3 सीटों के लिए मतदान होना है जिनमें भाजपा की तरफ से हाल ही कांग्रेस छोड़ कर गए ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुमेर सिंह का चुना जाना तय है क्योंकि हालफिलहाल मौजूद 206 विधायकों में से भाजपा के खाते में 107 विधायक यानि वोट हैं . लेकिन कांग्रेस के पास कुल 92 ही हैं ऐसे में वह दिग्विजय सिंह या फूल सिंह में से किसी एक को ही दिल्ली भेज सकती है . कायदे से तो वह एक नाम दिग्विजय सिंह का ही होना चाहिए और है भी लेकिन अब इस पर दलित अस्मिता को लेकर घमासान शुरू हो गया है .
दिग्विजय सिंह हर किसी के निशाने पर हैं और प्रदेश कांग्रेस की कलह ज्यों की त्यों है . उम्मीद थी कि सिंधिया के कांग्रेस छोडने के बाद कांग्रेसी खेमेबाजी खत्म हो जाएगी लेकिन वह और बढ़ रही है . सीधे सीधे कहा जाए तो वर्चस्व की लड़ाई अब दिग्विजय और कमलनाथ खेमों के बीच होने लगी है जिसकी आधिकारिक पुष्टि तब हुई जब कमलनाथ ने यह बयान दिया था कि उनकी सरकार गिरने को लेकर दिग्विजय सिंह ने उन्हें पर्दे में रखा था कि सिंधिया समर्थक 22 विधायक कांग्रेस छोडकर कहीं नहीं जाएंगे
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फिर जो हुआ वह सबने देखा कि कैसे ड्रामों के चलते सरकार गिरी और सबसे ज्यादा किरकिरी कमलनाथ की हुई जो सिंधिया और दिग्विजय के अहम की लड़ाई में वेबजह पिस गए . मुद्दा या विवाद तब भी राज्यसभा था जिसके तहत विधायकों की संख्या के हिसाब से एक सीट ही कांग्रेस को मिल सकती थी दूसरी के लिए उसे काफी जोड़ तोड़ करना पड़ती . दिग्विजय सिंह ने बाजी मार ली तो तिलमिलाए सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी . भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाकर उनका राज्यसभा में पहुँचना सुनिश्चित कर दिया और मध्यप्रदेश भी हथिया लिया .
न केवल कमलनाथ खेमा बल्कि राज्य के आम लोग भी इस बात को समझते हैं कि 15 साल बाद गिरते पड़ते सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार जाने की वजह सिंधिया कम दिग्विजय सिंह ज्यादा हैं . अगर वे राज्यसभा सीट सिंधिया के लिए छोड़ देते तो यह नौबत नहीं आती . इसके पीछे सियासी पंडितों के ये तर्क बेमानी नहीं थे कि दिग्विजय सिंह खूब सत्ता सुख भोग चुके हैं और आम लोगों में उनकी इमेज इतनी बिगड़ी हुई है कि खुद राहुल गांधी ने उन्हें विधानसभा चुनाव में प्रचार से दूर रहने का हुक्म दिया था . इसका फायदा भी कांग्रेस को मिला था .
लेकिन इसके बाद दिग्विजय ने सत्ता में दखलंदाज़ी शुरू की तो फिर से हाहाकार मचने लगा . आम लोगों के भले के काम तो कम हुये लेकिन तबादला उद्धयोग खूब फला फूला और खासतौर से दिग्विजय समर्थक मंत्रियों और विधायकों ने अपनों को जमकर उपकृत किया जिससे इमेज कमलनाथ की बिगड़ी . तीनों खेमों मे काम काज और वर्चस्व को लेकर तकरार शुरू हुई जिसके टकराव में तब्दील होते ही हाथ आई सत्ता भाजपा की मुट्ठी में चली गई .
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दलीलें दमदार –
अब फिर हवा यह बन रही है कि बूढ़े हो चले राजा दिग्विजय सिंह को राज्यसभा भेजने से कांग्रेस को क्या मिलेगा इससे तो बेहतर है कि फूल सिंह को भेजा जाये . इस बाबत दलीलें भी ऐसी ऐसी दी जा रहीं हैं जिन्हें नकारना आसान बात किसी के लिए नहीं है . मसलन अगर फूल सिंह को भेजा गया तो उप चुनावों में कांग्रेस को दलित वोटों का फायदा मिलेगा क्योंकि उपचुनाव बाली 16 सीटें चंबल ग्वालियर संभागों की हैं जहां दलित वोट ही जीत हार तय करता है . एक वक्त में फूल सिंह बसपा में रहते दलितों में गहरी पैठ बना चुके हैं , दूसरे उपचुनाव में कांग्रेस के पास इन इलाकों में कोई वोट कबाड़ू चेहरा नहीं है . फूल सिंह को राज्यसभा भेजने से अगर इस इलाके की 16 में से 10 सीट भी जीत लीं तो भाजपा को लेने के देने पड़ जाएंगे और सिंधिया का प्रभाव भी समेटा जाकर उन्हें सबक सिखाया जा सकता है .
कमलनाथ खेमे की सोच यह भी है कि दिग्विजय को राज्यसभा में जाने से फूल सिंह को ढाल बनाकर रोक लिया जाये तो उनका खेमा कमलनाथ की शरण में आ जाएगा फिर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी उनके खेमे का ही होगा और उपचुनाव टिकिट वितरण में भी वे बाजी मार ले जाएंगे . भाजपा देखा जाए तो लगातार ट्वीट्स और बयानों के जरिए कांगेस को दलित विरोधी साबित करने तुली है कि कभी नेहरू ने भीमराव आंबेडकर को , इन्दिरा ने बाबू जगजीवन राम को और सोनिया गांधी ने सीताराम केसरी को किनारे किया था अब वैसा ही कुछ छोटे स्तर फूल सिंह को मोहरा बनाकर किया जा रहा है .
बवंडर उम्मीद से कहीं ज्यादा मच चुका है जिसके चलते खासतौर से चंबल ग्वालियर के दलित वोटर भी चाहने लगे हैं कि उनके समुदाय के नेता को राज्यसभा में प्रतिनिधित्व दिया जाए . भिंड के एक दलित नेता की मानें तो फूल सिंह की पकड़ कांशीरम से नज़दीकियों के चलते उत्तरप्रदेश में भी है जिसका फायदा कांग्रेस वहाँ भी उठा सकती है क्योंकि मायावती साहब यानि कांशीरम के उसूलों की भगवा कुंड में खुलेआम आहुती देने लगी हैं जिससे दलित समुदाय हताश हो चला है . ऐसे में अगर सीनिया , राहुल और प्रियंका चाहें तो समीकरण बादल सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें जोखिम तो उठाना पड़ेगा .
मध्यप्रदेश राज्यसभा चुनाव दिलचस्प मोड पर है जिसमें एन वक्त पर कुछ भी हो सकता है क्योंकि कांग्रेस के कोई 20 असंतुष्ट विधायक जो किसी गुट में नहीं हैं न तो कमलनाथ से खुश हैं और न ही दिग्विजय सिंह से क्योंकि सवा साल ये मंत्रियों से अपने कामों के लिए उनके बंगलों के चक्कर काटते रहे थे लेकिन मंत्री उन्हें मिलने समय भी नहीं देते थे . इसके बाद भी दिग्विजय इस बात को लेकर बेफिक्र हैं कि आलाकमान यानि सोनिया गांधी उनके साथ हैं इसलिए बहुत ज्यादा विधायक उनके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं कर पाएंगे .