लखनऊ के रहने वाले 64 साल के  बादल शर्मा कपड़ों पर प्रेस करके जीवन यापन करते
थे. बादल के बहू बेटे अलग रहते थे. ऐसे में वह अपना और अपनी पत्नी का खर्च चलाने
के लिये कपडों में प्रेस करके चलाते थे. लॉकडाउन होने  के बाद से  उनका काम बन्द हो
गया. बादल के पास आय का कोई रास्ता नहीं था. उनको यह नहीं समझ आ रहा कि
कैसे अपना और परिवार का बोझ उठाये. लौकडाउन के दौरान बादल को खाने तक की
दिक्कत होने लगी. ऐसे  में उसके लिये लौकडाउन में अपना जीवन यापन करना कठिन हो
गया.
ऽ 74 साल क े श्रवण बाजपेयी रिटायर्ड अधिकारी है. पेंशन से उनका जीवनयापन हो जाता
था. उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो चुका है. बेटा और बहू साथ में रहते हैं. किन्तु  लॉकडाउन
के समय बेटा बहू को लेकर अपनी ससुराल चला गया. वह अपने घर में अकेले रह गये.
ऐसी स्थिति में इनको घर से बाहर भी नहीं निकलना था. बाजार की सभी दुकानें  बन्द
होने  की वजह सके कुछ खाने  के  लिए उपलब्ध भी नहीं था. परेशान को श्रवण ने  बेटे  को
फोन किया तो उसने  घर आने  से  मना कर दिया. श्रवण बहुत परेशान और व्यथित चलने
लगे. उनको समझ में नहीं आ रहा कि ऐसी परिस्थिति स े क ैसे निपटे ?

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ऽ 62 साल की रमा द ेवी लोगों क े घरों में काम करके अपना जीवन यापन कर रही थीउनके साथ 15 साल की पोती भी रहती है. उनके बेटा और बहू नहीं है ं. लौकडाउन की
वजह स े लोगों न े घर काम का कराने स े मना कर दिया. रमा देवी के पास न तो पैसे बचे
और न ही आमदनी का कोई दूसरा जरिया बचा था. रमा द ेवी क े लिये मुश्किल वाली बात
यह थी कि वह खुद के साथ ही साथ अपनी पोती की भी जिम्मेदारी उठा रही थी. ऐस े में
द ूसरों स े मदद के अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा थालौकडाउन के दौरान क ेवल युवावर्ग और प्रवासी मजदूरों क े ही सामन े रोजीरोजगार का स ंकट
नहीं आया बडी संख्या में बुज ुर्ग भी इससे प्रभावित हुये. वरिष्ठ नागरिको क े लिये काम करने वाली
स ंस्था ‘ह ेल्पेज इण्डिया’ न े लौकडाउन क े दौरान वरिष्ठ नागरिको की पर ेशानियों को ल ेकर
राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण “द एल्डर स्टोरी ः कोविड-19 के दौरान जमीनी हकीकत“ किया. इसमें तमाम
तरह की पर ेशानियां उभर कर सामन े आई.

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इसके जरीये लोगा े को ला ॅकडाउन कं दौरान भारत केबुजुर्गो ं न े जिन चुनौतियों का सामना किया उसको बताया गया. हेल्पेज इण्डिया क े सीईओ मैथ्यू
चैरियन द्वारा लिखित “एजिंग एण्ड पावर्टी इन इण्डिया“ शीर्षक में लिखी गई किताब में भारत क े
बुजुर्गो ं के जीवन के तमाम पहलुओ को उजागर किया गयाभारत के 90 प्रतिशत बुजुर्ग अस ंगठित क्षेत्र स े है ं. उन्हें अपन े जीवनयापन के लिये वृद्वावस्था में
भी काम करना होता है. यह बात सर्वेक्षण में और भी स्पष्ट हो कर सामने आई. भारत के 65
प्रतिशत बुज ुर्गो ं न े कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान अपनी रोजीरोटी का जरिया खो दिया. इनमें
अलग अलग आयुवर्ग क े लोग शामिल थे. 67 प्रतिशत युवा बुर्जु ग जो 60 से 69 वर्ष के आयुवर्ग म ें
थे. 28 प्रतिशत बुज ुर्ग जो 70 से 79 वर्ष की उम्र में थे तथा 5 प्रतिशत वयोवृद्व जो 80 वर्ष या
उसस े अधिक थे. सर्वेक्षण में ग्रामीण बुज ुर्गो ं क े साथ शहरी वर्ग के लोग भी शामिल किये गये थेलौकडाउन में ग्रामीण इलाकों स े 61 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों स े 39 प्रतिशत बुजुर्गो ं की आजीविका
प्रभावित हुई. .
लौकडाउन क े दौरान बुज ुर्गो ं क े लिये सबस े अधिक पर ेशानी अपनी तबियत को लेकर हुई. इस
दौरान बीमार होने वाला यह सबसे बडा वर्ग था. स्वास्थ्य की परेशानियों पर बात करने वालो में 62
प्रतिशत बुजुर्ग मधुमेह, अस्थमा, क ै ंसर, उच्च रक्तचाप आदि ज ैस े पुराने रोगों स े पीडि ़त थे. 42
प्रतिशत बुज ुर्गो ं न े लौकडाउन क े दौरान तबीयत बिगड ़ने की सूचना दी. जिनमें स े 64 प्रतिशत
बुजुर्ग शहरी क्षेत्रों क े तथा 36 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों स े थेवरिष्ठजनो को मदद की जरूरत ः
ग्रामीण क्षेत्रों तथा शहरी क्षेत्रों में आर्थिक रूप से कमजोर वृद्ध लोगों की द ुर्द शा को समझने स े
उत्पन्न हुई है. साथ ही शहरी क्षेत्र में उनके बीच भय और असुरक्षा बढ ़ती जा रही है. मैथ्यू चेरियन
न े कहा कि ‘जो आर्थिक रूप स े वंचित है ं और जो हांशिये पर चले गये है ं तथा जीवनभर परिश्रम
करने क े बाद भी जिनकी आवाज किसी को सुनाई नहीं द ेती और जो स्वयं भी किसी को दिखाई
नहीं देती.“ हेल्पेज इण्डिया एल्डर हेल्पलाइन (1800 180 1253) टीम वंचित और कमजोर बुज ुर्गो ं
बेघर और निराश्रितों, शहरी झुग्गियों और गाँव में रहन े वाले लोगों तक पहुँच रही हैचिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, उत्तर प्रदेश सरकार की सचिव हेकाली जिमोमी ने
बताया कि वरिष्ठजनों क े बीच भय एवं चिन्ता का माहौल है. वर्त मान समय में कोरोना स े संक्रमित
वरिष्ठजनों की संख्या अधिक है. शहरी क्षेत्र में उन वरिष्ठजनों को ज्यादा पर ेशानी हुई. जिनके बच्चे
उनसे द ूर रहते है ं और अक ेले रहत े है ं उनको और भी अधिक दिक्कत का समाना करना पडाजरूरत इस बात की है कि जिन घरों में वरिष्ठजन रहत े हैं वहाँ होम क्वारन्टाइन प्रतिबन्धित होनी
चाहिए और वरिष्ठजनों क े क ेस ेज प्राथमिकता क े स्तर पर देखे जान े चाहिये और उनकी रिपोर्ट
अतिशीघ्र उपलब्ध करानी चाहियेहेल्पेज इण्डिया न े पूर े द ेश में 6 लाख स े अधिक बुज ुर्गो ं तक पहुँच बनाई गई. इसक े तहत 25राज्यों क े 125 जिलों में राहत और सहायता प्रदान की. उ0प्र0 के 50000 स े अधिक बुज ुर्गो ं स े

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स ंपर्क करक े उन्हें सहायता प्रदान की गई. ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में ह ेल्पेज न े इन सभी को
आवश्यक राशन, भोजन, दवाईयाँ, मास्क, हैण्डवाश और स ेनिटाइजर आदि उपलब्ध करायामानसिक स्वास्थ्य को बचान े की जरूरत ः
वृद्धावस्था मानसिक विभाग क ेजीएमयू मेडिकल कालेज क े एसोसियेट प्रोफेसर डा0 भूपेन्द ्र सि ंह,
न े कोविड 19 के दौरान वरिष्ठजनों क े मानसिक स्वास्थ्य की जरूरत पर बल दिया. डॉक्टर भूपेन्द ्र
न े कहा कि वरिष्ठजनों का एकाकीपन परिवार के साथ रहन े स े काफी हद तक कम हुआ साथ ही
उन्होंन े परिवार के सदस्यों को भी मूलमंत्र यह दिया कि वरिष्ठजनों क े साथ वक्त तो बितायें किन्तु
कम बोलें, धीर े बोलें, प्यार स े बोलें और सोच समझकर बोलें. कई बार सही तरह स े बात ना करने
स े बुजुर्गो ं का मानसिक स्वास्थ्य खराब हो जाता है और उनके साथ ही साथ घर परिवार और
समाज को भी इसका खामियाजा भुगतना पडता हैलखनऊ के नवयुग गल्र्स पीजी कालेज की प्रधानाचार्या डा0 सृष्टि श्रीवास्तव ने “बुज ुर्ग एवं
एकाकीपन“ विषय पर बातचीत करते कहा कि लौकडाउन क े दौरान वृद्धावस्था क े लोगो म े ं
मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने क े लिये जरूरी है कि उनका एकाकीपन दूर किया जाय. अक ेल े
रहने क े कारण वृद्धावस्था क े लोग बेहद पर ेशान हुये. ऐस े में समाज और सरकार को बुज ुर्गो ं की
स ेहत और खाने क े साथ ही साथ उनक े अक ेलेपन का भी द ूर करने की जरूरत है. बुजुर्गो ं का
अक ेलापन दूर रहने स े उनका मानसिक स्वास्थ्य भी ठीक रहता है.

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