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5 रेसिपी: मानसून में बनाएं कुछ गरमागरम

मानसून की रिमझिम फुहार तीव्र गरमी से राहत देती है. इस मौसम में दूध बेहतर आहार है. सब्जियां, फल, अनाज आदि खाद्य पदार्थ ज्यादा खाएं जबकि मांस या मछली कम खाएं. इस मौसम में आलू अलगअलग तरीके से पकाया व खाया जाता है. यह बंगाल में खिचड़ी, बिहार में चोखा, राजस्थान और गुजरात में बेसन और आलू भुजिया के रूप में तला व खाया जाता है. इस मौसम में बीमारियां ज्यादा पनपती हैं, इसलिए अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार करने के लिए अपने भोजन में अदरक, लहसुन, हींग और हलदी ज्यादा इस्तेमाल करें.

1 पास्ता पकौड़ा

सामग्री
1/2 कप उबले शैल पास्ता, 1/2 कप चने की दाल, 2 बड़े चम्मच कसी चीज, 1/2 कप कटा पालक, 1-2 हरीमिर्चें, 1 बड़ा चम्मच कटी हरी शिमलामिर्च, 1 बड़ा चम्मच पीली कटी शिमलामिर्च, 1 कटा प्याज, नमक स्वादानुसार.

विधि
शिमलामिर्च, प्याज व हरीमिर्च में नमक व चीज मिला लें. चने की दाल पानी में भिगो कर पालक के साथ पीस लें. उबले पास्ता शैल में कटी शिमलामिर्च का मिश्रण भरें व चने की दाल के पेस्ट में लपेट कर गरम तेल में तलें. गरमागरम सौस के साथ परोसें.

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2 आलू के त्रिकोन

सामग्री 
1 कप मैदा, 2 उबले आलू, 2 बड़े चम्मच तेल, 1 हरीमिर्च, 1 बड़ा चम्मच तिल, 1 बड़ा चम्मच अरारोट पाउडर, तलने के लिए तेल, 1/4 छोटा चम्मच अमचूर, 1/4 छोटा चम्मच गरम- मसालापाउडर, नमक स्वादानुसार.

विधि 
मैदे में नमक व तेल डाल कर अच्छे से मिलाएं. पानी के साथ गूंध लें. उबले आलू को मैश कर नमक, हरी मिर्च, अमचूर व गरममसाला मिलाएं. मैदे की पतली परत बेल कर तिकोना काट लें. उस पर आलू मिश्रण फैलाएं. इस के ऊपर मैदे का एक पतला त्रिकोन रख कर अरारोट पाउडर से दोनों तिकोनों को किनारों से चिपका लें. ऊपर से तिल चिपका दें. गरम तेल में डीप फ्राई करें. चटनी या सौस के साथ परोसें.

 

3 भरवां बिस्कुट

सामग्री 
1 पैकेट नमकीन बिस्कुट, 2 उबले आलू, 1 कप बेसन, 1/4 छोटा चम्मच गरम मसाला पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच अमचूर, 1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर, 1 छोटा चम्मच लहसुनअदरक पेस्ट, तलने के लिए पर्याप्त तेल, नमक स्वादानुसार.

विधि
कड़ाही में तेल गरम कर के अदरक, लहसुन पेस्ट व मसाले डाल कर भूनें. इस में आलू मसल कर डालें व अच्छे से भूनें. 2 नमकीन बिस्कुट के बीच आलू का यह मसाला भरें. नमक डाल कर बेसन का घोल बना कर भरवां बिस्कुट को इस घोल में लपेट कर गरम तेल में तलें. गरमागरम चटनी के साथ परोसें.

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4 भुट्टे की टिक्की

सामग्री 
1 कप कच्चे भुट्टे के दाने, 1 उबला आलू, 1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट, 1-2 हरीमिर्चें, 1/2 कप ब्रैड का चूरा, तलने के लिए तेल, नमक स्वादानुसार.

विधि
भुट्टे के दाने मिक्सी में पीस लें. इस में उबले आलू मिला लें. अदरकलहसुन पेस्ट, हरीमिर्च व नमक डाल कर अच्छे से टिक्की का आकार दें. ब्रैड के चूरे में लपेट कर गरम तेल में तलें. गरमागरम चटनी के साथ परोसें.

 

5 आम का कलाकंद

सामग्री
1 लिटर दूध, 1 कप (बिना रेशे वाले) आम का गूदा, 1/2 कप चीनी, 3 बड़े चम्मच नीबू का रस, 4 बादाम, 8 पिस्ते, 4 छोटी इलायची.

विधि
नीबू रस से दूध को फाड़ कर पनीर बना लें. पनीर बनाने के लिए फटे दूध को किसी पतले सूती कपड़े में डाल कर व छान कर, ऊपर से थोड़ा पानी डाल कर पनीर को धो लें और कपड़े को चारों ओर से उठा कर हाथ से दबा कर अतिरिक्त पानी निकाल दें. तैयार पनीर को कपड़े से निकाल लें. बादाम और पिस्ते पतलेपतले काट लें. इलायची छील कर पाउडर बना लें. कड़ाही में आम का गूदा और चीनी मिला कर पकने के लिए रखें. आम का गूदा गाढ़ा होने व चीनी अच्छी तरह घुलने तक इसे पका लें. पके हुए आम के गूदे में पनीर डालें और लगातार चलाते हुए मिश्रण को गाढ़ा होने तक पकाएं, मिश्रण में आधे कतरे बादाम और पिस्ते डाल कर मिला दें, जब मिश्रण थोड़ा जमने लगे तब गैस बंद कर दें. अब मिश्रण में इलायची पाउडर डालें. प्लेट में थोड़ा सा घी डाल कर चिकना करें और कलाकंद का मिश्रण प्लेट में डाल कर, 3/4 इंच की मोटाई में फैला कर चौकोर आकार दें. जमे हुए कलाकंद को अपने मनपसंद आकार के टुकड़ों में काट लें. आम का स्वादिष्ठ कलाकंद तैयार है.

Crime Story : बुझ गई रौशनी

भ्रामक बातें कई बार इंसान को इस स्थिति तक पहुंचा देती हैं कि वह उन बातों को सही मान कर कदम उठा लेता है. जो दूसरे के ही नहीं, उस के अपने लिए भी घातक साबित होते हैं. काश! शिवम रोशनी पर विश्वास कर लेता तो…       ‘‘शिवम, तुम को केवल गलतफहमी है, मेरा तुम्हारे अलावा किसी से

कोई संबंध नहीं है. जब एक बार हमारी शादी तय हो गई तो ऐसे कैसे छोड़ सकते हो? इस से मेरी बदनामी होगी.’’ 19 साल की रोशनी ने अपने मंगेतर शिवम को समझाने की कोशिश करते हुए कहा.

रोशनी गांव के परिवेश में पलीबढ़ी थी, जहां लड़की का रिश्ता एक बार तय होने के बाद अगर टूट जाए तो सारी जिम्मेदारी लड़की पर डाल दी जाती है. सब उसी पर ही अंगुली उठाते हैं. इस से बचने के लिए लड़की हर तरह का समझौता करती है.

गांव हो या शहर, अगर 2 लोगों में से किसी एक के मन में अविश्वास की रेखा खिंच जाए, तो फिर उस का मिटना आसान नहीं होता. शिवम की हालत भी कुछ ऐसी ही थी. वह रोशनी की बात समझ तो रहा था पर उस की बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था.

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उस ने कहा, ‘‘रोशनी, जो भी हो पर मेरा मन तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं कर पा रहा है. ऐसे में हम शादी जैसा बड़ा कदम कैसे उठा सकते हैं. अगर हम शादी कर भी लें तो हमारा जीवन सहज नहीं रह पाएगा. अविश्वास की रेखा जिंदगी भर कचोटती रहेगी.’’

‘‘शिवम, तुम कुछ भी कहो पर मैं इस रिश्ते को जीवन भर निभाने के लिए तैयार हूं. तुम्हें मेरी तरफ से कोई शिकायत नहीं मिलेगी.’’ रोशनी किसी भी तरह अपने रिश्ते को बचाने की कोशिश कर रही थी. उसे पता था कि शादी टूटने का सारा असर उसी पर पड़ेगा. घरबाहर सब उसी को दोष देंगे. पर शिवम टस से मस नहीं हो रहा था.

‘‘रोशनी, मैं किसी ऐसे रिश्ते में नहीं बंधना चाहता, जिस में मुझे जीवन भर पछताना पड़े. तुम मुझ पर ज्यादा दबाव मत डालो.’’ शिवम ने रोशनी को समझाते हुए कहा.

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रोशनी को उस की बातों से लगने लगा था कि अब वह समझाने से नहीं मानेगा. उस ने सोचा कि शायद वह कुछ डराधमका कर लाइन पर आ जाए. प्यार से न सही, हो सकता है कि डर से मान जाए.

‘‘शिवम, समझ लो मेरा जीवन तो खत्म हो गया. पर एक बात याद रखना, मैं इतनी कमजोर नहीं हूं. मैं तुम्हें भी चैन से नहीं बैठने दूंगी. मुझे यह बात कतई मंजूर नहीं है कि तुम मुझ पर कलंक लगा कर छोड़ दो. मैं आसानी से तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाली.’’

रोशनी और शिवम की प्यार भरी जिंदगी में शक और अविश्वास की दरार पड़ चुकी थी. हरसंभव कोशिश के बाद भी वह दरार चौड़ी होती जा रही थी. रोशनी किसी भी कीमत पर अपने दामन पर कलंक नहीं लगवाना चाहती थी.

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रोशनी रावत उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 25 किलोमीटर दूर गोसाईंगंज के चांद सराय गांव में रहने वाली पढ़ीलिखी लड़की थी.

गांवों में अभी भी कम उम्र में ही शादी का चलन है. रोशनी के साथ भी यही हुआ. बालिग होते ही 19 साल की उम्र में उस की शादी शिवम रावत से तय हो गई.

शिवम भी गोसाईंगंज इलाके के ही गांव चमरतलिया का रहने वाला था. शादी तय होने के बाद शिवम और रोशनी फोन पर बातें करने लगे थे. धीरेधीरे दोनों की दोस्तों से भी बातें होने लगीं. ऐसे ही किसी दोस्त ने शिवम से कह दिया कि रोशनी के गांव में रहने वाले किसी लड़के से संबंध हैं.

दुनिया भले ही चांद पर पहुंच जाए, आदमी नाम के जीव की सोच और समझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. दोस्त की बातों से शिवम को यकीन हो गया कि रोशनी ऐसी ही होगी. शिवम ने यह भी नहीं सोचा कि जो आदमी उसे भड़का रहा है, या उसे बता रहा है, उस की मंशा क्या है.

गांवों में अभी भी कितने ही लोग ऐसी मानसिकता वाले होते हैं जो बनते रिश्ते बिगाड़ने की कोशिश करते हैं. जब शिवम ने यह बात रोशनी को बताई और रिश्ता तोड़ने की बात कही तो रोशनी डर गई.

उस की आंखों के सामने अपना यह रिश्ता ही नहीं, पिता का घरपरिवार टूटता नजर आया. उस की आंखों में मातापिता के दुखी, निराश चेहरे घूमने लगे. उसे लगा कि केवल उस का रिश्ता ही नहीं टूट रहा, उस की हिम्मत, घरपरिवार का नाम और इज्जत भी मिट्टी में मिलने वाली है.

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रिश्ता भले ही किसी भी कारण से टूटे, गलती लड़की की मानी जाती है. दूसरी तरफ शिवम था, जो किसी भी हालत में यह सोचने को तैयार नहीं था कि उस की होने वाली पत्नी के चरित्र पर कोई अंगुली उठे.

रोशनी ने उसे समझाते हुए कहा था कि अगर हमारी शादी हो जाने के बाद कोई ऐसा आरोप लगाता तो क्या तुम मुझे छोड़ देते? शिवम ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया, जिस से रोशनी की आंखों में उम्मीद की लौ जलती.

 

शादी के पहले आरोप लगी लड़की के साथ शादी करना शिवम के लिए आंख मूंद कर दूध में पड़ी मक्खी वाला दूध पीने जैसा था. इस के लिए वह राजी नहीं था. ऐसे में शिवम और रोशनी का रिश्ता शादी से पहले ही ऐसे दोराहे पर खड़ा हो गया, जहां कोई एक राह तय करना संभव नहीं था.

इसी बीच अचानक 4 मई, 2020 को रोशनी अपने घर से गायब हो गई. उस के पिता बंसीलाल ने सब से पहले उसे हर जगह तलाश किया. जब कहीं से भी रोशनी की खबर नहीं मिली तो वह गोसाईंगंज थाने गए और इंसपेक्टर धीरेंद्र प्रताप कुशवाहा से मिल कर उन्हें बेटी के गायब होने की जानकारी दी.

पुलिस अपने हिसाब से रोशनी को तलाश करती रही. बंसीलाल भी अपने परिवार के साथ रोशनी को ढूंढते रहे. रोशनी का कहीं से कुछ पता नहीं चल पा रहा था.

 

रोशनी के साथ ही उस का मोबाइल और कपड़े भी गायब थे. सब लोग यही सोच रहे थे कि रोशनी घर छोड़ कर भाग गई है. लेकिन किसी के पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं था. एकएक कर के दिन गुजर रहे थे पर रोशनी का पता नहीं चल रहा था.

रोशनी की गुमशुदगी के 6 दिन बाद गोसाईंगंज पुलिस को सूचना मिली कि चमरतलिया के जंगल में किसी लड़की की लाश मिली है, जो पूरी तरह से कंकाल हो चुकी है.

पुलिस ने अपने इलाके की गायब लड़कियों के बारे में पता किया तो रोशनी की गुमशुदगी का मामला भी सामने आया.

गोसाईंगंज पुलिस ने रोशनी के पिता बंसीलाल को बुला कर लाश को देखने के लिए कहा. लाश को देख कर कपड़ों वगैरह से बंसीलाल को लगा कि यह उन की बेटी रोशनी का ही अस्थिपंजर है.

रोशनी की मौत का राज पता लगाना जरूरी था जबकि गोसाईंगंज पुलिस के लिए यह काम किसी चुनौती से कम नहीं था. पुलिस के पास रोशनी के गायब होने से ले कर उस की हत्या तक कोई सुराग नहीं था. यह ब्लाइंड मर्डर था. पुलिस को जो भी कड़ी मिल रही थी, वह पुलिस के किसी काम की नहीं थी.

मोहनलालगंज सर्किल के सीओ संजीव मोहन ने इंसपेक्टर गोसाईंगंज धीरेंद्र प्रताप कुशवाहा को जल्द से जल्द इस मामले की तह तक जाने का आदेश दिया.

 

तेजतर्रार इंसपेक्टर धीरेंद्र प्रताप कुशवाहा अपनी टीम के साथ मामले को सुलझाने में लग गए. सब से पहले पुलिस ने रोशनी के मोबाइल को सर्विलांस पर लगाया. एक हफ्ते बाद 16 मई को रोशनी के मोबाइल पर चमरतलिया गांव के शिवम का नंबर एक्टिव दिखने लगा. पुलिस को इस बात का पक्का सबूत मिल गया कि रोशनी का मोबाइल शिवम के पास है.

रोशनी के पिता के बताने पर रोशनी और शिवम के शादी के रिश्ते का भी खुलासा हो गया.

इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि रोशनी के बारे में शिवम को जानकारी होगी. पुलिस ने शिवम को पकड़ा तो उस के पास से रोशनी के कपड़े भी मिल गए.

शिवम ने बताया कि जब रोशनी शादी के लिए जिद करने लगी तो उस ने उस की हत्या कर के लाश जंगल में छिपा दी और मोबाइल व कपड़े ले कर अपने घर चला आया.

पुलिस ने शिवम के पास से रोशनी का मोबाइल फोन, कपड़े और घटना में प्रयोग की गई बाइक बरामद कर ली. शिवम ने रोशनी के फोन से उस का सिम निकाल कर तालाब में फेंक दिया था.

कुछ दिन बाद जब उस ने रोशनी के मोबाइल में अपना सिम डाला तो सर्विलांस से पुलिस को पता चल गया. उस के बाद पुलिस ने शिवम को धर दबोचा.

पुलिस ने शिवम को रोशनी की हत्या और उस के शव को छिपाने के आरोप में जेल भेज दिया. शिवम ने अगर उस दिन रोशनी की बात मान ली होती तो उसे रोशनी की हत्या जैसा कदम नहीं उठाना पड़ता.

रोशनी शिवम की पत्नी नहीं बनी थी, ऐसे में शिवम के पास उस के साथ शादी न करने का विकल्प था. शिवम अगर घरपरिवार के लोगों की सहमति से कोई कदम उठाता तो हालात ऐसे नहीं बनते. गुस्से में उठाए गए कदम ऐसे ही जीवन को नष्ट होने की कगार तक पहुंचा देते हैं.

परेशानी की बात यह है कि आज के युवा घरपरिवार और मांबाप से अपने मन की बात नहीं कहते. उन से बातें छिपाते हैं, जो कई बार अपराध की वजह बन जाती है.

बारिश-भाग 3: नेहा अपनी मां से हर छोटी बात पर क्यों उलझती थी ?

मां के सुनाने का ढंग इतना मजेदार होता था कि वे दोनों तो एकदम ही भूल जाती थीं कि वे उन्हीं की बेटियां हैं. मां भी शायद उस वक्त भूल ही जातीं, पर थोड़ी देर बाद जब याद आता तो तुरंत चेहरे पर कठोरता का आवरण डाल देतीं, ‘अरे, मैं भी कैसी भुलक्कड़ हूं, तुम दोनों से तो बिलकुल सहेलियों की ही तरह बात करने लगी. चलो, भागो यहां से.’ वे शायद झेंप भी जातीं, ‘अरे, इस तरह तो तुम बिगड़ ही जाओगी ’ वे दोनों भी हंसती हुई भाग खड़ी होतीं और फिर समयसमय पर मां को छेड़तीं. एक बार मृदु ने अपनी मां के बारे में अपनी सहेलियों को बताते हुए कहा था, ‘मेरी मां तो बहुत अच्छी हैं, वे हम से दोस्तों जैसा व्यवहार करती हैं.’

‘अरे यार, फिर तो तू बहुत सुखी है. मेरी मां तो पूरी जेलर हैं,’ निशा ने निराश स्वर में कहा था. मृदु सोच रही थी कि वह जेलर वाला रूप मां के भीतर कैसे समा गया  वे नेहा दीदी से किसी जेलर की तरह ही तो जिरह कर रही थीं. हाथ में डंडे की जगह चाबियों का गुच्छा था, पर उस से कहीं खतरनाक अस्त्र, ‘‘बोल, कौन था वह मुस्टंडा  किस के साथ गई थी कल स्कूल से ’’ मां के अप्रत्याशित गुस्से की वजह अब शायद नेहा दीदी की समझ में आई थी. दरअसल, दीपा को एक समारोह के लिए सूट खरीदना था. उस ने नेहा दीदी से भी बाजार चलने को कहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया. मां से पूछे बगैर नेहा दीदी कभी कहीं अकेली नहीं गई थीं, पर दीपा की जिद के कारण वे छुट्टी के बाद चलने को तैयार हो गईं, सोचा, उधर से ही घर चली जाएंगी और मां को सब बता देंगी तो वे कुछ नहीं कहेंगी.

सूट खरीद कर दीपा अपने घर चली गई तो नेहा दीदी रिकशा का इंतजार करने लगीं. पर चिलचिलाती धूप में कोई रिकशा नजर नहीं आ रहा था. नेहा को सड़क के किनारे खड़े करीब आधा घंटा हो गया था. आखिर निराश हो कर वे पैदल ही आगे बढ़ीं कि तभी स्कूटर पर शक्ति आता दिखा. वह नेहा दीदी से एक क्लास आगे था और पढ़ाई में तेज होने के कारण अकसर उन की मदद कर दिया करता था. बातोंबातों में नेहा दीदी ने मृदु और मां को एक बार शक्ति के बारे में बताया भी था. तब मां ने कहा था, ‘लड़कों से एक सीमा के भीतर बोलना बुरा नहीं है, पर उस से आगे…’

परंतु मां उस बात को कैसे भूल गईं, जबकि नेहा दीदी बारबार उन की ही बात को दोहरा रही थीं, ‘‘आप ही ने तो कहा था…’’

‘‘हां, कहा था,’’ गुस्से में मां का चेहरा एकदम लाल हो रहा था, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि तू मेरी ही बात को बड़ा कर के मेरे ही मुंह पर दे मारे.’’ ‘‘पर मैं ने ऐसा तो नहीं किया है,’’ नेहा दीदी किसी तरह मां को अपनी बात समझाना चाह रही थीं, ‘‘धूप में कहीं रिकशा नहीं मिल रहा था, सो उस के स्कूटर पर बैठ गई. मैं ने तो कल आप को बताना भी चाहा था, पर…’’

‘‘और उस की कमर में हाथ क्यों डाल रखा था ’’ मां दीदी की बात काट कर इतनी जोर से चीखीं कि मृदु की धड़कनें भी तेज हो गईं. मां की तेज आवाज से पलभर के लिए शायद नेहा दीदी भी सकपका गईं, पर जल्दी ही संभल भी गईं, ‘‘मैं गिरने लगी थी, इसीलिए उसे पकड़ लिया था. भूल हो गई, आइंदा ऐसा नहीं होगा.’’ दीदी ने कातर निगाहों से मां की ओर देखा पर वे तो उस वक्त बिलकुल पत्थर बन गई थीं. वही तो अकसर कहती थीं, ‘कभीकभी मुझे न जाने क्या हो जाता है. मेरे आधुनिक रूप पर अनजाने ही एक पारंपरिक मां ज्यादा हावी हो जाती है. शायद, अपने बच्चों का भविष्य बिगड़ने के भय से.’ मां अपने उस रूप के हाथों जैसे अवश हो गई थीं. तभी तो नेहा दीदी की दी गई सफाई भी उन्हें आश्वस्त नहीं कर पा रही थी. नेहा दीदी के बारबार माफी मांगने, रोने के बावजूद उन पर आरोप लगाए जा रही थीं.

‘‘तो ठीक है,’’ नेहा दीदी भी जैसे आखिर थक ही गईं, ‘‘आप जो चाहें, समझ लीजिए. मैं यही समझूंगी कि मैं ने कोई गलती नहीं की. हां, सच में, कुछ गलत नहीं किया मैं ने. मैं ने वही किया जो आप ने अपनी जवानी में किया.’’ मृदु एकदम सन्नाटे में आ गई. जैसे बरसों से दबी कोई चिनगारी सहसा भड़क कर बाहर निकले और सीधे सूखी घास पर जा गिरे, उसे कुछ ऐसा ही लगा. मां पथराई सी चुपचाप पलंग के एक कोने में बैठी बेमकसद एक दिशा में ताक रही थीं. मृदु ने मां के कंधों पर सांत्वना भरा हाथ रखना चाहा, पर उन्होंने आहिस्ता से उस का हाथ झटक दिया. दुविधाग्रस्त मृदु बिना कुछ कहे खिड़की के पास जा कर खड़ी हो गई. बाहर का आकाश अपना रंग बदल चुका था. धुंधलाई नजरों को देख कर कोई भी समझ सकता था, एक धूल भरी आंधी सबकुछ अपने भीतर छिपा लेने की फिराक में है. उस ने जल्दी से आगे बढ़ कर खिड़की बंद कर दी और शीशे से ही बाहर का मंजर देखने लगी. जल्दी ही तेज, धूलभरी आंधी ने सारा माहौल अपनी गिरफ्त में ले लिया. उस पार स्पष्ट देख पाने में असमर्थ मृदु को सबकुछ साफ करने के लिए बड़ी शिद्दत से बारिश की जरूरत महसूस हो रही थी.

बारिश-भाग 2: नेहा अपनी मां से हर छोटी बात पर क्यों उलझती थी ?

‘नहीं करेगी तो क्या करेगी  मुझ से लड़ेगी  जबान लड़ाएगी  बोल, क्या करेगी ’

मां किसी कुशल योद्धा की तरह दीदी के सामने फिर जा खड़ी हुई थीं. मृदु कोे डर लगा कि इस बार अगर नेहा दीदी ने जवाब दिया तो मां जम कर उन की ठुकाई कर ही देंगी. फिर चाहे चोट भीतर लगे या बाहर, मां का गुस्सा अगर चढ़ गया तो उतरना मुश्किल है. पर उस समय ऐसा कुछ भी न हुआ. नेहा दीदी भी शायद डर के मारे बुदबुदाते हुए ही जवाब दे रही थीं. उधर, मां भी बस धमका कर रह गई थीं, वैसे भी नेहा दीदी जब होंठों में बुदबुदाती थीं तो उन की बात ही समझ में न आती थी. उस सारे गरम नजारे की गवाह वही तीनों थीं. पिताजी तो औफिस में थे. वैसे भी घर पर होते तो क्या कर लेते. अपने व दोनों बच्चों के बीच मां किसी तीसरे की दखलंदाजी पसंद नहीं करती थीं, फिर चाहे वे पिताजी ही क्यों न हों. वैसे भी उन दोनों की सारी जरूरतें, घर की देखभाल, मेहमानों की आवभगत से ले कर बीमारीहारी, सभी कुछ मां अकेली ही संभालती थीं. मृदु को आश्चर्य हुआ, शिकायत करने पर मां हमेशा मामला संभाल लेतीं या घूस के तौर पर दीदी को कुछ दे कर शांत कर देतीं. कभी बाजार जाते समय दीदी अगर मौजूद रहतीं तो उन्हें घर देखने की हिदायत दे जातीं, पर तब ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

नेहा दीदी को बाजार न ले जाने के बाद भी अकसर जब मां उस के साथ घर लौटतीं, थोड़ी देर बाहर वाले कमरे में सोफे पर बैठ कर सुस्ताती जरूर थीं. उस वक्त थोड़ा मुंह फुलाए रहने के बावजूद दीदी, मां को बिस्कुट और पानी ला कर जरूर देतीं. वे जानती थीं कि मां उच्च रक्तचाप की मरीज हैं, और बड़ी जल्दी थक जाती हैं. पर उस दिन तो मां ने बड़ी रुखाई से नेहा को मना कर दिया. आमतौर से मां, दीदी के इस व्यवहार से अपनी सारी थकान भूल जातीं और कभीकभी पछताती भी कि बेकार में नेहा को नहीं ले गईं. पर वह पछतावा बस थोड़ी ही देर का होता. घर को अकेला छोड़ने का भय मां को फिर बाध्य कर देता कि किसी न किसी को घर छोड़ कर जाएं. मृदु छोटी थी, इसी से बाजी अकसर वही मार लेती. फिर घर लौट कर नेहा दीदी को तरहतरह से मुंह बिगाड़ कर छेड़ती, ‘लेले, तुम्हें मां नहीं ले गईं. आज बाजार में खूब चाट खाई.’

उम्र में 4-5 साल बड़ी होने के बावजूद नेहा दीदी उस का मुंह चिढ़ाना बरदाश्त न कर पातीं. जबकि वे भी अच्छी तरह जानती थीं कि प्यार के समय मां दोनों को बराबर समझती हैं. मृदु और नेहा दोनों ही जानती थीं कि मां बहुत अच्छी हैं. उन का व्यवहार भी उन दोनों के साथ एक बहन जैसा ही होता और वह भी ऐसी बहन, जो एक अच्छी दोस्त भी हो. वे हमेशा कहतीं, ‘मां को हमेशा अपने बच्चों का दोस्त होना चाहिए, तभी तो बच्चे खुल कर अपने मन की बात कह सकते हैं.’ मृदु, नेहा और मां वीसीआर पर जब भी कोई फिल्म देखतीं तो एक दोस्त की तरह नजर आतीं. तीनों की पसंद का हीरो एक होता, हीरोइन एक होती, यहां तक कि कहानी की पसंद भी लगभग एकजैसी होती.लेकिन यह बात दूसरी थी कि जब कोई अश्लील सीन फिल्म में आता तो मां उसे रिमोट से आगे कर देतीं. यद्यपि भीतर से मृदु और नेहा दीदी का मन होता कि देखें, उस सीन में आखिर ऐसा क्या है.

एक बार नेहा दीदी ने मां को काफी खुश देख कर पूछ भी लिया था, ‘आप तो आधुनिका हैं और यह भी कहती हैं कि आप अपने बच्चों की अच्छी दोस्त हैं और दोस्त से कुछ छिपावदुराव नहीं होता. फिर आप ये सब दृश्य आगे क्यों कर देती हैं ’नेहा दीदी की बात सुन कर मां काफी देर असमंजस की स्थिति में बैठी रहीं. फिर बोलीं, ‘हां, मैं काफी उदार हूं. तुम दोनों की अच्छी दोस्त भी हूं पर यह मत भूलो कि तुम्हारी मां भी हूं. दोस्त बनने के समय भला ही चाहूंगी, पर मेरे भीतर की मां यह तय करेगी कि तुम्हारे लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा.’

‘पर इन दृश्यों में ऐसी क्या बुराई है, मां ’ नेहा दीदी की नकल मृदु ने भी की तो मां ने उस के गाल पर हलकी चपत लगाई पर संबोधित दीदी को किया, ‘देखो, वक्त से पहले कुछ बातें जानना ठीक नहीं होता. अभी तुम दोनों काफी छोटी हो, बड़ी हो जाओगी तो ये दृश्य भी आगे करने की जरूरत नहीं रहेगी.’ आगे नेहा दीदी ने कुछ नहीं पूछा था. जानती थीं कि मां को ज्यादा बहसबाजी पसंद नहीं. मजाक में बहस हो जाए, यह बात अलग थी पर किसी गंभीर मसले पर बहस हो तो बाप रे बाप, तुरंत उन के भीतर की ‘मां’ जाग जाती. फिर उन के उपदेश में कोई बाधा डालता तो उस को डांटफटकार सुननी पड़ती. मां के इस अजीब रूप की मृदु को ज्यादा समझ नहीं थी, पर नेहा दीदी अकसर हतप्रभ रहतीं. खूब जी खोल कर बातें करने वाली, बातबात पर खिलखिलाने वाली मां को यह अकसर क्या हो जाता है  पिताजी के अनुसार, उन दोनों के बिगड़ जाने का भय मां को सताता है, जबकि मां इस बात को साफ नकार जातीं, ‘इस तरह की बातें बच्चों के सामने मत किया करो. अभी इन की उम्र ही क्या है. मृदु अभी 12 की भी नहीं हुई और नेहा तो 16 ही पूरे कर रही है.’

‘तो क्या हुआ ’ पिताजी बीच में ही उन की बात काट देते, ‘इस उम्र में तो तुम्हारी शादी हो गई थी और तुम…’

पिताजी की बात पर मृदु और नेहा दीदी हंसने लगतीं और फिर मां के पीछे पड़ जातीं कि वे अपनी पुरानी बातें बताएं. मां भी सारी बहस भूल कर पुरानी बातों में खो जातीं और फिर धाराप्रवाह वह सब भी बता जातीं, जिसे न बताने की हिदायत थोड़ी ही देर पहले उन्होंने पति को ही दी होती थी. मां की कहानी पर वे दोनों भी खूब मजे लेतीं. मसलन, उन्होंने कैसे चुपके से साड़ी पहन कर अपनी सहेलियों के साथ एक बालिग फिल्म देखी, किसी लड़के को छेड़ा, कौन सा लड़का उन के पीछे पड़ा था, और भी बहुत सी मजेदार बातें…

 पैगांबरी किस्म है शुगर फ्री

  लेखक: केदार सैनी

भारत का एक प्राचीन देशी गेहूं  पैगांबरी किस्म है.  जो  15 साल पहले मटर की फसल के बीच में हमें एक गेहूं का ऐसा पौधा मिला, जो देखने में सामान्य गेहूं के पौधों से काफी अलग था. उसी एक पौधे से हम ने इस के बीज संवर्धन की शुरुआत की थी, पर इस एक पौधे ने हमें इस गेहूं पर शोध करने के लिए प्रेरित किया.

पैगांबरी गेहूं लोकप्रिय रूप से अपने आकर्षक चमकीले छोटे गोल मोती जैसे दाने के कारण शुगर फ्री गेहूं के रूप में जाना जाता है. यह एक प्रकार का ट्रिटिकम स्फेरोकोकम  गेहूं है. इस का दाना गोल आकार का और पौधा बौनी प्रजाति का होता है. इस के पौधे की ऊंचाई 70 से 80 सैंटीमीटर तक होती है.

सही माने में देखा जाए तो यह गेहूं पहला भारतीय गेहूं कहा जाता है, क्योंकि इस की उत्पत्ति सिंधु घाटी सभ्यता से हुई थी और यह उस सभ्यता में मुख्य भोजन में से एक था. इस के उलट यह माना जाता है कि भारतीय उपमहाद्वीप में तकरीबन 4000 साल पहले बौना गेहूं विकसित किया गया था, जो शायद वह यही गेहूं है.

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मधुमेह की बढ़ती घातक बीमारी को देखते हुए मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के भगवंतराव मंडलोई कृषि कालेज ने इसी देशी प्रजाति पैगांबरी गेहूं से एक नई किस्म तैयार की है. इस गेहूं के सेवन से मधुमेह की बीमारी काबू की जा सकती है.

दुनियाभर में तेजी से शुगर के मरीजों की बढ़ती तादाद को देखते हुए खंडवा के भगवंतराव मंडलोई कृषि कालेज के वैज्ञानिकों ने गेहूं की एक पुरानी प्रजाति का पता लगाया है. गेहूं की इस प्रजाति का प्राचीन नाम पैगांबरी है, किंतु कृषि वैज्ञानिकों के इस प्रजाति पर किए गए अपने शोध में कई स्वास्थ्य लाभ देने वाले गुण पाए गए हैं. इस वजह से वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति से एक नई किस्म तैयार की है, जो शुगर फ्री है. यह डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान साबित होगा. वैज्ञानिकों का यह प्रयोग स्थानीय स्तर पर सफल हुआ है.

कृषि वैज्ञानिक सुभाष रावत ने बताया कि शुगर कंट्रोल करने के लिए कृषि कालेज में गेहूं की प्राचीन देशी प्रजाति से गेहूं की एक नई किस्म ए-12 तैयार की गई है. इसे शुगर फ्री गेहूं का नाम दिया है. इस में शुगर व प्रोटीन की मात्रा कम है.

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अब कालेज इस तरह की खेती बड़े पैमाने पर कराने की तैयारी कर रहे हैं, ताकि शुगर से पीडि़त मरीजों को ठीक किया जा सके.

उन्होंने यह भी बताया कि कालेज में पिछली बार भी यह गेहूं लगाया गया था. इस के अच्छे नतीजे सामने आए थे. साथ ही, किसानों को जागरूक किया जा रहा है, ताकि वे गेहूं की किस्म ए-12 की ज्यादा से ज्यादा बोआई करें.

पैगांबरी गेहूं की प्रजाति का दाना देखने में मैथी के दाने की तरह है, जबकि सामान्य गेहूं का दाना लंबा व अंडे के आकार का होता है. इस में छिलका व फाइबर अधिक और प्रोटीन की मात्रा कम होती है.

पैगांबरी गेहूं की खासीयत : इस गेहूं के बारे में समृद्धि देशी बीज बैंक, रुठियाई द्वारा किए कृषि शोधात्मक विश्लेषण में यह पाया गया कि यह किसी भी तरह की मिट्टी में बोया जा सकता है. वैसे तो इस की सिंचाई के लिए 4 से 5 बार सिंचाई की जरूरत होती है, किंतु काली दोमट उपजाऊ मिट्टी में केवल 2 सिंचाई में भी पक कर तैयार हो जाता है.

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अगर इस के उत्पादन की बात करें, तो पर्याप्त सिंचित, कार्बनिक तत्त्वों से भरपूर उपजाऊ जमीन पर 60 से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज ली जा सकती है.

इस की बोआई नवंबर माह के पहले हफ्ते से ले कर जनवरी माह के पहले हफ्ते तक की जा सकती है. इस की फसल 120 से 125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है.

इस का भूसा बहुत बारीक निकलता है, जिसे पशु बहुत पसंद करते हैं.

अब इस के उपयोग पर अगर हम नजर डालें तो इस का उपयोग मुख्य रूप से रोटियां बनाने, ब्रेड टोस्ट बनाने, दलिया बनाने और इस के दानों से चावल की तरह खीर बनाने में किया जाता है.

इस गेहूं की रोटियां बहुत ही मुलायम, सफेद और स्वादिष्ठ होती हैं.

इसे खाने के फायदे

एनर्जी के लिए : पैगांबरी गेहूं खाने से एनर्जी मिलती है. ये ऊर्जा का एक बहुत अच्छा स्रोत है. यह वजन घटाने में भी सहायक है. दरअसल, इसे खाने के बाद काफी देर तक भूख नहीं लगती. इस से वजन कंट्रोल भी होता है.

स्वस्थ दिल के लिए : पैगांबरी गेहूं कौलेस्ट्रौल लेवल को कंट्रोल करने में मदद करता है. इस से दिल से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा कम हो जाता है. इस में मैग्नीशियम और पोटैशियम भी है, जो ब्लड प्रैशर को नियंत्रित रखने में मददगार है.

पाचन को रखे दुरुस्त : पैगांबरी गेहूं में भरपूर मात्रा में फाइबर पाया जाता है, जो पाचन को दुरुस्त रखने में सहायक है. इस गेहूं को खाने से कब्ज की समस्या भी नहीं होती है.

कैंसर से बचाव : गेहूं की खेती जैविक तरीके से की जा रही है, इसलिए यह कैंसर के बचाव में भी सहायक है. डायबिटीज के मरीज इस का नियमित सेवन कर शुगर कंट्रोल कर सकते हैं.

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पैगांबरी गेहूं की खूबियां

* आकार मैथी की तरह है.

* बाजरे की तरह गुण हैं.

* अन्य गेहूं की अपेक्षा प्रोटीन कम है.

* छिलका ज्यादा है.

* जल्दी पचने वाली वैरायटी है.

* फायबर अधिक है.

अधिक जानकारी के लिए लेखक से उन के मोबाइल नंबर 7898915683 पर संपर्क कर सकते हैं.

बारिश-भाग 1: नेहा अपनी मां से हर छोटी बात पर क्यों उलझती थी ?

कभी-कभी आदमी बहुत कुछ चाहता है, पर उसे वह नहीं मिलता जबकि वह जो नहीं चाहता, वह हो जाता है. नेहा दीदी द्वारा बारबार कही जाने वाली यह बात बरबस ही इस समय मृदु को याद आ गई. याद आने का कारण था, नेहा दीदी का मां से अकारण उलझ जाना. वैसे तो नेहा दीदी, उस से कहीं ज्यादा ही मां का सम्मान करती थीं, पर कभी जब मां गुस्से में कुछ कटु कह देतीं तो नेहा दीदी बरदाश्त भी न कर पातीं और न चाहने पर भी मां से उलझ ही जातीं. नेहा दीदी का यों उलझना मां को भी कब बरदाश्त था. आखिर वे इस घर की मुखिया थीं और उस से बड़ी बात, वे नेहा दीदी की सहेली या बहन नहीं, बल्कि मां थीं. इस नाते उन्हें अधिकार था कि जो चाहे, सो कहें, पलट कर जवाब नहीं मिलना चाहिए. पर नेहा दीदी जब पट से जवाब देतीं, तो मां का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचता.

उस दिन भी मां का पारा आसमान की बुलंदियों पर ही था. उन के एक हाथ में चाबियों का गुच्छा था. उन्होंने धमकाने के लिए उस गुच्छे को ही अस्त्र बना रखा था, ‘अब चुप हो जाओ, जरा भी आवाज निकाली तो यही गुच्छा मुंह में घुसेड़ दूंगी, समझी.’ मृदु को डर लगा कि कहीं सच में मां अपना कहा कर ही न दिखाएं. नेहा दीदी को भी शायद वैसा ही अंदेशा हुआ होगा. वह तुरंत चुप हो गईं, पर सुबकना जारी था. कोई और बात होती तो मां उस को चुप करा देतीं या पास जा कर खड़ी हो जातीं, पर मामला उस वक्त कुछ टेढ़ा सा था.

वैसे देखा जाए तो बात कुछ भी नहीं थी, पर एक छोटे से शक की वजह से बात तूल पकड़ गई थी. मां जब भी कभी नेहा दीदी को घर छोड़ कर मृदु के साथ खरीदारी पर चली जातीं तो दीदी का मुंह फूल जाता. वैसे भी समयअसमय वे मां पर आरोप लगाया करतीं, ‘मुझ से ज्यादा आप मृदु को प्यार करती हैं. वह जो कुछ भी चाहती है उसे देती हैं जो करना चाहती है, करती है, पर आप…’ ऐसे नाजुक वक्त पर मां अकसर हंस कर नेहा दीदी को मना लेतीं, ‘अरे, पगली है क्या  मेरे लिए तो तुम दोनों ही बराबर हो, इन 2 आंखों की तरह. मैं क्या तेरी इच्छाएं पूरी नहीं करती  मृदु तुझ से छोटी है, उसे कुछ ज्यादा मिलता है तो तुझे तो खुश होना चाहिए.’

अगर नेहा इस पर भी न मानती तो मां दोनों को ही बाजार ले जातीं. नेहा दीदी को मनपसंद कुछ खास दिलवातीं, चाटवाट खिलवातीं और फिर उन्हीं की पसंद की फिल्म का कोई कैसेट लेतीं व घर आ जातीं. मां की इस सूझ से घर का वातावरण फिर दमक उठता, पर यह चमकदमक ज्यादा दिन ठहर न पाती. नेहा दीदी उसे ले कर फिर कोई हंगामा खड़ा कर देतीं. बदले में मां थक कर उन्हें 2-4 चपत रसीद कर देतीं.मृदु को यह सब अच्छा नहीं लगता था. अपनी जिद्दी प्रवृत्ति और बचपने के कारण वह दीदी को नीचा दिखा कर खुश जरूर होती थी, पर वह उन्हें व मां को दुख नहीं देना चाहती थी.

पर उस दिन की बात, उस की समझ में न आई. यह बात जरूर थी कि मां उस दिन भी उसे अकेली ही बाजार ले कर गई थीं. सारे रास्ते वे उस की जरूरत की मनपसंद चीजें दिलाती और खिलाती रही थीं, पर हमेशा की तरह नेहा दीदी के लिए कुछ नहीं लिया था  मृदु को आश्चर्य भी हुआ था. उस ने मां से कहा तो उन्होंने झिड़क दिया, ‘तू क्यों मरी जा रही है. तुझे जो लेना है, ले, उसे लेना होगा तो खुद ले लेगी ’ ‘पर मां,’ मृदु ने कुछ कहना चाहा तो उन्होंने आंखें तरेर कर उस की ओर देखा. घबरा कर मृदु चुप हो गई. सारे रास्ते वह फिर कुछ न बोली. पर मां बुदबुदाती रहीं, ‘अब पर निकल आए हैं न, जो चाहे, सो करेगी. जब सबकुछ छिपाना ही है तो अपना साजोसामान भी अपनेआप खरीदे. अरे, मैं भी तो देखूं कि कितनी जवान ह गई है. हम तो अभी तक बच्ची समझ कर गलतियों को माफ करते रहे, पर अब… ’

मृदु को अब भी सारी बातें अनजानी सी लग रही थीं. यों रास्ते में अपने बच्चों से दुनियाजहान की बातें करते जाना मां की आदत थी पर इस तरह गुस्से में बुदबुदाना  उस ने उन्हें दोबारा छेड़ने की हिम्मत न की. यहां तक कि घर भी आ गई, तब भी खामोश रही. अपना लाया सामान भी हमेशा की तरह चहक कर न खोला. मां काफी देर तक सुस्ताने की मुद्रा में चुप बैठी रही थीं. फिर उस का सामान खोल कर ज्यों ही उस के आगे किया, नेहा दीदी का सब्र का बांध टूट ही गया, ‘मेरे लिए कुछ नहीं लाईं  सबकुछ इसी को दिला दिया ’

‘हां, दिला दिया, तेरा डर है क्या ’ रास्ते से ही न जाने क्यों गुस्से में भरी आई मां नेहा द्वारा उलाहना दिए जाने पर फूट पड़ीं, ‘क्या जरूरत है तुझे अब मुझ से सामान लेने की  अरे, अपने उस यार से ले न, जिस के साथ घूम रही थी.’ मां की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि अचानक जैसे बिजली सी कड़क उठी. मृदु ने नेहा दीदी की इतनी तेज आवाज कभी नहीं सुनी थी और मां को भी कभी इतने उग्र रूप में नहीं देखा था. मां की बात ने शायद नेहा दीदी को भीतर तक चोट पहुंचाई थी, तभी तो वे पूरी ताकत से चीख पड़ी थीं. ‘मां, जरा सोचसमझ कर बोलो.’ दीदी की इस अप्रत्याशित चीख से पहले तो मां भी हकबका गईं, फिर अचानक ‘चटाक’ की आवाज करता उन का भरपूर हाथ नेहा दीदी के गाल पर पड़ा. नेहा दीदी के साथसाथ मृदु भी सकपका गई थी. फिर माहौल में एक गमजदा सन्नाटा फैल गया. थोड़ी देर बाद वह सन्नाटा टूटा था, मां के अलमारी खोलने और नेहा दीदी की बुदबुदाहट से. मां अलमारी से साड़ी निकाल कर बदलने को मुड़ी ही थीं कि हिचकियों के बीच निकली नेहा दीदी की बुदबुदाहट ने उन के कदम फिर रोक लिए थे, ‘आप जितना चाहें मुझे मार लीजिए  पर आप की यह बेबुनियाद बात मैं बरदाश्त कभी नहीं करूंगी.’

फादर्स डे स्पेशल: मेरे पापा 12

बात काफी पुरानी है. उस समय गांवकसबों में भी दैनिक जलापूर्ति नदियों और कुओं से ही की जाती थी. मेरी उम्र तब 12 साल के करीब होगी. मेरी मम्मी कुएं से पानी खींच रही थीं और मैं सिर पर पानी का हंडा भर कर घर आ रही थी. हमारा घर ऊपरी मंजिल पर था. पिताजी दरवाजे के पास बैठे अपना काम कर रहे थे. जैसे ही मैं तांबे का हंडा सिर पर रख अंदर जाने लगी, एकाएक पैर फिसला और हंडा पिताजी के सिर पर गिर पड़ा. हंडे की किनारी पिताजी के सिर पर लगी और खून की धार बहने लगी. यह देख कर मैं रोने लगी.

पिताजी बोले, ‘‘बेटा, रो मत, नीचे जा कर डाक्टर को बुला ला. यह बात अपनी मां को मत बताना.’’ संयोग से डाक्टर की डिस्पैंसरी हमारे घर के निचले हिस्से में ही थी और उन से हमारे घरेलू संबंध भी थे. डाक्टर ने पिताजी के जख्म की ड्रेसिंग की और पट्टी बांध कर दवा इत्यादि दे दी. मैं ने सारी सफाई कर दी ताकि मां को मालूम न पड़े. मां की डांट से बचाने के लिए किया गया पिताजी का त्याग मुझे अभिभूत कर गया. हालांकि बाद में मां को सबकुछ पता चल गया. अब न पिताजी रहे और न मां. मां की ममता और त्याग के उदाहरण इतिहास बना चुके हैं किंतु पिता के त्याग भी कम नहीं हैं.

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विजया शर्मा, गोगावां (म.प्र.)

  • मेरे पापा एक बहुत ही नेकदिल, सच्चे व मेहनती इंसान थे. हम 5 भाई व 5 बहनें हैं. हम सभी को उच्चशिक्षा दिलाने में उन्होंने कोई भी कसर नहीं छोड़ी. रातदिन अकेले कमाते थे, लेकिन अपने लिए कभी किसी चीज की इच्छा जाहिर नहीं की. अपनी बेटियों को वे लड़कों का दरजा देते थे. जहां कहीं भी विवाह की बात करने जाते, यही कहते, ‘‘मेरी बेटियों में बेटी होने के गुणों के साथसाथ बेटे होने के भी सारे गुण हैं. मैं ने उन को बहुत काबिल बनाया है.’’
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मुझे पीएचडी करने के लिए यूजीसी की फैलोशिप मिली थी. उस का सारा पैसा मैं अपने पापा को दे देती थी. वे मेरा सारा पैसा इकट्ठा करते रहे. मेरी शादी के समय उन्होंने मेरा एक भी पैसा शादी के खर्च में नहीं लगाया. मृत्यु से पूर्व मुझे मेरे पति सहित अपने पास बुलाया और कहा, ‘‘बेटी, तेरा कमाया सारा पैसा तुझे सौंप रहा हूं. तू इसे ले जा. मैं ने जैसे और बच्चों की शादी की वैसे ही तेरी भी कर दी थी.’’ यह सुन कर मेरा दिल भर आया, सिर श्रद्धा से झुक गया. मेरा पैसा दोगुना हो कर मुझे मिल गया था.

चीनी सामान का बहिष्कार ,बढ़ेगी बेकारी और बर्बादी

पिछले 11 माह में भारत ने चीन से 62 अरब डालर का सामान आयात किया है. चीनी सामान के बहिष्कार से भारतीय कारोबारियो को ही नुकसान होगा. चीन को इस बहिष्कार से तत्काल नुकसान नहीं होगा. चीन ने अपने नुकसान का अंदाजा लगाकर ही सीमा विवाद का फैसला किया होगा. भारत न तो सीमा पर तैयार था ना ही उसने कोई कारोबारी तैयारी की है.देष में सस्ता सामान न मिलने से उससे जुडे तमाम कारोबार प्रभावित होगे. जिससे देष में फैली बेकारी और बर्बादी के और बढने अनुमान लगाया जा सकता है.

देश की आजादी के समय अंग्रेजो का विरोध करने के लिये विदेषी सामानों की होली जलाई गई थी. ऐसे समय में पूरा देश एक सूत्र में बंध गया था. आजादी की लडाई में विदेषी सामानों का बहिष्कार एक प्रमुख मुददा बन गया था. देष में स्वदेषी आन्दोलन ने जोर पकडा. गांधी जी ने स्वदेषी सामानों के अपनाने की मुहिम के तहत ही चरखे से काटे गये सूत से बने कपडे पहनने पर जोर दिया. यही वजह है कि नेताओं ने खादी पहनना षुरू किया. धीरेधीरे नेताओं को स्वदेषी खादी की जगह विदेषी कौटन और लिनन से तैयार कपडे पहनने में फक्र महसूस होने लगा. 1990 के बाद इस तरफ तेजी से झुकाव होने लगा और भारत में विदेषी सामान तेजी से आने लगा. दुनिया भर की नजर में भारत एक बाजार बन गया था. हमारे नेता इस बात से खुष थे कि दुनिया हमें बाजार समझ रही थी.

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भारत की सरकारें भी विदेषियों की दबाव में उनके अनुकूल काम करने लगी. जिसका सबसे बडा लाभ चीन ने उठाया. चीन ने भारत से कच्चा माल मंगाना षुरू किया इससे सामान तैयार करके मंहगे दामों पर भारत के लोगों को ही बेचने लगा. 2019 में चीन ने भारत से 3900 करोड रूपये का लोहा मंगवाया और उसी लोहे से तैयार किये गये 12 हजार करोड का सामान भारत को बेच दिया. अगर चीन भारत को 10 वस्तुयें बेचता है तो उनमें से 9 वस्तुये भारत के ही कच्चे माल से तैयार होती थी. सस्ते के मोह और अपने देष में सामान तैयार ना होने के कारण भारत के लोग चीनी सामान खरीदने को मजबूर होते है.

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भारत की यह हालत देष में नीतियां बनाने वालो के कारण हुई. 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार केन्द्र में बनी तो उसके बाद चीन के साथ उसका व्यवहार बेहद नरम हो गया. चीन के साथ अपने कारोबारी रिष्ते बढाने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति षी जिनपिंग के साथ कई करार किये. इसका प्रभाव यह रहा कि चीन का भारत में 6.2 अरब का प्रत्यक्ष निवेष हो गया. भारत और चीन का सीमा विवाद पुराना है. भारत को यह पता था कि चीन दुष्मन देष है. इस दौरान चीन कई बार भारत के दुष्मन पाकिस्तान की मदद भी करता रहा उसके बाद भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन के साथ वैसे ही भाईचारा बढाने में लगे रहे जैसे पहले के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कर रहे थे. चीन के साथ सीमा विवाद होने और 20 सैनिकों के षहीद होने के बाद एक बार फिर से सारा मुददा चीन के सामान के बहिष्कार का उठने लगा. जिससे सीमा विवाद और चीन के साथ नीतियों की विफलता के सवाल पर बचा जा सके.

कारोबारी नुकसान से बढेगी बेकारी:   

चीनी सामान के बहिष्कार का मसला पहली बार नही उठा है. जबजब भारत और चीन कर विवाद होता है यह मसला उठ खडा होता है. चीन भारत की सीमा पर 20 जवानों के षहीद होने के बाद देष भर में न केवल चीन के माल का बहिष्कार हो रहा है बल्कि सामान जलाने और उनके औफिस और कंपनियों पर तोडफोड और प्रदर्षन की घटनायें भी बढ गई है. सच्चाई यह है कि चीन के माल के बहिष्कार से चीन के साथ ही साथ भारत के लोगो को भी नुकसान होगा. चीन ने पिछले कुछ सालों में भारत के बाजार में बडे हिस्से में अपना कब्जा कर लिया है. चीन ने भारत के लोगों की जरूरत और उनकी हैसियत के मुताबिक माल तैयार किया. सस्ते माल के मोह में भारत के लोगों ने चीन के माल की बहुत खरीददारी की. अगर भारत में चीन के माल का बहिष्कार होगा तो भारत के वह कारोबारी तबाह हो जायेगे जिनके गोदामों में चीन का माल भरा पडा है.

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चीनी सामान के बहिष्कार से चीन का कुछ नहीं बिगडेगा हमारे देष में पहले से चल रही भयंकर बेकारी अब भंयकर बर्बादी में बदल जायेगी क्योकि चीनी की जगह देषी माल तक नहीं मिलेगा. इससे दुकानदार खाली बैठेगे. चीन ने भारत से झडप करने के पहले इस परेषानी का आकलन जरूर किया होगा. भारत सरकार अगर कानूनी रूप से चाइनीज सामान को बैन नही कर रही तो इसकी वजह होगी. भारत के बाजार में बडी संख्या में चीन का सामान बिना किसी पहचान के बिक रहा है. इसके साथ ही साथ चीन का बहुत सारा सामान इंडोनेषिया, मलेषिया, श्रीलंका और थाईलैंड के रास्ते भी पहचान बदल कर आ रहा है.

करोडों का कारोबार:

साल 2018 में भारत ने चीन से कुल 76 अरब डालर का आयात किया. इसमें सबसे बडी हिस्सेदारी 18 अरब डालर का आयात फोन के लिये थे. चीन से आयात होने वाले सामानों में हाउस होल्ड प्रोडक्टस यानि घरेलू काम में आने वाले सामान, गिफ्रट, प्रीमियम प्रोडक्टस, हैंडबैग, ट्रªैवल गुड्स, नकली ज्वेलरी, लाइटिंग प्रोडक्टस केमिकल्स, स्टील, पोलिस्टर यार्न और कौपर जैसे तमाम चीजे षामिल है.

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उत्तर प्रदेष की राजधानी लखनऊ का कोई ऐसा बाजार नहीं है जहां चाइना का सामान न बिकता हो. अनुमान के मुताबिक 9 हजार 2 सौ करोड सालाना का यहा चाइनीज माल का कारोबार होता है. लखनऊ में हर बाजार की खासियत भी अलग होती है. हर बाजार में अपनी खासियत के हिसाब से माल बिकता है. चाइनीज खिलौना और कास्टमेटिक का थोक कारोबार यहियागंज, अमीनाबाद, मुमताज मार्केट और प्रताप मार्केट में सबसे अधिक फैला हुआ है. एलईडी टीवी, कंप्यूटर, एसेसरीज, टार्च, मोबाइल एसेसरीज, टार्च, झालर सबसे अधिक नाका हिंडोला, अंबर मार्केट, आर्यनगर, नाजा मार्केट और श्रीराम टौवर मिलता है. इसके अलावा अमीनाबाद, गणेषगंज, गडबडझाला, नजीराबाद, चैक, गोमतीनगर, हजरतगंज, आलमबाग में भी चाइनीज माल खूब बिकता है.

लखनऊ में प्रमुख चाइनीज सामानो का कारोबार करोडों में है. अनुमान के मुताबिक खिलौना, 1300 करोड, सजावटी सामान 1500 करोड, इलेक्ट्रिकल 1200 करोड, कास्मेटिक 1200 करोड, मोबाइल 1000 करोड, एसेसीज 300 करोड, क्राकरी 1200 करोड, कपडा 1500 करोड, एलईडी टीवी 500 करोड, लैपटौप कंप्यूटर 300 करोड, टार्च 100 करोड, पीवीषीट 500 करोड है. अगर इन बाजारों में चीन के कारोबार का अनुपात देखे तो खिलौना कारोबार में चीन की हिस्सेदारी 90 फीसदी, मोबाइल में 60 से 70 फीसदी, मोबाइल एससरीज में 90 फीसदी, इलेक्ट्रौनिक आइटम 80 फीसदी, पीवीसी सीट और वौल पेपर 90 फीसदी, काॅस्मेटिक 50 फीसदी, एलईडी टीवी 40 फीसदी की हिस्सेदारी है.

पहचान करना मुष्किल:

बाजार के यह हालत होने के बाद भी लखनऊ कारोबारी राष्ट्रभक्ति में चीन के माल का ना केवल बहिष्कार कर रहे बल्कि नाम ना छापने की षर्त पर बताते है कि बाजार में कौन सा माल चीन का है कौन सा नहीं यह पता करना बहुत मुष्किल काम होता है. कई कंपनियां चीन के सामान को एसेंबल करके बेच रही है. युद्व के माहौल में लोग भले ही चाइनीज माल का बहिष्कार कर ले पर बिना चाइनीज माल के कारोबार चलना मुकिष्ल है. भारतीय बाजार में चाइनीज माल की खपत कई सालों में बढी है.इसको एकदम से बाहर करना बहुत मुष्किल काम है. चाइनीज माल  बिना ब्रांड का भी बिकता है. ऐसे में यह पता करना मुष्किल होता है कौन का माल किस देष का है. खेती किसानी में प्रयोग होने वाले बहुत सारे छोटे औजार, दवा छिडकने वाली पंप, लैसे बहुत सारे उत्पादो का पता ही नहीं होता. मौटर पार्टस, सौर ऊर्जा पंप, में भी नाम नहीं होता. इस कडी में एक बात और है कि चाइना का कुछ माल दूसरे देषों से होकर यहां आता है.

भारतीय बिजनेसमैनों ने चीन में प्रोसेस हाउस बना रखे है. वहां कम लागत में सामान तैयार करते है. वहां तैयार माल बेहतर होता है इसलिये बाजार में बिकता है. कपडा कारोबार को देखे तो चीन में तैयार माल बेहतर फिनिषिंग वाला होता है. सस्ता और बेहतर माल होने की वजह से पसद किया जाता है. देष भर में सडको पर बिकने वाला रेडीमेट मौल चाइना का होता है. जिससे हर गरीब अपना तन ढकने में सफल होता था. नये कपडे पहनने का सपना पूरा हो जाता था. चाइनीज माल का विरोध में होने से यह वर्ग अपनी जरूरतें नहीं पूरा कर पायेगा. इसके साथ ही साथ चाइनीज माल बेचकर कारोबार करने वाला आदमी भी बेकार और बेरोजगार हो जायेगा.

अप्रत्यक्ष निवेष बडी मुसीबत:

चीन ने भारत में प्रत्यक्ष निवेष के साथ ही साथ अप्रत्यक्ष निवेष भी कर रखा है. चीन का भारत में 6.2 अरब का प्रत्यक्ष निवेष है. इसके अलावा कुछ ऐसी कंपनियां है जिनमें चीन ने अपना निवेष कर रखा है. इनमें फ्रिलप कार्ड, ओला, स्विगी, जोमैटो, ओयो और ड्रीम 11 प्रमुख है. भारत सरकार कह रही है कि इस तरह के निवेष की जांच की जायेगी. जिन कंपनियों में चीन कह बडी कंपनियों का निवेष है उनमें बिग बास्केट में अलीबाबा का 25 करोड डौलर, ड्रीम में टेसेंट का 15 करोड डालर, ओला में टेसेंट और दूसरी कंपनियों का 50 करोड डालर, पेटीएम मौल और पेटीएम डाॅटकाम, स्नैपडील और जोमैटा मंे अलीबाबा समूह का निवेष है. इस तरह की कंपनियो की लिस्ट लंबी है. चीन का अप्रत्यक्ष निवेष हटने से देष की कारोबारी हालत और भी अधिक खराब हो जायेगी.

भारत का दवा कारोबार भी चीन पर पूरी तरह से निर्भर है. दवा बनाने के लिये भारत चीन पर निर्भर है. भारत 70 फीसदी एपीआई यानि एक्टिव फार्मास्युटिकल्स इंग्रीडिएटंस चीन से मंगाता है. 2018-19 में 240 करोड के एपीआई चीन से भारत ने आयात किये थे. इस कारोबार में सकंट आने से भारत में दवायें मंहगी हो जायेगी. जिससे गरीब वर्ग पर सबसे अधिक प्रभाव पडेगा. भारत में सौर उर्जा का तेजी से विकास हो रहा है. सौर उर्जा के क्षेत्र में चीन की कंपनियों ने भारतीय बाजार मंे 90 फीसदी की हिस्सेदारी कर रखी है. पिछले एक साल के चीन और भारत के कारोबार को देखे तो भारत ने 62 अरब डालर का सामान आयात किया है. इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति षी जिनपिंग के बीच करोबारी रिष्तो का बेहद प्रभाव था. भारतीय कारोबारी खुल कर अपने नुकसान की बात नहीं कह रहे है. असल में वह सबसे अधिक डरे हुये है.

#coronavirus: लॉकडाउन में रखे सेहत का ध्यान

लॉकडाउन का दौर चल रहा है , इस दौरान आपको अपने सेहत का विशेष ध्यान रखना होगा . लॉक डाउन के समय अगर आप खाने पर ध्यान नहीं देते है और लापरवाही करते है कि आप कोरोना से तो बच जायेगे लेकिन कई बीमारियों जैसे लीवर प्रॉब्लम्‍स , किडनी प्रॉब्लम, सांस लेने में तकलीफ, बिंज ईटिंग यानी लगातार खाने-पीने की वजह से शरीर के अंगों पर पड़ने वाले दवाब इत्यादि की समस्याओं से घेर लेगा , इसके अलावा आपको गैस्ट्रिक प्रॉब्लम, शुगर और कॉलेस्ट्रॉल बढ़ने की समस्या , खाना पचाने में मुश्किल, वजन बढ़ने की समस्‍याएं इत्यादि हो जाती हैं. इन सबसे बचने के लिए आपको अपनी भूख और हेल्थ के हिसाब से ही खाना होगा . लॉक डाउन आप घर में है तो इसका ख्याल रखे कि इस  दौरान अधिकांशत: मैदे, बेसन आदि की बनी हुई, तली हुई चीजें ज्यादा खाई जाती हैं. रेशेदार भोजन का सेवन बहुत कम होता है और गरिष्ठ का ज्यादा, जिससे पाचन तंत्र पर बोझ पड़ेगा ही और अपच, कब्ज व एसिडिटी की शिकायतें भी होंगी. अगर इन दिनों अपने खान-पान पर नियंत्रण रखें तो न केवल त्योहारों का भरपूर मजा ले पाएंगे, बल्कि स्वास्थ्य भी अच्छा बना रहेगा। इसके लिए आवश्यक है इन बातों पर अमल करने की-

* भोजन समय पर और निश्चित अवधि के बाद करें. लॉक डाउनकी मौज-मस्ती में कुछ लोग दिन भर कुछ न कुछ खाते रहते हैं जिससे पाचन क्रिया बुरी तरह गड़बड़ा जाती है. जल्दी-जल्दी और ज्यादा भोजन कभी न खाएं.

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* गर्मी का मौसम है, सुबह नाश्ते के बाद अपनी क्षमतानुसार छाछ अवश्य पिएं.

* अगर संभव हो तो भोजन के साथ रेशेदार व रसदार फल खाएं.

*  नींबू का सेवन अधिक करें.

*  पानी अधिक पिएं. हर एक घंटे बाद एक गिलास पानी पिएं। ख्याल रहे भोजन के पश्चात् तुरंत पानी कभी न पिएं। इससे मंदाग्नि की आशंका रहती है.

* मिठाइयों व तली हुई चीजों से ज्यादा फलों को महत्व दें.

* उपवास के दौरान कुछ लोग पूरे दिन तो कुछ नहीं खाते लेकिन शाम को या अगले दिन खूब तले-भूने कई तरह के पकवान खा लेते हैं। इससे अपच, कब्ज, एसिडिटी, उल्टी आदि की शिकायत हो जाती है. अत: ऐसा करने से बचें.

*  रात के भोजन के बाद तुरंत कभी न सोएं. कम से कम एक डेढ़ घंटे बाद ही सोएं. तुरंत सो जाने से पाचन क्रिया मंद पड़ जाती है जिससे अपच की शिकायत हो सकती है.

*  लॉकडाउन के दिनों में सलाद का सेवन कम ना करे. सलाद भोजन पचाने में सहायता करता है जिससे पेट ठीक रहता है. जो संभव हो उसी का सलाद  घर पर ताजा कटा कर बना ले .

* लॉक डाउन के समय में साधारण खाने के बजाय आप पकवान अधिक बनाते है. ऐसे में आप आटे में जौ, बाजरे के आटे को गेहूं के आटे के साथ मिक्स कर लें, ये हेल्दी भी होगा और आपको फिट भी रखेगा.

* आप खाने में सलाद, फ्रूट्स इत्यादि लें इससे आपकी डायट भी बैलेंस रहेगी और आपकी सेहत भी नहीं बिगड़ेगी.

* यदि आप त्योहारों के मौके पर अधिक ड्रायफ्रूट्स लेते हैं और साथ ही एल्‍‍कोहल, धूम्रपान इत्यादि करते हैं तो भी आपकी सेहत बिगड़ने की आशंकाएं बढ़ जाती है. ऐसे में आपको इन चीजों के सेवन से बचना चाहिए.

* लॉक डाउन के समय चाय, कॉफी इत्यादि का सेवन कम करना चाहिए और संभव हो तो  ग्रीन टी सेवन करे, इसका सेवन करना लाभकारी होता है.

* कोशिश करें की मिलावटी पदार्थ के सेवन करने से बचे.

 

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