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इंग्लिश रोज-भाग 2 : विधि के गार्डन में लगे फूलों का क्या मतलब था?

जौन की आंखों में मैं ने तेरे लिए प्यार देखा है. तुझे चाहता है. उस ने खुद अपना हाथ आगे बढ़ाया है. अपना ले उसे. हटा दे जीवन से यह तलाक की तख्ती. तू कर सकती है. हम सब जानते हैं कि बड़ी हिम्मत से तू ने समाज की छींटाकशी की परवा न करते हुए अपने पंथ से जरा भी विचलित नहीं हुई. समाज में अपना एक स्थान बनाया है. अब नए रिश्ते को जोड़ने से क्यों हिचकिचा रही है. आगे बढ़. खुशियों ने तुझे आमंत्रण दिया है. ठुकरा मत, औरत को भी हक है अपनी जिंदगी बदलने का. बदल दे अपनी जिंदगी की दिशा और दशा,’’ रेणु ने समझाते हुए कहा. ‘‘क्या करूं, अपनी दुविधाओं के क्रौसरोड पर खड़ी हूं. वैसे भी, मैं ने तो ‘न’ कर दी है,’’ विधि ने कहा. ‘‘न कर दी है, तो हां भी की जा सकती है. तेरा भी कुछ समझ में नहीं आता. एक तरफ कहती है, जौन बड़ा अलग सा है. मेरी बेमानी जरूरतों का भी खयाल रखता है. बड़ी ललक से बात करता है. छोटीछोटी शरारतों से दिल को उमंगों से भर देता है. मुझे चहकती देख कर खुशी से बेहाल हो जाता है. मेरे रंगों को पहचानने लगा है. तो फिर झिझक क्यों रही है?’’

‘‘उम्र देखी है? 60 वर्ष पार कर चुका है. सोच कर डर लगता है, क्या वह वैवाहिक सुख दे पाएगा मुझे?’’ ‘‘आजमा कर देख लेती? मजाक कर रही हूं. यह समय पर छोड़ दे. यह सोच कि तेरी आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. तेरा अपना घर होगा जहां तू राज करेगी. ठंडे दिमाग से सोचना…’’ ‘‘डर लगता है कहीं विदेशी चेहरों की भीड़ में खो तो नहीं जाऊंगी. धर्म, सोच, संस्कृति, सभ्यता, कुछ भी तो नहीं है एकजैसा हमारा. फिर इतनी दूर…’’ ‘‘प्रेम उम्र, धर्म, भाषा, रंग और जाति सभी दीवारों को गिराने की शक्ति रखता है. मेरी प्यारी सखी, प्यार में दूरियां भी नजदीकियां हो जाती हैं. अभी ईमेल कर उसे, वरना मैं कर देती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, मैं खुद ही कर लूंगी,’’ विधि ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘डियर जौन,

मैं ने आप के प्रस्ताव पर विचार किया. कोई भी नया रिश्ता जोड़ने से पहले एकदूसरे के बीते जीवन के बारे में जानना बहुत जरूरी है. ऐसी मेरी सोच है. 10 वर्ष पहले मेरा विवाह एक बहुत रईस घर में संपन्न हुआ. मेरी ससुराल का मेरे रहनसहन, सोचविचार और संस्कारों से कोई मेल नहीं था. वहां के तौरतरीकों के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती थी. वहां मुझे लगा कि मैं चूहेदानी में फंस गई हूं. मेरे पति शराब और ऐयाशी में डूबे रहते थे. शराब पी कर वे बेलगाम घुड़साल के घोड़े की तरह हो जाते थे, जिस का मकसद सवार को चोट पहुंचाना था. ऐसा हर रोज का सिलसिला था. हर रात अलगअलग औरतों से रंगरेलियां मनाते थे. धीरेधीरे बात यहां तक पहुंच गई कि वे ग्रुपसैक्स की क्रियाओं में भाग लेने लगे. जबरदस्ती मुझ से भी औरों के साथ हमबिस्तर होने की अपेक्षा करने लगे. उन के अनुकूल उन की बात मानते जाओ तो ठीक था वरना कहते, ‘हम मर्द अच्छी तरह जानते हैं कि कैसे औरतों को अपने हिसाब से रखा जाए.’ ‘‘एक साधारण सी लड़की के लिए कितना कठिन था यह. एक दिन जब मैं ने किसी और के साथ हमबिस्तर होने से इनकार किया तो मुझे घसीट कर सामने बिठा कर सबकुछ देखने को मजबूर कर दिया. उस दिन मैं ने बरदाश्त की सभी सीमाएं लांघ कर उन के मुंह पर एक तमाचा जड़ दिया और सामान उठा कर भाई के घर चली आई. पैसे और मनगढ़ंत कहानियों के बल पर मेरा बेटा उन्होंने अपने पास रख लिया. उस दिन के बाद आज तक मैं अपने बेटे को देख नहीं पाई. अब सबकुछ जानते हुए भी आप तैयार हैं तो आप मेरे बड़े भाईसाहब अजय से बात करें.’’

‘‘आप की विधि’’

विधि का ईमेल पढ़ कर जौन नाचने लगा. तुरंत ही उस ने उत्तर दिया,

‘‘मेरी प्यारी विधि,

बस, इतनी सी बात से परेशान हो. जीवन में हादसे सभी के साथ होते हैं. मैं ने तो तुम से पूछा तक नहीं. तुम ने बता दिया तो मेरे मन में तुम्हारे लिए इज्जत और बढ़ गई. मेरी जान, मैं ने तुम्हें चाहा है. मैं स्त्री और पुरुष की समानता में विश्वास रखता हूं. तुम मेरी जीवनसाथी ही नहीं, पगसाथी भी होगी. जिन खुशियों से तुम वंचित रही हो, मैं उन की भरपाई की पूरी कोशिश करूंगा. मैं अगली फ्लाइट से दिल्ली पहुंच रहा हूं.

‘‘प्यार सहित

‘‘तुम्हारा जौन.’’

वह दिल्ली आ पहुंचा. होटल में विधि के बड़े भाईसाहब को बुला कर ईमेल दिखाते हुए उन से विधि का हाथ मांगा. भाईसाहब ने कहा, ‘‘शाम को तुम घर आ जाना.’’ पूरा परिवार बैठक में उस की प्रतीक्षा कर रहा था. जौन का प्रस्ताव सामने रखा गया. सभी हैरान थे. सन्नी तैश में आ कर बोला, ‘‘इतने बूढ़े से…? दिमाग खराब हो गया है क्या. जाहिर है विधि की उम्र के उस के बच्चे होंगे. अंगरेजों का कोई भरोसा नहीं.’’ बाकी बहनभाई भी सन्नी की बात से सहमत थे.

‘‘तुम ने क्या सोचा?’’ बड़े भाई अजय ने विधि से पूछा.

‘‘मुझे कोई एतराज नहीं,’’ उस ने कहा.

‘‘दीदी, होश में तो हो, क्या सचमुच सठियाए से शादी…?’’ विधि के हां करते ही अजय ने जौन को बुला कर कहा, ‘‘शादी तय करने से पहले हमारी कुछ शर्तें हैं. शादी हिंदू रीतिरिवाजों से होगी. उस के लिए तुम्हें हिंदू बनना होगा. हिंदू नाम रखना होगा. विवाह के बाद विधि को लंदन ले जाना होगा.’’ जौन को सब शर्तें मंजूर थीं. वह उत्तेजना से ‘आई विल, आई विल’ कहता नाचने लगा. पुरुष चहेती स्त्री को पाने का हर संभव प्रयास करता है. उस में साम, दाम, दंड, भेद सभी भाव जायज हैं. अच्छा सा मुहूर्त देख कर उन का विवाह संपन्न हआ. जौन लंदन से इमीग्रेशन के लिए जरूरी कागजात ले कर आया था. विधि का पासपोर्ट तैयार ही हो रहा था कि अचानक जौन के बेटे मार्क का ऐक्सिडैंट होने के कारण, जौन को विधि के बिना ही लंदन जाना पड़ा. जौन तो चला गया. विधि का मन बेईमान होने लगा. उसे घबराहट होने लगी. मन में अनेक प्रश्न उठने लगे. किसी से शिकायत भी तो नहीं कर सकती थी. 6 महीने से ऊपर हो गए. उधर जौन बहुत बेचैन था, चिंतित था. वह बारबार रेणु को ईमेल कर के पूछता. एक दिन हार कर रेणु विधि के घर आ ही पहुंची और उसे बहुत डांटा, ‘‘विधि, क्या मजाक बना रखा है, क्यों उस बेचारे को परेशान कर रही हो? तुम्हें पता भी है कितनी मेल डाल चुका है. कहतेकहते थक गया है कि आप विधि को समझाएं और कहें ‘डर की कोई बात नहीं है. मैं उसे पलकों पर बिठा कर रखूंगा.’ ‘‘अब गुमसुम क्यों बैठी हो. कुछ तो बोलो. यह तुम्हारा ही फैसला था. अब तुम्हीं बताओ, क्या जवाब दूं उसे?’’

‘‘मैं बहुत उलझन में हूं. परेशान हूं. खानापीना, उठनाबैठना बिलकुल अलग होगा. फिर उस के बच्चे…? क्या वे स्वीकार करेंगे मुझे…?’’

‘‘विधि, तुम बेकार में भावनाओं के द्वंद्व में डूबतीउतरती रहती हो. यह तो तुम्हें वहीं जा कर पता लगेगा. हम सब जानते हैं, तुम हर स्थिति को आसानी से हैंडल कर सकती हो. ऐसा भी होता है  कभीकभी सबकुछ सही होते हुए भी, लगता है कुछ गलत है. तू बिना कोशिश किए पीछे नहीं मुड़ सकती. चिंता मत कर. अभी जौन को मेल करती हूं कि तुझे आ कर ले जाए.’’ जौन को मेल करते ही एक हफ्ते में वह दिल्ली आ पहुंचा. 2 हफ्ते में विधि को लंदन भी ले गया. लंदन में घर पहुंचते ही जौन ने अंगरेजी रिवाजों के अनुसार विधि को गोद में उठा कर घर की दहलीज पार की. अंदर पहुंचते ही वह हतप्रभ रह गई. अकेले होते हुए भी जौन ने घर बहुत तरतीब और सलीके से रखा था. सुरुचिपूर्ण सजाया था. घर में सभी सुविधाएं थीं, जैसे कपड़े धोने की मशीन, ड्रायर, स्टोव, डिशवाशर और औवन…काटेज के पीछे एक छोटा सा गार्डन था जो जौन का प्राइड ऐंड जौय था. पहली ही रात को जौन ने विधि को एक अनमोल उपहार देते हुए कहा, ‘‘विधि, मैं तुम्हें क्रूर संसार की कोलाहल से दूर, दुनिया के कटाक्षों से हटा कर अपने हृदय में रखने के लिए लाया हूं. तुम से मिलने के बाद तुम्हारी मुसकान और चिरपरिचित अदा ही तो मुझे चुंबक की तरह बारबार खींचती रही है और मरते दम तक खींचती रहेगी. मैं तुम्हें इतना प्यार दूंगा कि तुम अपने अतीत को भूल जाओगी. मैं तुम्हारा तुम्हारे घर में स्वागत करता हूं.’’ इतना कह कर जौन ने उसे सीने से लगा लिया और यह सब सुन कर विधि की आंखों में खुशी के आंसू छलकने लगे.

चुगली की आदत बच्चों में न पनपने दें

लेखिका-किरण सिंह

यहां की बात वहां करना, किसी के पीठपीछे उस की बुराई करना, किसी को भलाबुरा कहना आदि चुगली करना है. बच्चों में अकसर चुगली की आदत एक बार पड़ जाती है तो फिर यह उम्रभर रहती है.

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, चुगली करना अपने दिल की भड़ास निकालने का एक माध्यम है  या यों कहें कि हीनभावना से ग्रस्त व्यक्ति चुगली कर के खुद को तुष्ट करने का प्रयास करता है. इसीलिए वह खुद में कमियां ढूंढ़ने के बजाय दूसरों की मीनमेख निकालने में अपनी ऊर्जा खपाता रहता है.

चुगलखोर व्यक्तियों की दोस्ती टिकाऊ नहीं होती

वैसे हम चुगलखोरों को लाख बुराभला कह लें लेकिन सच यह है कि निंदा रस में आनंद बहुत आता है. शायद यही वजह है कि अपेक्षाकृत चुगलखोरों के संबंध अधिक बनते हैं या यों कहें कि चुगलखोरों की दोस्ती जल्दी हो जाती है. लेकिन यह भी सही है कि उन की दोस्ती टिकाऊ नहीं होती क्योंकि वास्तविकता का पता लगने पर लोग चुगलखोरों से किनारा करने लगते हैं.

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बच्चों में चुगलखोरी

अकसर देखा गया है कि बच्चे जब  गलती करते हुए अभिभावकों द्वारा पकड़े जाते हैं और पैरेंट्स पूछते हैं कि कहां से सीखा, तो वे अपने को तत्काल बचाने के लिए अपने दोस्तों या फिर भाईबहनों का नाम ले लेते हैं जिस से पैरेंट्स का ध्यान उन पर से हट कर दूसरों पर चला जाता है. यहीं से चुगलखोरी की आदत लगने लगती है.

एक बार सोनू की मम्मी ने सोनू को पैसे चोरी करते हुए पकड़ लिया और फिर डांटडपट कर पूछने लगीं कि यह सब कहां से सीखा. सोनू ने तब अपना बचाव करने के लिए पड़ोस के दोस्त का नाम ले लिया. यह बात सोनू की मम्मी ने उस के दोस्त की मम्मी से कह दी. परिणामस्वरूप, सोनू के दोस्त ने सोनू को चुगलखोर कह कर उस से दोस्ती तोड़ ली और सोनू दुखी रहने लगा.

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यहां पर सोनू की मम्मी को सोनू को यह सब किस ने सिखाया है, यह न पूछ कर चोरी के साइड इफैक्ट्स बता कर आगे से ऐसा न करने की सीख देनी चाहिए थी. साथ ही, यह भी बताना चाहिए था कि चुगली करना और चोरी करना दोनों ही गलत हैं.

ऐसे बढ़ती है चुगली करने की प्रवृत्ति

कभीकभी  पैरेंट्स अनजाने में ही अपने बच्चों को आहत कर उन में चुगली करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं. दीपक के पापा हमेशा ही अपने बेटे दीपक की तुलना अपने दोस्त के बेटे कुणाल से करते हुए कुणाल की प्रशंसा कर दिया करते थे जिस से दीपक का कोमल सा बालमन आहत हो जाता था और वह कुणाल की तरह बनने की कोशिश करता था. जब उस की तरह बनने में नाकामयाब हो गया तो वह अपने पापा से कुणाल की  झूठीसच्ची चुगली करने लगा.

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सो, मातापिता को बच्चों में छोटी उम्र से ही चुगली की आदत पनपने नहीं देनी है और उन्हें यह बताना है कि चुगली करना गलत है. बचपन से ही बच्चों में चुगली की आदत नहीं पनपेगी, तो बड़े हो कर भी वे खुद पर ध्यान देंगे बजाय किसी के प्रति कुंठित मन से चुगली करने के.

कोरोना खा गया बच्चों की आइसक्रीम

बच्चों की पसंदीदा आइसक्रीम कोरोना चट कर गया. पूरी गरमी का सीज़न निकल गया, बच्चों ने आइसक्रीम नहीं खाई. न आइसक्रीम पार्लर खुले, न महल्ले में आइसक्रीम बेचने वाले का साइकिलरिकशा दिखा,  न कुल्फी का ठेला नज़र आया और न इंडिया गेट वाले खट्टेमीठे बर्फीले कोला का स्वाद चखने को मिला. यहां तक कि घर के फ्रिज में भी आइसक्रीम नहीं जमाई गई. बच्चों का सारा मज़ा इस नामुराद कोरोना ने किरकिरा कर दिया. सारी छुट्टियां चारदीवारी की कैद में निकल गईं. ‘करेला वह भी नीम चढ़ा’ वाली कहावत तब चरित्रार्थ हुई जब कोरोना को भगाने के लिए बच्चे गरमी में भी गरम पानी ही पीते रहे. दिन में दोदो, तीनतीन बार गरम पानी के गरारे करते रहे. पूरे सीज़न कोल्डड्रिंक पर भी कोरोना का काली छाया पड़ी रही. मम्मी ने बोतल ही खोलने नहीं दी क्योंकि इस से खांसीज़ुकाम होने का ख़तरा था. खांसी मतलब ख़तरा. कोरोना का ख़तरा.

अब बरसात ने दस्तक दे दी है लेकिन कोरोना का खतरा कम होने का नाम नहीं ले रहा है. जून की उमस में भी लोग ठंडा पानी, आईस्क्रीम, कोल्डड्रिंक, एसी की ठंडी हवा से महरूम हैं. कोरोना ने पूरा आइसक्रीम सीज़न तो चौपट किया ही, आइसक्रीम इंडस्ट्री को हज़ारों करोड़ का चूना अलग लगाया.

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इंडियन आइसक्रीम मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन लगभग 80 सदस्यों के साथ भारतीय आइसक्रीम निर्माताओं का टौप संघ है, सभी बड़े आइसक्रीम ब्रैंड निर्माता जैसे क्वालिटी वाल, क्रीम बेल, वाडीलाल, अरुण और नेचुरल्स, मामा मिया जैसी कंपनियां इस एसोसिएशन की सदस्य हैं. संगठित क्षेत्र जो एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व करते हैं, उन का कारोबार लगभग 15-17 हजार करोड़ रुपए का है. आइसक्रीम का पीक सीजन आमतौर पर फरवरी से जून तक होता है, यानी गरमी की शुरुआत से ले कर मानसून की दस्तक तक. लेकिन कोरोना महामारी के चलते लौकडाउन की वजह से इस सीजन में आइसक्रीम की नगण्य बिक्री हुई है. इस से उद्योग को हज़ारों करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है. यह नुकसान संगठित क्षेत्र में 15 हजार करोड़ रुपए और असंगठित क्षेत्र में 30 हजार करोड़ रुपए से अधिक का माना जा रहा है.

आइसक्रीम उद्योग के लिए यह सब से बुरा दौर है. उल्लेखनीय है कि शादीविवाह का लगन भी इन्हीं 3 महीने में ज़्यादा रहता है और सर्वाधिक आइसक्रीम की खपत भी इन्हीं महीनों में होती है जो इस बार  नहीं हुई. शादीविवाह भी कोरोनाकाल में कैंसिल हो गए, जिस कारण भी आइसक्रीम की न मांग हुई और न खपत. छोटेबड़े होटल भी लंबे समय से बंद हैं. कुलमिला कर इस बार आइसक्रीम का धंधा पूरी तरह चौपट रहा.

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गौरतलब है कि गरमी का मौसम आते ही लोगों में ठंडे पेय पदार्थों की मांग बढ़ जाती है. जगहजगह गन्ना रस, आम, संतरा, पाइनएप्पल आदि के जूस, आइसक्रीम की दुकानें सज जाती हैं, लेकिन इस बार कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण ये दुकानें नहीं लग पाईं. अब इस व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों के सामने रोजीरोटी की समस्या उत्पन्न होने लगी है. वहीं इन दुकानों में 3 से 4 माह तक अनेक बेरोजगार युवक काम कर के अपने परिवार के लिए खासी धनराशि जमा कर लेते थे,  लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया. लौकडाउन के कारण चारों तरफ सन्नााटा पसरा रहा. आइसक्रीम उद्योग पर प्रवासी मजदूरों के पलायन से भी बहुत बुरा असर पड़ा है क्योंकि अधिकतर आइसक्रीम के ठेले यानी पुशकार्ट्स को यही मजदूर वर्ग चलाता है. इन के चले जाने से जो थोड़ेबहुत व्यापार की संभावना थी वह भी समाप्त हो गई.

भारत में इंग्लिश भाषा नहीं रुतबा है

देश में आधुनिक कहलाने की पहली शर्त इंग्लिश बोलना आना हो गई है तो इस की अपनी अलग वजहें भी हैं. लेकिन सरकारी स्तर पर इंग्लिश को अनावश्यक प्रोत्साहन दिए जाने से हिंदी की ज्यादा दुर्दशा हुई है. जानिए, कैसे.

कहते हैं रुतबा हकीकत से ज्यादा मनोविज्ञान है. जब हिंदुस्तान में हम किसी को इंग्लिश में धाराप्रवाह बोलते देखते हैं तो उस के बारे में बिना कुछ जाने यह मान लेते हैं कि वह पढ़ालिखा है. वह खातेपीते संपन्न वर्ग से नाता रखता है. वह उदार है. वह खुलेदिल का है. वह जानकारी से परिपूर्ण है. वह भद्र है.

दरअसल, इंग्लिश हिंदुस्तान में महज भाषा नहीं है, इंग्लिश एक वर्ग है. एक क्लास है. इंग्लिश के साथ जुड़ा यही मनोविज्ञान उसे न सिर्फ खास बनाता है बल्कि उस के और दूसरी भारतीय भाषाओं को बोलने वालों के बीच एक खास अंतराल भी जाहिर करता है.

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सवाल है क्या यह अपनेआप हो गया है? क्या यह महज 250 साल की अंगरेजों की गुलामी का नतीजा है? निश्चितरूप से इंग्लिश के इस प्रभुत्व के पीछे भारत में अंगरेजीराज का इतिहास भी बड़ी वजह है. लेकिन महज अंगरेजीराज के इतिहास की बदौलत ही आज भी इंग्लिश भारत में राज नहीं कर रही, बल्कि इंग्लिश के इस मौजूदा प्रभुत्व के पीछे कहीं न कहीं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता व सत्तासीन वर्ग का भी हाथ है.

जैसे वेदकालीन भारत जिस काल को हम भारत का स्वर्णिम काल कहते हैं, में संस्कृत सत्ता और प्रभुत्व वर्ग की भाषा थी. उस का रुतबा था. उस से शासकत्व और स्वामित्व की मौजूदगी झलकती थी. आजकल कमोबेश वही स्थिति इंग्लिश को ले कर है. इंग्लिश भी आज महज भाषा नहीं है. यह एक शासकीय प्रभाव का पर्याय है. इस के लिए किसी बड़े उदाहरण को जाननेसमझने की जरूरत नहीं है. रोजमर्रा की जिंदगी के छोटेछोटे अनुभवों से आप इस सच को जान सकते हैं.

मसलन, अगर बैंक आप के किसी काम में अड़चन पैदा करता है और कहता है काम करने के लिए एप्लीकेशन दो, तो अगर आप टूटीफूटी इंग्लिश में भी एक प्रार्थनापत्र लिख देते हैं तो 99.9 फीसदी यह सुनिश्चित है कि क्लर्क पलट कर आप से आप के लिखे हुए में किसी स्पष्टता की मांग नहीं करेगा. वह एक नजर उस पर डालेगा मानो पलक झपकते ही उसे आप की पूरी बात व परेशानी समझ में आ गई हो और आप का काम फटाफट हो जाएगा.

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दरअसल, यह इंग्लिश का प्रभाव है. कुरसी पर बैठा बैंक क्लर्क यह आभास नहीं होने देना चाहता कि उसे इंग्लिश में कोई दिक्कत है या आप के लिखे हुए मंतव्य को इंग्लिश में होने के कारण समझने में उस को कोई कठिनाई हो रही है. इसलिए, वह बिना कुछ समझे आप के लिखे हुए को वही मानेगा जो आप मनवाना चाहते हैं. यहां तक कि अगर उसे बिलकुल समझ में नहीं आएगा तो भी वह आप के साथ मुंहजबानी बात करते हुए आप से बड़ी होशियारी से यह जान लेगा कि आप चाहते क्या हैं और फिर आप का काम कर देगा.

दरअसल, यह इंग्लिश भाषा की अद्भुत संप्रेषणीयता का कमाल नहीं है. यह हिंदुस्तानियों में मौजूद उस हीनभावना का कमाल है जिस के मौजूद रहते कोई किसी दूसरे को यह भनक नहीं लगने देना चाहता कि उसे इंग्लिश नहीं आती. इंग्लिश का इस से बड़ा और जबरदस्त असर भला क्या हो सकता है?

हद तो यह है कि भारत में इंग्लिश के विरुद्ध जिन लोगों ने आंदोलन छेड़ा, जिन तथाकथित नेताओं ने इंग्लिश को शासकीय षड्यंत्र बताया है, वे भी इंग्लिश के मोह या उस के प्रभाव के विशिष्टबोध से नहीं उबर पाए. उदाहरण के लिए, 80 के दशक में मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में इंग्लिश के विरुद्ध खूब हल्ला मचाया. साइकिल से घूमघूम कर हिंदी के पक्ष में माहौल बनाया. लोगों को यह बताने की कोशिश की कि कैसे सरकार इंग्लिश थोप कर हिंदुस्तान के असली जनसमुदाय को सत्ता में भागीदारी से वंचित करना चाहती है. लेकिन ठीक उन्हीं दिनों नेताजी मुलायम सिंह के पुत्र और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इंग्लिश माध्यम से अपनी स्कूली व उस के आगे की पढ़ाई पूरी कर रहे थे.

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मुलायम सिंह 90 के दशक में जब सत्ता से बाहर थे, ‘अंगरेजी हटाओ, हिंदी लाओ’, ‘अंगरेजी भाषा नहीं, षड्यंत्र है, गुलामी का जनतंत्र है’ जैसे नारे लगाते रहे. वे भड़क कर यह भी कहते रहे कि जब सत्ता में आएंगे, इंग्लिश भाषा और कंप्यूटर पर प्रतिबंध लगा देंगे. लेकिन हकीकत में न वे ऐसा कर सके और न ही कभी ऐसा करेंगे. उस की बड़ी मिसाल तो यह है कि जब उन के पुत्र उत्तराधिकारी के रूप में सत्ता में लौटे तो उन्होंने जिस लोकलुभावन नारे को पूरे गाजेबाजे के साथ पूरा किया, वह पढ़ेलिखे बेरोजगारों को लैपटौप बांटना था.

एक और दिग्गज की कहानी सुनिए. ज्योति बसु देश के सब से सम्माननीय राजनेताओं में से रहे हैं. उन की गरिमा और जनसमर्थन का चुंबकत्व देश का राजनीतिक इतिहास बखूबी जानता है. 70 के दशक में जब बंगाल में कम्युनिस्ट सरकार बनी तो तमाम क्रांतिकारी परिवर्तन हुए. उन्हीं क्रांतिकारी परिवर्तनों में इंग्लिश को प्राथमिक कक्षाओं से बाहर किया जाना भी था. ज्योति बाबू ने ज्यादा ही भद्र मानुष बनने के फेर में और ज्यादा ही बंगाली मानुष बनने के दिखावे में इंग्लिश को प्राथमिक कक्षाओं से बाहर कर दिया, लेकिन उन के घर के बच्चे कौन्वैंट स्कूलों में पढ़ते रहे. यही नहीं, उस जमाने के भद्र बंगाली वर्ग ने अपने बच्चों को इंग्लिश स्कूलों में ही भेजा.

ऐसे में भला इंग्लिश का प्रभुत्व कायम नहीं होगा तो क्या होगा? जो लोग इंग्लिश के प्रभावशाली होने का रोना रोते हैं, वे इस बात को भूल जाते हैं कि जैसे ही हिंदुस्तान में किसी की हैसियत बेहतर होती है या वह हैसियत को बेहतर बनाने की कोशिश करता है तो उस कोशिश की प्राथमिकता में इंग्लिश भाषा भी शामिल होती है.

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हीनताबोध

इंग्लिश न बोल पाना सौ फीसदी हीनताबोध का प्रतीक है. हिंदुस्तान में चाहे कोईर् देशभक्ति की जितनी ही बातें क्यों न करता हो, अपनी संस्कृति और प्रादेशिकता के प्रति चाहे जितना ही गुमान न क्यों रखता हो, अगर उसे इंग्लिश नहीं आती, अगर वह सार्वजनिक तौर पर इंग्लिश में संवाद नहीं कर पाता, तो इस के लिए उस में हमेशा हीनताबोध बना रहता है.

पिछले दिनों मुंबई में फिल्मी दुनिया में प्रवेश पाने के लिए संघर्ष कर रहे तमाम लोगों से मुलाकात हुई. मैं करीब 7 लोगों के घर किसी न किसी वजह से गया और उन के संघर्ष की कहानी सुनने के दौरान मुझे 7 में से 6 लोगों के घरों के सामान में जो एक चीज बिना कोशिश किए अलग से चमकती दिखी, वह थी इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स की एक बड़ी मशहूर किताब, ‘रैपिडेक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स’.

इस किताब की कहानी भी भारत में इंग्लिश के प्रति ललक की एक मुकम्मल गाथा है. राजधानी दिल्ली से 70 के दशक में प्रकाशित यह किताब देश में सब से ज्यादा बिकने वाली कुछ गिनीचुनी किताबों में से एक है. कुछ सालों पहले इस किताब के प्रकाशक से मेरी फोन पर बात हुई थी तो उन का कहना था, ‘रैपिडैक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स की अलगअलग भारतीय भाषाओं में कोई

2 करोड़ के आसपास प्रतियां बिक चुकी हैं.’ लेकिन इस दावे से भी बड़ा और चौंकाने वाला दावा राजधानी दिल्ली में लक्ष्मीनगर स्थित एक न्यूज एजेंसी के मालिक का है, ‘हम ने अगर हजार ओरिजिनल रैपिडैक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स की किताबें बेची होंगी तो 10 हजार से ज्यादा इस की डुप्लीकेट बेची होंगी.’

कहने का मतलब यह कि रैपिडैक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स नामक किताब न सिर्फ बड़े पैमाने पर बिकी बल्कि इस की नकल कर के चोरी से छापी गई किताब भी खूब बिकी. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में इंग्लिश के प्रति किस कदर मोह है या इंग्लिश न जानने को ले कर लोगों में कितना हीनताबोध है.

एक अनुमान के मुताबिक, देश में

50 हजार से ज्यादा इंग्लिश सिखाने वाले इंस्टिट्यूट मौजूद हैं, जहां से हर महीने कोईर् 6 लाख के आसपास लोग इंग्लिश सीख कर बाहर निकलते हैं. हालांकि, यह अलग बात है कि सीआईआई के एक सर्वे के मुताबिक इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स करने वालों में से एक फीसदी भी ऐसे नहीं होते जिन्हें कोर्स कर के इंग्लिश आ जाए. इंग्लिश के प्रति जनून का अर्थशास्त्र इतना मजबूत है कि शायद ही कभी किसी भाषा के लिए उस का सौवां हिस्सा भी वजूद में आया हो.

देश में इंग्लिश सीखनेसिखाने की अर्थव्यवस्था का सालाना टर्नओवर 6,000 करोड़ रुपए से ऊपर का है, जो किसी अच्छेखासे उद्योग का टर्नओवर लगता है.

नीतिनिर्धारक जिम्मेदार

सवाल है, यह सब क्यों है? क्या सिर्फ लोगों का अनजाना और गैरसमझा जनूनभर ही इस के लिए दोषी है? नहीं? इस के लिए सरकार के साथसाथ देश का नीति निर्धारित करने वाला तबका भी जिम्मेदार है. इंटरनैट में विकीपीडिया के तहत मिलने वाली सामग्री के लिए तो इंग्लिश को मजबूरी माना जा सकता है, लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि भारत की संसद, जो हर साल 30 से ज्यादा महत्त्वपूर्ण विषयों पर गंभीर ब्योरे वाली रिपोर्टें तैयार करवाती है, उन में से कोई भी रिपोर्ट जो संसद में पेश हो कर सांसदों में बंटनी न हो, हिंदी में या दूसरी भारतीय भाषाओं में नहीं तैयार होती.

सरकार और प्रशासनिक तबका किस तरह इंग्लिश की प्राणप्रतिष्ठा करता है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दूसरे क्षेत्रों को तो छोडि़ए. आजादी के बाद से आज तक शिक्षा के क्षेत्र में किसी भी समिति ने अपनी बुनियादी रिपोर्ट हिंदी या किसी दूसरी भाषा में पेश नहीं की. चाहे उच्च शिक्षा के क्षेत्र के लिए यूजीसी द्वारा बनाई गई समितियां रही हों, चाहे माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम को समयसमय पर बेहतर बनाने की कवायद के तहत तैयार की गई रिपोर्टें हों, सब की सब रिपोर्टें इंग्लिश में ही तैयार होती हैं. कोईर् भी रिपोर्ट हिंदी में तैयार नहीं होती.

आप को यह जान कर हैरानी होगी कि आजादी के बाद से बनी ज्यादातर सरकारों ने भले गांधी नाम के संकटमोचन का हमेशा जाप किया हो, लेकिन 1985 तक गांधीजी का लिखा समूचा वांग्मय हिंदी में उपलब्ध नहीं था. आज भी आप राजधानी दिल्ली स्थित हिंदी दर्शन समिति और गांधी पुस्तकालय को फोन करिए, आप को गांधीजी के दिए सारे भाषण हिंदी में उपलब्ध नहीं मिलेंगे.

अनजानी साजिश

दरअसल, यह साजिश है. चाहे जानबूझ कर की जाती रही हो या एक परंपरा के तहत होती चली आ रही हो कि सरकार चाहे केंद्र की हो, चाहे राज्य की हो, चाहे क्षेत्रीय अस्मिता की पुरजोर वकालत करने वाली हो या वामपंथी अथवा समाजवादी हो, जब कोई भी राजनीतिक दल या संघ सत्ता में आता है तो वह जाने या अनजाने इंग्लिश को बढ़ावा देता है. शायद इस के पीछे वही हीनताबोध मौजूद है जो हीनताबोध भारत में जातिवाद के संबंध में है.

आप क्रांतिकारी से क्रांतिकारी दलित नेता या विचारक को लीजिए. जैसे ही वह ताकतवर हो जाता है और प्रभुत्ववर्ग के समकक्ष हो जाता है तो ब्राह्मणवाद का उस का विरोध भले मुंहजबानी तब भी बना रहता हो मगर व्यवहार में वह ब्राह्मणवाद का हिस्सा बन जाता है. यह इंग्लिश की ताकत का नमूना है जैसे विरोध और संघर्ष का परचम उठा कर ब्राह्मणवाद को नेस्तनाबूद करने की कसम खाने वाले प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उस के पैरोकार बन जाते हैं, उसी तरह इंग्लिश का विरोध करने वाले ताकत में आते ही इंग्लिश के प्रति अपने मोह को त्याग नहीं पाते.

शायद इंग्लिश के प्रति इस मोह का बड़ा कारण यह भी है कि पिछले लगभग 350 सालों से तमाम मलाई इंग्लिश के खाते में ही मौजूद रही है. सत्ता, सम्मान सबकुछ इंग्लिश के हिस्से में रहा है. इंग्लिश को बिना कहे प्रचारितप्रसारित और उसे मजबूत करने में सरकार का जबरदस्त योगदान है. 1947 में संविधान सभा में जब इंग्लिश को ले कर विचारविमर्श हो रहा था और महात्मा गांधी जिद कर रहे थे कि देश की सब से व्यापक संपर्क भाषा होने के नाते हिंदी को राजभाषा बनाया जाए तो न नेहरू उन के साथ थे और न ही अंबेडकर.

अंबेडकर ने तो बेहद दूरदर्शी बयान दिया था. उन्होंने कहा था, ‘इंग्लिश के नाम पर पूरे देश में एक सहमति बन सकती है लेकिन हिंदी या किसी दूसरी राष्ट्रीय भाषा पर इस देश में एक सहमति कभी नहीं बन सकती.’

60 और 70 के दशक में अंबेडकर की यह बात द्रविड़ आंदोलन के दौरान बेहद स्पष्ट दिखी, जब सैकड़ों ट्रेनों को आग लगाने वाले, करोड़ों की संपत्ति फूंकने वाले और हजारों की जान ले लेने वाले तमिल भाषा आंदोलन में साफसाफ कह रहे थे कि उन पर हिंदी थोपी गई तो वे अपने को हिंदुस्तान से अलग कर लेंगे.

यही वजह है कि जिस इंग्लिश को थोड़े दिनों के लिए राजभाषा इसलिए बनाया गया था क्योंकि कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक उसे संपर्क भाषा के रूप में देखा गया था, वह आज भी सत्तासीन है. इंग्लिश आज तमाम भारतीय भाषाओं की छाती पर विराजमान है और इस देश में इंग्लिश का महत्त्व कभी कम नहीं हो सकता.

इंग्लिश के पक्ष में बड़ी होशियारी से सत्ता मासूम तर्क देती है. मसलन, संविधान तैयार होने के दौरान इस बात को पुरजोर ढंग से उठाया गया कि इंग्लिश देश की अकेली सब से बड़ी संपर्क भाषा है. जबकि इंग्लिश की वास्तविकता नैशनल रीडरशिप सर्वे के मौजूदा आंकड़ों से ही पता चल जाती है. आज जबकि देश में 75 फीसदी से ऊपर साक्षरता है तब भी इंग्लिश भाषा के तमाम पत्रपत्रिकाओं की मौजूदगी सिर्फ 5 फीसदी है और पाठक संख्या के आईने में इंग्लिश का प्रभाव उस की महज 2.5 फीसदी तक की हिस्सेदारी तक सिमटा है. इस से उस झूठ का आसानी से परदाफाश हो जाता है जो जानेअनजाने सरकारें बोलती रही हैं या पेश करती रही हैं कि इंग्लिश देश की सब से बड़ी संपर्क भाषा है.

इंग्लिश के उलट, देश में 56 फीसदी लोग विशुद्ध रूप से हिंदी में संवाद कर लेते हैं, लिखपढ़ लेते हैं और धाराप्रवाह रूप से बोल लेते हैं. जबकि देश में

90 फीसदी लोग हिंदी में सहजता के साथ संवाद कर लेते हैं, भले उन का लहजा कैसा भी हो या भले वे लिखित में ऐसा न कर पाएं. जहां तक हिंदी को समझ लेने की क्षमता है, तो न सिर्फभारत देश में, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप में 80 फीसदी लोग बहुत आसानी से हिंदी समझ लेते हैं.

इस के बावजूद, सरकार हिंदी के बजाय इंग्लिश को बढ़ावा देती है. सरकार के लगभग 100 फीसदी नीतिनियामक दस्तावेज इंग्लिश में तैयार होते हैं. देश का भविष्य तय करने वाली तमाम बहसों, बैठकों में इंग्लिश के जरिए ही संवाद होता है. यह विडंबना नहीं है, बल्कि इंग्लिश को हमेशाहमेशा के लिए महारानी बनाए रखने का सरकार का षड्यंत्र भी है. दरअसल, मुट्ठीभर सत्ता वर्ग नहीं चाहता कि उस की इस ताकत पर कोई और हिस्सेदारी करे. इसीलिए, भले रस्मी तौर पर हिंदी या दूसरी भारतीय भाषाओं के पक्ष में आंसू बहाए जाएं लेकिन वास्तविकता यह है कि हरम में महारानी का दर्जा इंग्लिश को ही हासिल है.

इंग्लिश रोज-भाग 1: विधि के गार्डन में लगे फूलों का क्या मतलब था?

वह आज भी वहीं खड़ी है. जैसे वक्त थम गया है. 10 वर्ष कैसे बीत जाते हैं…? वही गांव, वही शहर, वही लोग…यहां तक कि फूल और पत्तियां तक नहीं बदले. ट्यूलिप्स, सफेद डेजी, जरेनियम, लाल और पीले गुलाब सभी उस की तरफ ठीक वैसे ही देखते हैं जैसे उस की निगाह को पहचानते हों. चौश्चर काउंटी के एक छोटे से गांव नैनटविच तक सिमट कर रह गई उस की जिंदगी. अपनी आरामकुरसी पर बैठ वह उन फूलों का पूरा जीवन अपनी आंखों से जी लेती है. वसंत से पतझड़ तक पूरी यात्रा. हर ऋतु के साथ उस के चेहरे के भाव भी बदल जाते हैं, कभी उदासी, कभी मुसकराहट. उदासी अपने प्यार को खोने की, मुसकराहट उस के साथ समय व्यतीत करने की. उसे पूरी तरह से यकीन हो गया था कि सभी के जीवन का लेखाजोखा प्रकृति के हाथ में ही है. समय के साथसाथ वह सब के जीवन की गुत्थियां सुलझाती जाती है. वह संतुष्ट थी. बेशक, प्रकृति ने उसे, क्वान्टिटी औफ लाइफ न दी हो किंतु क्वालिटी औफ लाइफ तो दी ही थी, जिस के हर लमहे का आनंद वह जीवनभर उठा सकेगी.

यह भी तो संयोग की ही बात थी, तलाक के बाद जब वह बुरे वक्त से निकल रही थी, उस की बड़ी बहन ने उसे छुट्टियों में लंदन बुला लिया था. उस की दुखदाई यादों से दूर नए वातावरण में, जहां उस का मन दूसरी ओर चला जाए. 2 महीने बाद लंदन से वापसी के वक्त हवाईजहाज में उस के साथ वाली कुरसी पर बैठे जौन से उस की मुलाकात हुई. बातोंबातों में जौन ने बताया कि रिटायरमैंट के बाद वे भारत घूमने जा रहे हैं. वहां उन का बचपन गुजरा था. उन के पिता ब्रिटिश आर्मी में थे. 10 वर्ष पहले उन की पत्नी का देहांत हो गया. तीनों बच्चे शादीशुदा हैं. अब उन के पास समय ही समय है. भारत से उन का आत्मीय संबंध है. मरने से पहले वे अपना जन्मस्थान देखना चाहते हैं, यह उन की हार्दिक इच्छा है. उन्होंने फिर उस से पूछा, ‘‘और तुम?’’

‘‘मैं भारत में ही रहती हूं. छुट्टियों में लंदन आई थी.’’

‘‘मैं भारत घूमना चाहता हूं. अगर किसी गाइड का प्रबंध हो जाए तो मैं आप का आभारी रहूंगा,’’ जौन ने निवेदन करते कहा.

‘‘भाइयों से पूछ कर फोन कर दूंगी,’’ विधि ने आश्वासन दिया. बातोंबातों में 8 घंटे का सफर न जाने कैसे बीत गया. एकदूसरे से विदा लेते समय दोनों ने टैलीफोन नंबर का आदानप्रदान किया. दूसरे दिन अचानक जौन सीधे विधि के घर पहुंच गए. 6 फुट लंबी देह, कायदे से पहनी गई विदेशी वेशभूषा, काला ब्लेजर और दर्पण से चमकते जूते पहने अंगरेज को देख कर सभी चकित रह गए. विधि ने भाइयों से उस का परिचय करवाते कहा, ‘‘भैया, ये जौन हैं, जिन्हें भारत में घूमने के लिए गाइड चाहिए.’’

‘‘गाइड? गाइड तो कोई है नहीं ध्यान में.’’

‘‘विधि, तुम क्यों नहीं चल पड़ती?’’ जौन ने सुझाव दिया. प्रश्न बहुत कठिन था. विधि सोच में पड़ गई. इतने में विधि का छोटा भाई सन्नी बोला, ‘‘हांहां, दीदी, हर्ज की क्या बात है.’’

‘‘थैंक्यू सन्नी, वंडरफुल आइडिया. विधि से अधिक बुद्धिमान गाइड कहां मिल सकता है,’’ जौन ने कहा. 2 सप्ताह तक दक्षिण भारत के सभी पर्यटन स्थलों को देखने के बाद दोनों दिल्ली पहुंचे. उस के एक सप्ताह बाद जौन की वापसी थी. जाने से पहले तकरीबन रोज मुलाकात हो जाती. किसी कारणवश जौन की विधि से बात न हो पाती तो वह अधीर हो उठता. उस की बहुमुखी प्रतिभा पर जौन मरमिटा था. वह गुणवान, स्वाभिमानी, साहसी और खरा सोना थी. विधि भी जौन के रंगीले, सजीले, जिंदादिल व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई. उस की उम्र के बारे में सोच कर रह जाती. जौन 60 वर्ष पार कर चुका था. विधि ने अभी 35 वर्ष ही पूरे किए थे. लंदन लौटने से 2 दिन पहले, शाम को टहलतेटहलते भरे बाजार में घुटनों के बल बैठ कर जौन ने अपने मन की बात विधि से कह डाली, ‘‘विधि, जब से तुम से मिला हूं, मेरा चैन खो गया है. न जाने तुम में ऐसा कौन सा आकर्षण है कि मैं इस उम्र में भी बरबस तुम्हारी ओर खिंचा आया हूं.’’ इस के बाद जौन ने विधि की ओर अंगूठी बढ़ाते हुए प्रस्ताव रखा, ‘‘विधि, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

विधि निशब्द और स्तब्ध सी रह गई. यह तो उस ने कभी नहीं सोचा था. कहते हैं न, जो कभी खयालों में हमें छू कर भी नहीं गुजरता, वो, पल में सामने आ खड़ा होता है. कुछ पल ठहर कर विधि ने एक ही सांस में कह डाला, ‘‘नहींनहीं, यह नहीं हो सकता. हम एकदूसरे के बारे में जानते ही कितना हैं, और तुम जानते भी हो कि तुम क्या कह रहे हो?’’ ‘‘हांहां, भली प्रकार से जानता हूं, क्या कह रहा हूं. तुम बताओ, बात क्या है? मैं तुम्हारे संग जीवन बिताना चाहता हूं.’’ विधि चुप रही.

जौन ने परिस्थिति को भांपते कहा, ‘‘यू टेक योर टाइम, कोई जल्दी नहीं है.’’ 2 दिनों बाद जौन तो चला गया किंतु उस के इस दुर्लभ प्रश्न से विधि दुविधा में थी. मन में उठते तरहतरह के सवालों से जूझती रही, ‘कब तक रहेगी भाईभाभियों की छत्रछाया में? तलाकशुदा की तख्ती के साथ क्या समाज तुझे चैन से जीने देगा? कौन होगा तेरे दुखसुख का साथी? क्या होगा तेरा अस्तित्व? क्या उत्तर देगी जब लोग पूछेंगे इतने बूढ़े से शादी की है? कोई और नहीं मिला क्या?’ इन्हीं उलझनों में समय निकलता गया. समय थोड़े ही ठहर पाया है किसी के लिए. दोनों की कभीकभी फोन पर बात हो जाती थी एक दोस्त की तरह. कालेज में भी खोईखोई रहती. एक दिन उस की सहेली रेणु ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘विधि, जौन के जाने के बाद तू तो गुमसुम ही हो गई. बात क्या है?’’

‘‘जाने से पहले जौन ने मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था.’’

‘‘पगली…बात तो गंभीर है पर गौर करने वाली है. भारतीय पुरुषों की मनोवृत्ति तो तू जान ही चुकी है. अगर यहां कोई मिला तो उम्रभर उस के एहसानों के नीचे दबी रहेगी. उस के बच्चे भी तुझे स्वीकार नहीं करेंगे.

ATM : 1 जुलाई से बदल गए हैं नियम

पैट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों के बीच सरकार ने जनता को नई सौगात तब दी है जब देश में कोरोना पीड़ितों की संख्या 6 लाख के करीब है और हजारों लोगों की मौतें हो चुकी हैं.

इस समय जहां पूरे देश में लौकडाउन की सी स्थिति है, करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं, लोगों को रूपएपैसों की सख्त जरूरत है, मगर सरकार ने लोगों को राहत देने की बजाए उन की जेबें काटने का नया फरमान जारी कर दिया है.

आप को याद होगा कि जब देश कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आया था तब एटीएम से पैसे निकालने के नियमों में कुछ बदलाव किए गए थे.

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इन नियमों के तहत कोई भी किसी भी एटीएम से चाहे जितनी बार पैसे निकाल सकता था और उसे कोई चार्ज भी नहीं लगता था, मगर अब   नए नियमों के तहत ऐसा नहीं होगा.

केंद्र सरकार ने मार्च महीने में कोरोना वायरस के चलते किसी भी एटीएम से पैसे निकालने की छूट दी थी, जो 3 महीनों के लिए थी, जिस की मियाद 30 जून को खत्म हो गई है.

लेकिन अब 30 जून के बाद यानी 1 जुलाई से यह राहत खत्म हो गई है और नियमों के मुताबिक दूसरे बैंकों के एटीएम से कुछ चुनिंदा ट्रांजैक्शन करने की ही इजाजत होगी.

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नए नियम क्या हैं

यों तो हर बैंक के एटीएम से पैसे निकासी को ले कर अलग अलग नियम हैं. फिर भी अगर भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम के नियमों को देखें तो मैट्रो शहरों में 8 फ्री कैश विद्ड्रावल की इजाजत होती है. इस में 5 ट्रांजैक्शन भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम से की जा सकती है, जबकि 3 ट्रांजैक्शन अन्य किसी बैंक के एटीएम से कर सकते हैं. 8 ट्रांजैक्शन के बाद ग्राहक जितनी भी ट्रांजैक्शन करता है, उस पर अतिरिक्त चार्ज लगता है.

अगर आप नान मैट्रो शहर में हैं…

बात अगर नान मैट्रो शहरों की करें तो वहां पर यह सीमा 10 होती है. यानी 5 बार आप भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम से पैसे निकाल सकते हैं, जबकि 5 बार किसी दूसरे बैंक के एटीएम से पैसे निकाले जा सकते हैं.

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अगर आप सीमा से अधिक ट्रांजैक्शन करते हैं तो पैसे निकालने की सूरत में आप को ₹20 चार्ज के साथ जीएसटी भी देना होगा, जबकि अगर आप सिर्फ बैलेंस चैक करते हैं या फिर पैसे निकालने के अलावा कोई दूसरी ट्रांजैक्शन करते हैं तो आप को ₹8 और जीएसटी देना होगा.

न्यूनतम राशि का रखें ध्यान

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसी के साथसाथ न्यूनतम बैलेंस रखने से भी राहत दी थी. 3 महीनों तक कोई भी बैंक न्यूनतम बैलेंस न रहने की स्थिति में ग्राहक से पैनाल्टी नहीं वसूल सकता था. अब 30 जून को इस की मियाद भी खत्म हो गई है और 1 जुलाई से मिनिमम बैलेंस न होने की सूरत में ग्राहकों से पैनाल्टी भी वसूला जाएगा.

अक्षय कुमार से लेकर आलिया भट्ट तक, Disney+Hotstar पर ऑनलाइन रिलीज होंगी इन एक्टर्स की नई फिल्में

कोरोना महामारी और लॉक डाउन की वजह से फिल्म इंडस्ट्री सबसे अधिक बेहाल है.17 मार्च से फिल्मों,टीवी सीरियल और वेब सीरीज की शूटिंग के साथ ही पूरे देश के मल्टीप्लैक्स व सिंगल थिएटर भी बंद है,जिसके चलते पिछले साढ़े तीन माह से एक भी फिल्म सिनेमाघरों में प्रदर्शित नही हो पायी. अब टीवी सीरियल की शूटिंग शुरू हो चुकी है,तो वहीं जल्द फिल्म की शूटिंग शुरू हो जाएगी. मगर अभी सिनेमाघरों के खुलने को लेकर अनिष्चितता का माहौल बना हुआ है. ऐसे में कई फिल्म निर्माता अपनी प्रदर्शन के लिए तैयार फिल्मों को अब‘ओटीटी प्लेटफार्म’यानीकि‘जी 5’, ‘नेटफ्लिक्स’और ‘हॉट स्टार डिजनी’पर लेकर आ रहे हैं.इस कठिन समय में उनकी नजर में उनके पास यही एकमात्र विकल्प है. इस तरह वह खुद को आर्थिक संकट से उबारने के साथ ही दर्शकों का मनोरंजन भी करना चाहते हैं. फिल्म निर्माताओं की तरफ से लिए गए इसी निर्णय के चलते पिछले दिनों ‘‘घूमकेतु’’और ‘‘गुलाबो सिताबो’’जैसी फिल्में ‘ओटीटी प्लेटफार्म’पर आ चुकी हैं.अब ‘हॉट स्टार डिज्नी’ने ‘भुज प्राइड’,‘दिल बेचारा’, ‘लूटकेस’, ‘सड़क 2’,‘खुदा हाफिज’सहित सात फिल्मों को अपने प्लेटफार्म पर रिलीज करने की घोषणा की है.

जी हॉ भारत में शुरूआत के साथ ही डिजनी हॉटस्टार ने करोड़ों भारतीयों को अपनी तरफ आकर्षित कर लिया है और अब डिज्नी हॉटस्टार ने मल्टीप्लैक्स के साथ फिल्में देखने के तरीके में क्रांति लाने के लिए कदम उठा रहा है. देश अभी भी कोरोना महामारी से जूझ रहा है,ऐसे कठिन वक्त में डिज्नी हॅाटस्टार लोगों के घर घर तक सिनेमा पहुंचाने की मुहीम के तहत अब 24 जुलाई को ‘दिल बेचारा’के प्रदर्शन के साथ ही सात बड़ी फिल्मे प्रसारित करने का निर्णय लिया है. यह वह फिल्में हैं,जिनमें कई अक्षय कुमार,अजय देवगन,संजय दत्त, आलिया भट्ट,विद्युत जामवाल ,कियारा आडवाणी, देवगन,सोनाक्षी सिन्हा, स्वर्गीय सुशांत सिंह राजपूत, संजय सांघी,सैफ अली खान,आदित्य रॉय कपूर,पूजा भट्ट,अभिषेक बच्चन,रसिका दुग्गल, कुणाल केमु सहित कई दिग्गज कलाकारों ने अभिनय किया है. देश भर के सिनेमाप्रेमी अपने पसंदीदा सितारों को देखने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. ऐसे में डिज्नी़ हॉटस्टार’के इस कदम का बडा प्रभाव पड़ने के आसार नजर आ रहे हें.इस निर्णय की घोषणा करने के लिए ‘हॉट स्टार डिजनी’की तरफ से कल एक वच्र्युअल प्रेस कॉफ्रेंस का आयोजन किया गया, जिसमें अक्षय कुमार,अजय देवगन,आलिया भट्ट आदि ने भी हिस्सा लिया.

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डिज्नी हॉट स्टार का दावा है कि वह अक्षय कुमार और अजय देवगन जैसे सुपरस्टार की प्रतीक्षित फिल्मों को दर्षकों के मोबाइल फोन से सीधे वितरित किए जाने को लेकर उत्साहित है.और वह एक नई कल्पना के साथ‘फस्ट डे फस्टषो’के तहत लोगों को अपने चहेते कलाकार की फिल्मों का मजा दिलाएगा.

‘‘द वाल्ट डिजनी कंपनी’’ तथा ‘‘स्टार और डिज्नी इंडिया’’के अध्यक्ष उदय शंकर ने कहा-‘‘डिजनी ़ हॉटस्टार में हम अप्रत्याशित रूप से अप्रत्याशित सीमाओं को आगे बढ़ाने में विश्वास करते हैं.कुछ वर्ष पहले हमने मोबाइल पर खेलों को लाइव दिखाकर कर लोगों को करीब लाने का दुस्साहसिक कदम उठाया था.हमारे इस कदम ने हमेशा के लिए भारत में लाइव खेलों के प्रसारण की दिशा ही बदल दी. आज जब हम डिज्नी़ हॉटस्टार मल्टीप्लेक्स लॉन्च कर रहे हैं,तो हम देश के करोड़ों लोगों तक सीधे सबसे बड़ी बॉलीवुड फिल्में लाकर एक क्रांतिकारी बदलाव लाने की कगार पर हैं. हम सर्वश्रेष्ठ निर्देशकों और सबसे प्रतिभाशाली अभिनेताओं के साथ साझेदारी करके खुश हैं.’’

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इस पहल और समग्र फिल्म उद्योग पर इसके प्रभाव की चर्चा करते हुए उदय षंकर ने कहा- ‘‘थिएटर में सिनेमा देखना एक विशेष अनुभव है.इसलिए वह हमेशा मौजूद रहेंगे और पनपेगें.लेकिन मौजूदा सिनेमाघरों की संख्या से फिल्म उद्योग की क्षमता को पूरा नहीं किया जा सकता है. हमारी यह पहल नाटकीय रूप से फिल्मों के निर्माण की संख्या में वृद्धि करेगी, जिससे फिल्म-प्रेमियों को अधिक फिल्मों का आनंद मिलेगा और रचनात्मक समुदाय को अधिक फिल्में बनाने की जरूरत होगी. हमारा दृढ़ विश्वास है कि यह भारत में बनने वाली अधिक और विभिन्न प्रकार की फिल्मों के लिए एक विशाल गति उत्पन्न करेगा.इससे सभी रचनात्मक व प्रतिभाशाली लोगों को कुछ सुनहरा काम करने का अवसर मिलेगा. यह हम सभी के लिए एक जीत है.’’

फिल्म‘‘लक्ष्मी बम’’के कलाकार अक्षय कुमार ने इस मौके पर कहा-“हम डिज्नी़ हॉटस्टार वीआईपी पर अपनी फिल्म ‘लक्ष्मी बम’को देश भर में लाखों प्रशंसकों के लिए उपलब्ध कराने के लिए उत्साहित और खुश हैं!यह फिल्म मुझे बहुत प्रिय है.क्योंकि इसमें मैने पहली बार कुछ अनोखा काम किया है.लोग मुझे साड़ी पहने हुए देख सकेंगे.यह फिल्म हॉरर,हास्य और सामाजिक संदेष का एक मनोरंजक मिश्रण है.मुझे यकीन है कि यह फिल्म इन कोशिशों के समय में सभी के लिए खुशी और उम्मीद लाएगी..”

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‘‘भुजः द प्राइड ऑफ इंडिया’’में अभिनय करने वाले के कलाकार अजय देवगन ने कहा-‘‘सौ फिल्मों में अभिनय करने बाद मेरी समझ में आ गया कि थिएटर/सिनेमाघर हमारी फिल्मों के लिए हैं.पर दो चीजें अचानक और लगभग एक साथ हुईं.कोरोना महामारी ने हमारी आराम दायक दुनिया को तहस-नहस कर दिया.तो वहीं ‘ओटीटी प्लेटफार्म’भी एक नई घटना है,जो कि इस संकट की घड़ी में घर बैठे लोगों तक मनोरंजन पहुॅचा रहा है. मेरी राय में भविष्य में सिनेमाघर और ओटीटी समानांतर रूप से आगे बढ़ेंगे.दोनों विकल्पों की अपनी- अपनी ताकत है.‘भुजः प्राइड ऑफ इंडिया’को ‘डिज्नी़ हॉटस्टार वीआईपी’के रूप में एक ऐसा मंच मिला है,जिससे उन फिल्मों के प्रदर्षन की उम्मीदें जगेंगी, जो सिनेमाघर तक नहीं पहुंच पाती है.’’

फिल्म‘‘सड़क 2’’में नजर आने वाली अदाकारा आलिया भट्ट ने कहा-‘‘यह फिल्म मेरे दिल के बहुत करीब है.इस फिल्म ने मुझे मेरे पिता महेष भट्ट के निर्देशन में काम करने का अवसर प्रदान किया. इसमें अद्भुत कलाकारों के साथ एक बहुत ही नया लेकिन प्रासंगिक भावनात्मक जुड़ाव है. आदित्य रौय कपूर,संजय दत्त और बहन पूजा भट्ट के साथ काम करना जादुई अनुभव रहा. हम सभी इस वक्त मुश्किल समय से गुजर रहे हैं. ऐसे वक्त में हम सभी कुछ नया करने का प्रयास कर रहे हैं. मेरे पिता हमेशा कहते हैं कि एक फिल्म निर्माता का गंतव्य दर्शकों का दिल होता है.डिज्नी़ हॉटस्टार वीआईपी हमें पूरे देश में अपने दर्शकों से जुड़ने का अवसर देता है.”

‘‘द बिग बुल’’में अभिनय करनेवाले अभिषेक बच्चन ने कहा- “किसी भी फिल्म का शानदार कहानी के माध्यम से किसी का मनोरंजन करने में सक्षम होने से बढ़कर कोई खुशी नही हो सकती.यही काम फिल्म ‘द बिग बुल’करेगी.मुझे खुशी है कि फिल्म डिज्नी़ हॉटस्टार वीआईपी जैसे  मंच पर यह आएगी और लोग घर बैठे ‘ऑनलाइन‘ का आनंद ले पाएंगें.’’

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24 जुलाई से डिज्नी  हॉटस्टार वीआईपी पर यह फिल्में आएंगीः

1-लक्ष्मी बमः अक्षय कुमार और कियारा आडवाणी अभिनीत इस हॉरर व हास्य फिल्म के निर्देषक राघव लॉरेंस हैं,जबकि इसका निर्माण ‘केप ऑफ गुड फिल्म्स’के साथ मिलकर, तुषार कपूर, शबीना खान और फॉक्स स्टूडियो ने किया है.जी हॉ यह एक हॉरर हास्य फिल्म है, जिसमें अक्षय कुमार एक महिला के किरदार में हैं. सूत्र बताते हैं कि फिल्म की कहानी एक भूत की है,जिसे बदला लेना है.

2-भुज- द प्राइड ऑफ इंडियाः अजय देवगन,संजय दत्त,सोनाक्षी सिन्हा,अमन वर्क व षरद केलकर के अभिनय से सजी युद्ध-प्रधान यह फिल्म 1971 के भारत पाक युद्ध के  सत्य घटना क्रम पर आधारित है. फिल्म के लेखक व निर्देषक अभिषेक दुधैया तथा निर्माता टी-सीरीज और सिलेक्ट मीडिया होल्डिंग्स एलएलपी के बैनर तले भूषण कुमार, गिन्नी खानूजा, वजीर सिंह और कुमार मंगत पाठक हैं.

इसमें अजय देवगन भुज एयरपोर्ट के इंचार्ज विजय कार्णिक के किरदार में हैं. इस युद्ध के दौरान स्क्वैड्रन लीडर विजय कार्णिक भुज एयरपोर्ट पर अपनी टीम के साथ मौजूद थे, और यह हवाईपट्टी तबाह हो गई थी. इस दौरान पाकिस्तान की तरफ से बमबारी की जा रही थी.एयरबेस पर विजय कार्णिक के साथ 50 एयरफोर्स और 60 डिफेंस सिक्यॉरेटी के लोग मौजूद थे. विजय कार्णिक और उनकी टीम ने इलाके की महिलाओं की मदद से हवाईपट्टी को फिर से तैयार किया था. जिससे भारतीय सेना के जवानों को लेकर जाने वाली फ्लाइट वहां आसानी से उतर सके.

3-सड़क 2:  यह फिल्म 1991 की सफलतम प्रेम कहानी प्रधान फिल्म‘‘सड़क’’का सिक्वअल है. जिसमें संजय दत्त, आलिया भट्ट, आदित्य रॉय कपूर,पूजा भट्ट,जिशु सेनगुप्ता, मकरंद देशपांडे, मोहन कपूर, गुलशन ग्रोवर, प्रियंका बोस और जॉन ने अभिनय किया है.फिल्म की कहानी रवि (संजय दत्त   )के डिप्रेशन को लेकर है.कहानी के अनुसार एक फर्जी गुरुजी का आश्रम है और रवि एक युवा लड़की को उस गुरुजी के चंगुल से छुड़ाते हैं. महेश भट्ट निर्देषित इस फिल्म का लेखन सुहृता सेनगुप्ता और महेश भट्ट ने किया है.जबकि इसके निर्माता मुकेष भट्ट हैं.

4-द बिग बुलःकुकी गुलाटी निर्देषित इस अपराध प्रधान फिल्म की कहानी उस इंसान की है, जिसने आम जनता को सपने बेचे.जी हां सूत्रों की माने तो फिल्म की कहानी स्टॉक ब्रोकर हर्षद मेहता की जिंदगी की सच्ची घटनाओं पर आधारित है. फिल्म में अभषिेक बच्चन ने हर्षद मेहता का किरदार निभाया है. इसमें उनकी जिंदगी के 10 साल (1980 -1990) के किस्सों का समावेश है.

इसमें अभिषेक बच्चन, इलियाना डिक्रूज, निकिता दत्ता, सोहम शाह, राम कपूर, सुप्रिया पाठक और सौरभ शुक्ला ने अभिनय किया है. इसका निर्माण अजय देवगन और आनंद पंडित,सह-निर्माता कुमार मंगत पाठक और विक्रांत शर्मा हैं.

5-दिल बेचाराः हॉलीवुड की सफल फिल्म ‘‘द फाल्ट इन अवर स्टार’’की हिंदी रीमेक फिल्म में  सुशांत सिंह राजपूत, संजना सांघी,सैफ अली खान, सास्वता चटर्जी,स्वस्तिका मुखर्जी और साहिल वैद ने अभिनय किया है.मुकेश छाबड़ा निर्देषित इस फिल्म का निर्माण फॉक्स स्टार स्टूडियो ने किया है.

6-खुदा हाफिजः वास्तविक घटनाओं से प्रेरित रोमांटिक,एक्शन व रोमांचक फिल्म में विद्युत जामवाल, अनु कपूर, शिवालेका ओबेरॉय, शिव पंडित और अहाना कुमरा के अहम किरदार हैं.फिल्म के लेखक व निर्देषक फारुख कबीर तथा निर्माता कुमार मंगत पाठक और अभिषेक पाठक (पैनोरमा स्टूडियो इंटरनेशनल) हैं.

7-लुटकेस: राजेश कृष्णन निर्देषित इस हास्य व रोमांचक  फिल्म में कुणाल केमू, रसिका दुगल, गजराज राव, रणवीर शौरी और विजय राज ने अभिनय किया है. इसका निर्माण भी फॉक्स स्टार स्टूडियोज और साक्षी फिल्म्स ने किया है.

डिजनी हॉटस्टार वीआईपी के मौजूदा ग्राहक इन ब्लॉकबस्टर फिल्मों का आनंद ले सकते हैं,जिसके लिए उन्हे उनकी मौजूदा सदस्यता के लिए अतिरिक्त कीमत नहीं देनी पड़ेगी.जो डिज्नी हाट स्टार के । ग्र्राहक नही है,वह महज 399 रूपए देकर ‘डिज्नी हॉटस्टार वीआईपी’की वार्षिक सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं.फिर वह पूरे विष्व के सभी बड़े सुपर हीरो की  हिंदी, तमिल और तेलुगु फिल्मों के साथ ही असीमित लाइव में बच्चों के पसंदीदा पात्रों का भी आनंद ले सकते है.

दिवंगत सुशांत सिंह राजपूत अभिनीत फिल्म‘‘दिल बेचारा’’ 24 जुलाई को डिजनी हॉटस्टार मल्टीप्लेक्स पर प्रसारित होने वाली पहली फिल्म होगी,जिसे स्व.सुशांत सिंह राजपूत के हिंदी सिनेमा में अमूल्य योगदान की सराहना करने के मकसद से दिखाया जाएगा.यह फिल्म डिज्नी हॉटस्टार के पर सभी ग्राहकों के साथ ही वह भी देख सकेंगे,जो कि ग्राहक नहीं है.

विवादः

विद्युत जामवाल और कुणाल केमु हुए नाराज

‘‘डिज्नी हॉट स्टार’’द्वारा सात फिल्मों को लेकर की गयी वच्यर्युअल प्रेस काफ्रेंस में हर फिल्म से जुड़े कलाकारों को बुलाया गया ,मगर ‘लुटकेस’के अभिनेता कुणाल केमू और ‘‘खुदा हाफिज’’के कलाकार विद्युत जामवाल को नहीं बुलाया गया.इससे यह दोेनो कलाकार काफी नाराज हैं और इन्होंने ट्वीट कर अपनी नाराजगी भी जाहिर कर दी.

विद्युत जामवाल ने फिल्म क्रिटिक तरण आदर्श के ट्वीट के रीट्वीट करते हुए लिखा-‘निश्चित रूप से एक बड़ी घोषणा.सात फिल्में रिलीज होने वाली हैं,लेकिन केवल 5 को रिप्रेजेंटेशन के लायक समझा गया. दो फिल्मों को न ही कोई सूचना मिली न ही कोई आमंत्रण मिला. लंबा रास्ता तय करना है.इसी तरह से चलता रहेगा.‘

जबकि कुणाल केमु ने ट्वी ट किया-‘‘इज्जत और प्यार मांगा नहीं कमाया जाता है.कोई न दे तो उससे हम छोटे नही होते.बस मैदान खेलने के लिए बराबर दे दो छलांग हम भी उंची लगा सकते हैं.’’

लॉकडाउन में अदा शर्मा ने किया नानी के साथ धमाकेदार डांस, देखें VIDEO

कोरोना Lockdown में इन दिनों सिनेमा जगत के सेलिब्रिटीज अपने एक्टिविटीज से अपनें फैन्स का न केवल मनोरंजन करते नजर आ रहें हैं बल्कि वह खुद को भी इसे बहानें व्यस्त रखनें का प्रयास करते नजर आ रहें हैं. यह फिल्म कलाकार लगातार अपनें डेली रूटीन से जुड़े अपनें वीडियों व तस्वीरेंशेयर कर रहें हैं. सिनेमा जगत से जुड़ी इन्हीं हस्तियों में शामिल एक्ट्रेस अदा शर्मा  आये दिन अपनें बोल्ड और सेक्सी तस्वीरों को शेयर कर अपनें फैन्स के दिलों पर बिजली गिराने का काम कर रहीं हैं.

अदा शर्मा  नें अपनें ऑफिसियल इन्स्टाग्राम एकाउंट पर एक साथ दो वीडियो शेयर किया है जिसमें वह अपनें नानी के साथ धमाकेदार स्टेप्स में डांस करती नजर आ रहीं हैं. इस वीडियो में अदा की नानी भी अदा शर्मा द्वारा किये जा रहे डांस स्टेप्स को फालो कर रहीं हैं. वीडियो को देख कर यह आसानी से अंदाज लगाया जा सकता है की अदा शर्मा की नानी अपने नतिनी के साथ खूब इंज्वाय कर रहीं हैं. वहीँ दूसरे वीडियो में वह नानी के साथ रैम्पवाक़ करती नजर आ रहीं हैं.


अदा शर्मा द्वारा शेयर किया गया यह वीडियो पहले से रिकार्ड किया गया है लेकिन अदा शर्मा नें इस अब यानी Lockdown में शेयर किया है. उन्होंने वीडियो पोस्ट के कैप्शन में लिखा है “उन सभी लोगों को टैग करें, जिन्हें आप लॉकडाउन खत्म होने के बाद मिलने का इंतजार कर रहे हैं. मेरी सूची में पहली मेरी नानी है दूसरे वीडियो में वह मुझे “फैशन वॉक” सिखा रही थीं”

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अदा शर्मा  नें इन दोनों थ्रोबैक वीडियो के अलावा अपनी नानी से लाइव वीडियो काल कर बात करने का वीडियो भी साझा किया है. जिसे उन्होंने अपने फोन से बात करते हुए अपनी मम्मी के फोन से रिकार्ड किया है. अदा नें इस पोस्ट के कैप्शन में लिखा है की “सत्यापित पाती के साथ पार्टी – पायलट एपीसोड. आप हमें पाती के साथ पार्टी के एपिसोड में कैसे देखना चाहेंगे?. चूँकि आप सभी मेरे नानी के साथ साझा किए गए वीडियो को पसंद करते हैं और अधिक वीडियो के लिए अनुरोध भी कर रहे हैं,

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वह लॉकडाउन के दौरान मेरे साथ नहीं है लेकिन मैं उससे रोज बात करती हूं. और मैंने सोचा कि मैं इनमें से कुछ चैट रिकॉर्ड करूंगी और इसे आप लोगों के साथ साझा करूंगी. मेरी माँ, नानी और मेरे बीच मेरी नानी सबसे टेक सैवी है … मैं स्क्रीन रिकॉर्ड को मैनेज नहीं कर सकी, इस लिए मैंने फोन से काल को रिकॉर्ड करने के लिए अपने मम्मी के फोन का इस्तेमाल किया क्यों की मेरे पास और कोई विकल्प नहीं रखा है.
इसके पहले भी अदा शर्मा नें अपनी बोल्ड और सेक्सी तस्वीरें शेयर करती रहीं हैं जिसपर उनके फैन्स के काफी रियक्शन मिलता रहा है. अदा ने हाल ही में अपने जो थ्रोबैक वीडियो शेयर किये हैं उस पर भी उनके फैन्स की काफी प्रतिक्रियाएं मिल चुकी हैं.

 

लॉकडाउन में फैंस को ऐसे एंटरटेन कर रही हैं मोनालिसा, Video हुआ वायरल

भोजपुरी सिनेमा में अपने बोल्डनेस और सेक्सी तस्वीरों को शेयर करनें के मामले में एक्ट्रेस मोंनालिसा का नाम सबसे ऊपर है. वह आये दिन अपनी सेक्सी और बोल्ड तस्वीरें अपनें सोशल मीडिया एकाउंट पर शेयर करती रहतीं हैं. लॉकडाउन के बीच हाल ही में शेयर की गई उनकी बोल्ड तस्वीरें खूब वायरल हुई थीं.
इसी कड़ी में मोनालिसा नें अपने इन्स्टाग्राम एकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह हॉट वर्कआउट करती हुई नजर आ रहीं हैं. इस वर्कआउट के दौरान बैकग्राउंड में म्यूजिक की धुन भी बज रही है जो माहौल को और भी हसीन बना रही हैं.

मोनालिसा द्वारा म्यूजिक पर किये जा रहे वर्कआउट को देख कर ऐसा लग रहा है जैसे वह वर्कआउट न करके डांस कर रहीं हों. इस वीडियो को अभी तक दो लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं और इस पर ढेर सारे कमेन्ट भी आ रहें हैं.

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When You Enjoy Doing Your #plank … Like Dance ??…. #goodmorning #world #workout #dance #beat #lovingit #havingfun

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लॉक डाउन के चलते जहाँ भोजपुरी जगत सन्नाटे में है वहीँ एक्ट्रेस मोनालिसा आये दिन अपने सेक्सी और हॉट फोटोज व वीडियो शेयर कर अपनें फैन्स को निराशा से बचाने का प्रयास कर रहीं हैं. जिसमें वह काफी हद तक सफल भी होती नजर आ रहीं है. क्यों की उनके द्वारा शेयर किये जानें वाले तस्वीरों और वीडियो पर फैन्स द्वारा मोनालिसा के खूबसूरती के कसीदे गढ़े जा रहें हैं.

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Chalo Phir Se Chalte Hain… ❤️?‍♀️ #throwback #travelgram #missing #lovely #happy #memories

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मोनालिसा भोजपुरी सिनेमा की उन अभिनेत्रियों में गिनी जाती हैं जिसनें भोजपुरी सिनेमा को बुलंदी पर ले जाने का काम किया है. वह भोजपुरी के सभी बड़े एक्टर्स  के साथकाम कर चुकी हैं मोनालिसा द्वारा फिल्मों में किये गए रोल को भोजपुरी बेल्ट में काफी सराहा जाता रहा है.

एक्ट्रेस मोनालिसा नें शादी कर लिया है और वह अपनें पति के साथ काफी खुश हैं. वह आये दिन अपनें पति के साथ खिंची गई तस्वीरें भी साझा करती रहतीं है. मोनालिसा नें बिग बॉस-10 में रहने के दौरान विक्रांत से ब्याह रचाया था. मोनालिसा और विक्रांत की यह यह शादी फ़िल्मी शादी नहीं थी बल्कि उन्होंने सचमुच की शादी की थी.

मोनालिसा ने वर्कआउट वाले वीडियो को शेयर करनें के पहले अपनें पति के साथ नाव में बैठे हुए खुबसूरत लोकेशन की तस्वीर साझा की थी जिसमें विक्रांत के साथ उनकी जोड़ी खूब जम रही थी. मोनालिसा छोटे पर्दे के साथ- साथ बांग्ला में भी एक्टिंग कर चुकी हैं. वह भोजपुरी की सबसे सफलतम हीरोइनों में शुमार हैं. उन्होंने भोजपुरी में कई हिट फ़िल्में दीं हैं.

कोरोनावायरस का शिकार हुईं ‘इश्कबाज’ की ये एक्ट्रेस, खुद किया खुलासा

अदिति गुप्ता का चेहरा टीवी इंजस्ट्री में जाना पहचाना है. अदिति अपनी एक्टिंग से कई लोगों को दीवाना बना चुकी हैं. ‘किस देश में है मेरा दिल’ सीरियल से सभी के घरों में राज करने वाली अदिति आज किसी पहचान कि मोहताज नहीं है.

इसके अलावा कबूल है सीरियल में भी अदिति को लोगों ने खूब पसंद किया था. एक इंटरव्यू के दौरान अदिति ने खुलासा किया है कि उनका कोरोना रिपोर्ट पॉजिटीव आया है. इन दिनों वह घर पर ही रहकर खुद की देखभाल कर रही हैं. उन्होंने खुद को एक कमरे में कोरेनटाइन किया हुआ है.

अदिति ने बताया कि जब मेरी स्मेलिंग सेंस खत्म हो दई तब मैंने खुद को कोरेनटाइन किया. करीब 7-8 दिन हो चुके है और तबसे मैं एक कमरे में ही रह रही हूं.

 

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Mood : Gin N Tonic ? Who is with me??

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अदिति ने कहा कि मुझे मेरी फैमली खूब सपोर्ट कर रही है. मेरे पति, मेरे मां-बाप और दोस्त सभी मेरा दूर से खूब ख्याल रख रहे हैं.

अगले 10 दिन तक मैं कोरेनटाइन रहूंगी मैं ठीक से खाना खा रही हूं और साथ में अपनी दवाइयां भी अच्छें से ले रही हूं.

मैं इतना कहना चाहती हूं कि ये स्थिति ऐसी है कि आप ज्यादा परेशान मत होइए. खुद का खूब ख्याल रखिए. इससे बेहतर उपाय और कुछ नहीं हो सकता है.

 

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A lil bit of filtration..once in awhile..wont harm anyone or would it?

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जब मुझे पहली बार पता चला तब मैं परेशान हो गई थी. लेकिन फिर मैंने पॉजिटीव सोचना शुरू किया इससे मैं अच्छा महसूस करने लगी. अब मैं खुश होकर अपना ख्याल रखती हूं क्योंकि यह सब बात आपको भी पता होना चाहिए कि आपको कैसे इससे ठीक होना है.

अदिति ने 2 साल पहले कबीर चोपड़ा से शादी रचाई थी. अदिति गुप्ता की शादी में दृष्टि धामी और भी कई मशहूर हस्तियां शामिल हुई थी.

 

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All Mine Mine Mine !! #Beat#Me#In#Latergram?

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फिलहाल सभी लोग अदिति के लिए दुआ कर रहे हैं कि अदिति जल्द ही ठीक हो जाए. उन्हें सोशल मीडिया पर लोग ठीक होने की गुहार लगा रहे हैं.

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