कानपुर के विकास दुबे की कहानी पूरी तरह से अपराधिक फिल्म की तरह है. जिसमें अपराधी पुलिस की साजिष से पैसा और पाॅवर हासिल करता है. राजनीति के जरीये इसको बचाने का काम करता है. उसके अपराध की एक छोटी लेकिन मजबूत दुनिया होती है. एक दिन वह उसी पुलिस से टकरा जाता है जिसने उसे इस मुकाम तक पहुुचाया होता है. कानपुर विकास का भले ही खात्मा हो जाये पर जब तक पुलिस और नेता अपराधियों को संरक्षण देते रहेगे विकास जैसे अपराधी फलते फूलते रहेगे. कानपुर देहात में रहने वाला अपराधी विकास दुबे चर्चा में तब आया जब 03 जुलाई की सुबह 3 बजे के करीब विकास दुबे और उसके साथियों ने पुलिस टीम पर हमला करके 8 पुलिसकर्मियो को गोली मार कर षहीद कर दिया. राहुल तिवारी नाम के एक शख्स ने विकास दुबे पर हत्या का केस दर्ज कराया था. जिसके बाद पुलिस की टीम विकास दुबे को पकडने उसके गांव जा रही थी. मामले की सूचना पाकर विकास दुबे और उसके लोगों ने पुलिस की टीम पर हमला बोल दिया.
पुलिस टीम के 7 लोग घायल है. षहीद पुलिसकर्मियों में सीओ देवेन्द्र मिश्रा, इंसपेक्टर महेष यादव, अनूप कुमार, नेबूलाल, सिपाही सुल्तान सिह, राहुल, जितेन्द्र और बबलू षामिल है. घटना में पुलिस ने अपराधी पक्ष के दो लोगों को मार गिराया. उत्तर प्रदेष के पुलिस प्रमुख हितेष चन्द्र अवस्थी और बडी संख्या में पुलिस बल मौके पर है. पुलिस ने चारो तरफ से घेराबंदी कर रखी है. उत्तर प्रदेष के इतिहास की यह सबसे बडी घटना है जहां एक सामान्य अपराधी के द्वारा पुलिस को इतनी बडी क्षति पहंुचाई गई है. घटना में पुलिस की लापरवाही और खामी दोनो साफतौर पर देखी जा सकती है. यह पुलिस के खामी ही है कि उम्रकैद का अपराधी लगातार अपराध करके आगे बढता रहा. पुलिस को अब उसका ख्याल आया जब वह पुलिस के लिये ही भ्रष्मासुर बन गया.
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पैसे और पहुंच का प्रभाव:
हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का वैसे तो कोई राजनीतिक इतिहास नहीं है लेकिन बसपा का समर्थन जरूर प्राप्त रहा है. बसपा शासन काल में विकास को खुला समर्थन मिला हुआ था. 2002 में बसपा सरकार के दौरान इसका सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चैबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में खौफ था. इस दौरान विकास दुबे ने जमीनों पर कई अवैध कब्जे किए. इसके अलावा जेल में रहते हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे ने शिवराजपुर से नगर पंचयात भी लड़ा था और जीता भी था. इतना ही नहीं बिकरू समेत आसपास के दस से ज्यादा गांवों में विकास की दहशत कायम है. जिसके चलते आलम यह रहा कि विकास जिसे समर्थन देते गांववाले उसे ही वोट देते थे. इसी वजह से इन गांवों में वोट पाने के लिए चुनाव के समय सपा, बसपा और भाजपा के भी कुछ नेता उससे संपर्क में रहते थे. दहशत के चलते विकास ने 15 वर्ष जिला पंचायत सदस्य पद पर कब्जा कर रखा है. पहले विकास खुद जिला पंचायत सदस्य रहे, फिर चचेरे भाई अनुराग दुबे को बनवाया और मौजूदा समय में विकास की पत्नी ऋचा घिमऊ से जिला पंचायत सदस्य हैं. कांशीराम नवादा, डिब्बा नेवादा नेवादा, कंजती, देवकली भीठी समेत दस गांवों में विकास के ही इशारे पर प्रधान चुने जाते थे. इन गांवों में कई बार प्रधान निर्विरोध निर्वाचित हुए, वहीं बिकरू में 15 वर्ष निर्विरोध ग्राम प्रधान चुना जाता रहा है.
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दंबगई और फिरौती का कारोबार:
विकास दुबे बहुजन समाज पार्टी में सक्रिय रहा और प्रधान से लेकर जिला पंचायत सदस्य के रूप में काम कर चुका है. विकास दुबे के अपराध और कारोबार उत्तर प्रदेश में कानपुर देहात से लेकर इलाहाबाद व गोरखपुर तक फैला है. वह कोरोबारियो तथा व्यापारी से जबरन वसूली के लिए कुख्यात है. विकास दुबे हिस्ट्रीशीटर है इसके खिलाफ 60 में से 50 से अधिक केस हत्या के प्रयास के चल रहे हैं. इस पर 25 हजार रुपया का ईनाम भी घोषित है. अपराध की वारदातों को अंजाम देने के दौरान विकास कई बार गिरफ्तार हुआ. एक बार तो लखनऊ में एसटीएफ ने उसे दबोचा था. कानपुर में एक रिटायर्ड प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडेय हत्याकांड में इसको उम्र कैद हुई थी. वह जमानत पर बाहर आ गया था. कानपुर के शिवली थाना क्षेत्र में ही 2000 में रामबाबू यादव की हत्याकांड में जेल के भीतर रह कर साजिश रचने का आरोप है. इसके अलावा 2004 में हुई केबल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या में भी हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे आरोपी है.विकास दुबे ने 2018 में अपने चचेरे भाई अनुराग पर जानलेवा हमला बोला था. उसने जेल में रहकर पूरी साजिश रची थी. जेल रहकर ही चचेरे भाई की हत्या करा दी. इसके बाद अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कराया था.
पंचायत और निकाय चुनावों में इसने कई नेताओं के लिए काम किया और उसके संबंध प्रदेश की सभी प्रमुख पार्टियों से हो गए. राजनेताओं के सरंक्षण से राजनीति में एंट्री की और नगर पंचायत चुनाव जीत गया था. वर्ष 2001 में प्रदेश की भाजपा सरकार में संतोष शुक्ला को दर्जाप्राप्त राज्यमंत्री बनाया गया था. संतोष शुक्ला से विकास की पुरानी रंजिश चली आ रही थी तो कुछ भाजपा नेताओं ने उनके बीच समझौता कराने का प्रयास किया था. कानुपर की चैबेपुर विधानसभा क्षेत्र से हरिकृष्ण श्रीवास्तव व संतोष शुक्ला 1996 में चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में हरिकृष्ण श्रीवास्तव विजयी घोषित हुए थे. विजय जुलूस निकाले जाने के दौरान दोनों प्रत्याशियों के बीच गंभीर विवाद हो गया था. जिसमें विकास दुबे का नाम भी आया था. उसके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ था. यहीं से विकास की भाजपा नेता संतोष शुक्ला से रंजिश हो गई थी. इसी रंजिश के चलते 11 नवंबर 2001 को विकास ने कानपुर के थाना शिवली के बाहर संतोष शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी थी.
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बचपन से ही अपराधी प्रवृत्ति:
विकास दुबे बचपन से ही वह अपराध की दुनिया में अपना नाम बनाना चाहता था. उसने गैंग बनाया और लूट, डकैती, हत्याएं करने लगा. कानपुर देहात के चैबेपुर थाना क्षेत्र के विकरू गांव का निवासी विकास दुबे ने युवाओं की फौज तैयार कर रखी है. विकास दुबे ने कम उम्र में ही जरायम की दुनिया में कदम रख दिया था. कई युवा साथियों को साथ लेकर चलने वाला विकास कानपुर नगर और देहात का वांछित अपराधी बन गया. चुनावों में अपने आतंक व दहशत के जोर पर जीत दिलाना पेशा बन गया. शिवली थाने के बाहर राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या में आरोपित रहे विकास दुबे को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. अदालत में हत्या का मुकदमा विचाराधीन था.
इस दौरान विकास द्वारा वादी और गवाहों के धमाकाए जाने की शिकायतें पुलिस तक पहुंच रही थीं. बताया गया है कि अदालत में काफी लंबा ट्रायल हुआ लेकिन साक्ष्यों के अभाव और गवाहों के मुकर जाने से विकास दुबे पर आरोप सिद्ध नहीं हो सके और उसे बरी कर दिया गया था. इनामी बदमाश विकास दुबे को एसटीएम ने लखनऊ से गिरफ्तार करके स्प्रिंग फील्ड रायफल, 15 कारतूस व मोबाइल फोन बरामद किये थे. कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र में वर्ष 2000 में रामबाबू यादव की हत्या के मामले में विकास की जेल के भीतर रहकर साजिश रचने का आरोप लगा था. वर्ष 2004 में केबिल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या के मामले में भी विकास के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था. वर्ष 2013 में विकास को कानपुर पुलिस ने पकड़ा था, तब उस पर 50 हजार का इनाम था.