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रात के 10 बजे थे. चारों ओर शांति थी. पहरेदारों की सीटी की कर्णभेदी आवाज यदाकदा दिल्ली के तिहाड़ जेल की शांति को भंग कर रही थी. सभी बेखबर सो रहे थे, पर पिछले 2 घंटे से करवटें बदलने के बावजूद सावित्री की आंखों से नींद कोसों दूर थी. जब भी आंखें बंद करतीं, आंखों के सामने कोर्ट का वह दृश्य और कानों में जज साहब का अंतिम फैसला सुनाई पड़ता, ‘नशा करना और नशाखोरी को बढ़ावा देना एक जुर्म है. इस से न केवल देश का वर्तमान खराब होता है बल्कि भविष्य भी अंधकारमय हो जाता है. प्राप्त सुबूतों के आधार पर सांसद सावित्री को नशा माफिया को संरक्षण देने में दोषी पाए जाने के जुर्म में 10 वर्षों की कैद की सजा सुनाई जाती है.’

फैसला सुन कर एकबारगी तो मन कांप उठा था उन का, क्योंकि पिछले 2-3 सालों से जिस तरह से भ्रष्ट राजनीतिज्ञों पर कोर्ट, कचहरी और कानून का शिकंजा कसता जा रहा है, बच निकलना मुश्किल ही लग रहा था. उन्होंने अपनी पीए जनार्दन की तरफ देखा, जो अपनी आंखें झुकाए विचारमग्न बैठे थे, शायद इस फैसले से वे भी काफी दुखी थे.

कोर्ट से निकलते समय जब मीडिया वालों ने सावित्री से पूछताछ करनी शुरू की, तब भी जनार्दन नजर नहीं आए. बहुत अजीब लगा उन्हें. इस के पूर्व 2 बार जब सावित्री पर ‘अनाज घोटाला’ व ‘शिक्षा घोटाला’ के संबंध में आरोप साबित हुए, सजा मिली, सब से पहले जनार्दन ही उन्हें सांत्वना देने पहुंचे थे, ‘डोंट वरी, मैडम. सब ठीक हो जाएगा.’ जेल जाने के पहले ही उन की अग्रिम जमानत करवा लेते और किए गए घोटालों का सारा मामला कब रफादफा हो जाता, उन्हें पता ही नहीं चलने देते. उन की इसी खासीयत के कारण तो सावित्री ने सांसद बनने के बाद जनार्दन को अपना खास आदमी बना लिया था. उन के इन एहसानों के बदले वे कभी उन्हें पैट्रोल पंप का लाइसैंस दिलवा देतीं तो कभी फार्महाउस बनाने के लिए सस्ते में कई बीघे जमीन. वैसे सच पूछा जाए तो एहसान तो जनार्दन ने किया था उन पर. उन्होंने ही सावित्री को पार्टी की सदस्यता दिलवाई थी महासचिव से मिलवा कर.

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