सौजन्य - सत्यकथा

‘‘ऐजी, कैसी ॒शक्ल बिगाड़ रखी है तुम ने. क्या मेरे वियोग में खानापीना तक छोड़ दिया है?’’ सुमन ने संजीव के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा.‘‘क्या करूं सुमन, जब से तुम मायके आई हो, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. न घर में जी लगता है, न बाहर.’’ मायूसी से संजीव फुसफुसाया, ‘‘बहुत दिनों से तुम्हारा प्यार नहीं मिला है. एक पप्पी दो न!’’‘‘पागल हो गए हो क्या. देख रहे हो, कितने लोग हैं. यहां पप्पी मांग रहे हो.’’ सुमन हाथ छुड़ाने का नाटक करती हुई बोली, ‘‘घर चलो, जी भर कर प्यार कर लेना.’’
‘‘बस एक...’’ संजीव गिड़गिड़ाया.

‘‘बड़े बेसब्र हो जी...चलो ले लो, तुम भी क्या याद रखोगे कि दिलदार बीवी से पाला पड़ा है.’’ सुमन ने कहा.
संजीव ने उस के गोरे गालों पर अपने होंठों की छाप छोड़ दी. सुमन ने साड़ी के पल्लू से अपना गाल रगड़ा और ठंडी सांस ले कर बोली, ‘‘मेरा मन तुम से लिपटने को बेकरार हो रहा है. बस अब सवारी पकड़ो और घर चलो. आज की रात फिर से हमारी सुहागरात होगी.’’संजीव बीवी की बात पर रोमांच से भर उठा. वह काफी खुश था, खासतौर पर इस बात पर कि लड़नेझगड़ने वाली उस की बीवी इतनी अच्छी बातें कर रही थी. उसे याद नहीं आ रहा था कि अंतिम बार सुमन ने उस से इस तरह कब बात की थी.

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काफी मनाने के बाद वह मायके से वापस आने को तैयार हुई थी. वापस आते समय सुमन इतने अच्छे मूड में थी कि संजीव को विश्वास नहीं हो पा रहा था. वह शायद यह नहीं समझ पाया कि इंसान जब अपनी फितरत से हट कर व्यवहार करे तो समझ जाना चाहिए कि वह कुछ खेल खेलने वाला है और उसे अपनी मीठी बातों में फंसा रहा है. सुमन तेजतर्रार बीवी थी और वह सीधासादा इंसान था. आखिर वह कैसे समझता कि बीवी उस की भावनाओं के साथ ही नहीं, उस की जिंदगी के साथ भी खेल खेलने वाली है. संजीव ने बस पकड़ी और सुमन के साथ अपने घर वापस आ गया.

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