Download App

हताश जिंदगी का अंत-भाग 1: प्रीती घर पहुंची तो क्या देखा?

श्यामा ने ज्यादा कुछ तो नहीं चाहा था जीवन में, लेकिन उसे मिला क्या. जिसे प्यार किया वह मिला नहीं. पति मिला शराबीकबाबी. एक के बाद एक बेटियों का जन्म, उन की जिम्मेदारी. ऊपर से पैसे की किल्लत. जिंदगी से हार गई थी वह…

श्यामा निरंकारी बालिका इंटर कालेज में रसोइया के पद पर कार्यरत थी. वह छात्राओं के लिए मिडडे मील तैयार करती थी. श्यामा 2 दिन से काम पर नहीं आ रही थी. जिस से छात्राओं को मिडडे मील नहीं मिल पा रहा था. श्यामा शांति नगर में रहती थी. वह काम पर क्यों नहीं आ रही है, इस की जानकारी करने के लिए कालेज की प्रधानाचार्य ने एक छात्रा प्रीति को उस के घर भेजा. प्रीति, श्यामा के पड़ोस में रहती थी. और उसे अच्छी तरह से जानतीपहचानती थी.

प्रीति सुबह 9 बजे श्यामा के घर पहुंची. घर का दरवाजा अंदर से बंद था. छात्रा प्रीति ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं मिला और न ही कोई हलचल हुई. श्यामा की बेटी प्रियंका, प्रीति की सहेली थी और उस की कक्षा में पढ़ती थी. सो, प्रीति ने आवाज दी, ‘‘प्रियंका, ओ प्रियंका, दरवाजा खोलो. मु झे मैडम ने भेजा है.’’ पर फिर भी दरवाजा नहीं खुला और न ही किसी प्रकार की हलचल हुई.

पड़ोस में श्यामा का ससुर रामसागर रहता था. प्रीति ने दरवाजा न खोलने की जानकारी उसे दी तो रामसागर मौके पर आ गया. उस ने दरवाजा पीटा और बहूबहू कह कर आवाज दी, परंतु दरवाजा नहीं खुला. रामसागर ने दरवाजे की  िझर्री से  झांकने का प्रयास किया तो उस के नथुनों में तेज बदबू समा गई. उस ने किसी गंभीर वारदात की आंशका से पड़ोसियों को बुला लिया. पड़ोसियों ने उसे पुलिस में सूचना देने की सलाह दी. यह बात 1 फरवरी 2020 की है.

सुबह 10 बजे रामसागर बदहवास फतेहपुर सदर कोतवाली पहुंचा. उस समय कोतवाल रवींद्र कुमार कोतवाली में मौजूद थे. उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति को बदहवास हालत में देखा तो पूछा, ‘‘क्या परेशानी है. तुम इतने घबराए हुए क्यों हो? जो भी परेशानी हो, बताओ. हम तुम्हारी मदद करेंगे.’’

‘‘हुजुर, मेरा नाम रामसागर है. मै कोतवाली थाने के शांतिनगर महल्ले में रहता हूं. पड़ोस में हमारा पुत्र रामभरोसे अपनी पत्नी श्यामा व 4 पुत्रियों के साथ रहता है. उस के कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है और भीतर से दुर्गंध आ रही है. हमें किसी अनिष्ट की आशंका है. आप मेरे साथ जल्दी चलने की कृपा करें.

रामसागर ने जो बात बताई थी, वह वास्तव में गंभीर थी. सो, थाना प्रभारी रवींद्र कुमार ने आवश्यक पुलिस बल साथ लिया और रामसागर के साथ उस के पुत्र रामभरोसे के घर पहुंच गए. उस समय वहां पड़ोसियों का जमघट था और लोग दबी जबान से अनेक प्रकार के कयास लगा रहे थे. थाना प्रभारी रवींद्र कुमार लोगों को परे हटाते दरवाजे पर पहुंचे. दरवाजा अंदर से बंद था. उन्होंने आवाज दे कर दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे. कमरे के अंदर मां और उस की 4 बेटियां थीं. कमरे के अंदर से दुर्गंध भी आ रही थी. स्पष्ट था कि कोई गंभीर बात है. थाना प्रभारी रवींद्र कुमार ने पुलिस अधिकारियों को जानकारी दी.

जानकारी प्राप्त होते ही पुलिस अधीक्षक प्रशांत, अपर पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार तथा सीओ (सिटी) कपिल देव मौके पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने पहले जानकारी जुटाई. फिर थाना प्रभारी रवींद्र कुमार को कमरे का दरवाजा तोड़ने का आदेश दिया. आदेश पाते ही उन्होंने अन्य पुलिस कर्मियों की मदद से कमरे का दरवाजा तोड़ दिया. दरवाजा टूटते ही तेज दुर्गंध का भभूका सभी के नथुनों में समा गया.

पुलिस अधिकारियों ने कमरे के अंदर प्रवेश किया तो उन के दिल कांप उठे. कमरे का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. कमरे के अंदर 5 लाशें आड़ीतिरछी एकदूसरे के ऊपर पड़ी थीं. मृतकों की पहचान राम सागर ने की. उस ने बताया कि मृतकों में एक उस की बहू श्यामा है तथा अन्य 4 उस की नातिन पिंकी (20 वर्ष), प्रियंका (14 वर्ष), वर्षा (13 वर्ष) तथा रूबी उर्फ ननकी (10 वर्ष) है.

सभी लाशें फर्श पर पड़ी थीं. देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सभी ने जहरीला पदार्थ पी कर आत्महत्या की थी. क्योंकि लाशों के पास ही एक भगैने में जहरीला पदार्थ आटे में घोला गया था. शायद इसी पदार्थ को पी कर मां तथा बेटियों ने आत्महत्या की थी. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर जांच हेतु फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जांच की और कमरे से 7 पैकेट जहरीला पदार्थ (क्विक फौस) बरामद किया. इन में 4 पैकेट खाली थे और 3 पैकेट भरे थे.

फोरैंसिक टीम ने जहरीले पदार्थ के पैकेट जांच हेतु सुरक्षित कर लिए. भगोना तथा उस में घोला गया जहरीला पदार्थ भी जांच हेतु सुरक्षित कर लिया. इस के अलावा टीम ने अन्य साक्ष्य भी जुटाए.

अब तक मां व उस की 4 बेटियों द्वारा आत्महत्या कर लेने की खबर जंगल की आग की तरह शांतिनगर एवं आसपास के महल्लों मे फैल गई थी. सैकड़ों की भीड़ घटनास्थल पर इकट्ठी हो गई थी. जिस ने भी मांबेटियों के शवों को देखा उसी की आंखों में आंसू आ गए. पड़ोसी महिलाएं तो फूटफूट कर रो रही थीं.

श्यामा तथा उस की बेटियों की मौत की खबर निरंकारी बालिका इंटर कालेज पहुंची तो शोक की लहर दैड़ गई. प्रधानाचार्य ने कालेज में शोक संवेदना व्यक्त की, उस के बाद कालेज में छुट्टी कर दी गई. छुट्टी के बाद अनेक छात्राएं शांतिनगर स्थित मृतकों के घर पहुंचीं और सहेलियों के शव देख कर फूटफूट कर रोईं. दरअसल, मृतका प्रियंका, रूबी और वर्षा निरंकारी बालिका इंटर कालेज में ही पढ़ती थीं. उन के साथ पढ़ने वाली छात्राएं ही अंतिम विदाई के वक्त घर पहुंची थीं.

जांचपड़ताल के बाद पुलिस अधिकारी इस नतीजे पर पहुंचे कि श्यामा ने आर्थिक तंगी व शराबी पति की क्रूरता से तंग आ कर अपनी पुत्रियों सहित आत्महत्या की है. हत्या जैसी कोई बात नही थी. सो, पुलिस अधिकारियों ने पांचों शवों का पंचनामा भरवा कर और अलगअलग सील मोहर करा कर पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल भिजवा दिया.

घर से 5 लाशें जरूर बरामद हुई थीं लेकिन घर के मुखिया रामभरोसे का कुछ अतापता न था. पुलिस अधिकारियों ने उस के संबंध में पिता रामसागर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रामभरोसे शराबी है. वह दिनभर मजदूरी करता है और शाम को शराब के ठेके पर पहुंच कर शराब पीता है. उस की तलाश ढाबों व शराब ठेकों पर की जाए तो वह मिल सकता है.

पुलिस अधीक्षक प्रशांत ने सीओ (सिटी) कपिल देव की निगरानी में पुलिस की एक टीम बनाई और रामभरोसे की खोज में लगा दी. पुलिस टीम ने कई शराब ठेकों पर उस की खोज की, लेकिन उस का पता नहीं चला. पुलिस टीम रामभरोसे की खोज करते जब जीटी रोड स्थित एक ढाबे पर पहुंची तो वह वहां बरतन साफ करते मिल गया. रामभरोसे को हिरासत में ले कर पुलिस टीम वापस सदर कोतवाली लौट आई.

थाना प्रभारी रवींद्र कुमार ने मृतका श्यामा के नशेड़ी पति राम भरोसे के पकड़े जाने की खबर पुलिस अधिकारियों को दी तो पुलिस अधीक्षक प्रशांत वर्मा तथा अपर पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार कोतवाली आ गए. पुलिस अधिकारियों ने जब रामभरोसे को पत्नी और 4 पुत्रियों द्वारा आत्महत्या करने की जानकारी दी तो उस के चेहरे पर पत्नी व बेटियों के खोने का कोई गम नहीं दिखा. पूछताछ में उस ने बताया कि उस की नशेबाजी को ले कर घर में अकसर  झगड़ा होता था. 3 दिन पूर्व उस का पत्नी से  झगड़ा व मारपीट हुई थी. परेशान हो कर श्यामा ने जहर खा कर जान देने की धमकी दी थी. लेकिन उस ने यह नहीं सोचा था कि श्यामा सचमुच बेटियों संग जान दे देगी. हुजूर, पूरा परिवार चौपट हो गया है. अब ऐसा लगता है कि कोई उसे भी ला कर जहर देदे तो खा कर मर जाए.

अपर पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार ने एक नफरतभरी दृष्टि रामभरोसे पर डाली फिर बोले, ‘‘रामभरोसे, तुम्हारी क्रूरता और नशेबाजी के कारण तुम्हारी पत्नी व बेटियों ने अपनी जान दे दी. वह तो मर गईं, लेकिन तु झे तिलतिल मरने को छोड़ गईं. अब पश्चात्ताप के आंसू बहाने से कोई फायदा नहीं. तुम्हें तुम्हारे किए कर्म की सजा कानून देगा. वक्त की मार से न कोई बच पाया है और न तुम बचोगे. तुम्हारी पत्नीबेटियों को इंसाफ जरूर मिलेगा.

पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने थाना प्रभारी रवींद्र कुमार को आदेश दिया कि वे रामभरोसे के विरुद्ध आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने का मुकदमा दर्ज करें और उसे जेल भ्ेजें. आदेश पाते ही रवींद्र कुमार ने मृतका श्यामा के ससुर रामसागर को वादी बना कर भा.द.वि. की धारा 309 के तहत राम भरोसे के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया और उसे विधि सम्मत बंदी बना लिया. पूछताछ में श्यामा की हताश जिंदगी की अंत की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

सहजन की फली से बनाएं टेस्टी स्टफ्ड डोसा

सहजन की फली को  आम भाषा में मुनगा, मोरिंगा और ड्रम स्टिक के नाम से भी जाना जाता है. लंबे आकार और हरे रंग की धारियों वाली यह फली सुगमता से हर जगह उपलब्ध होने वाली सब्जी है. विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, फोलिक एसिड, मैग्नीशियम, पोटेशियम और मिनरल्स से भरपूर होने के कारण इसे आयुर्वेद में सुपर फ़ूड के नाम से जाना जाता है. भोजन के अलावा इसका उपयोग ईंधन, पशुचारा, उर्वरक और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है. न केवल इसकी फलियां बल्कि इसकी छाल, जड़, फूल और पत्तियां भी उपयोगी होती हैं. आमतौर पर इसकी फलियों को हल्का सा छीलकर छोटे छोटे टुकड़ों में काटकर दाल, साम्भर में डालकर अथवा आलू के साथ ग्रेवी वाली सब्जी के रूप में पकाया जाता है.

चूंकि इसे चूसकर खाना पड़ता है इसलिए अधिकांश लोग इसे खाने से परहेज करते हैं पर हम आपको इसे खाने के कुछ ऐसे उपाय बताते हैं जिन्हें अपनाकर आप इसे बहुत आसानी से अपने भोजन में शामिल कर सकते हैं-

ये भी पढ़ें- ऐसे बनाएं घर पर दम आलू

-सहजन की फलियों को बीच से लंबाई में काटकर दो भागों में बांट लें, अब एक चाकू की सहायता से इसके गूदे को अलग कर लें. गूदे को छोटे छोटे टुकड़ों में काटकर एक ढक्क्नदार डिब्बे में रखकर फ्रीजर में रखकर प्रिजर्व कर लें और  आवश्यकतानुसार प्रयोग करें.

-फलियों के गूदे को निकालकर धूप में सुखाएं और मिक्सी में पीसकर पाउडर बना लें. तैयार पाउडर को  एयरटाइट जार में भरकर रखें और दाल,सब्जी, साम्भर और आटे में डालकर प्रयोग करें .
-गूदे को न केवल सब्जी और दाल बल्कि हलवा और लड्डू आदि मिठाइयों में भी घी में भूनकर प्रयोग किया जा सकता है.

आइये अब इसके औषधीय गुणों के बारे में जानते हैं-
-मिनरल्स, पोटैशियम और भरपूर मात्रा में विटामिन्स होने के कारण सहजन की फलियां उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में कारगर हैं.
-कैल्शियम की प्रचुर मात्रा में पाए जाने के कारण यह हड्डियों और दांतों को मजबूती प्रदान करती हैं.
-इसकी पत्तियों में फास्फोरस भरपूर मात्रा में पाया जाता है. पत्तियों के रस का नियमित सेवन मोटापे को कम करने में मददगार होता है.

ये भी पढ़ें- मीठा खाने का है मन तो बनाएं ब्रेड हलवा

-इसके एंटीवेक्टिरियल और एंटीफंगल गुण त्वचा को चमकदार और स्वस्थ बनाते हैं.
-आयरन और फोलिक एसिड पाए जाने के कारण सहजन की फलियां खून बढ़ाने में भी बहुत लाभदायक है.
सहजन की फली के गूदे से आप अत्यधिक स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक सूजी डोसा बना सकती हैं. जिसे न केवल बड़े बल्कि बच्चे भी स्वाद से खाएंगे.
सहजन भरवां डोसा
सामग्री-
सहजन फली का गूदा       1 कप
सूजी                               1 कप
ताजा दही                         1 कप
पानी                                 1/2कप
नमक                                स्वादानुसार
तेल                                    2 टेबल स्पून
बारीक कटा प्याज                1
कटा टमाटर                         1
अदरक, हरी मिर्च, लहसुन पेस्ट 1 चम्मच
जीरा                                  1/4चम्मच
लाल मिर्च पाउडर                  1/2चम्मच
हल्दी पाउडर                         1/4 चम्मच
गरम मसाला पाउडर              1/4 चम्मच
अमचूर पाउडर                       1/2 चम्मच
कटा हरा धनिया                      1चम्मच
विधि
सूजी को पानी और दही की सहायता से घोलकर एक बाउल में 20 मिनट के लिए ढककर रख दें. अब स्टफिंग बनाने के लिए एक पैन में एक चम्मच गरम तेल में प्याज सॉते करें. अदरक, हरी मिर्च और लहसुन का पेस्ट भूनें. हल्दी और कटे टमाटर डालकर भली भांति चलाएं. जब टमाटर गल जाएं तो सहजन फली का गूदा, सभी मसाले और नमक डालकर भली भांति चलायें. धीमी आंच पर 10 मिनट तक मिश्रण के किनारे छोड़ने तक पकाएं.हरा धनिया डालकर गैस बंद कर दें.

ये भी पढ़ें- ऐसे बनाएं चटपटे दही भल्ले

सूजी को 1/2 टीस्पून नमक डालकर चलाएं. अब एक नॉनस्टिक तवे पर एक चम्मच सूजी को बड़े चम्मच की सहायता से पतला फैलाएं. इसके ऊपर 1 टेबल स्पून सहजन का मिश्रण अच्छी तरह फैलाएं. अब एक बड़ा चम्मच सूजी से सहजन के मिश्रण को ढक दें. आप चाहें तो स्टफिंग के ऊपर चीज़ अथवा पनीर भी किसकर डाल सकतीं हैं. धीमी आंच पर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेकें. बीच से दो हिस्सों में काटकर सर्व करें.

हताश जिंदगी का अंत-भाग 2: प्रीती घर पहुंची तो क्या देखा?

फतेहपुर जनपद की खागा तहसील के बहुआ ब्लौक के अंतर्गत एक गांव पड़ता है-नौगांव. दलितबाहुल्य इस गांव में जयराम रैदास अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 संतानें थीं. बेटे का नाम रामप्रकाश था, जबकि बेटियों में श्यामा व रामदेवी थीं. जयराम के पास कृषि योग्य भूमि नाममात्र की थी. सो, वह दूसरों की जमीन बंटाई पर ले कर फसल तैयार करता था. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. अतिरिक्त आमदनी के लिए जयराम साप्ताहिक बाजार में जूताचप्पल की मरम्मत का काम भी करता था.

श्यामा जयराम की संतानों में सब से बड़ी थी. श्यामा बचपन से ही खूबसूरत थी. उस ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस का जिस्म खिल उठा. श्यामा अपने मातापिता के साथ खेत पर काम करने जाती थी. आतेजाते गांव के मनचले युवक उसे घूरघूर कर देखते थे. भद्दे मजाक व फब्तियां कसते  थे लेकिन श्यामा उन को भाव नहीं देती थी.

श्यामा को चाहने वालों में एक गनपत भी था. वह उसी की जातिबिरादरी का था और दिखने में स्मार्ट था. वह गांव के जूनियर हायर सैकंडरी स्कूल में सफाई कर्मचारी था. श्यामा भी उसे मन ही मन चाहती थी. लेकिन दिल की बात कभी जबान पर नहीं ला पाती थी. श्यामा और गनपत की उम्र में यद्यपि 5-6 वर्ष का अंतर था फिर भी वह उस की ओर आकृष्ट थी.

एक रोज श्यामा और गनपत को बगीचे में हंसतेबतियाते श्यामा के भाई प्रकाश ने देख लिया. उस ने यह बात अपने मांबाप को बता दी. इस के बाद तो घर में कलह मच गई. जयराम ने श्यामा को ख्ूब खरीखोटी सुनाई और गनपत से न मिलने की हिदायत दी. मां ने भी श्यामा को प्यार से सम झाया और गनपत से नयनमटक्का न करने की सलाह दी. दरअसल, जयराम और उस की पत्नी गांव के युवक के साथ बेटी की शादी करने को राजी न थे. दूसरे, जयराम की गनपत के परिवार से पुरानी दुश्मनी भी थी.

श्यामा अपने मांबाप की चहेती थी. वह उन की कद्र भी करती थी. इसलिए उस ने बड़ी आसानी से मांबाप की बात मान ली और गनपत से मिलनाजुलना बंद कर दिया. एक दिन गनपत ने उस का रास्ता  रोका और जबरदस्ती हाथ पकड़ा तो उस ने उस की शिकायत अपने तथा गनपत के घर वालों से कर दी. छेड़छाड़ को ले कर तब दोनों परिवारों में जम कर तूतू मैंमैं हुई. लेकिन इस छेड़छाड़ से जयराम को आभास हो गया कि उस की बेटी श्यामा अब जवान हो गई है. अब उसे उस की शादी जल्द ही कर देनी चाहिए.

जयराम ने इस बाबत अपनी पत्नी से विचारविमर्श किया. उस के बाद वह श्यामा के योग्य घरवर की खोज में जुट गया. उस ने नातेरिश्तेदारों को भी कोई बेटी के योग्य लड़का बताने को कहा. जयराम ने खागा, धाता तथा किशनपुर में बेटी के योग्य लड़के पसंद किए. लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण वह रिश्ता पक्का न कर सका. आखिर में एक रिश्तेदार के माध्यम से उसे एक लड़का रामभरोसे पसंद आ गया.

रामभरोसे का पिता रामसागर रैदास, फतेहपुर शहर के शांतिनगर महल्ले में रहता था. उस के परिवार में पत्नी गौरादेवी के अलावा 2 पुत्र दिनेश तथा रामभरोसे थे. रामसागर का शांति नगर में पुश्तैनी मकान था.

वह ट्रक व ट्रैक्टर की कमानी की मरम्मत करने वाली दुकान पर काम करता था. उस ने रामभरोसे को भी इसी दुकान पर काम करने के लिए लगा लिया था. रामभरोसे शरीर से तो स्वस्थ था किंतु उस का रंग काला था. राम भरोसे के पिता रामसागर से जयराम ने अपनी बेटी श्यामा की शादी की बात चलाई तो वह बिना दहेज बेटे की शादी करने को राजी हो गया. इस के बाद वर्ष 1996 में श्यामा का विवाह रामभरोसे के साथ हो गया.

शादी के लाल जोडे़ में लिपटी श्यामा पहली बार ससुराल पहुंची तो सभी ने उस के रूपसौंदर्य की प्रशंसा की. सुहागरात को रामभरोसे ने जब उस का घूंघट पलटा तो चांद सा सुंदर मुखड़ा देख कर वह ठगा सा रहा गया. वहीं दूसरी ओर, जब श्यामा ने कालेकलूटे पति को देखा तो उस के सपने बिखर गए. श्यामा ने जिस सुदर्शन युवक के सपने संजोए थे रामभरोसे उस के जैसा नहीं था. लेकिन श्यामा ने यह मान कर कि जैसा पति लिखा था वैसा मिला. रामभरोसे को स्वीकार कर लिया.

श्यामा ने ससुराल आते ही घरगृहस्थी का काम संभाल लिया था. उस ने अपने सरल स्वभाव तथा सेवासुश्रुषा से सासससुर का दिल जीत लिया था. वे उस की तारीफ करते नहीं अघाते थे. हंसीखुशी से जीवन व्यतीत करते 3 वर्ष बीत गए. इन 3 वर्षों में श्यामा ने एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया. उस का नाम उस ने पिंकी रखा. पिंकी के जन्म से पूरे घर में खुशी छा गई. उस की किलकारियों से उस का घरआंगन गूंजने लगा.

पिंकी के जन्म के 5 वर्ष बाद श्यामा ने एक और बेटी को जन्म दिया. उस का नाम उस ने प्रियंका रखा. रामभरोसे का परिवार बढ़ा तो उसे खर्च की चिंता सताने लगी. रामभरोसे की आय सीमित थी. दुकान पर उसे जो पैसा मिलता उसे वह घरगृहस्थी चलाने को पिता को देता था. पत्नी के हाथ पर कुछ भी नहीं रख पाता था. जिस से श्यामा को छोटेछोटे खर्च के लिए भी ससुर रामसागर का मुंह देखना पड़ता था. रामसागर कभी तो पैसे दे देता तो कभी इंकार भी कर देता था.

श्यामा को एक पुत्र की चाहत थी, ताकि वंशबेल आगे बढ़े. कुदरत ने उस की यह चाहत तो पूरी नहीं की बल्कि उस की गोद में एक के बाद एक 2 बेटियां और डाल दीं. इन बेटियों का नाम उस ने वर्षा तथा रूबी रखा. इस तरह अब श्यामा की 4 बेटियां पिंकी, प्रियंका, वर्षा और रूबी घरआंगन में कूदनेफुदकने लगीं. श्यामा की सास बारबार बेटी के जन्म से श्यामा से नाराज रहने लगी थी. अब वह उसे हीनभावना से देखने लगी थी और उस के काम में टोकाटाकी करने लगी थी.

World Suicide Prevention Day: सुसाइड नहीं है आखिरी रास्ता

डॉ श्वेता शर्मा, कंसल्टेंट क्लिनिकल सायकोलोजिस्ट, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, पालम विहार का कहना है कि, लॉकडाउन के बाद से हर 10 में से 7 मरीज़ों ने कहा है कि उन्होंने लॉकडाउन में आत्महत्या करने के विचारों को महसूस किया है. प्री-लॉकडाउन समय के बाद से ऐसे केसेस में बहुत ही साफ़ और तेजी से वृद्धि देखी गयी है.

पहले हर 10 में से 5 से 7 मरीज इस तरह के विचारों को महसूस करते थे. मार्च से यह लगभग 70% बढ़ा है. इसके बढ़ने का कई कारण है जैसे कि कई काम करने वाले प्रोफेशनल्स ज्यादातर अनियमित काम करने के घंटों, काम का स्ट्रेस, पर्सनल स्पेस की कमी की शिकायत करने लगे क्योकि इस समय वे अपने पार्टनर के साथ रह रहे होते हैं और वे इस समय घर से काम कर रहे होते हैं. उनमें से ज्यादातर अपने माता-पिता और परिवारों, दोस्तों से दूर शहर में रह रहे हैं. परिवार के साथ न रहने से लोगों के बीच स्ट्रेस और एंग्जाइटी का लेवल बढ़ रहा है.

ये भी पढ़ें- मुहुर्त के साये में शिक्षित भारतीय

लॉकडाउन के बाद से हमें मिले केसेस में से अधिकांश एक्टिव सुसाइडल आइडियेशन वाले थे. जिसका मतलब है कि लगभग 70% केसेस एक्टिव सुसाइडल आइडियेशन के थे. ऐसे अधिकांश मरीजों की उम्र 25 से 40 के बीच थी, और महिलाओं की तुलना में पुरुष इससे ज्यादा प्रभावित थे. यह आंकड़ा पुरुषों में महिलाओं के मुकाबलें एंग्जाइटी और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बढ़ते लेवल को दर्शाता है. इनमे से लगभग आधे मरीजों को पहले कोई भी मानसिक बीमारी नही थी.

हम दवाओं, काउंसलिंग बातचीत या थेरेपी जैसे कि कोगनिटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) से ऐसे मरीजों का इलाज करते हैं. इसके अलावा इनमे से ज्यादातर मरीज फॉर्मल इंटरेक्शन पीरियड, जैसे कि मीटिंग या टेलीकांफ्रेंसिंग, के बाद भी डाक्टरों से लगातार सम्पर्क में है. ऐसे मरीजों की मानसिक स्थिति ठीक होने में कई महीने लग सकते है.”

ये भी पढ़ें- अब तुम पहले जैसे नहीं रहे

डॉ प्रीति सिंह, सीनियर क्लिनिकल कंसल्टेंट- सायकोलॉजी और सायकोथेरेपी, पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम का कहना है कि, “लॉकडाउन में हमने 300 आत्महत्या के केसेस को देखा है और इन आत्महत्याओं में ज्यादातर मरने वाले पुरुष थे. वे महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए क्योंकि इनमे से ज्यादातर परिवार के लिए रोजी- रोटी कमाने वाले अकेले सदस्य थे. गुरुग्राम जैसे मेट्रोपॉलिटिन सिटी में स्थिति सबसे खराब रही है, जहाँ नौकरी जाने से कई परिवार को बड़ा झटका लगा है क्योंकि यहाँ जीवन यापन की लागत बहुत ज्यादा हो गयी है.

भविष्य के बारें में अभी भी कुछ नही कहा जा सकता है, इसने मिलेनियम सिटी में मेंटल हेल्थ की समस्या को बढ़ा दिया है. हमारी ओपीडी में हम आत्महत्या से पीड़ित मरीजों को देख रहे हैं. ये मरीज पहले भयानक मूड स्विंग या एंग्जाइटी डिसऑर्डर से पीड़ित थे, लेकिन महामारी के दौरान ये लक्षण और भी भयानक हो गए. इसलिए एक साइड में 30 मरीजों में से 5 में आत्महत्या करने का विचार था और इस 30 में से 2 महिलाएं भी थी जिन्होंने आत्महत्या करने की असफल कोशिश की थी. महामारी के कारण इकोनॉमिक और सायकोलोजिकल प्रभाव हमारी कल्पनाओं से परे है. गुरुग्राम में लॉकडाउन के दौरान कुछ युवाओं की भी मौतें हुई हैं. आत्महत्या करने वाला हर कोई मानसिक रूप से बीमार नहीं होता है. कई बार यह एक इम्पल्स (आवेग) होता है जो इस तरह के बिहैवियर को ट्रिगर करता है. हमने 16 साल के एक आत्महत्या केस को भी देखा है, जिसने फोन के इस्तेमाल के संबंध मे माता-पिता से झगड़ा करने पर आत्महत्या कर ली थी.”

कारण क्या है

सुसाइड के विचारों के कई कारण होते हैं. सबसे अधिक, आत्महत्या के विचार इस तरह की भावना के परिणाम होते हैं जब आप जीवन की किसी मुश्किल स्थिति का सामना नहीं कर सकते हैं. यदि आपके पास भविष्य के लिए कोई आशा नहीं है, तो आप यह सोच सकते हैं की आत्महत्या ही उस मुश्किल का हल हो सकते हैं. आप एक प्रकार की सुरंग दृष्टि का अनुभव कर सकते हैं, जहाँ संकट के बीच में आपको लगता है कि आत्महत्या ही एकमात्र रास्ता है.

ये भी पढ़ें- एक शिक्षिका जिसने नेता बनकर दुनिया में भारत का नाम रोशन किया

आत्महत्या के लिए एक आनुवंशिक लिंक भी हो सकता है. जो लोग आत्महत्या करते हैं या जिनके पास आत्मघाती विचार या व्यवहार होता है, उनके आत्महत्या के पारिवारिक इतिहास की संभावना अधिक होती है.

कैसे करें निवारण

1-अगर आपको इलाज की जरुरत है तो आप अपना इलाज कराएँ.
2-अगर आप अपने अन्दर पहले से ही मौजूद समस्या को ठीक नहीं कर पाते हैं आप सुसाइडल थोट्स से फिर से पीड़ित हो सकते हैं.
3-आप मेंटल हेल्थ समस्या का इलाज कराने में शर्म महसूस कर सकते हैं. लेकिन डिप्रेशन के लिए सही से इलाज कराने पर पदार्थों का गलत सेवन करने पर या अन्य अंडरलाइंग समस्या आपको जिंदगी के बारें में अच्छा महसूस करा सकती है और आपको स्वस्थ रख सकता है.
4-आप अपने लिए एक सपोर्ट नेटवर्क को बनायें.
5-आत्महत्या की भावना के बारें में बात करने में मुश्किल होगी और आपके दोस्त और परिवार के लोग यह नहीं समझ पायेंगे कि आप ऐसी भावना को क्यों महसूस कर रहे हैं. किसी भी तरह से बात करें और यह सुनिश्चित करें कि जो लोग आपकी सचमुच में परवाह करते हैं वे लोग यह जान सके कि आपके ऊपर क्या गुज़र रही है और आपको उनकी कब जरुरत है?
6-आप अपने मेडीटेशन वाले स्थानों से, सपोर्ट ग्रुप से, या दूसरी कम्युनिटी रिसोर्सेज से मदद पाने की कोशिश करें. कनेक्टेड और सपोर्टेड महसूस करने से आत्महत्या का खतरा कम हो जाता है.

ये भी पढ़ें- एकाकी महिला के लिए गाली है करवाचौथ

याद रखें सुसाइडल फीलिंग टेम्परेरी होती है. अगर आप निराश महसूस करते हैं या ज़िन्दगी को बोझ मानते हैं तो यह याद रखें कि आपका ट्रीटमेंट होने से से आपकी ज़िन्दगी के प्रति सोच बदल जाएगी और ज़िन्दगी बेहतर हो जाएगी. एक समय में एक ही स्टेप लें और ज्यादा इम्पल्सिवली (आवेग से) व्यवहार न करें.

हुंडई वरना में मौजूद 6 एयर बैग आपकी यात्रा को बनाते हैं सुरक्षित

न्यू हुंडई वरना की सेफ्टी की बात करें तो इसके सारे फीचर आपकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं. इस कार में 6 एयर बैग है, जो कार में बैठे सभी यात्रियों की सुरक्षा करता है.

और आपको हर तरह के खतरे से बचाता है. वरना में इलेक्ट्रॉनिक स्टेबिलिटी कंट्रोल है जो स्लिपरी रोड़ पर भी आपको सही दिशा में ले जाने की सलाह देता है. इसमें टायर प्रेशर मोनिटरिंग सिस्टम भी है जो आपको हर एक टायर प्रेशर के बारे में जानकारी देता है. जिससे आपकी हर यात्रा सुरक्षित होती है. अगर कभी आपको अचानक गाड़ी रोकनी पड़ी उस दौरान वरना में मौजूद रियर लाइट बाकी अन्य गाड़ियों के मुकाबले तेजी से रिएक्शन देता है. ये सारे फीचर वरना को बाकी कारों से बेहतर बनाते हैं.

हुंडई की बाकी सभी नई कारों की तरह वरना भी तीन साल की रोड़ असिस्टेंट के साथ आता है. साथ ही हुंडई की वंडर वारंटी आपको अपनी आवश्यकताओं के अनुरुप वारंटी के लाभ और अवधि का चयन करने देती है. वरना के साथ हुंडई ने एक सेडान बनाई है जो वास्तव में आपकी सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करता है, और इसके साथ टेंशन फ्री एक्सपीरियंस इसे #BetterThanTheRest बनाता है.

सोनम-मलाइका के बाद करीना कपूर ने भी किया रिया का सपोर्ट

दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद से मामला लगातर सुर्खियों में बना हुआ है. सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद से इस केस को 19 अगस्त को सीबीआई को सौप दिया गया है जिसके बाद से लगातार सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है.

सीबीआई के अलावा और भी कई ऐजेंसियां इस मामले पर जांच कर रही है. इसी बीच एनसीबी ने लगातार तीन दिन तक रिया चक्रवर्ती से पूछताछ करने के बाद गिरफ्तार कर लिया है. हालांकि कई बॉलीवुड अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती के सपोर्ट में उतरे हैं. इसी बीच करीना कपूर का नाम भी सामने आ गया है.

ये भी पढ़ें- आशा भोसले ने लोनावाला में पूरे परिवार के साथ मनाया अपना 87वां जन्मदिन

इससे पहले मलाइका अरोड़ा और सोनम कपूर रिया चक्रवर्ती के सपोर्ट में उतरी थीं. बेबो ने हाल ही में रिया चक्रवर्ती के सपोर्ट में सोशल मीडीया पर एक मैसेज डाला है जिसमें लिखा है जिससे साफ पता चल रहा है कि वह रिया के सपोर्ट में हैं.

ये भी पढ़ें- र्जुन कपूर के बाद गर्लफ्रेंड मलाइका अरोड़ा को भी हुआ कोरोना , बहन ने

ये भी पढ़ें- फिल्म‘‘आई एम नॉट ब्लाइंड’’के समर्थन में क्यों आगे आए कुछ आई ए एस

इसी बीच कई लोग इस मैसेज का इस्तेमाल कर रहे हैं. एनसीबी से पूछताछ के दैरान रिया चक्रवर्ती ने बॉलीवुड के 25 लोगों के नामों का खुलासा किया है. रिया के अपडेट की खबर के बारे में बात करें तो उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई है. वहीं विद्या बालन और भी कई मशहूर कलाकार है जो रिया के सपोर्ट में हैं.

ये भी पढ़ें- संजय लीला भंसाली की ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से बॉलीवुड डेब्यू करेंगे पार्थ समथान

बता दें रिया चक्रवर्ती और सुशांत सिंह लंबे समय से एक साथ रिलेशन में रह रहे थें. हालांकि जब सुशांत के हालात खराब होने लगी तो उस वक्त रिया उन्हें छोड़कर चली गई . रिया चक्रवर्ती पर यह आरोप है कि वह सुशांत सिंह राजपूत के पैसे का भी इस्तेमाल किया है.

रिया चक्रवर्ती के सपोर्ट में उतरे लोगों पर श्वेता कृति सिंह ने किया पलटवार

एनसीबी ने अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती को ड्रग्स खरीदने के मामले में गिरफ्तारी कर लिया है. रिपोर्ट की माने तो अभिनेत्री की जमानत याचिका भी खारिज कर दी गई है. हालांकि रिया की गिरफ्तारी होने के बाद मीडिया के साथ-साथ फिल्म जगत के लोग भी अलग-अलग प्रतिक्रिया दे रहे हैं. उनमें से कई एक्ट्रेस ऐसे हैं जो रिया के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं तो वहीं कुछ कलाकार ऐसे भी हैं जो रिया चक्रवर्ती के सपोर्ट में खुलकर आ गए हैं.

उस में से कई सेलिब्रेटी ऐसे भी है जो रिया चक्रवर्ती के टी शर्ट पर लिखे मैसेज का इस्तेमाल कर रहे हैं. जो टी शर्ट रिया ने कल पहनी थी.

ये भी पढ़ें- आशा भोसले ने लोनावाला में पूरे परिवार के साथ मनाया अपना 87वां जन्मदिन

 

View this post on Instagram

 

#JusticeForSushantSinghRajput

A post shared by Shweta Singh kirti (@shwetasinghkirti) on

रिया के टी शर्ट पर लिखा था कि रोजे लाल है, वायलेट नीले है, आइए हम और आप मिलकर पितृसत्ता को नष्ट करें. वहीं कुछ लोगों ने #justiceforrhea  का भी इस्तेमाल कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- फिल्म‘‘आई एम नॉट ब्लाइंड’’के समर्थन में क्यों आगे आए कुछ आई ए एस

अब सुशांत सिंह राजपूत कि बहन श्वेता कृति सिंह भी पीछे नहीं उन्होंने ने भी अपने भाई के न्याय के लिए इस कोट का इस्तेमाल करते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट साझा करते हुए लिखा है कि रोजे लाल है, वायलेट नीले है, चलो मेरे और तुम्हारे हक की लड़ाई लड़े. इसमें उन्होंने सुशांत की फोटो लगाई है.

ये भी पड़ें- संजय लीला भंसाली की ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से बॉलीवुड डेब्यू करेंगे पार्थ समथान

इसी बीच एनसीबी ने पहले रिया चक्रवर्ती के भाई शौविक चक्रवर्ती को गिरफ्तार किया. सुशांत के घर के मैनेजर सैमुअल मिरांडा को गिरफ्तार किया है.

ये भी पढ़ें- ब्यॉफ्रेंड विक्की के साथ अंकिता लोखंडें का वीडियो देख फैंस ने सुशांत को किया याद

वहीं रिया चक्रवर्ती के वकील सतीश मानेशिंदे ने रिया के गिरफ्तारी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि एक नसेड़ी के साथ प्यार का अंजाम भुगत रही है. वहीं सुशांत के मामले पर वकील विकास सिंह ने अभी तक कोई कमेंट नहीं किया है.

नई सुबह -भाग 1: कुंती ने आश्रम में ऐसा क्या देखा कि उसकी सोच बदल गई?

शाम से ही कुंती परेशान थी. हर बार तो गुरुपूर्णिमा के अवसर पर रमेशजी साथ ही आते थे पर इस बार वे बोले, ‘‘जरूरी मुकदमों की तारीखें आ गई हैं, मैं जा नहीं पाऊंगा. तुम चाहो तो चली जाओ. वृंदाजी को भी साथ ले जाओ. यहां से सीधी बस जाती है. 5 घंटे लगते हैं. वहां से अध्यक्ष मुकेशजी का फोन आया था, सब लोग तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

‘‘पर जब तुम चल ही नहीं रहे हो तब मेरा जाना क्या उचित है?’’

‘‘तुम देख लो, बरसों से आश्रम में साल में 2 बार हम जाते ही हैं,’’ रमेशजी बोले.

तब कुंती ने वृंदाजी से बात की थी. वे तो जाने को पहले से ही तैयार थीं. वे स्वामी प्रेमानंदजी से मिलने वृंदावन पहले भी हो आई थीं. वहीं उन के बड़े गुरु महाराजजी का आश्रम था. वे बहुत गद्गद थीं, बोलीं, ‘‘ेबहुत ही भव्य आश्रम है. वहां विदेशी भी आते हैं. सुबह से ही रौनक हो जाती है. सुबह प्रार्थना होती है, भजन होते हैं फिर कीर्तन होता है. लोग मृदंग ले कर नाचते हैं. कुंती, सच एक बार तू भी मेरे साथ चलना. ये अंगरेज तो भावविभोर ही हो जाते हैं. वहीं पता लगा था, इस बार गुरुपूर्णिमा पर स्वामी प्रेमानंदजी ही वहां अपने आश्रम पर आएंगे. बड़े महाराज का विदेश का कार्यक्रम बन रहा है. स्वामी प्रेमानंदजी तो बहुत ही बढि़या बोलते हैं. क्या गला है, लगता है, मानो जीवन का सार ही उन के गले में उतर आया है,’’ वृंदाजी बहुत प्रभावित थीं. कुंती को बस में अच्छा नहीं लग रहा था. कहां तो वह हमेशा रमेशजी के साथ ही कार से जाती थी, किसी दूसरे का रत्ती भर एहसान नहीं. ठहरने की भी अच्छी जगह मिल जाती थी. सोनेठहरने की जगह अच्छी मिल जाए तो प्रवास अखरता नहीं.

पर इस बार उन्हें आते ही सब के साथ बड़े हौल में ठहरा दिया गया था. वहां, वह थी, वृंदाजी थीं तथा 10 महिलाएं और थीं. फर्श पर सब के बिस्तर लगे हुए थे. टैंटहाउस के सामान से उसे चिढ़ थी. उस ने मुकेश भाई से बात कर अपने लिए आश्रम की ही चादरें मंगवा ली थीं. उस ने अपना बिस्तर ढंग से जमाया, वहीं पास में अटैची रख ली थी. कुछ महिलाएं उज्जैन, इंदौर से आई थीं. कुछ को तो वह पहचानती थी, कुछ नई थीं. तभी रमेशजी का फोन आ गया था. पूछ रहे थे कि रास्ते में तकलीफ तो नहीं हुई? वह क्या कहती, कहां अपनी कार, कहां रोडवेज की बस में यात्रा, तकलीफ तो होनी ही थी, पर अब कहने का क्या मतलब. वह चुप ही रह गई. तभी बाहर से वृंदाजी ने आ कर कहा, ‘‘बाहर जानकी बाई आई हैं, तुम्हें बुला रही हैं.’’

‘‘वे कब आईं?’’

‘‘कल ही कार से आ गई थीं. वे दूर वाले कौटेज में ठहरी हैं.’’

‘‘हूं. वे कार से आई हैं, उन्हें कौटेज में ठहराया गया है, हमें इस हौल में. तभी बताने आई हैं, चलती हूं,’’ वह धीरे से बोली. बाहर कुरसियां लगी हुई थीं, जानकी बाई वहीं बैठी थीं. आश्रम में सभी उन को जानते थे. जब बड़े महाराजजी थे तब जानकी बाई का ही सिक्का चलता था. वे बड़े महाराजजी की शिष्या थीं. वे एक प्रकार से आश्रम पर अपना अधिकार समझती थीं.

कुंती को देखते ही बोलीं, ‘‘तू कब आई, कुंती?’’

‘‘अभी दोपहर में.’’

‘‘तो मेरे ही पास आ जाती, वहां बहुत जगह है.’’

‘‘पर आप के साथ…’’

‘‘सुशील है, उस के दोस्त हैं, इतनी दूर से आते हैं, तो लोग आ ही जाते हैं. पर तू तो ऐडजस्ट हो जाती.’’

‘‘आप की मेहरबानी, पर मेरे साथ वृंदाजी भी आई हैं. हम लोग बस से आए हैं. वहीं से सब पास रहेगा. आप के पास तो गाड़ी है. हमें आनेजाने में यहां से दिक्कत ही होगी, हम वहीं ठीक हैं,’’ कुंती ने कहा. तभी छीत स्वामी उधर ही आ गए थे. वे रसीद बुक ले कर भेंट राशि जमा कर रहे थे.

‘‘भाभीजी, आप आ गईं, अच्छा ही हुआ, वकील साहब का फोन आ गया था. रास्ते में कोई दिक्कत तो नहीं आई, मैं ने उन्हें बता दिया था, समाधि के पास ही बड़े हौल में ठहरा दिया है. वहां टौयलेट है, पंखे भी हैं. रसोईघर पास ही है. हम लोग वहीं हैं.’’

‘‘हां, वह सब तो ठीक है,’’ कुंती बोली.

‘‘स्वामी प्रेमानंदजी कब तक आएंगे?’’ वृंदाजी ने पूछा.

‘‘सुबह तक तो आना ही है, उन का फोन आ गया था. वह प्रवास पर ओंकारेश्वर में थे, रास्ते में दोएक जगह रुकेंगे. इस बार कुंभ का मेला है, वहां भी अपना पंडाल लगेगा. उस की व्यवस्था भी देखते हुए आएंगे,’’ छीत स्वामी बोले. आश्रम में भारी भीड़ थी. गांव वालों में भारी उत्साह था. भंडारे में सामूहिक भोजन तो होता ही है. छोटामोटा जरूरत का सामान बिक जाता है. अब गांवों में शहर वालों के लिए और्गेनिक फूड की जरूरत को देखते हुए दुकानें भी लग जाती हैं. बाहर चाय की दुकानें लग गई थीं. बच्चों के झूले और गुब्बारे वाले भी आ गए थे. पास का दुकानदार आश्रम की और बड़े महाराज की तसवीर फ्रेम करा कर बेच रहा था. जहां कार्यक्रम होना था वहां लाउडस्पीकर पर अनूप जलोटा, हरिओम शरण के गीत बज रहे थे.

पास के स्कूल के समाजसेवी अध्यापकजी बच्चों की टोली के साथ इधर ही आ गए थे, वे झंडियां लगा रहे थे. आसपास के बुजुर्ग सुबह से ही अपनाअपना बैग ले कर आ गए थे, वे बाहर कुरसियों पर बैठे थे. वे लोग बड़े महाराजजी के जमाने से आश्रम में आ रहे थे. एक  प्रकार से आज मानो उन का यहां अधिकार ही हो गया था. वे बारबार सेवकों से चाय मंगवा रहे थे. लग रहा था, आज के वे ही स्वामी हैं. जो भी नया अतिथि आ रहा था, वह पहले उन से ही मिलता था, झुकता, उन के पांव छूता फिर आगे बढ़ता, फिर समाधि पर जाता. सब के पास अपनीअपनी बातें थीं. बड़े महाराज की ख्याति आसपास के गांवों में थी. उन के जाने के बाद यहां एक समिति बन गई थी. मुकेश भाई अध्यक्ष बने, पर वे सशंकित रहे, कल कोई आ गया तो? फिर अचानक उन को स्वामी प्रेमानंद मिल गए थे, उन्होंने निमंत्रण दे दिया. वे तब से यहां आने लग गए.

स्वामी प्रेमानंद का आश्रम वृंदावन में था. वे भक्तिमार्गी थे, जबकि यहां बड़े महाराजजी ज्ञानमार्गी थे, भक्ति मार्ग की यहां तब चर्चा ही नहीं होती थी. आश्रम में जमीन बहुत थी. बड़े महाराज के जाने के बाद स्थान खाली हो गया था. दूरदूर तक भक्त फैले हुए थे. हरिद्वार से संत आए थे, कह रहे थे बड़े महाराज उन्हीं के संप्रदाय के थे. प्रेमानंद तो दूसरे संप्रदाय का है. उस के अपने गुरु हैं. उस का यहां क्या लेनादेना? आसपास के संत, भगवाधारी प्रेमानंद के साथ थे, समिति के पदाधिकारी भी प्रेमानंद के साथ हो गए. लोगों ने प्रेमानंद को ही यहां का स्वामी मान लिया था. समिति बनी हुई थी, जो बड़े महाराज बना गए थे. पर समिति के लोग प्रेमानंद के इशारे पर नाच रहे थे. उस ने यहां आते ही यहां के कर्मचारियों में पैसा बांटा, धार्मिक कर्मकांड किए. उस का गला बहुत अच्छा था. वह बहुत जल्दी लोकप्रिय हो गया. अब आश्रम में बड़े महाराजजी की समाधि थी, जहां चढ़ावा आता, उन की कुटिया थी, पर उस के बाहर स्वामी प्रेमानंद का शासन था. जहां गुड़ की भेली होती है वहां चींटे आ ही जाते हैं. यहां बहुत महंगी जमीन थी, चढ़ावा भी बहुत था. स्वामी प्रेमानंद जम गए थे. अपनी ओर से उन्होंने कई धार्मिक आयोजन किए. छीत स्वामी ग्रामसेवक थे, बहुत कमा लिया था. जब शिकायतें हुईं, वे स्वैच्छिक रिटायर हो कर मुक्त हो गए थे. वे ही यहां स्वामी प्रेमानंद के पहले गृहस्थ शिष्य बन गए थे. प्रेमानंद के वे विश्वसनीय थे, वे ही आश्रम के कैशियर हो गए थे. प्रेमानंद का मोबाइल उन के ही पास रहता था. उन्हें उन के बारे में पूरी खबर रहती थी.

नई सुबह -भाग 3: कुंती ने आश्रम में ऐसा क्या देखा कि उसकी सोच बदल गई?

‘क्यों? तुम्हें अब भी मिलना है प्रेमानंद से?’ कुंती अपने ही सवाल पर घबरा गई थी. कौटेज के बाहर की लाइट बंद हो गई थी. अंदर हलकी नीली रोशनी थी. रोशनदान से प्रकाश बाहर आ रहा था. आत्मानंद उसी तरह बैठा हुआ बीड़ी फूंक रहा था. कुंती किस से कहे, क्या कहे, भीतर आई, वृंदा को जगाया. वृंदा गहरी नींद में थी. कुछ समझी, कुछ नहीं समझी. ‘‘तू भी कुंती…फालतू परेशान है, यह तो होता ही रहता है. इस पचड़े में हम क्यों पड़ें, चुप रह, सो जा, अब यहां नहीं आएंगे,’’ कह कर वह फिर सो गई. कुंती पगलाई सी बाहर बैठी थी. तभी उसे सामने से आते हुए छीत स्वामी दिखाई पड़े. उस ने उन्हें रोका.

‘‘भाई साहब, आप से एक बात कहनी है.’’

‘‘क्या?’’ वे चौंके.

‘‘भाई साहब, स्वामी प्रेमानंदजी आधी रात में सीधे उस कौटेज में…’’

‘‘तो क्या हुआ, वे स्वामीजी की भक्त हैं, इन दिनों परेशानी में हैं, उन की पूजा करती हैं. आप ज्यादा परेशान न हों, सोइए,’’ यह कह वे आगे बढ़ गए. सुबह उठते ही उस ने सोचा, रमेशजी को सारी बात बताई जाए पर वह फोन करती उस के पहले ही रमेशजी का फोन आ गया था.

‘‘क्या बात है, छीत स्वामी का फोन था, तुम रात भर सोईं नहीं, पागलों की तरह बाहर बैंच पर बैठी रहीं?’’

‘‘पर तुम मेरी सुनो तो सही,’’ कुंती बोली.

‘‘क्या सुनना, हर बात का गलत अर्थ ही निकालती हो, तुम नैगेटिव बहुत हो, दोपहर की बस से आ जाना, वहां सभी लोग तुम से नाराज हैं. मुकेश भाई बता रहे थे, तुम किसी पत्रकार से बात कर रही थीं. मेरी बात सुनो, चुप ही रहो, खुद परेशानी में पड़ोगी, मुझे भी परेशानी में डालोगी. उस इलाके के पचासों मुकदमे मेरे पास हैं. मुझे तंग मत करो.’’

‘‘पर वह ड्राइवर तो…तुम बात तो पूरी सुनो.’’

‘‘कह तो दिया है, जितना तुम ने जाना है वह ज्ञान अपने पास ही रखो. मैं नहीं चाहता, मैं किसी बड़ी परेशानी में पडूं. जो भी बस मिले, तुरंत वृंदाजी के साथ लौट आओ,’’ उधर से फोन कट गया था. कुंती अवाक् थी. उस के हजारों सवाल जो तारों की तरह टूटटूट कर गिर रहे थे, उसे किसी गहरे अंधेरे में खींच कर ले जा रहे थे, ‘क्या यही धर्म अब बच गया है? हम क्यों किसी दूसरे के पांवों में रेंगने वाले कीड़े की तरह हो कर रह गए हैं? बस, आलपिनों का ढेर मात्र ही हैं जो हर चुंबक की तरफ आ कर खिंचा चला जाता है. फिर हाथ में कुछ नहीं आता है, इस के विपरीत अपना आत्मविश्वास भी चला जाता है. अपनी रोशनी, अपना विवेक है, मैं कब तक किस कामना की पूर्ति के लिए मारीमारी फिरूंगी?’ वह अपने सवाल पर खुद चकित थी. यह पहले हम ने क्यों नहीं सोचा? चारों तरफ से आया हुआ अंधेरा अचानक हट गया था. वह अपनी नई सुबह की नई रोशनी में अपनेआप को देख रही थी. वह लौटने के लिए अपनी अटैची संभालने में लग गई थी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें