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गांव के बाहर खेत में दिखीं दो लाशें

कैलामऊ गांव के 2 युवक राजू और कमल पुलिस में भरती होने की तैयारी कर रहे थे. इस के लिए वह रोजाना सुबह के समय दौड़ लगाते थे. 16 अप्रैल को सुबह करीब पौने 5 बजे दोनों दौड़ लगाने घर से निकले तो उन्होंने गांव के बाहर एक खेत में 2 लाशें पड़ी देखीं.

लाशें देखते ही दोनों दौड़ते हुए गांव आए और उन्हें जो भी मिला उसे 2 लाशें पड़ी होने की सूचना दी. इस के बाद गांव के लोग खेत की तरफ दौड़ पड़े. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई. गांव वालों ने लाशें देखीं तो तुरंत पहचान गए. दोनों रामकिशोर की बेटियां संध्या और शालू थीं.

किसी ने यह खबर रामकिशोर को दी तो बेटियों की हत्या की खबर सुनते ही रामकिशोर परेशान हो गया. उस के घर में चीखपुकार मच गई. वह जल्दी ही अपनी पत्नी जयदेवी के साथ घटनास्थल पहुंच गया. दोनों बेटियों के शव देख कर मियांबीवी फूटफूट कर रोने लगे. जितेंद्र भी अपनी बहनों की लाशें देख कर दहाड़ मार कर रोने लगा. यह बात 16 अप्रैल प्रात: 5 बजे की है.

सूरज का उजाला फैला तो 2 सगी बहनों की हत्या की खबर कैलामऊ के आसपास के गांवों में भी फैल गई. कुछ ही देर बाद वहां देखने वालों का तांता लग गया. इसी बीच किसी ने फोन द्वारा यह सूचना थाना बसरेहर पुलिस को दे दी. सुबहसुबह डबल मर्डर की खबर पा कर थानाप्रभारी आर.के. सिंह ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को यह सूचना दे दी. फिर वह पुलिस टीम के साथ कैलामऊ गांव पहुंच गए.

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उन्होंने घटनास्थल को पीले फीते से कवर किया ताकि साक्ष्यों से छेड़छाड़ न हो सके. उसी समय एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी, एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया था. भारी भीड़ को देखते हुए अतिरिक्त पुलिस फोर्स मंगवा ली.

पुलिस अधिकारियों ने लाशों का मुआयना किया तो पता चला कि दोनों बहनों की हत्या गोली मार कर की गई थी. दोनों के सीने में गोली मारी गई थी, जो आरपार हो गई थी. मृतका संध्या की उम्र 18 वर्ष के आस पास थी, जबकि उस की छोटी बहन शालू की उम्र लगभग 15 वर्ष थी. शवों के पास ही शराब की खाली बोतल, तमंचा, 5 जीवित कारतूस, खाली खोखे, टौर्च, चप्पलें और एक मोबाइल पड़ा था.

फोरैंसिक टीम ने शराब की बोतल, तमंचा तथा टौर्च से फिंगरप्रिंट लिए. इस के साथ ही अन्य साक्ष्य भी जुटाए गए. पुलिस ने घटनास्थल पर मिली सभी चीजें बरामद कर लीं. पुलिस अधिकारियों ने मृतक बहनों के पिता रामकिशोर से घटना से संबंध में जानना चाहा तो वह फफक पड़ा.

उस ने बताया कि बीती रात वह फसलों की रखवाली के लिए खेतों पर था. सुबह उस का बेटा जितेंद्र रोतेपीटते आया और बताया कि संध्या व शालू को किसी ने मार डाला है. इस के बाद वह पत्नी को घर से ले कर घटनास्थल पर पहुंचा.

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‘‘क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारी बेटियों की हत्या किस ने और क्यों की?’’ एसएसपी ने रामकिशोर से पूछा.

‘‘साहब, हम गरीब किसान हैं. हमारी किसी से न तो कोई रंजिश है और न ही किसी से लेनदेन का झगड़ा है. पता नहीं मेरी बच्चियों ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उन्हें मार डाला.’’

इस के बाद उन्होंने रामकिशोर के बेटे जितेंद्र से पूछताछ की तो उस ने कहा, ‘‘सर सोमवार की शाम मैं घर पर ही था. देर शाम संध्या और शालू मां से जंगल जाने की बात कह कर घर से निकली थीं. काफी देर तक जब वे घर वापस नहीं आईं तो मैं ने मां से पूछा. मां ने कहा कि पड़ोस में रहने वाले ज्ञान सिंह के यहां तिलक का कार्यक्रम है. शायद दोनों वहीं चली गई होंगी. इस के बाद मैं सो गया. सुबह गांव में हल्ला मचा तो पता चला कि संध्या और शालू की हत्या हो गई है.

प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने जब शवों को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने की काररवाई शुरू की तो लोगों ने विरोध शुरू कर दिया. दरअसल लोगों को शक था कि संध्या और शालू को दरिंदों ने पहले हवस का शिकार बनाया और भेद न खुले इसलिए दोनों को मार डाला. भीड़ ने धमकी भरे लहजे में पुलिस अधिकारियों से कहा कि जब तक क्षेत्रीय विधायक, सांसद या जिलाधिकारी घटनास्थल पर नहीं आते, तब तक दोनों शवों को नहीं उठने देंगे.

पुलिस ने मामले को शांत करने के लिए  सदर विधायक व जिलाधिकारी को पूरे मामले की जानकारी दी और मौके पर आने का अनुरोध किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए सदर विधायक सरिता भदौरिया और पूर्व सांसद रघुराज शाक्य मौके पर पहुंच गए. सरिता भदौरिया ने उत्तेजित लोगों को शांत कराया तथा आश्वासन दिया कि पीडि़त परिवार को जो भी सरकारी मदद संभव होगी दिलवाई जाएगी. एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी ने भी आश्वासन दिया कि हत्यारों को जल्दी ही पकड़ लिया जाएगा.

विधायक सरिता भदौरिया के आश्वासन पर लोग शांत हो गए. इस के बाद एसएसपी ने आननफानन में मृतका संध्या और शालू के शव का पंचनामा भरवाया और दोनों शवों को पोस्टमार्टम हाउस, इटावा भिजवा दिया. ऐहतियात के तौर पर उन्होंने गांव में पुलिस फोर्स तैनात कर दी.

थाना पुलिस ने रामकिशोर की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद थानाप्रभारी आर.के. सिंह ने कई संदिग्ध अपराधियों को पकड़ कर उन से पूछताछ की.

मृतका संध्या तथा शालू के शवों का पोस्टमार्टम डाक्टरों के पैनल ने किया. इस पैनल में डा. वीरेंद्र सिंह, डा. पीयूष तिवारी तथा डा. पल्लवी दीक्षित सम्मलित रहीं. उन्होंने रिपोर्ट में बताया कि दोनों बहनों की मौत 16 से 18 घंटे पहले सीने में गोलियां लगने से हुई थी.

दोनों के मरने में 3 से 5 मिनट का अंतर रहा होगा. गोलियां दिल के आरपार हो गई थीं. शरीर और नाजुक अंगों पर चोटों के निशान नहीं पाए गए. किशोरियों और हत्यारों के बीच हाथापाई के निशान भी नहीं मिले. अर्थात उन दोनों के साथ बलात्कार नहीं किया गया था.

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एसएसपी अशोक त्रिपाठी ने इस डबल मर्डर के खुलासे के लिए एक सशक्त पुलिस टीम गठित की. इस टीम में 4 तेजतर्रार इंस्पेक्टरों, 6 सबइंसपेक्टरों तथा एक दरजन कांसटेबिलों को सम्मिलित किया गया. सहयेग के लिए सर्विलांस टीम को भी लगाया गया. एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह की अगुवाई में पुलिस टीम ने हत्यारों की तलाश शुरू कर दी.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर मृतक बहनों के मातापिता व भाई के बयान दर्ज किए. भाई जितेंद्र के बयानों से पुलिस टीम को पता चला कि पड़ोसी गांव नगरा का रहने वाला विनीत उर्फ जीतू आवारा किस्म का युवक है. घटना से लगभग 3 महीने पहले उस ने संध्या से छेड़खानी की थी. विरोध पर उस ने उसे सबक सिखाने की धमकी दी थी.

विनीत उर्फ  जीतू पुलिस टीम के रडार पर आया तो पुलिस ने उसे तलाशना शुरू किया. लेकिन वह घर से फरार था. उस का मोबाइल सर्विलांस पर लगा दिया गया था. साथ ही उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई, जिस से पता चला कि 15 अप्रैल, 2019 की शाम 7 बजे उस ने जिस फोन नंबर पर बात की थी. वह नंबर कैलाशमऊ के आनंद का है.

पुलिस टीम ने आंनद को पकड़ लिया. घटनास्थल से पुलिस को संध्या का जो मोबाइल फोन मिला था, पुलिस ने उसे चैक किया, तो उस में आनंद का नंबर मिला. इस से पुलिस टीम समझ गई कि आनंद ने ही फोन कर संध्या को खेत पर बुलाया था.

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पुलिस ने थाने ले जा कर आनंद से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि वह इस दोहरे हत्याकांड में शामिल था. उस ने बताया कि हत्या का मुख्य किरदार विनीत उर्फ जीतू है. उस ने अपने दोस्त अतिवीर और रंजीत के साथ मिल कर हत्या की योजना बनाई थी. बाद में वह भी उस में शामिल हो गया था.

पुलिस टीम ने आनंद से कहा कि  वह जीतू से फोन पर बात करे, जिस से उस की लोकेशन ट्रेस हो जाए. पुलिस के दबाव में आनंद ने जीतू से बात की तो उस ने बताया कि वह सिविल लाइंस इटावा में है. लेकिन देर रात अपने घर नगरा पहुंच जाएगा. यह पता चलते ही पुलिस टीम ने रात में दबिश दे कर विनीत उर्फ जीतू को पकड़ लिया.

इस के बाद पुलिस ने उस के दोस्त अतिवीर व रंजीत को हिरासत में ले लिया. इन सब का आमनासामना थाने में हुआ तो सभी के चेहरे उतर गए. बाद में सभी ने जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस टीम ने हत्याओं का परदाफाश कर अभियुक्तों को पकड़ने की जानकारी एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी को दी. त्रिपाठी ने आननफानन में प्रैसवार्ता की और हत्यारों को मीडिया के सामने पेश कर डबल मर्डर के बारे में सब कुछ बता दिया.

चूंकि सभी ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी आर.के. सिंह ने विनीत उर्फ जीतू आनंद, रंजीत व अतिवीर को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के बसरेहर थाना अंतर्गत एक गांव है कैलामऊ. इसी गांव में रामकिशोर अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी जयदेवी के अलावा 3 बेटियां तथा एक बेटा जितेंद्र था.

रामकिशोर के पास थोड़ी सी खेती की जमीन थी. उसी से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. रामकिशोर की आर्थिक स्थिति भले ही कमजोर थी. लेकिन समाज के लोग उस की बहुत इज्जत करते थे. वह बिरादरी की पंचायत का मुखिया था. रामकिशोर अपनी बड़ी बेटी का विवाह औरैया जिले में कर चुका था. रामकिशोर की 3 बेटियों में संध्या मंझली बेटी थी. वह अपनी अन्य बहनों से कुछ ज्यादा ही तेजतर्रार थी. वह खूबसरत तो थी ही.

संध्या जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही चंचल और पढ़ने में तेज थी. हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वह आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन उस के मांबाप ने उसे आगे पढ़ाने से साफ  मना कर दिया था. मजबूरन उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी. इस के बाद वह मां के साथ घरेलू काम में हाथ बंटाने लगी.

संध्या पर वैसे तो गांव के कई युवक फिदा थे लेकिन पड़ोसी गांव नगरा का रहने वाला 23 वर्षीय विनीत उर्फ  जीतू उस के नजदीक आने के लिए कुछ ज्यादा ही उतावला था. विनीत के पिता धनाढ्य किसान थे. गांव में उन का दबदबा था. विनीत आवारा किस्म का युवक था. वह बाप की कमाई पर ऐश करता था. उस ने गांव के कई हमउम्र लड़कों से दोस्ती गांठ रखी थी.

संध्या के भाई जितेंद्र से भी विनीत उर्फ जीतू की जानपहचान थी. कभीकभी दोनों के बीच गपशप भी हो जाती थी. ऐसे ही एक रोज सुबह को विनीत संध्या के घर आया और घर के बाहर पड़ी कुरसी पर बैठ गया.

फिर संध्या के भाई जितेंद्र से उस की बातचीत होने लगी. संध्या उस समय चबूतरे पर झाड़ू लगा रही थी. उस की नजरें विनीत से टकरा जातीं तो वह मुसकरा देता. यह देख संध्या नजरें झुका लेती.

विनीत के मन में आया कि वह उस के सौंदर्य की जी भर कर प्रशंसा करे, मगर संकोच के झीने परदे ने उस के होंठों को हिलने से रोक लिया. हालांकि उस के मनमस्तिष्क में जज्बातों की खुशनुमा हवाएं काफी देर तक हिलोरें लेती रहीं.

विनीत के मनमस्तिष्क में इधर सुखद विचारों का मंथन चल रहा था. उधर संध्या के दिलोदिमाग में एक अलग तरह की हलचल मची हुई थी. उन्हीं विचारों में खोई संध्या भाई के कहने पर किचन में गई और 2 कप चाय बना कर ले आई.

उस रोज संध्या के हाथों की बनी चाय पीते समय विनीत की आंखें लगातार उस के शवाबी जिस्म का जायजा लेती रहीं. दिन के उजाले में ही विनीत की आंखें उस के हुस्न के दरिया में डूब जाने के सपने देखने लगीं.

इस  मुलाकात में संध्या की मोहब्बत की आस में उस पर ऐसी दीवानगी सवार हुई कि वह उसे अपनी आंखों का काजल बना बैठा. कुछ ही दिनों में आंखों से उठ कर संध्या ने विनीत की रूह में आशियाना बना लिया. विनीत जैसा ही हाल संध्या का भी था. रात को वह सोने के लिए लेटती तो विनीत का मुसकराता चेहरा पलकों में आ कर छुप जाता.

संध्या का स्वयं के प्रति रुझान देख कर विनीत की उस के प्रति दीवानगी बढ़ती गई. जब भी उसे संध्या की याद आती वह उस से मिलने के लिए उस के घर पहुंच जाता. विनीत को देख कर संध्या का चेहरा खिल उठता. वह उस का दिल खोल कर स्वागत करती.

प्रेम, बंधन में स्वतंत्रता तो देता है, लेकिन सामाजिक वर्जनाएं अप्रत्यक्ष रूप से दीवार की तरह खड़ी होने लगती हैं. जिन्हें प्रेमी युगल अकसर नजरअंदाज कर भावनाओं में बहते रहते हैं. बाद में उस के परिणाम बडे़ भयावह होते है.

वैसे प्यार पाना व देना हर व्यक्ति चाहता है. यह बहार हर व्यक्ति की जिंदगी में जरूर आती है, लेकिन कुछ की जिंदगी में यह आ कर ठहर जाती है. जबकि कुछ की जिंदगी से बिना स्पर्श किए निकल जाती है. कुछ ऐसे भी होते हैं जिन की जिंदगी इस बहार से गुलजार होती है, ठहरती भी है.

यही हाल संध्या और विनीत की जिंदगी का भी हुआ. जब दोनों का प्यार परवान चढ़ा तो संध्या के मातापिता को शक हुआ. वह विनीत के घर पर आने का विरोध करने लगे लेकिन संध्या और विनीत ने मिलनाजुलना बंद नहीं किया. अंतत: संध्या की हरकतों से परेशान उस के मातापिता उस से सख्ती से पेश आने लगे.

एक रोज शाम के धुंधलके में संध्या के भाई जितेंद्र ने संध्या व विनीत को गांव के बाहर बगीचे में हंसतेबतियाते देख लिया. उस ने उस समय तो संध्या से कुछ नहीं कहा, लेकिन कुछ देर बाद जब वह घर लौटी तो जितेंद्र ने उस की पिटाई की फिर गुस्से से बोला, ‘‘संध्या, तू क्यों घर की इज्जत नीलाम कर रही है. उस आवारा, गुंडे जीतू से तुझे इश्क फरमाते शरम नहीं आती. कान खोल कर सुन ले, आज के बाद तू उस से नहीं मिलेगी.’’

उस रोज भाई की पिटाई से आहत संध्या काफी देर तक सिसकती रही. उस के बाद मां जयदेवी कमरे में आई और उस के आंसुआें को पोंछते हुए बोली, ‘‘बेटी, तेरा भाई, तेरा दुश्मन नहीं है. उस ने तुझ से जो भी कहा, वह सही है. जीतू आवारा लड़का है. ऐसे लड़कों से दूर रहने में ही भलाई है.’’

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भाई की डांटडपट और मां की नसीहत ने संध्या के मन में हलचल पैदा कर दी. वह सोच ने लगी कि शायद मां और भाई सही कह रहे हैं. अत: उस ने निश्चय कर लिया कि अब वह विनीत के झांसे में नहीं आएगी और उससे दूरी बना कर रखेगी. संध्या ने जो सोचा उस पर अमल करना भी शुरू कर दिया. अब वह विनीत से कन्नी काटने लगी.

संध्या ने जब विनीत से बातचीत बंद कर दी तो वह परेशान रहने लगा. आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने किसी तरह संध्या से मुलाकात की और पूछा कि वह उस से दूर क्यों भाग रही है. इस पर संध्या ने दो टूक जवाब दिया, ‘‘जीतू, हमारेतुम्हारे विचार मेल नहीं खाते. हमारीतुम्हारी नहीं निभ सकती. इसलिए तुम मुझे भूल जाओ.’’

संध्या की बात सुन कर विनीत सन्न रह गया. उस के प्रेम संबंधों को संध्या ने एक ही झटके में तोड़ दिया. इस के पहले कि वह गुस्से से बेकाबू होता, संध्या वहां से चली गई. विनीत उसे देखता रह गया.

घर पहुंचने पर विनीत को लगने लगा कि संध्या ने उस के प्रेम को यों ही नहीं ठुकराया, जरूर उस के जीवन में कोई दूसरा आ गया होगा. वह दूसरा कौन है वह इस का पता लगाने में जुट गया. एक रोज संध्या उसे अपने खेत पर दिखी. कुछ देर बाद वह घर वापस जाने लगी तो विनीत ने उस का रास्ता रोक लिया और पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे जीवन में कोई दूसरा आ गया है?’’

संध्या ने तपाक से कहा, ‘‘हां, आ गया है. तुम्हें क्या करना है?’’ संध्या ने उस से साफ  कह दिया कि अब उस का उस से कोई वास्ता नहीं है. वह उस के रास्ते में न आए.

संध्या के तीखे तेवरों से विनीत पूरी तरह  टूट गया. उस के मन को गहरी चोट लगी. विनीत के 3 जिगरी दोस्त थे आंनद, रंजीत व अतिवीर. ये तीनों कैलामऊ गांव में ही रहते थे.

दोस्तों को जब उस की हालत का पता चला तो उन्होंने विनीत को समझाया कि तेरे लिए लड़कियों की कमी नहीं है. जीवन में ऐेसे मोड़ तो आते रहते हैं. लेकिन विनीत अपना आत्मविश्वास खोता जा रहा था और प्रतिशोध की आग में जलने लगा था.

विनीत अब जब भी दोस्तों के साथ बैठ कर शराब पीता, तो संध्या की वेवफाई की चर्चा जरूर होती थी. बात वेवफाई से शुरू हो कर प्रतिशोध पर खत्म होती थी. चूंकि उस के दोस्तों को मुफ्त में शराब पीने को मिलती थी, सो वह विनीत की हां में हां मिलाते थे और उस का साथ देने का वादा करते थे.

जनवरी 2019 के प्रथम सप्ताह में एक रोज विनीत अपने दोस्तों रंजीत, आंनद व अतिवीर के साथ गांव के बाहर बगीचे में बैठा शराब पी रहा था. तभी उसे खेत की तरफ से आती संध्या दिखाई दी. वह खेत से टोकरी में आलू ले कर घर लौट रही थी. संध्या को देख कर विनीत अपने दोस्तों के साथ उस के पास पहुंचा और उस से छेड़खानी करने लगा.

विनीत के साथ 3 दोस्तों को देख कर संध्या घबरा गई. वह आलू की टोकरी फेंक कर सिर पर पैर रख कर घर की ओर भागी. लेकिन उन शैतानों ने उसे पुन: पकड़ लिया और उस के नाजुक अंगों के साथ छेड़खानी करने लगे. संध्या चीखनेचिल्लाने लगी.

उस की चीख सुन कर खेतों पर काम कर रही महिलाएं व पुरुष उस की तरफ  दौडे़ तब वे चारों उसे छोड़ कर भाग निकले.

संध्या आंसू बहाते घर पहुंची और अपने साथ हुई छेड़खानी की बात अपने मांबाप व भाई को बताई. घर वालों ने उन लोगों से झगड़ना उचित नहीं समझा और वे संध्या को ले कर थाना बसरेहर पहुंच गए. उन्होंने संध्या की तरफ  से विनीत व उस के साथियों के विरुद्ध छेड़खानी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने त्वरित काररवाई करते हुए विनीत, रंजीत आनंद व अतिवीर को पकड़ लिया और जेल भेज दिया. एक सप्ताह के अंदर ही उन की जमानत हो गई. इस घटना के बाद संध्या डरी सी रहने लगी. अब वह जहां भी जाती अपनी छोटी बहन शालू को साथ ले जाती थी.

इधर जमानत पर आने के बाद विनीत को पता चला कि संध्या अब गांव के संजय नामक युवक से प्यार करती है. यह पता चलते ही विनीत प्रेम प्रतिशेध के लिए उतावला रहने लगा. उस ने निश्चय किया कि संध्या यदि उस की न हुई तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा.

उस ने प्रतिशोध की बात दोस्तों से साझा की तो वह विनीत का साथ देने को तैयार हो गए. इस के बाद विनीत व उस के दोस्तों ने संध्या की हत्या की योजना बनाई. साथ ही तमंचा व कारतूसों का भी इंतजाम कर लिया.

15 अप्रैल, 2019 की शाम योजना के अनुसार विनीत उर्फ  जीतू शराब की बोतल ले कर अपने दोस्त आनंद, रंजीत व अतिवीर के साथ गांव के बाहर खेत पर पहुंचा. विनीत लोडिड तमंचा कमर में खोंसे था. वहां बैठ कर चारों शराब पीने लगे. जब अंधेरा घिरने लगा तब विनीत ने आंनद के फोन से संध्या को फोन कराया.

विनीत ने संध्या को फोन उस समय खरीद कर दिया था जब दोनों का प्रेम संबंध चल रहा था. आनंद ने संध्या से बात की और कहा कि वह और विनीत उस से माफी मांगना चाहते हैं. दोनों छेड़खानी के मुकदमे में उससे समझौता करना चाहते हैं.

संध्या ने पहले तो इनकार कर दिया, लेकिन जब आनंद ने उस से पैर छू कर माफी मांगने की बात कहीं तो वह राजी हो गई. इस के बाद उस ने अपनी छोटी बहन शालू को साथ लिया और मां से जंगल जाने की बात कह कर घर से निकल पड़ी.

अंधेरा घिर आया था, सो उस ने टौर्च भी ले ली थी. छोटी बहन शालू के साथ संध्या गांव के बाहर खेत पर पहुंची. वहां आनंद और विनीत के अलावा रंजीत व अतिवीर भी थे.

खेत पर विनीत व आनंद ने मुकदमे से संबंधित कोई चर्चा नहीं की और न ही माफी मांगी. उलटे विनीत उसे धमकाने लगा कि वह संजय से रिश्ता तोड़ कर उस से रिश्ता जोडे़. इस पर संध्या ने कहा कि वह उस से नफरत करती है. इसलिए इस बारे में उस से बात न करे.

यह सुनते ही विनीत का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने कहा, ‘‘संध्या यदि तू मेरी नहीं हुई तो तुझे किसी और की भी नहीं होने दूंगा.’’ कहते हुए विनीत ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और संध्या पर 2 फायर झोंक दिए. गोली संध्या के दिल को चीरती हुई पार निकल गई. संध्या खून से लथपथ हो कर जमीन पर गिर पड़ी और उस ने दम तोड़ दिया.

बड़ी बहन की मौत का मंजर देख कर शालू की घिग्घी बंध गई. फिर भी वह भागी. लेकिन रंजीत और अतिवीर ने उसे यह कह कर दबोच लिया कि यह तो संध्या की हत्या की गवाह है. यह बच गई तो हम सब पकडे़ जाएंगे.

अत: आनंद ने विनीत के हाथ से तमंचा ले कर शालू के सीने पर भी 2 गोलियां दाग दीं. शालू भी खून से लथपथ हो कर संध्या के शव के पास धराशायी हो गई और दम तोड़ दिया. दोनों बहनों की हत्या करने के बाद विनीत तमंचा, कारतूस आदि मौके पर छोड़ कर साथियों सहित भाग गया.

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इधर रात में संध्या और शालू के घर वालों ने उन की तलाश नहीं की. इस की वजह यह थी कि पड़ोस में ज्ञान सिंह के यहां तिलक समारोह था. घर वालों ने सोचा कि दोनों बहनें वहीं चली गई होंगी. लेकिन सुबह जब शोर मचा, तब घर वालों को जानकारी हुई. पुलिस ने अभियुक्त विनीत उर्फ  जीतू, रंजीत, आनंद तथा अतिवीर को इटावा कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

स्मिता तुम फिक्र मत करो-भाग 3: सुमित और स्मिता की पहली मुलाकात कैसी हुई थी?

स्मिता ने यह काम विशाल को सौंप दिया और सबकुछ देखभाल कर रजत को मार्केटिंग हैड नियुक्त किया गया. रजत ने काफी अच्छी तरह से काम संभाल लिया था. स्मिता कभीकभी फैक्ट्री जाती थी पैसों का हिसाबकिताब देखने. स्मिता ने कौमर्स पढ़ा था इसलिए अकाउंट्स वह देख लेती थी.
स्मिता नोट कर रही थी कि जब भी वह फैक्ट्री जाती रजत किसी न किसी बहाने से उस के नजदीक आने की कोशिश करता. वैसे रजत बुरा इंसान नहीं था लेकिन इस का ऐसा बरताव स्मिता को कुछ अटपटा लगता.
रात के 8 बज रहे थे. दरवाजे की घंटी बजी तो सोमा काकी ने दरवाजा खोला.
‘‘स्मिता मैडम हैं?’’ रजत 2-3 फाइल हाथ में पकड़े खड़ा था.
‘‘हां, लेकिन आप?’’ सोमा काकी ने पूछा.
‘‘मैं रजत, फैक्ट्री का न्यू मार्केटिंग हैड’’ रजत अपना परिचय दे ही रहा था तब तक स्मिता दरवाजे तक आ गई.
‘‘आप, इस वक्त, क्या बात है?’’ स्मिता ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘मैडम, जरूरी कागज पर साइन चाहिए थे. क्लाइंट से बात हो चुकी है. बस आप के अप्रूवल की जरूरत थी.’’
‘‘आइए, बैठिए, लाइए पेपर दीजिए,’’ स्मिता ने रजत से पेपर ले लिए.
रजत की आंखें घर का मुआयना कर  रही थीं. साइड टेबल पर फ्रेम में अवि और परी की फोटो देख कर बोला, ‘‘बहुत प्यारे बच्चे हैं आप के मैडम.’’
‘‘हूं,’’ स्मिता बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी. पेपर साइन कर के रजत की ओर बढ़ा दिए.
सोमा काकी को रजत की आंखों में लालच नजर आया था. शामू काका से सोमा काकी को पता तो चला था कि फैक्ट्री में नया आदमी आया है और काफी अच्छा काम कर रहा है. आज देख भी लिया, लेकिन रजत सोमा को कुछ ठीक सा नहीं लगा. इंसान को देख कर पहचान लेती थीं वे. जिंदगी ने इतनी ठोकरें दी थीं कि अच्छेबुरे की पहचान कर सकती थीं.
‘‘नहींनहीं, स्मिता बिटिया को इस से बचाना होगा,’’ सोमा काकी के दिमाग में एक उपाय सू झा.
घर के पीछे बने गैराज में गईं. शामू काका वहीं रहते थे. खानापीना, नहानाधोना सब इंतजाम कर रखे थे उन के लिए.
‘‘क्या बात है, इस वक्त यहां?’’ शामू काका दूध गरम कर रहे थे. खाना तो उन्हें घर से मिल ही जाता था.
‘‘शामू, तु झे फैक्ट्री में आए नए आदमी… क्या नाम है… हां, रजत उस पर नजर रखनी है. मु झे उस के इरादे ठीक नहीं लग रहे.’’
‘‘हूं… कभीकभी मु झे भी ऐसा लगता है. जिस तरह से वह स्मिता बिटिया को देखता है मु झे बुरा लगता है. फैक्ट्री में कितने आदमी हैं लेकिन यह बिटिया के आसपास मंडराता रहता है.’’
अगले दिन जब रजत फैक्ट्री से निकला, शामू काका ने गाड़ी उस के गाड़ी के पीछे लगा दी. उस ने गाड़ी मौल की पार्किंग में खड़ी कर दी. शामू काका भी गाड़ी पार्क कर उस के पीछे हो लिए. शामू काका ने अपना हुलिया बदला हुआ था. रजत उन्हें आसानी से पहचान नहीं सकता था.
रजत मौल के फूड कोर्ट में पहुंचा. वहां कोने की टेबल पर एक लड़की उस का इंतजार कर रही थी.
‘‘मिल आए अपनी स्मिता मैडम से?’’ लड़की ने ताना देते हुए कहा.
‘‘यार, तुम भी न. सब अपने और तुम्हारे लिए तो कर रहा हूं. हाथ में आ गई तो वारेन्यारे हो जाएंगे. तुम बस मेरा कमाल देखती जाओ.’’
शामू काका एक टेबल छोड़ कर बैठे थे. लेकिन उन के कान पीछे लगे थे. अब रजत की असलियत सामने थी.
शामू ने सोमा के सामने घर पहुंचते ही रजत का फरेब सामने रख दिया.
सोमा काकी ने भी स्मिता को रजत का कमीनापन बताने में देर नहीं लगाई.
स्मिता को रजत की हरकतों पर पहले ही शक था. शामू काका की बात पर यकीन न करने का सवाल ही नहीं उठता था.

अगले ही दिन स्मिता ने मैनेजर विशाल से बात कर के एक प्लान के तहत रजत का फैक्ट्री से हिसाब ऐसे किया कि उसे यह पता नहीं चला कि स्मिता को उस की सचाई पता चल चुकी है.
स्मिता जान चुकी थी कि अब उसे कदमकदम पर फरेब करने वाले,  झूठी हमदर्दी दिखा कर अपनेपन का दिखावा करने वाले और प्यार करने का दावा करने वाले लोग मिलेंगे. उसे हर कदम फूंकफूंक कर उठाना है.
शामू काका और सोमा काकी ने भी यह ठान लिया था कि स्मिता की, इस घर की और बच्चों की हर हाल में रखवाली करेंगे. खून का न सही, दिल का रिश्ता जुड़ा था उन का इन सब से.
रजत की तरह ही स्मिता को काम के सिलसिले में ऐसे लोग मिल जाते थे जिन्हें स्मिता की धनदौलत से बेशक मतलब न था लेकिन उस जैसी सुंदर, स्मार्ट, अकेली औरत को देख कर उसे पाने की उन्होंने कोशिशें कीं कि शायद दांव लग जाए. लेकिन स्मिता ने अपने दिल में सुमित को बैठा रखा था. कोई दूसरा उस में घुस नहीं सकता था.
स्मिता की मम्मी का आएदिन फोन आता और दबी जबान में उन की यही ख्वाहिश होती थी कि बेटी अपनी जिंदगी के बारे में एक बार फिर से सोचे. अभी उम्र ही क्या थी उस की. महज 34 साल की थी. लेकिन स्मिता बात को दूसरी तरफ मोड़ देती थी.

स्मिता के पीछे पड़ने वाले भौंरों की कमी न थी. एक बड़े होलसेल डीलर, जो लाखों का और्डर देते थे, स्मिता से मिलने के बाद 2 करोड़ रुपए के माल खरीदने का और्डर दे गए और कच्चा माल उधार में दिलवा दिया अलग. वे अब हर दूसरेतीसरे दिन आने लगे, तो शामू काका को शक हुआ. उन्होंने बाहर खड़ी डीलर की गाड़ी के ड्राइवर को बुला कर चाय पिलाना शुरू कर दिया. ड्राइवर ने बताया कि साहब की पत्नी कई साल से अलग रह रही है क्योंकि ये इधरउधर मुंह मारते रहते हैं.
एक बार फिर शामू काका ने स्मिता को संकट से निकाला. शामू काका ने कहा था कि बड़े मालिक ने उन्हें 10 साल की उम्र से रखा हुआ है और अब भी उन का अपना कोई नहीं है. वे बचपन में कब अनाथ हो गए थे, उन्हें नहीं मालूम. बस, इतना मालूम है कि उन के गांव के चाचा बड़े मालिक के पास किसी पुराने कर्मचारी की सिफारिश पर छोड़ गए थे.

सोमा काकी अकसर स्मिता को अकेले में बैठी आंसू बहाते देखती थीं. वे भी चाहती थीं कि स्मिता को अपने जीवन की खुशियां मिलें, लेकिन वे क्या कर सकती थीं अपनी इस बिटिया के लिए.

स्मिता तुम फिक्र मत करो-भाग 2: सुमित और स्मिता की पहली मुलाकात कैसी हुई थी?

सरकार द्वारा लोगों को पूरी एहतियात बरतने की सलाह दी जा रही थी. टीवी चैनलों में यही न्यूज छाई हुई थी. मानव से मानव में होने वाली इस बीमारी की चपेट में पूरा विश्व आ गया था.
बच्चों के स्कूल तो बंद हो गए थे. स्मिता ने सुमित को फैक्ट्री जाने से मना किया था. लेकिन सुमित का कहना था कि हो सकता है देशभर में लौकडाउन की स्थिति बन जाए, इसलिए वह फैक्ट्री का काम काफी हद तक समेटना चाहता है ताकि आगे दिक्कत न हो, लेकिन इंसान अपनेआप को कितना ही बचा ले, प्रकृति के आगे उस की एक नहीं चलती.
दिल्ली में जैसे ही लौकडाउन का ऐलान हुआ, उस से एक दिन पहले सुमित कोरोना वायरस की चपेट में आ चुका था.
स्मिता ने बच्चों को ऊपर के फ्लोर में ही रहने की हिदायत दे दी थी. सोमा काकी थीं, तो स्मिता को बच्चों की फिक्र करने की जरूरत नहीं थी. सुमित की बिगड़ती हालत देखते हुए उसे अस्पताल में भरती करा दिया गया.
अस्पताल जाने से पहले सुमित बोला था, ‘सुमि, लगता है अब तुम्हें, बच्चों को, इस घर को दोबारा नहीं देख पाऊंगा. सुमि, मैं तुम से, बच्चों से, इस घर से बहुत प्यार करता हूं. मु झे मरना नहीं है, प्लीज, मु झे बचा लो. मैं तुम सब को छोड़ कर जाना नहीं चाहता. सुमि, मु झे लग रहा है मौत मु झे बुला रही है. नहीं सुमि, नहीं, मु झे नहीं छोड़ना तुम्हारा साथ.’
स्मिता का रोरो कर बुरा हाल था. सुमित की यह हालत उस से भी नहीं देखी जा रही थी. लेकिन करती भी क्या वह, उस के हाथ में हो तो अपनी जिंदगी उस के नाम लिख देती.
अस्पताल में एक बार मरीज को भरती कराने के बाद उस से मिलना मुश्किल था. सुमित के साथ वहां अस्पताल में क्या हो रहा है, कुछ दिनों तक तो पता ही नहीं चला. टीवी पर अस्पताल के बुरे हालात, मरीज के साथ बरती जाने वाली लापरवाही और मरीजों की मौत के बाद उन के शरीर के साथ अमानवीयता देख स्मिता सिहर उठती थी. फोन की हर घंटी किसी आशंका का संकेत देती थी और वाकई उस की आशंका सच में बदल गई. सुमित नहीं बच पाया था.
यह सुनते ही स्मिता जैसे पत्थर हो गई थी. सोमा काकी न होतीं तो शायद आज वह भी जिंदा न होती.

मम्मीजी की मौत को 2 महीने भी नहीं हुए थे, और सुमित का उसे यों अचानक छोड़ कर चले जाना. ऊपर से लौकडाउन की वजह से कोई घर नहीं आ सकता था. कोई पास आ कर उसे गले नहीं लगा सकता था. कोई पास नहीं था कि वह उस के कंधे पर सिर रख कर रो सके. बस, एक सोमा चाची थीं जिन की गोद में वह सिर रख सकती थी. वे ममता की मूरत बन स्मिता को संभाले हुए थीं. बच्चे तो कुछ सम झ नहीं पा रहे थे कि सब क्या हो रहा है. 8 साल का अवि कुछकुछ सम झ रहा था लेकिन 2 साल की परी तो अभी नादान थी.
अस्पताल से सुमित के पार्थिव शरीर को ले कर अंतिम संस्कार करना था. शामू काका स्मिता के साथ थे, वरना अभी तक तो स्मिता की हिम्मत टूट चुकी थी. कोई अपना सगासंबंधी नहीं था. लौकडाउन की हालत में चंड़ीगढ़ से किसी का आना मुश्किल था. अड़ोसीपड़ोसी फोन पर ही अफसोस जता रहे थे. सुमित का दोस्त उदय जरूर काफी मदद कर रहा था. सुमित उस का बचपन का दोस्त था, वह स्मिता को क्या दिलासा देता, उस के भी आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.
स्मिता असहाय महसूस कर रही थी अपने को. सामान्य दाहसंस्कार तो दूर की बात थी, स्मिता सुमित के शरीर को छू भी नहीं सकती थी, वह सुमित जिस के बिना वह जीने की कल्पना नहीं कर सकती थी. कितनी बेबस थी वह, चीखचीख कर रोना चाहती थी, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था.
किसी तरह शवदाहगृह में क्रियाकर्म हुआ. अचानक सब क्या हो गया था. स्मिता की तो दुनिया ही बदल गई थी.
3 महीने गुजर गए थे सुमित को गुजरे हुए लेकिन स्मिता सदमे से उबरी नहीं थी. अवि और परी उस के पास आते और कहते, ‘मम्मी, खेलो न हमारे साथ,’ तो स्मिता खोईखोई आंखों से, बस, उन्हें देख कर सिर पर हाथ फेर फिर न जाने कहां खो जाती.
कोशिश कर रही वह खुद को संभालने की, लेकिन हो नहीं पा रहा था. ऐसे में सोमा काकी ही एक मां की तरह उसे संभाल रही थीं. गांव से तो उन का नाता कब का टूट गया था. पति की मौत के बाद ससुराल वालों ने उन्हें एक तरह से घर से निकाल दिया था. आस न आलौद. शहर आईं तो इस घर में उन्हें ऐसा आसरा मिला, कि यहीं की हो कर रह गईं.

रोज चंड़ीगढ़ से मम्मीपापा का फोन आता था. मम्मी रोतीं उसे तसल्ली देतीं. मम्मी के पैरों में दर्द रहता था और पापा की हार्टसर्जरी हो चुकी थी, इसलिए स्मिता ने उन्हें सख्त मना कर दिया कि कोई जरूरत नहीं दिल्ली आने की. अपनी सेहत का खयाल रखो. आ कर भी अब क्या हो जाएगा, सुमित वापस तो नहीं आ जाएगा.
स्मिता ने अब कभीकभी फैक्ट्री जाना शुरू कर दिया था. अनलौक की प्रक्रिया काफी हद तक शुरू हो गई थी. उन का टेप का बिजनैस था. छोटी से ले कर बड़ी हर तरह की टेप बनती थी उन की फैक्ट्री में. कोरोनाकाल में पीपीई किट के लिए टेप का इस्तेमाल होता है. फैक्टी का मैनेजर विशाल बिजनैस माइंडेड इंसान था.
टेप तो फैक्ट्री में बन ही रही है क्यों न पीपीई किट खुद ही अपनी फैक्ट्री में बनाई जाए. बस, काम चल पड़ा था. विशाल ने स्मिता को सजेशन दिया कि मार्केटिंग के लिए कोई नया व्यक्ति चुन लिया जाए, क्योंकि यह काम पहले सुमित देखता था.

झूठी एफआईआर और ख़त्म होती ज़िंदगियां

देश में न तो कानून का राज है और न कानून का डर. कानून अब ताकतवरों, रसूखदारों के हाथ का खिलौना बन गया है. कानून के रखवाले न तो कानून को ठीक तरीके से लागू कर पा रहे हैं और न ही उस की हिफाज़त कर पा रहे हैं. यही वजह है कि अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को परेशान करने, सत्ता में बने रहने, सांप्रदायिक उन्माद फैलाने, वोटों की खातिर ध्रुवीकरण करने, धर्मविशेष के लोगों को दहशत में रखने, बहुओं द्वारा ससुराल वालों से बदला लेने, ज़मीनजायदाद हड़पने आदि के लिए रसूखदार लोगों द्वारा पैसे व ताकत के बल पर कानून को तोड़मरोड़ कर अपने हक़ में इस्तेमाल करने, झूठी एफआईआर दर्ज करवा कर लोगों को परेशान करने, उन्हें जेल भेजने और यहां तक कि उन पर रासुका या देशद्रोह जैसा इलज़ाम लगा कर सालों सलाखों में कैद रखने के लाखों उदाहरण बिखरे पड़े हैं.

भीमा कोरेगांव में दलितों का उत्पीड़न हो, दिल्ली की जामिया मिल्लिया के छात्रों का उत्पीड़न हो, डा. कफील का मामला हो, आईपीएस संजीव भट्ट का केस हो या आईपीएस दारापुरी को जेल भेजने का, आतंकी बता कर मुसलिम युवाओं को उत्पीड़ित करने का मामला हो या गोकशी-गोतस्करी के झूठे आरोप में फंसाने का, 498-ए का दुरुपयोग कर के घरेलू हिंसा और दहेज़ मांगने का आरोप लगा कर पतियों और ससुरालियों का उत्पीड़न करना हो या राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को परेशान करने या जेल भेजने की बात हो, एक झूठी एफआईआर एक निर्दोष की पूरी जिंदगी ख़ाक करने के लिए काफी है. वह अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ता रहेगा, जिंदगी के तमाम साल बरबाद कर देगा, सारी जमापूंजी पुलिस-वकीलों और कोर्ट के चक्कर लगाने में खर्च कर देगा, आरोपों के चलते अपनी इज्जत का जनाज़ा उठते देखेगा, समाज में तिरस्कार और अपमान सहेगा, नौकरी-धंधे से हाथ धो बैठेगा, सालोंसाल जेल काटेगा और अगर कहीं थोड़ा भाग्यशाली रहा और सालों चली कानूनी कार्रवाई के बाद कोर्ट में अपनी बेगुनाही साबित कर पाया, तब भी समाज में मुंह उठा कर चलने व जीने के काबिल नहीं बचेगा.

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कश्मीर से ले कर दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, मेरठ, गाज़ियाबाद से कितने ही मुसलिम युवा माथे पर आतंकी का लेबल चिपकाए आज भी जेल की सलाखों में कैद हैं. विश्वविद्यालयों के कितने युवा देशद्रोही का लेबल लगा कर कालकोठरी में ठूंस दिए गए हैं, कितने नौजवान अपनी पत्नियों द्वारा घरेलू हिंसा और दहेज़ प्रताड़ना के झूठे मुकदमों में जेल में जवानी बरबाद कर रहे हैं. खुद सुप्रीम कोर्ट यह बात कह चुका है कि 498-ए का दुरुपयोग कर पतियों और ससुरालियों के खिलाफ महिलाओं द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में 99 फ़ीसदी फ़र्ज़ी होती हैं, जो सिर्फ तंग करने, धन उगाहने, अपमानित करने या बदला लेने की नीयत से करवाई जाती हैं.

देशभर के पुलिस स्टेशन झूठे मुकदमों की फाइलों से पटे पड़े हैं. झूठी एफआईआर करवाने वालों से वरदी वालों को उगाही के तौर पर खासी रकम हासिल हो जाती है. एफआईआर करवाने वाली पार्टी मोटी हुई, राजनीतिक ताकत रखने वाली हुई तो बढ़िया ट्रांसफर-पोस्टिंग का चांस भी रहता है. देशभर की अदालतें झूठे मुकदमों की सुनवाई में अपना बहुमूल्य समय बरबाद कर रही हैं. इस के चलते वास्तविक मामलों को न्याय के मुहाने तक पहुंचने में कई साल लग जाते हैं. कभीकभी तो राजनीतिक साजिशों के चलते दर्ज हुए झूठे केसेस की सुनवाई के एवज़ में जजों को भी बड़ा इनाम हासिल हो जाता है. ऐसे कई उदाहरण हैं जब उच्च और उच्चतम न्यायालय के जजों को सेवानिवृत्ति के बाद संसद और बड़े संस्थानों में महत्त्वपूर्ण पदों पर आसीन होते देखा गया है. किसी निर्दोष को दोषी साबित करने और उस का जीवन जेल की सलाखों में सड़ाने के लिए संविधान और कानून को ताक पर रख कर न्यायतंत्र के लोग जुट जाते हैं. इस में मीडिया की भूमिका भी खूब होती है. इंवैस्टिगेटिंग जर्नलिज़्म का दौर ख़त्म हो चुका है. आज का मीडिया सत्ता का भोंपू बन गया है. टीवी समाचार चैनल सत्ता के प्रवक्ता के रूप में काम कर रहे हैं. ऐसे में अदालत में केस पहुंचने से पहले ही मीडिया ट्रायल हो जाता है और एक निर्दोष के लिए अदालत में अपनी बेगुनाही साबित करना और भी ज़्यादा कठिन हो जाता है.

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तबलीगी जमात पर एफआईआर

भारत में कोरोना ने कदम रखा, तो उस का ठीकरा सीधे मुसलमानों के सिर फोड़ दिया गया. दिल्ली के निजामुद्दीन में आयोजित हुए मरकज में शामिल तबलीगी जमात के लोगों पर एफआईआर दर्ज की गई, जबकि मरकज का पूरा कार्यक्रम स्थानीय थाने की जानकारी व अनुमति से हो रहा था और अचानक लगे लौकडाउन के कारण लोग मसजिद में फंस गए थे. निजामुद्दीन स्थित मरकज में तबलीगी जमात के जलसे में शामिल हुए लोगों पर इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की धारा 271 और 188 के तहत एफईआर दर्ज की गई. इस में बहुतेरे विदेशी नागरिक भी थे.

क्वारैंटाइन आदेशों का उल्लंघन करने (आईपीसी की धारा 271) और सरकार के प्रतिबंधात्मक आदेशों का उल्लंघन करने (आईपीसी की धारा 188) के लिए मुंबई में तबलीगी जमात के 150 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. धारा 271 और 188 के अलावा सभी पर आईपीसी की धारा 269 के तहत भी कार्रवाई हुई. दिल्ली, महाराष्ट्र के अलावा यूपी और तमिलनाडु समेत कई अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में तबलीगी जमात के लोगों की धरपकड़ हुई. ऐसा लगा कि देशभर में कोरोना फैलाने के जिम्मेदार सिर्फ जमाती हैं. विदेशी नागरिकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उन के पासपोर्ट जब्त कर लिए गए. सभी विदेशी नागरिकों को हैलट अस्पताल के क्वारैंटाइन वार्ड में भरती कर दिया गया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो तब चीखचीख कर कहा कि तबलीगी जमात के सदस्यों की गलतियों का खमियाजा प्रदेशवासी नहीं भुगतेंगे. कानपुर में पुलिस ने 8 विदेशी नागरिकों पर एफआइआर दर्ज की. शहर के बाबूपुरवा इलाके में स्थित सुफ्फा मसजिद से 6 फगानी, एक ईरानी और एक यूके के नागरिक मिले थे. ये आठों विदेशी दिल्ली के निजामुद्दीन की तबलीगी जमात में शामिल हुए थे. इन को बुक कर इन के पासपोर्ट जब्त कर लिए गए.

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तबलीगी जमात का मामला जब बौम्बे हाईकोर्ट में पहुंचा तब कोर्ट ने जमात में शामिल विदेशी नागरिकों पर दर्ज एफआईआर को रद्द किया. कोर्ट ने कहा- “मीडिया ने उन के ख‌िलाफ दुष्प्रचार किया, उन्हें बलि का बकरा बनाया.” बौम्बे हाईकोर्ट ने बहुत ही कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए अपना फैसला सुनाया और 29 विदेशी नागरिकों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कर दिया. आईपीसी, महामारी रोग अधिनियम, महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम और विदेशी नागरिक अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज एफआईआर टूरिस्ट वीजा का उल्‍लंघन कर दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल होने के आरोप में दर्ज की गई थी. पुलिस ने विदेशी नागरिकों के अलावा, उन्हें आश्रय देने के आरोप में अनेक भारतीय नागरिकों और मसजिदों के ट्रस्टियों को भी बुक किया था. औरंगाबाद पीठ के न्यायमूर्ति टी वी नलवाडे और न्यायमूर्ति एम जी सेवलिकर की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर 3 अलगअलग याचिकाओं को सुना, जो कि आइवरी कोस्ट, घाना, तंजानिया, जिबूती, बेनिन और इंडोनेशिया जैसे देशों से संबंधित थीं. इन सभी को पुलिस द्वारा अलगअलग क्षेत्रों की मसजिदों में रहने और लौकडाउन के आदेशों का उल्लंघन कर नमाज अदा करने की कथ‌ित गुप्त सूचनाओं के तहत बुक किया गया था.

सरकार और पुलिस का दोहरा चरित्र देखिए. कोरोनाकाल शुरू हुआ, तो मोदी सरकार ने देश में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आगमन पर ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम का आयोजन कर लाखों की भीड़ जुटाई, मगर कोरोना फैलाने के लिए उस भीड़ के खिलाफ कोई एफआईआर नहीं दर्ज कराइ गई. कोरोनाकाल में मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने रैली में लाखों की भीड़ जुटाई, हिमाचल में सड़कों पर जलसे हुए, दक्षिण में मंदिरों में पूजाअर्चना में लोगों की भीड़ उमड़ी, रथयात्राएं निकलीं, अमावस्या पर मेले लगे, लोगों ने एकसाथ नदियों में डुबकियां लगाईं, हज़ारों कार्यक्रम देशभर में चलते रहे मगर तबलीगी जमात को छोड़ कर कोरोना फैलाने के आरोप में किसी के खिलाफ कोई एफआईआर नहीं हुई.

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भीमा कोरेगांव में फ़र्ज़ी एफआईआर की बाढ़

महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव मामले से कौन वाकिफ नहीं है. ढाई सौ सालों से उच्च जाति और दलितों के बीच जारी विवाद में हज़ारों ज़िंदगियां तबाह हुई हैं. 250 वर्षों पहले हुई दलितों और मराठाओं के बीच लड़ाई में दलितों की जीत का जश्न मनाने के लिए वहां हर साल दलित समुदाय के लोग इकट्ठा होते हैं. उच्च जाति वालों को यह नागवार गुज़रता है. तकरीबन हर साल यहां दलितों के उत्साह को दबाने के लिए हिंसा का तांडव होता है. उस के बाद इस पर राजनीति खेली जाती है. बीते साल भी यहां हिंसा हुई और उस के एक साल पहले भी, जिस के चलते सैकड़ों दलित, समाजसेवी, बुद्धिजीवी, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर झूठे केस दर्ज कर के उन्हें जेलों में बंद कर दिया गया. क्या बच्चा क्या बूढ़ा, किसी को नहीं बख्शा गया.

83 वर्षीय मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी भी 23 अक्तूबर तक न्यायिक हिरासत में हैं. उन पर माओवादियों से रिश्ते रखने का आरोप है. आरोपियों पर आईपीसी और यूएपीए के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामले दर्ज किए गए हैं. राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने आरोप लगाया है कि फादर स्टेन स्वामी ने माओवादियों के एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए एक सहयोगी के मारफत धन भी प्राप्त किया था. बता दें फादर स्टेन स्वामी भाकपा (माओवादी) के एक प्रमुख संगठन परसिक्युटेड प्रिजनर्स सोलीडैरिटी कमेटी (पीपीएससी) के संयोजक भी हैं. एजेंसी ने स्वामी के पास से भाकपा (माओवादी) से जुड़े साहित्य, दुष्प्रचार सामग्री तथा संचार से जुड़े दस्तावेज बरामद दिखाए, जो कथिततौर पर समूह के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए थे. 83 साल के स्वामी, जो अब ठीक से चलफिर भी नहीं पाते, उम्र के आखिरी हिस्से में घर में अपनों के बीच होने के बजाय जेल की सलाखों में कैद हैं.

पुणे के पास कोरेगांव भीमा में एक युद्ध स्मारक के पास एक जनवरी, 2018 को हिंसा भड़की थी. इस के एक दिन पहले ही पुणे शहर में हुए एल्गार परिषद सम्मेलन के दौरान कथिततौर पर उकसाने वाले भाषण दिए गए थे. एनआईए अधिकारियों का कहना है कि जांच में यह स्थापित हुआ है कि स्वामी माओवादी गतिविधियों में संलिप्त थे. वे समूह की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, अरुण फरेरा, वर्णन गोंजाल्वेस, हनी बाबू, शोमा सेन, महेश राउत, वरवर राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बदे के संपर्क में थे, जिन पर पहले से आरोप हैं.

बीते साल अगस्त और सितंबर में 10 एक्टिविस्ट्स को गिरफ्तार किया गया था. सभी आरोपी ट्रायल का सामना कर रहे हैं. हाल ही में एनसीपी नेताओं ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात कर भीमा कोरेगांव हिंसा के आरोपियों के खिलाफ दर्ज किए गए सभी मामलों को बंद करने की मांग की थी क्योंकि उन पर लगाए गए आरोप फ़र्ज़ी हैं.

दिल्ली दंगे में फंसे निर्दोष

एनआरसी और सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और दिल्ली दंगा उस वक़्त हुआ जब अमेरिकी राष्ट्रपति के आगमन पर मोदी सरकार ‘नमस्ते ट्रंप’ का आयोजन कर रही थी. दिल्ली जल रही थी और मोदी सरकार ट्रंप के स्वागत में मशगूल थी. कोरोनाकाल शुरू हो चुका था, दिल्ली की गलियां हिंदू और मुसलिमों के लिए जंग का मैदान बनी हुई थीं और मोदी ट्रंप के स्वागत में लाखों की भीड़ इकट्ठा कर रहे थे. दिल्ली के कई इलाकों में हिंदू और मुसलिमों के बीच जारी हिंसा में दर्जनों लोग मारे गए और उधर हैदराबाद हाउस के हरेभरे बगीचे में राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी दोस्ती का जश्न मनाते रहे.

गौरतलब है कि सीएए-एनआरसी समर्थकों और विरोधियों के बीच हुई हिंसा में 20 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. 3 दिनों तक दिल्ली में हिंसा जारी रही. भीड़ ने मुसलिमों के घरों और कई मस्जिदों पर हमला किया. लोगों की दुकानें-मकान आग के हवाले कर दिए गए. मगर हिंसा भड़काने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, उलटे, पीड़ितों को उठा कर जेल में बंद कर दिया गया. तमाम निर्दोष अभी भी जेल में हैं.

विदेशी मीडिया दिल्ली हिंसा के पीछे सीधेसीधे भाजपा का हाथ बताता है और पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े करता है. दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हिंसा को ले कर एक ‘राजनीतिक‘ नजरिया अपना लिया, जिस में भड़काऊ भाषण देने वाले भाजपा नेताओं की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया गया और सीएएविरोधी कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया.

पुलिसिया उत्पीड़न का नज़ारा जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी में देखने को मिला जब निर्दोष छात्रों पर पुलिस ने लाठीडंडों से बर्बर हमला किया और तमाम छात्रों को गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया. जामिया की छात्रा, जामिया कोऔर्डिनेशन कमेटी की सदस्य और 3 माह की गर्भवती सफूरा जरगर को देश के बेहद सख्त आंतकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए के तहत आरोप लगा कर जेल भेज दिया गया. जामिया के एक और छात्र मीरान हैदर, विश्वविद्यालय के अल्युमनाई एसोसिएशन के अध्यक्ष शिफा-उर-रहमानी और 2 दूसरे सीएएविरोधी कार्यकर्ताओं ख़ालिद सैफी और पूर्व पार्षद इशरत जहां को भी उसी एफआईआर के तहत गिरफ्तार किया गया. देवांगना कलिता सहित जामिया स्टूडैंट आसिफ इकबाल तन्हा, गुलफिशा खातून, जेएनयू स्टूडैंट नताशा नरवाल, खालिद सैफी, कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां पर भी लोगों को भड़काने का आरोप लगा कर सलाखों में कैद कर दिया गया.

हाल ही में इसी मामले में जेएनयू से पीएचडी करने वाले उमर खालिद को भी गिरफ्तार किया गया है. उमर खालिद की गिरफ़्तारी दिल्ली पुलिस द्वारा एफआईआर 59/2020 में आरोपपत्र दाखिल करने की आखिरी तारीख से कुछ ही दिनों पहले हुई, जो दंगों की कथित साजिश से जुड़ी है. सामाजिक कार्यकर्ताओं की नजर में पुलिस द्वारा किए जा रहे दावे घिनौने और राजनीति से प्रेरित हैं. पुलिस राजीनीतिक आकाओं का खिलौना बनी हुई है.

इतिहासकार बनने का सपना देखने वाले उमर खालिद को लगता है कि दंगों की पड़ताल सुनियोजित तरीके से केवल मुसलमानों को ही नहीं, बल्कि छात्रों और प्रदर्शनकारियों को भी घेरने के इरादे से चल रही है. वे कहते हैं, “मुझे ही नहीं, कुछ और लोगों को भी कुछ साल जेल में बिताने पड़ेंगे. मेरी जेलयात्रा लंबी हो सकती है क्योंकि पुलिस के पास मेरे खिलाफ एक भी सुबूत नहीं है. इसलिए ‘प्रक्रिया ही सज़ा होगी.’

देवांगना कलिता पर पुलिस ने जफराबाद मैट्रो स्टेशन के पास लोगों को सीएए के विरोध में दंगे के लिए भड़काने का आरोप लगाया था. लेकिन सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि पुलिस की तरफ से पेश की गई आतंरिक डायरी और पेनड्राइव में कहीं ऐसी बात नहीं है जो पुलिस के आरोपों को सिद्ध करे. अदालत ने कहा कि देवांगना के जिस भाषण की बात हो रही है उस में कुछ भी भड़काऊ नहीं है. देवांगना को निर्दोष पाते हुए कोर्ट ने उन को जमानत दे दी है, मगर आने वाले कई सालों तक वे अपने ऊपर दर्ज एक झूठे केस का सामना करती रहेंगी.

कितना हास्यास्पद है कि दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा इन छात्रों को राष्ट्रद्रोह, हत्या के प्रयास, हत्या, आपराधिक साजिश, धर्म, जाति आदि के आधार पर समूहों में नफरत फैलाने के संगीन आरोपों के तहत गिरफ्तार कर के जेल में ठूंस देती है लेकिन कोर्ट में सुनवाई के वक़्त वह इतने गंभीर आरोपों को साबित करने के लिए एक भी सबूत पेश नहीं कर पाती है.

साफ़ है कि जिस पुलिस का काम क़ानून की रक्षा करने का है, वह कानून उस के हाथों का खिलौना बन गया है. पुलिस विभाग सत्ताधारियों के इशारे पर नाचने वाली एजेंसी बन कर रह गया है, जिस का खुला इस्तेमाल सत्ता अपने विरोधियों के उत्पीड़न और प्रताड़ना के लिए करती है.

सच बोलने की सज़ा सलाखें

मोदी सरकार के राज में मीडिया द्वारा किसी कमी की ओर इशारा करना, सरकार की आलोचना करना, सरकार से सवाल पूछना, जनता के हक़ की बात उठाना मना है. किसी ने ऐसा करने की जुर्रत की तो उस पर झूठे आरोप लगा कर जेल भेजने का इंतज़ाम पक्का है. कितने ही पत्रकार इस तरह के सरकारी उत्पीड़न का शिकार हो चुके हैं, कुछ तो अभी भी जेल में हैं. कोविड-19 लौकडाउन के दौरान वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी के गोद लिए गांव की पोल खोलने वाली महिला पत्रकार सुप्रिया शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. सुप्रिया का गुनाह यह था कि उन्होंने सच दिखा दिया था. सुप्रिया शर्मा समाचार वैबसाइट स्क्रौल डौट इन की एडिटर इन चीफ हैं. उन के खिलाफ वाराणसी के रामनगर थाना में एफआईआर दर्ज की गई है. उन पर झूठी खबर प्रकाशित करने का आरोप लगाया गया. दरअसल, सुप्रिया शर्मा ने स्क्रौल डौट इन पर 8 जून को एक खबर प्रकाशित की थी. रिपोर्ट में उन्होंने लिखा था कि लौकडाउन के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए गांव के लोग किन हालात में अपने दिन गुजार रहे हैं.

सच लिखने की हिम्मत करने पर पुलिस ने महिला पत्रकार सुप्रिया शर्मा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 269 (किसी बीमारी को फैलाने के लिए किया गया गैरजिम्मेदाराना काम, जिस से किसी अन्य व्यक्ति की जान को खतरा हो सकता है), 501 (मानहानिकारक जानी हुई बात को मुद्रित करना), अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निवारण) अधिनियम 1989 की धारा 3(1)(द), 3(1) (घ) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया.

सुप्रिया शर्मा ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इस पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा, ‘स्क्रौल डौट इन ने 5 जून को डोमरी गांव, वाराणसी, उत्तर प्रदेश में माला नामक महिला का साक्षात्कार लिया. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गोद लिए गांव में उन के कथन का सहीसही वर्णन किया गया है, जिन लोगों को लौकडाउन के दौरान भूखा रखा गया था. प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र से जो रिपोर्ट की गई है स्क्रौल डौट इन अपने स्टैंड पर कायम है. यह एफआईआर में स्वतंत्र पत्रकारिता को डराने और चुप कराने की कोशिश है.’

अगस्त 2019 में अमेरिका के नैशनल प्रैस क्लब ने अपने वार्षिक जौन औबुचौन प्रैस फ़्रीडम अवार्ड के लिए भारत से कश्मीरी पत्रकार आसिफ सुल्तान को उन के निष्पक्ष और साहसिक पत्रकारिता के लिए चुना. सुल्तान को अगस्त 2018 में उन की रिपोर्टिंग के आधार पर जेल में डाल दिया गया था और उन पर विद्रोहियों का समर्थन करने का आरोप लगाया गया था. सुल्तान को उन की रिपोर्टिंग के लिए लगभग 1 साल तक जेल में कैद रखा गया. पुलिस ने उन के इलैक्ट्रौनिक उपकरणों और नोटबुक को जब्त कर लिया. पुलिस ने उन के स्रोतों के बारे में पूछताछ की और उन से मुखबिर बनने के लिए कहा. लेकिन, सुल्तान ने खबरी बनने से इनकार कर दिया.

अमेरिका के नैशनल प्रैस क्लब ने पुरस्कार की घोषणा के साथ कश्मीर की हालत पर चिंता भी व्यक्त की. क्लब के वक्तव्य में सुल्तान का जिक्र कर कहा गया कि यह कश्मीर में प्रैस और नागरिकता के लिए बिगड़ती परिस्थितियों को दर्शाता है. इस में मोदी सरकार द्वारा कश्मीर पर लिए गए फैसले के बाद प्रैस ब्लैकआउट का जिक्र भी किया गया. क्लब के अध्यक्ष एलिसन कोडजक ने कहा, ”भारत दुनिया का सब से बड़ा लोकतंत्र है और अमेरिका के साथ उस के करीबी रिश्ते हैं, लेकिन पत्रकारों के मानवाधिकारों के उल्लंघन को स्वीकार नहीं किया जा सकता. कश्मीर के लोगों को सूचना के अधिकार से वंचित रखना अस्वीकार्य है.”

झूठी एफआईआर ने आतंकी बना दिया

देश में जब कभी आतंकी घटना होती है, आतंकियों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी के लिए मीडिया और विपक्ष का सरकार पर भारी दबाव बनता है. ऐसे में सरकार को इस दबाव से मुक्ति देने के लिए अकसर पुलिस बिना सुबूत के बेगुनाह युवकों को गिरफ्तार कर उन का मीडिया ट्रायल कर आतंकी बता कर जेल भेज देती है.

जब सालों बाद उन के केस अदालत तक पहुंचते हैं और पुलिस उन के खिलाफ पुख्ता सुबूत पेश नहीं कर पाती है तब कहीं जा कर उन्हें जेल की सलाखों से मुक्ति मिलती है. लेकिन तब तक उन के जीवन के बहुमूल्य साल जेल में नष्ट हो चुके होते हैं. सालों चलने वाली लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद बेगुनाह साबित होने वाले अनेक युवाओं से ‘सरिता’ ने बात की. उन में से किसी ने 8 साल, किसी ने 9 साल और किसी ने 14 साल जेल की सलाखों के पीछे काटे हैं. इस दौरान उन का कैरियर तो खत्म हो ही गया, उन का घरपरिवार भी पूरी तरह बिखर गया. नौकरी गई, परिवार को आतंकी का परिवार कह कर ज़लील किया गया, उन के बच्चों को स्कूलों से निकाल दिया गया. आतंकी का लेबल माथे पर चस्पां हुआ तो किसी की मां ने इस आघात में दम तोड़ दिया तो किसी के पिता की इहलीला खत्म हो गई. लेकिन आतंकवादी का जो कलंक उन के माथे पर पुलिस ने चस्पां कर दिया उस से वे आज तक नजात नहीं पा सके.

इन युवाओं में एक हैं मोहम्मद आमिर खान, जिन्हें 18 साल की उम्र में आतंकी बता कर जेल में ठूंस दिया गया और 14 साल लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद उन को बेगुनाह पा कर जब कोर्ट ने उन्हें रिहा किया तो जेल के बाहर उन की पूरी दुनिया उजड़ चुकी थी.

पुरानी दिल्ली के आज़ाद मार्केट में रहने वाले मोहम्मद आमिर खान जैसे कमउम्र नौजवानों के मामले दिल दहला देने वाले हैं. एक निर्दोष को बिना किसी गुनाह के अपनी जिंदगी के 14 साल जेल की सलाखों के पीछे काटने को मजबूर होना पड़ा. 20 फरवरी, 1998 की शाम 18 वर्षीय आमिर अपने बीमार पिता के लिए कैमिस्ट से दवा लेने दिल्ली की बहादुरगढ़ रोड पर पैदल जा रहा था. अचानक सफ़ेद रंग की एक जिप्सी उस के पास रुकी. जिप्सी से सादे कपड़ों में 2 लोग उतरे और उन्होंने आमिर के हाथपैर पकड़ कर उसे गाडी में ठूंस दिया. जिप्सी की ज़मीन पर आमिर को औंधा गिरा कर एक आदमी उस की पीठ पर घुटना टिका कर बैठ गया.

आमिर को लगा कि उस का अपहरण हो रहा है. वे आमिर को ले कर एक औफिस में पहुंचे. वहां पहुंचने पर आमिर को पता चला कि वे कोई अपहरणकर्ता नहीं, बल्कि पुलिस के लोग हैं. पुलिस ने आमिर खान को एक गुप्त कमरे में 7 दिनों तक बंदी बना कर रखा. वहां उस पर वह कहर टूटा जिसे याद कर के आज भी उस के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. उस पर डंडे बरसाए गए. उस के नाखून उखाड़े गए. बिजली का करैंट लगाया गया और फिर उसे सादे कागजों पर साइन करने के लिए मजबूर किया गया. इन्हीं कागजों को पुलिस ने उस के झूठे बयान के लिए इस्तेमाल किया और आमिर खान पर उस की उम्र से ज्यादा बम धमाकों के मुक़दमे लाद दिए गए.

आमिर को पुलिस ने जान से मारने की धमकी दे कर चुप रहने के लिए इतना डराया कि 7 दिनों बाद उस को आतंकी बता कर मीडिया और अदालत के सामने पेश किया गया. तो, बेगुनाह होते हुए भी वह किसी से कुछ नहीं कह सका.

हैरानी की बात यह भी कि आमिर को 7 दिनों तक गुप्त कमरे में रख कर प्रताड़ित करने वाली पुलिस ने जब 28 फरवरी, 1998 को उसे अदालत के सामने पेश किया तो उस की गिरफ्तारी सिर्फ एक दिन पहले यानी 27 फरवरी, 1998 को सदर बाज़ार रेलवे ट्रैक से बताई.

अपने मांबाप का इकलौता बेटा आमिर, जो उस वक्त 11वीं कक्षा का छात्र था, जब आतंकी बता कर जेल में डाल दिया गया तो उस के परिवार पर क्या गुजरी, यह जान कर आप के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे. उस के पिता कपड़ों का छोटा व्यापार करते थे. आमिर को पुलिस के चंगुल से छुड़ाने की जद्दोजहद में उन का सार व्यापार चौपट हो गया. जमा पूंजी कानूनी लड़ाई में ख़त्म होने लगी. घर बिक गया. मां के गहने बिक गए. बेटे के माथे पर आतंकी होने का दाग लगा तो दोस्तों और रिश्तेदारों ने मुंह फेर लिया.

बेटे को जेल से छुडाने की आस में मातापिता वकीलों के दरवाजों पर गिड़गिड़ाते रहे और फिर एक दिन गम और सदमे का भारी बोझ दिल पर लिए उस के पिता हमेशाहमेशा के लिए दुनिया से चले गए.

पिता की मौत के बाद आमिर की मां ने अकेले दम पर अपने बेगुनाह बेटे को जेल से छुड़ाने की लड़ाई जारी रखी. उन्हें उम्मीद थी कि उन का बेटा जल्दी ही घर वापस लौट आएगा. लेकिन मां अकेली थी. वकीलों और अदालतों के चक्कर लगातेलगाते वह थक गई, टूट गई. सालदरसाल गुजर रहे थे और मां की आस दम तोड़ रही थी. दुख, तनाव और हताशा एक दिन उस पराकाष्ठ पर पहुंच गई कि उन्हें ब्रेन हैमरेज हो गया. ब्रेन हैमरेज से जहां उन का आधा शरीर लकवाग्रस्त हो गया वहीं उन की मानसिक हालत भी बिगड़ गई.

जनवरी 2012 में जब आमिर खान दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की अदालतों से निर्दोष साबित हुआ और जेल से रिहा हो कर घर पहुंचा. तो उस ने अपनी मां को एक जिंदा लाश की तरह एक छोटे से किराए के कमरे में ज़मीन पर पड़ा देखा.

अब पुलिस या कोई और क्या आमिर के जीवन के बेवजह बरबाद हुए 14 साल लौटा सकता है? हंसताखिलखिलाता परिवार वापस कर सकता है?

ऐसे कई नौजवान हैं जो पुलिस के जुल्म और साजिश के शिकार हुए, बेगुनाह होते हुए भी सलाखों के पीछे डाल दिए गए, न्यायपालिका ने कुछ के साथ न्याय किया और उन को बाइज्ज़त बरी किया मगर अभी भी हज़ारों की संख्या में ऐसे युवा जेल में हैं जो साजिशन फंसाए गए हैं. हर बार जब अदालतें निर्दोष लोगों को रिहा करती हैं तो सरकार की मंशा और पुलिस की कार्यपद्धति पर कड़ी टिप्पणियां करती हैं. बावजूद इस के, आज तक पुलिस या सरकार द्वारा इन पीड़ितों से न तो कोई माफ़ी मांगी गई और न ही इन के पुनर्वास के लिए प्रयास किए गए. सब से बुरी बात यह है कि झूठे मुकदमों में उन्हें फंसाने वाले किसी भी अधिकारी के खिलाफ आज तक कोई कारवाई नहीं की गई.

आमिर के अलावा जावेद, वासिफ, मुमताज़ जैसे कई युवा हैं जिन्हें लंबे कारावास के बाद आखिरकार आज़ादी तो मिली है लेकिन उन का भविष्य अभी भी अंधेरे में कैद है क्योंकि निर्दोष होते हुए भी पुलिस द्वारा आतंकवादी का जो कलंक उन के माथे पर लगाया गया वह देश की अदालतों द्वारा उन्हें बेगुनाह साबित किए जाने के बावजूद चमक रहा है. समाज उन्हें शक की नज़र से देखता है. लिहाज़ा, सवाल आज उन के परिवारों के गुज़रबसर और रोज़ीरोटी का है.

दहेज़ कानूनों का गलत इस्तेमाल

महिलाएं अपने पति और उस के परिवार पर हमला करने, फंसाने, बदला लेने, समाज में अपमानित करने, धन की लालसा में झूठी शिकायत दर्ज करने के लिए धारा 498-ए और दहेज अधिनियम का दुरुपयोग जम कर करती हैं. भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए उन महिलाओं के लिए बनाई गई थी जो ससुराल में उत्पीड़न का शिकार होती हैं. यह एक प्रावधान है जिस के अंतर्गत पति, उस के मातापिता और रिश्तेदारों को अपनी गैरकानूनी मांगों (दहेज) और बहू को मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने के कारण गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है. इस धारा के अंतर्गत आमतौर पर पति, उस के मातापिता और रिश्तेदारों को तुरंत पर्याप्त जांच के बिना ही गिरफ्तार कर लिया जाता है और गैरजमानती शर्तों पर सलाखों के पीछे रखा जाता है. इस क़ानून का महिलाएं खूब दुरुपयोग कर रही हैं.

भले ही शिकायत झूठी है, मगर इस कानून के तहत बुक आरोपी को तब तक दोषी माना जाता है जब तक कि वह अदालत में निर्दोष साबित न हो जाए. दोषी साबित होने पर अधिकतम सजा 3 साल तक कारावास है. लेकिन हकीकत यह है कि सुनवाई के लिए कोर्ट की पटल पर केस पहुंचतेपहुंचे ही कई साल लग जाते हैं. ऐसे में झूठी एफआईआर के कारण जेल जाने वाले पुरुष और उन का परिवार बेवजह उत्पीड़न का शिकार होता है. वह अपना सामाजिक सम्मान गवां देता है, नौकरी-धंधे से हाथ धो बैठता है और पुलिस-वकीलों पर जमापूंजी बरबाद कर देता है.

महिलाओं द्वारा बनाई गई झूठी शिकायतों पर न्यायपालिका धारा 498-ए के दुरुपयोग के बारे में अच्छी तरह से अवगत है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानूनी आतंकवाद तक कहा है और माना है कि इस धारा के तहत दर्ज 99 फीसद मामले झूठे होते हैं. लेकिन, नारीवादी समूहों से जबरदस्त दबाव के कारण न्यायपालिका असहाय है. यही वजह है कि देशभर की जेलों में हज़ारों युवा अपनी जवानी के बेहतरीन साल खराब कर रहे हैं.

क्या करें जब फंसें झूठे केस में

सत्ता में बने रहने की लालसा, वोटबैंक के लिए ध्रुवीकरण की कोशिशों, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी का राजनीतिक कैरियर बरबाद करने आदि के लिए बेकुसूरों पर झूठी एफआईआर दर्ज करवा कर उन्हें कानूनी दांवपेंच में उलझाए रखना, जेल भेज देना अब आम हो चुका है. हमारे समाज और परिवार में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं जो कानून का दुरुपयोग करना बहुत अच्छी तरह जानते हैं. अकसर हम ये खबरें पढ़ते या सुनते हैं कि किस तरह लोगों को झूठी रिपोर्ट लिखा कर उन्हें फंसाने और परेशान करने का काम किया जाता है. ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है.

थोड़े से पैसे और ताकत के दम पर पुलिसकर्मियों की मिलीभगत से लोग कई बार किसी दुश्मनी या निजी दुराग्रह, आपसी रंजिश या मतभेद. ज़मीनजायदाद के लालच या फिर किसी अन्य कारण से किसी के ऊपर झूठी एफआईआर लिखवा देते हैं. इस के अलावा, आप को परेशान करने के उद्देश्य से भी कोई आप के ऊपर झूठी एफआईआर दर्ज़ करवा सकता है. ऐसे में आप के लिए यह जानना ज़रूरी है कि आप इस तरह की झूठी एफआईआर पर क्या करें. अगर ऐसा हो जाए तो क्या कोई कानूनी रास्ता है जिस से अपना बचाव किया जा सके. अगर कोई आप के खिलाफ झूठी एफआईआर लिखवा देता है तो आप के पास इस से बचने के लिए क्या रास्ता है? आप इस एफआईआर को चुनौती दे सकते हैं. अगर आप निर्दोष हैं तो आप को इस में हाईकोर्ट से राहत मिल सकती है.

अगर किसी अपराध के मामले, जैसे चोरी, मारपीट, ज़मीन विवाद, संपत्ति विवाद से ले कर रेप आदि में आप को साज़िश के तहत जानबूझ कर फंसाया गया है और आप निर्दोष हैं तो घबराएं नहीं. आप उच्च न्यायालय में अपील करें. अपील करने के बाद बिलकुल भी डरे नहीं क्योंकि आप के अपील करने के बाद इस बारे में हाईकोर्ट में केस चलने की प्रक्रिया के दौरान पुलिस, याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकती है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 482 में इस तरह के मामलों को चैलेंज करने का प्रावधान किया गया है. यदि किसी ने आप के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज करवा दी है तो इस धारा का इस्तेमाल किया जा सकता है. आईपीसी की धारा 482 के तहत जिस व्यक्ति के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज कराई गई है उसे हाईकोर्ट से राहत मिल सकती है. तब कोर्ट के जरिए इस मामले में आप के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं होगी. पुलिस को अपनी कार्रवाई रोकनी होगी.

क्या है आईपीसी की धारा 482

इस धारा के तहत वकील के माध्यम से हाईकोर्ट में प्रार्थनापत्र लगाया जा सकता है. इस प्रार्थनापत्र के जरिए आप अपनी बेगुनाही के सुबूत दे सकते हैं. आप वकील के माध्यम से एविडेंस तैयार कर सकते हैं. अगर आप के पक्ष में कोई गवाह है तो उस का जिक्र जरूर करें. जब यह मामला कोर्ट के सामने आता है और उसे लगता है कि आप ने जो सुबूत दिए हैं वे आप के पक्ष को मजबूत बनाते हैं तो पुलिस को तुरंत कार्रवाई रोकनी होगी. इस तरह आप को झूठी रिपोर्ट के मामले में राहत मिल जाएगी.

गिरफ्तार नहीं करेगी पुलिस

यदि किसी भी मामले में आप को षडयंत्र कर के फंसाया जाता है तो हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है. हाईकोर्ट में केस चलने के दौरान पुलिस आप के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकती है. इतना ही नहीं, अगर आप के खिलाफ वारंट भी जारी होता है तो आप खुद को गिरफ्तार होने से बचा सकते हैं. इस मामले में आप की गिरफ्तारी भी नहीं होगी. कोर्ट जांच अधिकारी को जांच के लिए जरूरी दिशानिर्देश भी दे सकती है.

और क्या करें अगर आप के खिलाफ कोई झूठी शिकायत पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई है?

1. सब से पहले झूठी शिकायत देने के लिए शिकायतकर्ता के खिलाफ एक काउंटर शिकायत सम्बंधित या नजदीकी पुलिस स्टेशन में दें या उन के उच्चाधिकारी को दें. याद रखें शिकायत दर्ज कराने के लिए किसी सुबूत को साथ देने की जरूरत नहीं होती. यह जांच अधिकारी की जिम्मेदारी होती है कि वह शिकायत की जांच करे, गलत पाए जाने पर शिकायत बंद कर दे या फिर सही पाए जाने पर सम्बंधित धारा के तहत केस दर्ज करे.

2. झूठी शिकायतकर्ता के खिलाफ एक प्राइवेट शिकायत इलाके के मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 190 (ए) के तहत भी दी जा सकती है. वे आप की शिकायत पर धारा 200 के तहत कार्रवाई करेंगे.

3. सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट को शिकायत दे कर पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने के वास्ते निवेदन किया जा सकता है.

4. अगर उपरोक्त झूठी शिकायत कोर्ट में जाती है तो आप कोर्ट से ‘नोटिस औफ़ एक्वाजेशन’ की मांग कर उस झूठी शिकायत को कंटेस्ट करने की इच्छा जताएं. जैसे ही आप कंटेस्ट की बात रखेंगे तो अगली पार्टी को एक निश्चित समयसीमा के भीतर आप के खिलाफ सुबूत व गवाह पेश करने होंगे. उस सुबूत व गवाह को आप कोर्ट में क्रौस परीक्षण कर सकते है व अपने पक्ष को रखते हुए सचाई को कोर्ट के सामने ला सकते हैं.

5. झूठे शिकायतकर्ता को यों ही न छोड़ें. विभिन्न धाराओं के तहत उस के ऊपर भी केस दर्ज कराने कि प्रक्रिया शुरू करें. अपने साथ हुई ज्यादती व मानसिक परेशानी और मानहानि का मुआवजा मांगें. याद रखें कि झूठे शिकायतकर्ता क़ानून के मालिक नहीं हैं बल्कि वे तो क़ानून की कमियों का फायदा उठाने वाले मेनुपुलेटर हैं.

भारत में क़ानून का सब से बड़ा मालिक देश की संसद है और सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय उस क़ानून के संरक्षक. इन संविधानिक कोर्ट्स को किसी भी तरह की झूठी शिकायत या केस को ख़ारिज कर झूठे शिकायतकर्ता को समुचित दंड देने का पर्याप्त अधिकार है.

याद रखें, लड़ाई आप को ही लड़नी है. हम तो सिर्फ आप को रास्ता बता सकते हैं. उस पर निर्भीकरूप से आप को आगे बढ़ना है. तभी झूठे शिकायतकर्ताओं को कड़ा संदेश जाएगा. जो कि जरूरी भी है.

स्मिता तुम फिक्र मत करो-भाग 1: सुमित और स्मिता की पहली मुलाकात कैसी हुई थी?

सुमित के जाने के बाद कितनी अकेली हो गई थी स्मिता. उस के जीवन की सारी खुशियां जैसे सुमित के साथ ही चली गई थीं. क्या कभी लौट सकी स्मिता की जिंदगी में बहार?

दि?ल्ली की ऐसी पौश आवासीय सोसाइटी जहां लोग एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते. पड़ोसियों का कभी एकदूसरे से सामना हो जाता है तो आधुनिकता का लबादा ओढ़े लेडीज, ‘हाय, हाऊ आर यू’ कहती हुई आगे निकल जाती हैं. जैंट्स को तो वैसे भी आसपड़ोस से ज्यादा कुछ लेनादेना नहीं होता. सुबह घर से काम के लिए निकलते हैं तो शाम तक, यदि बिजनैसमैन हुए तो रात तक, घर लौटते हैं. घर की जिम्मेदारी उन की पत्नियां उठाती हैं. मतलब, घर उन्हीं की देखरेख में चल रहा होता है.
10 साल बीत चुके थे स्मिता को शादी कर दिल्ली की इस हाई सोसाइटी में रहते हुए. आज सुबह से सोसाइटी में सुगबुगाहट थी. सोसाइटी के व्हाट्सऐप ग्रुप में स्मिता के पति सुमित की मौत की खबर सब को मिल चुकी थी. ज्यादातर लोग सुमित और स्मिता को जानते थे.
वक्त की किताब के पन्ने उलटें, तो अभी की बात लगती है.
स्मार्ट, पढ़ीलिखी, सुंदर स्मिता चंड़ीगढ़ में पैदा हुई. वहीं उस ने अपनी पढ़ाई पूरी की. फैशन के मामले में चंड़ीगढ़ की लड़कियां दिल्ली की लड़कियों से पीछे नहीं हैं. छोटे शहरों में लड़कियां खूब स्कूटी चलाती हैं क्योंकि वहां दिल्ली की तरह यातायात के साधन खास नहीं होते. एक तरह से वे पूरी तरह सैल्फ इंडिपैंडैंट होती हैं, इतनी तो दिल्ली की लड़कियां भी तेज नहीं होतीं. मतलब इस सब का यही है कि स्मिता आत्मविश्वास से भरी, लोगों से मेलमिलाप रखने वाली, खुशमिजाज लड़की थी जब उस की शादी सुमित से हुई थी.
सुमित तो जैसे दीवाना ही हो गया था स्मिता को देख कर जब पहली बार उन की मुलाकात हुई थी. हुआ यों था कि सुमित के दोस्तों के ग्रुप में उदय की शादी सब से पहले तय हुई थी. सब के लिए बरात में जाने, डांस करने, मस्ती मारने का अच्छा मौका था. और बरात जा रही थी चंड़ीगढ़.
एकदूसरे से सुमित और स्मिता वहीं मिले थे. शीना स्मिता की बैस्ट फ्रैंड थी. शीना ने स्मिता से पहले ही बोल दिया था कि शादी के एक हफ्ते पहले ही वह अपना ताम झाम ले कर उस के घर आ जाएगी और शादी होने के बाद ही घर वापस जाएगी. स्मिता भी कम उत्साहित नहीं थी शीना के विवाह को ले कर. स्मिता शीना का पूरा हाथ बंटा रही थी शादी की खरीदारी करने में. शीना की बात मानते हुए वह एक हफ्ते पहले ही शीना के घर रहने आ गई थी. दोनों सहेलियां रात में शादी के बाद हनीमून और उदय को ले कर खूब मस्ती, छेड़छाड़भरी बातें करतीं.
वह दिन भी आ गया जब बरात द्वार पर खड़ी थी. स्मिता कई सहेलियों के साथ द्वार पर दूल्हे से रिबन कटवाने के लिए खड़ी थी.
‘जीजाजी, इतनी भी क्या जल्दी है, फटाफट से 10 हजार रुपए का नेग दीजिए, रिबन काटिए, और फिर अंदर आइए. और हां, शीना से मिलने की इतनी जल्दी है तो नेग डबल कर दीजिए. हम हैं न, शौर्टकट से सब मामला सैट कर देंगे.’
‘उस की कोई जरूरत नहीं, वो देखिए, सामने से अंकलआंटी और सब आ रहे हैं. खुद ही हमें प्यार से अंदर ले जाएंगे,’ उस तरफ से सुमित बोला.
और वाकई अंकलआंटी ने आते ही कहा, ‘अरे बेटा, क्यों रोक रखा है दूल्हेराजा को?’
‘अंकलजी, बिना नेग लिए ये अंदर कैसे आ सकते हैं?’ स्मिता इठलाते हुए बोली.
‘बेटा, नेग क्या कहीं भागा जा रहा है. पहले ही बहुत देर हो गई. सब को आने दो. चलो, सब साइड हो जाओ. तुम्हारी आंटी को दूल्हे का तिलक करना है.’
दूल्हा और उस के दोस्त बड़ी शान से अंदर आए और सुमित ने साइड में खड़ी स्मिता को आंख मार दी. इस से स्मिता और भी  झल्ला गई.
इस के बाद तो पूरी शादी और विदाई होने तक स्मिता और सुमित की नोक झोंक चलती रही. बरात दुलहन को ले कर वापस दिल्ली लौट रही थी, तो सारे दोस्त सुमित को छेड़ रहे थे, ‘भई, लगता है जल्दी ही दोबारा चंड़ीगढ़ बराती बन कर आना पड़ेगा.’

वाकई सुमित अपना दिल चंड़ीगढ़ में स्मिता के पास ही छोड़ आया था. मम्मी के पीछे पड़ कर उस ने स्मिता से शादी के लिए इतना जोर दिया कि एक महीने बाद स्मिता दुलहन बन कर सुमित के घर आ गई थी.
‘चट मंगनी पट ब्याह, मैं तो इसी में विश्वास रखता हूं,’ हनीमून पर सुमित स्मिता से अकसर यह बात कह उसे अपने प्यार की दीवानगी दिखाता रहा था.
खुशी के दिन पंख लगा कर उड़ जाते हैं और बुरे दिन कुछ ही दिनों के लिए आते हैं लेकिन लगता है हम मानो वर्षों से उसी में जी रहे हैं.
स्मिता 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. जिंदगी का हर लमहा खुशगवार गुजर रहा था. कोई चिंता नहीं थी उसे. सुमित का अच्छाखासा बिजनैस था. पैसे की कमी का सवाल ही नहीं था.
सोमा काकी बरसों से उन के घर पर काम कर रही थीं. एक तरह से वे घर में खानेपीने की व्यवस्था, रखरखाव, घर में आनेजाने वालों पर अपनी पूरी नजर रखती थीं. इसलिए, स्मिता घर की तरफ से बेफिक्र थी और घर के ड्राइवर शामू काका ने तो अपनी पूरी जवानी ही इस घर में गुजार दी थी. सुमित के पापा के समय के ड्राइवर थे शामू काका. पापा के गुजर जाने के बाद भी पूरी निष्ठा से इस घर की सेवा की. मम्मी को शामू पर पूरा भरोसा था. रातबेरात कहीं आनाजाना हो तो शामू के साथ कार में जाने में उन्हें पूरी तरह सुरक्षित महसूस होता था. सुमित ने बचपन से शामू काका को देखा था. स्कूल से लाना ले जाना, ट्यूशन से घर ले जाना, घर का सारा राशनपानी लाना, यहां तक कि फैक्ट्री के सामान को पूरी तरह से सुरक्षित रूप से क्लाइंट तक पहुंचाने का काम भी शामू काका बहुत निपुणता से करते.
स्मिता बहुत खुश थी अपनी जिंदगी से. शायद अपनी खुशियों पर उस की खुद की नजर लग गई थी. सुबह के 8 बज गए थे, लेकिन मम्मीजी के कमरे का दरवाजा अभी तक बंद था. ऐसा तो कभी नहीं होता. बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर के जब वह ऊपर अपने बैडरूम से नीचे आती थी तो मम्मीजी अकसर गार्डन में चेयर पर बैठी अखबार पढ़ती दिखतीं या फिर गार्डन में चहलकदमी करती बच्चों को बायबाय कर उन्हें प्यार से निहारती थीं. लेकिन आज क्या हुआ. बच्चों को शामू काका के साथ कार में बैठा कर स्मिता ने अंदर मम्मी के कमरे का दरवाजा धकेला तो वह खुल गया. सामने बैड पर मम्मी औंधेमुंह लेटी थीं और हाथ नीचे लटका हुआ था. यह देख कर स्मिता की घुटी चीख निकल गई.
‘सुमित….सुमित…,’ चिल्लाने लगी, ‘सुमित, देखो मम्मीजी को क्या हो गया.’
रात में मम्मीजी को दिल का दौरा पड़ा था. उठने की कोशिश की होगी शायद लेकिन औंधेमुंह पलंग पर गिर गईं.

मम्मीजी की जीवनडोर टूट चुकी थी. उन का इस तरह अचानक से चले जाना स्मिता और सुमित के लिए  झटके से कम नहीं था. सुमित तो जैसे पूरी तरह से टूट गया था. मां से बहुत ज्यादा लगाव था. वैसे भी, जब वह 10वीं में गया ही था, पापा की ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई थी. मम्मीजी ने अकेले उसे पालापोसा था, फैक्ट्री का काम संभाला था और इतने बड़े घर को संजो कर रखा था.
एक तरह से आज वह जो भी था, मम्मी के हाथों गड़ा मजबूत व्यक्तित्व था. उन के जाने से वह भीतर से टूट गया था.
फैक्ट्री का काम तो उस ने बीबीए की पढ़ाई के बाद ही संभाल लिया था लेकिन मम्मी के होते बिजनैस की ओर से वह ब्रेफिक्र था क्योंकि इंपौर्टेंट डिसीजन तो वही लेती थीं.
खैर, वक्त के साथसाथ सब सामान्य हो जाएगा, यह सोच कर स्मिता सुमित को हर तरह से खुश रखने की कोशिश करती. सुमित एक शाम फैक्ट्री से आया तो हलका बुखार महसूस कर रहा था.
स्मिता घबरा सी गई. पिछले महीने से पूरे देश में मंडराती कोरोना वायरस की महामारी ने सभी को दहशत में डाल दिया था.

फेस्टिवल स्पेशल : सेब और नारियल की बर्फी घर पर बनाएं मेहमान भी हो जाएंगे हैरान

कई बार आपको घर का बना हुआ कुछ मीठा खाने का मन करता है. ऐसे में आपको समझ नहीं आता कि क्या बनाएं तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ आसान तरीके से बर्फी बनाने का विधि.

4 सेब (कद्दूकस किया हुआ)

डेढ़ कप नारियल का बूरा

¾ कप बारीक कटा अखरोट

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1 टीस्पून इलायची पाउडर

1 कप शक्कर

लंबाई में कटे बादाम गार्निशिंग के लिए

समाग्री

-एक कड़ाही में कद्दूकस किया हुआ सेब, नारियल का बूरा और शक्कर डालकर धीमी आंच पर भूनें. इसे तब तक भूनें जब तक सेब अच्छी तरह पक न जाएं.

-जब सेब गल जाए तो इलायची और अखरोट मिलाकर 2-3 मिनट के लिए और भूनें. जब आपको लगे की मिश्रण एकदम गाढ़ा होकर जमने जैसा हो गया है तो गैस बंद करके मिश्रण को उतार लें.

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-अब एक थाली में घी लगाकर चिकना कर लें और उस पर यह मिश्रण निकालकर फैलाएं. कुकरी एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बर्फी के मिश्रण को चम्मच की मदद से गरम में ही फैला दें,

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-वरना वह सूख जाएगा और फैलेगा नहीं. बर्फी को फैलाने के बाद ऊपर से कटे बादाम डालकर चिपकाएं. थोड़ा ठंडा होने पर बर्फी के आकार में कट लगाकर छोड़ दें और 3-4 घंटे के लिए सामान्य तापमान पर ठंडा होने दें. अब बर्फी तैयार है. इस बर्फी को बनाने के लिए आपको घी और दूध की भी ज़रूरत नहीं होती है.

-नोट- कुकरी एक्सपर्ट्स के मुताबिक, एप्पल को अच्छी तरह छीलकर ही कद्दूकस करें, साथ ही इस बात का ध्यान रहे कि बीच मिश्रण में न चला जाए.

 

स्मिता तुम फिक्र मत करो-भाग 4: सुमित और स्मिता की पहली मुलाकात कैसी हुई थी?

‘‘मम्मी, संडे को मेरी क्लास में चिराग का बर्थडे है. उस के पापा ने पार्टी रखी है. उस ने मु झे भी इन्वाइट किया है,’’ अवि बोला.
‘‘ठीक है, शामू काका तुम्हें ले जाएंगे.’’
संडे को अवि तैयार हो कर शामू काका के साथ चिराग के घर चला गया. उसे कार में बैठा स्मिता जब घर के अंदर आई तो टीवी खोल कर बैठ गई. अचानक साइड टेबल पर नजर गई तो गिफ्ट तो वहीं रखा हुआ था. वैसे तो शामू काका को फोन कर के वापस बुला सकती थी लेकिन काफी देर हो चुकी थी और वह नहीं चाहती कि शामू काका अवि को वहां अकेला छोड़ कर आएं.
स्मिता ने सोचा, क्यों न वह ही दे आए, लौटते हुए बुटीक से अपने कपड़े भी लेती आएगी. कई बार फोन आ चुका था कि उस के सूट सिल कर रेडी हैं.
स्मिता ने फटाफट कपड़े बदले और दूसरी गाड़ी निकाल कर चिराग के घर पहुंच गई. चिराग के घर का पता उस ने शामू काका को लिख कर दिया था, इसलिए उसे याद था.

चिराग का घर वाकई खूबसूरत था. वह लौन की तरफ गई, जहां सिर्फ 10-12 बच्चे थे. बच्चों को दूरदूर बैठा कर फन एक्टिविटी कराई जा रही थी. वह नजरें घुमा कर अवि को देख रही थी कि पीछे से आवाज आई, ‘‘हैलो, आप शायद अवि की मदर हैं.’’ स्मिता ने पलट कर देखा, लगभग 35-37 वर्षीय पुरुष, जिस का व्यक्तित्व आकर्षक कहा जाए तो गलत न होगा, खड़ा था.
‘‘जी, और आप?’’ स्मिता ने पूछा.
‘‘मैं चिराग का पापा अनुराग. आप को कई बार पेरैंट्स मीटिंग में देखा है अवि के साथ.’’
‘‘अच्छा, तभी सोच रही थी, कैसे मु झे पहचाना. वह क्या है कि अवि चिराग का गिफ्ट घर पर भूल आया था, देने चली आई. इधर कुछ काम भी था, सोचा, वह भी कर लूंगी.’’
‘‘गिफ्ट कोई इतना जरूरी तो नहीं था.’’
‘‘क्यों नहीं, बर्थडे पर बच्चों को अपने गिफ्ट देखने का ही शौक होता है.’’
‘‘यह तो आप सही कह रही हैं. अब आ ही गई हैं तो केक खा कर जाइए.’’ वेटर केक रख कर ले आया था.
‘‘थैंक्स, मैं चलती हूं. अवि अभी यहीं हैं. काफी एंजौय कर रहा है.’’
‘‘लाइफ में एंजौयमैंट बहुत जरूरी है, बच्चों के लिए भी और बड़ों के लिए भी,’’ अनुराग ने कुछ गंभीर हो कर कहा तो स्मिता ने एक बार उस की तरफ देखा. आंखें जैसे कहीं शून्य में खो गई थीं.
‘‘जी?’’
‘‘जी, कुछ नहीं. आइए आप को बाहर तक छोड़ देता हूं.’’
‘‘जी शुक्रिया, आप मेहमानों को देखिए. अच्छा, नमस्ते.’’
‘‘नमस्ते.’’
अवि और चिराग वीडियो कौलिंग करते थे. कभीकभी स्कूल के असाइनमैंट वर्क को ले कर अनुराग स्मिता से बात कर लेता था. अनुराग पेशे से प्रोफैसर था. पत्नी से तलाक हो चुका था. उस की अपनी महत्त्वाकांक्षाएं थीं जिन्हें पूरा करने के लिए उस ने पति और बेटे को पीछे छोड़ दिया था. चिराग की पूरी देखभाल अनुराग के सिर थी और अनुराग की मां भी चिराग का पूरापूरा खयाल रखती थीं.
एक दिन अनुराग अपने पुत्र चिराग को अवि से मिलवाने के लिए ले कर आया था. स्मिता घर पर ही थी. अनुराग को देख उस के चेहरे पर मुसकराहट आ गई थी जिसे सोमा काकी ने पढ़ लिया था. स्मिता ने अपने भाव छिपाते हुए अनुराग को बैठने के लिए कहा. चिराग और अवि खेलने ऊपर के कमरे में चले गए थे.
‘‘आप के लिए कुछ लाऊं?’’ सोमा काकी के चेहरे पर उत्साह की  झलक थी.
‘‘जी नहीं, मैं ठीक हूं,’’ अनुराग ने जवाब दिया.
‘‘ऐसा कैसे हो सकता है कि आप बिना कुछ लिए चले जाएं. मैं दोनों के लिए ही चाय बना कर लाती हूं,’’ बीच में ही सोमा काकी बड़े अधिकार से बोलीं और किचन की ओर बढ़ गईं.

‘‘आज काकी को न जाने क्या हो गया है. वे तो किसी को मेरे पास फटकने नहीं देतीं,’’ स्मिता का यह कहनाभर था कि अनुराग के चेहरे पर मुसकान आ गई, जिसे देख स्मिता को अच्छा लगा.
‘‘क्या कर रही हैं आजकल आप, कुछ नया?’’ अनुराग ने प्रश्न किया.
‘‘कुछ खास नहीं, फैक्ट्री का काम अच्छा चल ही रहा है, तो कोई दिक्कत नहीं.’’
‘‘मैं आप के बारे में पूछ रहा था फैक्ट्री के नहीं,’’ अनुराग ने स्मिता की आंखों में देखते हुए कहा.
‘‘मेरे बारे में जानने जैसा कुछ है ही नहीं,’’ स्मिता ने नजरें अनुराग के चेहरे से हटाते हुए कहा.
‘‘मु झे ऐसा नहीं लगता.’’
सोमा काकी चाय ले आईं. सोमा काकी वहीं पास खड़ी थीं और लगातार अनुराग को ताक रही थीं. उन्हें अनुराग के चेहरे पर एक अपनापन नजर आया था जो उन्होंने किसी और पुरुष के चेहरे पर नहीं देखा था. अनुराग का व्यक्तित्व उस के अच्छे इंसान होने की गवाही दे रहा था. सोमा काकी कमरे से बाहर गईं तो शामू काका से अनुराग को ले कर चर्चा करने लगीं.
‘‘प्रोफैसर साहब को ले कर तुम्हारा क्या खयाल है?’’ सोमा काकी ने पूछा.
‘‘अच्छे इंसान मालूम पड़ते हैं,’’ शामू काका ने जवाब दिया.
‘‘मु झे भी. बिटिया का चेहरा कितने दिन बाद इतना खिला हुआ दिख रहा है, है न?’’
‘‘पता नहीं, लेकिन तुम कह रही हो तो ऐसा ही होगा.’’
‘‘हां.’’
अनुराग चिराग को ले कर जाने लगा तो उस के चेहरे पर स्मिता से मिलने की चाह साफ नजर आ रही थी. अनुराग के जाते ही स्मिता सोफे पर बैठी हुई थी जब सोमा काकी उस के पास आ कर बैठ गईं.
‘‘मु झे तो प्रोफैसर साहब अच्छे लगे, और बिटिया तुम्हें?’’
‘‘हां, मु झे भी,’’ कहते ही स्मिता को खयाल आया कि उस ने अचानक क्या कह दिया. ‘‘क्या? ऐसा तो कुछ नहीं है, मेरा मतलब, हां, अच्छे व्यक्ति हैं,’’ कह कर उस ने नजरें दूसरी तरफ कर लीं.
‘‘मेरी तो हां हैं और शामू की भी,’’ कह कर सोमा काकी उठ कर जाने लगीं.
स्मिता उन की बात सुन कर  झेंप गई, बोली, ‘‘कुछ भी कहती हो आप.’’

अवि और चिराग आपस में बात करना चाहते थे तो स्मिता के फोन पर अनुराग का मैसेज आ जाता था. पर अब वह चिराग और अवि की बात कराने के लिए नहीं बल्कि खुद स्मिता से बात करने के लिए मैसेज करने लगा. धीरेधीरे अनुराग ने स्मिता से मोबाइल पर बात करनी शुरू कर दी. दो दुखी दिल, दो तन्हा इंसान ही एकदूसरे की पीड़ा सम झ सकते हैं. अनुराग ने अपनी पत्नी से तलाक के बाद दूसरी शादी के बारे में सोचा तक नहीं था. लेकिन, अपनी तरह ही स्मिता को देख वह उस के प्रति आकर्षित होने लगा था.
स्मिता और अनुराग जब बात करते थे, उन्हें लगता था उन के मन की पीड़ा कम हो गई है. दोनों एकदूसरे के अच्छे दोस्त बन गए थे. अनुराग का यह कहना, ‘स्मिता, तुम फिक्र मत करो. मैं हूं न. सब ठीक हो जाएगा,’ स्मिता की सब पीड़ा हर लेता.
सोमा काकी ने महसूस किया था जब से अनुराग स्मिता की जिंदगी में आया है, स्मिता के जीवन में आया खालीपन भरने लगा था. दोनों अपनीअपनी तकलीफ एकदूसरे से बांट कर जिंदगी की उल झनों को सुल झा रहे थे. बेशक वे एकदूसरे से दूर रहे थे लेकिन मन का जुड़ाव हो चुका था. मन से मन का मिलन कुछ कम तो नहीं होता.
दोनों की अपनीअपनी जिंदगी थी. दोनों पर अपने बच्चों की जिम्मेदारी थी. वे उन्हें अच्छी तरह निभा रहे थे. लेकिन दोनों के पास आज एकदूसरे का मानसिक संबल था जो शारीरिक संबल से भी जरूरी है. वक्त की धारा में दोनों बह रहे थे.
‘‘स्मिता बिटिया, किस सोच में हो, तुम्हारा खूबसूरत भविष्य तुम्हारा इंतजार कर रहा है. शादी के बारे में क्यों नहीं सोचतीं,’’ सोमा काकी ने एक दिन कहा.
‘‘डर लग रहा है काकी. समाज क्या कहेगा, बच्चे क्या सोचेंगे कि उन की मां को शादी की पड़ी है.’’
‘‘बच्चे छोटे हैं स्मिता, वे पिता की कमी महसूस करते हैं जो प्रोफैसर साहब पूरी कर सकते हैं. वे भी तुम से शादी करना चाहते हैं, उन की बातों से, उन की आंखों से साफ  झलकता है.’’
‘‘पूछा था अनुराग ने मु झ से, मैं ने ही मना कर दिया था.’’
शामू काका भी वहां आ चुके थे.
‘‘स्मिता बिटिया, सोमा सही कह रही है, समाज हमारे साथ ऐसा करता ही क्या है जो हम उस के बारे में सोचें, अपने दिल की सुनो बिटिया. बच्चों को पिता भी मिल जाएगा.’’
शामू काका और सोमा काकी के जाने के बाद स्मिता सोच में डूब गई. सुमित को याद करने लगी, अपने वे दिन याद करने लगी जब लोगों की नजरें उसे तारतार करने की कोशिश करती थीं. अनुराग से मिलने से पहले कितना दर्द था उस के दिल में. सब स्मिता की आंखों के आगे नाचने लगा.
स्मिता ने फोन उठाया और अनुराग को कौल किया.
‘‘हैलो, अनुराग.’’
‘‘हां स्मिता, कहो?
‘‘मैं तुम्हारा हाथ थाम कर आगे बढ़ना चाहती हूं. ऐसा लगता है कि हम साथ होंगे तो सब उलझनें सुलझ जाएंगी.’’
‘‘स्मिता, मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं आने दूंगा कभी.’’ अनुराग के इन शब्दों से स्मिता का रोमरोम पुलकित हो उठा था.

 

मधुमेह के रोगियों के लिए औषधीय पौधा ककोड़ा

हमारे देश में ककोड़ा हिमालय से ले कर कन्याकुमारी तक पाया जाता है. यह ज्यादातर गरम व नम जगहों पर बाड़ों में मिलता है. उत्तर प्रदेश में ककोड़ा की खेती बड़े पैमाने पर की जाती?है. बिहार के पहाड़ी क्षेत्रों राजमहल, हजारीबाग व राजगीर और महाराष्ट्र के नम पहाड़ी इलाकों, दक्षिण राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, असम व पश्चिम बंगाल के जंगलों में यह अपनेआप ही उग आता है. ककोड़ा की पौष्टिकता, उपयोगिता व बाहरी इलाकों में इस की बढ़ती मांग के कारण अब किसान इस की खेती को ज्यादा करने लगे हैं. ककोड़ा फल की सब्जी बेहद स्वादिष्ठ होती है. जुलाई से अक्तूबर तक इस का फल बाजार में उपलब्ध रहता है और इस की बाजारी कीमत 18-20 रुपए प्रति किलोग्राम तक होती है. इस फल के बीज से तेल निकाला जाता है, जिस का उपयोग रंग व वार्निश उद्योग में किया जाता है.

ककोड़ा की जड़ यानी कंद का इस्तेमाल मस्सों का खून रोकने और पेशाब की बीमारियों में दवा के रूप में किया जाता है. इस के फल को मधुमेह के मरीजों के लिए बहुत असरदार पाया गया है. इस के फल करेले की तरह कड़वे नहीं होते.

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पौष्टिक है ककोड़ा

ककोड़ा में खासतौर से पाए जाने वाले तत्त्व इस तरह हैं: नमी 84.19 फीसदी, प्रोटीन 3.11 फीसदी, दूसरे तत्त्व 0.97 फीसदी, राख 1.10 फीसदी, वसा 0.66 फीसदी, कार्बोहाइड्रेट 7.70 फीसदी, क्रूडरेशा 2.97 फीसदी, कैल्शियम 33 मिलीग्राम/100 ग्राम, फास्फोरस 42 मिलीग्राम/100 ग्राम, लोहा 4.68 मिलीग्राम/100 ग्राम, केरोटीन (विटामिन ए) 2 माइक्रोन थाइमिन 45.20 माइक्रौनराइबोफ्लोबिन 176 मिलीग्राम और नाइक्सीन 0.50 मिलीग्राम/100 ग्राम. इस के फल में एस्कारबिक अम्ल ज्यादा (275.10 मिलीग्राम/100 ग्राम) और आयोडीन 0.70 मिलीग्राम/100 ग्राम मात्रा में पाया जाता है.

पौधे तैयार करने की विधि

ककोड़ा के पौधों को बीज, कंद या तने की कटिंग से तैयार किया जा सकता है.

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बीज द्वारा

पौधे तैयार करने के लिए सब से पहले बीजों को 24 घंटे तक पानी में डुबो कर रखा जाता?है. इस के बाद तैयार खेत के अंदर बो दिया जाता है. बीज से मिले पौधों में करीब 50-50 फीसदी नर व मादा पाए जाते हैं, जबकि ज्यादा उत्पादन के लिए नर व मादा पौधों का अनुपात 1:10 होना चाहिए. इस के लिए हर गड्ढे में 2-3 बीज बोए जाते?हैं और बाद में फूल आने पर नर व मादा पौधे सही अनुपात में रख लिए जाते हैं.

जड़कंद द्वारा

ककोड़ा के पौधे जड़कंद के द्वारा भी तैयार किए जा सकते हैं. कंद द्वारा तैयार पौधे काफी स्वस्थ होते हैं. सब से पहले ककोड़ा के कंद को तैयार खेत के अंदर बो दिया जाता है. रोपाई के 10-15 दिनों बाद पौधा जमीन के बाहर आ जाता है.

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तने की कटिंग द्वारा

इस तरीके में ककोड़ा के पौधों को हार्मोन में भिगो कर व डुबो कर रखा जाता है. कटिंग हमेशा पौधे के ऊपरी भाग से होनी चाहिए. कटिंग करने के बाद पौधे को जुलाई व अगस्त महीने में खेत में रोपना चाहिए. 10-15 दिनों बाद ही कटिंग्स से नई पत्तियां निकलनी शुरू हो जाती हैं.

खेत की तैयारी व रोपाई

ककोड़ा सभी प्रकार की जमीनों में उगाया जा सकता?है, लेकिन जिस जमीन में पानी भरा रहता हो, उस में इसे नहीं लगाना चाहिए. इस की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सही रहती है. सब से पहले खेत की 3 या 4 बार जुताई की जाती है, ताकि मिट्टी अच्छी तरह से भुरभुरी व बारीक हो जाए. अब खेत में अंदर 30 से 45 सेंटीमीटर गोलाई के 30 सेंटीमीटर गहरे गड्ढे तैयार करने चाहिए. गड्ढे में 2 किलोग्राम कंपोस्ट खाद, एनपीके (15:15:15 ग्राम) और 3 ग्राम फ्यूरोडान डालनी चाहिए. पौध रोपने से 1 दिन पहले गड्ढे की अच्छी तरह से सिंचाई कर देनी चाहिए. जैसे ही बारिश शुरू हो, हर गड्ढे में 2-2 पौधे लगा कर सिंचाई कर देनी चाहिए, ताकि पौधे मुरझाएं नहीं. यदि बारिश नहीं होती है, तो पत्ती निकलने तक हर रोज पौधे की सिंचाई करते रहना चाहिए. इसी तरह बीज और कंद द्वारा पौधे तैयार किए जा सकते हैं.

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जहां पर सिंचाई की सुविधा है, उन इलाकों में कंद द्वारा पौधे फरवरी या मार्च में भी लगाए जा सकते हैं. इस समय तैयार फसल में अप्रैल के आखिर से सितंबर तक फूल आते रहते हैं जल्दी ही फलों का उत्पादन शुरू हो जाता है.

नाइट्रोजन उर्वरक का छिट्टा

10 ग्राम यूरिया 4-5 पत्ती निकलने पर हर गड्ढे में डालना चाहिए. अब फिर से 30 दिनों के अंतर पर 15 ग्राम यूरिया हर गड्ढे में डालना चाहिए. ककोड़ा के फल फूल आने के 15 से 20 दिनों के अंदर तैयार हो जाते हैं. यदि फलों को सही समय पर नहीं तोड़ा जाता है, तो वे पीले हो कर पक जाते?हैं, जिस से वे सब्जी के लिए सही नहीं रहता. इस तरह तैयार फसल से 1 पौध से 42 से 60 फल तक मिल सकते?हैं. इस के फल का उत्पादन 75 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पाया गया है.

कीट व रोग

ककोड़ा खरीफ की फसल में उगाया जाता है, इसलिए इस दौरान कीटपतंगों का हमला भी ज्यादा पाया जाता है. इस फसल पर भी काफी कीट व बीमारियां अब तक देखी गई?हैं, जैसे एपीलपचना बीटल (एपीलाचना प्रजाति), फ्रूटफ्लाई (लासरओपटेरा प्रजाति, डेकस मेकुलेटस), ग्रीन पंपकिन बीटल (रेफीडोपाल्पा प्रजाति), रूट नाट निमेटोड (मेलीओडोगाइन इनकोगनिटा), पाउडरी मिल्ड्यू (इरीस्फे सीकोरेसिरम), फल सड़न (पाइथियम एफारीडेरेमेंटम) वगैरह.

फसल को कीटों व बीमारियों से बचाने के लिए कार्बोफ्यूरान 3 ग्राम प्रति गड्ढा 30 दिनों के अंतराल पर इस्तेमाल में लाना चाहिए और कार्बोरिल 50 डब्ल्यूपी (2 सीसी प्रति लीटर) और मेलाथियान 50 ईसी (2 सीसी प्रति लीटर) को डाइथेन एम 45 (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) के साथ पौधों पर छिड़कने से बीमारी से छुटकारा मिल जाता है.

जहां तक हो सके बीमारीरहित बीज, कंद व कटिंग्स इस्तेमाल में लाने चाहिए. किसानों को चाहिए कि वे अपने जिले व प्रदेश में मौजूद कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि विज्ञान केंद्रों के माहिर वैज्ञानिकों से ककोड़ा उत्पादन की जानकारी हासिल कर के नई तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर अच्छा उत्पादन हासिल करें.

स्मिता तुम फिक्र मत करो

बिग बॉस 14: राहुल वैद्य ने जान कुमार सानू पर लगाया नेपोटिज्म का आरोप, फैंस ने ट्विटर पर किया कमेंट

बिग बॉस के घर में गेम अब चरम सीमा पर कंटेस्टेंट खेलते नजर आ रहे हैं. हर दिन कुछ नन कुछ नया ड्रामा हो रहा है. ऐसे में बिग बॉस के घर में धमाल हर दिन हो रहा है. हाल ही में बिग बॉस कंटेस्टेंट राहुल वैद्या ने कुछ ऐसे सवाल घर के अंदर उठा दिया जो पिछले कई महीनों से बॉलीवुड की नींद उडाई हुई है.

मामला भाई भतीजावाद का है. जिसमें घर के कई सदस्यों पर सवाल उठाते दिखे गए. दरअसल शो के एक नॉमिनेशन टास्क पर सवाल उठा है. जिसमें कुमार सीनू के बेटे कुमार जान पर सवाल खड़ा किया गया.

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राहुल वैद्या ने का रहा उन्हें नेपोटिज्म के कारण नॉमिनेट किया जा रहा है इसके बाद कुमार राहुल और जान के बीच ताखी बहस छीड़ गई.

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जान कुमार सानू कहते है कि तू मेरे बाप पर मत जा और ना ही तेरी औकात है ऐसे बात करने की इसी बात पर मामला लगातार बढ़ते जाता है और दोनों के बीच की बहस खत्म होने का नाम नहीं लेता है.

इसी दौरान ट्विटर पर #nepotism  भी ट्रेंड करने लगा वहीं कुछ लोग राहुल वैद्या का सपोर्ट कर रहे थे तो वहीं कुछ लोग जान कुमार सानू का सपोर्ट करते नजर आ रहे थें. यह सोशल मीडिया पर काफी वा,रल हो रहा है.

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वैसे कुछ वक्त पहले यह भी खबर आ रही थी कि जल्द ही बिग बॉस के घर में रिया चक्रवर्ती की एंट्री होने वाली है. रिया पर बहुत सारे आरोप लगाए गए हैं. जो कुछ तो सही है लेकिन कुछ बहुत ज्यादा गलत है. बिग बॉस के घर में रहते हुए रिया अपने आप को एक मौका देंगी.

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खैर दर्शकों को भी रिया के आने का इंतजार है.वह भी रिया का असली चेहरा देखना चाहते हैं.

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