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कड़वे स्वाद वाला करेला है – कई औषधीय गुणों की खान

करेले का स्वाद भले ही कड़वा हो, लेकिन सेहत के लिहाज से यह बहुत फायदेमंद होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि करेला  कुपोषण और कई बीमारियों से बचाव में बेहद कारगर है. करेले में अन्य सब्जी या फल की तुलना में ज्यादा औषधीय गुण पाये जाते हैं.

करेला खुश्क तासीर वाली सब्जी‍ है. यह खाने के बाद आसानी से पच जाता है. करेले में फास्फोरस पाया जाता है जिससे कफ की शिकायत दूर होती है. करेले में प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, फास्फोरस और विटामिन पाया जाता है. आइए हम आपको कडवे करेले के गुणों के बारे में बताते हैं.

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  • कफ की शिकायत होने पर करेले का सेवन करना चाहिए. करेले में फास्फोरस होता है जिसके कारण कफ की शिकायत दूर होती है.
  • करेला हमारी पाचन शक्ति को बढाता है जिसके कारण भूख बढती है. करेले ठंडा होता है, इसलिए यह गर्मी से पैदा हुई बीमारियों के उपचार के‍ लिए फायदेमंद है.
  • दमा होने पर बिना मसाले की छौंकी हुई करेले की सब्जी खाने से फायदा होता है.
  • लकवे के मरीजों के लिए करेला बहुत फायदेमंद होता है. इसलिए लकवे के मरीज को कच्चा करेला खाना चाहिए.
  • उल्टी-दस्त या हैजा होने पर करेले के रस में थोड़ा पानी और काला नमक मिलाकर सेवन करने से तुरंत लाभ मिलता है.
  • लीवर से संबंधित बीमारियों के लिए तो करेला रामबाण औषधि है. जलोदर रोग होने पर आधा कप पानी में 2 चम्मच करेले का रस मिलाकर ठीक होने तक रोजाना तीन-चार बार सेवन करने से फायदा होता है.
  • पीलिया के मरीजों के लिए करेला बहुत फायदेमंद है. पीलिया के मरीजों को पानी में करेला पीसकर खाना चाहिए.
  • डायबिटीज के लिए करेला रामबाण इलाज है. करेला खाने से शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है.
  • करेला खून साफ करता है. करेला खाने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है.
  • बवासीर होने पर एक चम्मच करेले के रस में आधा चम्मखच शक्कर मिलाकर एक महीने तक प्रयोग करने से बवासीर की शिकायत समाप्त हो जाती है.
  • गठिया रोग होने पर या हाथ-पैर में जलन होने पर करेले के रस से मालिश करना चाहिए. इससे गठिया के रोगी को फायदा होगा.
  • दमा होने पर बिना मसाले की करेले की सब्जी खाना चाहिए. इससे दमा रोग में फायदा होगा.
  • उल्टी, दस्त और हैजा होने पर करेले के रस में थोडा पानी और काला नमक डालकर पीने से फायदा होता है.
  • करेले के रस को नींबू के रस के साथ पानी में मिलाकर पीने से वजन कम किया जा सकता है.

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सवाधानी बरते  : वैसे तो करेला सेहत की दृष्टि से बेहद लाभकारी है. लेकिन जिन्हें अल्सर की समस्या है उन्हें इससे परहेज करना चाहिए. इसके अधिक सेवन से सीने में जलन जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं.

रूपमती- भाग 1 : क्या रूपमती के दर्द को समझने वाला कोई था?

सप्ताहभर की मूसलाधार बारिश के बाद आज बादलों के कतरे नीले आसमान में तैरने लगे थे. कुनकुनी धूप से छत नहा उठी थी. सड़क पर जगहजगह गड्ढे पड़ गए थे और बरसाती पानी से नाले लबालब भर गए थे.

वातावरण में नमी इस कदर थी कि गीले वस्त्र सूखने का नाम न लेते. कमरों के भीतर तक नमी पैठ गई थी. सीलन की अजीब सी गंध बेचैन कर रही थी. ऐसी गंध मुझे नापसंद थी. उपयुक्त समय जान कर मैं ने ढेर सारे कपड़े छत पर फैला दिए. पहाड़ी से ले कर समूचा कसबा चांदी सी चमकदार धूप से नहा उठा था. पेड़पौधों पर कुदरती गहरा हरा रंग चढ़ चुका था.

मुझे ज्ञात नहीं कब हमारे पूर्वज यहां आ कर बस गए. पहाड़ी की तलहटी में बसा यह कसबा लाजवाब है. कसबे से सट कर नदी बहती है. दूसरी तरफ हरेभरे जंगल बरबस नजरें खींच लेते हैं. मेरा बचपन इसी कसबे में बीता. विवाह के बाद अपने पति रामबहादुर के साथ अलग मकान में रहने लगी. कुछ ही दूरी पर मेरा मायका है. मांबाप, भाईबहन सभी हैं. अब हम 3 जने हैं. हम दोनों और हमारा 4 साल का बेटा दीपक. पड़ोसी मुझे धन्नो के नाम से जानते हैं.

मैं ने इतमीनान से सांस ली, फिर चारों तरफ नजर दौड़ाई. ठीक सामने खंडहर की ओर देखा तो एक अजीब सिहरन बदन में कौंध गई. खंडहर के मलबे से झांकते मटमैले पत्थरों से मुझे सहानुभूति सी होने लगी. पत्थर खालिस पत्थर ही नहीं थे बल्कि मूकदृष्टा और राजदार थे एक दर्द भरी कहानी के. मैं जिस की धुरी में प्रत्यक्ष मात्र बन कर रह गई थी. मेरी आंखों के आगे वह कहानी बादल के टुकड़े की तरह फैलती चली गई.

खंडहर में कभी दोमंजिला मकान हुआ करता था. पत्थरों का मकान था लेकिन इस में बाहर से सीमेंट की मोटी तह चढ़ी थी. मकान की सीढि़यां सड़क से सटी थीं और उस का प्लास्टर कई जगहों से नदारद था. पत्थरों से रेत तक भुरभुरा कर उतर गई थी. दीवार के पत्थर बिना मसूड़े के भद्दे दांतों जैसे दिखाई देते थे. ऐसा लगता था कि मकान अब गिरा कि तब गिरा. इस की अघोषित मालकिन रूपमती जीवट की थी. वह सुबहसवेरे अपने दैनिक काम निबटा कर लकड़ी के तख्तों वाले छज्जे पर बैठ जाती. वहीं से आनेजाने वालों पर अपनी नजर गड़ाए रहती. इधर मैं थी और सड़क के उस पार रूपमती. दोनों मकानों के बीच में यदि कोई था तो वह थी 15 फुट चौड़ी पक्की सड़क.

लोग कहा करते कि भरी जवानी में वह सचमुच की रूपमती थी. गोरीचिट्टी, सेब जैसे लाल गाल, मोटीमोटी आंखें, नितंबों तक झूलते हुए बाल और मदमस्त करने वाली चाल. रूपमती को देख कर मनचलों के होश फाख्ता हो जाते. दिनभर तितली बनी फिरती थी वह. तभी तो नदी पार गांव के बिरजू की आंखें जो उस पर अटकीं, शादी के बाद ही हटीं.

बिरजू था तो हट्टाकट्टा लेकिन एक सड़क हादसे में रूपमती को भरपूर जवानी में अकेला छोड़ गया. उस की बसीबसाई दुनिया में भूचाल आ गया. छोटा बच्चा गोद में था. पेट की आग से व्याकुल हो गई थी रूपमती. कमाई का कोई जरिया न था. हार मान कर उस ने जिस्म को भूखे दरिंदों के आगे डाल दिया.

दलदल इतना गहरा कि वह कभी बाहर निकल ही नहीं पाई. मजबूरन वह एक नई रूपमती बन गई. उस के स्वभाव और व्यवहार में निरंतर बदलाव आता चला गया. कितने ही इज्जतदार उस के आगे नतमस्तक हो गए. और तो और, कुछ वरदी वाले भी रूपमती के घर पर हाजिरी देने से नहीं चूकते. मजाल क्या थी कि कसबे में कोई उस से उलझे या आंखें डाल कर बतियाए. वरदी वाले रूपमती की पैरवी में आगे आते. जुर्रत करने वालों को थाने ले जाने में वह कोरकसर न छोड़ती.

रूपमती का लड़का था, मनोहर. दुबलापतला और डरपोक. अबोध अवस्था तक घर में रहा और जब वह समझदार हुआ तो हालात से घबरा गया. प्रताड़ना और अपमान से आहत एक दिन उस ने घर ही छोड़ दिया. रूपमती लोगों के सामने झूठे को ही आंसू बहाती रही. दरअसल, रूपमती यही चाहती थी, खुली आजादी.

रात गहराती और रूपमती सजधज कर छज्जे पर बैठ जाती. ग्राहक आने लगते, एक के बाद एक. वे उस ऊबड़खाबड़, उधड़ी हुई सीढि़यों पर चपलता से चढ़तेउतरते.

दिन में वे लोग कभी इस तरफ नहीं निकलते जिन्हें समाज का डर होता. किसी को रूपमती देख लेती तो उसे झक मार कर बतियाना पड़ता. कौन जाने कब रूपमती दुखती रग पर हाथ रख दे. डर बला ही ऐसी है लेकिन अंधेरे में समाज की किसे परवा? मुझे यह सब देखसुन कर उबकाई सी होने लगती. इस माहौल से ऊब गई थी मैं.

2-3 साल बीते. मनोहर यदाकदा घर आने लगा. जब आता उस दिन रूपमती के घर की सीढि़यां सूनी पड़ी रहतीं. शायद मनोहर ने दुनिया देख ली थी. उस की बातों से रूपमती आपा खो देती और मारपीट पर आमादा हो जाती. मनोहर उसी दिन चला जाता. वह शहर में गुजारे भर का पैसा कमाने लगा था. जाते वक्त कभी कुछ रुपए मां के सिरहाने रख देता. वैसे रूपमती को उस के पैसों की जरूरत नहीं थी. बहुत रुपया कमा चुकी थी वह. ऐसे धंधे में हानि का प्रश्न ही नहीं था.

इस तरह कई वसंत आए, कई गए. लेकिन रूपमती के लिए दिन, महीने, साल घाटे के साबित होने लगे. वह 50 की उम्र पार कर गई थी. धंधे की आंच ठंडी पड़ गई थी. शरीर थुलथुला हो गया था, चेहरे पर झुर्रियां गहरा गई थीं. छोटेबड़े रूपमती को ताई कह कर पुकारने लगे थे. रूपमती को इस में कुछ भी अजीब नहीं लगता. वक्त हालात से साक्षात्कार करा ही देता है.

शायद उसे भी एहसास होने लगा था. समय रहते ही रूपमती ने कमाई का नया जरिया ढूंढ़ लिया. लोग कहने लगे कि उस पर कोई देवी आती है. देवी सच बताती है. मुसीबतों से त्रस्त अंधविश्वासी उस के घर आते. किसी का लड़का बीमार है, किसी पर प्रेत की छाया है तो किसी पर जादूटोना. रूपमती झूमझूम कर देवी को बुलाती और उपाय बताती.

रूपमती- भाग 3 : क्या रूपमती के दर्द को समझने वाला कोई था?

रूपमती को कौन समझाता कि जवानी में फैशन न करें तो कब करें? उसे टोकने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता. न औरत न मर्द. औरतें क्या कहतीं जब मर्द चूडि़यां पहन कर बैठ गए थे.
यह खंडहर जब तक आबाद था, रूपमती उस में बरसों रही. मकान दीनदयाल नाम के व्यवसायी का था. वह आज भी मिठाई की दुकान चलाता है. नकली मिठाई के धंधे में पिछले साल सजा भी काट चुका है. उस ने कई बार रूपमती को प्रलोभन दिया कि वह मकान ठीक कर उसे ही देगा लेकिन वह टस से मस नहीं हुई. किराया देना भी कई साल पहले बंद हो गया था. एक तरह से रूपमती का मकान पर कब्जा बरकरार रहा. मकान की हालत दयनीय होती जा रही थी. दीवारें कई जगहों से फूल कर एक ओर झुकने लगी थीं और टिन की छत ने भी भीतर झांकना शुरू कर दिया था. लेकिन रूपमती इन सब से बेफिक्र थी.

इस मकान में जो भी रहा, फलताफूलता रहा. जिस ने इसे बनाया, देखते ही देखते वह धनी हो गया. जब मकान दीनदयाल के नाम हुआ तो उस ने एक अलग कोठी खड़ी कर ली. उस ने यह मकान रूपमती के परिवार को किराए पर दे दिया. रूपमती भी मालामाल हो गई लेकिन यह मकान सेठ की गलफांस बन गया.

सबकुछ होते हुए भी सेठ को हरदम पुलिस का खौफ रहता. जब वह तकाजे के लिए आता, रूपमती उसे खदेड़ देती और गला फाड़फाड़ कर चिल्लाती, ‘‘रांड़ औरत हूं, इसलिए तू धमक जाता है इधर. अरे, देखती हूं कौन मर्द का बच्चा मुझ से मकान खाली करवाता है.’’

खाली समय में रूपमती छज्जे पर बैठ जाती थी. आनेजाने वालों को बैठेबैठे बिना पूछे नसीहतें दे डालती. कुछ लोग उस के गालीपुराण के डर से बतियाते तो कुछ देवी प्रकोप से. कभी उस की खूबसूरती खींचती थी लेकिन धीरेधीरे वह आंखों की किरकिरी बन गई.

रातरात तक रूपमती की किलकारियां, कभी विद्रूप सी हंसी सुनाई देती. रूपमती की किलकारी से दीपू घबरा जाता. रात घिरते ही वह मेरे वक्ष से चिपक कर पूछने लगता, ‘मां, ताई क्यों चिल्लाईं?’

मैं उसे लाड़ से समझाती, ‘बेटा, ताई पर देवी आई है.’

‘देवी ऐसे चिल्लाती है, मम्मी?’ बच्चा जिज्ञासा से पूछता.

मैं भला क्या समझाती? लेकिन मेरा समझदार पति अलग राय रखता. जब नशा टूटने को होता तब वह मुझे समझाता, ‘मूर्ख है तू. ऐसी वाहियात औरत पर ही देवी क्यों आती है? तू तो भली औरत है, तुझ पर क्यों नहीं आती देवी, बोल? अरे धूर्त है धूर्त, एक नंबर की पाखंडी.’

मैं घबरा जाती और कहती, ‘देवी कुपित हो जाएगी, ऐसी बात मुंह से न निकालो. देवी ही तो बुलवाती है उस से.’

रामबहादुर ठठा कर हंस देता और मेरा शरीर पत्ते सा कांप जाता. आंखों में भय के बेतरतीब डोरे फैल जाते. मैं मतिभ्रष्ट पति की ओर से हजारों बार देवी से हाथ जोड़ कर क्षमा मांग चुकी थी. क्या करती, धर्मभीरु स्वभाव की जो थी.

एक दिन पड़ोस की औरतों ने बताया कि कुछ लोग रूपमती को ले कर गुस्से में थे. कोई उसे खदेड़ने की बात कह रहा था तो कोई सामाजिक बहिष्कार करने की. तब मुझे रोज की इस चखचख, शोरशराबे से छुटकारा मिलने की उम्मीद जगी.

वह अमावस की रात थी, घुप अंधेरा था. आधी रात तक रूपमती पर कथित देवी सवार रही. रुकरुक कर चीखनेचिल्लाने की आवाजें बाहर सुनाई दे रही थीं. इतने शोरशराबे में न मैं सो पा रही थी न दीपू, जबकि थकामांदा रामबहादुर खर्राटे ले रहा था.

अगली सुबह मैं ने सुना कि रूपमती लापता है. कई दिनों तक वापस नहीं आई. रूपमती को ले कर लोगों के बीच कानाफूसी होने लगी. फिर एक दिन मैं ने देखा, रूपमती के घर के नीचे लोगों की भीड़ थी. पुलिस आई थी. ताला खोला गया. सामान यथावत था. 2 पलंग, पुराना टैलीविजन, खस्ताहाल फ्रिज, टेबलफैन और एक कोने में सिंदूर पुती देवीदेवताओं की तसवीरें. रसोई के बरतन, स्टोव सभी मौजूद थे. जो नहीं था, वह थी रूपमती. कमरे में मारपीट के चिह्न भी कहीं नजर नहीं आए जिस से लगे कि रूपमती के साथ कुछ बुरा घटित हुआ हो. तहकीकात के बाद पुलिस चली गई. भीड़ भी धीरेधीरे खिसक गई. कुछ दिन रहने के बाद शांता भी उस मकान को छोड़ कर कहीं चली गई.

पुलिस को रूपमती का सुराग न मिला. अफवाहों का बाजार गर्म था. कोई कहता, ‘रूपमती ने साध्वी का रूप धारण कर लिया है.’ कोई कहता, ‘रूपमती ने आत्महत्या कर ली है, किसी ने उस की हत्या कर के लाश नदी में डुबो दी है.’ जितने मुंह उतनी बातें.

रूपमती को गुम हुए 10 महीने बीत गए थे. मनोहर मां को ढूंढ़ता फिरता रहा. एक बार जब वह इधर आया तब मुझ से भी मिला. मां के बारे में पूछा. मैं ने असमर्थता जताई तो वह निराश हो कर चला गया. एक दिन पुलिस थाने से उसे खबर मिली कि उस की मां शहर के सरकारी अस्पताल में बीमार हालत में है. वह दौड़ादौड़ा अस्पताल गया लेकिन वहां हाथ कुछ नहीं आया. खबर पुरानी थी. वह अस्पताल के स्टाफ से मिला. डाक्टरों के आगे गिड़गिड़ाया. तब कहीं जा कर रिपोर्ट निकलवाई गई. फाइलों से पता चला कि उस की मां ‘एड्स’ नामक लाइलाज बीमारी से पीडि़त थी. अंत समय में उस के पास कोई अपना न था. आखिरकार एक दिन वह हाड़मांस का पिंजरा छोड़ गई. उस के बाद लावारिस लाश समझ कर रूपमती की अंत्येष्टि कर दी गई.

रूपमती फिर कभी मकान में नहीं लौटी. दूसरों का भविष्य बताने वाली अपने भविष्य से अनभिज्ञ रही. कसबे वाले चैन की बंसी बजाने लगे थे. कभीकभी मुझे लगता जैसे मैं किसी एकांत जगह में आ गई हूं.

उधर, मनोहर को मां की मौत का दुख था. जिस दिन आया तो मां की बचीखुची धरोहर को कमरे से बाहर निकालते हुए दहाड़ें मारमार कर रोया. उस की आंखें रोरो कर सूज गई थीं.

मां की संवेदनहीनता भले ही मनोहर के साथ रही हो, किंतु कहीं न कहीं रूपमती के हृदय में ममता का स्थान अवश्य ही रहा होगा. मैं सोचती रही.

मनोहर ने फिर कसबे की ओर मुंह नहीं किया. जहां उसे कदमकदम पर संत्रास मिला, दुत्कार मिली, ऐसे स्थान पर जा कर वह अपने जख्मों को क्यों हरा करता?
समय अपनी रफ्तार से आगे दौड़ा. अषाढ़ के महीने में मूसलाधार बरसात हुई. ऐसी बरसात कि मजबूत चट्टानें खिसक गईं, नदी ने मुहाने बदल दिए. और तो और, वह मकान भी ढह गया जिस में कभी रूपमती का बसेरा था.

आज भी मकान के खंडहर को देख कर रूपमती की अभिशप्त कहानी मेरे जेहन में सिहरन पैदा कर देती है. ऐसा प्रतीत होता है मानो रूपमती खंडहर से बाहर आ कर ललकार रही है उस समाज को, विधि के विधान को जिस ने एक औरत को ही इस अपराध का समूचा उत्तरदायी मानते हुए सजाएमौत मुकर्रर की और पुरुष प्रधान समाज को बाइज्जत बरी. तब मेरे हृदय में रूपमती के लिए सहानुभूति और करुणा के भाव उभरने लगे.

Crime Story: अंजाम-ए-साजिश

रेलवे लाइनों के किनारे पड़ी बोरी को लोग आश्चर्य से देख रहे थे. बोरी को देख कर सभी अंदाजा लगा रहे थे कि बोरी में शायद किसी की लाश होगी. मामला संदिग्ध था, इसलिए वहां मौजूद किसी शख्स ने फोन से यह सूचना दिल्ली पुलिस के कंट्रोलरूम को दे दी.

कुछ ही देर में पुलिस कंट्रोलरूम की गाड़ी मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने जब बोरी खोली तो उस में एक युवती की लाश निकली. लड़की की लाश देख कर लोग तरहतरह की चर्चाएं करने लगे.

जिस जगह लाश वाली बोरी पड़ी मिली, वह इलाका दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना सरिता विहार क्षेत्र में आता है. लिहाजा पुलिस कंट्रोलरूम से यह जानकारी सरिता विहार थाने को दे दी गई. सूचना मिलते ही एसएचओ अजब सिंह, इंसपेक्टर सुमन कुमार के साथ मौके पर पहुंच गए.

एसएचओ अजब सिंह ने लाश बोरी से बाहर निकलवाने से पहले क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को मौके पर बुला लिया और आला अधिकारियों को भी इस की जानकारी दे दी. कुछ ही देर में डीसीपी चिन्मय बिस्वाल और एसीपी ढाल सिंह भी वहां पहुंच गए. फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद डीसीपी और एसीपी ने भी लाश का मुआयना किया.

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मृतका की उम्र करीब 24-25 साल थी. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका तो यही लगा कि लड़की इस क्षेत्र की नहीं है. पुलिस ने जब उस के कपड़ों की तलाशी ली तो उस के ट्राउजर की जेब से एक नोट मिला. उस नोट पर लिखा था, ‘मेरे साथ अश्लील हरकत हुई और न्यूड वीडियो भी बनाया गया. यह काम आरुष और उस के 2 दोस्तों ने किया है.’

नोट पर एक मोबाइल नंबर भी लिखा था. पुलिस ने नोट जाब्जे में ले कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.पुलिस के सामने पहली समस्या लाश की शिनाख्त की थी. उधर बरामद किए गए नोट पर जो फोन नंबर लिखा था, पुलिस ने उस नंबर पर काल की तो वह उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में रहने वाले आरुष का निकला. नोट पर भी आरुष का नाम लिखा हुआ था.

सरिता विहार एसएचओ अजब सिंह ने आरुष को थाने बुलवा लिया. उन्होंने मृतका का फोटो दिखाते हुए उस से संबंधों के बारे में पूछा तो आरुष ने युवती को पहचानने से इनकार कर दिया. उस ने कहा कि वह उसे जानता तक नहीं है. किसी ने उसे फंसाने के लिए यह साजिश रची है.

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आरुष के हावभाव से भी पुलिस को लग रहा था कि वह बेकसूर है. फिर भी अगली जांच तक उन्होंने उसे थाने में बिठाए रखा. उधर डीसीपी ने जिले के समस्त बीट औफिसरों को युवती की लाश के फोटो देते हुए शिनाख्त कराने की कोशिश करने के निर्देश दे दिए. डीसीपी चिन्मय बिस्वाल की यह कोशिश रंग लाई.

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पता चला कि मरने वाली युवती दक्षिणपूर्वी जिले के अंबेडकर नगर थानाक्षेत्र के दक्षिणपुरी की रहने वाली सुरभि (परिवर्तित नाम) थी. उस के पिता सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं. पुलिस ने सुरभि के घर वालों से बात की. उन्होंने बताया कि नौकरी के लिए किसी का फोन आया था. उस के बाद वह इंटरव्यू के सिलसिले में घर से गई थी.

पुलिस ने सुरभि के घर वालों से उस की हैंडराइटिंग के सैंपल लिए और उस हैंडराइटिंग का मिलान नोट पर लिखी राइटिंग से किया तो दोनों समान पाई गईं. यानी दोनों राइटिंग सुरभि की ही पाई गईं.

पुलिस ने आरुष को थाने में बैठा रखा था. सुरभि के घर वालों से आरुष का सामना कराते हुए उस के बारे में पूछा तो घर वालों ने आरुष को पहचानने से इनकार कर दिया.

नौकरी के लिए फोन किस ने किया था, यह जानने के लिए एसएचओ अजब सिंह ने मृतका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस से सुरभि के फोन पर कई बार काल की गई थीं और उस से बात भी हुई थी. जांच में वह फोन नंबर संगम विहार के रहने वाले दिनेश नाम के शख्स का निकला. पुलिस काल डिटेल्स के सहारे दिनेश तक पहुंच गई.

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थाने में दिनेश से सुरभि की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने कबूल कर लिया कि अपने दोस्तों के साथ मिल कर उस ने पहले सुरभि के साथ सामूहिक बलात्कार किया. इस के बाद उन लोगों ने उस की हत्या कर लाश ठिकाने लगा दी.

उस ने बताया कि वह सुरभि को नहीं जानता था. फिर भी उस ने उस की हत्या एक ऐसी साजिश के तहत की थी, जिस का खामियाजा जेल में बंद एक बदमाश को उठाना पड़े. उस ने सुरभि की हत्या की जो कहानी बताई, वह किसी फिल्मी कहानी की तरह थी—

दिल्ली के भलस्वा क्षेत्र में हुए एक मर्डर के आरोप में धनंजय को जेल जाना पड़ा. जेल में बंटी नाम के एक कैदी से धनंजय का झगड़ा हो गया था. बंटी उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र का रहने वाला था.

बंटी भी एक नामी बदमाश था. दूसरे कैदियों ने दोनों का बीचबचाव करा दिया. दोनों ही बदमाश जिद्दी स्वभाव के थे, लिहाजा किसी न किसी बात को ले कर वे आपस में झगड़ते रहते थे. इस तरह उन के बीच पक्की दुश्मनी हो गई.

उसी दौरान दिनेश झपटमारी के मामले में जेल गया. वहां उस की दोस्ती धीरेंद्र नाम के एक बदमाश से हुई. जेल में ही धीरेंद्र की दुश्मनी बुराड़ी के रहने वाले बंटी से हो गई. धीरेंद्र ने जेल में ही तय कर लिया कि वह बंटी को सबक सिखा कर रहेगा.

करीब 2 महीने पहले दिनेश और धीरेंद्र जमानत पर जेल से बाहर आ गए. जेल से छूटने के बाद दिनेशऔर धीरेंद्र एक कमरे में साथसाथ संगम विहार इलाके में रहने लगे.

उन्होंने बंटी के परिवार आदि के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी. उन्हें पता चला कि बंटी के पास 200 वर्गगज का एक प्लौट है. उस प्लौट की देखभाल बंटी का भाई आरुष करता है. कोशिश कर के उन्होंने आरुष का फोन नंबर भी हासिल कर लिया.

इस के बाद दिनेश और धीरेंद्र एक गहरी साजिश का तानाबाना बुनने लगे. उन्होंने सोचा कि बंटी के भाई आरुष को किसी गंभीर केस में फंसा कर जेल भिजवा दिया जाए. उस के जेल जाने के बाद उस के 200 वर्गगज के प्लौट पर कब्जा कर लेंगे. यह फूलप्रूफ प्लान बनाने के बाद वह उसे अंजाम देने की रूपरेखा बनाने लगे.

दिनेश और धीरेंद्र ने इस योजना में अपने दोस्त सौरभ भारद्वाज को भी शामिल कर लिया. पहले से तय योजना के अनुसार दिनेश ने अपनी गर्लफ्रैंड के माध्यम से उस की सहेली सुरभि को नौकरी के बहाने बुलवाया. सुरभि अंबेडकर नगर में रहती थी.

गर्लफ्रैंड ने सुरभि को नौकरी के लिए दिनेश के ही मोबाइल से फोन किया. सुरभि को नौकरी की जरूरत थी, इसलिए सहेली के कहने पर वह 25 फरवरी, 2019 को संगम विहार स्थित एक मकान पर पहुंच गई.

उसी मकान में दिनेश और धीरेंद्र रहते थे. नौकरी मिलने की उम्मीद में सुरभि खुश थी, लेकिन उसे क्या पता था कि उस की सहेली ने विश्वासघात करते हुए उसे बलि का बकरा बनाने के लिए बुलाया है.

सुरभि उस फ्लैट पर पहुंची तो वहां दिनेश, धीरेंद्र और सौरभ भारद्वाज मिले. उन्होंने सुरभि को बंधक बना लिया. इस के बाद उन तीनों युवकों ने सुरभि के साथ गैंपरेप किया. नौकरी की लालसा में आई सुरभि उन के आगे गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उन दरिंदों को उस पर जरा भी दया नहीं आई.

चूंकि इन बदमाशों का मकसद जेल में बंद बंटी को सबक सिखाना और उस के भाई आरुष को फंसाना था, इसलिए उन्होंने सुरभि के मोबाइल से आरुष के मोबाइल नंबर पर कई बार फोन किया. लेकिन किन्हीं कारणों से आरुष ने उस की काल रिसीव नहीं की थी.

इस के बाद तीनों बदमाशों ने हथियार के बल पर सुरभि से एक नोट पर ऐसा मैसेज लिखवाया जिस से आरुष झूठे केस में फंस जाए. उस नोट पर इन लोगों ने आरुष का फोन नंबर भी लिखवा दिया था.

फिर वह नोट सुरभि के ट्राउजर की जेब में रख दिया. सुरभि उन के अगले इरादों से अनभिज्ञ थी. वह बारबार खुद को छोड़ देने की बात कहते हुए गिड़गिड़ा रही थी. लेकिन उन लोगों ने कुछ और ही इरादा कर रखा था.

तीनों बदमाशों ने सुरभि की गला घोंट कर हत्या कर दी. बेकसूर सुरभि सहेली की बातों पर विश्वास कर के मारी जा चुकी थी. इस के बाद वे उस की लाश ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस की लाश एक बोरी में भर दी.

इस के बाद इन लोगों ने अपने परिचित रहीमुद्दीन उर्फ रहीम और चंद्रकेश उर्फ बंटी को बुलाया. दोनों को 4 हजार रुपए का लालच दे कर इन लोगों ने वह बोरी कहीं रेलवे लाइनों के किनारे फेंकने को कहा.

पैसों के लालच में दोनों उस लाश को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो गए तो दिनेश ने 7800 रुपए में एक टैक्सी हायर की.

रात के अंधेरे में उन्होंने वह लाश उस टैक्सी में रखी और रहीमुद्दीन और चंद्रकेश उसे सरिता विहार थाना क्षेत्र में रेलवे लाइनों के किनारे डाल कर अपने घर लौट गए.

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लाश ठिकाने लगाने के बाद साजिशकर्ता इस बात पर खुश थे कि फूलप्रूफ प्लानिंग की वजह से पुलिस उन तक नहीं पहुंच सकेगी, लेकिन दिनेश द्वारा सुरभि को की गई काल ने सभी को पुलिस के चंगुल में पहुंचा दिया. मामले का खुलासा हो जाने के बाद एसएचओ अजब सिंह ने हिरासत में लिए गए आरुष को छोड़ दिया.

दिनेश से की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर उस के अन्य साथियों सौरभ भारद्वाज, चंद्रकेश उर्फ बंटी और रहीमुद्दीन उर्फ रहीम को भी गिरफ्तार कर लिया. पांचवां बदमाश धीरेंद्र पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका, वह फरार हो गया था. गिरफ्तार किए गए बदमाशों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

पुलिस को इस मामले में दिनेश की प्रेमिका को भी हिरासत में ले कर पूछताछ करनी चाहिए थी, क्योंकि सुरभि की हत्या की असली जिम्मेदार तो वही थी. उसी ने ही सुरभि को नौकरी के बहाने दिनेश के किराए के कमरे पर बुलाया था.

बहरहाल, दूसरे को फांसने के लिए जाल बिछाने वाला दिनेश खुद अपने बिछाए जाल में फंस गया. पहले वह झपटमारी के आरोप में जेल गया था, जबकि इस बार वह सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोप में जेल गया. पुलिस मामले की जांच कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

रूपमती- भाग 2: क्या रूपमती के दर्द को समझने वाला कोई था?

रूपमती की बातों पर यकीन करने वाले बहुत होते. औरतमर्द, सभी तबके के. आमदनी अच्छी हो जाती. दिन निकलने से ले कर देर रात तक उस पर कथित देवी सवार रहती. कमरे से धूप, अगरबत्ती की महक उठउठ कर आसपास तक महसूस होती.
उस का व्यवहार भी अब विरोधाभासी हो चला था. कभी कर्कश बैन बोलती, कभी बड़े लाड़ से मुझ से बतियाती. मैं हैरान रह जाती.

कभीकभार रूपमती कसबे से बाहर चली जाती और कुछ दिनों के बाद लौटती. अब लोगों की रूपमती में कोई खास दिलचस्पी नहीं रह गई थी.
एक दिन वह अपने साथ एक तलाकशुदा औरत को ले आई. शांता नाम की यह औरत थी भी बला की सुंदर. नैननक्श इतने कटीले कि बरबस नजरें खींच लें. चालचलन उस का भी ठीक न था. रूपमती को उस के लिए ग्राहक ढूंढ़ने में ज्यादा मशक्कत नहीं हुई. रूपमती के पुराने दिन लौट आए. दोनों की दुकान एक ही छत के नीचे चल पड़ी, अगले भाग में रूपमती और पिछले भाग में शांता. निचले हिस्से में रूपमती ने लोहे का बड़ा सा ताला लगा दिया था.

पलक झपकते ही मेरे जैसे पड़ोसियों के अशांति भरे दिन लौट आए. एक तरफ रूपमती की अजीबोगरीब आवाजें, दूसरी तरफ रात घिरते ही लोगों का देर रात तक आनाजाना और उन की फुसफुसाहटें.

उस दिन रातभर ओस गिरती रही. रूपमती के मकान की छत पर टिन की चादरें पड़ी थीं. सुबह होते ही मकान की छत से ओस बूंदों की शक्ल में नीचे गिरने लगी थी. रूपमती रोज की तरह छज्जे पर आ कर बैठ गई.

मैं भी नहा कर छत पर गई. हवा में ठंडक थी. सूरज पहाड़ी के ऊपर चढ़ आया था. मैं बाल काढ़तेकाढ़ते छत की मुंडेर तक गई. सड़क पर लोग आजा रहे थे. मैं सड़क की ओर घूमी. मेरी नजर सड़क पर जा रहे युवक पर पड़ी और उस युवक का पीछा करने लगी. सामान्य सी बात थी लेकिन रूपमती को तुरुप का पत्ता हाथ लग गया था. रूपमती स्वभाववश मेरी गतिविधियों पर नजर गड़ाए थी. ऐसा सुअवसर भला वह हाथ से क्यों जाने देती. रूपमती बिना विलंब किए बरस पड़ी, ‘ब्याहता हो कर शर्म नहीं आती तुझे, लौंडे को ऐसे क्या घूरघूर कर देख रही है?’

मैं सकपका गई थी. हाथ जहां के तहां रुक गए. मुझे उस का इस तरह टोकना नागवार लगा, सो ऊंचे स्वर में बोली, ‘देखना क्या जुर्म है? अरे आंख मेरी है, जहां जी करे देखूंगी, तुझे क्यों आग लगती है?’

करारा प्रत्युत्तर मिला तो रूपमती एक क्षण के लिए अवाक् रह गई थी. उसी क्षण रूपमती के माथे पर बल पड़ गए. आंखें अंगारे बरसाने लगीं, ‘चकलाघर खोल दे. फिर जो जी में आए कर. मुझे क्या करना.’

‘जरा जबान संभाल कर बोल, पाखंडी. यहां तेरा चकलाघर कम है क्या. तेरी तरह गिरी हुई नहीं हूं मैं, समझी,’ मैं ने अपनी बात कमतर न होने दी.

रूपमती के मर्म में चोट लगी. वह हाथ मटकाते हुए चीखी, ‘हांहां, तू तो बड़ी सती सावित्री है.’

उस समय मेरे जी में आया कि ईंट मार कर रूपमती का सिर फोड़ दूं. फिर यही सोच कर चुप हो गई कि वाहियात औरत के मुंह लगने से क्या लाभ. आसमान पर थूका मुंह पर ही आता है.

मैं ने यह भी सुना था कि रूपमती टोटके करना भी जानती है, न जाने कब क्या उलटासीधा कर दे? हंसतीखेलती गृहस्थी है, कहीं इस चुड़ैल की नजर लग गई तो…मैं चुपचाप हथियार डाल बैठ गई.

रूपमती को कसबे की विभिन्न गतिविधियों के रिकौर्ड रखने में दिलचस्पी थी. इधरउधर ताकाझांकी करना, दूसरों पर कटाक्ष करना और दूसरों को बिना पूछे सीख देना, दिनभर यही करती थी वह. ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’, रूपमती के लिए यह कहावत ठीक थी. रूपमती बहुत समय तक बड़बड़ाती रही. मैं छत पर रह न पाई और खुले बाल ही जीने से उतर गई.

मैं मन ही मन झुंझलाती रही. रामबहादुर बड़ा हठीला था, मेरे लाख कहने पर भी उस ने मकान नहीं बदला. बहुत पीछे पड़ती तो यही कहता, ‘पगला गई है क्या? ठेकेदार भला आदमी है, कभी किराए के लिए तंग नहीं करता. फिर 800 रुपए में 2 कमरे कौन देगा?’

मकान भी पक्का, छत भी पक्की. मकान का मालिक सरकारी ठेकेदार है जो शहर में रहता है. इस मकान में 2 कमरे हैं हमारे पास. पिछले हिस्से में ठेकेदार का गोदाम है जिस में सीमेंट, कुदालें, फावड़े, सब्बल आदि औजार भरे पड़े हैं. रामबहादुर मेहनती होने के साथ ठेकेदार का विश्वासपात्र मुंशी है. मजदूरों को इकट्ठा करना, राशन खरीदना और मजदूरों को काम पर ले जाना उस की ड्यूटी थी.

मैं दिनभर अकेली रहती सिलाईबुनाई का शौक था. पासपड़ोस से सूट सिलने को मिल जाते. कभीकभी मायके चली जाती. वैसे मैं अपने पति की विवशता को भलीभांति समझती थी लेकिन इस औरत से पीछा कैसे छूटे, समझ से परे था. रामबहादुर ठीकठाक कमाता लेकिन उसे नशे की लत भी थी. जब कभी रूपमती दिखाई पड़ जाती तो उसे सांप सूंघ जाता. यह औरत न होती तो यहां सब ठीक था. रूपमती को देखते ही उस के हाड़ के भीतर कंपकंपी होने लगती. सुबह देखो तब, शाम को देखो तब, उस का ही थोबड़ा आंखों के सामने आ जाता.

एक दिन रूपमती ने एक युवती पर ही फब्ती कस दी थी. वह मिनी स्कर्ट और ऊंची एड़ी की सैंडल पहने थी. उसे जाते देख रूपमती ने बुरा सा मुंह बनाया. हाथ के साथ आंखें मटकाते हुए वह ऊपर से ही बोली, ‘हायहाय, क्या अकेले इसी को जवानी चढ़ी है. फैशन देखो तो फिल्म स्टार भी झक मारें.’

करण जौहर को मिली NCB से क्लीन चिट, सितारों की पार्टी में नहीं था ड्रग्स

बॉलीवुड के मशहूर निर्माता और निर्देश करण जौहर के घर पर साल 2019 में पार्टी के दौरान आरोप लगे थें कि पार्टी में ड्रग्स का इस्तेमाल किया गया था. पार्टी का एक वीडियो लिक हुआ था जिसके बाद यह मामला सामने आया था. हालांकि करण जौहर  इस बात पर अपनी सफाई देते हुए  करण जौहर  कहा था कि पार्टी में किसी तरह का ड्रग्स नहीं था.

इस वीडियो को लेकर कई एफआईआर दर्ज कराया गया था. जिसके बाद नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो   वीडियो के जांच के बाद दावा किया है कि इस पार्टी में किसी तरह के ड्रग्स का इस्तेमाल नहीं किया गया था.

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एक रिपोर्ट के अनुसार इस पूरे मामले की जांच के बाद ही करण जौहर के इस मामले पर क्लीन चिट दी गई है. वहीं अधिकारियों  ने  कहा है कि वीडियो में दिखाई दे रही सफेद लाइट ट्यूबलाइट का रिफलेक्श है. फोरेंसिक रिपोर्ट में किसी तरह के ड्रग्स की कोई पुष्टि नहीं कि गई है. और पार्टी में ड्रग्स का सेवन करने वाले फिल्मी सितारों के पास ड्रग्स का कोई सबूत नहीं है.

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जब इस खबर पर एफआईआर दर्ज कराया गया था तब कहा गया था कि पार्टी में मौजूद सभी सितारे ड्रग्स ले रहे थें. हालांकि ऐसा कुछ भी नहीं था. सब मामला गलत बताया गया है.

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इस पार्टी में सिनेमा जगत के कई बड़े कलाकार मौजूद थें. जैसे रणबीर कपूर, आलिया भट्ट, मलाइका अरोड़ा, दीपिका पादुकोण समेत और भी कई सितारे इस पार्टी में मौजूद थें.

फिलहाल करण जौहर अपने अलग- अलग प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं.

 

गांव के बाहर खेत में दिखीं दो लाशें

कैलामऊ गांव के 2 युवक राजू और कमल पुलिस में भरती होने की तैयारी कर रहे थे. इस के लिए वह रोजाना सुबह के समय दौड़ लगाते थे. 16 अप्रैल को सुबह करीब पौने 5 बजे दोनों दौड़ लगाने घर से निकले तो उन्होंने गांव के बाहर एक खेत में 2 लाशें पड़ी देखीं.

लाशें देखते ही दोनों दौड़ते हुए गांव आए और उन्हें जो भी मिला उसे 2 लाशें पड़ी होने की सूचना दी. इस के बाद गांव के लोग खेत की तरफ दौड़ पड़े. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई. गांव वालों ने लाशें देखीं तो तुरंत पहचान गए. दोनों रामकिशोर की बेटियां संध्या और शालू थीं.

किसी ने यह खबर रामकिशोर को दी तो बेटियों की हत्या की खबर सुनते ही रामकिशोर परेशान हो गया. उस के घर में चीखपुकार मच गई. वह जल्दी ही अपनी पत्नी जयदेवी के साथ घटनास्थल पहुंच गया. दोनों बेटियों के शव देख कर मियांबीवी फूटफूट कर रोने लगे. जितेंद्र भी अपनी बहनों की लाशें देख कर दहाड़ मार कर रोने लगा. यह बात 16 अप्रैल प्रात: 5 बजे की है.

सूरज का उजाला फैला तो 2 सगी बहनों की हत्या की खबर कैलामऊ के आसपास के गांवों में भी फैल गई. कुछ ही देर बाद वहां देखने वालों का तांता लग गया. इसी बीच किसी ने फोन द्वारा यह सूचना थाना बसरेहर पुलिस को दे दी. सुबहसुबह डबल मर्डर की खबर पा कर थानाप्रभारी आर.के. सिंह ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को यह सूचना दे दी. फिर वह पुलिस टीम के साथ कैलामऊ गांव पहुंच गए.

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उन्होंने घटनास्थल को पीले फीते से कवर किया ताकि साक्ष्यों से छेड़छाड़ न हो सके. उसी समय एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी, एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया था. भारी भीड़ को देखते हुए अतिरिक्त पुलिस फोर्स मंगवा ली.

पुलिस अधिकारियों ने लाशों का मुआयना किया तो पता चला कि दोनों बहनों की हत्या गोली मार कर की गई थी. दोनों के सीने में गोली मारी गई थी, जो आरपार हो गई थी. मृतका संध्या की उम्र 18 वर्ष के आस पास थी, जबकि उस की छोटी बहन शालू की उम्र लगभग 15 वर्ष थी. शवों के पास ही शराब की खाली बोतल, तमंचा, 5 जीवित कारतूस, खाली खोखे, टौर्च, चप्पलें और एक मोबाइल पड़ा था.

फोरैंसिक टीम ने शराब की बोतल, तमंचा तथा टौर्च से फिंगरप्रिंट लिए. इस के साथ ही अन्य साक्ष्य भी जुटाए गए. पुलिस ने घटनास्थल पर मिली सभी चीजें बरामद कर लीं. पुलिस अधिकारियों ने मृतक बहनों के पिता रामकिशोर से घटना से संबंध में जानना चाहा तो वह फफक पड़ा.

उस ने बताया कि बीती रात वह फसलों की रखवाली के लिए खेतों पर था. सुबह उस का बेटा जितेंद्र रोतेपीटते आया और बताया कि संध्या व शालू को किसी ने मार डाला है. इस के बाद वह पत्नी को घर से ले कर घटनास्थल पर पहुंचा.

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‘‘क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारी बेटियों की हत्या किस ने और क्यों की?’’ एसएसपी ने रामकिशोर से पूछा.

‘‘साहब, हम गरीब किसान हैं. हमारी किसी से न तो कोई रंजिश है और न ही किसी से लेनदेन का झगड़ा है. पता नहीं मेरी बच्चियों ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उन्हें मार डाला.’’

इस के बाद उन्होंने रामकिशोर के बेटे जितेंद्र से पूछताछ की तो उस ने कहा, ‘‘सर सोमवार की शाम मैं घर पर ही था. देर शाम संध्या और शालू मां से जंगल जाने की बात कह कर घर से निकली थीं. काफी देर तक जब वे घर वापस नहीं आईं तो मैं ने मां से पूछा. मां ने कहा कि पड़ोस में रहने वाले ज्ञान सिंह के यहां तिलक का कार्यक्रम है. शायद दोनों वहीं चली गई होंगी. इस के बाद मैं सो गया. सुबह गांव में हल्ला मचा तो पता चला कि संध्या और शालू की हत्या हो गई है.

प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने जब शवों को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने की काररवाई शुरू की तो लोगों ने विरोध शुरू कर दिया. दरअसल लोगों को शक था कि संध्या और शालू को दरिंदों ने पहले हवस का शिकार बनाया और भेद न खुले इसलिए दोनों को मार डाला. भीड़ ने धमकी भरे लहजे में पुलिस अधिकारियों से कहा कि जब तक क्षेत्रीय विधायक, सांसद या जिलाधिकारी घटनास्थल पर नहीं आते, तब तक दोनों शवों को नहीं उठने देंगे.

पुलिस ने मामले को शांत करने के लिए  सदर विधायक व जिलाधिकारी को पूरे मामले की जानकारी दी और मौके पर आने का अनुरोध किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए सदर विधायक सरिता भदौरिया और पूर्व सांसद रघुराज शाक्य मौके पर पहुंच गए. सरिता भदौरिया ने उत्तेजित लोगों को शांत कराया तथा आश्वासन दिया कि पीडि़त परिवार को जो भी सरकारी मदद संभव होगी दिलवाई जाएगी. एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी ने भी आश्वासन दिया कि हत्यारों को जल्दी ही पकड़ लिया जाएगा.

विधायक सरिता भदौरिया के आश्वासन पर लोग शांत हो गए. इस के बाद एसएसपी ने आननफानन में मृतका संध्या और शालू के शव का पंचनामा भरवाया और दोनों शवों को पोस्टमार्टम हाउस, इटावा भिजवा दिया. ऐहतियात के तौर पर उन्होंने गांव में पुलिस फोर्स तैनात कर दी.

थाना पुलिस ने रामकिशोर की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद थानाप्रभारी आर.के. सिंह ने कई संदिग्ध अपराधियों को पकड़ कर उन से पूछताछ की.

मृतका संध्या तथा शालू के शवों का पोस्टमार्टम डाक्टरों के पैनल ने किया. इस पैनल में डा. वीरेंद्र सिंह, डा. पीयूष तिवारी तथा डा. पल्लवी दीक्षित सम्मलित रहीं. उन्होंने रिपोर्ट में बताया कि दोनों बहनों की मौत 16 से 18 घंटे पहले सीने में गोलियां लगने से हुई थी.

दोनों के मरने में 3 से 5 मिनट का अंतर रहा होगा. गोलियां दिल के आरपार हो गई थीं. शरीर और नाजुक अंगों पर चोटों के निशान नहीं पाए गए. किशोरियों और हत्यारों के बीच हाथापाई के निशान भी नहीं मिले. अर्थात उन दोनों के साथ बलात्कार नहीं किया गया था.

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एसएसपी अशोक त्रिपाठी ने इस डबल मर्डर के खुलासे के लिए एक सशक्त पुलिस टीम गठित की. इस टीम में 4 तेजतर्रार इंस्पेक्टरों, 6 सबइंसपेक्टरों तथा एक दरजन कांसटेबिलों को सम्मिलित किया गया. सहयेग के लिए सर्विलांस टीम को भी लगाया गया. एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह की अगुवाई में पुलिस टीम ने हत्यारों की तलाश शुरू कर दी.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर मृतक बहनों के मातापिता व भाई के बयान दर्ज किए. भाई जितेंद्र के बयानों से पुलिस टीम को पता चला कि पड़ोसी गांव नगरा का रहने वाला विनीत उर्फ जीतू आवारा किस्म का युवक है. घटना से लगभग 3 महीने पहले उस ने संध्या से छेड़खानी की थी. विरोध पर उस ने उसे सबक सिखाने की धमकी दी थी.

विनीत उर्फ  जीतू पुलिस टीम के रडार पर आया तो पुलिस ने उसे तलाशना शुरू किया. लेकिन वह घर से फरार था. उस का मोबाइल सर्विलांस पर लगा दिया गया था. साथ ही उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई, जिस से पता चला कि 15 अप्रैल, 2019 की शाम 7 बजे उस ने जिस फोन नंबर पर बात की थी. वह नंबर कैलाशमऊ के आनंद का है.

पुलिस टीम ने आंनद को पकड़ लिया. घटनास्थल से पुलिस को संध्या का जो मोबाइल फोन मिला था, पुलिस ने उसे चैक किया, तो उस में आनंद का नंबर मिला. इस से पुलिस टीम समझ गई कि आनंद ने ही फोन कर संध्या को खेत पर बुलाया था.

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पुलिस ने थाने ले जा कर आनंद से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि वह इस दोहरे हत्याकांड में शामिल था. उस ने बताया कि हत्या का मुख्य किरदार विनीत उर्फ जीतू है. उस ने अपने दोस्त अतिवीर और रंजीत के साथ मिल कर हत्या की योजना बनाई थी. बाद में वह भी उस में शामिल हो गया था.

पुलिस टीम ने आनंद से कहा कि  वह जीतू से फोन पर बात करे, जिस से उस की लोकेशन ट्रेस हो जाए. पुलिस के दबाव में आनंद ने जीतू से बात की तो उस ने बताया कि वह सिविल लाइंस इटावा में है. लेकिन देर रात अपने घर नगरा पहुंच जाएगा. यह पता चलते ही पुलिस टीम ने रात में दबिश दे कर विनीत उर्फ जीतू को पकड़ लिया.

इस के बाद पुलिस ने उस के दोस्त अतिवीर व रंजीत को हिरासत में ले लिया. इन सब का आमनासामना थाने में हुआ तो सभी के चेहरे उतर गए. बाद में सभी ने जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस टीम ने हत्याओं का परदाफाश कर अभियुक्तों को पकड़ने की जानकारी एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी को दी. त्रिपाठी ने आननफानन में प्रैसवार्ता की और हत्यारों को मीडिया के सामने पेश कर डबल मर्डर के बारे में सब कुछ बता दिया.

चूंकि सभी ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी आर.के. सिंह ने विनीत उर्फ जीतू आनंद, रंजीत व अतिवीर को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के बसरेहर थाना अंतर्गत एक गांव है कैलामऊ. इसी गांव में रामकिशोर अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी जयदेवी के अलावा 3 बेटियां तथा एक बेटा जितेंद्र था.

रामकिशोर के पास थोड़ी सी खेती की जमीन थी. उसी से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. रामकिशोर की आर्थिक स्थिति भले ही कमजोर थी. लेकिन समाज के लोग उस की बहुत इज्जत करते थे. वह बिरादरी की पंचायत का मुखिया था. रामकिशोर अपनी बड़ी बेटी का विवाह औरैया जिले में कर चुका था. रामकिशोर की 3 बेटियों में संध्या मंझली बेटी थी. वह अपनी अन्य बहनों से कुछ ज्यादा ही तेजतर्रार थी. वह खूबसरत तो थी ही.

संध्या जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही चंचल और पढ़ने में तेज थी. हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वह आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन उस के मांबाप ने उसे आगे पढ़ाने से साफ  मना कर दिया था. मजबूरन उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी. इस के बाद वह मां के साथ घरेलू काम में हाथ बंटाने लगी.

संध्या पर वैसे तो गांव के कई युवक फिदा थे लेकिन पड़ोसी गांव नगरा का रहने वाला 23 वर्षीय विनीत उर्फ  जीतू उस के नजदीक आने के लिए कुछ ज्यादा ही उतावला था. विनीत के पिता धनाढ्य किसान थे. गांव में उन का दबदबा था. विनीत आवारा किस्म का युवक था. वह बाप की कमाई पर ऐश करता था. उस ने गांव के कई हमउम्र लड़कों से दोस्ती गांठ रखी थी.

संध्या के भाई जितेंद्र से भी विनीत उर्फ जीतू की जानपहचान थी. कभीकभी दोनों के बीच गपशप भी हो जाती थी. ऐसे ही एक रोज सुबह को विनीत संध्या के घर आया और घर के बाहर पड़ी कुरसी पर बैठ गया.

फिर संध्या के भाई जितेंद्र से उस की बातचीत होने लगी. संध्या उस समय चबूतरे पर झाड़ू लगा रही थी. उस की नजरें विनीत से टकरा जातीं तो वह मुसकरा देता. यह देख संध्या नजरें झुका लेती.

विनीत के मन में आया कि वह उस के सौंदर्य की जी भर कर प्रशंसा करे, मगर संकोच के झीने परदे ने उस के होंठों को हिलने से रोक लिया. हालांकि उस के मनमस्तिष्क में जज्बातों की खुशनुमा हवाएं काफी देर तक हिलोरें लेती रहीं.

विनीत के मनमस्तिष्क में इधर सुखद विचारों का मंथन चल रहा था. उधर संध्या के दिलोदिमाग में एक अलग तरह की हलचल मची हुई थी. उन्हीं विचारों में खोई संध्या भाई के कहने पर किचन में गई और 2 कप चाय बना कर ले आई.

उस रोज संध्या के हाथों की बनी चाय पीते समय विनीत की आंखें लगातार उस के शवाबी जिस्म का जायजा लेती रहीं. दिन के उजाले में ही विनीत की आंखें उस के हुस्न के दरिया में डूब जाने के सपने देखने लगीं.

इस  मुलाकात में संध्या की मोहब्बत की आस में उस पर ऐसी दीवानगी सवार हुई कि वह उसे अपनी आंखों का काजल बना बैठा. कुछ ही दिनों में आंखों से उठ कर संध्या ने विनीत की रूह में आशियाना बना लिया. विनीत जैसा ही हाल संध्या का भी था. रात को वह सोने के लिए लेटती तो विनीत का मुसकराता चेहरा पलकों में आ कर छुप जाता.

संध्या का स्वयं के प्रति रुझान देख कर विनीत की उस के प्रति दीवानगी बढ़ती गई. जब भी उसे संध्या की याद आती वह उस से मिलने के लिए उस के घर पहुंच जाता. विनीत को देख कर संध्या का चेहरा खिल उठता. वह उस का दिल खोल कर स्वागत करती.

प्रेम, बंधन में स्वतंत्रता तो देता है, लेकिन सामाजिक वर्जनाएं अप्रत्यक्ष रूप से दीवार की तरह खड़ी होने लगती हैं. जिन्हें प्रेमी युगल अकसर नजरअंदाज कर भावनाओं में बहते रहते हैं. बाद में उस के परिणाम बडे़ भयावह होते है.

वैसे प्यार पाना व देना हर व्यक्ति चाहता है. यह बहार हर व्यक्ति की जिंदगी में जरूर आती है, लेकिन कुछ की जिंदगी में यह आ कर ठहर जाती है. जबकि कुछ की जिंदगी से बिना स्पर्श किए निकल जाती है. कुछ ऐसे भी होते हैं जिन की जिंदगी इस बहार से गुलजार होती है, ठहरती भी है.

यही हाल संध्या और विनीत की जिंदगी का भी हुआ. जब दोनों का प्यार परवान चढ़ा तो संध्या के मातापिता को शक हुआ. वह विनीत के घर पर आने का विरोध करने लगे लेकिन संध्या और विनीत ने मिलनाजुलना बंद नहीं किया. अंतत: संध्या की हरकतों से परेशान उस के मातापिता उस से सख्ती से पेश आने लगे.

एक रोज शाम के धुंधलके में संध्या के भाई जितेंद्र ने संध्या व विनीत को गांव के बाहर बगीचे में हंसतेबतियाते देख लिया. उस ने उस समय तो संध्या से कुछ नहीं कहा, लेकिन कुछ देर बाद जब वह घर लौटी तो जितेंद्र ने उस की पिटाई की फिर गुस्से से बोला, ‘‘संध्या, तू क्यों घर की इज्जत नीलाम कर रही है. उस आवारा, गुंडे जीतू से तुझे इश्क फरमाते शरम नहीं आती. कान खोल कर सुन ले, आज के बाद तू उस से नहीं मिलेगी.’’

उस रोज भाई की पिटाई से आहत संध्या काफी देर तक सिसकती रही. उस के बाद मां जयदेवी कमरे में आई और उस के आंसुआें को पोंछते हुए बोली, ‘‘बेटी, तेरा भाई, तेरा दुश्मन नहीं है. उस ने तुझ से जो भी कहा, वह सही है. जीतू आवारा लड़का है. ऐसे लड़कों से दूर रहने में ही भलाई है.’’

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भाई की डांटडपट और मां की नसीहत ने संध्या के मन में हलचल पैदा कर दी. वह सोच ने लगी कि शायद मां और भाई सही कह रहे हैं. अत: उस ने निश्चय कर लिया कि अब वह विनीत के झांसे में नहीं आएगी और उससे दूरी बना कर रखेगी. संध्या ने जो सोचा उस पर अमल करना भी शुरू कर दिया. अब वह विनीत से कन्नी काटने लगी.

संध्या ने जब विनीत से बातचीत बंद कर दी तो वह परेशान रहने लगा. आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने किसी तरह संध्या से मुलाकात की और पूछा कि वह उस से दूर क्यों भाग रही है. इस पर संध्या ने दो टूक जवाब दिया, ‘‘जीतू, हमारेतुम्हारे विचार मेल नहीं खाते. हमारीतुम्हारी नहीं निभ सकती. इसलिए तुम मुझे भूल जाओ.’’

संध्या की बात सुन कर विनीत सन्न रह गया. उस के प्रेम संबंधों को संध्या ने एक ही झटके में तोड़ दिया. इस के पहले कि वह गुस्से से बेकाबू होता, संध्या वहां से चली गई. विनीत उसे देखता रह गया.

घर पहुंचने पर विनीत को लगने लगा कि संध्या ने उस के प्रेम को यों ही नहीं ठुकराया, जरूर उस के जीवन में कोई दूसरा आ गया होगा. वह दूसरा कौन है वह इस का पता लगाने में जुट गया. एक रोज संध्या उसे अपने खेत पर दिखी. कुछ देर बाद वह घर वापस जाने लगी तो विनीत ने उस का रास्ता रोक लिया और पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे जीवन में कोई दूसरा आ गया है?’’

संध्या ने तपाक से कहा, ‘‘हां, आ गया है. तुम्हें क्या करना है?’’ संध्या ने उस से साफ  कह दिया कि अब उस का उस से कोई वास्ता नहीं है. वह उस के रास्ते में न आए.

संध्या के तीखे तेवरों से विनीत पूरी तरह  टूट गया. उस के मन को गहरी चोट लगी. विनीत के 3 जिगरी दोस्त थे आंनद, रंजीत व अतिवीर. ये तीनों कैलामऊ गांव में ही रहते थे.

दोस्तों को जब उस की हालत का पता चला तो उन्होंने विनीत को समझाया कि तेरे लिए लड़कियों की कमी नहीं है. जीवन में ऐेसे मोड़ तो आते रहते हैं. लेकिन विनीत अपना आत्मविश्वास खोता जा रहा था और प्रतिशोध की आग में जलने लगा था.

विनीत अब जब भी दोस्तों के साथ बैठ कर शराब पीता, तो संध्या की वेवफाई की चर्चा जरूर होती थी. बात वेवफाई से शुरू हो कर प्रतिशोध पर खत्म होती थी. चूंकि उस के दोस्तों को मुफ्त में शराब पीने को मिलती थी, सो वह विनीत की हां में हां मिलाते थे और उस का साथ देने का वादा करते थे.

जनवरी 2019 के प्रथम सप्ताह में एक रोज विनीत अपने दोस्तों रंजीत, आंनद व अतिवीर के साथ गांव के बाहर बगीचे में बैठा शराब पी रहा था. तभी उसे खेत की तरफ से आती संध्या दिखाई दी. वह खेत से टोकरी में आलू ले कर घर लौट रही थी. संध्या को देख कर विनीत अपने दोस्तों के साथ उस के पास पहुंचा और उस से छेड़खानी करने लगा.

विनीत के साथ 3 दोस्तों को देख कर संध्या घबरा गई. वह आलू की टोकरी फेंक कर सिर पर पैर रख कर घर की ओर भागी. लेकिन उन शैतानों ने उसे पुन: पकड़ लिया और उस के नाजुक अंगों के साथ छेड़खानी करने लगे. संध्या चीखनेचिल्लाने लगी.

उस की चीख सुन कर खेतों पर काम कर रही महिलाएं व पुरुष उस की तरफ  दौडे़ तब वे चारों उसे छोड़ कर भाग निकले.

संध्या आंसू बहाते घर पहुंची और अपने साथ हुई छेड़खानी की बात अपने मांबाप व भाई को बताई. घर वालों ने उन लोगों से झगड़ना उचित नहीं समझा और वे संध्या को ले कर थाना बसरेहर पहुंच गए. उन्होंने संध्या की तरफ  से विनीत व उस के साथियों के विरुद्ध छेड़खानी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने त्वरित काररवाई करते हुए विनीत, रंजीत आनंद व अतिवीर को पकड़ लिया और जेल भेज दिया. एक सप्ताह के अंदर ही उन की जमानत हो गई. इस घटना के बाद संध्या डरी सी रहने लगी. अब वह जहां भी जाती अपनी छोटी बहन शालू को साथ ले जाती थी.

इधर जमानत पर आने के बाद विनीत को पता चला कि संध्या अब गांव के संजय नामक युवक से प्यार करती है. यह पता चलते ही विनीत प्रेम प्रतिशेध के लिए उतावला रहने लगा. उस ने निश्चय किया कि संध्या यदि उस की न हुई तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा.

उस ने प्रतिशोध की बात दोस्तों से साझा की तो वह विनीत का साथ देने को तैयार हो गए. इस के बाद विनीत व उस के दोस्तों ने संध्या की हत्या की योजना बनाई. साथ ही तमंचा व कारतूसों का भी इंतजाम कर लिया.

15 अप्रैल, 2019 की शाम योजना के अनुसार विनीत उर्फ  जीतू शराब की बोतल ले कर अपने दोस्त आनंद, रंजीत व अतिवीर के साथ गांव के बाहर खेत पर पहुंचा. विनीत लोडिड तमंचा कमर में खोंसे था. वहां बैठ कर चारों शराब पीने लगे. जब अंधेरा घिरने लगा तब विनीत ने आंनद के फोन से संध्या को फोन कराया.

विनीत ने संध्या को फोन उस समय खरीद कर दिया था जब दोनों का प्रेम संबंध चल रहा था. आनंद ने संध्या से बात की और कहा कि वह और विनीत उस से माफी मांगना चाहते हैं. दोनों छेड़खानी के मुकदमे में उससे समझौता करना चाहते हैं.

संध्या ने पहले तो इनकार कर दिया, लेकिन जब आनंद ने उस से पैर छू कर माफी मांगने की बात कहीं तो वह राजी हो गई. इस के बाद उस ने अपनी छोटी बहन शालू को साथ लिया और मां से जंगल जाने की बात कह कर घर से निकल पड़ी.

अंधेरा घिर आया था, सो उस ने टौर्च भी ले ली थी. छोटी बहन शालू के साथ संध्या गांव के बाहर खेत पर पहुंची. वहां आनंद और विनीत के अलावा रंजीत व अतिवीर भी थे.

खेत पर विनीत व आनंद ने मुकदमे से संबंधित कोई चर्चा नहीं की और न ही माफी मांगी. उलटे विनीत उसे धमकाने लगा कि वह संजय से रिश्ता तोड़ कर उस से रिश्ता जोडे़. इस पर संध्या ने कहा कि वह उस से नफरत करती है. इसलिए इस बारे में उस से बात न करे.

यह सुनते ही विनीत का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने कहा, ‘‘संध्या यदि तू मेरी नहीं हुई तो तुझे किसी और की भी नहीं होने दूंगा.’’ कहते हुए विनीत ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और संध्या पर 2 फायर झोंक दिए. गोली संध्या के दिल को चीरती हुई पार निकल गई. संध्या खून से लथपथ हो कर जमीन पर गिर पड़ी और उस ने दम तोड़ दिया.

बड़ी बहन की मौत का मंजर देख कर शालू की घिग्घी बंध गई. फिर भी वह भागी. लेकिन रंजीत और अतिवीर ने उसे यह कह कर दबोच लिया कि यह तो संध्या की हत्या की गवाह है. यह बच गई तो हम सब पकडे़ जाएंगे.

अत: आनंद ने विनीत के हाथ से तमंचा ले कर शालू के सीने पर भी 2 गोलियां दाग दीं. शालू भी खून से लथपथ हो कर संध्या के शव के पास धराशायी हो गई और दम तोड़ दिया. दोनों बहनों की हत्या करने के बाद विनीत तमंचा, कारतूस आदि मौके पर छोड़ कर साथियों सहित भाग गया.

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इधर रात में संध्या और शालू के घर वालों ने उन की तलाश नहीं की. इस की वजह यह थी कि पड़ोस में ज्ञान सिंह के यहां तिलक समारोह था. घर वालों ने सोचा कि दोनों बहनें वहीं चली गई होंगी. लेकिन सुबह जब शोर मचा, तब घर वालों को जानकारी हुई. पुलिस ने अभियुक्त विनीत उर्फ  जीतू, रंजीत, आनंद तथा अतिवीर को इटावा कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

स्मिता तुम फिक्र मत करो-भाग 3: सुमित और स्मिता की पहली मुलाकात कैसी हुई थी?

स्मिता ने यह काम विशाल को सौंप दिया और सबकुछ देखभाल कर रजत को मार्केटिंग हैड नियुक्त किया गया. रजत ने काफी अच्छी तरह से काम संभाल लिया था. स्मिता कभीकभी फैक्ट्री जाती थी पैसों का हिसाबकिताब देखने. स्मिता ने कौमर्स पढ़ा था इसलिए अकाउंट्स वह देख लेती थी.
स्मिता नोट कर रही थी कि जब भी वह फैक्ट्री जाती रजत किसी न किसी बहाने से उस के नजदीक आने की कोशिश करता. वैसे रजत बुरा इंसान नहीं था लेकिन इस का ऐसा बरताव स्मिता को कुछ अटपटा लगता.
रात के 8 बज रहे थे. दरवाजे की घंटी बजी तो सोमा काकी ने दरवाजा खोला.
‘‘स्मिता मैडम हैं?’’ रजत 2-3 फाइल हाथ में पकड़े खड़ा था.
‘‘हां, लेकिन आप?’’ सोमा काकी ने पूछा.
‘‘मैं रजत, फैक्ट्री का न्यू मार्केटिंग हैड’’ रजत अपना परिचय दे ही रहा था तब तक स्मिता दरवाजे तक आ गई.
‘‘आप, इस वक्त, क्या बात है?’’ स्मिता ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘मैडम, जरूरी कागज पर साइन चाहिए थे. क्लाइंट से बात हो चुकी है. बस आप के अप्रूवल की जरूरत थी.’’
‘‘आइए, बैठिए, लाइए पेपर दीजिए,’’ स्मिता ने रजत से पेपर ले लिए.
रजत की आंखें घर का मुआयना कर  रही थीं. साइड टेबल पर फ्रेम में अवि और परी की फोटो देख कर बोला, ‘‘बहुत प्यारे बच्चे हैं आप के मैडम.’’
‘‘हूं,’’ स्मिता बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी. पेपर साइन कर के रजत की ओर बढ़ा दिए.
सोमा काकी को रजत की आंखों में लालच नजर आया था. शामू काका से सोमा काकी को पता तो चला था कि फैक्ट्री में नया आदमी आया है और काफी अच्छा काम कर रहा है. आज देख भी लिया, लेकिन रजत सोमा को कुछ ठीक सा नहीं लगा. इंसान को देख कर पहचान लेती थीं वे. जिंदगी ने इतनी ठोकरें दी थीं कि अच्छेबुरे की पहचान कर सकती थीं.
‘‘नहींनहीं, स्मिता बिटिया को इस से बचाना होगा,’’ सोमा काकी के दिमाग में एक उपाय सू झा.
घर के पीछे बने गैराज में गईं. शामू काका वहीं रहते थे. खानापीना, नहानाधोना सब इंतजाम कर रखे थे उन के लिए.
‘‘क्या बात है, इस वक्त यहां?’’ शामू काका दूध गरम कर रहे थे. खाना तो उन्हें घर से मिल ही जाता था.
‘‘शामू, तु झे फैक्ट्री में आए नए आदमी… क्या नाम है… हां, रजत उस पर नजर रखनी है. मु झे उस के इरादे ठीक नहीं लग रहे.’’
‘‘हूं… कभीकभी मु झे भी ऐसा लगता है. जिस तरह से वह स्मिता बिटिया को देखता है मु झे बुरा लगता है. फैक्ट्री में कितने आदमी हैं लेकिन यह बिटिया के आसपास मंडराता रहता है.’’
अगले दिन जब रजत फैक्ट्री से निकला, शामू काका ने गाड़ी उस के गाड़ी के पीछे लगा दी. उस ने गाड़ी मौल की पार्किंग में खड़ी कर दी. शामू काका भी गाड़ी पार्क कर उस के पीछे हो लिए. शामू काका ने अपना हुलिया बदला हुआ था. रजत उन्हें आसानी से पहचान नहीं सकता था.
रजत मौल के फूड कोर्ट में पहुंचा. वहां कोने की टेबल पर एक लड़की उस का इंतजार कर रही थी.
‘‘मिल आए अपनी स्मिता मैडम से?’’ लड़की ने ताना देते हुए कहा.
‘‘यार, तुम भी न. सब अपने और तुम्हारे लिए तो कर रहा हूं. हाथ में आ गई तो वारेन्यारे हो जाएंगे. तुम बस मेरा कमाल देखती जाओ.’’
शामू काका एक टेबल छोड़ कर बैठे थे. लेकिन उन के कान पीछे लगे थे. अब रजत की असलियत सामने थी.
शामू ने सोमा के सामने घर पहुंचते ही रजत का फरेब सामने रख दिया.
सोमा काकी ने भी स्मिता को रजत का कमीनापन बताने में देर नहीं लगाई.
स्मिता को रजत की हरकतों पर पहले ही शक था. शामू काका की बात पर यकीन न करने का सवाल ही नहीं उठता था.

अगले ही दिन स्मिता ने मैनेजर विशाल से बात कर के एक प्लान के तहत रजत का फैक्ट्री से हिसाब ऐसे किया कि उसे यह पता नहीं चला कि स्मिता को उस की सचाई पता चल चुकी है.
स्मिता जान चुकी थी कि अब उसे कदमकदम पर फरेब करने वाले,  झूठी हमदर्दी दिखा कर अपनेपन का दिखावा करने वाले और प्यार करने का दावा करने वाले लोग मिलेंगे. उसे हर कदम फूंकफूंक कर उठाना है.
शामू काका और सोमा काकी ने भी यह ठान लिया था कि स्मिता की, इस घर की और बच्चों की हर हाल में रखवाली करेंगे. खून का न सही, दिल का रिश्ता जुड़ा था उन का इन सब से.
रजत की तरह ही स्मिता को काम के सिलसिले में ऐसे लोग मिल जाते थे जिन्हें स्मिता की धनदौलत से बेशक मतलब न था लेकिन उस जैसी सुंदर, स्मार्ट, अकेली औरत को देख कर उसे पाने की उन्होंने कोशिशें कीं कि शायद दांव लग जाए. लेकिन स्मिता ने अपने दिल में सुमित को बैठा रखा था. कोई दूसरा उस में घुस नहीं सकता था.
स्मिता की मम्मी का आएदिन फोन आता और दबी जबान में उन की यही ख्वाहिश होती थी कि बेटी अपनी जिंदगी के बारे में एक बार फिर से सोचे. अभी उम्र ही क्या थी उस की. महज 34 साल की थी. लेकिन स्मिता बात को दूसरी तरफ मोड़ देती थी.

स्मिता के पीछे पड़ने वाले भौंरों की कमी न थी. एक बड़े होलसेल डीलर, जो लाखों का और्डर देते थे, स्मिता से मिलने के बाद 2 करोड़ रुपए के माल खरीदने का और्डर दे गए और कच्चा माल उधार में दिलवा दिया अलग. वे अब हर दूसरेतीसरे दिन आने लगे, तो शामू काका को शक हुआ. उन्होंने बाहर खड़ी डीलर की गाड़ी के ड्राइवर को बुला कर चाय पिलाना शुरू कर दिया. ड्राइवर ने बताया कि साहब की पत्नी कई साल से अलग रह रही है क्योंकि ये इधरउधर मुंह मारते रहते हैं.
एक बार फिर शामू काका ने स्मिता को संकट से निकाला. शामू काका ने कहा था कि बड़े मालिक ने उन्हें 10 साल की उम्र से रखा हुआ है और अब भी उन का अपना कोई नहीं है. वे बचपन में कब अनाथ हो गए थे, उन्हें नहीं मालूम. बस, इतना मालूम है कि उन के गांव के चाचा बड़े मालिक के पास किसी पुराने कर्मचारी की सिफारिश पर छोड़ गए थे.

सोमा काकी अकसर स्मिता को अकेले में बैठी आंसू बहाते देखती थीं. वे भी चाहती थीं कि स्मिता को अपने जीवन की खुशियां मिलें, लेकिन वे क्या कर सकती थीं अपनी इस बिटिया के लिए.

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