भारत के आम गैर पढ़े लिखे लोगों में ही नहीं,पूरी दुनिया में बलात्कारियों को लेकर तमाम ऐसी भ्रांतियां फैली हुई हैं, जिनका सच्चाई से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है . यह बात विभिन्न शोध सर्वेक्षणों से साबित होती है,ये भ्रांतियां क्या हैं आइये देखते हैं .
भ्रांति-1
बलात्कारी व्यक्ति ज्यादातर यौन समागम के भूखे होते हैं ये वे लोग होते हैं जिनकी यौन इच्छाएं अपूर्ण रह जाती हैं, तृप्ति नहीं मिली होती.
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सच्चाई
सही बात आंकड़ों से साबित होती है. आधो से ज्यादा बलात्कारी शादीशुदा होते हैं या फिर यौन समागम का उन्हें ठीकठाक अवसर उपलब्ध होता है. किशोरों और युवाओं की जो संख्या होती है उनमें से ज्यादा की यौनेच्छा की तृप्ति या अपूर्णता का प्रश्न ही नहीं होता क्योंकि इनमें से 60 प्रतिशत के साथ यह पहला दूसरा मौका होता है किसी महिला या लड़की से शारीरिक मिलन का. 70 प्रतिशत बलात्कारी यौन इच्छा की तृप्ति या समागम के अभ्यस्त होते हैं. यौन अतृप्ति के शिकार हो बलात्कार पर उतारू होने वाले गिनेचुने ही होते हैं.
भ्रांति-2
युवा अवस्था के आने के समय तथा बुढ़ापे की तरफ बढ़ने की आयु में खास इच्छा जोर मारती है ऐसे में कई बार यौन तृप्ति की इच्छा इतनी बेकाबू हो जाती है कि कुछ लोग इसे रोक नहीं पाते और अचानक अवसर मिलते ही वे बलात्कार कर बैठते हैं.
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सच्चाई
सच यह है कि 90 प्रतिशत बलात्कार चाहे वह सामूहिक हो या एकल, पूर्व नियोजित पूरी तरह प्लांड होते हैं. कई विस्तृत शोध सर्वेक्षणों से पता चलता है कि एकाध मौकों को छोड़ दें तो बलात्कार वह अपराध नहीं है जो अचानक होता हो. तमाम जेलों में बंद बलात्कारियों की केस स्टडीज से पता चलता है कि 60 प्रतिशत बलात्कार तो ऐसे व्यक्तियों द्वारा किए जाते हैं जो उम्र के इस दौर से नहीं गुजर रहे होते न ही उनके साथ नौजवानी में प्रवेश के जोश का ज्वार या बुढ़भस की ललक होती है. यह सिर्फ मनगढं़त बात है कि आदमी उम्र की इच्छाओं के आगे मजबूर हो हमलावर हो उठता है.
भ्रांति-3
बलात्कारी वास्तव में यौन विकृति के शिकार होते हैं, वे मानसिक रूप से बीमार होते है.
सच्चाई
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उदाहरण, प्रमाण और आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर बलात्कारी न तो मानसिक रूप से बीमार या पागल होते हैं न ही उनमें खास यौन विकृति होती है. हां, यह जरूर पाया गया कि अधिकतर बलात्कारी हिंसापसंद होते हैं. दबदबा दिखाना चाहते हैं. गरीब मुल्कों में कुछ बलात्कारी समाज से दुत्कारे गये होते हैं और उनमें बदले की भावना भी पायी जाती है पर यह सब कारण व्यक्ति को बलात्कारी ही बना दे ऐसा नहीं. एक शोध के दौरान पाया गया कि ज्यादातर बलात्कारी बड़े गुंडे-मवाली न होकर साधारण सामान्य व्यक्ति थे. बहुत कम ऐसे बलात्कारी मिले जो लफंगे किस्म के वटमार, झगड़ालू की श्रेणी में थे. हां, अधिकतर बलात्कारियों में हिंसा के जरिए अपना रुतबा कायम करने की दबी प्रवृत्ति पायी गयी. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बलात्कार दरअसल यौन इच्छा की पूर्ति का साधन कम है, हिंसा और जीत की भावना का प्रदर्शन ज्यादा है.
भ्रांति-4
ज्यादातर बलात्कार सुनसान अंधेरी गलियों में औरत को अकेला पाकर ही होता है.
सच्चाई
यह बहुत बड़ी भ्रांति है. 66 प्रतिशत से ज्यादा बलात्कार बंद दीवारों के भीतर होते हैं. बलात्कार सूनी सड़कों-गलियों या निर्जन स्थानों पर होते हैं यह सच है क्योंकि हर अपराध ऐसी ही जगहों पर किए जाते हैं पर महिलाएं घरों में ही रहें तो बलात्कार से बची रहेंगी ऐसा नहीं है.
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भ्रांति-5
ज्यादातर बलात्कारी अनजान और अपराधी प्रवृत्ति के होते हैं.
सच्चाई
यह हास्यास्पद तर्क तथ्य और भ्रांति है. सच्चाई तो यह है कि 48 प्रतिशत से ज्यादा बलात्कारी महिला के खास या दूर के रिश्तेदार होते हैं. शेष में पड़ोसी, सहकर्मी, अधिकारी, मित्र, नौकर जैसे लोग होते हैं जो कतई अजनबी नहीं होते. हां, इनमें से कुछ लोग अपराधी प्रवृत्ति के हो सकते है. पर ज्यादातर का कोई विशेष आपराधिक रिकार्ड या छवि भी नहीं होती. बहुत कम बलात्कार अनजान व्यक्तियों द्वारा किए जाते हैं. बलात्कारी किसी भी शक्ल में हो सकते हैं खासतौर पर परिचित शक्ल के रूप में.
भ्रांति-6
एक अकेला व्यक्ति बिना महिला की इच्छा के बलात्कार पूरी तरह से नहीं कर सकता. (यहां पूरी तरह से बलात्कार का मतलब योनि में लिंग के पूर्ण प्रवेश और घर्षण से है)
सच्चाई
यदि पुरुष बलशाली है जैसा कि अमूमन होता है कि वे महिलाओं से ज्यादा सक्रिय और बलवान होते हैं, तो यह पूरी तरह संभव है कि वे महिला को अकेले ही बलात्कार के लिए मजबूर कर दें. एक तो बलात्कारी अचानक हमला करता है, महिला किंकर्त्तव्यविमूढ़ होती है, वह सोच नहीं पाती कि बचाव के लिए क्या कुछ करे, यह शुरुआती स्थिति बलात्कारी के हक में जाती है. फिर यदि बलात्कारी के हाथ में कोई घातक या साधारण भी हथियार हो तो वह निहत्थी महिला को जान का भय देकर भी बलात्कार को संभव बना सकता है. हर स्त्री बलात्कार जैसी स्थिति से बचना चाहती है और वह बलात्कार और बलात्कारी का पूरा प्रतिरोध करती है. यदि उसे जान का भय हो, भागने चंगुल से छूटने का कोई रास्ता न हो, शारीरिक रूप से पस्त पड़ जाए तब अकेले पुरुष द्वारा बलात्कार पूरी तरह से संभव है.
महिलाओं के लिए यह थोड़ी हिम्मत बढ़ाने वाली बात जरुर है कि यदि पुरुष निहत्था है और बहुत सबल नहीं, वह नितांत अकेला है तो स्त्री अपना पूरी हिम्मत शारीरिक प्रतिरोध और दिमाग के उपयोग से बलात्कार को काफी हद तक टाल सकती है, पूरी तरह बलात्कार को नामुमकिन बना सकती है. पर अकेले निहत्थे बलात्कारी से महिला बच ही जायेगी या ऐसा व्यक्ति बलात्कार नहीं कर सकता या फिर ऐसी स्थिति में बलात्कार हुआ है तो महिला की सहमति रही होगी यह नितांत भ्रांति है. अमरीका में तो कुछ पूर्ण प्रशिक्षित सबल महिला पुलिसकर्मियों के साथ भी बलात्कार की घटनाएं हुई हैं.
भ्रांति-7
औरतें आक्रामक यौनाचार पसंद करती हैं. बलात्कार की स्थिति में पहले तो वह भयभीत होती हैं फिर उसे यदि जान, बदनामी, चोट-चपेट का या सामूहिक बलात्कार का भय न हो तो वह या तो राजी हो जाती है या सिर्फ ऊपरी मन से प्रतिरोध करती है. थोड़े-बहुत प्रतिरोध के बाद जैसे ही बलात्कार की क्रिया आगे बढ़ती है उसे आनंद आने लगता है. बहुतों का मानना है कि बलात्कार केवल पहले पांच सेकेंड का ही होता है उसके बाद तो स्वीकार होता है. औरत खुद बलात्कारी की सहायता करने लगती है.
सच्चाई
यह भयानक भ्रांति है. इस मनगढ़ंत तर्क का सच से कोई वास्ता नहीं क्योंकि एक खास सर्वेक्षण के दौरान जो कई विदेशी शहरों में भी किया गया सभी बलात्कृत स्त्रियों का मानना था कि बलात्कार में आनंद की बात बेबुनियाद है यह केवल पुरुष ही सोच सकते हैं. यौन समागम जितना पुरुष को प्रिय है उतना स्त्री को भी लेकिन दुनिया की कोई भी स्त्री किसी परिचित अपरिचित द्वारा आक्रमण कर सेक्स छीनने की बात को दिल-दिमाग से स्वीकार नहीं कर पाती. न उसे उसमें मजा आता है. आक्रामक यौनाचार कुछ स्त्रियों की कुछ परिस्थितियों में पसंदगी हो भी सकती है पर अपनी इच्छानुसार और उसके लिए तैयार होकर स्वीकृति के साथ, बलात्कार के रूप में नहीं. बलात्कार में आनंद ढूंढ़ना यौन विकृति वाली भ्रांत सोच है.
भ्रांति-8
बलात्कार का न्यौता खुद लड़कियां औरतें देती हैं. दोष उन्हीं का है वे उत्तेजक बनाव शृंगार और कपड़ों में बाहर निकलती हैं और आक्रमण को आमंत्रण देती हैं.
सच्चाई
अमरीका जैसे खुले मुल्क में जहां परिधानों में काफी खुलापन है केवल 4 प्रतिशत ही बलात्कार के ऐसे मामले पाये जाते हैं जिसमें बलात्कार के कारणों में से महिलाओं का उत्तेजक हावभाव, बात-व्यवहार, पहनावा एक कारण बनता है. अपने देश में भी देखें तो बहुत ही कम-एकाध ही बलात्कार इन कारणों से हुए हैं कि महिला ने ऐसे कपड़े पहन रखे थे कि वह बलात्कारियों या आम पुरुषों को यह चुनौती दे रही हो कि हिम्मत हो तो बलात्कार करें.
भ्रांति-9
काले, बदसूरत, व्यक्ति गोरी खूबसूरत औरतों को या फिर ऊंची जाति वाले नीची जातियों की औरतों को या फिर खास इलाके की स्त्री ठंडी या गर्म होती है इसके मद्देनजर बलात्कारी बलात्कार की फिराक में रहते हैं.
सच्चाई
बलात्कार के देसी-विदेशी आंकड़े इस बात की पुष्टि नहीं करते कि अफ्रीकन काले हब्शी गोरी औरतों के पीछे पड़े रहते हों या किसी खास जाति, वर्ग, वेश रेस की स्त्रियों के प्रति बलात्कारी कोई खास आग्रह रखते हों या जानबूझकर ऐसा शिकार चुनते हों किसी खास पुरुष या बलात्कारी का किसी विशेष तरह की स्त्री में आकर्षण होना बहुत कम पाया गया है. यदि ऐसा है भी तो वह बलात्कार का कोई पुख्ता कारण नहीं बनता.
बलात्कार के बारे में दसियों दूसरी मान्यताएं भी हैं जो ज्यादातर मनगढ़ंत हैं. पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं. सच्चाई से उनका दूर का वास्ता नहीं. आश्चर्य की बात यह है कि जो भ्रांति लंदन के लोगों में बलात्कार को लेकर है वही गलतफहमी लुधियाने के लोगों में भी हैं पूरे संसार में बलात्कार के बारे में मनगढ़ंत मान्यताएं लगभग समान हैं. बस इतना समझना चाहिए कि ऐसी कोई भी मान्यता जो जबरदस्ती यौन सुख छीनने की वकालत करे, दूसरी की सहमति के बिना हिंसात्मक तौरपर यौन संबंध संसर्ग को जायज ठहराये, ऐसी मान्यता का व्यावहारिकता और सच्चाई से कोई रिश्ता नहीं होता.