हेल्पेज इण्डिया की सर्वे रिपोर्ट से पता चलता है कि घरों में वृद्धों की देखभाल करने वाले 29 प्रतिशत लोगों को यह उनकी देखभाल करना बोझ महसूस होता है. 15 प्रतिशत को यह काम बहुत भारी लगता है. ऐसे में वह वृद्धों को घर की जगह पर ओल्ड ऐज होम में ही रखना पसंद करते है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा 15 जून को ‘विश्व वृद्ध दुव्र्यवहार जागरूकता दिवस‘ किया गया है. हेल्पेज इण्डिया ने राष्ट्रीय स्तर पर ‘भारत में वृद्ध दुव्र्यवहारः देखभाल में परिवार की भूमिकाः चुनौतियां एवं प्रतिक्रियाएं‘ रिपोर्ट का विमोचन किया. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में उत्तर प्रदेश सरकार के समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने यह रिपोर्ट जारी की.
रिपोर्ट में 25.7 प्रतिशत देखभाल करने वालों का कहना है कि उन्हें थकान एवं कुंठा होती है जिससे वृद्ध रिश्तेदार के प्रति उनका व्यवहार आक्रामक हो जाता है. 35 प्रतिशत देखभाल करने वालों ने बताया कि वृद्धों की देखभाल से कोई खशी महसूस नहीं हुई. 29 प्रतिशत देखभाल करने वालों का सोचना है कि ‘पैसे देकर उन्हें वृद्धाश्रम में रखना और वहां जाकर मिलते रहना ज्यादा अच्छा है‘. तमाम लोग ऐसे भी है जो बोझ महसूस होने के बावज़ूद भी वृद्धजनों की देखभाल करते हैं. 32 प्रतिशत देखभाल करने वालो ने बताया कि दैनिक क्रियाएं जैसे कपड़े बदलना, चलना, खाना, नहाना, शौच आदि में मदद/सहायता देने के लिये शारीरिक रूप से देखभाल करते हैं. देखभाल करने वालों में 68 प्रतिशत महिलायें है इनमें मुख्यतः बहू औरं बेटी है.
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39 प्रतिशत वृद्धों की कोई मासिक आय नहीं होने से वे अपने देखभाल करने वाले पर निर्भर थे. ऐसे लोगों की हालत ज्यादा खराब होती है. वृद्ध की देखभाल में एक परिवार औसतन रु. 4,125 रूपया खर्च करता है. 42.5 प्रतिशत देखभाल करने वालों को हमेशा ही वृद्धों की दवाईयों पर खर्च करना होता है. आर्थिक मदद के लिये वृद्ध अपने बेटों की तरफ ज्यादा देखते हैं, उदाहरण के लिये व्यक्तिगत आवश्यकताओं हेतु 57 प्रतिशत आर्थिक मदद बेटों से ली गई, 23 फीसदी मदद बहुओं से ली गई. 45 फीसदी जीवनसाथी को पसद नहीं करे है.