लेखक- डा. शेर सिंह एवं डा. जेपी सिंह 

तोरिया ‘कैच क्रौप’ के रूप में खरीफ व रबी के मध्य में बोई जाने वाली तिलहनी फसल है. इस की खेती कर के अतिरिक्त लाभ हासिल किया जा सकता है. यह 90-95 दिन के अंदर पक कर तैयार हो जाती है. इस की उत्पादन क्षमता 12-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. खेत की तैयारी तोरिया के लिए हलकी बलुई दोमट भूमि सर्वाधिक उपयुक्त होती है. पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 जुताइयां देशी हल, कल्टीवेटर/हैरो से कर के पाटा लगा कर मिट्टी भुरभुरी बना लेनी चाहिए.

उन्नतशील प्रजातियां पीटी 303, तपेश्वरी, गोल्डी, बी-9, उत्तरा इस की उन्नतशील प्रजातियां हैं. बीज की मात्रा और बीज शोधन बीज की मात्रा 4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. कवकजनित रोगों से बचाव के लिए शोधित व प्रमाणित बीज ही बोएं. इस के लिए बोआई से पहले थीरम अथवा मैंकोजेब की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को शोधित करें. मैटालेक्सिल 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करने पर प्रारंभिक अवस्था में सफेद गेरूई व तुलासिता रोग की रोकथाम हो जाती है. बोआई का समय व विधि तोरिया की समय पर बोआई कराने से अधिक उत्पादन के साथ फसल पर रोग और कीटों का प्रकोप कम हो जाता है. तोरिया के बाद गेहूं की फसल लेने के लिए बोआई सितंबर के प्रथम पखवारा (1 सितंबर से 15 सितंबर) में जरूर कर लें.

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तोरिया की बोआई 30 सैंटीमीटर की दूरी पर कतारों में करें. इस से अंत:कर्षण और निराईगुड़ाई में आसानी रहती है. खाद व उर्वरक बोआई के 3-4 हफ्ते पहले खेत में 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर या कंपोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए. उर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी परीक्षण की संस्तुति के आधार पर किया जाए, यदि मिट्टी का परीक्षण न हो सके, तो 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फेट व 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. फास्फेट का प्रयोग सिंगिल सुपर फास्फेट के रूप में ज्यादा फायदेमंद होता है, क्योंकि इस से 12 फीसदी गंधक की पूर्ति हो जाती है. यदि सिंगिल सुपर फास्फेट का प्रयोग न किया जाए, तो गंधक की पूर्ति के लिए 25 किलोग्राम गंधक या 2 क्विंटल जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें. फास्फेट, पोटाश व गंधक की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा अंतिम जुताई के समय इस्तेमाल करनी चाहिए.

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