लेखक- भानु प्रकाश राणा सरदार वल्लभभाई पटेल
कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ के जैव प्रोद्यौगिकी विभाग में पपीते के पौधों को ले कर शोध किया जा रहा है, जिस से पपीते के पौधे के पनपते अथवा पहली अवस्था में ही पता चल जाएगा कि पौधा नर है या मादा. पपीते की उन्नत खेती के लिए यह शोध के काम के लिए सरकार द्वारा भी मदद की जा रही है, जिस से इन का सीधा लाभ किसानों को मिलेगा और पपीते की खेती से अधिक उत्पादन कर आमदनी को बढ़ाने में मदद मिलेगी. पपीते की खेती में यदि नर पौधों की संख्या ज्यादा निकल जाए, तो किसानों को लाभ के बजाय नुकसान उठाना पड़ता है, क्योंकि खेत में पौधों के बड़े होने तक काफी मात्रा में खाद, पानी और निराईगुड़ाई हो गई होती है.
इस से बचने के लिए यदि किसानों को पौधे के पनपने की पहली अवस्था में पता लग जाएगा कि पौधे नर हैं अथवा मादा, तो किसान अधिक से अधिक संख्या में मादा पौधे लगा सकेंगे टिश्यू कल्चर विभाग के प्रोफैसर राकेश सिंह सेंगर ने बताया कि शोध लगभग अंतिम चरण में चल रहा है. कृषि विज्ञान की दुनिया में यह शोध बेहद अहम होगा. पपीता एक लोकप्रिय व उपयोगी फल है. इस की खेती उष्ण और उपोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में की जाती है. इस को अधिकतर लोग अपनी गृहवाटिका में भी उगा लेते हैं. पपीते की खेती फलों के अतिरिक्त पपेन के लिए भी की जाती है.
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यह कच्चे पपीते से सुखाए हुए दूध के रूप में उपलब्ध हो जाता है. पपीते से प्राप्त पपेन का औषधीय और व्यवसाय के तौर पर बहुत बड़े पैमाने पर उपयोग होता है, इसलिए इस की खेती करना बहुत लाभदायक है. कहां उगेगा पपीता प्रोफैसर राकेश सिंह सेंगर ने बताया कि इस की उत्तम पैदावार के लिए गरम और नम जलवायु का होना अति आवश्यक है. खेती के लिए कम से कम 40 डिगरी फारेनहाइट और अधिक से अधिक 110 डिगरी फारेनहाइट का तापमान जरूरी है. इस की अच्छी उपज के लिए 90 से 100 डिगरी फारेनहाइट उपयुक्त माना जाता है. इस की फसल को पानी, पाला और लू तीनों प्रभावित करते हैं. पपीते की सब से अच्छी खेती जीवांशयुक्त मिट्टी में की जाती है.
शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाता है पपीते के फल में विटामिन की प्रचुर मात्रा होती है, जो आंखों की रोशनी के लिए उपयुक्त है. विटामिन सी भी इस में उपलब्ध होता है, जो बच्चों की शारीरिक वृद्धि व विकास के साथसाथ स्कर्वी रोग की रोकथाम करता है. पपीते का उत्पादन एक हेक्टेयर में 30 से 40 टन तक होता है. पपीता कुदरत की अनमोल देन है. यह कई औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथसाथ सेहत के लिए भी बहुत लाभकारी है. पपीते की सब से बड़ी खासीयत यह है कि बहुत कम समय में फल देता है और किसानों को इस के उत्पादन के लिए मेहनत भी कम करनी पड़ती है. औषधीय गुणों के कारण पपीते की मांग सालभर रहती है. यह कम समय में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है.
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एक हेक्टेयर में पपीते का उत्पादन 30 से 40 टन तक होता?है. क्या है टिश्यू कल्चर टिश्यू कल्चर विभाग के प्रोफैसर आरएस सेंगर ने बताया कि टिश्यू कल्चर विधि से अच्छी प्रजाति के रोगरहित पौधों का विकास किया जाता है. इस में पौधे के टिश्यू या माई स्टेम की सहायता से बोतल या टैस्टट्यूब के अंदर पौधों को विकसित किया जाता है. इन पौधों की हार्डनिंग करने के बाद खेतों में लगाया जाता है. पपीते की उन्नत किस्में पंत पपीता 1, पूसा ज्वाइंट, पूसा डेलीसियस, पूसा मैजेश्टी, कोयंबटूर 1, पूसा नन्हा, वाशिंगटन, कोयंबटूर 2, सूरया, कोयंबटूर 4, पपीते की चल रही शोध और इस के टिश्यू कल्चर से विकसित पौधों का किसानों को सीधा लाभ मिलेगा. किसानों को समय , मेहनत और पैसे की बचत होगी.
पपीता एक सदाबहार फूल है. किसानों को चक्रीय प्रणाली अपनानी चाहिए. ठ्ठ पपीते के पौधे उगते ही पता लगेगा कि नर है या मादा. पपीता उत्पादन में इस नई तकनीक से आएगी क्रांति और पपीते की बागबानी से किसानों की आय में होगी बढ़ोतरी. किस ने क्या कहा आज के इस बदलते दौर में खेती की नई तकनीकों का समावेश करेंगे, तो खेती में अच्छा मुनाफा होगा. हमें तौरतरीके बदलने होंगे. अभी भी हम परंपरागत खेती पर ही ज्यादा ध्यान देते हैं. कृषि में आय बढ़ाने के लिए कृषि विविधीकरण को अपना कर नई तकनीकों को अपनाना होगा. किसान यदि नए बीज और नई तकनीकों का समावेश करेंगे, तो खेती में अच्छा मुनाफा होगा. – प्रोफैसर आरके मित्तल, कुलपति, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ.
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कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग में पपीते की खेती करने वाले किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी परिषद उत्तर प्रदेश लखनऊ के सहयोग से एक परियोजना पर काम किया जा रहा है. इस के अंतर्गत टिश्यू कल्चर विधि से पपीते के मादा पौधों का विकास किया जा रहा है. खेत में यदि मादा पौधों की संख्या अधिक होगी, तो उत्पादन काफी अच्छा होगा. -प्रोफैसर आरएस सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ. आज के इस बदलते दौर में अनेक किसान पपीते की खेती सघन बागबानी विधि से पौधों की प्रति इकाई संख्या बढ़ा कर जमीन का ज्यादा से ज्यादा उपयोग कर रहे हैं, जिस से अधिक पैदावार ली जा सकेगी. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद द्वारा वित्त पोषित परियोजना के माध्यम से तकनीकी ज्ञान को किसानों के द्वारा पहुंचाने का काम किया जा रहा है, जिस से प्रदेश के किसानों को लाभ मिल सके. – डा. डीके श्रीवास्तव, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, लखनऊ.