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मीरा-भाग 2 : मीरा के दिल में बसे अंगद ने उसे कौन सा आघात दिया

‘‘कुछ नहीं. मैं और मेरियन. हम दोनों भी यहीं रहेेंगे. क्योंकि मेरियन के पास अपना खुद का कोई घर नहीं है. तुम अपने तरीके से यहां रह सकती हो. जो जी में आए, करो और खुश रहो,’’ अंगद ने उदारता दिखाते हुए कहा.

मीरा 2-3 मिनट मौन रही. फिर एकाएक जोरों से हंस पड़ी.

अंगद बुत की तरह उसे हंसते हुए देखता रह गया. यह औरत पागल तो नहीं है? रोने के बजाय हंसती है? उस ने तो सोचा था कि मेरियन की बात सुनते ही वह एक आम भारतीय नारी की तरह रोनेधोने लगेगी. उस को भलाबुरा बोलेगी. मेरियन को भी कुछ सुनाएगी. पर इसे तो मानो कुछ असर ही नहीं है. मेरियन को भी आश्चर्य हुआ. अंगद ने तो उस से कुछ और ही कहा था.

अंगद से रहा न गया. उस ने पूछा, ‘‘तुम्हें ये बात सुन कर दुख नहीं हुआ? हंसी क्यों आई?’’

‘‘सच बात बताऊं?’’

अंगद मीरा को देखता रहा.

‘‘अरे, आप ने तो मेरी प्रौब्लम हल कर दी. अंगद, सच बात यह है कि मैं भी शादी से पहले किसी और से प्यार करती थी. यह शादी मेरी भी इच्छा के खिलाफ हुई थी. मेरे प्रेमी माधव की पढ़ाई पूरी होने में अभी 2 साल बाकी हैं. इसीलिए कैसे भी कर के मुझे 2 साल तक प्रतीक्षा करनी थी. मैं उलझन में फंसी हुई थी, लेकिन तुम ने तो मेरी मुश्किल आसान कर दी, थैंक्स अंगद. यह तो बहुत अच्छी बात हुई. हम दोनों एक ही नाव के यात्री निकले.’’

‘‘क्या? क्या तुम सच कहती हो?’’ अंगद को जैसे विश्वास नहीं हुआ.

न जाने क्यों उसे यह सुनना अच्छा नहीं लगा.

‘‘अरे, इस में हैरान होने की क्या बात है? अगर ऐसा नहीं होता तो पहले ही दिन पति की ऐसी बात सुन कर कौन पत्नी आंसू न बहाती?’’

‘‘चलो, हम दोनों की प्रौब्लम सौल्व हो गई,’’ अंगद ने कहा तो सही लेकिन उस की आवाज में वास्तविक खुशी नहीं थी.

ये सब बातें सुन कर मेरियन बहुत खुश हो रही थी. चलो, एक बला टली. उसे डर था कि पता नहीं मीरा क्या करेगी? अब कुछ नहीं होगा. उस ने राहत की सांस ली.और फिर एक ही छत के नीचे, एक ही घर में ‘पति, पत्नी और वो’ का सिलसिला शुरू हुआ.

सुबह अंगद और मेरियन दोनों ही अपनी जौब पर चले जाते. मीरा तीनों के लिए खाना बनाती. घर के सब काम करती. थोड़े दिन सब ठीक ही चला.

1 महीने में मीरा यहां के तौरतरीके, रहनसहन सब सीख गई थी.

एक दिन जब अंगद और मेरियन शाम को घर आए तो खाना नहीं बना था.

मीरा से पूछने पर उस ने बताया, ‘‘सौरी अंगद, आज मुझे भूख नहीं थी, इसलिए कुछ नहीं बनाया. रोज अपने लिए बनाती थी तो साथ में आप दोनों के लिए भी बना लेती थी.’’

‘‘तो आज खाना कौन बनाएगा?’’

‘‘क्यों? मेरे आने से पहले आप लोग बनाते ही होंगे न?’’

‘‘हां, लेकिन तब तो घर में दूसरा कोई था नहीं, इसीलिए.’’

‘‘अभी ऐसा ही सोच लो.’’

‘‘क्यों? अभी तो तुम हो न?’’

‘‘तो मैं क्या आप की खाना बनाने वाली हूं?’’

‘‘अगर यहां रहना है तो काम भी करना पड़ेगा.’’

‘‘तो मुझे यहां रहने का कहां शौक था? 2 साल की शर्त आप की ओर से थी. अगर आप को पसंद नहीं है तो मैं चली जाऊंगी,’’ मीरा ने शांति से उत्तर दिया.

अंगद को बहुत गुस्सा आया लेकिन कुछ बोल नहीं पाया.

वैसे दूसरे दिन जब वे दोनों आए तब खाना तैयार था. मीरा ने आज तरहतरह का बहुत बढि़या खाना बनाया था. अंगद को आश्चर्य हुआ. उस ने पूछा, ‘‘आज क्या कुछ खास बात है?’’

‘‘ओह, हां अंगद, आज मैं बहुत खुश हूं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘अरे, आज मेरा माधव भी यहां आ गया है. और आज वह मुझे यहां मिलने आने वाला है. ओह, अंगद टुडे आई ऐम सो हैप्पी. माधव की पढ़ाई पूरी हो जाएगी और फिर हम दोनों शादी कर लेंगे. अब तो हम दोनों भी मिल पाएंगे. ठीक आप की तरह. है न खुशी की बात?’’

तभी मीरा का मोबाइल बजा.

‘‘ओह, माधव, सौरी, अंगद. आप दोनों खा लो, मेरा फोन तो लंबा चलेगा,’’ खुश होती हुई मीरा अपने कमरे में चली गई.

आज खाना तो बहुत अच्छा बना था लेकिन अंगद को मजा न आया. उस का ध्यान खाने के बजाय मीरा के कमरे से आती हंसी की आवाज पर ज्यादा था. न जाने क्यों आज वह बेचैन हो उठा था.

मेरियन ने एकदो बार पूछा पर अंगद ने कुछ जवाब नहीं दिया.

दूसरे दिन जब अंगद और मेरियन काम पर जा रहे थे तब मीरा ने घर की चाबी अंगद के हाथ में थमाते हुए कहा, ‘‘लो, यह एक चाबी तुम अपने पास भी रखो. मुझे आज आने में शायद देर हो जाएगी.’’

मीरा के चेहरे पर खुशी झलक रही थी.

‘‘क्यों? तुम कहीं जाने वाली हो?’’

‘‘क्यों, कल बोला तो था कि माधव भी यहां आया है. आज मैं उसी से मिलने जा रही हूं. कितने लंबे अरसे के बाद हम दोनों मिल पाएंगे. अंगद, आज मैं बहुत खुश हूं. अच्छा है आप के जीवन में मेरियन है, वरना मुझे भी पूरी जिंदगी आप के साथ बितानी होती. तब मेरे प्रेम का क्या होता?’’

‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती अपने पति के सामने पराए मर्द की बातें करते?’’

‘‘पति?’’ हंसते हुए मीरा ने कहा, ‘‘भूल गए? आप ने ही तो कहा था, हम दोनों पतिपत्नी नहीं हैं. क्यों, सही बात है न, मेरियन?’’

‘‘या, राइट, इट्स क्वाइट ओके. फाइन, नाउ कमऔन, अंगद. वी आर गेटिंग लेट,’’ अंगद का हाथ खींचती मेरियन बोली.

Crime Story: तलवार की धार

हजारीलाल के किराएदार घनश्याम मीणा और बिजनैस पार्टनर अंगद ने जितने शातिराना तरीके से हजारीलाल और उन की पत्नी कैलाशीबाई की हत्या कर शव दफनाए थे, जान कर सभी चौंक गए.  उस की उम्र तकरीबन 35 साल के आसपास रही होगी. वह सेना में नायब

सूबेदार था. फौजी होने के बावजूद कलेक्टर ममता शर्मा के चेंबर में प्रवेश करते ही पता नहीं क्यों उस पर घबराहट हावी होने लगी थी और दिल बैठने लगा था.

जिला कलेक्टर के सामने खड़े होते ही उस के पैर कांपने लगे और पूरा बदन पसीने से तरबतर हो गया. आखिरकार हिम्मत जुटा कर अपना परिचय देने के बाद वह बोला, ‘‘मैडम, 8 जनवरी, 2018 को मेरे मातापिता की निर्दयता से हत्या कर दी गई. पुलिस न तो आज तक उन के शवों को बरामद कर पाई और न ही इस मामले में निष्पक्षता से जांच की गई.

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‘‘मैं पुलिस के बड़े अधिकारियों से भी मिल चुका हूं, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है. हत्यारे छुट्टे घूम रहे हैं. इतना ही नहीं, वे इस कदर बेखौफ हैं कि मुझे ओर मेरे परिवार को भी जान से मारने की धमकी देते हैं.’’ कहतेकहते विजय कुमार की आंखों से आंसू टपकने लगे.

हिचकियां लेते हुए उस ने कहा, ‘‘मैडम, मेरे सैनिक होने पर धिक्कार है. कानून की बेरुखी और जलालत झेलने से तो अच्छा है कि मैं अपने परिवार समेत आत्महत्या कर लूं. ऐसी जिंदगी से तो मौत भली. हम तो बस अब इच्छामृत्यु की अनुमति चाहते हैं.’’

यह कहते हुए उस ने जिला कलेक्टर की तरफ एक दरख्वास्त बढ़ा दी जो महामहिम राष्ट्रपति को लिखी गई थी. उस दरख्वास्त में विजय कुमार ने परिवार सहित इच्छामृत्यु की अनुमति देने की मांग की थी.

जिला कलेक्टर ममता शर्मा ने एक बार सरसरी तौर पर सामने खड़े युवक का जायजा लिया. उन की हैरानी का पारावार नहीं था. लेकिन जिस तरह पस्ती की हालत में वह अटपटी मांग कर रहा था, उस के तेवरों ने एक पल को तो उन्हें हिला कर रख दिया था.

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वह बोलीं, ‘‘कैसे फौजी हो तुम? जानते हो इच्छामृत्यु की कामना कायर करते हैं, फौजी नहीं. हौसला रखो और पूरा वाकया मुझे एक कागज पर लिख कर दो. याद रखो कानून से ऊपर कोई नहीं है. तफ्तीश में हजार अड़चनें हो सकती हैं. गुत्थी सुलझाने में वक्त लग सकता है. तुम लिख कर दो, मैं इसे देखती हूं.’’

अब तक सामान्य हो चुके विजय कुमार ने सहमति में सिर हिलाया और कलेक्टर के चेंबर से बाहर निकल गया. आखिर ऐसा क्या हुआ था कि एक फौजी का देश की कानून व्यवस्था से भरोसा उठ गया और वह अपने परिवार समेत इच्छामृत्यु की मांग करने लगा. सब कुछ जानने के लिए हमें एक साल पहले लौटना होगा.

विजय कुमार राजस्थान के बूंदी जिले के लाखेरी कस्बे का रहने वाला है. लाखेरी स्टेशन के नजदीक ही उस का पुश्तैनी मकान है. जहां उस के मातापिता हजारीलाल और कैलाशीबाई स्थाई रूप से रहते थे. हजारीलाल के लाखेरी स्थित मकान में नवलकिशोर नामक किराएदार भी अपने परिवार के साथ रहता था. उस की बाजार में किराने की दुकान थी.

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हजारीलाल के 2 मकान कोटा में थे. कोटा के रायपुरा स्थित निधि विहार कालोनी में उन के बेटे विजय कुमार का परिवार रहता था. उस के परिवार में उस की पत्नी ममता और 2 छोटे बच्चों के अलावा उस का छोटा भाई हरिओम था.

विजय सेना में नायब सूबेदार था और उस की तैनाती चाइना बौर्डर पर थी. विजय छुट्टियों में ही घर आ पाता था. हजारीलाल का मझला बेटा विनोद इंदौर की किसी इंडस्ट्री में गार्ड लगा हुआ था. हजारीलाल का एक और मकान रायपुरा से तकरीबन एक किलोमीटर दूर डीसीएम चौराहे पर स्थित था.

इस तिमंजिला मकान में दूसरी मंजिल हजारीलाल ने अपने लिए रख रखी थी. वह अपनी पत्नी के साथ 10-15 दिनों में कोटा आते रहते थे ताकि बेटे के परिवार की खैर खबर ले सकें. अलबत्ता वे रुकते इसी मकान में थे.

उस मकान का नीचे वाला तल उन्होंने बैंक औफ बड़ौदा को किराए पर दिया हुआ था, जहां बैंक का एटीएम भी था. तीसरी मंजिल पर करोली के मानाखोर का घनश्याम मीणा पत्नी राजकुमारी के साथ किराए पर रह रहा था.

हजारीलाल और घनश्याम मीणा का परिवार एकदूसरे से काफी घुलामिला था. घनश्याम पर तो हजारीलाल का अटूट भरोसा था. दंपति जब कोटा में होते थे तो अकसर उन का वक्त बेटे विजय कुमार के परिवार के साथ ही गुजरता था. लेकिन रात को वह अपने डीसीएम चौराहे के पास स्थित घर पर लौट आते थे.

अलबत्ता दोनों के बीच टेलीफोन द्वारा संपर्क बराबर बना रहता था. हजारीलाल वक्त गुजारने के लिए प्रौपर्टी के धंधे से भी जुडे़ हुए थे. इस धंधे में अंगद नामक युवक उन का मददगार बना हुआ था.

अंगद रायपुरा स्थित विजय कुमार के मकान के पीछे ही रहता था. बिहार का रहने वाला अंगद विजय कुमार का अच्छा वाकिफदार था. ट्यूशन से गुजारा करने वाला अंगद विजय के बच्चों को भी ट्यूशन पढ़ाता था. अंगद प्रौपर्टी के कारोबार के मामले में पारखी था इसलिए हजारीलाल भी उस का लोहा मानते थे.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. इसी बीच अजीबोगरीब घटना ने ठहरे हुए पानी में जैसे हलचल मचा दी. दरअसल हजारीलाल की पत्नी कैलाशीबाई की अलमारी से उन का मंगलसूत्र गायब हो गया. हीराजडि़त मंगलसूत्र काफी कीमती था.

लिहाजा घर के सभी लोग परेशान हो गए. कैलाशीबाई का रोना भी वाजिब था. घर में बाहर का कोई शख्स आया नहीं था औैर किराएदार घनश्याम पर उन्हें इतना भरोसा था कि उस से पूछना भी हजारीलाल दंपति को ओछापन लगा. आखिर मंगलसूत्र की चोरी का गम खाए हजारीलाल दंपति माहौल बदलने के लिए लाखेरी लौट गए.

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इस बाबत उन्होंने अपने बेटे विजय कुमार की पत्नी ममता को भी जानकारी दे दी. लेकिन असमंजस में डूबी बहू भी सास को तसल्ली देने के अलावा क्या कर सकती थी. हजारीलाल तो इस सदमे को पचा गए लेकिन कैलाशीबाई के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.

एक स्त्री के सुहाग की निशानी मंगलसूत्र का इस तरह चोेरी चले जाना उन के लिए सब से बड़ा अपशकुन था. उन्होंने एक ही रट लगा रखी थी कि आखिर कौन था जो उन का मंगलसूत्र चुरा ले गया. पत्नी को लाख समझा रहे हजारीलाल की तसल्ली भी कैलाशीबाई के दुख को कम नहीं कर पा रही थी.

5 जनवरी, 2018 को हजारीलाल को अपने किराएदार घनश्याम मीणा का फोन मिला तो उन की आंखें चमक उठीं. उस ने बताया कि करोली के मानाखोर कस्बे में एक भगतजी हैं जिन पर माता की सवारी आती है.

माता की सवारी आने पर भगतजी में अद्भुत शक्ति पैदा हो जाती है और उस समय वह भूतभविष्य के बारे में सब कुछ बता देते हैं. आप का मंगलसूत्र कहां और कैसे गायब हुआ, यह सब भगतजी बता देंगे. आप कहो तो मैं आप को वहां ले चलूंगा ताकि मंगलसूत्र का पता लग सके.

हजारीलाल और उन की पत्नी पुराने विचारों के थे लिहाजा टोनेटोटकों में ज्यादा ही विश्वास करते थे. लिहाजा उन्होंने आननफानन में करोली जाने का प्रोग्राम बना लिया. तय कार्यक्रम के अनुसार घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी उन्हें ले जाने के लिए लाखेरी पहुंच गए.

हजारीलाल ने तब अपने बड़े बेटे के परिवार को खबर करने और सब से छोटे बेटे हरिओम को भी साथ ले चलने की बात कही तो घनश्याम ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘यह बातें गोपनीय रखनी होती हैं. माता की सवारी पर अविश्वास करोगे तो मातारानी कुपित हो सकती हैं. तब अहित हुआ तो हम कुछ नहीं कर पाएंगे.’’ यह कहते हुए घनश्याम ने अपनी पत्नी की तरफ देखा तो उस ने भी सहमति में सिर हिला दिया.

हजारीलाल के मन में संदेह का कीड़ा तो कुलबुलाया लेकिन मौके की नजाकत को देखते हुए वह चुप लगा गए. लेकिन हजारीलाल ने अपने अचानक करोली जाने की बात मौका मिलते ही अपने किराएदार नवलकिशोर को जरूर बता दी. हजारीलाल ने नवलकिशोर को जो कुछ बताया उस ने सुन लिया. इस में उसे एतराज होता भी तो क्यों. घनश्याम को उस ने देखा भी नहीं था तो पूछताछ करता भी तो किस से.’’

लेकिन नवलकिशोर उस वक्त जरूर कुछ अचकचाया, जब सोमवार 8 जनवरी, 2018 को एक शख्स लाखेरी स्थित मकान पर पहुंचा. उस के हाथ में चाबियों का गुच्छा था और वह दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था.

नवलकिशोर को हजारीलाल की गैरमौजूदगी में किसी अजनबी द्वारा मकान का दरवाजा खोलना अटपटा लगा तो उस ने फौरन टोका, ‘‘अरे भाई आप कौन हो और यह क्या कर रहे हो?’’

इतना सुनते ही वह आदमी कुछ हड़बड़ाया फिर बोला, ‘‘मेरा नाम घनश्याम है और मैं हजारीलालजी के डीसीएम चौराहे के पास वाले मकान में रहता हूं. हजारीलालजी के भेजने पर ही मैं यहां आया हूं. दरअसल करोली में भगतजी का भंडारा हो रहा है. हजारीलालजी ने मुझे यहां अपने कपड़े लेने के लिए भेजा है.’’

नवलकिशोर को यह तो मालूम था कि हजारीलाल पत्नी के साथ करौली गए हुए हैं लेकिन उसे घनश्याम की बातों पर तसल्ली इसलिए नहीं हुई कि हजारीलाल किसी को अपने घर की चाबियां भला कैसे सौंप सकते हैं. अपना शक दूर करने के लिए नवलकिशोर ने कहा, ‘‘ठीक है, आप उन से मोबाइल पर मेरी बात करवा दो.’’

घनश्याम ने यह कह कर नवलकिशोर को निरुत्तर कर दिया कि गांवदेहात में नेटवर्क काम नहीं करने से उन से बात नहीं हो सकती. नवलकिशोर की शंका दूर नहीं हुई. उस ने एक पल सोचते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है कोटा में हजारीलाल जी के बेटेबेटियां रहते हैं, उन से बात करवा दो?’’

घनश्याम ने यह कह कर टालने की कोशिश की कि उन का बेटा तो चाइना बौर्डर पर तैनात है और कोटा में रह रही उस की पत्नी का मोबाइल नंबर मुझे मालूम नहीं है. लेकिन नवलकिशोर तो जिद ठाने बैठा था. उसे घनश्याम की नानुकर खटक रही थी. वह अपनी शंका दूर करने पर तुला था. उस ने कहा ठीक है उन की पत्नी का नंबर मुझे मालूम है. मैं कर लेता हूं उन से बात.

घनश्याम कोई टोकाटाकी करता, तब तक नवलकिशोर अपने मोबाइल पर विजय कुमार की पत्नी ममता का नंबर मिला चुका था. लेकिन संयोग ही रहा कि ममता का फोन स्विच्ड औफ निकला. आखिर हार कर नवलकिशोर ने घनश्याम से कहा, ‘‘कोटा में हजारीलाल जी के परिवार का कोई तो होगा, जिस का नंबर आप को मालूम हो.’’

‘‘हां, उन की बेटी माया का नंबर मालूम है.’’ घनश्याम ने अचकचाते हुए कहा.

‘‘ठीक है तो फिर उन्हीं से बात करवा दो?’’ कहते हुए नवलकिशोर ने घनश्याम के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं.

मोबाइल पर माया इस बात की तसदीक तो नहीं कर सकी कि उस के पिता करोली गए हुए हैं और किसी को उन्होंने कपड़े लाने के लिए भेजा है. अलबत्ता इतना जरूर कह दिया कि घनश्याम हमारे कोटा वाले मकान में किराएदार हैं. मैं इन को जानती हूं. अगर ये मांबाऊजी के कपड़े लेने के लिए आए हैं तो ले जाने देना. लेकिन बाद में चाबी अपने पास ही रख लेना.

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नवलकिशोर को अब क्या ऐतराज होना था? घनश्याम रात को वहीं रुक गया और बोला कि सुबह को हजारीलालजी के कपड़े आदि ले कर चला जाएगा. लेकिन अगली सुबह नवलकिशोर की जब आंखें खुलीं तो उस ने देखा कि घनश्याम वहां से जा चुका था.

अब नवलकिशोर के शक का कीड़ा कुलबुलाना लाजिमी था कि  इस तरह घनश्याम का चोरीछिपे जाने का क्या मतलब. नवलकिशोर को ज्यादा हैरानी तो इस बात की थी कि उसे चाबी सौंप कर जाना चाहिए था. लेकिन वो चाबी भी साथ ले गया.

मंगलसूत्र की गुमशुदगी को ले कर कैलाशीबाई किस हद तक सदमे में थीं, इस बात को उन की बहू ममता अच्छी तरह जानती थी. क्योंकि उस की अपनी सास से फोन पर बात होती रहती थी. एक दिन ममता ने अपने देवर हरिओम से कहा कि वह लाखेरी जा कर मां को ले आए ताकि बच्चों के बीच रह कर उन का दुख कुछ कम हो सके.

भाभी के कहने पर हरिओम ने 9 जनवरी को पिता हजारीलाल को फोन लगाया. लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ होने के कारण बात नहीं हो सकी. हरिओम सोच कर चुप्पी साध गया कि शायद फोन बंद कर के वह सो रहे होंगे.

ममता भाभी को भी उस ने यह बता दिया. अगले दिन ममता के कहने पर हरिओम ने फिर पिता को फोन लगाया. उस दिन भी उन का फोन बंद मिला. यह सिलसिला लगातार जारी रहा तो न सिर्फ हरिओम के लिए बल्कि ममता के लिए भी यह हैरानी वाली बात थी.

ममता के मुंह से बरबस निकल पड़ा, ऐसा तो आज तक कभी नहीं हुआ. वह अंदेशा जताते हुए बोली, ‘‘भैया, जरूर अम्माबाऊजी के साथ कोई अनहोनी हो गई है.’’ ममता ने देवर को सहेजते हुए कहा, ‘‘तुम ऐसा करो, नवलकिशोर से बात करो. शायद उसे कुछ मालूम हो.’’

हरिओम ने नवलकिशोर से बात की. उस ने जो कुछ बताया उसे जान कर ममता और हरिओम दोनों सन्न रह गए. नवलकिशोर ने तो यहां तक बताया कि उस ने घनश्याम द्वारा कपड़े ले जाने की बाबत तस्दीक करने के लिए भाभी को फोन भी लगाया था, लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. लेकिन माया ने बात कराने पर उस की शंका दूर हुई थी.

ममता वहीं सिर थाम कर बैठ गई. उस के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला, ‘‘अम्माबाऊजी हमें बिना बताए करोली कैसे चले गए. घर की चाबी तो अम्मा किसी को देती ही नहीं थीं. घनश्याम चाबी ले कर लाखेरी वाले घर कैसे पहुंच गया.

इस के बाद तो मंगलसूत्र की चोरी को ले कर भी ममता का शक पुख्ता हो गया. उस ने हरिओम से कहा, ‘‘भैया घर से अम्मा का मंगलसूत्र भी जरूर घनश्याम ने ही चुराया होगा. तुम जरा घनश्याम को फोन तो लगाओ.’’

हरिओम ने फोन किया तो उस के मुंह से अस्फुट स्वर ही निकल पाए, ‘‘भाभी घनश्याम का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है. मैं उसे डीसीएम चौराहे के घर पर जा कर पकड़ता हूं.’’ कहने के साथ ही हरिओम फुरती से बाहर निकल गया.

करीब एक घंटे बाद हरिओम लौट आया. उस का चेहरा फक पड़ा हुआ था. हरिओम का चेहरा देखते ही ममता माजरा समझ गई. अटकते हुए उस ने कहा, ‘‘नहीं मिला ना?’’

हरिओम भी वहीं सिर पकड़ कर बैठ गया, ‘‘भाभी वो तो अपनी पत्नी के साथ सारा सामान ले कर वहां से रफूचक्कर हो चुका है.’’

बहुत कुछ ऐसा घटित हो चुका था. जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. अब ममता के लिए अपने पति को सब कुछ बताना जरूरी हो गया था. ममता ने फोन से बौर्डर पर तैनात पति को पूरा माजरा बता दिया. विजय उस समय सिर्फ इतना ही कह कर रह गया कि तुम थाने में अम्माबाऊजी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दो. किराएदार घनश्याम की बाबत भी सब कुछ बता देना. फिर मैं छुट्टी ले कर आता हूं.

इस के साथ ही विजय ने इंदौर में रह रहे अपने मंझले भाई विनोद को भी फोन कर पूरी बात बता दी और कहा कि तुम फौरन पहले लाखेरी पहुंचो और पता करो कि उन के साथ क्या हुआ है.

मातापिता जिस तरह रहस्यमय ढंग से लापता हुए, सुन कर विजय अचंभित हुआ. इस से पहले ममता ने उद्योग नगर थाने में अपने ससुर हजारीलाल और सास कैलाशीबाई की गुमशुदगी की सुचना दर्ज करा दी थी.

अपने परिवार समेत करोली के मानाखोर गांव में पहुंचे विजय ने घनश्याम मीणा और कथित भगतजी की तलाश करने की भरपूर कोशिश की ताकि मांबाऊजी का पता चल सके, लेकिन उस के हाथ निराशा ही लगी. छानबीन करने पर उसे पता चला कि भगतजी नामक कोई तांत्रिक वहां था ही नहीं. घनश्याम के बारे में उसे पुख्ता जानकारी नहीं मिल सकी.

विजय ने पुलिस से संपर्क किया उस ने उद्योग नगर पुलिस के जांच अधिकारी सुरेंद्र सिंह से आग्रह किया कि आप एक बार करोली का चक्कर लगा लीजिए. वह वहां गए लेकिन उन की कोशिश निरर्थक रही. फिर जांच अधिकारी सुरेंद्र सिंह ने काल डिटेल्स का हवाला देते हुए कहा कि मामला लाखेरी का है. इसलिए मामले की रिपोर्ट लाखेरी में ही  करानी होगी.

विनोद भी लाखेरी पहुंच चुका था. उस ने भाई विजय को जो कुछ बताया उस से रहेसहे होश भी फाख्ता हो गए. घर की अलमारियों और संदूक के ताले टूटे पड़े थे. उन में रखे हुए अचल संपत्तियों के दस्तावेज, सोनेचांदी के जेवर और नकदी गायब थी. इस से स्पष्ट था कि कपड़े लेने के बहाने आया घनश्याम सब कुछ बटोर कर ले गया.

27 जनवरी, 2018 को विजय ने लाखेरी थाने में मामले की रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए घनश्याम मीणा पर ही अपना शक जताया. इस मौके पर विजय के साथ आए उस के भाई विनोद ने चोरी गए सामान का पूरा ब्यौरा पुलिस को दिया. पुलिस ने रिपोर्ट में भादंवि की धारा 365 व 380 और दर्ज कर के जांच एसआई नंदकिशोर के सुपुर्द कर दी. दिन रात की भागदौड़ के बावजूद पुलिस के हाथ कोई ठोस सुराग नहीं लगा.

एसपी योगेश यादव सीओ नरपत सिंह तथा थानाप्रभारी कौशल्या से जांच की प्रगति का ब्यौरा बराबर पूछ रहे थे. लेकिन कोई उम्मीद जगाने वाली बात सामने नहीं आ रही थी.

इस बीच पुलिस ने गुमशुदा हजारीलाल दंपति के फोटोशुदा ईनामी इश्तहार भी बंटवाए और सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करवा दिए. इस के बाद पुलिस ने घनश्याम मीणा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस का नतीजा जल्दी ही सामने आ गया.

काल डिटेल्स से पता चला कि घनश्याम मीणा की ज्यादातर बातचीत करोली जिले के लांगरा कस्बे के मुखराम मीणा से ही हो रही थी. लक्ष्य सामने आ गया तो पुलिस की बांछें खिल गईं. सीओ सुरेंद्र सिंह ने एसपी योगेश यादव को बताया तो उन्होंने करोली के एसपी अनिल कयाल से जांच में सहयोग करने की मांग की.

नतीजतन सीओ सुरेंद्र सिंह और थानाप्रभारी कौशल्या की अगुवाई में गठित पुलिस टीम ने करोली के लांगरा कस्बे से मुखराम मीणा को दबोच लिया. अखबारी सुर्खियों में ढली इस खबर में करोली एसपी अनिल कयाल ने मुखराम मीणा की 4 फरवरी को गिरफ्तारी की तस्दीक कर दी और कहा कि मुखराम के साथियों और गुमशुदा दंपति को तलाशने में पुलिस टीमें पूरी तरह जुटी हुई हैं.

पुलिस पूछताछ में मुखराम बारबार बयान बदल रहा था. उस ने स्वीकार किया कि घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी के साथ हम हजारीलाल और उस की पत्नी कैलाशीबाई को ले कर टैंपो से साथलपुर के जंगल में पहुंचे थे. वहां उन्होंने दोनों की अंघेरे में हत्या कर दी थी. मुखराम ने बताया कि काम को अंजाम देने के बाद वह साथलपुर गांव चले गए थे.

चूकि पुलिस को उस से और भी पूछताछ करनी थी, इसलिए उसे 5 फरवरी को मुंसिफ न्यायालय लाखेरी में पेश कर 5 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

मुखराम के बताए स्थान तक लाखेरी पुलिस दल के साथ भरतपुर जिले की लागरा पुलिस के एएसआई राजोली सिंह तथा डौग स्क्वायड टीम के कांस्टेबल देवेंद्र, ओमवीर और हिम्मत सिंह भी थे.

मुखराम द्वारा बताई गई हत्या वाली जगह से पुलिस को साड़ी के टुकड़े, खून सने पत्थर और एक हड्डी का टुकड़ा तो मिला लेकिन लाशों का कहीं कोई अतापता नहीं था.

मुखराम अपने उसी बयान पर अड़ा था कि महिला की हत्या तो हम ने यहीं पत्थरों से की थी और शव को भी यहीं गाड़ दिया था. इस के बाद शव कहां गया यह पता नहीं. बरामद चीजों को जब खोजी कुत्ते को सुंघाया तो वो पहले वाली जगह पर जा कर ठिठक गया.

पुलिस ने घटनास्थल से हत्या में इस्तेमाल हुए पत्थर भी जब्त कर लिए. पुलिस की सख्ती के बावजूद मुखराम सवालों का जवाब देने से कतराता रहा.

हत्या में सहयोगी रहे घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी कहां हैं? और हजारीलाल की हत्या कहां की गई? वृद्ध दंपति की हत्या की आखिर क्या वजह थी आदि पूछने पर मुखराम ने बताया कि कोटा में हजारीलाल का तकरीबन 50 लाख रुपए की कीमत का एक प्लौट है. घनश्याम और उस की पत्नी इस पर नजर गड़ाए हुए थे.

उन्होंने हजारीलाल से औनेपौने दामों में इस प्लौट का सौदा करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी. उस प्लौट को हड़पने के लिए ही उन के मारने की योजना बनाई थी. उन्होंने मुझे अच्छी रकम देने का वादा कर इस योजना में शामिल किया था.

पुलिस ने आखिर तेवर बदलते तो मुखराम ने मुंह खोलने में देर नहीं की. उस ने बताया कि हजारीलाल की हत्या साथलपुर के पास स्थित धमनिया के जंगल में की थी. धमनियां जंगल में मुखराम की बताई गई जगह पर हजारीलाल के कपड़े और खून सने पत्थर तो मिले लेकिन शव नहीं मिला.

घनश्याम मीणा और उस की पत्नी राजकुमारी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि घनश्याम अपनी पत्नी के साथ केरल के कालीघाट में रह रहा है. मुखराम से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

घनश्याम मीणा और राजकुमारी को गिरफ्तार करने के लिए एक पुलिस टीम कालीघाट रवाना हो गई. इत्तफाक से ये दोनों घर पर ही मिल गए. 8 अप्रैल को उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस राजस्थान लौट आई.

पूछताछ में घनश्याम मीणा और उस की पत्नी राजकुमारी ने जो बताया उसे सुन कर तो पुलिस अधिकारियों का मुंह खुला का खुला रह गया. क्योंकि हत्या में ट्यूटर और प्रौपर्टी के बिजनैस में हजारीलाल का विश्वसनीय बना रहने वाला अंगद भी शामिल था. पुलिस इधरउधर खाक छान रही थी और अंगद बिना किसी डर के विजय के पड़ोस में बैठ कर चैन की बंसी बजा रहा था.

पता चला कि पूरी घटना का सूत्रधार और तानाबाना बुनने वाला अंगद ही था. उस पर हजारीलाल का जितना अटूट भरोसा था, कमोबेश विजय का भी उतना ही था. घर पर बेरोकटोक आनेजाने और मीठी बातों से रिझाने वाले अंगद पर शंका होती भी तो कैसे. जबकि सच्चाई यह थी कि डीसीएम इलाके में हजारीलाल के लगभग 50 लाख के प्लौट पर अंगद की शुरू से ही निगाहें थीं.

विश्वसनीयता की आड़ में अंगद इस प्लौट को किसी तरह फरजी दस्तावेजों के जरिए हड़पने की ताक में था. लेकिन हजारीलाल पर उस का दांव नहीं चल पा रहा था. आखिरकार उसे एक ही रास्ता सूझा कि हजारीलाल दंपति को मौत के घाट उतार कर ही यह प्लौट कब्जाया जा सकता था.

अपनी योजना का तानाबाना बुनते हुए उस ने पहले घनश्याम मीणा को उन के डीसीएम चौराहे के पास स्थित घर में किराए पर रखवाया. फिर मीणा को उन का विश्वास जीतने में भी मदद की.

आखिरकार जब हजारीलाल का घनश्याम पर अटूट भरोसा हो गया तो पहले उस ने किसी तरह कैलाशीबाई का कीमती मंगलसूत्र चोरी कर लिया. मंगलसूत्र की चोरी से हताशनिराश दंपति को जाल में फंसाने के लिए तांत्रिक तक पहुंच बनाने का पासा फेंका.

अंगद ने घनश्याम से कहा कि वह योजना में किसी विश्वसनीय व्यक्ति को मोटे पैसों का लालच दे कर शामिल कर ले. तब घनश्याम ने करोली के रहने वाले अपने एक वाकिफकार मुखराम को योजना में शामिल किया. सारा काम घनश्याम, राजकुमारी और मुखराम ने ही अंजाम दिया. अंगद तो अपनी जगह से हिला भी नहीं.

पुलिस ने कोटा से अंगद को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने भले ही हत्या की गुत्थी सुलझा ली. लेकिन लाख सिर पटकने के बाद भी शव बरामद नहीं किए जा सके.

कथा लिखने तक चारों अभियुक्तों की जमानत हो चुकी थी. कानून के जानकारों का कहना है कि जब लाश ही बरामद नहीं होगी तो अभियुक्तों को सजा कैसे मिलेगी. सवाल यह है कि हर तरह से समर्थ पुलिस आखिरकार हजारीलाल दंपति के शव बरामद क्यों नहीं कर सकी.

विजय कुमार तो दोहरे आघात से छटपटा रहा है. एक तो वृद्ध मातापिता की निर्मम हत्या, फिर शवों की बरामदगी तक नहीं हुई. विजय का दुख इन शब्दों में फूट पड़ता है कि कैसा बेटा हूं, मांबाप की हत्या हुई और मैं कुछ नहीं कर पाया. उन की अंत्येष्टि तक नहीं हो सकी.

विजय मंत्रियों से ले कर उच्च अधिकारियों तक से इंसाफ की दुहाई दे चुका है. लेकिन उस की कहीं सुनवाई नहीं हो रही. एक तरफ तो विश्वास और इंसाफ की हत्या का दर्द तो दूसरी तरफ हत्यारे बेखौफ घूमते हुए उसे मुंह चिढ़ा रहे हैं. ताज्जुब की बात तो यह है कि क्लेक्टर से गुहार लगाने के बावजूद भी इस केस में कोई प्रगति नहीं हुई है.

—कथा पुलिस और पारिवारिक सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

जैविक खेती से फायदा

आजकल खेती से ज्यादा उपज लेने के लिए कई तरह की रासायनिक खादों व दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है. करीब 80 फीसदी किसान खेतों में रासायनिक खादों और जहरीली दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिस से उपज तो बढ़ी है, लेकिन इनसानों की जिंदगी में इस का बुरा असर हो रहा है. इसी वजह से आज हमें नईनई बीमारियां घेर रही हैं. आंकड़ों के मुताबिक आज के समय में सब से ज्यादा जहर पंजाब राज्य के उत्पादों में पाया गया है. एलड्रिन नामक दवा ब्लड कैंसर का कारण बनी, तो उस पर रोक लगी. इसी तरह एंडोसलफान नामक दवा ने दिमागी तंत्र प्रणाली को प्रभावित किया, तो उस पर भी रोक लगाई गई. फिर भी इस तरह की दवाएं मिलतेजुलते नामों से आज भी बाजार में मिल रही हैं और लोगों की जिंदगियों से खिलवाड़ कर रही हैं.

आज ऐसा दौर आ चुका है कि हम रासायनिक खेती से हट कर जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाएं.

कैसे करें जैविक खेती?

आज कई तरीकों से जैविक खादें बनाई जाती?है, जैसे गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट व तरल जैविक हरी खाद वगैरह. गोबर की खाद को कम से कम 3 महीने तक गड्ढों में सड़ा कर कंपोस्ट खाद बनाएं और फसल लगाने के पहले खेत में डालें. यह हमारी सब से पुरानी पारंपरिक खाद है. ढैंचा, लोबिया, उड़द व मूंग वगैरह को हरी खाद के लिए उगाएं और फिर जुताई कर के खेत में मिला कर सड़ा दें. यह भी एक अच्छा तरीका है. पुराने किसान आज भी इसे इस्तेमाल में लाते हैं  केंचुओं के द्वारा वर्मी कंपोस्ट तैयार किया जाता है. यह बहुत ही उत्तम खाद होती है. इसे आजकल तमाम लोग इस्तेमाल कर रहे हैं.

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* जैविक खाद का मिश्रण तैयार करें (गोबर, मूत्र, गुड़, दाल और जीवाणु खाद मिला कर) और फसल में 5-6 बार तक इस्तेमाल करें. इसे बनाने के लिए इन सब को सड़ा कर तरल जैविक पदार्थ तैयार किया जाता?है.

* दानेदार रासायनिक खाद की जगह एनपीके पाउडर और चिलेटेड सूक्ष्म पोषक तत्त्वों को खड़ी फसल में स्प्रे करें.

* नीम और गौमूत्र वाले कीटनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल करें.

* अच्छी गुणवत्ता वाले जैविक खेती से उत्पादित बीजों का इस्तेमाल करें.

* खरपतवार निकालने के लिए खड़ी फसल में निराईगुड़ाई करें. गरमियों में खेत की जुताई कर के खेत को कुछ दिनों के लिए खाली छोड़ दें.

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इस प्रकार के कुछ तरीकों को अपना कर जमीन, स्वास्थ्य और पर्यावरण को बचाया जा सकता?है और कम खर्च में टिकाऊ खेती की जा सकती है.

तैयार मिलती हैं जैविक खादें

आज कई कंपनियां जैविक उत्पाद बना रही हैं, लिहाजा उन्हें इस्तेमाल करें. नवभारत फर्टिलाइजर्स लि. कंपनी जैविक खेती के क्षेत्र में साल 1996 से पूरे भारत और नेपाल में किसानों की जरूरत के मुताबिक कृषि उत्पादों को बनाने वाली कंपनी है. यह कंपनी सभी फसलों के लिए प्रभावी जैविक उत्पाद तैयार करती है. साथ ही किसानों की मदद के लिए अनुभवी खेती के डाक्टरों की टीम भी मौजूद है. जैविक खेती के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए नवभारत फर्टिलाइजर के फोन नंबरों 0124-3212048, 01664-215305, 01274-261221 पर बात कर के सलाह ले सकते हैं. इस के अलावा आप अपने इलाके के कृषि जानकारों से बात कर के भी अच्छी कंपनी के उत्पादों को जान सकते?हैं. उन का तजरबा आप के काम आएगा.

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जैविक खादों से फायदे

* पौधों की ताकत बढ़ती है और उन में ज्यादा सर्दीगरमी से लड़ने की कूवत पैदा हो जाती है.

* फूलों और फलों की पैदावार में बढ़ोतरी होती है.

* जैविक खादें हर फसल के लिए फायदेमंद होती हैं.

* इन में नुकसान देने वाले जीवाणु नहीं होते हैं.

* फल, सब्जी, अनाज देखने में सुंदर और स्वादिष्ठ होते?हैं.

* पैदावार में बढ़ोतरी होती है और बीमारियों के प्रति लड़ने की ताकत बढ़ती है.

* बीजों का अंकुरण अच्छी तरह होता है.

* तैयार फल व सब्जियां हानिकारक रसायनों से रहित और पौष्टिक होती हैं.

* लगातार जैविक खेती करने से पैदावार में बढ़ोतरी होती है.

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* जैविक खाद के इस्तेमाल से पौधों में तमाम बीमारियों व कीड़ों से लड़ने की कूवत बढ़ती है, नतीजतन रासायनिक कीटनाशकों, रोगनाशकों व खरपतवारनाशकों का इस्तेमाल कम से कम हो जाता है. इस से किसानों का खर्च भी बचता है. आरगैनिक खेती के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए जैलदार बंधु आरगैनिक कृषि फार्म के मोबाइल नंबरों 09416392681, 09068506781 पर संपर्क कर सकते हैं.

मूत्रगोबर से बनाते हैं जीवामृत

गुजरी गांव (मध्य प्रदेश) के किसान अभिषेक गर्ग सिर्फ 1 गाय के मूत्र और गोबर में अन्य पदार्थो को मिला कर जैविक घोल तैयार करते है और उस तरल जैविक घोल को अपनी फसल में खाद के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. उन के अमरूद के बाग इसी जैविक घोल के इस्तेमाल से लहलहा रहे हैं. अभिषेक गर्ग ने इस घोल का नाम जीवामृत रखा है. उन का कहना है कि सिर्फ 1 गाय से तैयार इस जीवामृत से 30 एकड़ में खेती की जा सकती है, जो रासायनिक खाद की तुलना में बहुत किफायती है. जीवामृत  बनाने का तरीका : गाय से रोजाना मिलने वाले 10 किलोग्राम गोबर और गोमूत्र से तैयार मिश्रण में 1 किलोग्राम बेसन, 1 किलोग्रम गुड़, 1 किलोग्राम मिट्टी व 1 किलोग्राम मौसमी फसल डाल कर इस घोल को 7 दिनों तक सड़ाएं और पूरे हफ्ते तक हर रोज इसे 2 बार 5 मिनट तक हिलाएं. 1 हफ्ते बाद जैविक घोल तैयार हो जाता?है. इस घोल को छान कर फसल पर समयसमय पर छिड़काव करते रहें. किसान इस जैविक घोल को ज्यादा मात्रा में भी बना सकते हैं. अनुपात के मुताबिक केवल सामान की मात्रा बढ़ा लें.

रासायनिक खाद व जहरीली दवाओं के नुकसान

खेती की मिट्टी कठोर हो जाने से उस की पानी सोखने की कूवत कम हो जाती?है और बीजों का जमाव भी कम होने लगता है. तमाम तरह के फंगस, वायरस वगैरह की बीमारियां (जड़ व तना गलन, मरोडि़या, उखेड़ा, पीला और काला रतुआ, कंडुआ वगैरह) फसल में लगने लगती हैं और एक समय ऐसा आता है, जब कीटनाशकों का असर भी कम हो जाता है. रसायनों के इस्तेमाल से अनाज, सब्जी, फल व चारा वगैरह जहरीले होने लगते हैं. इनसानों और जानवरों में बीमारियों को बढ़ावा मिलता है और कैंसर, टीबी, डायबिटीज, हार्ट अटैक, स्वाइन फलू, जैसी बीमारियां भी मुंह बाए खड़ी रहती है

मीरा-भाग 1 : मीरा के दिल में बसे अंगद ने उसे कौन सा आघात दिया

बचपन में मीरा जब भी उड़ते हुए विमान को देखती थी तो उस की नन्ही सी आंखों में विस्मय छलक उठता. इतने छोटे से विमान में लोग कैसे बैठते होंगे, डर नहीं लगता होगा? और बड़ी होने तक विमान में बैठने का तो सपना भी कभी नहीं आया था.

लेकिन जिस बात का कभी सपना भी नहीं देखा था वह बात आज सच हो गई थी. वक्त ने कुछ ऐसी करवट ली थी कि आज वह विमान में बैठ कर सात समंदर पार जा रही थी. यही एकमात्र सत्य था बाकी सब झूठ. वैसे ऐसा तो कहानियों में या फिर फिल्मों में होता है कि कोई राजकुमार आ कर किसी गरीब घर की लड़की को ब्याह कर ले जाए लेकिन यहां तो वास्तव में उस के जीवन में यही हुआ था.

कालेज की पढ़ाई पूरी होते ही अंगद उस की जिंदगी में कहीं से आ धमका था. उस की एक दूर की रिश्तेदार ने अंगद को दिखाया था और अंगद को वह पसंद आ गई थी. सब काम इतनी शीघ्रता से हुआ था कि सोचने का कुछ मौका ही न मिला. घर वालों की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था. बिना किसी लेनदेन के बेटी को ऐसा घर और ऐसा वर मिला था. किसी भी गरीब मांबाप को इस से ज्यादा क्या चाहिए? बेटी राज करेगी. एक हफ्ते में ही चट मंगनी पट ब्याह हो गया.

अंगद ज्यादा रुक नहीं सकता था. शादी के दूसरे दिन ही उसे जाना पड़ा. मीरा के सब पेपर तैयार करने थे, वीजा जो लेना था. जाने में थोड़ा समय तो लगना ही था. मीरा उतने दिन सासससुर के पास ही रही. बुजुर्ग सासससुर, दोनों ही बहुत अच्छे थे. और फिर थोड़े ही दिनों में मीरा का जाना भी हो गया. आंखों में सपने संजोए मीरा आज विमान में उड़ रही थी. उस ने जो सपना देखा भी नहीं था आज वह हकीकत बन गया था.

विमान में बैठेबैठे मीरा की आंखों ने आज पहली बार कुछ रंगीन सपने देखने शुरू किए थे.

शिकागो के ओहेर एअरपोर्ट पर अंगद उसे लेने आया था. उस के साथ उस की एक दोस्त भी थी. अंगद ने उस की पहचान कराई, ‘‘मीरा, यह मेरी दोस्त, मेरियन. और मेरियन, ये है मीरा.’’

विदेश में तो ये सब सहज है. ऐसा मीरा ने सुन रखा था, इसलिए उसे कुछ बुरा न लगा. हंस के उस ने मेरियन से हाथ मिलाया. मेरियन मीरा का अनूठा सौंदर्य देख कर चकित हो गई थी. तीनों साथ ही घर आए.

नई दुलहन का स्वागतसत्कार तो यहां कौन करे? मीरा ने ऐसे ही घर में प्रवेश किया.

अंगद ने बाहर से कुछ मंगवा कर रखा था. तीनों ने साथ खाया. मीरा को अंगद की बातों में ऊष्मा की कमी महसूस हुई. लेकिन शायद किसी तीसरे व्यक्ति की मौजूदगी के कारण होगा, ऐसा सोच कर मीरा कुछ बोली नहीं. खाना खाने के बाद अंगद ने मीरा को एक कमरा दिखा कर कहा, ‘‘मीरा, आज से यह तुम्हारा कमरा.’’

‘‘मेरा?’’ मीरा कुछ समझी नहीं. उस ने अंगद की ओर देखा.

मीरा की आंखों में तैरता प्रश्न अंगद समझ रहा था. अब स्पष्टता करने की घड़ी आ पहुंची थी.

‘‘देखो मीरा, मेरियन मेरी दोस्त ही नहीं बल्कि मेरी प्रेमिका भी है. हम दोनों 1 साल से साथ रहते हैं. मुझे पता है, तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा, पर क्या करूं? तुम से शादी करना मेरी मजबूरी थी. मेरे मातापिता ने शर्त रखी थी कि अगर मैं किसी भारतीय लड़की से शादी करूंगा तभी उन की मिल्कियत मुझे मिलेगी, इसीलिए तुम से शादी करनी पड़ी. उन्हें मेरियन के बारे में कुछ पता नहीं. वैसे तो मुझे पहले दिन ही तुम्हें ये सब बताना नहीं था, लेकिन मेरियन ने बोला था कि मुझे आज ही बोलना पड़ेगा. सौरी. लेकिन मेरे पास और कोई चारा नहीं था.’’

मेरियन सामने बैठ कर सब सुन रही थी. अंगद के साथ रहने से वह हिंदी समझने लगी थी और थोड़ाबहुत बोल भी लेती थी.

मेरियन मीरा के सामने ही बैठी सब देख रही थी, अब मीरा क्या करेगी?

थोड़ी देर मीरा कुछ बोल नहीं पाई. एक सन्नाटा सा रहा. मीरा का वैसे तो जोरजोर से चीखने का जी हो रहा था लेकिन कौन सुनेगा यहां? कौन था अपना यहां? जिस को अपना मान कर, जिस के सहारे आई थी वह खुद ही…

रोने का कोई मतलब ही नहीं दिख रहा था. इस आदमी ने पैसों के लिए एक नारी की जिंदगी दांव पर लगा दी थी. क्या कर सकती है वह?

थोड़ी देर चुप्पी छाई रही.

फिर मीरा ने धीरे से पूछा, ‘‘अब मुझे क्या करना है?’’

‘‘देखो मीरा, मैं कोई ऐसा बुरा आदमी नहीं हूं. तुम्हें दुख पहुंचाने का मेरा कोई इरादा भी नहीं है और मैं यह भी अच्छी तरह जानता हूं कि इस से ज्यादा दुख की बात तुम्हारे लिए और कोई नहीं होगी. मुझे माफ करना. मेरा प्यार मेरी मजबूरी है. तुम यहां आराम से रह सकती हो. तुम्हें यहां कोई तकलीफ नहीं होगी. पर हमारे बीच पतिपत्नी का कोई संबंध नहीं होगा. तुम भूल जाओ कि मैं तुम्हारा पति हूं और मैं भूल जाऊंगा कि तुम मेरी पत्नी हो. हम दोस्त की हैसियत से साथसाथ रहेंगे.

2 साल के बाद तुम स्वदेश वापस जाना चाहोगी तो जा सकती हो. मेरे मातापिता की शर्त सिर्फ 2 साल के लिए ही है. फिर मुझे उन की संपत्ति मिल जाएगी. और तब अगर तुम चाहो तो दूसरी शादी भी कर सकती हो.’’

मीरा के मन में प्रश्न आया, ‘शादी के बाद एक रात जो हम ने साथ बिताई थी, उस का क्या?’

उस का मन हुआ कि अंगद को झंझोड़ कर इस बात का जवाब मांगे, क्या मुझे मेरा कौमार्य वापस दे सकते हो? लेकिन कोई फायदा नहीं था. उस ने धैर्य रख कर पूछा, ‘‘और यहां रह कर मुझे क्या करना होगा?’’

प्रवासी/विस्थपितों और हाथ से रिक्शा खींचने वालों का दर्द विदेशों में भी गूॅंजा

फिल्म‘‘रिक्शावाला’’को इंग्लैंड के ‘‘कार्डिएफ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’में सर्वश्रेष्ठ सामाजिक संदेश वाली फिल्म के पुरस्कार से नवाजा गया

स्पेन और मेलबर्न इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दर्शकों  का दिल जीतने के बाद जब लेखक व फिल्म निर्देशक राम कमल मुखर्जी की फिल्म हिंदी,भोजपुरी व बंगला भाषा की फिल्म ‘‘रिक्शावाला’’को प्रतिष्ठित कार्डिफ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 2020 के लिए चुना गया,तो किसी ने नही सोचा था कि यह पुरस्कृत फिल्म बन जाएगी. राम कमल मुखर्जी की इस फिल्म का प्रीमियर यूनाइटेड किंगडम में हुआ और राहिल अब्बास सईद,एंड्रिया मोइग्नार्ड और चेरिल इनग्राम द्वारा स्थापित ‘कार्डिफ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’में तीस अक्टूबर को प्रदर्शन किया गया और ज्यूरी ने इसे ‘‘सर्वश्रेष्ठ सामाजिक संदेश वाली फिल्म’’के पुरस्कार से पुरस्कृत किया.जूरी सदस्यों ने फैसला साझा करते हुए कहा-‘‘हम इस पुरस्कार को ‘सिटी आफ ज्वाॅय’शहर में प्रवासियों की समस्या और रिक्शा चालकों के दर्द को बयां करने वाली फिल्म ‘रिक्शावाला’को प्रस्तुत कर सम्मानित करने में गर्व महसूस कर रहे हैं.’’इस वर्ष कोविड महामारी को ध्यान में रखते हुए इसका आयोजन आभासी किया गया.

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फेस्टिवल के फाउंडर और डायरेक्टर राहिल अब्बास सईद कहते हैं-‘‘गत वर्ष हमने राम कमल मुखर्जी की फिल्म‘सीजंस ग्रीटिंग्स’का प्रीमियर किया था, जिसे हमारे जूरी सदस्यों और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली थी.इस साल हमें उनकी फिल्म ‘रिक्शावाला’का प्रदर्शन कर खुशी हुई,जो कोलकाता के  की दिलकष कहानी है. यह दिग्गज अभिनेता ओम पुरी को भी श्रद्धांजलि है,जो एक भारतीय अभिनेता हैं, जिन्होंने अधिकतम ब्रिटिश सिनेमा में काम किया है. ‘‘

फिल्म‘‘रिक्शावाला’’बॉलीवुड अभिनेता अविनाश द्विवेदी की पहली फिल्म है,जिसने इस साल की शुरुआत में 13 वें अयोध्या अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में उसी फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीता था.अविनाश कहते हैं, ‘‘मैं आसमान में हॅंू.मुझे खुशी है कि हमारी फिल्म को कार्डिएफ फेस्टिवल मे पुरस्कृत किया गया.यहएक बड़ा सम्मान है.‘‘

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अविनाश द्विवेदी मूलतः ने बिहार के रहने वाले हैं और फिल्म में उनका किरदार भी बिहार से कोलकाता पहुंचकर रिक्शावाला बनकर हाथ से खींचे जाने वाले रिक्षे को चलाते है.अपने किरदार की बारीकियों को आत्मसात करने के लिए उन्होने अथक प्रयास किया.वह कोलकाता में रिक्शाचालकों के साथ रहे, रिक्शा को नंगे पैर खींचा,चरित्र के लिए बंगाली भी सीखा.

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निर्देशक राम कमल मुखर्जी कहते हैं-‘‘मैं इस सम्मान के लिए कार्डिएफ की ज्यूरी का धन्यवाद अदा करता हॅू .कार्डिफ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल वैश्विक मंच में सबसे प्रतिष्ठित त्योहारों में से एक है. मुझे खुशी है कि हमारी विनम्र फिल्म अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों और फिल्म समीक्षकों के लिए प्रदर्शित की गयी.‘‘
अरित्रा दास,गौरव डागा और शैलेंद्र कुमार कुमार द्वारा निर्मित फिल्म ‘‘रिक्शावाला’’ में कस्तूरी चक्रवर्ती और संगीता सिन्हा की भी अहम भूमिकाएं हैं.फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित छायाकार मधुरा पालित द्वारा उत्कृष्ट रूप से शूट किया गया है.

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संयोग से रिक्शावाला को इस्लामाबाद में आधारशिला लघु फिल्म समारोह में भी चुना गया है और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में सूचीबद्ध किया गया है.स्वर्गीय ओम पुरी की पत्नी नंदिता पुरी कहती हैं, ‘‘मैं जानती थी कि यह फिल्म दुनिया भर में घूमेगी,क्योंकि यह सरल और अभी तक कथा वर्णन करने वाली नहीं है.राम कमल एक संवेदनशीलता और खुद की शैली के साथ आते हैं.उनके किरदार भरोसेमंद और प्यारे हैं.यह ओम के लिए एक आदर्श सम्मान है.”

साथ निभाना साथिया 2: कोकिला बेन के बाद गोपी बहू और अहम ने भी कहा शो को अलविदा

स्टार प्लस का चर्चित शो साथ निभाना साथियां अपने पुराने कलाकारों की वजह से आएं दिन सुर्खियों में बना रहता है. यह साथ निभाना साथिया का सीजन 2 है जिसे फैंस काफी ज्यादा पसंद कर रहे हैं. बता दें कि सीरियल साथ निभाना साथिया से  कोकिला बेन जल्द ही अलविदा कहने वाली है.

दरअसल, रुपल पटेल के साथ मेकर्स ने सिर्फ 20 एपिसोड के लिए कॉन्टैक्ट साइन किया था. जल्द ही रुपल का कॉन्टैक्ट पूरा होने वाला है. जिसके बाद वह इस शो को अलविदा कह देंगी.

 

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Gopi bahu

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इस खबर के सामने आने के बाद फैंस काफी ज्यादा निराश नजर आ रहे हैं. फैंस को कोकिला बेन का किरदार ज्यादा पसंद आ रहा था. ऐसा लग रहा है कि मानों इस खबर के आने के बाद फैंस का दिल टूट गया हो.

 

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वहीं ताजा जानकारी के अनुसार गोपी बहू और अहम की भी विदाई जल्द हो सकती है. एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि बहुत जल्द गोपी बहू और उनके पति अहम भी शो से विदाई ले सकते हैं. कयास लगाए जा रहे है कि साथ निभाना साथिया 2 के स्टोरी में बदलाव किए जा सकते हैं. जिसके बाद पूरे मोदी परिवार को कहानी से हटा दिया जाएगा.

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मोदी परिवार के जाने के बाद सिर्फ गहना पर फोक्स किया जाएगा. सीरियल की कहानी में नया मोड़ आने वाला है जल्द ही गहना की शादी देसाई परिवार में होने वाली है. जिसके बाद नए सफर की शुरुआत होगी.

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हालांकि इस नए बदलाव से फैंस भी हैरान है कि आगे क्या होने वाला है सीरियल में.

मुकेश खन्ना बोले ‘मीटू जैसी समस्याएं को महिलाएं देती हैं बढ़ावा’, लोगों ने किया जमकर ट्रोल

टीवी के स्टार मुकेश खन्ना आए दिन अपने बयान से सोशल मीडिया पर हंगामा मचाते रहते हैं. यह पहली बार नहीं होगा की फैंस को मुकेश खन्ना का बयान नहीं पसंद आया होगा. अब हाल ही में मुक्श खन्ना का एक वीडियो जमकर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसे देखने के बाद फैंस लगातार उनपर सवाल खड़े कर रहे हैं.

दरअसल, वायरल वीडियो में मुकेश खन्ना मर्द और औरतों के बीच के फर्क को समझाने की कोशिश कर रहे हैं. यही नहीं मुकेश खन्ना इस वीडियो में बात करते हुए कह रहे हैं कि मीटू समस्या का कारण औरते हैं. क्योंकि औरतों का काम घर संभालना है और वह घर संभालने की जगह मर्दों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं.जिस वजह से मीटू जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही है.

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आगे उन्होंने कहा कि मर्द अलग होता है औरत अलग होती है. दोनों की रचना अलग –अलग तरह से की जाती है. जब औरते घर से बाहर निकलकर काम करना शुरू कर देती हैं उस दौरान यह सारी प्रॉब्लम होनी शुरू हो जाती है और इन सभी विवादों में सफर करता है उनका बच्चा.

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जिसको कभी मां का प्यार नहीं मिलता वह अपनी आया के साथ बैठकर घर पर सास बहू देख रहा होता है. तभी ये समस्याएं शुरू होती हैं. अब यह मुकेश खन्ना का बयान सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.

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फैंस मुकेश खन्ना के बयान पर कमेंट करते हुए कह रहे हैं कि हमें शर्म आ रही है कि एक समय ऐसा था कि यह हमारे आइडियल हुआ करते हैं लेकिन इनकी गंदी सोच को लेकर हमें शर्म आ रही हैं.

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वहीं एक यूजर ने मुकेश खन्ना को कहा है कि सर आपको अपने इस बयान के लिए सभी से माफी मांगनी चाहिए. जिस पर मुकेश खन्ना का कोई बयान नहीं आया है.

Crime Story: अगर घूस दे देता तो बच जाती जान!

भोपाल का एक नौजवान प्रापर्टी ब्रोकर कैसे पुलिस वालों के हाथों मारा गया और क्यों उसके खाकी वर्दी वाले हत्यारों का कुछ नहीं बिगड़ेगा. इसे समझने में लगभग 2 साल पीछे भोपाल से 350 किलोमीटर दूर मंदसौर का रुख करना जरूरी है, जिससे आसानी से समझ आए कि कानून के हों न हों, लेकिन पुलिस वालों के हाथ वाकई लंबे होते हैं.

जब पुलिस ने चलाई थी 5 किसानों पर गोली…

हादसा या सरेआम हत्या का यह चर्चित मामला 6 जून 2017 का है. इस दिन मंदसौर के किसान अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे कि तभी तथाकथित हिंसा को काबू करने पुलिस वालों ने फायरिंग शुरू कर दी और इतनी दरियादिली से की कि 5 किसानों के जिस्म में सरकारी बारूद पैवस्त हो गया और वे मारे गए. हल्ला मचा तो राज्य सरकार ने एक सदस्यीय आयोग का गठन कर डाला. इस आयोग के अध्यक्ष थे जस्टिस जेके जैन.

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उम्मीद और रिवाज के मुताबिक आयोग अपनी जांच रिपोर्ट तय शुदा वक्त सितंबर 2017 में सरकार को नहीं सौंप पाया. आयोग का कार्यकाल बढ़ता रहा और उसने अपनी रिपोर्ट 11 जून 2018 को मुख्य सचिव को सौंपी लेकिन तब तक नर्मदा जी का बहुत पानी बह चुका था और लोग इस वीभत्स और नृशंस हत्याकांड को आदत के मुताबिक भूल चुके थे. लिहाजा यह रिपोर्ट एक रस्म बनकर रह गई. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित दिग्गज कांग्रेसियों कमलनाथ ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह से लेकर छुट भैये कांग्रेसी नेताओं ने खूब और उतना ही हल्ला मचाया था. जितना शिवम मिश्रा की हत्या पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और दूसरे भाजपाइयों ने मचाया क्योंकि सरकार अब कांग्रेस की है, और कमलनाथ मुख्यमंत्री हैं .

दरअसल में राजनेताओं के वैचारिक मतभेद उनके राजनैतिक स्वार्थ होते हैं. यह बात अब साबित हो रही है. तब कांग्रेस को पुलिस प्रशासन पंगु नजर आ रहा था तो आज भाजपा को लग रहा है कि पुलिस प्रशासन अनियंत्रित हो गया है और राज्य सरकार की संवेदनाएं मर चुकी हैं. बकौल, 25 वर्षीय शिवम मिश्रा को पीट पीट कर मारा गया है. वे गलत नहीं कह रहे हैं और न ही उस यानि मंदसौर हत्या कांड के वक्त कांग्रेस कुछ गलत कह रही थी .

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जेके जैन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बहुत से अगर मगर लगाकर पुलिस को क्लीन चिट दे दी है, और इतने घुमावदार तरीके से दी है कि इस रिपोर्ट पर तरस भी आता है और हंसी भी आती है. संवेदनशील लोगों को रोना आता है जिसकी कोई कीमत किसी बाजार में नहीं. इस रिपोर्ट के दिलचस्प और विरोधाभासी निष्कर्ष के कुछ प्रमुख बिंदु इस तरह हैं –

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  • एक प्रमुख समाचार पत्र के मुताबिक रिपोर्ट में उल्लेख है कि भीड़ को तितर-बितर करने और आत्मरक्षा के लिए गोली चलाना आवश्यक और न्याय संगत था.
  • पुलिस और जिला प्रशासन का सूचना तंत्र कमजोर था. इनके आपसी तालमेल की कमी से आंदोलन उग्र हुआ.
  • आंदोलन के पहले असामाजिक तत्वों को पकड़ा जाना था जिसमें पुलिस ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. अप्रशिक्षित यानि नौसिखिये लोगों से आंसू गैस के गोले चलवाये गए जो कि कारगर साबित नहीं हुए.
  • गोली चलाने में पुलिस ने नियमों का पालन नहीं किया, उसे पहले पांव पर गोली चलाना चाहिए थी .
  • लेकिन (यानि इसके बाद भी) सीआरपीएफ और राज्य पुलिस का गोली चलाना न तो अन्यायपूर्ण है और न ही बदले की भावना से उठाया गया कदम है.
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इस रिपोर्ट को देख कर कहा जा सकता है कि किसानों की हत्या नाजायज नहीं थी. जाहिर है कि पुलिस के सौ खून माफ हैं और वह बेकसूर और बेगुनाह लोगों को सरेआम गोली मारकर, उन्हें परलोक भी पहुंचा दे. तब भी वह हत्यारी नहीं होती बल्कि कानून व्यवस्था, शांति निर्माण और आम लोगों की हिफाजत की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर रही होती है.

यानि शिवम की हत्या नहीं हुई –     

इस रिपोर्ट के मद्देनजर साफ कहा जा सकता है कि शिवम की मौत पुलिस की पिटाई से नहीं हुई थी, बल्कि उसका आखिरी वक्त आ गया था और ब्रम्हा का लिखा टालने का दुसाहस पुलिस ने न करके ईश्वरीय व्यवस्था में आस्था और विश्वास ही प्रदर्शित किया है, क्योंकि वह तो निमित्त मात्र है, फिर यह बेकार का हल्ला मिथ्या है. शिवराजसिंह चौहान सहित तमाम नेताओं समाज सेवियों और आम लोगों को सड़कों पर आकर हल्ला मचाने के बजाय शिवम की मुक्ति के लिए विधि विधान से कर्मकांड करना चाहिए. चूंकि वह अकाल मौत मरा है इसलिए गरुड पुराण का पाठ करवाना चाहिए. उसकी 13 वीं पर जोरदार ब्रह्म भोज आयोजित करते प्रभु से प्रार्थना करना चाहिए कि वह उसे अपने श्री चरणों में प्राथमिकता के आधार पर स्थान दे .

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लेकिन यह थी तो हत्या ही 

लेकिन शिवम मिश्रा की बर्बर हत्या को उसके दोस्त गोविंद पोरिल की जुबानी समझें तो घटना इस तरह है, 18 जून की रात कोई 11 बजे शिवम और गोविंद खजूरी सड़क स्थित ढ़ावे पर खाना खाने जा रहे थे, कि लालघाटी (यह इलाका सीहोर इंदोर रोड पर है) से आगे कब्रिस्तान के पास बीआरटी कारीडोर में शिवम की यूएसवी बेकाबू होकर रेलिंग से टकरा गई. चूंकि एयर बैग खुल गए थे इसलिए दोनों बच गए. ( सुधी पाठकों का ध्यान यहां अग्रिम रूप से खासतौर से  खींचा जा रहा है कि एयर बैग तभी खुलते हैं जब यूएसबी में सवार लोग सीट बेल्ट बांधे होते हैं, इसका मतलब यह है कि ये दोनों लापरवाही से कार नहीं चला रहे थे).

कार टकराई तो लोगों ने डायल 100 को फोन कर दिया. पुलिस वालों ने आते ही इन पर चिल्लाना शुरू कर दिया. इन दोनों ने पुलिस वालों से कहा कि उन्हें छाती में धमक लगी है इसलिए अस्पताल ले चलो, लेकिन पुलिस वाले इन्हें जबरन लालघाटी पुलिस चौकी ले गए. यहां इन दोनों को जमकर पीटा गया. फिर बैरागढ़ थाने ले जाकर भी पीटा गया. शिवम कहता रह गया कि उसे तकलीफ हो रही है. पर किसी ने उसकी एक न सुनी. कुछ देर बाद शिवम को पुलिस बाले बाहर ले गए और जरूरी कागजी कारवाई की बात कही. चंद मिनटों बाद गोविंद बाहर आया तो शिवम उसे नहीं मिला उसकी तलाश में पहले वह हमीदिया अस्पताल और फिर राजदीप अस्पताल गया लेकिन शिवम वहां नहीं मिला. थाने के पीछे सिविल हौस्पिटल पहुंचने पर शिवम मिला तो लेकिन तब तक वह मर चुका था.

20 जून को थी बहन की सगाई…

शिवम भोपाल के भदभदा इलाके की रेडियो कालोनी में रहता था, उसके पिता सुरेश मिश्रा दिव्यांग हैं और साइवर सेल में एएसआई हैं. शिवम की मां सुनीता बीमारी के चलते ठीक से बोल नहीं पाती हैं. आज यानि 20 जून को उसकी बहिन सृष्टि की सगाई होना थी जिसकी तैयारियां वह उत्साहपूर्वक कर रहा था. बहरहाल शिवम के मामा हृदयेश भार्गव की मानें तो पुलिसिया पिटाई से ही उसकी मौत हुई है. उसकी पीठ पर मारपीट के नीले निशान थे. शिवम के एक और दोस्त उसकी ही नाम राशि शिवम सिंह राजपूत का कहना है कि रात 12 बजकर 5 मिनिट पर शिवम का फोन उसके पास आया था उसने एक्सीडेंट होने की बात बताई थी. जब वह मौके पर12 बजकर 40 मिनिट पर कार लेकर पहुंचा तो शिवम की कार तो खड़ी थी लेकिन वहां कोई नहीं था. शिवम राजपूत तुरंत बैरागढ़ थाने पहुंचा जहां शिवम मिश्रा उसे मिला और उसे बताया कि बचाओ पुलिस बाले मार रहे हैं.शिवम राजपूत कुछ कर पाता इसके पहले ही तीन पुलिस वालों उसे अस्पताल ले गए और बताया कि उसे मेडिकल जांच के लिए ले जाया जा रहा है.

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लावारिस हालत में मिली लाश, गायब हुई चेन और पर्स…

दो घंटे बाद शिवम मिश्रा के परिजनों को उसकी लाश लावारिस हालत में सिविल अस्पताल के बाहर पड़ी मिली जिसे बाद में हल्ला मचने पर पुलिस वाले हमीदिया अस्पताल ले गए . अब तक मृतक के रिश्तेदार भी पहुंच गए थे और पुलिस महकमे के आला अफसर भी जिनमें आईजी योगेश देशमुख डीआईजी इरशाद वली प्रमुख थे. शिवम के परजनों ने आरोप लगाया कि उसके गले में पड़ी सोने की 20 तौला वजनी चेन सहित उसका पर्स और मोबाइल फोन गायब है. इन लोगों का कहना था कि यह सारा सामान पुलिस वालों ने लूट लिया है.

सुबह पुलिस की इस बर्बरता की खबर शहर वासियों को लगी तो खूब हल्ला मचा जिसके चलते मामले की न्यायिक जांच शुरू हो गई और टीआई सहित पांच पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया गया. शार्ट पीएम की रिपोर्ट में उम्मीद और रिवाज के मुताबिक शिवम की मौत हार्ट अटेक से होना पाई गई पुलिस की पिटाई से नहीं जैसी कि भोपाल में चर्चा है.

गर्मा रही राजनीति

जिसने सुना उसने खाकी वर्दी वाले इन नर पिशाचों को कोसा. जल्द ही मुद्दा राजनेताओं ने झटक लिया. शिवराज सिंह चौहान ने अपने इरादे जाहिर कर दिये कि वे शिवम की मौत को आंदोलन की शक्ल देकर राज्य सरकार के खिलाफ मुहिम बगैरह चलाते उसकी नाक में दम कर देंगे. ठीक वैसे ही जैसे मंदसौर गोली कांड के वक्त कांग्रेस ने उनकी सरकार के खिलाफ मुहिम चलाई थी. वे न्यायिक जांच को नकारते शिवम की मौत की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं.

इधर अपना राजधर्म निभाते मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी वातानुकूलित सीएम हाउस से ट्वीट कर संवेदनाएं प्रगट कर दीं कि शिवम के परिवार के साथ न्याय होगा. दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. मामले की निष्पक्ष न्यायिक जांच हो रही है .

साफ दिख रहा है कि होना जाना कुछ नहीं है, कमलनाथ ने वही किया जो मंदसौर गोली कांड के वक्त मुख्यमंत्री रहते शिवराज सिंह ने किया और कहा था. पुलिस वालों के खिलाफ  हल्ला बढ़ते देख शायद आपराधिक मामला दर्ज कर लिया जाये लेकिन किसी को सजा होगी ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि बक़ौल पोस्टमार्टम शिवम की मौत हार्ट अटेक से हुई है. पुलिस का वकील पूरी मासूमियत से दलील देगा कि पुलिस वाले तो शिवम को इलाज के लिए ले जाते अपना फर्ज निभा रहे थे अब इत्तफाक से इसी दरमियान उसे हार्ट अटेक आ गया तो उनका क्या कसूर.

आम लोगों की भी यही राय है कि अब जो भी हो लेकिन क्या उससे मिश्रा परिवार का जवान बेटा वापस मिल जाएगा और इन हैवान पुलिस वालों पर किसी का ज़ोर नहीं चलता.  एक हफ्ते पहले ही एक मासूम के बलात्कार के बाद पुलिस वाले उसके घर वालों से कह रहे थे कि लड़की किसी के साथ भाग गई होगी. तब भी हल्ला मचने पर सात पुलिस कर्मियों को सस्पेंड किया गया था उससे पुलिस बालों ने क्या सबक लिया.

सच यह है

भोपाल के किसी भी चौराहे से गुजरें तो वहां चार पांच पुलिस वाले झंडा लहराते नजर आते हैं इसलिए नहीं कि इन्हें असामाजिक तत्वों या अपराधियों को पकड़ना होता है, बल्कि इसलिए कि ये वाहनों की चेकिंग के नाम पर कारों और दोपहिया वाहन चालकों को पकड़ते हैं और हेलमेट और सीट बेल्ट न लगाने पर पैसे वसूलते हैं. यह पुलिस वालों की आमदनी का बहुत बड़ा जरिया है. इसी दौरान ये शरीफ शहरियों से बदतमीजी और गाली गलौच भी करते हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा घूस खाई जा सके.

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अधिकांश पुलिस वाले ड्यूटी के दौरान भी नशे में धुत रहते हैं और इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि इन्हें अनाप शनाप अधिकार मिले हुये हैं. कानून के ये रखवाले मुफ्तखोरी के इतने आदी हो गए हैं कि इन्हें होटल वाले मुफ्त में खाना खिलाते हैं. शराब कारोबारी शराब मुहैया कराते हैं, काल गर्ल्स इन्हें जिस्म परोसती हैं. दलाल इनकी जेबें भरते हैं. अगर ये और दूसरे लोग यह सब न करें तो उन पर उल्टे सीधे आरोप लगाकर उन्हें तरह तरह से तंग किया जाता है.

ऐसा शिवराज के कार्यकाल में भी था और ऐसा कमलनाथ के कार्यकाल में भी है . पुलिस हमेशा ही निरंकुश रही है और रहेगी क्योंकि उसके खिलाफ कभी कुछ नहीं होता उल्टे वह जिस पर बिगड़ जाये तो उसका न जाने क्या क्या बिगड़ जाता है . शिवम के मामले में साफ दिख रहा है कि पुलिस बालों की मंशा उससे सिर्फ घूस खाने की थी जो उसने नहीं दी तो उसे मारा पीटा गया . राक्षस बन गए पुलिस बालों ने उसकी एक नहीं सुनी और मारपीट के बाद उसे लूट लिया और जब वह मर गया तो उसे लावारिसों की तरह छोड़ दिया.

ऊपर जानबूझ कर मंदसौर गोली कांड का जिक्र यह बताने और जताने के लिए किया गया है कि कोई जांच, कोई आयोग, कोई सीबीआई पुलिस वालों का कुछ नहीं बिगाड़ सकती. क्योंकि जांच करने वाले भी इनके सखा बंधु और हमजोली रहते हैं वे भी दबाव में आकर या तगड़ी दक्षिणा ग्रहण कर यह फलसफा ओढ़ लेते हैं कि जाने वाला तो गया. अब बेकार में क्यों पुलिस वालों को फंसाया जाये. जो नेता पुलिस की बर्बरता और हैवानियत पर हाय हाय करते नजर आते हैं. वे भी दरअसल में पुलिस वालों के हमदर्द होते हैं, जो ऐसे मामलों पर इस तरह हल्ला मचाते हैं मानो अब पुलिस वालों की खैर नहीं. कहीं दूसरी जगह पुलिस वाले बेफिक्र और बेखौफ बैठे किसी नई बर्बरता की स्क्रिप्ट लिख रहे होते हैं.

एक सबक

इन मामलों और हालातों को देख आम लोगों को चाहिए कि वे कभी पुलिस वालों की ज्यादतियों का विरोध न करें, बल्कि मुंह मांगी घूस देकर छू हो लें नहीं तो पैसे के साथ साथ इज्जत भी जाएगी और ज्यादा कायदे कानून झांडेंगे तो उनका हश्र भी शिवम जैसा हो सकता है. जो चुपचाप हजार दो हजार रुपए पुलिस वालों को दे देता तो जिंदा भी होता और कफन में लिपटे होने के बजाय आज बहिन की सगाई में सर पर साफा बांधे होता.

पत्नी की बेवफाई याद आते ही दिल तड़प उठता है मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 27 वर्ष है और मेरी पत्नी की 25 वर्ष. हमारी शादी हुए 6 वर्ष हो चुके हैं, हमारे 2 बच्चे हैं. हमारी गृहस्थी बड़ी सुखी थी, किंतु पिछले कुछ माह से मेरी पत्नी मेरे एक मित्र से प्यार करने लगी. एक दिन मैं ने पत्नी के मोबाइल में उसे भेजे रोमांटिक मैसेज पढ़ लिए. मेरी पत्नी ने मुझे सबकुछ साफसाफ बता दिया और यह भी बताया कि उस का यह प्यार केवल मोबाइल मैसेज और चैटिंग तक सीमित रहा है. मैं ने उसे माफ कर दिया. लेकिन मेरे मन में शंका है कि वह फिर मुझे धोखा न दे दे. इसी कारण मैं कभीकभी उस से बेवजह लड़ता और हाथ तक उठा देता हूं. वैसे, मैं आज भी उसे बहुत चाहता हूं किंतु उस की बेवफाई की बातें याद आते ही दिल तड़प उठता है. कृपया कोई उचित सलाह दें.

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जवाब

भूल किसी भी व्यक्ति से हो सकती है और जो अपनी गलती को सुधार ले उसे माफ कर देना चाहिए. आप अपनी पत्नी को प्यार करते हैं तो आप को उसे दिल से माफ भी कर देना चाहिए तथा उस को भलाबुरा कह कर व मारपीट कर उस का अपमान नहीं करना चाहिए. उसे कम से कम एक मौका जरूर देना चाहिए. आप को अपनी पत्नी पर पूर्ण विश्वास कर के फिर से पुराने संबंध कायम करने चाहिए. इस प्रकार आप देखेंगे कि आप का जीवन फिर से खुशियों से भर जाएगा और आप की बसी बसाई गृहस्थी उजड़ने से बच जाएंगी.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

Diwali Special : डिनर में बनाएं मूंगफली और शिमला मिर्च की सब्जी

कई बार हम डिनर बनाते समय यह डिसाइड नहीं कर पाते हैं कि आज खाने में सब्जी क्या बनाएं. ऐसे में आज हम  आपको बताने जा रहे है कि हर दिन एक जैसा खाना बनाने से अच्छा है कि आज कुछ अलग बनाएं. तो चलिए बनाएं आज शिमला मिर्च और मूंगफली की सब्जी.

समाग्री

3- शिमला मिर्च

1 टमाटर कटा हुआ

1 प्याज़ कटा हुआ

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1 टेबलस्पून- मूंगफली

¼ चम्मच- जीरा

¼ टीस्पून- हल्दी पाउडर

स्वादानुसार नमक

¼ टीस्पन- चिकन मसाला पाउडर

आधा टीस्पून- लालमिर्च पाउडर

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चुटकीभर हींग

1 टेबलस्पून तेल

विधि

-शिमला मिर्च को अच्छी तरह से धोकर काट लें. अब कड़ाही में मूंगफली को सूखा भूनकर निकाल लें और थोड़ा ठंडा होने पर छिलका निकालकर मिक्सर में दरदरा पीस लें.

-अब कड़ाही में तेल गरम करके जीरा, हींग और प्याज़ का तड़का लगाएं. प्याज़ हल्का गुलाबी हो जाए तो उसमें शिमला मिर्च डालकर मध्यम आंच पर 5 मिनट तक भूनें.

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-कुकिंग एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सब्ज़ियों को मध्यम आंच पर भूनने से वह अच्छी तरह पक जाती हैं और उसके पौष्टिक तत्व भी नष्ट नहीं होते हैं. अब इसमें एक कटा टमाटर डालकर भूनें. टमाटर थोड़ा पक जाए तो हल्दी, लालमिर्च, नमक और चिकन मसाला डालकर ढंककर पकाएं.

-बीच-बीच में चलाती रहें. जब शिमला मिर्च अच्छी तरह पक जाए तो इसमें दरदरी पिसी हुई मूंगफली डालकर अच्छी तरह मिक्स करें. 2 मिनट चलाने के बाद गैस बंद कर दें.

-गरम-गरम सादे परांठे या मेथी के परांठे के साथ यह सब्ज़ी बहुत स्वादिष्ट लगती है. वैसे इसे आप लंच में दाल-राइस के साथ भी सर्व कर सकती हैं. लंच और डिनर के लिए यह परफेक्ट सब्ज़ी है.

-कुकिंग एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मूंगफली मिक्स कर देने से शिमला मिर्च का कसैला स्वाद चला जाता है और फिर बच्चे भी इसे बहुत चाव से खाएंगे

 

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