मुट्ठीभर चरमपंथी मुस्लिम अपनी हरकतों से यूरोप में उन करोड़ों मुस्लिम शरणार्थियों की जिंदगी को नरक बनाने की कोशिश कर रहे हैं,जिन्हें यूरोप के विभिन्न देशों ने अपने लोगों के बेहतर जीवन में कटौती करके शरण दी है.आज यूरोप में मध्यपूर्व से खदेड़े गए 2.4 करोड़ से ज्यादा मुसलमान रह रहे हैं. ये सब मूलतः लीबिया,सीरिया,ईराक,ईरान,जॉर्डन,लेबनान और अफगानिस्तान के मूल निवासी हैं, जिन्हें इनके देशों के मुस्लिम चरमपंथियों ने ही खदेड़ा है और दुनिया के किसी भी मुस्लिम देश ने इन्हें शरण नहीं दी.
हमें नहीं भूलना चाहिए कि जिस एलेन कुर्दी की हृदयविदारक मौत ने पूरी दुनिया को भावुक कर दिया था,वह भी सीरियाई मूल का एक तीन वर्षीय कुर्द बच्चा था,जिसके माँ बाप को तुर्की से भगाया गया था और वे चोरी छिपे ग्रीस जाना चाहते थे, मगर तुर्की के ही तट में वह खतरनाक डोंगी डूब गयी जिसमें इस मासूम के सहित करीब 12 लोग डूब गए थे. इस मासूम की मौत देखकर दुनिया रो पड़ी थी.यूरोप के तमाम देशों ने इस आँखें नाम करती तस्वीर को देखकर मुस्लिम रिफ्यूजियों को शरण देने के अपने नियम बदले और उन्हें अपनी सरजमीं में तमाम आंतरिक विरोध के बावजूद जगह दी.
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मुस्लिम शरणार्थियों को शरण देने के मामले में फ्रांस सबसे आगे था. यही वजह है कि आज यूरोपीय देश फ्रांस में सबसे ज्यादा मुसलमान हैं. उसी फ्रांस को मुस्लिम चरमपंथी रह रहकर बर्बर निशाना बना रहे हैं.पहले एक शिक्षक का एक 18 वर्षीय युवक सर कलम कर देता है,फिर एक और कट्टर युवक उससे प्रेरणा लेकर एक बूढी औरत सहित तीन लोगों को काट डालता है. अब एक और बहादुर सामने आया है जिसने ने एक पादरी को गोली मार दी है. मुस्लिम चरमपंथियों ने अपनी विकृत मानसिकता से उन करोड़ों शरणार्थी मुसलामानों का जीवन असुरक्षित कर दिया है,जिनके पास कहीं और जाने या कमाने खाने की दुनिया में कोई और जगह नहीं है.
ये चरमपंथी बाबा भारती से डाकू खड्ग सिंह की तरह का व्योहार कर रहे हैं.लेकिन ये भूल रहे हैं कि यूरोपीय देश बाबा भारती की तरह चुप रहने का फैसला नहीं कर सकते. मैन्क्रों ने सार्वजनिक तौरपर कह दिया है कि उन्हें डर है कि फ्रांस में 60 लाख से ज्यादा मुसलमान दूसरे दर्जे के नागरिक न बनकर रह जाएं.मुस्लिम बौधिकों को यह समझना चाहिए,इन्हें इन चरमपंथियों के खिलाफ आगे बढ़कर आना चाहिए. लेकिन हैरानी की बात यह है कि जिस हरकत के लिए इन्हें शर्मसार होना चाहिए, उसकी अनदेखी करके फ्रांस के राष्ट्रपति के खिलाफ गैरजरूरी गोलबंदी का नाटक दिखा रहे हैं.
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गौरतलब है कि 16 अक्टूबर 2020 को पेरिस से 35 किलोमीटर दूर कानफ्लैंस सेंट-होनोरिन में एक 18 वर्षीय मुस्लिम युवक अब्दुल्लाह अंजोरोफ ने 47 वर्षीय शिक्षक सैमुअल पैटी का सिर कलम कर दिया था.यह बर्बर हत्यारा फ्रांस में चेचेन्या से आया हुआ शरणार्थी था.इसकी बर्बरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसने न केवल शिक्षक की बेरहमी से हत्या की बल्कि उसके सिरविहीन शव का वीडियो भी बनाया और इस क्लिप को ऑनलाइन पोस्ट भी कर दिया.जबकि इस इतिहास के शिक्षक का कसूर सिर्फ इतना था कि इसने अपनी कक्षा के छात्रों को अभिव्यक्ति की आजादी के इतिहास का पाठ पढ़ाते हुए, मोहम्मद साहब के उस कैरिकेचर को दिखाया था, जिस पर कई साल पहले हंगामा हुआ था. यह शिक्षक न तो इस कैरिकेचर के बनाये जाने को सही ठहरा रहा था और न ही इसके बनाये जाने पर हुए हंगामे के लिए मुसलमानों की आलोचना कर रहा था.
यह तो सिर्फ अपने छात्रों को यह बता रहा था कि अभिव्यक्ति की आजादी के इतिहास को कहां कहां से गुजरना पड़ता है. लेकिन इस कट्टरपंथी अब्दुल्लाह अंजोरोफ को शिक्षक के शिक्षण का यह ढंग इतना बुरा लगा कि उसने शिक्षक का गला काट दिया.इसी शिक्षक की याद में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए 25 अक्टूबर 2020 को फ्रांस के 42 वर्षीय राष्ट्रपति इमैनुअल मैंक्रो ने कहा कि फ्रांस अभिव्यक्ति के अपने संस्कारों से समझौता नहीं करेगा.गौरतलब है कि फ्रांस के राष्ट्रपति ने इसके पहले अब्दुल्लाह अंजोरोफ के बर्बर हमले को इस्लामिक आतंकवाद बताया था और यह भी कहा था कि ऐसे इस्लाम से पूरी दुनिया को खतरा है.साथ ही मैंक्रो ने अपनी यह आंशका भी जाहिर की थी कि इस्लामिक आतंकवाद के चलते फ्रांस में मौजूद 60 लाख से ज्यादा मुसलमान मुख्यधारा से पीछे जा सकते हैं.
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इस्लामिक जगत ने मैंक्रो की इस टिप्पणी को न सिर्फ इस्लाम के विरूद्ध टिप्पणी करार दिया बल्कि यह भी जताने की कोशिश की कि फ्रांस के राष्ट्रपति शार्ली एब्दो मैगजीन कुछ साल पहले बनाये गये मोहम्मद साहब के कार्टूनों को सही ठहरा रहे हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति के खिलाफ इस किस्म के माहौल बनाने में सबसे बड़ी भूमिका तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैय्यप एर्दाऑन की रही, जिन्होंने 26 अक्टूबर 2020 को टीवी पर प्रसारित अपने एक संदेश में देशवासियों से फ्रांस में बनी चीजों के बहिष्कार का आह्वान किया.तुर्की के इस आह्वान के बाद कई मुस्लिम देशों में यह सिलसिला चल निकला और पाकिस्तान तथा ईरान की संसदों में फ्रांस के राष्ट्रपति के विरूद्ध प्रस्ताव भी पारित किये.पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तो इस उत्साह में इतनी बचकानी हरकत कर गये कि अब पूरी दुनिया पाकिस्तान के कृत्य पर व्यंग्य से बस मुस्कुरा भर रही है.
दरअसल पाकिस्तान की संसद ने फ्रांस से अपने राजदूत को वापस बुलाने का प्रस्ताव पारित कर दिया. लेकिन जब प्रस्ताव पारित हुआ तो इस पर मीडिया के लिए बनायी जाने वाली रिपोर्ट के समय यह पता चला कि फ्रांस में तो पाकिस्तान का कोई राजदूत ही नहीं है.पाकिस्तान की ये हरकत बहुत ही हास्यास्पद रही.लेकिन इस बात पर न तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान झेंपे और न ही तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोऑन को महसूस हुआ कि वह कुछ ज्यादा ही विरोध की हवाबाजी कर रहे हैं.यह पाखंड नहीं तो और क्या है कि चाहे एर्दोआन हो या इमरान खान अथवा पूर्व मलेशियाई प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद इनमें से किसी ने भी उस 18 वर्षीय अब्दुल्लाह अंजोरोफ की एक बार भी आलोचना नहीं की, जो फ्रांस में मुस्लिम देशों से आया.
वह खिलखिलाता सन्नाटा आज भी उस की आंखों के सामने हंस रहा था. बच्चे तो बसेरा छोड़ चुके थे. पति 10 वर्ष पहले साथ छोड़ गए. धूप सेंकतेसेंकते वह न जाने सुधबुध कहां खो बैठी थी. बड़बड़ाए जा रही थी, ‘बड़ी कुत्ती चीज है. दबीदबी न जाने कब उभर आती है. चैन से जीने भी नहीं देती. जितना संभालो उतना और चिपटती जाती है. खून चूसती है. उस से बचने का एक ही विकल्प है. मार डालो या उम्रभर मरते रहो. मारना कौन सा आसान है. यह शै बंदूकचाकू से मरने वाली थोड़ी ही है. स्वयं को मार कर मारना पड़ता है उसे.
हर कोई मार भी नहीं सकता. शरीफों को बहुत सताती है. बदमाशों के पास फटकती नहीं. पीछे पड़ती है तो मधुमक्खियों जैसे. निरंतर डंक मारती रहती है. नींद भी उड़ा देती है. नींद की गोली भी काम नहीं करती है. वह जोंक की तरह खून चूसती है. चाम चिचड़ी की भांति चिपक जाती है.’
वह बहुत कोशिश करती है उसे दूर भगाने की पर वह रहरह कर उसे घेर लेती. वह क्या चीज है जो इतना परेशान करती रहती है उसे. मानो तो बहुत कुछ और न मानो तो कुछ भी नहीं.
वह सोचती है, मां हूं न, इसलिए तड़प रही हूं. भूल तो हुई थी मुझ से. सोच कुंद हो गई थी. समय का चक्र था. उसे पलटा भी नहीं जा सकता. देखो न, उस वक्त तो बड़ी आसानी से सोच लिया था, मां हूं. उस वक्त मुझे अपनी बच्ची की चिंता कम, बहुरुपिए समाज की चिंता अधिक थी. अपनी कोख की जायी का दुख चुपचाप देखती रही. बच्ची के दुख पर समाज हावी हो गया. अरसे से वही कांटा चुभ रहा है. मन ही मन हजारों माफियां मांग चुकी हूं. किंतु यह ‘ईगो’ कहो या ‘अहं’, नामुराद बारबार आड़े आ खड़ा हो गया. दोषी तो थी उस की. फिर भी दोष स्थिति पर मढ़ती आई. शुक्र है, कोई सुन नहीं रहा. खुद से ही बातें कर रही हूं.
नियति कब और कहां करवट बदलती है, कोई नहीं जानता. अब स्थिति यह है कि न तो वह निन्नी से अपने दुख कहती है, न वह ही अपने दुख बताती है. दोनों एकदूसरे की यातनाओं से घबराती हैं. वह अपने शहर में बताती है, ‘मैं आराम से हूं.’ और वह भी यही कहती है. वह आज तक भूमिका बांध रही है, ‘माफी मांगने की.’
बात 3 दशक पहले की है. अचानक यूके से उसे किसी डोरीन का फोन आया:
‘‘मिसेज पुरी, आप के दामाद मिस्टर भल्ला का अचानक हार्टफेल हो गया है.’’
सुनते ही परिवार को मानसिक आघात लगा. पति ने कहा, ‘‘गार्गी, तुम चलने की तैयारी करो.’’
बेटे अर्णव ने भी पिता का साथ देते कहा, ‘‘हां मां, दीदी वहां बच्चों के साथ अकेली हैं. आप के वहां होने से निन्नी दीदी को बहुत सहारा होगा. मैं पासपोर्ट, वीजा, टिकट व दूसरी औपचारिकताएं पूरी कराता हूं.’’
‘‘अर्णव, बेटा, तू क्यों नहीं चला जाता? मैं तो अनपढ़गंवार. एक शब्द अंगरेजी का नहीं आता. मेरा वहां जाने का क्या फायदा?’’
‘‘मां, मुझे कोई आपत्ति नहीं. आजकल प्राइवेट सैक्टर में छुट्टी का कोई सवाल ही नहीं उठता. आप का जाना ही ठीक रहेगा. आप तसल्ली से वहां 5-6 महीने बिता भी सकती हैं. पापा की चिंता मत करना,’’ अर्णव ने आश्वासन देते हुए कहा.
‘‘ठीक है, जैसा तुम दोनों बापबेटे कहते हो, ठीक ही होगा,’’ गार्गी ने तैयारियां शुरू कर दीं. समय बीतता गया. ‘‘बेटा, 2 महीने होने को आए हैं. अब तक तो मुझे निन्नी के पास होना चाहिए था,’’ गार्गी ने विक्षुब्ध हो अर्णव से कहा.
‘‘मां, दूतावास के लोग भी फुजूल की औपचारिकताओं में उलझाए रखते हैं. बैंक का खाता, मकान के कागजात, एक मांग की पूर्ति नहीं होती कि दूसरी मांग खड़ी कर देते हैं.’’
आखिरकार 3 महीने बाद पासपोर्ट तैयार हो गया. उड़ान शनिवार की थी. गार्गी मन ही मन सोच रही थी, उसे तो निन्नी के पास 3 महीने पहले ही होना चाहिए था. गरमियां भी समाप्त हो चुकी थीं. टीवी पर यूके की बर्फ को देखदेख उस की हड्डियां जमने लगीं. भीतरभीतर उसे एक अज्ञात डर सताने लगा. उसे अपनी क्षमता पर शंका होने लगी, कैसे संभालेगी वह स्थिति को, पराए देश में अनजान लोगों के बीच.
गार्गी पहली बार विदेश के लिए अकेली सफर के लिए चल दी. लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर निन्नी के साथ गार्गी के रिश्ते के देवर भी लेने आने वाले थे. उसे इमीग्रेशन से निकलतेनिकलते 2 घंटे लग गए. सुबह के 8 बज चुके थे. बाहर पहुंचते ही चमचमाती नगरी की रोशनी से उस की आंखें चुंधिया गईं. उस रोशनी में उस की बेटी का दुख न जाने किस अंधियारे कोने में दुबक गया. उस की आंखें निन्नी व अपने देवर को ढूंढ़ने में नहीं बल्कि गोरीगोरी अप्सराओं पर टिकी की टिकी रह गईं.
अचानक ‘मां’ शब्द ने उस का ध्यान भंग किया. निन्नी आज मां के गले लग कर खूब रोना चाहती थी. मां ने दूर से ही उसे सांत्वना देते कहा, ‘‘बेटा, संभालो खुद को, तुम्हें बच्चे संभालने हैं,’’ एक बार फिर मां ने जिम्मेदारियों का वास्ता दिया जैसा कि बचपन से करती आई थीं.
मोटरवे पर पहुंचते ही देवर ने कहा, ‘‘भाभीजी, लिवरपूल पहुंचतेपहुंचते 5 घंटे लग जाएंगे. आप लंबा सफर तय कर के आई हैं. चाहें तो कार में आराम कर सकती हैं.’’
‘‘ठीक है, जब मन करेगा तो आंखें मूंद लूंगी,’’ गार्गी ने कहा. मोटरवे पर कार तेज रफ्तार से दौड़ रही थी. सड़क के दोनों ओर खेत नजर आ रहे थे. उन में पीलीपीली सरसों लहलहा रही थी. इतना खूबसूरत दृश्य देख कर गार्गी को यों लगा मानो अभीअभी सूरज की पहली किरण दिखाई दी हो. वह सोचने लगी, कितना अच्छा हो, अर्णव और उस का परिवार भी यहीं पर बस जाएं. घर चल कर निन्नी से बात करूंगी. मां, बच्ची का गम भूल कर अपने बेटे को बसाने की बात सोचने लगीं.
निन्नी टुकुरटुकुर मां की ओर देखती रही. गार्गी प्यार से निन्नी का सिर अपनी गोद में रख सहलाने लगी. सहलातेसहलाते उस का मन इंपोर्टेड चीजों की शौपिंग की ओर चला गया. मन ही मन खरीदारी की सूची तैयार करने लगी. वातावरण में कुछ देर के लिए चुप्पी सी छा गई.
सुबह गार्गी नीचे आ कर बैठ तो गई किंतु बारबार रात की अधूरी नींद उस की पलकों पर आ बैठती.
बच्चे स्कूल चले गए, निन्नी अपने काम पर. यहां मौसम का तो यह हाल है, न सुबह होती है न दोपहर, बस सांझ ही सांझ रहती है. कभीकभी बादलों के बीच से थोड़ा सा सूरज का मुंह बाहर निकलता है तब पतलीपतली छाया पूर्व से पश्चिम की ओर भागने लगती है. तब होंठों पर दबी सी मुसकराहट आ मिलती है.
घर पर काम भी अधिक न था. जितना गार्गी को समझ आता, कर लेती थी. गार्गी का मन अपने घर जाने को उचाट होने लगा था. मांबेटी में संकोच और तनाव की चट्टान खड़ी हो गई. दोनों अपनीअपनी चुप्पी की रेखाएं खींचे दिन काट रही थीं.
एक दिन बच्चे अपने स्कूल का काम करने में व्यस्त थे. गार्गी ने चुप्पी भंग करते हुए कहा, ‘‘निन्नी बेटा, तेरे पापा कह रहे थे कि अब तक तो निन्नी संभल गई होगी. तुम्हें गए भी 4 महीने हो गए हैं. कमल की शादी तय हो गई है. अगले महीने तक आ जाओ.’’
‘‘शादी? चाचाजी की? अभी 2 महीने पहले ही तो चाचीजी की मृत्यु हुई है. उन की तो राख भी ठंडी नहीं हुई. शादी है या मजाक?’’
‘‘निन्नी, क्या हो गया है तेरी बुद्धि को. कमल पुरुष है. भला कैसे संभाल सकता है गृहस्थी को? उस की भी व्यक्तिगत कई तरह की जरूरतें हैं. जीवन का रथ दो पहियों से ही चलता है. लड़की भी देखीभाली है. उस की साली है. बच्चों की मौसी. बच्चों के साथ सौतेला व्यवहार भी नहीं करेगी. स्थिति को ध्यान में रखते हुए मेरा वापसी का टिकट कटा दे.’’
‘‘मां, मैं कुछ भी कहती हूं तो आप को बुरा लगता है. मेरी इस बात को गलत मत लेना, समझना. जिस दिन से आप आई हैं, आप के मुख से ‘तेरा भाई’, ‘तेरा मामा’, ‘तेरा चाचा’ तीनों की पत्नियों के देहांत होते ही उन की दुलहनें तैयार खड़ी थीं. कभी उन सब की सालियों से भी पूछा या फिर उन की मजबूरी का लाभ उठाया. एक ही तर्क के साथ कि आदमी हैं, उन के जीवन की नाव अकेले कैसे चलेगी? बच्चे कैसे संभलेंगे? उन की जरूरतें हैं? नौकरियां करते हैं जबकि घर पर दादादादी, बूआ, चाचाचाची, नौकरचाकर सभी हैं. दूर क्या जाना, अर्णव भैया जान छिड़कते थे भाभी पर. भाभी के जाते ही, आप ही तूफान ले आई थीं, ‘हाय मेरा बेटा अकेला रह गया है. कैसे काटेगा जीवन? कौन करेगा उस की देखभाल?’ भैया तो आप के साथ ही रहते थे. क्या भैया सचमुच अकेले थे? उन को खाना नहीं मिल रहा था? कपड़े धुले हुए नहीं मिल रहे थे? बच्चे नहीं पल रहे थे? इतनी जल्दी भी क्या थी? क्या पुरुष इतना कमजोर है? या हम औरतों ने उसे बना दिया है? सदियों से हम नारियों का पुरुष की इतनी हिफाजत करने का परिणाम देखा है, इसीलिए वह अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बना कर हम पर अत्याचार करता आया है और करता रहेगा.
‘‘पिछले 4 महीनों से देख रही हूं, आप को सब की चिंता है. अपनी भी. केवल मेरी नहीं. कभी सोचा है मेरे बारे में. इस बियाबान घर में, परदेस में छोटेछोटे बच्चों के साथ लंबीलंबी सूनी रातें कैसे काटूंगी? क्या मेरे बच्चों को बाप की और मुझे पति की जरूरत नहीं? क्या मेरी जरूरतें नहीं हैं, क्यों? क्योंकि मैं बेटा नहीं हूं.
‘‘पापा ने तो कभी भेदभाव किया नहीं, फिर आप में भेदभाव के इतने तीक्ष्ण लक्षण कैसे आ गए? माताएं बेटों को
18 महीने पेट में रखती हैं क्या? बेटा पैदा होने पर अधिक पीड़ा होती है क्या? क्या बेटा आप को उतना ही प्यार देता है जितना बेटियां? मां, अपने अंतर्मन में झांक कर देखो. अगर हम औरतें ही बेटेबेटियों में भेदभाव रखेंगी तो कैसे मिलेगा बराबर का सम्मान लड़कियों को? कौन देगा? पति, ससुराल या समाज?
‘‘पैदा होते ही लड़कियों को मांबाप के घर में पलपल सुनना पड़ता है, पढ़ाना मत लड़की को? पैसा मत बरबाद करना बेटियों पर? वे पराया धन हैं. वहीं ससुराल में पैर पड़ते ही उन्हें सुनना पड़ता है, बाहर से आई है, पराई है, अपनी भला कैसे बन सकती है?
‘‘अब आप ही बताइए, क्या पहचान है बेटियों की? इन का कौन सा घर है, मांबाप का, ससुराल का या कोई नहीं? बेघर.
‘‘मां, आप को याद है मेरी सहेली गुड्डो? तलाक के बाद उस ने पूरे परिवार को अमेरिका में बुला कर स्थापित किया. बहनभाइयों की शादियां कीं. मांबाप भी सदा उसी के साथ रहे. पिछले 30 वर्षों में उन्हें एक बार भी ध्यान नहीं आया कि गुड्डो को भी पति की और उस के बेटे को बाप की जरूरत हो सकती है. मांबाप का फर्ज नहीं कि बेटी की दूसरी शादी कर दें?
‘‘आप बेफिक्र रहिए, मेरा दूसरी शादी करने का अभी कोई विचार नहीं है. मैं तो आप की दबी सोच की चेतना को जगा रही हूं. आप को एहसास दिला रही हूं. इस लड़कालड़की के भेदभाव को मिटाने का बीड़ा अगर हम स्त्रियां नहीं उठाएंगी तो कौन उठाएगा? अगर हम एक दीपक जलाएंगे, उस के संगसंग हजारों दीपक दिलों में उजाला करते जाएंगे.’’
उस दिन निन्नी ने गार्गी की वर्षों से सुप्त चेतना पर बर्फीला पानी डाल कर जगा दिया. आज बेटी के ताने, उलाहने, कटाक्ष अर्थहीन नहीं थे. उन का अर्थ था, उन में लौ थी. ठीक ही तो कह रही थी निन्नी, मां, तुम्हारी सोच अपाहिज हुई बैठी है. गूंगेबहरे व अंधों की तो लाचारी है पर आप तो जानबूझ कर अंधीबहरी हुई बैठी हैं उस कबूतर की भांति यह जानते हुए भी कि वह उड़ सकता है. किंतु बिल्ली को देखते ही आंखें मूंद लेता है और बिल्ली उसे खा जाती है. जान किस की जाती है, कबूतर की न?
‘‘मां, बेशक नारी पर समाज के अंकुश लगे हैं किंतु उस की सोच तो स्वतंत्र है, पराधीन नहीं.’’
गार्गी सोचने पर मजबूर हो गई. क्यों आज उस की सोच आजाद नहीं? क्यों उस ने अपनी सोच को समाज के रंग में ढलने दिया? उस ने स्वयं को च्यूंटी काट कर महसूस किया और बड़बड़ाने लगी, ‘मैं तो हाड़मांस की जिंदा औरत हूं. घर में भेदभाव का बीज तो मां ही बीजती है. क्या कभी सुना है ससुर ने बहू पर अत्याचार किए, उसे जला डाला? इसी सोच के कारण आज नारी की अस्मिता संकट में है.’
उस रात गार्गी मन में जागृति की लौ ले कर चैन से सोई. उस ने ठान लिया था, सुबह साहस बटोर कर बेटी से माफी मांग लेगी. फिर जरूर अपनी सोच बदलने का दीपक जलाएगी, जिस की लौ से और दीपक जलेंगे. मन ही मन भयभीत भी थी बेटी की सोच से.
सुबह उठते ही गार्गी डरतेडरते बोली, ‘‘बेटा निन्नी, बेटा मुझे…’’
‘‘जी मां, कहिए.’
‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ माफी शब्द उस के गले में अटका रहा.
दोनों के लिए एक नई सुबह थी. निन्नी ने संक्षिप्त मुसकराहट से कहा, ‘‘मां, बस, एक बार बेटी को बुढ़ापे की लाठी बनने का अवसर दे कर देखिए. उसे बेटे सा सम्मान दे कर देखिए.’’
गार्गी ने निन्नी की ओर प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘बेटा, कुछ इच्छाएं याद आ रही हैं. कुछ कामनाएं घुमड़ रही हैं. अब तो क्रिसमस के बाद ही जाऊंगी.’’
आज फिर गार्गी का अहं यानी ईगो आड़े आ खड़ा हुआ. एक बार फिर वह ‘माफी’ शब्द निगल गई और सवाल सुलगते रह गए.
खानपान के विकार इंसान के गंभीर मनोरोग संबंधी दशा की ओर संकेत करते हैं. इस में महिलाएं आगे हैं. कभी घरगृहस्थी की व्यस्त जीवनशैली के चलते तो कभी औफिस जाने की जल्दबाजी में महिलाएं पोषणयुक्त खाना व नियमित खुराक नहीं ले पाती हैं. कई बार बिना खाए सो जाना, रात को 3-4 बजे खाना या फिर चलतेफिरते खाना खाने से उन्हें कई तरह की शारीरिक दिक्कतों से दोचार होना पड़ता है. खानपान के ये विकार महिलाओं को बीमार बना सकते हैं.
बुलिमिया से पीडि़त लोग चोरीछिपे जम कर खाना खाते हैं और फिर मल त्याग करते हैं. बुलिमिया नरवोसो यानी बीएन से पीडि़त व्यक्ति अतिरिक्त कैलोरी से छुटकारा पाने के लिए नुकसानदेह तरीके अपनाते हैं. उदाहरण के लिए, जबरदस्ती उलटी करते हैं, लैक्सेटिव लेते हैं, जम कर खाना खाने के बाद एनीमा लेते हैं या अतिरिक्त कसरत करते हैं.
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युवकों व पुरुषों के मुकाबले युवतियों व महिलाओं में बुलिमिया होने की आशंका अधिक रहती है. बुलिमिया का असर अकसर किशोरावस्था के आखिरी पड़ाव पर या युवावस्था के शुरुआती चरण में देखने को मिलता है.
चिंता संबंधी विकार या आत्मविश्वास में कमी जैसी मनोवैज्ञानिक व भावनात्मक समस्याएं भी भोजन संबंधी विकार में योगदान दे सकती हैं.
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टीवी और फैशन पत्रिकाओं में अकसर दुबलीपतली मौडल्स और अभिनेता दिखाई देते हैं. ये तसवीरें सफलता और लोकप्रियता के साथ दुबलेपन की बराबरी दिखाती हैं. ऐथलीट, अभिनेता, डांसर व मौडल्स में खानपान संबंधी विकार उभरने का खतरा अधिक रहता है. वे बेहतर प्रदर्शन के लिए अपने खानपान को प्रतिबंधित करते हैं. इस विकार के चलते ये नुकसान हो सकते हैं :
– 35-70 फीसदी की दर से जीवनभर अवसाद एवं परेशानी.
– एल्कोहल और पैसे का गलत इस्तेमाल.
– डिहाइड्रेशन.
– रजोनिवृत्ति में अंतराल या अनियमितता.
– मलोत्सर्ग के लिए लैक्सेटिव पर निर्भरता.
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– भविष्य में जम कर खाना खाने का बढ़ता जोखिम.
– दांतों में खराबी और कीड़ों की गंभीर समस्या.
2. बिंज ईटिंग डिसऔर्डर :
बीईडी यानी बिंज ईटिंग डिसऔर्डर में उचित मलत्याग की आदत के बगैर जम कर खाने की आदत होती है. जम कर खाना खाने की आदत इन तथ्यों से संबंधित होती है :
– सामान्य से कहीं अधिक तेजी से खाना.
– असुविधाजनक रूप से पेट भरने तक खाते रहना.
– शारीरिक रूप से भूखा महसूस न करने पर भी बड़े पैमाने पर खाना.
– खाने की मात्रा की वजह से शर्म महसूस करने के कारण अकेले खाना.
– खाने के बाद परेशान, अवसादग्रस्त या अपराधबोध होना.
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बिंज ईटिंग डिसऔर्डर औसतन 3 महीनों में एक बार देखने को मिलता है. इस का असर तब देखने को मिलता है जब लोग खानेपीने के नियमों से सख्ती से छुटकारा पाते हैं. भूख के असर को कम करने के लिए, खानेपीने की सख्त आदत के अंतर्गत, शरीर व्यवहार के एक नए रवैये की तैयारी कर रहा होता है जिस के तहत व्यक्ति कम समय में जम कर खाना खाता है.
सख्ती से खानपान की आदतों यानी डाइटिंग और बिंज ईटिंग के बीच संबंध को एक दुष्चक्र की तरह माना जा सकता है. बिंज ईटिंग अकसर डाइटिंग के बाद देखने को मिलती है और बिंज ईटिंग के बाद डाइटिंग के मामले भी देखने को मिलते हैं.
3. नाइट ईटिंग सिंड्रोम :
एनईएस यानी नाइट ईटिंग सिंड्रोम में इवनिंग हाइपरफाजिया (दिनभर की कुल कैलोरियों का 25 फीसदी या इस से अधिक उपभोग शाम के खाने के बाद), रातभर जागना और प्रति सप्ताह 2 या अधिक बार खाना शामिल है.
एनईएस का परीक्षण करने के लिए निम्न कारणों में से 3 होने जरूरी हैं :
– सुबह भूख न लगना.
– रात में खाने की इच्छा.
– यह मानना है कि रात में सोने के लिए खाना जरूरी होता है.
– अवसादग्रस्त रहना.
– सोने में परेशानी होना.
जरूरत से अधिक वजन एनईएस के साथ जुड़ा हुआ है क्योंकि 28 फीसदी लोगों को गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी की जरूरत होती है. एनईएस के साथ डायबिटीज का खतरा भी रहता है. एनईएस से पीडि़त कई लोगों को अवसाद और बेचैनी की भी समस्या होती है.
4. एनोरेक्सिया नरवोसा :
एएन यानी एनोरेक्सिया नरवोसा खानेपीने का एक ऐसा विकार है जिस में लोग भूखे रहने तक वजन कम करने की कोशिश करते हैं. एएन की शुरुआत युवावस्था में होती है. एएन की जांच भावनात्मक व वित्तीय रूप से परिवारों के लिए खतरनाक होता है क्योंकि बीमारी की अवधि 7 वर्षों की होती है व इस दौरान विकलांगता व समय से पहले मृत्यु का जोखिम होता है.
– बीएमआई 18 किलोग्राम/वर्गमीटर से अधिक होना.
– लंबे समय तक वजन घटने की वजह से रजोनिवृत्ति खत्म हो जाना.
– मोटे होने का पैथोलौजिकल डर.
– कैलोरियों और खाने में वसा के साथ मोटापा.
– खाने की विधि या दूसरों के लिए खाना बनाने को ले कर तन्मयता लेकिन खुद खाना न खाना.
– किसी के सामने खाने से मना करना, छिपना या खाने से बचना.
– जरूरत से अधिक व्यायाम.
– दूसरों द्वारा खुद को दुबला बताए जाने के बाद भी मोटा मानना.
– अवसादग्रस्त या मूड खराब होना.
– सनकीपन, रीतिरिवाजों, प्रतिबद्धताएं और औब्सेसिव कंपल्सिव डिसऔर्डर.
– खाने को ले कर अत्यधिक सतर्कता, शर्म और डर.
– अकेलेपन की वजह से दोस्तों और परिवार से दूर भागना.
एएन में आधी से अधिक मौतें आत्महत्या की वजह से होती हैं.
उपचार
बीएन, बीईडी और एनईएस के लिए मुख्य उपचार के प्रमाण मुख्यरूप से मनोवैज्ञानिक प्रयासों-व्यक्तिगत या सामूहिक पर आधारित हैं. डायटीशियन इनपुट एवं पेशेवर थेरैपी के लिए इस्तेमाल की जाने वाली स्वयं सहायता से संबंधित पुस्तकें और सामग्रियां मुहैया कराना भी उपयोगी है.
मोटे और अत्यंत मोटे मरीजों को अकसर मोटापे की वजह से होने वाली अन्य समस्याओं के उपचार की जरूरत होती है. असफल होने के जोखिम की वजह से खानपान के विकारों का उचित उपचार होने के बाद उन्हें अकसर बेरियाट्रिक सर्जरी के लिए कहा जाता है.
मौजूदा दिशानिर्देशों के मुताबिक, इस प्रक्रिया के बारे में विचार किए जा रहे मरीजों की जांच की जानी चाहिए और अगर उन में मनोविकारों का संदेह हो तो उन्हें मनोवैज्ञानिक सेवाओं की मदद दी जानी चाहिए.
एएन के मामूली और नाममात्र के मामलों के लिए वाह्यरोगी उपचार की सलाह दी जाती है. मनोवैज्ञानिक उपचार फिलहाल पीडि़त की इच्छा पर निर्भर है.
एक डायटीशियन से सलाह और व्यावसायिक एवं पेशेवर कार्यों के साथ संचार कुशलता कार्यशालाएं एवं प्रेरणादायक साक्षात्कार कुशलता प्रशिक्षण के साथ परिवार एवं कैरियर संबंधी प्रयास उपचार का अहम हिस्सा हैं.
गंभीर मामलों के लिए अस्पताल में भरती होने और मल्टीस्पैशलिटी रवैये की जरूरत होती है.
5. ईटिंग डिसऔर्डर
– ईटिंग डिसऔर्डर्स यानी ईडीएस यानी खानपान के विकार एक मनोवैज्ञानिक बीमारी है और इस का खतरा महिलाओं में अधिक होता है.
– प्रभावित व्यक्ति, उस के परिवार, दोस्त और समाज पर ईडीएस का गहरा असर पड़ता है.
– ईडी पर प्रत्यक्ष स्वास्थ्यसेवा लागत का सर्वाधिक अनुपात 72 फीसदी है. ब्रिटेन में ईडी के उपचार की लागत 8-10 करोड़ पाउंड प्रतिवर्ष है. इस लागत का 60 फीसदी तक 25 वर्ष से कम आयुसमूह के लिए होता है.
– ईडी की वजह से समय से पहले होने वाली मौतें मोटापे और मोटापे से जुड़ी परेशानियों के चलते होती हैं. ईडी में आत्महत्या से जुड़े काफी मामले देखने को मिलते हैं.
– इस विकार का असर उर्वरता पर भी पड़ सकता है. इस का नकारात्मक असर गर्भावस्था पर भी पड़ सकता है.
– इस का उपचार मुश्किल होता है और उपचार का असर बहुत कम होता है. इसलिए बेहतर उपचार और परिणाम के लिए समय पर कोशिश करना आवश्यक है.
तमाम फसलों में कटाई व मड़ाई करने के बाद निकले भूसे को भरने में बहुत समय लगता है और तकलीफ भी बहुत होती है. हाथ से भरने और ज्यादा समय लगने के कारण लागत भी बढ़ जाती है. कई बार तो समय पर भूसा न भर पाने के कारण खेत पर ही काफी भूसा हवाओं द्वारा उड़ा दिया जाता है या फिर बरसात की चपेट में आने के कारण बुरी तरह से भीग जाता है.
मगर अब चिंता करने की बात नहीं है, क्योंकि भूसा भरने वाली खास मशीन बाजार में आ चुकी है. इसे मध्य प्रदेश की एक निजी कंपनी ने ईजाद किया है. यह मशीन स्ट्रा ब्लोअर के नाम से बाजार में आ गई है. स्ट्रा ब्लोअर से संबंधित जानकारियां इस तरह हैं :
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* यह मशीन पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित है. ट्रैक्टर चालित इस मशीन को किसी भी कंपनी के ट्रैक्टर के सहारे आसानी से चलाया जा सकता है. इस का आकार देखने में तोपनुमा होता है.
* भूसा भरने और निकालने के लिए इस मशीन में 6-6 इंच लंबाई के 2 पाइप लगाए जाते हैं, जिन्हें सुविधा और जरूरत के मुताबिक घटायाबढ़ाया जा सकता है.
* भूसा भरने वाले पाइप को सक्सन पाइप और भूसा बाहर निकालने वाले पाइप को डिलीवरी पाइप कहा जाता है.
* इस मशीन से 15 मिनट में 1 ट्राली भूसा भरा जा सकता है.
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* इस के जरीए 20 फुट ऊंचाई तक भूसा भर सकते हैं.
* अगर भूसा गीला हो तो भी इस मशीन से भूसा भरने में कोई परेशानी नहीं होती है.
* कंपनी सीधे बिक्री का काम करती है, जिस से देश भर में कहीं इस के डीलर नहीं हैं. इस की बुकिंग कर के इसे हासिल कर सकते हैं.
* सीधे बिक्री के पीछे कंपनी का मानना है कि इस से किसानों को सस्ती दर पर मशीनें मिल जाती हैं.
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ज्यादा जानकारी के लिए कंपनी के प्रबंध संचालक भगवान दास विश्वकर्मा के मोबाइल नंबर 09425483416 पर संपर्क किया जा सकता है. कंपनी का पूरा पता इस प्रकार है :
भारत कृषि यंत्र उद्योग, उदय नगर कालोनी, सागर रोड, विदिशा (मध्य प्रदेश)
गार्गी ने निन्नी की बातों को नजरअंदाज कर के पलक झपकते ही 200 पाउंड खर्च कर डाले. इतने पैसों की अहमियत से अनजान थी वह? शायद पहली बार उसे पैसे खर्च करने की छूट मिली थी.
‘‘निन्नी, तुम बेकार में अपने भाई के पीछे क्यों पड़ी रहती हो? शायद भूल रही हो, वंश उसी से चलने वाला है.’’
ऐसी बातें सुन कर निन्नी के होंठों पर फीकी मुसकान उभर आई. घर पहुंचते ही सब ने गरमागरम चाय पी, निन्नी सोफे पर आंखें मूंद आराम करने लगी.
गार्गी भी ऊपर अपने कमरे में आराम करने चली गई. कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला. सुबह की खटपट से उस की आंख खुली. बच्चे स्कूल के लिए तैयार हो रहे थे, निन्नी काम के लिए.
सुबह से शाम तक टैलीविजन देखना गार्गी की दिनचर्या में आ गया था. निन्नी कब घर वापस आई, कब गई, उसे पता ही नहीं चलता.
शाम को काम निबटा कर दोनों मांबेटी बैठी थीं. बच्चे स्कूल का काम कर रहे थे. गार्गी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘निन्नी, आज कमरे की खिड़कियां बंद करते समय मेरी निगाह पूरण की अलमारी पर पड़ी. बेटा, तुम क्यों नहीं उस का सामान समेट देतीं. सुनो, यह कुरसी भी हटा दो यहां से. इसे देख कर अकसर तुम उदास हो जाती हो.’’
इतना सुनते ही निन्नी तिलमिला उठी, ‘‘मां, बात यहीं समाप्त कर दीजिए. यह पूरण का घर है. हम उस की ही छत के नीचे खड़े हैं. उस की मिट्टी को मत कुरेदो. मर चुका है वह. नहीं आएगा अब वापस. कभी नहीं आएगा. बहुत कोस चुकी हैं आप उसे, अब बंद करो कोसना. मैं ने पति को और मेरे बच्चों ने पिता को खोया है. मां, आप के आगे हाथ जोड़ती हूं, मुझे जबानदराजगी के लिए मजबूर मत करो. पूरण की चीजें आसपास होने से मुझे उस के होने का एहसास होता है. उस के कपड़ों में से उस की महक आती है. मेरे उदास, कमजोर क्षणों में उस की चीजें मरहम का काम करती हैं. मेरा यही तरीका है अपने दुख से निबटने का. कई बार तो ऐसा लगता है, अगर कहीं वह लौट आया तो उसे क्या उत्तर दूंगी,’’ इतना कहते ही वह फूटफूट कर रोने लगी.
रोतेरोते कहती रही, ‘‘बचपन से ही आप के मुख से यह सुनती आई थी, उस की नाक पकौड़ा है, चीनी लगता है, वह टुंडा है, उस के चुंदीचुंदी आंखें हैं. बड़ी अकड़ से आप ने उसे चुनौती दी थी. वह भी शतप्रतिशत खरा उतरा था आप की चुनौती पर. इतना बड़ा घर, रुतबा इज्जत सभी कुछ तो प्राप्त किया था उस ने.’’
कहतेकहते वह फिर सुबकसुबक कर रोने लगी.
‘‘गलत ही क्या कहा है मैं ने? 2 बेटों की जिम्मेदारी छोड़ गया है. मुझे यहां और नहीं रहना. टिकट कटा दे मेरा वापसी का,’’ गार्गी ने झुंझला कर कहा.
‘‘बस, यही औजार रह गया है आप के पास?’’
एकाएक कमरे में बोझिल सा सन्नाटा छा गया. निन्नी और गार्गी के बीच चुप्पी की दीवार खड़ी हो गई थी. गार्गी ने अपना मुंह बंद रखने की ठान ली. समय कब पतझड़ व गरमियों का घेरा पार कर सर्दी की गोद में सिमट गया, पता ही नहीं चला. सर्दी बढ़ती जा रही थी. बर्फ, कोहरा, सर्द हवाओं ने अपना काम शुरू कर दिया था.
सुबह के 9 बजने को थे. अभी तक कोहरे की धुंध नहीं छटी थी. सूरज उगा या नहीं इस का अनुमान लगाना कठिन था. प्रतिदिन घर से सब के चले जाने के बाद गार्गी टैलीविजन में लीन रहती.
स्कूल से घर आते ही आज दोनों नाती चिल्लाने लगे, ‘‘नानी, भूख लगी है.’’
‘‘थोड़ा सा इंतजार करो. अभी तुम्हारी मम्मी आ जाएंगी,’’ इतना कह कर गार्गी फिर टीवी सीरियल में लीन होे गई.
सड़कों पर बर्फ पड़ने के कारण निन्नी को घर पहुंचने में देर हो गई. घर पहुंचते ही बच्चे बोले, ‘‘मम्मी, देर से क्यों आई हैं आप? भूख के मारे दम निकल रहा है.’’
‘‘नानी से क्यों नहीं कहा?’’ निन्नी ने झुंझलाते हुए कहा.
‘‘कहा था, नानी ने कहा कि मम्मी आने वाली हैं.’’
निन्नी ने चायनाश्ता बना कर सब को परोसा. रात के खाने के बाद बच्चे अपने कमरे में चले गए.
‘‘निन्नी, जब से आई हूं तब से तुम से कह रही हूं कि अपने कमल चाचा को चाची के पूरे होने पर शोक प्रकट कर दो,’’ गार्गी ने कहा.
निन्नी बोली, ‘‘मां, मैं हर रोज देखती हूं कि जब मैं काम से घर आती हूं, आप टीवी में इतनी मगन होती हैं कि मेरी उपस्थिति का भी एहसास नहीं होता आप को, क्यों? क्योंकि मैं भैया नहीं हूं. यों कहूं तो ज्यादा ठीक होगा, लड़का जो नहीं हूं.
‘‘मुझे याद है, जब भी भैया के काम से घर आने का समय होता तो भाभी के होते हुए भी आप समय से पहले ही उन के लिए चायपकौड़े या समोसे मेज पर तैयार रखतीं और बच्चों से कहतीं, ‘पापा से दूर रहना, तुम्हारे पापा काम से हारेथके आए हैं.’ यही नहीं, उन के हाथमुंह धोने के लिए तौलियापानी सबकुछ तैयार रहता. अगर गरमी होती तो आप उन्हें पंखा भी झलतीं. ठीक कह रही हूं न? जवाब दो? यहां मैं भी तो नौकरी करती हूं. घर चला रही हूं. मां के कर्तव्यों के संग पिता की भूमिका भी निभा रही हूं. मुझे तो चाय का प्याला क्या देना, मुझी से सभी अपेक्षाएं करते हैं. आप एक औरत होते हुए भी आखिर क्यों औरत को उस की अहमियत से दूर कर रही हैं? क्यों उसे बारबार याद दिलाती हैं कि वह अस्तित्वहीन है? इतना भेदभाव क्यों, मां?
‘‘आप अपनी अहमियत जतलाने से कभी नहीं चूकतीं कि मैं मां हूं. यहां तक कि जब कोई पूरण का शोक प्रकट करने आता है, आप उस के सामने अपनी समस्याएं रख कर उसे अपने बखेड़ों में उलझा लेती हैं. आप क्यों भूल जाती हैं कि आप मेरे पति की मृत्यु पर शोक प्रकट करने व बेटी को सहारा देने आई हैं. छुट्टियां मनाने नहीं.’’
गार्गी ने बेटी के सवालों का उत्तर न देने की मंशा से गूंगेबहरे सी नीति अपना ली.
मांबेटी में परस्पर विरोधी विचारों का युद्ध चलता रहा. विचारों का अथाह समुद्र फैल गया जिस की तूफानी लहरों ने दोनों के दिलोदिमाग को अशांत कर दिया.
गार्गी अपने सोने के कमरे में चली गई. उस का सिर चकरा रहा था. कमरे में रात का धुंधलका चुपके से घिर आया था. मानो कनपटियों से धुएं की 2 लकीरें ऊपर उठती हुई सिर के बीचोंबीच मिलने की चेष्टा कर रही हों. उस के सीने में बेचैनी उतर आई थी. निन्नी ने उस की जंग लगी सोच का बटन दबा दिया था. उस के मस्तिष्क में उथलपुथल होने लगी, गार्गी नाराज नहीं थी. सोच रही थी, निन्नी ठीक कहती है. अपने ममत्व का गला घोंटते समय उसे यह एहसास क्यों नहीं हुआ. वह भी बहनभाइयों में पली है?
वह स्वयं के ही प्रश्नों में उलझ गई. क्या सचमुच अनपढ़ होने से मेरी सोच की सूई में विराम लग गया है? छिछिछि… शर्मिंदा थी वह अपने व्यवहार से, सोच से. माफी की सोचते ही उस का अहं आड़े आ जाता. सोचने लगती, क्या मां होने के नाते सभी अधिकार उसी के हैं. मां जो थी, गलत कैसे हो सकती थी? उस रात निन्नी की बातें उस के जेहन में उमड़तीघुमड़ती रहीं. एक शब्द ‘भेदभाव’ उस के जेहन में घर कर गया. गार्गी की वह रात बहुत भारी गुजरी. उसे ऐसा लगा, धरती से आकाश तक गहरी धुंध भर आई हो. गार्गी अपनी सोच का मातम मनाती रही.
उस रात वह एकदो बार निन्नी के कमरे में गई पर चुपचाप लौट आई. मन कह रहा था, माफी मांग लूं, मस्तिष्क कह रहा था, कैसे, क्यों? यह सोच तो घुट्टी में पिलाई गई है. तू लड़की है, औरत है, तेरा वजूद कुछ नहीं. यह आभास तो पलपल दिलाया गया है. बचपन से पढ़ाया गया है.
‘‘मां, क्या सोच रही हो? अभी तो भैया से अलग हुए 24 घंटे भी नहीं हुए?’’ निन्नी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा.
‘‘कुछ नहीं बेटा, कोई विशेष बात नहीं.’’
‘‘मां, विशेष नहीं तो अविशेष बता दीजिए?’’
बिना सोचेसमझे उत्सुकता से गार्गी ने शौपिंग की सूची दोहरा दी.
‘‘यह तेरे भाई अर्णव व बच्चों की सूची है. तुम मुझे 300 पाउंड दे देना. अर्णव हिसाब कर देगा.’’
निन्नी खामोश रही.
गार्गी को गलती का एहसास होते ही उस की ममता कच्ची सी पड़ गई. सोचने लगी, ‘यह मैं ने क्या कर दिया, कैसे भूल गई? मैं तो उस का दुख बांटने आई हूं. वह अपनी बचकाना हरकत पर शर्मिंदा सी हो गई.’
गार्गी की बात सुनते ही निन्नी हैरान हुई. कुछ क्षण के लिए दोनों में मौन का परदा गिर गया. वह गुस्से में बड़बड़ाते बोली, ‘‘मां, भैया व उस के परिवार के लिए ही क्यों, छोटी बहन अलका व उस का परिवार भी तो है दिल्ली में?’’
गार्गी शर्मिंदगी का घूंट पीते हुए बोली, ‘‘बेटा, मैं ने अभी बात पूरी ही कहां की है. जानती हूं, अलका भी मेरी बेटी है.’’
‘‘मां, केवल कहने के लिए. बहुत दकियानूस हो. अपनी ही संतानों में भेदभाव करती हो.’’
स्थिति को भांपते हुए गार्गी ने अपने मुंह को बंद रखना ही उचित समझा और व्यंग्य से बड़बड़ाने लगी, ‘आगे से ध्यान रखूंगी मेरी मां.’
घर पहुंच कर निन्नी का विशाल मकान देख कर गार्गी हक्कीबक्की रह गई. न इधर, न उधर, न दाएं, न बाएं कोई भी तो घर दिखाई नहीं दे रहा था. उसे ऐसा लगा, मानो विशाल उपवन में एक गुडि़या का घर ला कर रख दिया गया हो. अभी घर के भीतर जाना शेष था. दरवाजा खुलते ही नानी, नानी करते नाती नानी से लिपट गए.
कुछ समय बैठने के बाद निन्नी ने बच्चों से कहा, ‘‘बेटा, नानी को उन का कमरा दिखाओ.’’
‘‘चलो नानी, सामान अंकल ऊपर ले जाएंगे.’’
‘‘मां, यहां नौकरोंचाकरों का चक्कर नहीं है. सबकुछ खुद ही करना पड़ता है.’’
सांझ के 4 बज चुके थे. पतझड़ का मौसम था. आसपास फैली हुई झाडि़यों की परछाइयां घर की दीवार पर सरकतीसरकती गायब हो चुकी थीं. रात का अंधकार उतर आया था. घर के पीछे चारों ओर बड़ेबड़े छायादार वृक्ष अंधकार में और भी काले लग रहे थे. ऐसा लगता था जैसे उन वृक्षों के पीछे एक दुनिया आबाद हो. वह हतप्रभ थी. चारों ओर धुंध उतर आई थी.
‘‘अमर बेटा, तुम्हें यहां डर नहीं लगता?’’ गार्गी ने प्यार से कहा.
‘‘नानी, डोंट वरी. यहां कोई नहीं आता,’’ 8 वर्ष के अमर ने नानी को आश्वासन देते हुए कहा.
‘‘नहीं नानी, आप को पता है, रात को यहां तरहतरह की आवाजें आती हैं,’’ नटखट अतुल ने शरारती लहजे में कहा जो अभी 5 वर्ष का ही था.
‘‘अतुल, प्लीज मत डराओ नानी को.’’
उस दिन आधी रात तक गार्गी डर के मारे जागती रही. उस ने जीवन में इतना भयावह सन्नाटा पहली बार महसूस किया था. उसे गली के चौकीदार के डंडे की ठकठक व आवारा कुत्तेबिल्लियों की आवाजें याद आने लगीं. घर में कोई पुरुष भी नहीं था. अब तक तो देवर भी अपने घर चले गए थे. फिर सोचती, मुझे यहां स्थायी रूप से थोड़े ही रहना है.
धीरेधीरे उस ने निन्नी के रहनसहन से समझौता कर लिया. घर में सभी सुविधाओं के होते हुए भी उस का मन नहीं टिक रहा था. अकेलापन व सूनापन उसे बहुत कचोटता. इंसान तो क्या, कोई परिंदा तक दिखाई नहीं देता था. डाकिया न जाने कब पत्र डाल जाता.
एक सप्ताह बाद निन्नी ने काम पर जाते समय मां को घर के तौरतरीके, गैस हीटिंग, टैलीफोन पर संदेश लेना, टैलीफोन करना व कुछ अंगरेजी के शब्द, थैंक्यू, प्लीज वगैरह सिखा दिए. रहीसही कसर अमर और अतुल ने पूरी कर दी.
काम पर जातेजाते निन्नी ने कहा, ‘‘मां, आप का मन करे तो घर का काम कर सकती हैं वरना कोई जरूरत नहीं.’’
गार्गी ने जीवन में पहली बार तनमन को जिम्मेदारियों के बोझ से मुक्त पाया था.
वह सारा दिन हिंदी के सीरियल देखती रहती. बच्चों के घर आ जाने पर उन के साथ अंगरेजी सीरियल देखती. अंगरेजी न आते हुए भी अंगरेजी रिश्तों के तानेबाने हावभाव से समझ जाती. किंतु उन सीरियलों के पतिपत्नी के संबंध दूसरे लोक के लगते. सोचती, ऐसा भी होता है क्या? उन के दृष्टिकोण, सोच बहुत अजीब लगते. काम पर जाने से पहले निन्नी मां को खाना परोस कर जाती थी. जब भूख लगती तो गार्गी माइक्रोवेव में खाना गरम कर के खा लेती. संपूर्ण स्वतंत्रता का एहसास उसे पहली बार हुआ था.
शाम को अमर व अतुल के बिस्तर में जाने के बाद मांबेटी दोनों बैठी रहतीं. अपने पति पूरण की खाली कुरसी को टुकरटुकर देखतेदेखते अकसर निन्नी की आंखें छलछला आतीं.
ऐसी स्थिति में गार्गी के लिए संयम रखना सहज न था. बस, भड़क उठती. ‘‘6 महीने हो गए हैं उसे गए, अगर मेरी बात मान लेती तो आज माथे पर विधवा का टीका न लगा होता.’’
‘‘हांहांहां, ऊपर से कोई अपनी लंबी उम्र का पट्टा लिखा कर थोड़े ही आता है. आप ने तो पूरा जोर लगा लिया था कि हमारी शादी न हो. मेरे जीवन में कितनी लक्ष्मणरेखाएं खींच दी थीं आप ने? जब तक उन पर चलती रही, ठीक था. जब नहीं मानी तो हर समय वही व्यंग्य, कटाक्षों की बरसात. पूरण के मांबाप पुराने विचारों के हैं. तू मन चाहे कपड़ेलत्ते नहीं पहन सकेगी. वगैरहवगैरह.’’
‘‘निन्नी, गरम जुराबें तो देना. बहुत सर्दी है,’’ गार्गी ने बात को दूसरा मोड़ देते हुए कहा.
‘‘यह लो मां, मेरी बात अभी समाप्त नहीं हुई. बलि चढ़ाना चाहती थीं मुझे, लड़की थी न? और भैया, जिस का नाम लिया उस से शादी कर दी, लड़का था न इसलिए,’’ निन्नी ने गुस्से में कहा.
अचानक वातावरण में एक घुटा सा सन्नाटा छा गया.
‘‘कैसे कैंची सी जबान चलाती है. मां हूं तेरी. आगे एक शब्द नहीं सुनूंगी.’’
कुछ क्षण दोनों के बीच नाराजगी व औपचारिकता में गुजरे. कुछ मिनट बाद गार्गी गुस्से में बड़बड़ाती हुई सोने के कमरे में चली गई.
गार्गी ने खिड़की से बाहर झांका. तेज हवा चल रही थी. चारों ओर व्यापक वीरान, चुप्पी से डर लग रहा था. हवा के झोंकों से परदों का हिलनाडुलना उसे और डराने लगा. डरतेडरते न जाने
कब उस की आंख लगी और सुबह भी हो गई. निन्नी की आज छुट्टी थी.
‘‘मां, शौपिंग करनी है तो आधे घंटे में तैयार हो जाइएगा,’’ निन्नी ने कहा.
बडे़बड़े शौपिंग मौल देख कर गार्गी की आंखें खुली की खुली रह गईं.
निन्नी ने गार्गी की सोच पर ब्रेक लगाते हुए कहा, ‘‘मां, लिस्ट निकालो अपनी.’’
एक ही सांस में गार्गी ने अपनी लिस्ट दोहरा दी.
‘‘तुम्हारे भाई के लिए डिजिटल कैमरा, भाभी के लिए चमड़े का पर्स, सुधांशु के लिए फुटबाल और टिसौट की घड़ी, विधि के लिए सुंदर सी फ्रौक और एक बढि़या सी घड़ी. कुछ तुम्हारी नई मामी के लिए.’’
‘‘नई मामी? अभी तो मामीजी की मृत्यु को 6 महीने भी नहीं हुए?’’
‘‘हां, मेरे आने से 1 महीना पहले ही उस की शादी उस की छोटी साली से हुई. अकेले बच्चे पालना बहुत कठिन है मर्दों के लिए.’’
‘‘हांहां, सब जानती हूं. मुझ से मर्दऔरतों की बातें मत किया करो. अब अलका की लिस्ट निकालो.’’
‘‘उस के लिए पैसे बचे तो लूंगी. उस का पति जो है, वही ले कर देगा.’’
निन्नी ने गार्गी की बात को सुनाअनसुना करते हुए कहा, ‘‘मां, अगर ऐसी बात है तो आप ने अर्णव भैया का ठेका क्यों लिया है? वे भी तो शादीशुदा हैं, कमाते हैं, क्या अलका को कूड़े के ढेर से उठा कर लाई थीं मेरी भांति?’’
भारतीय गायिका नेहा कक्कड़ बीते 24 अक्टूबर को अपने प्रेमी रोहनप्रीत के साथ सात फेरे लिए हैं. वैसे नेहा अपने गाने के साथ- साथ अपने चूलबूले अंदाज के लिए जानी जाती हैं. नेहा कक्कड़ की शादी की सभी रस्में सुर्खियों में छाई हुई थी.
नेहा कक्कड़ को दुल्हन के अवतार में देखकर उनके फैंस काफी ज्यादा खुश नजर आ रहे थें साथ ही उन्हें बधाईयां भी दे रहे थें. शादी के चंद दिनों बाद ही नेहा कक्कड़ ने अपने फैंस को एक और खुशखबरी दे डाली. नेहा कक्कड़ ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट का नाम बदलकर मिसेज सिंह कर दिया है.
इस खबर के बाद से फैंस की खुशी औऱ भी ज्यादा बढ़ गई है. नेहा कक्कड़ के फैंस का कहना है कि वह इस परिवर्तन से वह बहुत ज्यादा खुश हैं और उम्मीद करते हैं उनके उज्जवल भविष्य के लिए.
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फैंस लगातार इसके लिए नेहा कक्कड़ इंस्टाग्राम अकाउंट पर मैसेज भेज रहे हैं. नेहा कक्कड़ ने पंजाब के रोहनप्रीत से शादी की थीं. उन्होंने शादी से पहले रोहनप्रीत संग गाना भी सूट किया था. नेहा और रोहनप्रीत की जोड़ी से घरवाले के साथ –साथ फैंस भी खुश नजर आ रहे हैं.
नेहा की शादी की हर रस्म का फैंस को बहुत ज्यादा इंतजार था. फैंस एक्साइटेड होकर उन्हें लगातार देख रहे थें और बधाइयां दे रहे थें. बता दें कि नेहा कक्कड़ शादी के सात फेरे लेने के बाद मुंबई वापस लौट आई हैं.
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नेहा और रोहनप्रीत साथ में एयरपोर्ट पर सपोर्ट किए गए थें. नेहा के माथे पर सजा सिंदूर उनकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था.
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बता दें कि रोहन और नेहा की शादी खूब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ लोगों ने उन्हें सोशल मीडिया पर खूब प्यार दिया.
बहुत ज्यादा थक गया था डाक्टर मनीष. अभी अभी भाभी का औपरेशन कर के वह अपने कमरे में लौटा था. दरवाजे पर भैया खड़े थे. उन की सफेद हुई जा रही आंखों को देख कर भी वह उन्हें ढाढ़स न बंधा सका था. भैया के कंधे पर हाथ रखने का हलका सा प्रयास मात्र कर के रह गया था.
टेबललैंप की रोशनी बुझा कर आरामकुरसी पर बैठना उसे अच्छा लगा था. वह सोच रहा था कि अगर भाभी न बच सकीं तो भैया जरूर उसे हत्यारा कहेंगे. भैया कहेंगे कि मनीष ने बदला निकाला है. भैया ऐसा न सोचें, वह यह मान नहीं सकता. उन्होंने पहले डाक्टर चंद्रकांत को भाभी के औपरेशन के लिए बुलाया था. डाक्टर चंद्रकांत अचानक दिल्ली चले गए थे. इस के बाद भैया ने डाक्टर विमल को बुलाने की कोशिश की थी, पर जब वे भी न मिले तो अंत में मजबूर हो कर उन्होंने डाक्टर मनीष को ही स्वीकार कर लिया था.
औपरेशनटेबल पर लेटने से पहले भाभी आंखों में आंसू लिए भैया से मिल चुकी थीं, मानो यह उन का अंतिम मिलन हो. उस ने भाभी को बारबार ढाढ़स दिलाया था, ‘‘भाभी, आप का औपरेशन जरूर सफल होगा.’’ किंतु भीतर ही भीतर भाभी उस का विश्वास न कर सकी थीं. और भैया कैसे उस पर विश्वास कर लेते? वे तो आजीवन भाभी के पदचिह्नों पर चलते रहे हैं.
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डाक्टर मनीष जानता है कि आज से 30 वर्ष पहले जहर का जो पौधा भाभी के मन में उग आया था, उसे वह स्नेह की पैनी से पैनी कुल्हाड़ी से भी नहीं काट सका. वह यह सोच कर संतुष्ट रह गया था कि संसार की कई चीजों को मानव चाह कर भी समाप्त करने में असमर्थ रहता है.
जहर के इस पौधे का बीजारोपण भाभी के मन में उन की शादी के समय हुआ था. तब मनीष 10 वर्ष का रहा होगा. भैया की बरात बड़ी धूमधाम से नरसिंहपुर गई थी. उसे दूल्हा बने भैया के साथ घोड़े पर बैठने में बड़ा आनंद आ रहा था. आने वाली भाभी के प्रति सोचसोच कर उस का बालकमन हवा से बातें कर रहा था. मां कहा करती थीं, ‘मनीष, तेरी भाभी आ जाएगी तो तू गुड्डो का मुकाबला करने के काबिल हो जाएगा. यदि गुड्डो तुझे अंगरेजी में चिढ़ाएगी तो तू भी भाभी से सारे अर्थ समझ कर उसे जवाब दे देना.’ वह सोच रहा था, भाभी यदि उस का पक्ष लेंगी तो बेचारी गुड्डो अकेली पड़ जाएगी. उस के बाद मन को बेचारी गुड्डो पर रहरह कर तरस आ रहा था.
भैया का ब्याह देखने के लिए वह रातभर जागा था और घूंघट ओढ़े भाभी को लगातार देखता रहा था. सुबह बरात के लौटने की तैयारी होने लगी थी. विवाह के अवसर पर नरसिंहपुर के लोगों ने सप्रेम भेंट के नाम पर वरवधू को बरतन, रुपए और अन्य कई किस्मों की भेंटें दी थीं. बरतन और अन्य उपहार तो भाभी के पिताजी ने दे दिए थे किंतु रुपयों के मामले में वे अड़ गए थे. इस बात को मनीष के पिता ने भी तूल दे दिया था.
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भाभी के पिता का कहना था कि वे रुपए लड़की के पिता के होते हैं, जबकि मनीष के पिता कह रहे थे कि यह भी लोगों द्वारा वरवधू को दिया गया एक उपहार है, सो, लड़की के पिता को इस पर अपनी निगाह नहीं रखनी चाहिए.
बात बढ़ गई थी और मामला सार्वजनिक हो गया था. तुरंत ही पंचायत बैठाई गई. पंचायत में फैसला हुआ कि ये रुपए वरवधू के खाते में ही जाएंगे.
इस फैसले से भाभी के पिता मन ही मन सुलग उठे. उस समय तो वे मौन रह गए, किंतु बाद में इस का बदला निकालने का उन्होंने प्रण कर लिया.
उन की बेटी ससुराल से पहली बार 4 दिनों के लिए मायके आई तो उन्होंने बेटी के सामने रोते हुए कहा था, ‘बेटा, तेरे ससुर ने जिस दिन से मेरा अपमान किया है, मैं मन ही मन राख हुआ जा रहा हूं.’
भाभी ने पिता को सांत्वना देते हुए कहा था, ‘पिताजी, आप रोनाधोना छोडि़ए. मैं प्रण करती हूं कि आप के अपमान का बदला ऐसे लूंगी कि ससुर साहब का घर उजड़ कर धूल में मिल जाएगा. ससुरजी को मैं बड़ी कठोर सजा दूंगी.’
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इस के पश्चात भाभी ने ससुराल आते ही किसी उपन्यास की खलनायिका की तरह शतरंज की बिसात बिछा दी. चालें चलने वाली वे अकेली थीं. सब से पहले उन्होंने राजा को अपने वश में किया. भैया के प्रति असाधारण प्रेम की जो गंगा उन्होंने बहाई, तो भैया उसी को वैतरणी समझने लगे. भैया ने पारिवारिक कर्तव्यों की उपेक्षा सी कर दी.
मनीष को अच्छी तरह याद है कि एक बार वह महल्ले के बच्चों के साथ गुल्लीडंडा खेल रहा था. गुल्ली अचानक भाभी के कमरे में घुस गई थी. वह गुल्ली उठाने तेजी से लपका. रास्ते में खिड़की थी, उस ने अंदर निगाह डाली. भाभी एक चाबी से माथे पर घाव कर रही थीं.