भोपाल का एक नौजवान प्रापर्टी ब्रोकर कैसे पुलिस वालों के हाथों मारा गया और क्यों उसके खाकी वर्दी वाले हत्यारों का कुछ नहीं बिगड़ेगा. इसे समझने में लगभग 2 साल पीछे भोपाल से 350 किलोमीटर दूर मंदसौर का रुख करना जरूरी है, जिससे आसानी से समझ आए कि कानून के हों न हों, लेकिन पुलिस वालों के हाथ वाकई लंबे होते हैं.

जब पुलिस ने चलाई थी 5 किसानों पर गोली...

हादसा या सरेआम हत्या का यह चर्चित मामला 6 जून 2017 का है. इस दिन मंदसौर के किसान अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे कि तभी तथाकथित हिंसा को काबू करने पुलिस वालों ने फायरिंग शुरू कर दी और इतनी दरियादिली से की कि 5 किसानों के जिस्म में सरकारी बारूद पैवस्त हो गया और वे मारे गए. हल्ला मचा तो राज्य सरकार ने एक सदस्यीय आयोग का गठन कर डाला. इस आयोग के अध्यक्ष थे जस्टिस जेके जैन.

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उम्मीद और रिवाज के मुताबिक आयोग अपनी जांच रिपोर्ट तय शुदा वक्त सितंबर 2017 में सरकार को नहीं सौंप पाया. आयोग का कार्यकाल बढ़ता रहा और उसने अपनी रिपोर्ट 11 जून 2018 को मुख्य सचिव को सौंपी लेकिन तब तक नर्मदा जी का बहुत पानी बह चुका था और लोग इस वीभत्स और नृशंस हत्याकांड को आदत के मुताबिक भूल चुके थे. लिहाजा यह रिपोर्ट एक रस्म बनकर रह गई. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित दिग्गज कांग्रेसियों कमलनाथ ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह से लेकर छुट भैये कांग्रेसी नेताओं ने खूब और उतना ही हल्ला मचाया था. जितना शिवम मिश्रा की हत्या पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और दूसरे भाजपाइयों ने मचाया क्योंकि सरकार अब कांग्रेस की है, और कमलनाथ मुख्यमंत्री हैं .

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