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इतिहास चक्र – भाग 3 : कमल सूरजा से क्यों नफरत करता था

‘‘आइए कमल साहब, एक बाजी हो जाए,’’ कुसुम ने कहा, ‘‘चांदनी तो खेलेगी नहीं.’’

‘‘नहीं, आज मैं नहीं चांदनी ही खेलेगी, क्यों पार्टनर,’’ कमल ने उस की तरफ देखा.

‘‘अरे वाह, फिर तो मजा ही आ जाएगा. आओ चांदनी.’’

‘‘जाओ चांदनी, आज की रात मेरी चांदनी के जीतने की रात है.’’

चांदनी एकटक कमल को देखती रह गई, ‘‘सच कहते हो कमल, आज की रात पर ही चांदनी की जीत और हार का फैसला टिका है. चलो कमल, तुम भी वहीं बैठो, तुम्हारे बिना मैं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘पगली, मैं तो हर पग पर तेरे साथ हूं, अच्छा चलो,’’ कमल भी आगे बढ़ गया.

गेम शुरू हो गया. इस मेज पर पांचों महिलाएं थीं. मिस्टर रमन ने कमल से भी खेलने का अनुरोध किया, मगर कमल हंस कर टाल गया. शुरू की कुछ बाजियां कुसुम ने जीतीं, फिर चांदनी जीतती चली गई.

कमल के होंठों पर विजयी मुसकान थिरक रही थी. तभी हाल में सूरजा ने प्रवेश किया और वह सीधी उसी मेज पर आई जहां चांदनी बैठी थी.

‘‘अरे सूरजा, आ यार… आतेआते बहुत देर कर दी,’’ कुसुम ने शायराना अंदाज में कहा, मगर कमल के होंठ घृणा से सिकुड़ गए.

‘‘आ बैठ, एकाध बाजी तो खेलेगी न,’’ मिसेज सिंह बोलीं.

‘‘क्यों नहीं, अगर चांदनी को एतराज न हो तो.’’

‘‘मुझे क्यों एतराज होगा दीदी, आइए आप के साथ खेल कर मुझे खुशी होगी.’’

‘‘चांदनी चलो, रात बहुत हो गई है,’’ कमल उठ कर खड़ा हो गया.

‘‘कमल, प्लीज,’’ चांदनी ने उस का हाथ पकड़ कर दबा दिया, उस की आंखों में याचना थी मानो कह रही हो मेरा अपमान न करो.

‘‘बैठिए न कमल बाबू, आज आप का इम्तिहान है. इम्तिहान अधूरा रह गया तो फैसला कैसे होगा?’’ कुसुम बोली.

‘‘बैठो न कमल, प्लीज, मेरे लिए न सही चांदनी के लिए तो बैठ जाओ,’’ सूरजा ने ऐसी मुसकान फेंकी कि कमल का दिल जलभुन गया.

एक बार फिर गेम शुरू हो गया. अब की बार बाजी पलट गई, एकाध गेम तो चांदनी जीती थी मगर फिर लगातार हारती चली गई.

‘‘बस भई,’’ चांदनी ने पत्ते फेंकते हुए कहा, ‘‘हम तो हार गए सूरजा दीदी, आप को जीत मुबारक हो. चलो, कमल चलें.’’

‘‘अरे वाह, अभी तो कमल बाबू का पर्स बाकी है. कमल बाबू निकालिए न पर्स,’’ कुसुम चहकते हुए बोली.

कमल की जुआरी प्रवृत्ति जाग उठी थी, फिर वह दांव पर दांव लगाता गया. यहां तक कि कमल का भी पर्स खाली हो गया.

‘‘छोड़ो कुसुम, अब जाने भी दो. बहुत हो चुका,’’ चांदनी फिर से उठने लगी.

‘‘अरे वाह, अभी तो बहुत कुछ बाकी है,’’ मिसेज सिंह बोलीं, ‘‘कमल बाबू की घड़ी, अंगूठी, तेरा टौप्स भई चांदनी क्या पता सब वापस आ जाए, बैठ न.’’

‘‘नहींनहीं, अब रात भी बहुत हो गई है. चलो कमल.’’

‘‘बैठो चांदनी, मिसेज सिंह ठीक कहती हैं क्या पता बाजी पलट जाए,’’ कमल ने उसे बैठा दिया.

‘‘नहीं कमल, पागल न बनो, आओ चलें, जुए की आग में सबकुछ जल जाता है, चलो चलें.’’‘‘नहीं चांदनी यों बाजी अधूरी छोड़ कर उठना गलत है, बैठ जाओ,’’ कमल ने उसे मानो आदेश दिया था. उस के जेहन में फिर जुआरियों की मानसिकता का काला परदा खिंच गया, जिस पर 3 शब्द खिले रहते हैं शायद… इस बार… और इस बारके चक्कर में एकएक कर सारी चीजें यहां तक कि बाहर खड़ी स्कूटी भी सूरजा के कब्जे में चली गई.

कमल के चेहरे पर कालिमा सी उतर आई थी, ‘‘चांदनी चलो, अब कल खेलना.’

‘‘चांदनी, कल पर भरोसा कायर करते हैं,’’ अब की बार सूरजा बोली, ‘‘अभी भी वक्त है, तुम चाहो तो हारी हुई बाजी जीत सकती हो, एक ही दांव में सबकुछ तुम्हारा हो सकता है.’’

‘‘मगर अब दांव लगाने को मेरे पास है ही क्या दीदी,’’ चांदनी के होंठों पर फीकी मुसकान उभर आई.

‘‘चांदनी… अभी भी तुम्हारे पास एक ऐसी चीज है जिस का औरों के लिए चाहे कोई मूल्य न हो मगर मेरे लिए उस की काफी कीमत है. बोलो, लगाओगी दांव.’’

‘‘मगर मैं समझी नहीं दीदी… वह चीज…’’

‘‘उस चीज का नाम है कमल,’’ सूरजा की मुसकराती नजरें कमल पर टिक गईं.

‘‘सूरजा,’’ कमल चीख कर खड़ा हो गया.

‘‘बोलो, लगाओगी एक दांव, एक तरफ कमल होगा दूसरी तरफ ये हजारों रुपएगहने, यहां तक कि बाहर खड़ी मेरी कार भी… मैं सबकुछ दांव पर लगा दूंगी, बोलो है मंजूर.’’

‘‘सूरजा इस से पहले कि मेरी सहनशक्ति जवाब दे दे अपनी बकवास बंद कर लो,’’ कमल चीखा.

‘‘मैं आप से बात नहीं कर रही मिस्टर कमल, एक खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी को खेलने के लिए उकसा रहा है और यह कोई जुर्म नहीं. जवाब दो चांदनी.’’

‘‘चांदनी, चलो यहां से,’’ कमल ने चांदनी का हाथ पकड़ कर उसे उठाने की कोशिश की.

‘‘सोच लो चांदनी, मैं अपनी एक फैक्ट्री भी तुम्हारे लिए दांव पर लगा रही हूं, यदि तुम जीत गई तो रानी बन जाओगी और यदि हार भी गई तो तुम्हारे दुखदर्द का प्रणेता तुम्हारे काले अंधेरे का सूरज तुम से दूर हो जाएगा.’’

‘‘चांदनी, इस की बकवास पर मत ध्यान दो. यह बहुत गंदी जगह है, चलो यहां से,’’ कमल ने हाथ पकड़ लिया था.

चांदनी ने हाथ खींचा और एक पल को उस ने कमल को भरपूर नजरों से देखा और फिर बोल पड़ी, ‘‘ठीक है दीदी, मुझे आप का दांव मंजूर है… दीदी, मैं अपने दांव पर अपने पति, अपने सुहाग अपने कमल को लगा रही हूं,’’ चांदनी का स्वर बर्फ कीमानिंद और सर्द हो गया.

‘चांदनी,’’ कमल चीख पड़ा, ‘‘तुम पागल हो गई हो… तुम… तुम मुझे दांव पर… अपने पति… अपने सुहाग को दांव पर लगाओगी.’’

‘‘जुए का जनून सोचनेसमझने की शक्ति छीन लेता है कमल, मुझे एक दांव खेलना ही है. हो सकता है मैं दांव जीत जाऊं. जुए के तराजू में रिश्तेनाते नहीं देखे जाते कमल, जीत और हार देखी जाती है.’’

‘‘चांदनी,’’ कमल विस्फारित नेत्रों से चांदनी को देखता चला गया, उस की आंखों में खून उतर आया था, ‘‘तुम भूल गई कि मैं सूरजा से नफरत करता हूं. तुम से वह मुझे छीनना चाहती है. अरी पगली, तू अपने सुहाग को इस डायन को सौंपना चाहती है. सोच चांदनी, क्या अपने पति को उस के हाथ सौंपना चाहती है.’’

‘‘यह तो सिर्फ एक गेम है कमल, जुआरी कभी अपनी हार के बारे में सोचता ही नहीं.’’

‘‘और अगर तुम दांव हार गई तो,’’ कमल का चेहरा स्याह हो गया.

‘‘चाल चलने से पहले जुआरी सिर्फ जीतने के लिए सोचता है कमल… और यह भी तो सोचो एक तरफ तुम हो और दूसरी तरफ अथाह संपत्ति है, सोचो, अगर हम जीत गए तो तुम्हें कमाने के बारे में सोचना ही नहीं पड़ेगा. हम दोनों ऐश करेंगे, इसलिए मैं यह गेम जरूर खेलूंगी.’’

‘‘चांदनी, उफ, तुम इतनी खुदगर्ज हो गई, तुम्हें अपना पति, अपना सुहाग भी नजर नहीं आ रहा है,’’ कमल का स्वर भर्रा उठा था, ‘‘जुए के दांव को जीतने के लिए अपने पति को दांव पर लगा रही हो.’’

‘‘तो क्या हुआ कमल, अगर एक पति अपनी पत्नी को दांव पर लगा सकता है तो एक पत्नी को यह हक क्यों नहीं है और यह भी तो सोचो कमल, जीवन हम दोनों का है, मेरी जीत भी तो तुम्हारी ही होगी न.’’

‘‘और यदि हार गई तो?’’ कमल बोला.

‘‘अरे, नहीं प्राणनाथ, मैं तो यह सोच भी नहीं सकती.’’

‘‘तुम पागल हो गई हो चांदनी, तुम इतना गिर सकती हो ऐसा मैं ने सोचा भी नहीं था. मैं तुम से अथाह प्यार करता था, लेकिन आज तो मैं तुम से सिर्फ घृणा ही कर सकता हूं. एक सुहागन के नाम पर तुम कलंक हो. तुम सिर्फ दौलत की चाह में अपने पिता को दांव पर लगा रही हो. इतिहास तुम जैसी सुहागनों को कभी माफ नहीं करेगा और कोई भी पतिव्रता तुम जैसों से घृणा करेगी. तू एक बदनुमा धब्बा है चांदनी,’’ कमल का हृदय घृणा से भर उठा था और आंखों में खून उतर आया था मगर आंसू भी गिर रहे थे.

‘‘इतिहास…’’ अचानक चांदनी की आवाज तेज हो गई, ‘‘हुंह, किस इतिहास की बात कर रहे हो कमल, उस इतिहास के बारे में सोचो, जब धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने राज्य को पाने के लिए द्रोपदी को दांव पर लगा दिया था. तुम किस इतिहास चक्र की बात कर रहे हो कमल, इतिहास अतीत का आईना होता है और वक्त उसी को वर्तमान में बदल देता है. याद है जबजब तुम जुए में फड़ पर बैठ जाते थे और मैं तुम्हारे पैरों में गिरती थी. तुम अपने परिवार, अपने बच्चों के भविष्य के बारे में भूल जाते थे. आज तुम्हें वर्तमान दिख रहा है.

‘‘कमल, जिस इतिहास की तुम गवाही दे रहे हो क्या उस में वर्तमान और भविष्य के अंधेरे नहीं देख पा रहे हो, हमारी औलाद क्या जुए के फड़ पर बैठ कर भविष्य के उजाले बिखेरगी. तुम्हारी जुआरी प्रवृत्ति क्या बच्चों की उंगली पकड़ कर काली रोशनी में बिखर नहीं जाएगी.’’

कमल का सिर झुक गया था.

‘‘इतिहास चक्र के आईने में कभी तुम ने भविष्य की तसवीर देखी है, बोलो, जवाब दो,’’ चांदनी फूटफूट कर रो पड़ी थी.

कमल का सिर झुकता चला गया था, ‘‘हां चांदनी, आज अपनी गलती को मैं महसूस कर रहा हूं. तुम ने इतिहास चक्र के हर पन्ने को वर्तमान में बदल दिया. यह एक उदाहरण बन जाएगा. शायद सारे पतियों के लिए तुम ठीक कह रही हो. चांदनी, मैं जुए के दांव के लिए स्वयं को प्रस्तुत कर रहा हूं. तुम ठीक कह रही हो चांदनी.’’

‘‘कमल,’’ अभी तक चुप बैठी सूरजा उठ कर कमल के पास आ बैठी थी, ‘‘आज जो आप ने महसूस किया है यही चांदनी की जीत है. लोग अपने परिवार का भविष्य जुए के दांवों पर लगा देते हैं. चांदनी भी फूटफूट कर रोती रहती थी मगर कभी भीआप को अपना दुख नहीं बता पाई. अपने दुख को सिर्फ मुझ से बांटती थी. जरा ध्यान से देखिए क्या एक पत्नी अपने पति के गलत कृत्यों का विरोध नहीं कर सकती है.’’

‘‘नहीं सूरजा, मैं तुम से भी क्षमा चाहती हूं. चलो, जुए की चाल को आगे बढ़ाओ, मैं इस इतिहास चक्र का एक अंग बनना चाहता हूं.’’

‘‘बस, यह इतिहास चक्र ही तो जीत है कमल, तुम्हारा सारा सामान तुम्हारी चांदनी सबकुछ तुम्हारे पास है. चलो, चांदनी का हाथ पकड़ो और सभी मिल कर दीवाली की मिठाइयां खाएं, क्यों चांदनी.’’

तभी अपनेआप को समेटे चांदनी फूटफूट कर रो पड़ी और कमल ने उसे अपने सीने में समेट लिया.

‘‘चांदनी, आज तुम ने सिर्फ मेरे ही नहीं बहुत से अंधेरे में डूबे हुए घरों में उजाला फैला दिया है. मैं विश्वास दिलाता हूं चांदनी, हम दोनों मिल कर जुए के खिलाफ एक जंग लड़ेंगे और इतिहास चक्र एक नई कहानी लिख देगा, आओ, घर चलते हैं और मिल कर दीवाली की रोशनी हर जगह बिखेर देंगे.’’

‘‘और सूरजा दीदी वह भी आ सकती हैं,’’ चांदनी ने मुसकरा कर कहा.

‘‘हां पगली, मैं भी उस का एक अच्छा दोस्त बन कर दिखा दूंगा,’’ कमल ने कहा.-

इतिहास चक्र – भाग 2 : कमल सूरजा से क्यों नफरत करता था

‘‘कमल मेरे बस में नहीं है दीदी,’’ चांदनी सिसक उठी.

‘‘देख चांदनी, तुझे अपने कमल को इस दलदल से खींच कर लाना होगा. मैं तेरा साथ दूंगी. अच्छा, सुन तुझे कुसुम की याद है न,’’ सूरजा बोली.

‘‘हां, सुना है. उस की भी शादी यहीं चौक में हुई है रमन के साथ. काफी बड़ा आदमी है.’’

‘‘सुन चांदनी, आज रात तुम दोनों को कुसुम के यहां आना है, समझीं और देख मैं जैसा कहूं वैसा ही करना,’’ इस के बाद देर तक सूरजा ने चांदनी को समझाया.

उस के जाने के बाद चांदनी ने एक लंबी सांस ली. आंखें आने वाली विजय के प्रति आश्वस्त हो चमक उठी थीं और वह कमल की प्रतीक्षा करने लगी.

शाम को 4 बजे जब कमल घर आया तो उस का चेहरा खिला हुआ था. आते ही उस ने चांदनी का चेहरा चूमा और बोला, ‘‘क्या बात है, मेरी चांदनी उदास क्यों है?’’

चांदनी कुछ बोल नहीं पाई. उस की आंखों से अश्रुधारा फूट पड़ी.

‘‘चांदनी, ओ चांदनी,’’ कमल ने उसे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया था, ‘‘क्या बात है, बोलो न, वर्ष भर में तो यह त्योहार आता है और तू मुंह लटकाए बैठी है.’’

‘‘एक बात पूछूं, सचसच बताइएगा,’’ चांदनी ने अपने आंसू पोंछ कर कहा, ‘‘आज आप का दफ्तर बंद था न,’’ कमल का चेहरा मुरझा गया, ‘‘वह… चांदनी…’’

‘‘मैं जानती हूं, आज फिर दोस्तों के साथ बैठे थे न.’’

‘‘चांदनी, तुम तो जानती हो दीवाली के दिन हैं, ऐसे में दोस्त जब घसीट कर ले जाते हैं तो इनकार नहीं कर सकते,’’ कमल बोला.

‘‘जिंदगी इतनी कमजोर नहीं कमल, और दीवाली के दिन की खुशी जुआ ही नहीं है. सोचो कमल, साल में एक बार आने वाला यह त्योहार सब के लिए खुशियों के दीप जलाता है और तुम्हारी चांदनी दुख के गहरे काले अंधेरे में पड़ी सिसकती रहती है. तुम्हें उस पर जरा भी दया नहीं आती. बोलो, क्या अपनी चांदनी के लिए भी तुम यह जुएबाजी बंद नहीं कर सकते?’’

‘‘उफ, चांदनी. तुम समझती क्यों नहीं, मैं हमेशा तो खेलता नहीं हूं, साल में अगर एक दिन मनोरंजन कर भी लिया तो कौन सी आफत आ गई. मेरे औफिस के सारे दोस्त खेलते हैं, उन की बीवियां खेलती हैं. तुम्हें तो यह पसंद नहीं और यदि मैं पीछे

हट जाऊं तो अपने दोस्तों की नजरों में गिर जाऊंगा. नहीं चांदनी, मैं ऐसा नहीं कर सकता.’’

चांदनी कुछ जवाब न दे सकी. कुछ पल की चुप्पी के बाद उस ने कहा, ‘‘कमल, पतिपत्नी का रिश्ता न केवल तन को एक डोर से बांधने वाला होता है बल्कि इस में मन भी बंध जाता है. हम दोनों एकदूसरे के पूरक हैं… हैं न.’’

कमल कुछ पल उस का चेहरा देखता रहा, ‘‘यह भी कोई कहने वाली बात है.’’

चांदनी कुछ पल शून्य में घूरती रही, ‘‘सोचती हूं कमल, पतिपत्नी को एकदूसरे के सुखदुख का हिस्सेदार ही नहीं बल्कि एकदूसरे की आदत, बुराइयों और शौक का भी हिस्सेदार होना चाहिए. जिंदगी की गाड़ी लगातार चलती रहे, यह जरूरी है न.’’

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो चांदनी?’’ कमल उस के चेहरे को ध्यान से पढ़ रहा था.

‘‘कमल, जुए से मुझे सख्त नफरत है, यह भी सच है कमल कि अच्छेखासे घरपरिवार जुए से बरबाद हो जाते हैं. फिर भी मैं तुम्हारी खुशी के लिए सबकुछ करूंगी. कमल मैं जुआ नहीं खेलती, इस के लिए तुम्हें दोस्तों के सामने शर्मिंदा होना पड़ता है लेकिन आइंदा यह नहीं होगा. मुझ से वादा करो कमल, आज से तुम अकेले कहीं नहीं जाओगे. अगर डूबना है तो दोनों साथ डूबेंगे.’’

‘‘सच चांदनी,’’ कमल ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘ओह चांदनी, तुम नहीं जानतीं तुम ने मुझे क्या दे दिया है. तुम तो मेरी पार्टनर हो, तुम्हारे साथ रह कर तो हर बाजी की जीत पर सिर्फ मेरा नाम लिखा होगा. पक्का वादा है न,’’ कमल ने हाथ फैला दिए थे.

चांदनी ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया था, ‘‘तुम नहीं जानते कमल, कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, तुम्हारी खुशी पाने के लिए यही सही.’’

‘‘सिर्फ इतना ही नहीं चांदनी सबकुछ ठीक रहा तो एक दिन हम दोनों करोड़पति होंगे. इतिहास गवाह है कि इसी जुए ने जाने कितनों को मालामाल कर दिया और अब हमारी बारी है,’’ कमल खुश होते हुए बोला.

‘‘एक बात कहूं कमल, मानोगे,’’ चांदनी ने प्यार से पूछा.

‘‘बोलो मेरे प्यार, एक नहीं सैकड़ों बातें मानूंगा, कह कर तो देखो, जान हाजिर है.’’

‘‘जानते हो, वह जो कुसुम है न… वही मिसेज रमन… मेरी सहेली, आज उन के घर दीवाली की पूर्व संध्या पर पार्टी है. कुसुम ने कई बार बुलाया लेकिन हम उन के घर कभी नहीं गए, उन के यहां गेम भी बड़े पैमाने पर होता है. मेरे साथ चलोगे वहां.’’

‘‘लेकिन… मेरे… दोस्त,’’ कमल बोला.

‘‘लेकिन नहीं कमल, क्या मेरी इतनी सी बात नहीं मानोगे. चलो न प्लीज,’’ चांदनी ने प्यार से उस का हाथ थाम कर कहा.

‘‘अच्छा, चलो आज दोस्तों की दावत कैंसिल. आज तो हम अपनी चांदनी की जीत की चांदनी में नहाएंगे. अच्छा तो फटाफट खाना बना लो ताकि चल सकें.’’

‘‘ओके…’’ चांदनी ने कहा और कमल के गाल पर एक प्यार भरा चुंबन जड़ते हुए किचन की तरफ बढ़ गई. कानों में तब भी कमल के शब्द गूंज रहे थे… इतिहास गवाह है… इतिहास गवाह है.

दोनों खाना खा कर कुसुम के घर पहुंचे.

‘‘अरे, चांदनी और कमल बाबू, कल दीवाली है यह तो मालूम है न. आइए, स्वागत है ईद के चांद का,’’ कुसुम ने चांदनी को सीने से लगा लिया, ‘‘आप तो यहां का रास्ता ही भूल गए कमल बाबू.’’

‘‘नहीं भाभी, काम में कुछ ऐसा व्यस्त रहा कि चाह कर भी वक्त नहीं निकाल पाया,’’ कमल बोला.

तभी मिस्टर रमन आ गए. वे वित्त मंत्रालय में जौइंट सैके्रटरी के पद पर कार्यरत थे. इन के काफी अच्छे ठाटबाट थे. औपचारिकता और बातचीत में काफी समय निकल गया. धीरेधीरे लोग आते जा रहे थे. करीब 11 बजे असली पार्टी शुरू हुई. बड़े हौल में 5 मेज लग गई थीं. लोग अपनेअपने ग्रुप में बैठ गए.

 

इतिहास चक्र – भाग 1: कमल सूरजा से क्यों नफरत करता था

गली के मोड़ पर हांफता हुआ कमल पल भर को ठिठक गया. इतनी दूर से स्कूटर घसीटतेघसीटते उस की सांस फूल गई थी. दफ्तर आते हुए जब एहसास हुआ कि गाड़ी में पैट्रोल कम है, तो उस ने स्कूटर को पैट्रोल पंप की ओर मोड़ दिया. मगर पैट्रोल पंप पर ‘तेल नहीं है’ की तख्ती ने उसे मायूस कर दिया और घर से 1 किलोमीटर पहले ही जब स्कूटर झटका ले कर बंद हो गया तो कमल झल्ला उठा, क्योंकि उसे इतनी दूर तक स्कूटर घसीट कर जो लाना पड़ा था.

‘उफ,’ कमल ने माथे का पसीना पोंछा. उसे एहसास भी नहीं हुआ कि उसी गली से कब लाल रंग की मारुति कार निकली और उस के बगल में आ कर रुक गई.

‘‘कमल,’’ ड्राइविंग सीट पर बैठी एक सुंदर युवती ने उसे पुकारा.

कमल उसे देख कर चौंक गया. उस के चेहरे पर घृणा की रेखा तैर गई, ‘‘तुम?’’

‘‘आज तुम्हें इस हालत में देख कर अफसोस हो रहा है कमल. मैं अभी तुम्हारे घर गई थी. चांदनी भी अपनी रोशनी बिखेर कर चुकती जा रही है,’’ सूरजा ने कहा.

‘‘सूरजा,’’ कमल का स्वर कड़वा हो उठा था, ‘‘मैं ने तुम से कई बार कहा है कि मैं तुम्हारी सूरत से नफरत करता हूं. चांदनी की सहेली होने के नाते मैं तुम्हें घर आने से नहीं रोक सकता. तुम्हें मेरे हालात पर अफसोस करने की कोई जरूरत नहीं, समझी.’’

‘‘जरूरत है कमल, मगर मुझे नहीं तुम्हें. सोचो कमल, सूरजा सदा तुम्हें प्यार करती आई है. तुम ने मेरे प्यार को ठुकरा कर चांदनी और उस की गरीबी का जो कफन ओढ़ा है एक दिन वह तुम्हें मार डालेगा.’’

‘‘मैं मर भी जाऊं तो क्या, सूरजा, अपने हालात से मैं ने शिकवा कभी नहीं किया, रहा प्यार का सवाल तो ये अमीरी के चोंचले किसी और को दिखाना. मैं तुम्हारे इस दिखावटी प्यार को पसंद नहीं करता.’’

‘‘मैं तुम्हारी इस नफरत से भी प्यार करती हूं कमल, और तुम तो जानते ही हो सूरजा कितनी जिद्दी है, तुम मेरा प्यार ही नहीं मेरा अभिमान भी हो. यह अभिमान मैं टूटने नहीं दूंगी. मैं ने प्यार किया है कमल और मैं अपने प्यार को मरता नहीं देख सकती. कमल, गरीबी के फांके तुम्हें मेरी बांहों में आने को मजबूर कर देंगे.’’

‘‘उस दिन से पहले कमल आत्महत्या कर लेगा सूरजा, मगर तेरे दर पर झांकने तक नहीं आएगा,’’ कमल का स्वर घृणा और अपमान से भर उठा. वह तेजी से वहां से आगे बढ़ गया.

‘‘जा रहे हो कमल, लेकिन एक बात तो सुनते जाओ. कमल चांदनी की चमकीली किरणों से नहीं खिलता. उस के लिए सूरज की रोशनी की जरूरत पड़ती है और सूरजा अपने जीतेजी अपने कमल को मुरझाने नहीं देगी. मैं तुम्हें मिटने नहीं दूंगी कमल. कभी नहीं, मैं तुम से दिल से प्रेम करती हूं और सदा करती रहूंगी,’’ और एक झटके से कार स्टार्ट कर वह तेजी से आगे बढ़ गई.

कमल ने घृणा से सिर झटका. सूरजा की बातों से उस का रोमरोम सुलग रहा था, ‘‘बड़ी आई प्रेम करने वाली,’’ घर में घुसते ही उस का आक्रोश भड़क उठा, ‘‘चांदनी… चांदनी…’’

‘‘अरे, आप आ गए, आज बड़ी देर कर दी. आप हाथमुंह धोइए, मैं चाय बनाती हूं,’’ कहती हुए चांदनी कमरे में घुसी, मगर कमल की भावभंगिमा देख कर ठिठक गई, ‘‘क्या बात है बहुत परेशान लग रहे हैं?’’ आगे बढ़ कर उस ने कमल के माथे पर हाथ रखा, ‘‘सचसच बता दो, क्या बात है?’’ चांदनी ने उसे अपनी बांहों में भरना चाहा लेकिन कमल ने तेजी से उस का हाथ झटक दिया, ‘‘सूरजा यहां क्यों आई थी?’’

‘‘सूरजा दीदी,’’ चांदनी पल भर को चकित रह गई. उस ने कमल का गुस्सा कई बार देखा था मगर यह रूप नहीं देखा था.

‘‘हां, तुम्हारी सूरजा दीदी… वही सूरजा दीदी जिस से तुम्हारा कमल नफरत करता है. वह इस घर में क्यों आई थी?’’ कमल बोला.

‘‘सुनिए, अभी आप गुस्से में हैं, सोचिए, इस घर में आने वाले किसी को भी मैं कैसे रोक सकती हूं और फिर सूरजा दीदी तो कालेज से ही हम दोनों को जानती हैं. मैं जानती हूं कि उन का आना आप को अच्छा नहीं लगता मगर मैं उन्हें घर से निकाल भी तो नहीं सकती.’’

दीवाली के कुछ दिन पहले सूरजा फिर मिलने आ गई.

चांदनी ने आंचल से जल्दी से कुरसी को साफ किया, ‘‘कई दिन हो गए आप आई नहीं, दीदी.’’

‘‘हां, इधर दीवाली की खरीदारी चल रही थी न इसलिए चाह कर भी नहीं आ सकी. कमल कहीं गया है क्या?’’

‘‘हां, दफ्तर में कुछ काम था न सो दफ्तर गए हैं,’’ कहतेकहते चांदनी की आंखें झुक गईं.

‘‘चांदनी,’’ सूरजा उठ कर पास आ गई थी, ‘‘मुझ से झूठ बोल रही है न… अपनी दीदी से… मैं जानती हूं आज सारे दफ्तर बंद हैं और मैं बता भी सकती हूं कि कमल कहां गया होगा, वहीं ताश के 52 पत्तों के बीच बैठा होगा.’’

‘‘दीदी,’’ चांदनी की आंखें भर गई थीं.

सूरजा ने उस के आंसुओं को प्यार से पोंछ दिया, ‘‘रो मत चांदनी, मैं जानती हूं, कमल जिस दलदल में फंसा है वहां बरबादी के सिवा कुछ भी नहीं है. तू उसे समझाती क्यों नहीं?’’

‘‘मैं क्या समझाऊं दीदी,’’ चांदनी सिसक उठी, ‘‘अपने घर, अपने प्यार और अपने भविष्य को बरबाद करने वाला और कोई नहीं स्वयं उस का निर्माता है. दीदी, दीवाली की काली रातों का यह अंधेरा कभी छंटने वाला नहीं है.’’

‘‘नहीं पगली, अंधेरा कितना भी घना क्यों न हो, सूरज के उगते ही भाग जाता है. मैं कमल को समझाऊंगी.’’

‘‘नहीं दीदी, आप का तो नाम लेते ही वह नफरत से भर जाते हैं, आप कुछ मत कहिएगा वरना…’’

‘‘जानती हूं चांदनी, कमल मुझ से नफरत करता है,  मगर मैं उस की नफरत को भी प्यार करती हूं. मेरा प्यार खुदगर्ज नहीं है, मैं अब कमल को एक दोस्त के रूप में देखती हूं और तू… तू तो मेरी छोटी बहन है… चांदनी, तुम दोनों की खुशियों से मुझे प्यार है. मैं जानती हूं मेरी बहन मुझे गलत नहीं समझती है, इस का मुझे गर्व है. मैं कमल को छेड़ देती हूं सिर्फ इसलिए कि वह जोश में आ कर अपनेआप में सुधार कर ले, मगर अब लगता है कोई दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा. अच्छा, सुन, तू दीवाली की तैयारियां कर. इस बार दीवाली दोनों प्रेम से मनाना.’’

संपादकीय

मोदी सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की बस में चढ़ कर करोड़ों भक्त बनाए थे जो जन्म से पाठ पढ़ते आए हैं कि पूजापाठ करने से ही जीवन मिलता है, सुख मिलता है, स्मृद्धि मिलती है, लक्ष्मी मिलती है, अगला जन्म अच्छे कर्म में होता है. ये भक्त भाजपा के लिए मरनेमारने को तैयार तो हैं पर देश या समाज के लिए कुछ करने को तैयार हैं, यह एकदम अस्पष्ट है.

इस बार फिर 5 विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी देश निर्माण, औद्यिगत निर्माण, इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण आदि की नहीं, राम मंदिर, कृष्ण मंदिर, गंगा किनारे घाटों, चारधामों, ङ्क्षहदूमुस्लिम, ङ्क्षहदू राष्ट्र की ही बात करती दिखी. एक भक्त के चूंकि लगता है कि इसी से तो उस का धर्म के प्रति कर्तव्य पूरा होगा जिस से कोई न कोई भगवान प्रसन्न होगा और वह झप्पड़ फाड़ कर कटोरे में खाना भी डाल देगा और लक्ष्मी भी.

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आम ङ्क्षहदू मंदिरों में पूजापाठ अपनी गलतियों के लिए दुख मनाने नहीं जाता, वह मंदिर से कुछ पाना चाहता है. बिना हाथपैर हिलाए लगता है यह बात महाभारत युग में भी कृष्ण को मालूम थी कि उन के युग में भी लोग काम चोर हैं क्योंकि पूरा गीत पाठ कर्म करने पर लगा रहा. हां यह बात दूसरी कि गीता बारबार कहती रही कि इस कर्म का फल तुम ही पाओगे यह जरूरी नहीं. अब कर्म किया है तो कोई तो फल पाएगा न. यह कोई उस युग में भी और आज भी या तो राजा और उस के बाङ्क्षशदे थे या मंदिरों के रखवाले या उस से जुड़े लंबे चौड़े व्यवसाय से.

भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी में ऐसा प्रचारक देखा जो एक सुंदर भविष्य के सपने दिखा कर लोगों के कर्म का फल छीन सकता था और उन से अपनी भक्ति भी करवा सकता था. ज्यादातर धर्मों में यही हुआ है पर आज शायद सिर्फ नरेंद्र मोदी विश्व के इकलौते शासक हैं जो धर्म का वादा कर के लोगों को खुश करने की क्षमता रखते हैं.

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यह तो कोराना वायरस का भीषण आक्रमण है जिस ने कलई खोली है. हमारे पौराणिक ग्रंथ भी इसी तरह की कहानियों से भरे हैं. अमृत मंथन क्यों हुआ? क्योंकि लोग मर रहे होंगे और तथाकथित सदा जीवित रखने वाले अमृत की जरूरत थी. यह बात दूसरी कि दस्युओं से कर्म करा कर फल सारा देवता खा गए पर वे भी शीघ्र समाप्त हो गए.

कोराना वायरस का आक्रमण बुरी तरह धाॢमक मान्याताओं को कुचल रहा है और ऋ षियों, मुनियों के जपतप, यज्ञों का भी असर नहीं हो रहा और बारबार विष्णु की गुहार भी काम नहीं आ रही रही. आजकल तो लोग भीख में एक बैड, एक आक्सीजन सिलेंडर, एक वेंटीलेटर मांगते नजर आ रहे हैं. लोग रेमडेसिविर दवा या ब्लड प्लाजमा ढूंढ़ रहे हैं. जिन का लाभ होना भी कोई गारंटी नहीं है.

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कोई भी समाज कभी भी धर्म की गाड़ी पर चढ़ कर उन्नत नहीं हुआ है. हां हर समाज में धर्म चलती गाड़ी पर चढ़ गया और बातें बता कर गाड़ीबान की जगह बैठ गया है. भाजपा ने यही किया. उस ने निर्माण नहीं किया. निर्माण की आदत नहीं डाली, निर्माण की प्रेणना नहीं दी, सिर्फ पूजने और पुजवाने का काम किया. इस का असर तो पडऩा ही था.

जानें क्यों पेट्रोलियम व्यापारी प्रकाश जैन ने बनायी वेब फिल्म ‘‘संस्कारी बहूरानी’’

गुजरात में उमर गांव के खतलवाड़ा,जिला वलसाड़ के मशहूर पेट्रोलियम  व्यवसायी प्रकाश जैन कमाल के इंसान हैं.उनकी अपनी अलग तरह की लाइफस्टाइल है.पर अब लोग उनकी पहचान एक फिल्म निर्माता के रूप में हो रही है.वास्तव में अपने पेटोलियम ट्रेनिंग के व्यवसाय से समय निकालकर प्रकाश जैन ने अब हिंदी वेब फिल्म‘‘संस्कारीबहू’’का निर्माण किया है.यह सब फिल्मों के प्रति उनके झुकाव का परिणाम है.
पेट्रोलियम ट्रेडिंग व्यापार के महारथी माने जाने वाले प्रकाश जैन ने आखिर किस वजह से फिल्म निर्माता बनना स्वीकार किया.

इस पर बात करते हुए प्रकाश जैन ने कहा- ‘‘मेरे घर के पास ही अभिनेता शमीम खान जी रहते हैं,जो मेरे अभिन्न मित्र हैं.शमीम भाई को अभिनय करते मैने कई बार देखा था.इसलिए फिल्मों में मेरी यचि बढ़ी. फिर उन्हीं के निवेदन को स्वीकार कर मैने फिल्म क्षेत्र में किस्मत आज माने का निर्णय लिया.मगर मैं लीक से हटकर फिल्म बनाना चाहता हूं. मैने कई कहानियां सुनी,

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मगर पसंद नहीं आई.एक दिन सूर्यकांत जी ने मुझे ‘संस्कारी बहू रानी’की कहानी सुनाई.कहानी सुनते ही मैने कह दिया कि हां मैं यह फिल्म बना रहा हूं.’’ ‘‘संस्कारी बहूरानी’’को एक पारिवारिक फिल्म की संज्ञा देते हुए प्रकाश जैन कहते हैं-‘‘सुर्यकांत जी ने कमाल की कहानी लिखने के अलावा कमाल का निर्देषन किया है.इसे पूरे परिवार के साथ बैठकर देखा जा सकता है.शमीम खान जी इस फिल्म के सह निर्माता भी हैं और इस फिल्म के खलनाय कभी हैं.’’

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‘‘जय पी इंटरटेनमेंट हाउस’’ के बैनर तले बनी फिल्म ‘‘संस्कारी बहरानी’’के लेखक व निर्देषक सूर्यकांत गणपतताम्रदमन, निर्माता प्रकाश जैन,सहनिर्माता शमीम खान, गीतकार व संगीतकार कमलेश सिंह, पटकथा व संवाद लेखक सुर्यकांत गणपतता म्रदमन ,कमलेश सिंह, बलिराम गावड़ने,कैमरामैन प्रमोद पांडे,संपादक राजेश शाह,एक्शन डायरेक्टर शाहबाज अली,नृत्य निर्देषक राजू एंथोनी,संगीतकार सुभाष सूर्यम हैं.फिल्म के मुख्य कलाकार हैं-अपर्णा पराजंपे, रविन्द्रकुल्हार, रितेश कुमार, प्रेमनाथ गुलाटी, गरिमा अग्रवाल, राकेश गुप्ता, राकेश बाबू, परेशभट्ट, खुशी गुप्ता,विनोद मिश्रा, अशी खान, पार्थ कामली,काजल सिंह,मनीष राउत और शमीम खान.

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वेबफिल्म‘‘संस्कारीबहू’’को गुजरात के भरूच और महाराष्ट् के विरारस हित कई शानदार लोकेशनों पर फिल्माया गया है.इस फिल्म्मे के  एक से बढ़कर एक गाने हैं. प्रकाश जैन कहते हैं-‘‘पहली बार मैने जब ट्रैक सुना,तो मैं काफी आकर्षित हुआ. भारतीय और पश्चिमी संगीत के संयोजन ने मुझे जकड़ लिया.मुझे नृत्य बहुत पसंद है.हमारी फिल्म के सभी गाने लोगोें को थिरकने पर मजबूर करने वाले हैं.’’

कोरोना ने बिगाड़ी घरेलू अर्थव्यवस्था

कोविड 19 वायरस के कारण उपजे कोरोना काल में पूरे देश  में मरने वालों की संख्या लाखों में पहुंच गई है. कोराना ही दूसरी लहर में यह संख्या तेजी से बढती जा रही है. भारत में संक्रमति लोगों की संख्या प्रतिदिन 3 लाख के करीब है. मरने वालों की संख्या 2 हजार के आसपास प्रतिदिन का है. 26 अप्रैल तक कुल संक्रमित लोगो की संख्या 28 लाख और मरने वालों की संख्या 1 लाख 95 हजार है. यह आंकडा रोज बदल रहा है. जानकार लोगो का दावा है कि मरने वालों की जितनी संख्या सरकार बता रही वास्तविक संख्या उससे कई गुुना ज्यादा है.

ऐसे में अंदाजा लगाना सरल है कि कोरोना से प्रभावित परिवारों की संख्या कितनी बडी है. कितने परिवारों को इस त्रासदी से गुजरना पड रहा है. इसका प्रभाव घरेलू अर्थव्यवस्था पर पड रहा  है. परिवार के परिवार आर्थिक बोझ से टूट रहे है. सरकार के मुफ्त इलाज का दावा पूरी तरह खोखला है. इलाज के नाम पर अस्पतालों की फीस और दवा का खर्च लाखों आ रहा है. केवल वंेटिलेटर और आक्सीजन का प्रबंध करने में ही कमर टूट जा रही.

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सबसे खराब हालत उन परिवारों की है जिनमें कमाने वाले की मौत हो गई. सरकार की तरफ से ऐसे परिवारों की मदद के लिये किसी भी तरह की मदद की कोई योजना नहीं है. केन्द्र सरकार ने केवल कुछ गरीब परिवारो के लिये आनाज का प्रबंध करने की घोषणा की है. केवल खाने के प्रबंध से घर का चलना मुष्किल हो रहा है. इसकी वजह यह भी है कि मरने के बाद सरकार किसी भी तरह से सहयोग देने को तैयार नहीं है. सरकार के अफसर कोविड से होने वाली मौत के बाद भी अकड दिखाने मे पीछे नहीं रह रहे. डेथ सार्टिफिकेट, बैंको में नाम बदलने की प्रक्रिया, घर में नाम बदलने की प्रक्रिया और तमाम तरह के टैक्स चालू रहेेगे. घर के मालिक के ना रहने के बाद भी सरकार के द्वारा रियायत की कोई योजना नहीं है. जिससे परेशानी और भी बढ रही है.

मंहगा इलाज: भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है. कोरोना संकट के दौरान यह बात और भी अधिक विकराल रूप धर कर बाहर आई. अस्पतालों में दवाओं के नाम पर हजारो लाखो रूपये के बिल मिले. लखनऊ के निगोंहा कस्बे के रहने वाले अमित गुप्ता के पिता को सांस लेने मंे दिक्कत के बाद मोहनलालगंज हरिकंषगढी के पास बने विद्या अस्पताल ले जाया गया. भर्ती करते समय कहा गया कि कोरोना की रिपोर्ट पौजिटिव होगी तो 15 हजार और निगेटिव होगी तो 50 हजार देने होेगे. एडवांस के रूप 50 हजार जमा करा दिया गया. जबकि आक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम खुुद किया था.

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जब अमित पिता को वापस ले जाने लगे तो 50 हजार की और मांग की गई. बहुत बातचीत करने से 20 हजार देने पडे. सिसेंडी के रहने वाले मनमोहन अपने रिश्तेदार ओमप्रकाश सोनी को 5 दिन तक यहां एडमिट कराया तो 2 लाख 50 हजार का बिल दिया गया. इसमें आईसीयू का खर्च 25 हजार रूपये सालाना का था. यह तो बानगी भर है. ऐसे तमाम उदाहरण और भी है. लखनऊ के मेयो अस्पताल में भर्ती रहने वाले जीतेन्द्र सक्सेना ने बताया कि दवा, बेड, आईसीयू और आक्सीजन के नाम पर लाखो रूपये खर्च करने पडे. कोविड अस्पताल होने के बाद भी यहां पर आक्सीजन का अपना कोई प्रबंध नहीं था. ऐसे में मरीजों को कह दिया गया कि आक्सीजन का प्रबंध खुद करे. इस तरह से कोरोना के मरीज केवल मर्ज से ही नहीं अस्पतालों के खराब व्यवहार का भी षिकार हुये. पैसे खर्च करने के बाद भी मरीजों की जान नहीं बची. मरीजों को भर्ती कराने के लिये लखनऊ में ही 20 लाख रूपये की डिमांड का ओडियो भी वायरल हुआ था.

टूटते परिवार: अर्जुनगंज में रहने वाले अंकित शुक्ला के परिवार में 3 पुरूष सदस्यों की मौत हो गई. ऐसे में घर के मुखिया के ना होने से पूरा परिवार टूट गया. ऐसे कई और उदाहरण है. जहां घर में कमाने वाले की मौत हो गई. ऐसे में परिवार का परिवार आर्थिक हालत से बेहद कमजोर हो गया. एक तरफ परिवार के लोगों का जाना दूसरी तरफ आर्थिक हालातों का खराब होना त्रासदी को और भी अधिक बढा देता है. कई घर परिवार ऐसे है जो इलाज में टूट गये है. ऐसे परिवारांे मंे मध्यम वर्ग के परिवार सबसे अधिक है. मध्यम वर्ग के लोगों की मदद सरकार भी नही कर रही है.

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मध्यम वर्ग में दूसरी परेशानी यह है कि ऐसे परिवारों में बडी संख्या प्राइवेट नौकरी करने वालों की है. जहां पर वेतन पहले से ही कम मिलता था. उसके बाद वेतन में कटौती हो गई. अगर कमाने वाले की मौत हो गई तो जिस प्राइवेट संस्थान में वह नौकरी करता था वहां से कोई आर्थिक मदद नहीं दी जाती है. सरकारी नौकरी करने वाले को उसके औफिस से आथर््िाक मदद और पेंशन मिलने से परिवार की मदद हो जाती है. कई सरकारी विभागों में मृत्तक आश्रित कोटे से नौकरी मिलने से परिवार की मदद हो जाती है. सरकारी नौकरी में वेतन अच्छा मिलने से बचत भी हो जाती है जो ऐसे मौके पर मददगार साबित होती है.

खर्चे घटाएं, घरेलु उद्योग धंधे लगाए: टूटते परिवार की मदद करने वालों की संख्या ‘ना‘ के बराबर होती है. कई परिवारों पर इलाज के समय कर्ज भी चढ जाता है. इससे मुकाबला करने के लिये जरूरी है कि परिवार अपना कुछ प्रबंध करे. सबसे पहले अपने खर्चो में कटौती करे. अगर परिवार बडे शहर मंे रह रहा है तो देखे कि क्या वह छोटे षहर में रहकर अपनी गुजर बसर कर सकता है क्या ? जहां खर्च कुछ कम होते है. बडे षहरों रहने में सबसे बडा खर्च मकान का किराया होता है. यह भी हो सकता है मकान का किराया जिस क्षेत्र में कम होता हो वहां शिफ्ट हो जाये. इसके साथ ही साथ कुछ कमाने की योजना भी बनाये. छोटे शहरांे में षिफ्ट होते समय यह देखे की क्या वहां किसी तरह का घरेलू उद्योगधंधा खोला जा सकता है क्या ? जरूरी सामान बेचने की दुकान भी खोली जा सकती है.

बच्चे अगर मंहगे स्कूलों में पढ रहे है तो उनको सामान्य स्कूल में एडमिशन करा सकते है. जिससे घर के खर्च कुछ कम हो जायेगे. थोडा सा रहन सहन में भी समझौता किया जा सकता है. पति और पत्नी दोनो की परिवार की धुरी होते है. एक के ना रहने पर दूसरे को परिवार की जिम्मेदारी तो निभानी ही पडती है घर के खर्च को बोझ भी उठाना पडता है. परिवार और समाज के लोग संवेदनषील हो भी जाये तो आथर््िाक मदद उतनी नहीं कर पाते है जितनी की जरूरत परिवार को होती है. ऐसेे में कोरोना की चपेट में आकर परिवार अगर किसी भी तरह से प्रभावित हुआ है तो उससे निपटने की योजना परिवार को ही बनानी होगी.
कई परिवार ऐसी हालत में दिल्ली, मुम्बई और पंजाब छोड कर गांव में रहने आने लगे. गांव में ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढी है जो पहले बडे शहरों में रहते थे अब गांव में रहने लगे है. कई परिवार ऐसे है जो बडे शहरों में पहले परिवार सहित रहते थे अब परिवार को गांव में छोड दिया और अकेले खुद शहर में रह कर काम कर रहे है. कई परिवार गांव आकर खेती किसानी करने लगे है. ऐसे में देखा जा सकता है कि कोरोना केवल जानलेवा ही नहीं है घरेलू अर्थव्यवस्था को भी तोडने का काम कर रहा है. इससे निपटने के लिये परिवारों को अपनी आर्थिक हालत भी मजबूत करनी पडेगी.

सरकार है सामूहिक नरसंहार की जिम्मेदार

देश में जब कोरोना की पहली लहर आयी थी, हमारी स्वास्थ व्यवस्था की पोल तभी खुल गयी थी. देश में कोरोना की जांच के लिए ज़्यादा लैब नहीं थीं, नए वायरस से लड़ने के लिए दवाई नहीं थी, खुद को कोरोना से बचाने के लिए मेडिकल स्टाफ के पास सुरक्षा कवच नहीं था. अस्पताल आने वाले कोरोना मरीजों से डॉक्टर और नर्सेज डरे हुए थे. मेडिकल स्टाफ अपनी सुरक्षा की कमी का रोना रो रहा था. अस्पतालों में दस्ताने, सैनिटाइज़र, पीपीई किट की भारी कमी थी. लिहाज़ा मरीज के पास जाने से मेडिकल स्टाफ झिझक रहा था. इसके चलते सैकड़ों मरीज़ों को गरम पानी, भंपारा जैसी मामूली चीज़ें भी अस्पताओं में मुहैया नहीं हुईं और कफ से उनके फेफड़े जाम हो गए.

रिकॉर्ड उठा कर देख लें कि शमशान और कब्रिस्तान पहुंचने वाले शव ज़्यादातर उन लोगों के थे जो अस्पतालों में भर्ती थे. घर में आइसोलेट होने वाले मरीज अपने परिजनों की सेवाओं के कारण कोरोना से बच गए. यही कारण है कि अस्पतालों में बढ़ती मौतों को देखते हुए बाद में राज्य सरकारों ने कहना शुरू किया कि कोरोना मरीज़ अस्पताल भागने की जल्दी ना मचाएं, घर में ही खुद को आइसोलेट करें. वजह साफ़ थी कि महामारी से निपटने के लिए देश के अस्पतालों को जितना सक्षम होना चाहिए, उसकी दस फीसदी तैयारी भी उनके पास नहीं थी, जिसके चलते हज़ारों परिवारों ने अपने लोगों को असमय खो दिया.

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पहली लहर शुरू हुई तब पीपीई किट के बारे में लोगों ने जाना, इससे पहले पीपीई किट नहीं बनाई जाती थी. आश्चर्य की बात है कि जो देश प्लेग, स्वाइन फ्लू, चेचक, गोनोरिया, टीबी,  इन्फ्लूएंजा जैसे संचारी रोगों को देखता आया है उसके पास पीपीई किट नहीं थी. कोरोना के आने के बाद यह बननी शुरू हुई. कोरोना ने दहशत फैलाई और मरीज बढ़ने शुरू हुए तो अस्पतालों में कोरोना वार्ड बने. सेनिटाइज़र और मास्क से बाजार पट गए. गरीब आदमी भी दस रूपए का मास्क खरीद कर मुँह पर बाँधने लगा. कुछ लोग रुमाल बाँध कर काम चलाते रहे. लेकिन ज़्यादातर लोगों के मास्क या तो गले में लटके दिखते थे या नाक के नीचे होते थे. हां, किसी पुलिस वाले को देख कर जुर्माने के डर से जरूर कुछ समय के लिए नाक ढक ली जाती थी. सरकार सही मास्क और उसको सही तरीके से लगाने के लिए ना तो जनता को जागरूक कर पायी और ना ही सख्ती से इसका पालन करवा पायी.

अब एक साल बाद यह कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस से कपड़े वाला मास्क नहीं बल्कि तीन लेयर वाला सर्जिकल मास्क ही सुरक्षा देता है. कुल जमा यह कि कोरोना से बचाव के लिए कौन सा मास्क लगाना है और जीवन को बचाने के लिए मास्क की कितनी अहमियत है, सोशल डिस्टेंसिंग की कितनी जरूरत है, इसको बताने-समझाने की जगह सरकार कोरोना को भगाने के लिए ढोल-ताशे, ताली-थाली पिटवाती रही, दीया-बत्ती करवाती रही, हवन-पूजन से कोरोना भगाने के उपक्रम करती रही. प्रधानमंत्री और गृहमंत्री चुनावी सभाएं करके भीड़ इकट्ठा करते रहे जिसमें मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग जैसी चीज़ें नदारद रहीं. यहां कोरोना वायरस को अपने प्रचार-प्रसार और नए नए वेरिएंट बनाने की खूब सुविधा मिली. यानी देश की जनता को मौत के मुँह में धकेलने का काम सत्ता शीर्ष से हुआ.

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हाल में पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के दौरान रैलियों की तस्वीरें देखिये. मोदी-शाह की रैलियों में तमाम लोग बिना मास्क के एक दूसरे से सटे खड़े नज़र आते हैं, मगर मंच से एक बार भी प्रधानमंत्री मोदी या गृहमंत्री अमित शाह को जनता से यह कहते नहीं सुना गया कि जो लोग बिना मास्क के यहाँ आये हैं वो वापस चले जाएँ. क्योंकि मोदी-शाह को जतना की जान की परवाह नहीं थी, बस किसी तरह उनके भाषण सुनने के लिए भीड़ जुटनी चाहिए इस बात से ही सरोकार था. ऐसा नहीं है कि रैलियां सिर्फ प्रधानमंत्री या गृहमंत्री ने ही कीं, रैलियां तो हर पार्टी के नेताओं ने कीं, मगर मोदी-शाह का नाम इसलिए लिया जा रहा है क्योंकि इनके कन्धों पर पूरा देश टिका है, ये देश का नेतृत्व कर रहे हैं, देश की जनता सुरक्षित रहे इसकी पूरी जिम्मेदारी इन दोनों की है, ऐसे में अगर इन दोनों का आचरण और अनुशासन ठीक ना हुआ तो अन्य नेताओं का कैसे हो सकता है? अगर एक बार प्रधानमंत्री या गृहमंत्री मंच से दहाड़ कर कहते कि जनता ठीक तरीके से मास्क लगा कर और आपस में दो गज़ की दूरी बना कर भाषण सुने तो क्या अन्य नेता उनका अनुसरण ना करते? और क्या देश की जनता उनकी बात का पालन नहीं करती?

जब प्रधानमंत्री की एक आवाज़ पर लोग ताली-थाली बजाने के लिए सड़कों पर उतर आये तो क्या उनकी जान की हिफाज़त के लिए प्रधानमन्त्री को चुनावी रैलियों के मंच से ये आदेश नहीं देना चाहिए था? मगर ऐसा नहीं किया गया. सत्ता की चाशनी चाटने के लिए जनता की जान जोखिम में डाली गयी. कोरोना संक्रमण को पूरे देश में फैलाने  के रास्ते तैयार किये गए. धार्मिक अंधेपन की पराकाष्ठा देखिये कि पूरा कुम्भ बिना मास्क के हुआ. कुम्भ नहाने आये और कुम्भ में डेरा जमाये कोई साधू, कोई भक्त मास्क पहने नज़र नहीं आया (तस्वीरें गवाह हैं), वहां तैनात आईजी तक ने हाथ खड़े कर लिए कि बिना मास्क वाली इस भीड़ को संभालना उनके बस की बात नहीं है.

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जब देश पर और पूरी दुनिया पर इतनी बड़ी आफत आन पड़ी है तो क्या कुम्भ जैसे आयोजनों को इस साल रोका नहीं जा सकता था? केंद्र समझदारी भरी सख्ती दिखाता, साधू-संतो को अपने विश्वास में लेकर आयोजन को टालने की कोशिश करता तो क्या वो ना मानते? मगर ऐसा नहीं किया गया, नतीजा यह हुआ कि भीड़ में जब कोरोना पॉजिटिव लोग एक दूसरे के संपर्क में आये तो कोरोना वायरस म्यूटेट होकर और खतरनाक बन गया. और इसके बाद कुम्भ में आये लाखों लोगों ने अपने अपने जिलों-गांवों-शहरों में पहुंच कर पहले से ज़्यादा खतरनाक हो चुके कोरोना संक्रमण का प्रसाद बांटा. गौरतलब है कि हाल ही में बॉलीवुड की मशहूर संगीतकार जोड़ी नदीम-श्रवण के श्रवण राठौर का कोरोना से निधन हो गया. श्रवण भी कुम्भ नहाने गए थे और वहां से कोरोना का प्रसाद ले कर लौटे. ऐसे लाखों लोग हैं जो कुम्भ से कोरोना ले कर अपने घरों को लौटे हैं.

कोरोना की वैक्सीन को लेकर पूरे साल चर्चा होती रही. दुनिया भर के डॉक्टरों और अनुसंधानकर्ताओं ने वैक्सीन बनाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी. लगा कि वैक्सीन बन जाएगी तो कोरोना से निपट लिया जाएगा. वैक्सीन कोरोना की टांग तोड़ कर रख देगी. लोगों को मास्क और दो गज़ दूरी से निजात मिल जाएगी. लोगो का इंतज़ार चरम पर था और उधर कितनी जल्दी कोई कंपनी मार्किट में अपनी वैक्सीन उतार दे, इसकी होड़ लग गयी. कुछ कंपनियों ने एक साल के भीतर ही वैक्सीन बना कर मार्किट में उतार दी मगर नतीज़ा वही ढाक के तीन पात. वैक्सीन आ गयी, लोगों को लगनी शुरू हो गयी, मगर कुछ साइड इफेक्ट के चलते जहाँ इसके प्रति लोगों का विश्वास डावांडोल हुआ, वहीँ सरकार द्वारा योजनाबद्ध तरीके से वैक्सीन लगवाने के लिए जागरूकता अभियान नहीं चलाया गया, लोगों के मन में वैक्सीन के प्रति संशय बना रहा और टीकाकरण अभियान चींटी की चाल से चला. अब ये हाल है कि जिनको वैक्सीन के दोनों डोज़ लग चुके हैं वो भी कोरोना से सुरक्षित नहीं हैं. उनको कोरोना होने से टीकाकरण अभियान को और धक्का लगा. लोग कहने लगे जब टीका लगने पर भी कोरोना हो रहा है तो टीका क्यों लगवाना?

दरअसल इस कोरोना काल भारत सरकार जो कुछ कर रही है वह सब आपाधापी में कर रही है. बिना किसी योजना के, बिना नीति निर्धारण किये, बिना जनता को विश्वास में लिए जनता पर चीज़ें थोपी जा रही हैं. जनता के मन में डर है, सवाल हैं मगर जवाब कहीं से नहीं मिल रहा है. अब जबकि कोरोना और ज़्यादा खतरनाक हो गया है, उसकी मारक क्षमता बढ़ गयी है और वह मरीजों की सांस रोक रहा है, अस्पतालों में उनके लिए बेड नहीं बचे हैं तो ऐसी कठिन घड़ी में ऑक्सीजन सिलिंडर को लेकर देश भर में हाहाकार मचा है. हालत बिगड़ने पर अस्पतालों की ओर भाग रहे मरीजों को ऑक्सीजन और बेड्स की कमी का हवाला देकर लौटाया जा रहा है.देशभर में विकराल रूप धारण कर रही कोरोना महामरी के दौरान गंभीर होते ऑक्सीजन संकट ने अब मरीजों और डॉक्टरों के लिए नई मुश्किलें पैदा कर दी हैं. दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के चेयरपर्सन डॉ डी एस राणा निराशा में डूब कर कहते हैं, ‘लगता है कि सरकार ऑक्सीजन लेवल जीरो होने और हम सबके मरने का इंतजार कर रही है.’

कोविड-19 को जिस तरह क्रूर किस्म की लापरवाही के साथ संभाला जा रहा है, वह सामूहिक नरसंहार-जैसा है. जो दृश्य दिख रहे हैं, वे भयावह हैं. प्रधानमंत्री के गृहनगर गुजरात में एक एक चिता पर एक के ऊपर एक रखकर चार-चार पांच-पांच शव जलाने पड़ रहे हैं. गाजियाबाद में श्मशान घाट में अंत्येष्टि की जगह न मिलने पर सीढ़ियों और फुटपाथ पर शवों का अंतिम संस्कार हो रहा है. कई जगह अस्पतालों में एक ही बेड पर दो-दो कोरोना पीड़ित पड़े हैं. लोग अस्पतालों के बाहर एम्बुलेंस में दम तोड़ रहे हैं. मरीज़ों को लेकर नाते-रिश्तेदार एक से दूसरे अस्पताल में भटक रहे हैं. न ऑक्सीजन मिल रही है, न रेमडेसिविर. कोविड संक्रमण की दूसरी लहर पहली से तेज है. इससे मरने और बीमार होने वाले लोगों की संख्या में हम दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं. किसी भी देश में इतने मामले एक दिन में नहीं आए, जितने अब भारत में आ रहे है. एक साल का पर्याप्त समय मिलने के बावजूद दूसरी लहर से निपटने की कोई तैयारी भारत सरकार ने नहीं की.

दिल्ली के करोल बाग के रहने वाले एक बुजुर्ग जसपाल का पूरा परिवार कोरोना संक्रमित है, इसलिए तबीयत अधिक बिगड़ने पर जसपाल के बेटे का ड्राइवर चार अस्पतालों से धक्के खाने के बाद आज दोपहर उन्हें इलाज के लिए देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स लेकर आया. उनकी साँसें उखड़ रही थी, लेकिन एम्स के डॉक्टर ने उन्हें एडमिट करने से मना करते हुए वापस लौटा दिया. ड्राइवर डॉक्टर से मिन्नतें करता रहा, पर कोई फायदा नहीं हुआ. एम्स के आपातकालीन विभाग में तैनात महिला डॉक्टर का कहना था कि हमें सभी का इलाज करना है, लेकिन हमारे पास बेड नहीं है, एक ही ऑक्सीजन सिलिंडर है जिको टुकड़ों-टुकडों में करके कई मरीजों को लगाया जा रहा है. हम नए मरीज को कहाँ भर्ती करें जबकि हमारे पास बेड नहीं हैं. सरकार के पास जवाब नहीं है कि देश में ऑक्सीजन का ये संकट क्यों खड़ा हुआ? देश में ऑक्सीजन का पर्याप्त उत्पादन होने के बावजूद ये अस्पतालों तक क्यों नहीं पहुंच पा रही है? ऑक्सीजन की कमी से लोगों की जानें क्यों जा रही हैं? देश में कोरोना की रिकॉर्ड-तोड़ तबाही क्यों मची है?

देश में एक दिन में कोरोना संक्रमण के 3,46,786 नए मामले सामने आने के साथ संक्रमितों का आंकड़ा बढ़कर 1,66,10,481 पर पहुंच गया है जबकि उपचाराधीन मरीजों की संख्या 25 लाख से अधिक हो गई है. यही नहीं एक दिन में 2,624 संक्रमितों की मौत के साथ महामारी से मरने वालों की संख्या बढ़कर 1,89,544 हो गई है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की मानें तो देश के 10 राज्‍यों में हालात बेहद खराब हैं. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, नई दिल्ली, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, केरल, गुजरात, तमिलनाडु, राजस्थान, बिहार और पश्चिम बंगाल समेत 12 राज्यों में संक्रमण के दैनिक मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है. चिंताजनक बात यह है कि संक्रमण के खिलाफ रिकवरी रेट और गिर गई है. मौजूदा वक्‍त में यह 83.49 फीसदी है.

मई और जून में नए वेरिएंट का संक्रमण अपनी पीक पर होगा. 15 मई के बाद का समय महा प्रलय का है. जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होगी वे इसकी चपेट में होंगे. लाखों लोगों का जीवन दांव पर लगा है. सब तरफ दहशत का माहौल है. उधर सरकार ने कई जगह कोरोना टेस्ट बंद कर दिए हैं क्योंकि अस्पतालों में नए मरीज़ों के लिए जगह नहीं है. जितने ज़्यादा टेस्ट होंगे उतने ज़्यादा मरीज अस्पतालों का रुख करेंगे, इस डर से टेस्ट ही रोक दिए गए हैं. हर जगह मेडिकल स्टाफ की बेतरह कमी है, डॉक्टर-नर्सेस खुद कोरोना कीचपेट में हैं. ऑक्सीजन की भारी कमी है. वैक्सीन की कमी है. दवाओं की कमी है. इन सारी चुनौतियों से सरकार कैसे निपटेगी इसकी कोई योजना सरकार के पास नहीं है. ऐसे में जब मई जून में कोरोना पीक पर होगा और लग प्राणवायु के लिए तड़प रहे होंगे तब छोटे शहरों और गांवों के अस्पतालों तक ऑक्सीजन पहुंचाना एक बहुत बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि इसके लिए सुविधाएं नहीं हैं. न तो पर्याप्त सिलेंडर हैं, न पाइप वाले ऑक्सीजन मास्क और न लिक्विड ऑक्सीजन निर्माता.

भारत इस समय दुनिया में कोरोना महामारी का एपीसेंटर बन गया है. एक दिन में साढ़े तीन लाख नए केस और 2,624 मरीज़ों की मौत के आंकड़े क्या सरकार को शर्मसार नहीं कर रहे? क्या अब भी प्रधानमंत्री को देश के ध्वस्त हो चुके हेल्थ स्ट्रक्चर पर शर्म नहीं आ रही? खुद को विश्व गुरु के खिताब से नवाज़ने वाले अपने लोगों की जान नहीं बचा पा रहे हैं? हालत यह है कि जिन्हें दुश्मन देश समझा जाता था वो तक  हिन्दुस्तान की जनता की हालत देख कर थरथरा उठे हैं और मदद का हाथ बढ़ा रहे हैं. और प्रधानमंत्री जी ऑक्सीजन और कोरोना पर मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में लोगों की जान से ज़्यादा प्रोटोकॉल की चिंता कर रहे हैं. जनता के सामने मीटिंग की बातें ना आ जाएँ इस बात की उनको ज़्यादा फ़िक्र है. तभी तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने जब मीटिंग को सार्वजनिक किया तो उनको डांटते हुए प्रधानमंत्री ने उनको प्रोटोकॉल का पालन करने की नसीहत दी. क्या लोगों की मौत में भी प्रोटोकॉल देखा जाना चाहिए? क्या महामारी में लोगों की सुरक्षा के लिए होने वाले काम और बातें इन हाउस होनी चाहिए? साहेब,

अगर मीटिंग पब्लिक के लिए हुई थी, जनता की साँसे बचाने के लिए हुई थी तो फिर बातों को छिपाने और प्राइवेट रखने का क्या मतलब है? ये तो चोर की दाढ़ी में तिनके वाली कहावत हो गयी. भारत में कोरोना केस पिछले डेढ़ महीने में 10 हजार से सीधे 3 लाख के पार पहुंच गए हैं और अभी भी प्रधानमंत्री मोदी इस संकट की गंभीरता को समझना नहीं चाहते? जो लोग इस संकट को समझ रहे हैं और आवाज उठा रहे हैं, उन्हें प्रोटोकॉल का पालन करने की नसीहत दी जा रही है? शर्म आती है कि देश की सत्ता ऐसे हाथों में है जो साँसों पर सियासत से बाज़ नहीं आ रहे हैं.

 

Shehnazz Gill ने सोशल मीडिया पर सिखाया मास्क पहनने का तरीका, लेकिन हो गई ट्रोल

बिग बॉस 13 फेम शहनाज गिल इन दिनों सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा एक्टिव रहती हैं. शहनाज गिल के पोस्ट का इंतजार उनके फैंस को बेसब्री से होता है. लेकिन हाल ही में शहनाज ने जो पोस्ट किया है इसके बाद से वह ट्रोलर्स के निशाने पर आ गई हैं.

कुछ वक्त पहले ही शहनाज ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक तस्वीर शेयर किया है जिसमें शहनाज काफी ज्यादा गलैमर्स लग रही हैं. शहनाज के इस तस्वीर को लोग खूब पसंद भी कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग शहनाज को अपने निशाने पर भी रख रहे हैं.

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कुछ लोग इस तस्वीर की तुलना बार्बी डॉल से कर रहे हैं. ऐसे में शहनाज गिल ने इस तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा है कि आप भी मास्क को पहने. जिसके बाद ट्रोलर्स ने निशाना साधते हुए कहा है कि पहले खुद तो मास्क लगाना सिख लोग फिर दूसरे किसी को मास्क पहनना बताना.

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इस तस्वीर पर लगातार फैंस के कमेंट आ रहे हैं. जिसपर शहनाज गिल ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.शहनाज को अगर कुछ भी होता है तो ऐसे में उनके साथ दोस्त और कुलिग उनका साथ देने जरुर आ जाते हैं. हर बार कि तरह इस बार भी सिद्धार्थ शुक्ला ने ऐसा ही किया शहनाज गिल के सपोर्ट में उतर आएं.

 

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वहीं ट्रोलर्स का ये भी कहना है कि लाइक्स बटोरने के लिए शहनाज गिल कुछ भी कर सकती हैं. ऐसे में शहनाज गिल को इतना हद पार नहीं करना चाहिए. हालांकि देखा जाए तो शहनाज गिल अपने बेबाक अंदजा के लिए ही सोशल मीडिया पर जानी जाती हैं.

हिना खान हुईं कोरोना पॉजिटिव, हाल ही में हुई थी पिता की मौत

टीवी की पॉपुलर एक्ट्रेस हिना खान ने हाल ही में  अपने पिता को खोया है. जिसके बाद से हिना खान कोरोना पॉजिटीव हो गई हैं. जी हां एक्ट्रेस ने कुछ दिन पहले ही इस बात की जानकारी अपने सोशल मीडिया पर दी है.

जहां कुछ दिन पहले हिना खान ने बताया था कि वह कुछ समय के लिए सोशल मीडिया से ब्रेक लिया है. हिना खान के टीम ने कुछ समय पहले डाला था कि ‘ये समय मेरे और परिवार के लिए बहुत मुश्किल भरा है; जहां मेरा पूरा परिवार कोरोना पॉजिटीव है. हम सब डॉक्टर के देख रेख में इलाज ले रहे हैं.

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इसके साथ ही मैंने खुद को आइसोलेट कर लिया है. हाल ही मैं जिन लोगों से मिली हूं वो अपना टेस्ट करवा लें. आपको बता दें कि हिना खान अपने पिता के जाने के बाद से टूट गई हैं. वह खुद को कुछ वक्त के लिए सोशल मीडिया से दूर रखना चाहती हैं. उन्होंने इस दुख की घड़ी में साथ देने वाले सभी फैंस को शुक्रिया अदा किया है.

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एक्ट्रेस कुछ दिन पहले ही अपने बॉयफ्रेंड रॉकी जयसवाल के साथ मालदीव में छुट्टी मनाने पहुंची थी. जहां उन्हें उनके पिता के बिगड़ते तबीयत के बारे में पता चला जिसके बाद से वह तुरंत घर के लिए निकल गई.

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हिना इस वक्त अपने परिवार के साथ हैं जहां उन्हें सभी स्टार्स हिम्मत दे रहे हैं. हिना खान इस वक्त अपने आप को काफी ज्यादा कमजोर महसूस कर रही हैं. उन्हें लग रहा है उन्होंने अपनी जिंदगी के कुछ अनमोल चीजों को खो दिया है. हिना खान फिलहाल किसी से बात भी नहीं कर रही हैं.

 

एक्वापोनिक्स से करें मछली और साग-सब्जियों का उत्पादन- भाग 1

लेखक- डा. सुबोध कुमार शर्मा     

एक्वापोनिक्स तकनीक कुछ विशेष स्थितियों में खासकर जहां भूमि और पानी सीमित है, में अधिक उत्पादन और आर्थिक रूप से प्रभावी सिद्ध हो सकती है. बड़ी संख्या में सब्जियां और उद्यानिकी फसलें जैसे चुकंदर, मूली, आलू, गोभी, ब्रोकली, सलाद, लेट्यूस, टमाटर, बैगन, मिर्च, खीरा, फल और मौसमी फूल सफलतापूर्वक उगाए जा सकते हैं. एक्वापोनिक्स में मिट्टी के बजाय दूसरे स्रोतों का उपयोग किया जाता है जैसे कि बजरी, रेत, कोकोपीट, रौक, ऊनी नमदा, वर्मीक्यूलाइट, नारियल फाइबर, यहां तक कि सिंडर ब्लौक और स्टायरोफोम आदि.

आजकल कई मछली प्रजातियों को सफलतापूर्वक एक्वापोनिक्स सिस्टम में विकसित किया जा रहा है जैसे कि चैनल कैटफिश, ट्राउट, मरे कौड, ब्लू गिल, येलो पर्च और हमारे देश में कौमन कार्प, मांगुर, कवई, पंगास, तिलापिया, संवल इत्यादि.एक्वापोनिक्स का महत्त्व और आयएक्वापोनिक्स एक नई और तेजी से लोकप्रिय होती तकनीक है. इस से पौष्टिक मछली और सब्जियां दोनों का उत्पादन इस प्रणाली में जमीन में उगने वाली सब्जियों की तुलना में बहुत कम पानी का उपयोग होता है. सब्जियों के फसल चक्र का समय भी लगभग आधा हो जाता है.

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खास बात तो यह कि  इस सिस्टम में किसी भी प्रकार के कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है. ताजा फल, सब्जियां और मछली बाजार में भी अधिक मूल्य मिलता है. बहुत से लोग अब अपने भोजन का उत्पादन करने के लिए इसे चुन रहे हैं और अतिरिक्त आय हासिल करने के लिए बिक्री भी करते हैं. इस से प्राप्त उत्पादन को स्थानीय कैफे और रैस्टोरैंट, दोस्तों और परिचितों या स्थानीय बाजारों में बेचा जा सकता है.

एक्वापोनिक्स खाद्य उत्पादनके प्रमुख लाभ

*   यह एक सतत और गहन खाद्य उत्पादन प्रणाली है.

*   2 कृषि उत्पाद (मछली और सब्जियां) एक ही नाइट्रोजन स्रोत (मछली के भोजन) से उत्पन्न होते हैं.

* जल का अत्यंत कुशल उपयोग.

* इस में मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है.

* इस प्रणाली मे उर्वरकों या रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग नहीं करते हैं.

* गुणवतापूर्ण उच्च उत्पादन ले सकते हैं.

* जैविक उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान.

* प्रदूषण का न्यूनतम जोखिम.

* उत्पादन पर उच्च नियंत्रण से न्यूनतम हानि.

* गैरकृषि में भी आसानी से स्थापित किया जा सकता है.

* अपशिष्ट की मात्रा न्यूनतम होती है.

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* दैनिक कार्य, कटाई और रोपण में मेहनत की बचत से सभी लिंग और आयु वर्ग के लोगों को रोजगार का अवसर मिलता है.

* कई स्थानों पर परिवार के लिए खाद्य उत्पादन या नकदी फसल के रूप में उत्पादन.एक्वाकल्चर मेंएक्वापोनिक्स की उपयोगिताजल में अपशिष्ट की कमी करना :  एक्वापोनिक्स में मछली के अपशिष्ट जल का निष्पादन जैव निस्पंदन प्रणाली के माध्यम से किया जाता है,

जहां अमोनिया को नाइट्राइट और नाइट्राइट को नाइट्रेट में परिवर्तित किया जाता है, जिसे पौधे पोषण के रूप में अवशोषित कर लेते हैं. यह निस्पंदन प्रक्रिया फसलों के लिए पोषण प्रदान करती है और बदले में मछली के टैंकों में लौटने से पहले फसल पानी से विषाक्त पदार्थों को अवशोषित कर लेती है. सिस्टम के भीतर पानी लगातार पौधों से मछली और वापस फिर से पौधों के बीच में परिचालित होता रहता है.

इस प्रक्रिया के माध्यम से पानी की गुणवत्ता लगातार अच्छी बनी रहती है.लागत में कमी करना : एक्वापोनिक्स में पानी पूरे सिस्टम में लगातार परिचालित होता रहता है, जिस का अर्थ है कि पानी की खपत केवल वाष्पीकरण, अतिप्रवाह और पौधों द्वारा प्राकृतिक अवशोषण के कारण ही होती है. इस प्रणाली में मछली को स्वाभाविक रूप से मछली उत्पादन के साथ फसलों के लिए पोषण मिलता है.

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पानी की आपूर्ति में अतिरिक्त पोषक तत्त्वों को डालने की आवश्यकता कम हो जाती है,  बस प्रत्येक दिन मछली को भोजन प्रदान करना और नियमित रूप से निगरानी करने की जरूरत है.लाभ के अधिक अवसर : मछली के प्रकार के आधार पर आप अपनी मछली को कुछ महीनों में बेचने लायक बड़ी कर सकते हैं, जबकि लैट्यूस जैसी फसलें केवल 6-8 हफ्ते में फसल तैयार हो जाती हैं.

यह न केवल एक सुसंगत आय का अवसर प्रदान करता है, बल्कि आप के बाजार को भी बढ़ाता है.एक्वापोनिक्स की पद्धतिऔर तकनीकएक्वापोनिक्स में उपयोग किए जाने वाले 3 सब से सामान्य तरीके हैं :1. मीडिया बेड विधि, 2. पोषक तत्त्व फिल्म तकनीक (एनएफटी) विधि, 3. गहर(डीडब्ल्यूसी) विधि.अगले भाग में विस्तार से पढ़िए मीडिया बेड विधि के बारे में.

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