‘‘आइए कमल साहब, एक बाजी हो जाए,’’ कुसुम ने कहा, ‘‘चांदनी तो खेलेगी नहीं.’’
‘‘नहीं, आज मैं नहीं चांदनी ही खेलेगी, क्यों पार्टनर,’’ कमल ने उस की तरफ देखा.
‘‘अरे वाह, फिर तो मजा ही आ जाएगा. आओ चांदनी.’’
‘‘जाओ चांदनी, आज की रात मेरी चांदनी के जीतने की रात है.’’
चांदनी एकटक कमल को देखती रह गई, ‘‘सच कहते हो कमल, आज की रात पर ही चांदनी की जीत और हार का फैसला टिका है. चलो कमल, तुम भी वहीं बैठो, तुम्हारे बिना मैं नहीं जाऊंगी.’’
‘‘पगली, मैं तो हर पग पर तेरे साथ हूं, अच्छा चलो,’’ कमल भी आगे बढ़ गया.
गेम शुरू हो गया. इस मेज पर पांचों महिलाएं थीं. मिस्टर रमन ने कमल से भी खेलने का अनुरोध किया, मगर कमल हंस कर टाल गया. शुरू की कुछ बाजियां कुसुम ने जीतीं, फिर चांदनी जीतती चली गई.
कमल के होंठों पर विजयी मुसकान थिरक रही थी. तभी हाल में सूरजा ने प्रवेश किया और वह सीधी उसी मेज पर आई जहां चांदनी बैठी थी.
‘‘अरे सूरजा, आ यार… आतेआते बहुत देर कर दी,’’ कुसुम ने शायराना अंदाज में कहा, मगर कमल के होंठ घृणा से सिकुड़ गए.
‘‘आ बैठ, एकाध बाजी तो खेलेगी न,’’ मिसेज सिंह बोलीं.
‘‘क्यों नहीं, अगर चांदनी को एतराज न हो तो.’’
‘‘मुझे क्यों एतराज होगा दीदी, आइए आप के साथ खेल कर मुझे खुशी होगी.’’
‘‘चांदनी चलो, रात बहुत हो गई है,’’ कमल उठ कर खड़ा हो गया.
‘‘कमल, प्लीज,’’ चांदनी ने उस का हाथ पकड़ कर दबा दिया, उस की आंखों में याचना थी मानो कह रही हो मेरा अपमान न करो.
‘‘बैठिए न कमल बाबू, आज आप का इम्तिहान है. इम्तिहान अधूरा रह गया तो फैसला कैसे होगा?’’ कुसुम बोली.
‘‘बैठो न कमल, प्लीज, मेरे लिए न सही चांदनी के लिए तो बैठ जाओ,’’ सूरजा ने ऐसी मुसकान फेंकी कि कमल का दिल जलभुन गया.
एक बार फिर गेम शुरू हो गया. अब की बार बाजी पलट गई, एकाध गेम तो चांदनी जीती थी मगर फिर लगातार हारती चली गई.
‘‘बस भई,’’ चांदनी ने पत्ते फेंकते हुए कहा, ‘‘हम तो हार गए सूरजा दीदी, आप को जीत मुबारक हो. चलो, कमल चलें.’’
‘‘अरे वाह, अभी तो कमल बाबू का पर्स बाकी है. कमल बाबू निकालिए न पर्स,’’ कुसुम चहकते हुए बोली.
कमल की जुआरी प्रवृत्ति जाग उठी थी, फिर वह दांव पर दांव लगाता गया. यहां तक कि कमल का भी पर्स खाली हो गया.
‘‘छोड़ो कुसुम, अब जाने भी दो. बहुत हो चुका,’’ चांदनी फिर से उठने लगी.
‘‘अरे वाह, अभी तो बहुत कुछ बाकी है,’’ मिसेज सिंह बोलीं, ‘‘कमल बाबू की घड़ी, अंगूठी, तेरा टौप्स भई चांदनी क्या पता सब वापस आ जाए, बैठ न.’’
‘‘नहींनहीं, अब रात भी बहुत हो गई है. चलो कमल.’’
‘‘बैठो चांदनी, मिसेज सिंह ठीक कहती हैं क्या पता बाजी पलट जाए,’’ कमल ने उसे बैठा दिया.
‘‘नहीं कमल, पागल न बनो, आओ चलें, जुए की आग में सबकुछ जल जाता है, चलो चलें.’’‘‘नहीं चांदनी यों बाजी अधूरी छोड़ कर उठना गलत है, बैठ जाओ,’’ कमल ने उसे मानो आदेश दिया था. उस के जेहन में फिर जुआरियों की मानसिकता का काला परदा खिंच गया, जिस पर 3 शब्द खिले रहते हैं शायद… इस बार… और इस बारके चक्कर में एकएक कर सारी चीजें यहां तक कि बाहर खड़ी स्कूटी भी सूरजा के कब्जे में चली गई.
कमल के चेहरे पर कालिमा सी उतर आई थी, ‘‘चांदनी चलो, अब कल खेलना.’
‘‘चांदनी, कल पर भरोसा कायर करते हैं,’’ अब की बार सूरजा बोली, ‘‘अभी भी वक्त है, तुम चाहो तो हारी हुई बाजी जीत सकती हो, एक ही दांव में सबकुछ तुम्हारा हो सकता है.’’
‘‘मगर अब दांव लगाने को मेरे पास है ही क्या दीदी,’’ चांदनी के होंठों पर फीकी मुसकान उभर आई.
‘‘चांदनी… अभी भी तुम्हारे पास एक ऐसी चीज है जिस का औरों के लिए चाहे कोई मूल्य न हो मगर मेरे लिए उस की काफी कीमत है. बोलो, लगाओगी दांव.’’
‘‘मगर मैं समझी नहीं दीदी… वह चीज…’’
‘‘उस चीज का नाम है कमल,’’ सूरजा की मुसकराती नजरें कमल पर टिक गईं.
‘‘सूरजा,’’ कमल चीख कर खड़ा हो गया.
‘‘बोलो, लगाओगी एक दांव, एक तरफ कमल होगा दूसरी तरफ ये हजारों रुपएगहने, यहां तक कि बाहर खड़ी मेरी कार भी… मैं सबकुछ दांव पर लगा दूंगी, बोलो है मंजूर.’’
‘‘सूरजा इस से पहले कि मेरी सहनशक्ति जवाब दे दे अपनी बकवास बंद कर लो,’’ कमल चीखा.
‘‘मैं आप से बात नहीं कर रही मिस्टर कमल, एक खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी को खेलने के लिए उकसा रहा है और यह कोई जुर्म नहीं. जवाब दो चांदनी.’’
‘‘चांदनी, चलो यहां से,’’ कमल ने चांदनी का हाथ पकड़ कर उसे उठाने की कोशिश की.
‘‘सोच लो चांदनी, मैं अपनी एक फैक्ट्री भी तुम्हारे लिए दांव पर लगा रही हूं, यदि तुम जीत गई तो रानी बन जाओगी और यदि हार भी गई तो तुम्हारे दुखदर्द का प्रणेता तुम्हारे काले अंधेरे का सूरज तुम से दूर हो जाएगा.’’
‘‘चांदनी, इस की बकवास पर मत ध्यान दो. यह बहुत गंदी जगह है, चलो यहां से,’’ कमल ने हाथ पकड़ लिया था.
चांदनी ने हाथ खींचा और एक पल को उस ने कमल को भरपूर नजरों से देखा और फिर बोल पड़ी, ‘‘ठीक है दीदी, मुझे आप का दांव मंजूर है… दीदी, मैं अपने दांव पर अपने पति, अपने सुहाग अपने कमल को लगा रही हूं,’’ चांदनी का स्वर बर्फ कीमानिंद और सर्द हो गया.
‘चांदनी,’’ कमल चीख पड़ा, ‘‘तुम पागल हो गई हो… तुम… तुम मुझे दांव पर… अपने पति… अपने सुहाग को दांव पर लगाओगी.’’
‘‘जुए का जनून सोचनेसमझने की शक्ति छीन लेता है कमल, मुझे एक दांव खेलना ही है. हो सकता है मैं दांव जीत जाऊं. जुए के तराजू में रिश्तेनाते नहीं देखे जाते कमल, जीत और हार देखी जाती है.’’
‘‘चांदनी,’’ कमल विस्फारित नेत्रों से चांदनी को देखता चला गया, उस की आंखों में खून उतर आया था, ‘‘तुम भूल गई कि मैं सूरजा से नफरत करता हूं. तुम से वह मुझे छीनना चाहती है. अरी पगली, तू अपने सुहाग को इस डायन को सौंपना चाहती है. सोच चांदनी, क्या अपने पति को उस के हाथ सौंपना चाहती है.’’
‘‘यह तो सिर्फ एक गेम है कमल, जुआरी कभी अपनी हार के बारे में सोचता ही नहीं.’’
‘‘और अगर तुम दांव हार गई तो,’’ कमल का चेहरा स्याह हो गया.
‘‘चाल चलने से पहले जुआरी सिर्फ जीतने के लिए सोचता है कमल… और यह भी तो सोचो एक तरफ तुम हो और दूसरी तरफ अथाह संपत्ति है, सोचो, अगर हम जीत गए तो तुम्हें कमाने के बारे में सोचना ही नहीं पड़ेगा. हम दोनों ऐश करेंगे, इसलिए मैं यह गेम जरूर खेलूंगी.’’
‘‘चांदनी, उफ, तुम इतनी खुदगर्ज हो गई, तुम्हें अपना पति, अपना सुहाग भी नजर नहीं आ रहा है,’’ कमल का स्वर भर्रा उठा था, ‘‘जुए के दांव को जीतने के लिए अपने पति को दांव पर लगा रही हो.’’
‘‘तो क्या हुआ कमल, अगर एक पति अपनी पत्नी को दांव पर लगा सकता है तो एक पत्नी को यह हक क्यों नहीं है और यह भी तो सोचो कमल, जीवन हम दोनों का है, मेरी जीत भी तो तुम्हारी ही होगी न.’’
‘‘और यदि हार गई तो?’’ कमल बोला.
‘‘अरे, नहीं प्राणनाथ, मैं तो यह सोच भी नहीं सकती.’’
‘‘तुम पागल हो गई हो चांदनी, तुम इतना गिर सकती हो ऐसा मैं ने सोचा भी नहीं था. मैं तुम से अथाह प्यार करता था, लेकिन आज तो मैं तुम से सिर्फ घृणा ही कर सकता हूं. एक सुहागन के नाम पर तुम कलंक हो. तुम सिर्फ दौलत की चाह में अपने पिता को दांव पर लगा रही हो. इतिहास तुम जैसी सुहागनों को कभी माफ नहीं करेगा और कोई भी पतिव्रता तुम जैसों से घृणा करेगी. तू एक बदनुमा धब्बा है चांदनी,’’ कमल का हृदय घृणा से भर उठा था और आंखों में खून उतर आया था मगर आंसू भी गिर रहे थे.
‘‘इतिहास…’’ अचानक चांदनी की आवाज तेज हो गई, ‘‘हुंह, किस इतिहास की बात कर रहे हो कमल, उस इतिहास के बारे में सोचो, जब धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने राज्य को पाने के लिए द्रोपदी को दांव पर लगा दिया था. तुम किस इतिहास चक्र की बात कर रहे हो कमल, इतिहास अतीत का आईना होता है और वक्त उसी को वर्तमान में बदल देता है. याद है जबजब तुम जुए में फड़ पर बैठ जाते थे और मैं तुम्हारे पैरों में गिरती थी. तुम अपने परिवार, अपने बच्चों के भविष्य के बारे में भूल जाते थे. आज तुम्हें वर्तमान दिख रहा है.
‘‘कमल, जिस इतिहास की तुम गवाही दे रहे हो क्या उस में वर्तमान और भविष्य के अंधेरे नहीं देख पा रहे हो, हमारी औलाद क्या जुए के फड़ पर बैठ कर भविष्य के उजाले बिखेरगी. तुम्हारी जुआरी प्रवृत्ति क्या बच्चों की उंगली पकड़ कर काली रोशनी में बिखर नहीं जाएगी.’’
कमल का सिर झुक गया था.
‘‘इतिहास चक्र के आईने में कभी तुम ने भविष्य की तसवीर देखी है, बोलो, जवाब दो,’’ चांदनी फूटफूट कर रो पड़ी थी.
कमल का सिर झुकता चला गया था, ‘‘हां चांदनी, आज अपनी गलती को मैं महसूस कर रहा हूं. तुम ने इतिहास चक्र के हर पन्ने को वर्तमान में बदल दिया. यह एक उदाहरण बन जाएगा. शायद सारे पतियों के लिए तुम ठीक कह रही हो. चांदनी, मैं जुए के दांव के लिए स्वयं को प्रस्तुत कर रहा हूं. तुम ठीक कह रही हो चांदनी.’’
‘‘कमल,’’ अभी तक चुप बैठी सूरजा उठ कर कमल के पास आ बैठी थी, ‘‘आज जो आप ने महसूस किया है यही चांदनी की जीत है. लोग अपने परिवार का भविष्य जुए के दांवों पर लगा देते हैं. चांदनी भी फूटफूट कर रोती रहती थी मगर कभी भीआप को अपना दुख नहीं बता पाई. अपने दुख को सिर्फ मुझ से बांटती थी. जरा ध्यान से देखिए क्या एक पत्नी अपने पति के गलत कृत्यों का विरोध नहीं कर सकती है.’’
‘‘नहीं सूरजा, मैं तुम से भी क्षमा चाहती हूं. चलो, जुए की चाल को आगे बढ़ाओ, मैं इस इतिहास चक्र का एक अंग बनना चाहता हूं.’’
‘‘बस, यह इतिहास चक्र ही तो जीत है कमल, तुम्हारा सारा सामान तुम्हारी चांदनी सबकुछ तुम्हारे पास है. चलो, चांदनी का हाथ पकड़ो और सभी मिल कर दीवाली की मिठाइयां खाएं, क्यों चांदनी.’’
तभी अपनेआप को समेटे चांदनी फूटफूट कर रो पड़ी और कमल ने उसे अपने सीने में समेट लिया.
‘‘चांदनी, आज तुम ने सिर्फ मेरे ही नहीं बहुत से अंधेरे में डूबे हुए घरों में उजाला फैला दिया है. मैं विश्वास दिलाता हूं चांदनी, हम दोनों मिल कर जुए के खिलाफ एक जंग लड़ेंगे और इतिहास चक्र एक नई कहानी लिख देगा, आओ, घर चलते हैं और मिल कर दीवाली की रोशनी हर जगह बिखेर देंगे.’’
‘‘और सूरजा दीदी वह भी आ सकती हैं,’’ चांदनी ने मुसकरा कर कहा.
‘‘हां पगली, मैं भी उस का एक अच्छा दोस्त बन कर दिखा दूंगा,’’ कमल ने कहा.-