देश भर में इन दिनों दहशत और विकट की अफरातफरी का माहौल है जिसकी उम्मीद किसी ने सपने में भी नहीं की थी . लोग भूख से नहीं बल्कि कोरोना की दवाइयों और आक्सीजन न मिलने से दम तोड़ रहे हैं . ऐसे हाहाकारी माहौल में मोदी सरकार के कामकाज का तरीका हर किसी के निशाने पर है . जैसे जैसे हालात बेकाबू होते जा रहे हैं वैसे वैसे आम लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है दो टूक कहा जाए तो सरकार पर से लोगों का भरोसा उठता जा रहा है .

वक्त की नजाकत भांपते मोदी सरकार ने एलान किया है कि मई और जून के महीने में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दिया जाएगा जिसका फायदा 80 करोड़ लोगों को मिलेगा . एक तरह से खुद सरकार ने मान लिया है कि 130 करोड़ की आबादी बाले देश में 80 करोड़ लोग गरीब हैं . ये वे लोग हैं जो हर महीने राशन कार्ड पर अनाज लेते हैं . इस योजना पर सरकार 26000 करोड़ रु खर्च करेगी . योजना के तहत राशनकार्ड धारी हर महीने सस्ता  बिकने बाले अनाज के अलावा इस मुफ्त के अनाज के हक़दार होंगे .

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कोरोना की दूसरी लहर का कहर किसी से छिपा नहीं रह गया है . देश भर में लाक डाउन से भी बदतर हालात हैं . अधिकतर लोगों को कमाने खाने के लाले पड़े हैं तेजी से उद्ध्योग धंधे फिर बंद हो रहे हैं और मजदूर फिर अपने घरों की तरफ भाग रहे हैं बडी तादाद में लोग बेरोजगार हो रहे हैं . ऐसे में सरकार ने मुफ्त अनाज बांटने का फैसला लेकर बिलाशक गरीबों को राहत ही दी है लेकिन कई सवालों को लेकर इस घोषणा के बाद सरकार खुद कटघरे में खड़ी नजर आ रही है .

सवाल नंबर ( एक ) – मोदी सरकार के 7 साल पूरे होने में अब कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं इसके बाद भी 80 करोड़ लोग गरीब हैं यानी सरकार ने गरीबी मिटाने कुछ नहीं किया है . क्या इतनी बडी तादाद में गरीबों को लेकर वह विश्व गुरु बनने का खवाव देख और दिखा रही थी . इन सात सालों में कारख़ाने और फेक्ट्रियां न के बराबर लगी हैं . जाहिर है सबका साथ सबका विकास का उसका नारा एक धोखा था जिसकी पोल कोरोना संकट ने खोल कर रख दी है .

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सवाल नम्बर ( दो ) – सरकार कोई भारी भरकम मदद गरीबों की नहीं कर रही है . मुफ्त अनाज योजना में हरेक को 5 किलो गेंहू या इतना ही चावल दिया जाएगा . इन दोनों अनाजों का भाव 20 रु प्रति किलो भी मानें तो एक आदमी को 2 महीने में 10 किलो अनाज मिलेगा जिसकी कीमत महज 200 रु होती है . यानी 80 करोड़ लोगों पर वह 16000 करोड़ रु खर्च करेगी . बचे एक हजार करोड़ रु ट्रांसपोर्टिंग और दीगर मदों पर खर्च हुए मान भी लिए जाएँ तो यह पूछना कुदरती बात है कि क्या सरकार की नजर में एक आदमी एक दिन में केवल 3 रु 33 पैसे ही कमाता है . क्या इतने पैसों में एक आदमी का पेट भर जाएगा . पिछले साल इसी योजना के तहत गरीब परिवारों को एक किलो दाल भी दी गई थी जो कि इस बार नहीं दी जा रही है क्योंकि वह महंगी पड़ती है  . दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल बाली आप सरकार ने मुफ्त अनाज के साथ एक कोरोना किट भी बांटी थी जिसमे एक लीटर खाने के तेल सहित सभी मसाले व साबुन भी थे .इस किट की कीमत 200 रु के लगभग थी .

सवाल नंबर ( तीन ) – खाना बनाने में तेल मसाले और इंधन बगैरह भी लगता है जिसकी लागत एक आदमी पर प्रतिदिन लगभग 6 रु आती है . यह पैसा गरीब कहाँ से लायेगा जबकि इन दिनों करने उसके पास कोई काम या रोजगार नहीं है . कहने का मतलब यह नहीं कि सरकार मारवाड़ी या राम भरोसे भोजनालय की तरह थाली परोस कर दे बल्कि यह है कि यह इमदाद ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है इसे और ज्यादा होना चाहिए था .

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सवाल नंबर ( चार ) –  सोशल मीडिया पर सरकार के इस फैसले की खूब खिंचाई हो रही है . पूछने बाले पूछ रहे हैं कि आखिर इस पैसे का बोझ कौन ढोएगा .  मध्यमवर्गीय लोगों का कहना है कि इस पैसे की वसूली टेक्स बढ़ाकर हम से ही की जाएगी क्योंकि भाजपा सरकार उद्योपतियों पर शुरू से मेहरबान है जो आये दिन उनके कर्जे और ब्याज माफ़ करती रहती है जिसके एवज में उसे चुनावी चंदा मिलता है . क्या देश गरीबों और अमीरों का ही है हमारे लिए सरकार के पास क्या है वह साफ़ करे .

असल में यही वह तबका है जो इन दिनों कोरोना से ज्यादा जूझ रहा है . लोगों की जेब में पैसे हैं लेकिन उन्हें अस्पताल , बिस्तर , दवाइयां और आक्सीजन और शमशान घाट तक नहीं मिल पा रहे हैं . सरकार गरीबों को मुफ्त अनाज दे इससे ज्यादा चिढ़ इस तबके को इस बात की है कि उसे पैसे देकर भी इलाज नहीं मिल रहा . एक अहम सवाल यह भी कि क्या गरीबों की जिन्दगी सिर्फ मुफ्त के अनाज से बच जाएगी उनके इलाज का अनाज की तरह मुफ्त का कोई इंतजाम क्यों नहीं .

सवाल नंबर ( पांच ) – अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन रहा है सरकार बताए कि इससे गरीबों को क्या मिलेगा . इस मंदिर पर अरबों रु खर्च हो रहे हैं . लोगों से चंदा ही 2600 करोड़ रु से ज्यादा इकट्ठा हुआ है .क्या इस तरह के धार्मिक जलसे फिजूलखर्ची नहीं हैं . हरिद्वार का कुम्भ मेला भी बेहद खर्चीला था जिसे न केवल देश बल्कि दुनिया भर के लोग कोरोना फैलने की बडी वजह मान रहे हैं . सरकार इन धार्मिक मेलों ठेलों पर क्यों बेहिसाब पैसा फूंकती है . इस पैसे से कारखाने और फेक्ट्रियां क्यों नहीं लगाये जाते जिससे बेरोजगारों खासतौर से नौजवानों को रोजगार मिले और वे सरकारी खैरात की जगह इज्जत की रोटी खाएं .उलटे सरकार अपनी कम्पनियां ही बेचती जा रही है जिनसे लाखों लोगों को एक तरह से सरकारी नौकरी मिली हुई थी अब ये लोग सेठों की बेगार ढोने मजबूर होंगे .

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सवाल नंबर ( छह ) – गुजरात में सरदार बल्लभ भाई पटेल की मूर्ति जिसे स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी कहा जाता है को बनबाने में ही 3000 करोड़ रु बेरहमी से फूंकने पर कितनों की गरीबी दूर हुई . इस पैसे का इस्तेमाल रोजगार के इंतजाम करने में किया जाता तो गरीबों की तादाद तय है घटती . जानकर हैरानी होती है कि यह मूर्ति अब सफ़ेद हाथी साबित हो रही है . साल 2020 – 21 के बजट में गुजरात सरकार ने इस मूर्ति के रंग रोगन और साफ़ सफाई के लिए ही 387 करोड़ रु का इंतजाम रखा है .  एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिदिन 12 लाख रु इस सबसे ऊँची मूर्ति के रखरखाब और साफ़ सफाई पर खर्च होते हैं  जबकि इससे आमदनी 100 करोड़ रु की भी नहीं हो रही तो फिर मूर्तियों पर जनता का पैसा क्यों पानी की तरह बहाया जा रहा है .

इस मूर्ति के नजदीक की 1300 एकड़ जमीन पर सफारी पार्क बनाया जा रहा है उस पर भी अनाप शनाप पैसा खर्च हो रहा है . इतने रकबे पर खेती ही की जाती तो 20 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से 26000 क्विंटल अनाज मान लें कि वह गेंहू है पैदा होता तो 2 हजार रु प्रति क्विंटल के हिसाब से उसकी कीमत 5.2 करोड़ रु सालाना होती और कई किसानों और मजदूरों को रोजगार भी मिलता . क्या ये महंगी मूर्तियाँ , मंदिर और कुम्भ जैसे मेले गरीबी नहीं बढ़ा रहे .

.सवाल नम्बर ( सात ) – इस योजना के तहत उन्हीं लोगों को मुफ्त अनाज दिया जाएगा जिनके पास राशन कार्ड हैं यानि सरकार की नजर में वे गरीब जिनके पास वजह कुछ भी हो राशन कार्ड नहीं हैं गरीब नहीं माने जायेंगे और उन्हें इसका फायदा भी नहीं मिलेगा . पिछले साल इस मसले पर कई जगह हो हल्ला मचा था क्योंकि देश में लाखों गरीब ऐसे भी हैं जो अभी तक राशन कार्ड तक नहीं बनबा पाए हैं . अब सरकार इन्हें भूखों मरने क्यों छोड़ रही है इस सवाल का जबाब उसे ही देना पड़ेगा जब इस मसले पर बबंडर मचेगा . पिछले साल बबंडर मचा भी था जिसके चलते केंद्र सरकार को  भी बिना राशन कार्ड बालों को मुफ्त अनाज देने मजबूर होना पड़ा था .

पिछले साल ही दिल्ली सरकार ने अच्छी पहल करते अपने राज्य के साढ़े छह लाख उन गरीबों को भी राशन बांटा था जिनके पास राशन कार्ड नहीं थे तो केंद्र सरकार क्यों गरीबों के हित में ऐसा नहीं कर रही उसे जबाब देना चाहिए .

सार यह कि अब जब कोरोना का संकट मुंह बाए खड़ा है तब सरकार प्यास लगने पर कुआ खोदने की बात इलाज और आक्सीजन मामले पर  कर रही है . मुफ्त अनाज बांटना उसकी चालाकी और डर को भी उजागर करता है कि कहीं ऐसा न हो कि भूख से तडपते लोग बगावत पर उतारू हो आयें .कोरोना के इलाज के लिए मच रही मारामारी तो उससे संभल नहीं रही फिर क्या खाकर वह भूखों को मेनेज करती लिहाजा इसलिए भी वह मुफ्त का अनाज बांटने मजबूर हुई .

यह योजना पिछले साल मार्च में पेश की गई थी लेकिन 6 महीने बाद ही इसे बंद कर दिया गया था साफ़ है जब काम मिलने लगता है तो गरीबी भी खत्म हुई मान ली जाती है . इसलिए अच्छे दिन लाने का दावा और वादा करने बाली सरकार को चाहिए कि वह इन बुरे दिनों से सबक सीखते बजाय धार्मिक और चुनावी जलसों के रोजगार पर ध्यान दे जिससे गरीबी का कलंक देश से पूरी तरह हटे नहीं तो कम तो हो .

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