लेखक- रवि प्रकाश 

गरमियों में विभिन्न दलहनी फसलों में मूंग की खेती का विशेष स्थान है. इस की खेती करने से अतिरिक्त आय, खेतों का खाली समय में सदुपयोग, भूमि की उपजाऊ शक्ति में सुधार, पानी का सदुपयोग आदि कई फायदे बताए गए हैं. साथ ही, यह भी बताया गया है कि रबी दलहनी फसलों में हुए नुकसान की कुछ हद तक भरपाई हो जाएगी.जलवायु मूंग में गरमी सहन करने की क्षमता अधिक होती है. इस की वृद्धि के लिए 27-35 डिगरी सैंटीग्रेड तक तापमान अच्छा रहता है.मिट्टी और खेत कीतैयारी उपजाऊ व दोमट या बलुई दोमट मिट्टी, जिस का पीएच मान 6.3 से 7.3 तक हो और जल निकास की व्यवस्था हो तो अच्छी होती है.बोआई का उचित समय25 फरवरी से अप्रैल के पहले हफ्ते तक बोआई जरूर कर दें.

देर से बोआई करने से फूल व फलियां गरम हवा के चलते और वर्षा होने से क्षतिग्रस्त हो सकती हैं.उन्नतशील किस्में पंत मूंग -2,नरेंद्र मूंग -1, मालवीय जागृति, सम्राट, जनप्रिया, विराट, मेहा वगैरह खास हैं. ये किस्में सिंचित इलाकों में गरमियों के मौसम में उगाई जाती हैं, जो 60 से 70 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं. इस की पैदावार प्रति एकड़  4 से 5 क्विंटल है.बीज की मात्रा, बीजोपचार व दूरी  गरमियों में 10 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में डालना चाहिए. कूंड़ों में 4-5 सैंटीमीटर की गहराई पर पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सैंटीमीटर पर बोने  से जमाव ठीक होता है.

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मूंग के बीजजनित रोगों से बचाव के लिए प्रति किलोग्राम बीज में 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिलाएं. इस के बाद बोआई के 8-10 घंटे पहले  100 ग्राम गुड़ को आधा लिटर पानी में घोल कर गरम कर लें. ठंडा होने के बाद मूंग के राईजोबियम कल्चर के एक पैकेट को गुड़ वाले घोल में डाल कर मिला लें और उसे बीजों पर छिड़क कर हाथ से अच्छी तरह से मिला दें, जिस से हर दाने पर टीका चिपक जाए. इस के बाद बीज  को छाया में सुखा कर बोआई करें.

खाद वउर्वरकप्रबंधन  मिट्टी की जांच के आधार पर खाद  व उर्वरक का प्रयोग करें. आमतौर पर  40 किलोग्राम डीएपी, 13 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश व 50 किलोग्राम फास्फोजिप्सम प्रति एकड़ में प्रयोग से उपज में विशेष बढ़वार होती है. बोआई के समय उर्वरक कूंड़ों में  देनी चाहिए.सिंचाईसिंचाई भूमि के प्रकार, तापमान व हवा की तीव्रता पर निर्भर करती है. 3-4 सिंचाई सही होती हैं.

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पहली सिंचाई बोआई के 20 से 25 दिन बाद करें. उस के बाद जरूरत के मुताबिक  10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें. बोआई के 50-55 दिन बाद सिंचाई करें.खरपतवार प्रबंधनगरमी में खरपतवार कम उगते हैं, फिर भी बोआई के क्रांतिकाल (बोआई के 20-25 दिन बाद) तक खरपतवारमुक्त फसल रखना जरूरी है.तुड़ाई जब फलियां पक जाएं, तो फलियों की तुड़ाई  कर सकते हैं. फलियां तोड़ने के बाद फसल को खेत में दबाने से फसल हरी खाद का काम करती है और खेत को मजबूती मिलती है.

 

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