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Crime Story : पैसों के लिए हनी ट्रैप

सौजन्या- सत्यकथा

23 नवंबर, 2020 की सुबह का वक्त था. मंदसौर जिले के मल्हारगढ़ थाने के टीआई कमलेश सिंगार को थाने पहुंचे कुछ ही समय हुआ था कि पास के गांव रतनगढ़ से आए 2 लोग मोहन और धीरज ने उन से मिलने की इच्छा जाहिर की.

टीआई ने उन दोनों को केबिन में बुला लिया. मोहन की उम्र कोई 40-45 साल थी, जबकि उस के साथ आए युवक धीरज की उम्र मुश्किल से 22 साल रही होगी.

मोहन गांव में पंचायत स्तर की राजनीति से जुड़ा होने के कारण तेज था, इसलिए उस ने बिना लागलपेट के टीआई कमलेश सिंगार को साथ आए युवक धीरज के साथ हुई लूट की रिपोर्ट दर्ज करने का अनुरोध किया. लेकिन धीरज इज्जत के डर से रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाना चाहता था.

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पूरे घटनाक्रम में मोहन भी जुड़ा हुआ था. इसलिए उस ने टीआई कमलेश सिंगार को पूरी घटना से अवगत करा दिया. इस के बाद टीआई ने मोहन की तरफ से एक अज्ञात युवती,  2 महिलाओं और 3 पुरुषों के खिलाफ लूट की रिपोर्ट दर्ज  कर ली.

22 वर्षीय अविवाहित धीरज रतनगढ़ का रहने वाला था. संपन्न परिवार के धीरज का बड़ा करोबार था. एक दिन उस के मोबाइल फोन पर किसी अज्ञात नंबर से फोन आया.  ‘‘हैलो, कौन?’’ धीरज ने फोन रिसीव करते हुए पूछा.‘‘आप दिनेशजी बोल रहे हैं?’’ किसी लड़की की मीठी सी आवाज आई.

‘‘जी नहीं, शायद आप ने गलत नंबर मिलाया है,’’ धीरज ने कहा.‘‘मेरी किस्मत में हमेशा गलत डायलिंग क्यों लिखी है.’’ उस युवती ने गहरी सांस लेते हुए कहा तो धीरज को अजीब लगा.  उस से कुछ बोलते नहीं बना. वह चुप रहा तो उधर से फिर आवाज आई, ‘‘हैलो आप सुन रहे हैं न?’’

‘‘हांहां सुन रहा हूं. लेकिन मैं दिनेश नहीं हूं.’’  ‘‘मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप का नाम दिनेश है या नहीं. मेरे लिए इतना ही काफी है कि आप ने कम से कम मेरा दर्द तो सुना, वरना इतनी बड़ी दुनिया में मेरा एक भी हमदर्द नहीं है.’’ वह बोली.

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‘‘आप ऐसा क्यों सोचती हैं, समय के साथ सब ठीक हो जाएगा.’’ धीरज ने उसे तसल्ली देने वाले अंदाज में कहा.‘‘पता नहीं कब होगा. मुझे तो लगता है कि सारी प्रौब्लम मेरे लिए ही हैं. मेरे पिता ने मुझे इतना पढ़ायालिखाया, लेकिन कुछ काम नहीं आया. खैर छोड़ो, आप क्यों मेरी कहानी सुन कर अपना समय खराब करेंगे.’’

‘‘अरे नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ धीरज ने जल्दी से कहा. उसे डर था कि कहीं वह फोन न काट दे.

‘आप सुनेंगे मेरे दर्द की दास्तान?’’‘‘जी, बताइए. हो सकता है मैं आप के किसी काम आ सकूं.’’‘‘तो ठीक है. मैं रात में आप को इसी नंबर पर फोन करूंगी. कहानी लंबी है, फिर रात की तनहाई में किसी अपने के सामने दिल खोल कर रख देने का सुख ही अलग होता है. अच्छा, यह बताओ कि आप की पत्नी तो गुस्सा नहीं करेंगी.’’

‘‘अभी मेरी शादी नहीं हुई है.’’ धीरज ने बताया.‘‘अरे तो फिर किसी लड़की के दिल पर यूं प्यारभरा हाथ रखना आप ने कहां से सीखा. आप मेरी कहानी सुनने के लिए राजी हो गए तो मुझे लगा जैसे आप अभीअभी मेरे दिल को बहुत हौले से छू कर गुजरे हो.’’ वह बोली.

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‘‘आप की शादी हो गई?’’ धीरज ने कुछ हिम्मत कर के पूछा ‘‘इस तन की तो हो गई लेकिन दिल की नहीं हुई.’’‘क्या मलतब?’’

‘‘मतलब सीधा सा है यार. पति है, इसलिए मेरे शरीर को तो उस ने शादीशुदा बना दिया, लेकिन मेरे दिल को अब तक यह भरोसा नहीं दिला पाया कि वह मेरा पति है. अच्छा कोई आ जाएगा, बाकी बातें मैं रात में बताऊंगी, तुम अपनी तरफ से फोन मत करना मैं खुद कर लूंगी.’’

कहते हुए उस युवती ने काल डिसकनेक्ट कर दी तो धीरज ठगा सा खड़ा रह गया. उस का मन कर रहा था कि काश! अभी रात हो जाए और वह फिर उस युवती की मीठी आवाज सुने.रात में उस युवती का फोन आ गया. वह बोली, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

‘‘कुछ नहीं.’’ धीरज ने कहा.‘‘धत मैं तो समझी थी कि तुम मुझे याद कर रहे होगे. सच कहूं तो आप से फोन पर बात करने के बाद से मैं लगातार आप को ही याद कर रही हूं.’’‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘शायद इसी को पुराने जन्म का रिश्ता कहते हैं. हो सकता है, पिछले जन्म में आप मेरे रहे हो. इसलिए इस जन्म में भी मिल गए.’’‘‘हां, हो सकता है.’’ धीरज ने थूक गटकते हुए कहा.

‘‘तो हमारे बीच इस जन्म में ये दूरी क्यों?’’ ‘‘सब किस्मत की बात है.’’‘‘सच कहा आप ने तभी तो नियति ने ऐसे पति के साथ बांध दिया जो दिन भर मेरे ऊपर अपने दिमाग की गरमी निकालता है और रात में अपने तन की. मेरी भावनाओं से तो जैसे उसे कोई मतलब ही नहीं है. सच कहूं तो मेरा पति रात में तो मुझे केवल मशीन समझता है. आप समझ रहे हैं न, मैं क्या कहना चाहती हूं.’’

‘‘जी, समझ रहा हूं.’’‘‘कैसे? आप की तो अभी शादी भी नहीं हुई. कहीं ऐसा तो नहीं कि बिना शादी के ही गर्लफ्रैंड ने ये सब सिखा दिया हो.’’ ‘‘मेरी कोई गर्लफ्रैंड भी नहीं है.’’ ‘‘तो मुझे समझ लो.’’‘‘आप बनोगी मेरी फ्रैंड?’’

‘‘समझो बन गई. सच कहूं, अब आप मिल गए हो तो लगता है कि सब ठीक हो जाएगा. चंद पलों की इस बात में ही आप से मिलने का मन करने लगा है. आप मिलना चाहेंगे मुझ से?’’‘‘जरूर.’’

‘‘कहां सब के सामने या कहीं अकेले में? ज्यादा परेशान तो नहीं करोगे न मुझे?’’ ‘‘नहीं.’’  ‘‘तो ठीक है, मैं 2-4 दिन में तुम से मिलने की कोशिश करती हूं.’’उस के बाद काफी देर तक वह धीरज से मीठीमीठी बातें करती रही फिर दूसरे दिन फोन करने को कह कर फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

दूसरे दिन धीरज इंतजार करता रहा लेकिन उस का फोन नहीं आया. अगले दिन उस ने बताया कि उसे मौका नहीं मिल पाया, इसलिए फोन नहीं कर सकी. इस बार उस ने अगले दिन धीरज को मल्हारगढ़ बस स्टैंड पर मिलने को कहा. धीरज न केवल राजी हो गया बल्कि उस के बताए समय पर वहां पहुंच भी गया.

थोड़ी देर में लगभग 22 साल की एक खूबसूरत युवती उस से आ कर मिली और उसे मस्ती करने के नाम पर गाडगिल सागर डैम ले गई. डैम पर एकांत में वह युवती धीरज को अपने साथ शारीरिक संबंध बनाने की दिशा में ले जाने लगी.

लेकिन इस से पहले कि बात ज्यादा आगे बढ़ती, मौके पर 2 महिलाएं और 2 युवक आ कर सीधे धीरज के साथ मारपीट करने लगे. महिलाएं उस पर आरोप लगा रहीं थी कि उस ने उन के परिवार की बहू को बिगाड़ दिया है. वह उस से अकेले में मिल कर शारीरिक संबंध बनाता है.

धीरज ने उन के सामने बहुत हाथपैर जोड़े, लेकिन वे उसे थाने ले जा कर बलात्कार का मामला दर्ज करवाने पर अड़े रहे. इसी बीच वहां से एक आदमी गुजरा, जिस ने पूरा मामला सुन कर दोनों पक्षों को समझाया कि थाने जाने से कोई फायदा नहीं है. यहीं आपस में मामला निपटा लो.

इस के लिए युवती के परिवार वालों ने धीरज से 5 लाख रुपए की मांग की. इतना ही नहीं, उन्होंने उसी समय धीरज की जेब में रखे 70 हजार रुपए छीन लिए. धीरज के पास 5 लाख रुपए नहीं थे, इसलिए मामला 3 लाख में सेट हो जाने पर धीरज ने तुरंत अपने दोस्त मोहन को फोन लगा कर 3 लाख रुपया ले कर बुलाया.

मोहन ने इस का कारण पूछा, लेकिन धीरज ने कुछ नहीं बताया. इसलिए अंधेरा होने तक मोहन धीरज के बताए स्थान पर पैसा ले कर तो आ गया मगर वह इस बात पर अड़ गया कि जब तक धीरज पैसों की जरूरत का कारण नहीं बताएगा, वह पैसे नहीं देगा.

लड़की और उस के साथियों ने धीरज की मोटरसाइकिल रख कर उसे अकेले ही मोहन के पास भेजा था. किसी तरह की बदमाशी दिखाने पर उन्होंने उसे बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करवाने का डर भी दिखाया था.

लेकिन जब मोहन बिना कारण जाने पैसे देने को राजी नहीं हुआ तो धीरज ने उसे पूरी बात बता दी. संयोग से इसी बीच धीरज के पास फिर बदमाशों का फोन आ गया. उन का कहना था कि जल्दी पैसे ले कर आओ वरना वे थाने जा कर मामला दर्ज करवा देंगे.

इस पर मोहन ने धीरज के हाथ से फोन छीन लिया और खुद को पुलिस इंसपेक्टर बताते हुए धमकी दी तो बदमाशों ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर लिया. अगले दिन मोहन धीरज को किसी तरह थाने ले कर आया, लेकिन धीरज रिपोर्ट लिखवाने को राजी नहीं हुआ तो मोहन ने अपनी तरफ से रिपोर्ट दर्ज करवा दी.

धीरज के साथ घटी लूट की घटना सुन कर टीआई कमलेश सिंगार को एक पुरानी घटना याद आ गई, जिस में इसी तरह से एक औरत ने 70 वर्षीय गांव के मुखिया को अपने जाल में फंसा कर उस से एक लाख 80 हजार रुपए लूट लिए थे.

इस से टीआई समझ गए कि यह किसी गिरोह का काम है, जो नियोजित योजना के तहत लोगों को इज्जत का डर दिखा कर लूटने हैं. इसलिए उन्होंने इस गिरोह को खत्म करने के लिए कमर कस ली. अगले दिन टीआई कमलेश सिंगार ने उसी नंबर पर फोन लगाया, जिस से वह युवती धीरज को फोन किया करती थी. युवती ने टीआई से उन का परिचय पूछा तो इंसपेक्टर सिंगार ने एक दिलफेंक युवक की तरह उस से बातें करते हुए उस के मन में यह भ्रम पैदा कर दिया कि उस युवती ने ही कुछ दिन पहले उन्हें फोन किया था.

चूंकि युवती इस तरह से कई लोगों को फोन लगाती रहती थी, इसलिए वह टीआई कमलेश सिंगार के जाल में फंस गई. टीआई सिंगार को अपना नया शिकार जान कर युवती ने पहले तो उन के साथ काफी अश्लील बातें कीं, फिर अकेले में मिलने की जगह तय कर गिरोह के दूसरे सदस्यों को शिकार पर चलने के लिए बुला लिया. लेकिन उस गिरोह के लोगों को क्या मालूम था कि आज उन का पाला ऐसे पुलिस इंसपेक्टर से पड़ने वाला है जो खुद उन का शिकार करने शिकारी बन कर आया है.

थोड़ी देर में वही स्थिति बन गई जो धीरज के साथ बनी थी. फिर युवती के बाद साथ आए 2 पुरुष और एक महिला ने उन्हें घेरने की कोशिश की. फिर टीआई कमलेश सिंगार की टीम ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. सभी से पूछताछ की गई. पूछताछ के बाद 3 और महिलाओं व एक पुरुष को गिरफ्तार किया गया.

गिरोह में शामिल 22 साल की युवती पायल सब से ज्यादा तेजतर्रार थी. उस ने एक मुसलिम युवक से शादी की थी. गिरोह के लोग उस की बात मानते थे. उस ने अपने गिरोह से कह रखा था कि जब वह शिकार पर हो तो गिरोह के लोग उस के पास इशारे पर ही आएं.

क्योंकि शिकार पसंद आने पर पायल पहले उस युवक के साथ पूरी तरह संबंध बना कर अपना मन भरती थी, बाद में गिरोह की तिजोरी भरने के लिए बाकी सदस्यों को इशारा कर मौके पर बुला लेती थी.  गिरोह की बाकी महिला सदस्य हीराबाई, कुशालीबाई, नाथी उर्फ सुमन भी शिकार करने में माहिर थीं.

मल्हारगढ़ पुलिस ने इन महिलाओं के साथ कारूलाल उर्फ करण निवासी गोपालपुरा, गुलाम हैदर उर्फ भयू निवासी रामपुरा और श्यामलाल उर्फ समरथ निवासी सावन को भी गिरफ्तार कर इन के पास से धीरज और रामपुरा निवासी एक अन्य युवक से लूटे गए एक लाख रुपए बरामद किए.

गिरोह में जो 6 महिलाएं थीं, उन में से 3 की उम्र 20 से ले कर 24 साल और बाकी की 30-40 और 48 साल थी. ये ग्राहक की उम्र देख कर उस के सामने चारा बना कर डालने के लिए युवती चुनती थीं.

यदि शिकार जवान होता था तो तीनों युवतियों में से किसी एक को चारा बनाया जाता था और अगर शिकार अधेड़ होता तो फिर 30-40 साल वाली महिला सदस्य उस से प्रेमिका बन कर मिलती थीं.

पूछताछ करने के बाद पुलिस ने सभी आरोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

किस्तों में बंटती जिंदगी

किस्तों में बंटती जिंदगी – भाग 3 : द्रोपा अपनी इच्छाओं को पूरा क्यों नहीं कर पा रही थी

सच में उस ने बेटी की आवाज नहीं सुनी. ‘‘अंदर आओ, नानू बुला रहे हैं,’’ अवनी की आवाज आज खुशी से भरी थी. शायद टीवी पर कोई नया बढि़या प्रोग्राम आ रहा होगा, इसी को ले कर उत्साहित है. जबकि द्रोपा को इन प्रोग्रामों में कोई दिलचस्पी नहीं है.

‘‘आती हूं,’’ कह कर वह वहीं कुरसी पर बैठ गई. वह फिर से वही सब सोच रही थी. तो क्या महिलाओं और बच्चियों को सपना देखना मना है? नहीं, शायद यह सोचना गलत है. याद है, विनय भाई 12वीं में पढ़ रहा था. उसे रचनाएं लिख कर छपवाने का शौक जागा. हाथ से लिखी रचनाओं में काफी गलतियां होती थीं. किसी ने सु?ाया, कंप्यूटर पर लिख कर प्रिंट निकाल कर भेज सकते हो और उस में तो एडिट की व्यवस्था होती है, गलती होने की संभावना ही नहीं है.

विनय ने पापा से कंप्यूटर की फरमाइश की. पापा ने छूटते ही कहा, ‘पहले पढ़ाई करो. तुम्हारे इस छोटे से शौक के लिए 60 हजार रुपए खर्च करने की बेवकूफी नहीं करूंगा.’

बात यह नहीं कि महिलाओं और स्त्रियों के सपने टूटते हैं, बात यह है कि उन जैसे मध्यवर्ग परिवारों में पुरुष जब कमाने लग जाते हैं तो पुरुषों को पहले अपने सपने पूरे करने की आजादी हो जाती है. स्त्री स्वयं कमाते हुए भी सपनों को पूरा करने के लिए आजाद नहीं है. सच तो यह है कि उस को तो सपने देखने की इजाजत भी नहीं है क्योंकि आमदनी और खर्च की किस्तों में सपनों के लिए कोई किस्त रखी ही नहीं है.

लेकिन चाहे कुछ भी हो जाए, वह पैसा इकट्ठा कर के अवनी को डांस स्कूल में जरूर डालेगी. जानती हूं, अनूप तो जरा भी सहयोग नहीं देगा. उस की सोच में यह सब है ही नहीं कि पत्नी व बच्ची की इच्छाओं को भी प्राथमिकता मिलनी चाहिए. वह तो पापा की तरह दुनिया की होड़ में लगा है. यह सब सोच कर आज मन काफी विचलित था.

‘‘ओह मम्मी, आप तो फिर वहीं बैठ गईं. नानू कब से बुला रहे हैं,’’ अवनी का स्वर एक बार फिर कानों में पड़ा. वह उठ कर हौल में पहुंची. ‘‘बेटा आओ, यहां मेरे पास बैठो.’’

पापा ने बड़े लाड़ से द्रोपा को पास बैठाया. उन के हाथ में पिंक रंग का कोई कागज था. उन्होंने हौले से उस की हथेली पर उस कागज को रखा. ‘‘पापा, यह क्या है? यह तो चैक है… नहीं, यह तो डिमांड ड्राफ्ट है और वह भी मेरे नाम?’’ वह कभी पापा तो कभी मां का चेहरा देख रही थी. लिखी रकम पढ़ कर चौंक पड़ी, ‘‘10 लाख रुपए…’’

‘‘हां बेटा, ये 10 लाख रुपए तेरे हैं. सुन, 10 बरस पहले मैं ने बैंक में पीपीएफ खाता खोला था. सोचा था जो पैसा डालूंगा, तेरी शादी के समय काम आएगा. साल का एक लाख डालता था. तेरी शादी में तो सिर्फ 20 हजार रुपया लगा था. यह पैसा जमा होता गया. कल यह पैसा 10 लाख रुपया बन गया. सो, वही निकाल कर तेरे को दे रहा हूं,’’ कहते हुए पापा का गला भर आया.

‘‘आई एम सौरी, बेटा. जीवनभर किस्तें ही चुकाता रहा हूं. उस वक्त तुम्हारी इच्छाओं और सपनों को दफन करता गया. दुख तो होता था पर क्या करता. तुम्हारी व विनय की पढ़ाई, घर का सामान, फ्लैट सब के लिए लोन लेना पड़ा था. तू सब जानती है. आज तुम और अनूप उसी जगह पर खड़े हो. जानता हूं, तुम दोनों का जीवन भी मेरी तरह बीतेगा, किंतु इस बिटिया के सपनों का क्या होगा?

‘‘अब इस पैसे से बेटी को किसी अच्छी सी डांस एकैडमी में एडमिशन दिला दे. बच्ची होनहार है. देखना, बहुत आगे जाएगी.’’ पापा की आंखें छलक आई थीं. वे आगे बोले, ‘‘एक बात और, इन पैसों से मकान की किस्तें मत भरना, सम?ां. तेरे न सही, इस बच्ची के सपने तो पूरे हो जाएंगे.’’

द्रोपा की भी आंखें छलक रही थीं. सब के पीछे मां खड़ी थी, उस के हाथ में घुंघरू थे जो 20 साल पहले किसी डांस शो में द्रोपा को इनाम में मिले थे. सब ने देखा, मां घुंघरू छन… छन… बजा रही थी.

अवनी हैरान थी, जो मम्मी चुपचुप रहती थी, आज खुशी से नाच रही थी. अवनी ने भी मां का साथ दिया.

किस्तों में बंटती जिंदगी – भाग 2 : द्रोपा अपनी इच्छाओं को पूरा क्यों नहीं कर पा रही थी

‘हमारे पास देने को दहेज के नाम पर कुछ भी नहीं है,’ द्रोपा के पिता जीवालाल ने साफ शब्दों में अनूप के पिता को बता दिया था.

अनूप के पिता ने भी कहा था, ‘भाईसाहब, हम भी पूरेसूरे हैं. हमारी माली हालत आप जैसी ही होगी. हमें सुंदर, सुशील व घर को संभालने वाली बहू चाहिए. ये गुण आप की बेटी में जरूर होंगे.’

शादी से पहले अनूप कई बार द्रोपा को अपने घर ले गया था. वह अपने सासससुर से मिली थी, सब अच्छे लगे. सब अपने घर जैसा लगा. लगा ही नहीं कि यह उस की होने वाली ससुराल है.

घर में 2 देवर, दोनों इंजीनियरिंग कर रहे थे और अनूप के मांबाप थे. घर के नाम पर 2 कमरों का फ्लैट था ठीक उस के घर की तरह. ससुर अकाउंटैंट थे. सास उस की मां की तरह हाउसवाइफ थी. भाइयों में अनूप सब से बड़ा था.

अनूप व द्रोपा की शादी का आयोजन एक हौल में हुआ था. दोनों परिवारों ने मिल कर एक पार्टी दे दी थी. वह खुश थी कि उसे मनचाहा वर मिल गया है. शादी से पहले अकसर दोनों में बहस होती थी. ‘हम हनीमून के लिए कहां जाएंगे?’

‘मैं ने तो आज तक कोई हिल स्टेशन नहीं देखा.’ ‘मैं भी कौन सा घूमने गया हूं. दिल्ली से इलाहाबाद और इलाहाबाद से दिल्ली. मुल्ला की दौड़ मसजिद तक. हां, हम कहीं भी जाएं पर इलाहाबाद नहीं जाएंगे, बोर हो गया हूं.’ ‘पर मैं तो दिल्ली छोड़ कर कहीं नहीं गई. मेरे लिए तो हर शहर नया होगा.’

‘तो फिर हम आगरा चलते हैं, वहां ताजमहल पर हनीमून मनाएंगे. सुबह चलेंगे, दूसरे दिन सुबह दिल्ली वापस.’ अनूप अपने प्रस्ताव पर खुद ही हंस पड़ता. द्रोपा मुंह फुला कर बैठ जाती. फिर मानमनौअल, प्यारभरी चुहल और हंसनाखिलखिलाना. जब वह हंसती तो अनूप द्रोपा को एकटक देखता.

‘जानती हो, जब तुम हंसती हो तो ऐसा लगता है समुद्र की लहरें ठाठें मार रही हैं.’ ‘अच्छा, ऐसा क्या?’

‘हां, तुम, बस, यों ही हंसती रहा करो. बड़ी प्यारी लगती हो.’ अनूप उसे बांहों में भर लेता और हनीमून की बात वहीं की वहीं. शादी के बीच का वह हादसा कभी नहीं भुलाया जा सकता. अचानक द्रोपा के ससुर को दिल का दौरा पड़ा. अफरातफरी मच गई. अनूप पिता को ले कर अस्पताल भागा और अनूप की मां द्रोपा को ले कर घर आ गई. घर का माहौल एकदम से बदल गया था. ससुर की तबीयत थोड़ी संभली, तो सब को चैन आया. पर वे इस लायक नहीं थे कि नौकरी पर जा सकें. काफी कमजोर हालत में थे.

एक दिन अनूप ने बताया, ‘पापा ने इस फ्लैट के लिए बैंक से लोन लिया था जिस की हर महीने किस्त जाती है. भाई के लिए भी एलआईसी से लोन लिया था जिस की किस्तें जा रही हैं. घर की किस्त 10 हजार रुपए महीना है और भाई की पढ़ाई की लोन किस्त 5 हजार रुपए महीना. ये दोनों पापा की तनख्वाह से कट रही थीं. पापा की हालत देख कर नहीं लगता कि पापा नौकरी पर जा सकेंगे. अब इस की भरपाई की जिम्मेदारी हम पर है. आशा है, तुम मेरा साथ दोगी. घर का खर्च व पापा की दवाइयों का खर्च तुम संभालो और मैं एलआईसी और बैंक से लिए गए लोन की किस्तों को चुकाऊंगा. बात सिर्फ 4 साल की है. 4 साल बाद दोनों छोटे भाइयों की नौकरी लग जाएगी. तब वे दोनों हमारी मदद करेंगे. देखना, सब ठीक हो जाएगा.’

वह अवाक थी. सास ने सही कहा था, हम दोनों की माली हालत एक सी है. वहां भी किस्तों का बो?ा अकेले पापा ढो रहे हैं. वे भी यही कहते थे, बस, थोड़े दिनों की बात है, बाद में सब ठीक हो जाएगा. यहां पति भी यही सम?ा रहे थे. आखिर कब तक यह चलेगा? शायद सारी जिंदगी? शादी से पहले द्रोपा की जिंदगी नीरस, बेनूर थी. शादी के बाद सोचा था, यहां खुल कर अपनी जिंदगी अपने तरीके से जिएगी. यहां तो कमाने वाले 3 हैं और अब तो

2 जन हैं, फिर भी सबकुछ पहले जैसा है- वही किस्तों का बो?ा, वैसी ही सोच. मेरा जीवन तो किस्तों की गणित के बीच ही बीत जाएगा. ससुर बिस्तर पर है. सासुमां बिलकुल मम्मी की तरह सारा दिन घरपरिवार के लिए कोल्हू के बैल की तरह जुटी रहती हैं.

जल्दी ही सम?ा में आ गया था कि यहां सब को परिवार की जरूरत के हिसाब से चलना पड़ता है. यहां अपनी लीक से हट कर सोचना गुनाह है, खासकर, खर्च के मामले में सब को हाथ खींच कर चलना पड़ता है. पापा के घर की तरह यहां भी कोई नया सपना देखना मना है. इसीलिए द्रोपा चुपचाप सारा कुछ ढोती जा रही है. कभी नहीं कहा कि ‘हनीमून न सही, कहीं और घूमने चलें?’

घूमने का प्लान बनातेबनाते 2 वर्ष गुजर गए. फिर अवनी का जन्म हुआ. बहुत खुश थी वह नन्ही सी, प्यारी सी परी को पा कर. एक दिन उस ने अनूप से कहा, ‘क्यों न हम बेटी के आने की खुशी में अच्छी सी पार्टी दें?’ पहली बार द्रोपा की खुशियों ने उछाल मारी थी. वह मन ही मन में मेहमानों की लिस्ट भी तैयार कर चुकी थी.‘बढि़या सी पार्टी का मतलब है एक लाख रुपए का खर्चा. कहां से आएंगे इतने पैसे?’ उत्तर सुन कर मन बु?ा गया. लगा सामने पति अनूप नहीं, बल्कि पिता जीवालाल खड़े हैं.

अभी पापा की तरह किस्तों की लिस्ट पढ़ी जाने लगेगी और कुछ सुनने से अच्छा है यहां से चुपचाप खिसक लो. ठीक भी है अवनी के आने से घर का खर्च बढ़ गया है. उसे पूरा करें या फिर पार्टी पर खर्च करें.

इस बीच दोनों भाइयों की पढ़ाई भी खत्म हो गई है. दोनों ने नौकरी के साथसाथ शादी भी कर ली है. दोनों ढाईढाई हजार रुपए घरखर्च में डाल कर जिम्मेदारी से पल्ला ?ाड़ लेते हैं. जो पैसा बैंक में लोन की किस्त अदा करने में जाता था, वह अवनी पर खर्च हो जाता है, बाबूजी की दवाओं पर खर्च हो जाता है. न कोई कुल्लू गया, न मनाली, न आगरा. दोनों मियांबीवी एक ही जगह बैठे कर्जों,  आमदनी और खर्चों के हिसाब में उल?ो हुए हैं. दोनों खूंटे से बंधी गाय की तरह हैं जो सुबह से शाम तक घूम कर एक घेरे में सिमटे हुए हैं.

 

एक दिन अनूप ने बताया, ‘मैं ने कार  लोन के लिए अप्लाई किया है. अगले महीने कार आ जाएगी.’ ‘क्यों? स्कूटर से काम चल रहा है न.’ ‘नहीं, स्कूटर भी खटारा हो गया है. हमें अपना स्टैंडर्ड भी तो ऊंचा करना है,’ अनूप ने ऐसे कहा जैसे वह आगरा का ताजमहल खरीदने जा रहा है.

द्रोपा को अनूप पर बड़ा गुस्सा आया. 2 बरस से अवनी दीवार वाला बड़ा टीवी खरीदने के लिए जिद कर रही है, तो अनूप ने यह कह कर बच्ची को बहला दिया, ‘बेटा, अब की बोनस मिलेगा, तो पक्का बड़ा टीवी खरीदेंगे. फिर हम मुंबई भी जाएंगे. तुम्हें वहां डांस शो भी दिखाएंगे. स्टेज शो देखने का तुम्हें बहुत शौक है न.’

पापा की बात सुन कर अवनी खुशी से तालियां बजाती है. लेकिन द्रोपा गुस्से में कहती है, ‘क्यों बच्ची से ?ाठा वादा करते हो. कभी सोचा है तुम ने, इन्हीं ?ाठी बातों से बच्ची का तुम पर से विश्वास उठ जाएगा.’

अनूप को अंजाम की परवा नहीं है, ‘छोड़ो, वह तो बच्ची है, थोड़ी देर में सब भूल जाएगी. तुम यह सब मेरे ऊपर छोड़ो. रही बात गाड़ी लेने की, वह तो मैं जरूर लूंगा.’ लेकिन द्रोपा जानती है अवनी की आंखों में चमकते तारों से टिमटिमाते सपनों का क्या होगा?

यह बात उस ने अपनी सहेली सुप्रिया को बताई थी. बताते समय उस की आंखें भरी हुई थीं, ‘मेरे जीवन के सारे सपने पैसों की कमी के कारण दफन होते रहे तो क्या अवनी के साथ भी वही होगा? शायद, उस के जीवन का पहला अध्याय भी मेरी तरह लिखा जाएगा और शायद आगे भी यों ही होगा.’

शिप्रा ने उसे दिलासा दी, ‘नहीं, ऐसा नहीं होगा. वक्त बदलेगा. तेरी बेटी के सपने जरूर पूरे होंगे.’ घर की बालकनी में खड़ी द्रोपा यह सब याद कर रही थी कि अवनी की आवाज उस के कानों में पड़ी. ‘‘मम्मी, आप बालकनी में खड़ी हो कर बाजार की रौनक का मजा ले रही हो और मैं आप को आवाजें दे कर थक गई.’’‘‘क्या हुआ बेटा?’’

 

किस्तों में बंटती जिंदगी -भाग 1 : द्रोपा अपनी इच्छाओं को पूरा क्यों नहीं कर पा रही थी

एक पखवाड़े से द्रोपा अपनी बेटी अवनी के साथ मायके में रह रही है. अवनी को नानी का घर बहुत पसंद है. अवनी ने मां द्रोपा से प्रौमिस लिया था, ‘मम्मा, गरमी की छुट्टियों में हम नानी के घर जरूर जाएंगे.’

‘तुम तो हर गरमी में वहां जाती हो, अब की कोई खास बात है?’ द्रोपा के यह पूछने पर अवनी बोली थी, ‘हां, नानू ने दीवार वाला बड़ा टीवी लिया है. बड़े टीवी में प्रोग्राम देखने का मजा कुछ और है.’

द्रोपा इतने दिन वहां रुकना नहीं चाहती. वहां से उस का औफिस काफी दूर पड़ता. आनेजाने में 2 घंटे बरबाद होते. परंतु बच्चे की जिद के आगे वह क्या कह सकती है? यहां आने के बाद बेटी की हर जिद नानीनानू पूरी करते हैं. यहां टीवी सारा दिन चलता है और अवनी उस से चिपकी रहती है.

आज संडे है. अवनी अपने नानानानी के साथ हौल में टीवी देख रही है. द्रोपा रसोई में रोटियां सेंक रही है. हौल से आती तीनों की आवाजें उस के कानों में पड़ रही हैं. जानती है, कोई डांस प्रोग्राम टीवी पर चल रहा होगा. अवनी को डांस का बड़ा शौक है. हूबहू नकल करती है चाहे कोई भी डांसर हो या डांस हो. उस के लिए कोई भी पोज मुश्किल नहीं है. जैसे ही डांस शुरू होता है उस का भी डांस शुरू हो जाता है. उस का डांस देख कर नानीनानू उत्साह बढ़ाते हैं, ‘‘शाबाश बेटा, एकदम सही पोज लिया है. यह तो पक्की नृत्यांगना है. माधुरी-रेखा तो इस के आगे पानी भरती हैं…’’

द्रोपा सबकुछ सुन रही है. मां ने कई बार उसे कहा भी है, ‘इसे किसी अच्छी एकैडमी में डाल दे. अभी से सीखना शुरू करेगी तो दोचार साल में स्टेज परफौर्मैंस देने लगेगी. फिर टीवी प्रोग्राम में भी सलैक्शन आसानी से हो जाएगा.’

अवनी के नाना तो एक ही राग अलापते हैं, ‘‘शहर में कितने नामीगिरामी कोरियोग्राफर हैं. किसी एक को चुन ले. उसी की शागिर्दी में यह सब सीख जाएगी.’’ यह सुन कर अवनी उत्साहित होती है. अकसर पूछती है, ‘‘मम्मी, डांस स्कूल में कब एडमिशन कराओगी? मु?ो तो डांस सीखना है और मैं जरूर सीखूंगी. नानू, आप मम्मी को सम?ाते क्यों नहीं? मेरी तो कितनी सारी सहेलियां राजीव सर से डांस सीखती हैं. मु?ो भी राजीव सर से डांस सीखना है.’’

बेटी की बात सुन कर द्रोपा कोई जवाब नहीं देती. लगता है वह कुछ सुन ही नहीं रही, सबकुछ उस के सिर के ऊपर से निकलता जा रहा है.

एकदो बार उस ने मांपापा को फुसफुसाते सुना है, ‘यह द्रोपा को क्या हो गया है, हमारा बारबार डांस सिखाने के लिए स्कूल में भेजने के लिए कहना इसे बुरा लगता है. ठीक है भई, बेटी उस की है जो चाहे करे.’ परंतु द्रोपा के पिता जीवालाल मन ही मन पत्नी से कहते हैं, ‘नहीं रश्मि, तुम कुछ नहीं सम?ागी, छोड़ो सब.

‘चुपचाप तो वह शुरू से ही रहती थी परंतु पिछले 2-3 महीने से यों गुमसुम रहना अब सब को अखरता है. औफिस में सभी उस के स्वभाव पर टोकते हैं. कई बार उस के देवर और पति भी कह देते हैं, ‘तुम्हें देख कर लगता है जैसे तुम्हें चुपचाप काम करने के लिए बनाया गया है. न बोलना, न बतियाना और न किसी से कोई सवाल पूछना.’

औफिस में उस की दोस्ती सिर्फ शिप्रा से है. बस, उसी से बातें कर लेती है. गरमी की छुट्टियां खत्म होने वाली हैं. पति अनूप 2-4 दिनों में उसे और अवनी को ले जाएंगे. द्रोपा के लिए तो जैसा मायका वैसा ससुराल. पर जब से अवनी को पता लगा है कि पापा ने नई गाड़ी ली है, खूब खुश है.

‘‘हम तो अपनी नई गाड़ी में दादी के घर जाएंगे.’’ सारा दिन उस के लिए डांस या नई गाड़ी के अलावा कोई बात करने को विषय ही नहीं है. और द्रोपा सारा दिन बोर होती है, खासकर, जिस दिन छुट्टी हो.

रोटियां सेंक कर वह बालकनी में आ खड़ी हुई. दीवार पर उस के बचपन की एक फोटो लगी है जिस में वह कत्थक की ड्रैस में डांस कर रही है. तसवीर देखते ही यादों के पन्ने पलट गए. अपनी बेटी की तरह द्रोपा को भी डांस का बहुत शौक था. तब वह सिर्फ 6 वर्ष की थी. घर के सामने एक डांस स्कूल था जो आज भी है. यह बात दूसरी है कि वह एक बहुत बड़ी एकैडमी में बदल गया है. प्रसिद्ध कोरियोग्राफर आज इस के डायरैक्टर हैं. यहां रोज बड़ीबड़ी गाडि़यों से सजीधजी लड़कियां उतरती हैं. उन के साथ उन की आया या मांएं होती हैं.

इसी स्कूल में 25 साल पहले भारती मैडम होती थीं. द्रोपा उन्हीं से डांस सीखती थी. फीस थी सिर्फ सौ रुपए. एक रोज भारती मैडम ने द्रोपा की मां को बुलाया और कहा था, ‘मैडम आप की बेटी बड़ी टैलेंटेड है. इसे एक अच्छे कोरियोग्राफर की एकैडमी में एडमिशन दिला दीजिए. इस क्षेत्र में यह बहुत आगे जा सकती है. सिविल लाइंस में प्रदीप नाम के एक कोरियोग्राफर की एकैडमी है. यह उस एकैडमी के लिए सही रहेगी. हां, उन की फीस कुछ ज्यादा है.’

‘कितनी फीस होगी?’ ‘2 हजार रुपए महीना.’ ‘2 हजार…?’ रश्मि के लिए 2 हजार रुपए हर महीने देना असंभव था. पास खड़ी द्रोपा ने मां के चेहरे के आतेजाते भाव देखे. भारती मैडम से 3 साल कत्थक सीखा और स्टेज शो में कितने ही इनाम पाए, याद नहीं. हां, मां का उस दिन का चेहरा आज तक याद है.

मां के चेहरे को देख कर वह सम?ा गई. यह सपना देखना भी गलत है. परंतु सपने तो सपने हैं, उन्हें देखने से कोई नहीं रोक सकता. क्योंकि एक आस होती है, शायद कि कभी पूरे भी हो जाएं.

घर आ कर मां ने मौका देख पापा से बात की थी. सुनते ही पापा क्रोध में चिल्लाए थे, ‘रश्मि, तुम्हारा तो दिमाग खराब है. 2 हजार रुपए. मैं इतने पैसे कहां से लाऊंगा, कभी सोचा भी है. अरे, इस फ्लैट की मासिक किस्त 7 हजार रुपए है, विजय की पढ़ाई के लिए बैंक से लोन लिया है, 4 हजार रुपए महीना उस का कटता है. ये दोनों लोन की किस्तें तो सैलरी हाथ में आने से पहले ही कट जाती हैं. पिछले महीने फ्रिज खरीदा, उस की भी किस्त 5 सौ रुपए है. अभी जो बोनस मिला था, उसे चुपचाप रख दिया कि जब दुकानों पर सेल लगेगी तो अपने लिए एक स्वैटर और बच्चों के लिए गरम कपड़े खरीदूंगा.

‘रसोई में मिक्सी नहीं है, तुम कई बार कह चुकी हो, घर में मेहमान आते हैं तो पड़ोसियों से मिक्सी मांग कर लाती हो. सब की रसोई में नएनए गैजेट्स हैं. उन की कमी के बारे में तुम ने कई बार कहा है. इन सब के लिए पैसा कहां से लाऊं? जबकि तनख्वाह सिर्फ 25 हजार रुपए है. जोड़तोड़ कर हमारी रोटी का इंतजाम होता है और तुम कहती हो, बेटी को डांस सिखाने के लिए 2 हजार रुपए फूंक दूं. परे मारो इस शौक को. देखो, सीधेसीधे इसे पढ़ने दो. इस के दिमाग में डांस सीखने का फुतूर मत डालो.’

परदे के पीछे खड़ी द्रोपा चुपचाप सबकुछ सुन रही थी. पापा का क्रोध कम नहीं हुआ था. ‘याद है, 10 साल से हम दिल्ली से बाहर घूमने कहीं नहीं गए. फिर इतनी महंगाई… लगता है घर का खर्च और किस्तों में सारा जीवन यों ही निकल जाएगा.’

पापा की आवाज भर्रा रही थी. परदे के पीछे खड़ी द्रोपा को यह सब सुन कर अच्छा नहीं लगा था. वह छोटी थी, परंतु सब सम?ाती थी. वह पापा को परेशान देख नहीं सकती. उस ने कस कर आंखें बंद कर ली थीं. मन कड़ा कर के निश्चय किया कि अब कभी डांस सीखने की जिद नहीं करेगी. लेकिन कोई यह तो बताए इन किस्तों में सपनों के लिए कोई किस्त क्यों शामिल नहीं है? उन को पूरा करने का जिम्मा किस का है. पता नहीं क्यों जी चाहा कि सामने टेबल पर रखा कांच का गिलास उठा कर किसी कोने में जोर से मारे. शायद सपने टूटने का दर्द थोड़ा कम हो जाए. सपने तो टूट ही गए, दर्द भी हौलेहौले चला जाएगा.

द्रोपा चुप और शांत रहने लगी थी. यह बात कोई नहीं जानता था सिवा पापा के. वही एक थे जो उस के चुप रहने का कारण जानते थे. जीवन जीने के लिए साधन जुटाने की इस होड़ में उस के सपनों को किस ने सेंध लगाई है. यह अपराधभाव जीवालाल के अंदर था लेकिन मजबूर थे कि जीविका पहले है, सपने बाद में आते हैं.

द्रोपा ने बीए, एमए किया और एक नौकरी पा ली. वह संतुष्ट थी. औफिस में काम करते हुए एक कलीग से दोस्ती हो गई. पहले थोड़ा घूमनाफिरना और फिर प्यारइकरार. कुछ दिनों बाद दोनों के परिवारों को पता चला और फिर बातचीत हुई. दोनों परिवारों को शादी से कोई गुरेज न था.

दलाल : जब पति ने किया पत्नी को जिस्म बेचने पर मजबूर

काजल जब भी अपने पति राजन के बारे में सोचती थी, उस का मन कसैला हो उठता था. उस ने तो सुना था कि पति अपनी पत्नी की इज्जत का रखवाला होता है, पर उस ने तो पैसों के लिए उस की इज्जत को ही दांव पर लगा दिया था. खुद तो बुराई के रास्ते पर चल ही पड़ा था, उसे भी इस रास्ते पर चलने को मजबूर कर दिया था.

6 महीने पहले जब काजल की शादी राजन से हुई थी, तो वह मन में हजारों सपने ले कर अपने पति के घर आई . शुरुआती दिनों में उस के सपने पूरे होते भी दिखे थे. उस के ससुराल वाले खातेपीते लोग थे और वहां कोई कमी नहीं थी.

गरीबी में पलीबढ़ी काजल के लिए इतना होना बहुत था. उसे लगा था कि ससुराल आ कर उस की जिंदगी बदल गई है, उस की गरीबी हमेशा के लिए पीछे छूट गई है, पर बीतते दिनों के साथ उस का यह सपना टूटने लगा था.

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काजल के मायके की जिंदगी गरीबी और तंगहाली से भरी जरूर थी, पर वहां उस की इज्जत थी. जैसे ही वह 20 साल की हुई थी, उस के मांबाप उस की इज्जत के प्रति कुछ ज्यादा ही सचेत हो उठे थे.

शादी के शुरू के दिनों में राजन का बरताव काजल के प्रति अच्छा था. उस के सासससुर भी उस का खयाल रखते थे, पर आगे चल कर राजन का बरताव काजल के प्रति कठोर होता चला गया.

राजन कपड़े का कारोबार करता था. उसे अपने कारोबार में 50 हजार रुपए का घाटा हुआ. उसे महाजन का उधार चुकाने के लिए अपने एक दोस्त से 50 हजार रुपए का कर्ज लेना पड़ा.

रजत नाम का यह दोस्त जब राजन से अपने पैसे मांगने लगा, तो उस के हाथपैर फूलने लगे. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह इतने रुपए कहां से लाए, ताकि अपने दोस्त के कर्ज से छुटकारा पा सके. उस ने इस बारे में गहराई से सोचा और तब उसे लगा कि उस की पत्नी ही उसे इस कर्ज से छुटकारा दिला सकती है.

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अपनी इस सोच के तहत राजन ने काजल से बात की और उस से कहा कि वह अपने मांबाप से 50 हजार रुपए मांग लाए. पर जहां दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ही मुश्किल से हो पाता हो, वहां इतने पैसों का इंतजाम कहां से हो पाता.

‘‘ठीक है,’’ राजन उदास लहजे में बोला.

‘‘पर मेरे पास एक और तरीका है,’’ काजल मुसकराते हुए बोली, ‘‘मेरे पास रूप और जवानी की दौलत तो है. मैं इसी का इस्तेमाल कर के पैसों का इंतजाम करूंगी.’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो तुम?’’ राजन तेज आवाज में बोला.

‘‘मैं बकवास नहीं, बल्कि सच कह रही हूं.’’

‘‘नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकतीं. आखिरकार मैं तुम्हारा पति हूं और कोई पति अपनी पत्नी की इज्जत का सौदा नहीं कर सकता.’’

‘‘पर मैं कर सकती हूं,’’ काजल कुटिल आवाज में बोली, ‘‘क्योंकि पैसा पहले है और पति बाद में.’’

उन की स्कीम के अनुसार, रात के तकरीबन 10 बजे राजन लौटा, तो उस के साथ उस का वह दोस्त रजत भी था, जिस से उस ने कर्ज लिया था. राजन अपने दोस्त रजत को ले कर अपने बैडरूम में आ गया. उस ने काजल से कहा कि वह उस के और उस के दोस्त के लिए खानेपीने का इंतजाम करे.

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आधे घंटे बाद जब काजल उन का खाना ले कर बैडरूम में पहुंची, तो दोनों शराब की बोतल खोले बैठे थे. काजल खाना लगा कर एक ओर खड़ी हो गई. शराब पीने के साथसाथ वे दोनों खाना खाने लगे.

खाना खाते समय रजत रहरह कर काजल को बड़ी कामुक निगाहों से देखने लगता था.

जब वे लोग खाना खा चुके, तो काजल जूठे बरतन ले कर रसोईघर में चली गई. थोड़ी देर बाद राजन ने आवाज दे कर उसे पुकारा. काजल कमरे में बैड के पास खड़ी थी और राजन के साथ बैठा रजत उसे बड़ी कामुक निगाहों से घूर रहा था. काजल ने आंखों ही आंखों में कुछ इशारा किया और राजन उठता हुआ बोला, ‘‘काजल, तुम यहीं बैठो, मैं अभी आया.’’

इतना कहने के बाद राजन तेजी से कमरे से निकल गया और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया. पर वह कमरे से निकला था, घर से नहीं. राजन दरवाजे के पास अपने मोबाइल फोन के साथ छिपा बैठा था, ताकि काजल और रजत के प्यार के पलों की वीडियो फिल्म बना सके. राजन के कमरे से निकलते ही रजत काजल से छेड़छाड़ करने लगा.

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‘‘यह क्या कर रहे हो तुम?’’ काजल नकली नाराजगी दिखाते हुए बोली, ‘‘छोड़ो मुझे.’’

‘‘तुम्हें कैसे छोड़ दूं जानेमन?’’ रजत बोला.

‘‘बड़ी कोशिश के बाद तो तुम मेरे हाथ आई हो,’’ कह हुए उस ने काजल को अपनी बांहों में भर लिया.

रजत की इस हरकत से काजल पलभर को तो बौखला उठी, फिर उस की बांहों में मचलते हुए बोली, ‘‘छोड़ो मुझे, वरना मैं तुम्हारी शिकायत अपने पति से करूंगी.’’

‘‘पति…’’ कह कर रजत कुटिलता से मुसकराया.

‘‘तुम्हारा पति भला मेरा क्या बिगाड़ लेगा? वह तो गले तक मेरे कर्ज में डूबा हुआ है.

‘‘सच तो यह है कि वह खुद चाहता है कि मैं तुम्हारी जवानी से खेलूं, ताकि उसे कर्ज चुकाने के लिए थोड़ी और मुहलत मिल जाए.’’

‘‘नहीं, राजन ऐसा नहीं कर सकता,’’ काजल अपने पति पर भरोसा करते हुए बोली.

‘‘तुम्हें यकीन नहीं आता?’’ रजत उस का मजाक उड़ाते हुए बोला, ‘‘तो खुद जा कर दरवाजा चैक कर लो. तुम्हारे पति ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया है.’’

‘‘नहीं,’’ कह कर काजल दरवाजे की ओर भागी, पर शराब और वासना के नशे से जोश में आए एक मर्द से एक औरत कब तक बचती. रजत ने झपट कर उसे अपनी बांहों में उठाया और बिस्तर पर उछाल दिया. अब काजल संभलती हुई उस पर सवार थी.

ऐसा करते हुए यह बात रजत के सपने में भी न थी कि उस का यह मजा आगे चल कर उस के लिए कितनी बड़ी मुसीबत खड़ी करने वाला है.

रजत के जाने के बाद जब राजन कमरे में आया, तो नकली गुस्सा और अपमान से भरी काजल बोली, ‘‘कैसे पति हो तुम? पति तो अपनी पत्नी की इज्जत की हिफाजत के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा देते हैं, पर तुम ने तो अपना कर्ज उतारने के लिए अपनी पत्नी की इज्जत को ही दांव पर लगा दिया?’’

बदले में राजन मुसकराते हुए बोला, ‘‘काजल, कुछ पल रजत के साथ बिताने के एवज में अब हमें उस के कर्ज से जल्दी ही छुटकारा मिल जाएगा.’’

इस के तीसरे दिन जब रजत अपने पैसे मांगने राजन के घर पहुंचा, तो राजन ने उसे अपने मोबाइल फोन से बनाई वह वीडियो फिल्म दिखाई, फिर उसे धमकाता हुआ बोला, ‘‘रजत, अब तुम अपने पैसे भूल ही जाओ. अगर तुम ने ऐसा नहीं किया, तो मैं यह वीडियो क्लिप पुलिस तक पहुंचा दूंगा और तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट लिखवा दूंगा कि तुम ने मेरी पत्नी के साथ बलात्कार किया है. इस के बाद पुलिस तुम्हारी क्या गत बनाएगी, इस की कल्पना तुम आसानी से कर सकते हो.’’

रजत हैरान सा राजन को देखता रह गया. उस के चेहरे से खौफ झलकने लगा था. वह चुपचाप राजन के घर से निकल गया.

इधर राजन ने उस के इस डर का भरपूर फायदा उठाया. इस वीडियो क्लिप को आधार बना कर वह रजत को ब्लैकमेल कर उस से पैसे ऐंठने लगा. रजत राजन की साजिश का शिकार जरूर हो गया था, पर वह भी कम शातिर न था. आखिर वह लाखों रुपए का कारोबार ऐसे ही नहीं चलाता था. उस ने इस मामले पर गहराई से विचार किया और राजन के हथियार से ही उसे मात देने की योजना बनाई.

अपनी योजना के तहत जब अगली बार राजन उस से पैसे वसूलने आया, तो रजत बोला, ‘‘राजन, तुम कब तक मुझे यों ही ब्लैकमेल करते रहोगे? आखिरकार तुम मेरे दोस्त हो, कम से कम इस बात का तो लिहाज करो.’’

‘‘मैं पैसे के अलावा और किसी का दोस्त नहीं.’’ ‘‘अगर मैं पैसे कमाने का इस से भी बड़ा जरीया तुम्हें बता दूं, तो क्या तुम मेरा पीछा छोड़ दोगे?’’

‘‘क्या मतलब?’’ राजन की आंखों में लालच की चमक उभरी.

‘‘मेरी नजर में एक करोड़पति है, जिस की कमजोरी खूबसूरत और घरेलू औरतें हैं. अगर तुम बुरा न मानो, तो तुम काजल को उस के पास भेज दिया करो. इस से तुम हजारों नहीं, बल्कि लाखों रुपए कमा सकते हो.’’

लालच के चलते काजल और राजन रजत द्वारा फैलाए जाल में फंस गए. अब रजत ने उस आदमी के साथ काजल के रंगीन पलों की वीडियो क्लिप बना ली और एक शाम जब पतिपत्नी उस के पास आए, तो यह फिल्म उन्हें दिखाई, फिर रजत बोला, ‘‘मैं जानता था कि तुम लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे. सो, मैं ने यह खूबसूरत वीडियो क्लिप बनाई है.

‘‘अब अगर तुम ने भूल कर भी मेरे घर का रुख किया, तो इस वीडियो फिल्म के जरीए मैं यह साबित कर दूंगा कि तुम्हारी पत्नी देह धंधा करती है और इस की आड़ में लोगों को ब्लैकमेल करती है. तुम इस में उस की मदद करते हो. तुम न सिर्फ उस के दलाल हो, बल्कि एक ब्लैकमेलर भी हो.’’

यह सुन कर पतिपत्नी के मुंह से बोल न फूटे. वे हैरान हो कर रजत को देखते रहे, फिर अपना सा मुंह ले कर उस के घर से निकल गए.

संपादकीय

अंधभक्ति या यूं कहिए कैसी भी भक्ति किसी भी व्यक्ति के लिए सुख और स्मृद्धि की राह नहीं है. यह एक विडंबना ही है कि भक्ति के बावजूद पिछले लगभग 10-12 हजार सालों में मानव ने भरपूर विकास कियया है और ज्यादा सुख से जिया है. यह तय करना आज के प्रोगतिहासिक विशेषज्ञों के लिए भी असंभव है कि बिना भक्ति के मानव विकास ज्यादा होता या कम. पर यह तय है कि जितना विकास भक्ति के कारण हुआ है. उतना और किसी कारण से नहीं. आज जिस कोविड से दुनिया त्राहित्राहि कर रही है, भक्ति इस से ज्यादा कई गुना दुखों का कारण रही है.

प्राकृतिक प्रकोप हमेशा मानव पर भारी रहे हैं पर जब से इतिहास लिखा गया है जब से इतिहास लिखा जा सका है आज की खोजों के अनुसार भक्ति ने मानव से शांति के दिनों में जब प्राकृतिक प्रकोप नहीं थे ज्यादा बड़ी कीमत ली है चाहे वह साधारण टैक्स के रूप में थी या भक्ति यातनाओं व युद्धों के कारण.

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आज भारत को भक्ति के गढ़े में धकेल दिया गया है और हम सब इतने कमजोर हो गए हैं कि कोरोना बायरस के प्राकृतिक प्रकोप के कारण हमारी भक्ति धरी की धरी रह गई है. पूरा देश आज कोरोना का मारा हुआ है और शासक, प्रशासक, पुलिस जो कुछ सालों से केवल भक्ति के प्रचारप्रसार में लगी थी हतप्रथ है कि क्या किया जाए कैसे जाए. पिछले साल मार्र्च में जब इस का कहर सिर पर पड़ा था तो सब भक्ति को छोड़ कर वैज्ञानिकों का मुंह देखने लगे. डाक्टरों अस्पतालों की दुआ करने लगे. पर जैसे ही स्थिति ठीक होने लगी नरेंद्र मोदी और अमित शाह फिर भक्तों के शंहशाह के मूड में आ गए और बजाय  कोरोना के फिर से प्रकोप की तैयारी में लगने के एक छोटे से राज्य पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी को हराने के लिए रातदिन एक करने लगे. यह भक्ति का एजेंडा था हालांकि ममता बैनर्जी कोई भक्त विरोधी नहीं है.

जब अस्पताल बनने थे, जब स्कूल बनने थे, जब तर्क और तथ्य का पाठ पढ़ाया जाना था. नरेंद्र मोदी ‘‘हमारे शास्त्रों में लिखा है…’’ कह कर प्रवचन देते रहे और उन की सरकार भक्तों की पोल खोलने वालों को देशद्रोही करार देने में लग गई. अब कोविड की नई लहर में अस्पताल भर गए हैं क्योंकि पिछले एक साल में नए बने ही नहीं, नए तो मंदिर बने हैं, डाक्टर कम पडऩे लगे हैं.

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क्योंकि पिछले सालों में पंडिताई का धंधा सब से ज्यादा चमकाया गया है, सेवा करने वाली नर्सों की कमी हो गई है क्योंकि सेवा तो आश्रमों में हो रही है, मठ में हो रही है, गंगा किनारे हो रही है.्र

अगर इस देश की जनता को रामायण और महाभारत का पाठ खूब पढ़ाया गया है तो यह भी पढ़ाया जाना कि राम के ङ्क्षसहासन पर बैठने और युधिष्टर के युद्ध जीतने के बाद इन राजवंशों और उन की जनता व सेवाओं का हुआ था? रामायण और महाभारत के अंशों के बारे चर्चा करना धाॢमक भावनाओं को ठेस पहुंचाना कहा जाता है क्योंकि वाल्मिकी रामायण व महाभारत के इस हिस्से में जो वर्णन है उसे ध्यान से पढ़ें लो, आंख और दिमाग खोल कर, तो आज की दुर्दशा सामने आ जाती है.

यह बहुत बार दोहराया गया है. बहुत राजाओं में दोहराया गया है. भक्ति के नाम पर विजय हुई तो भी राज चौपट हुआ और जीत हुई तो भी राज इस बुरी तरह सड़ा कि वह अंहर तक गल गया.

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आज हमारे यहां अंदर तक सब गल गया है. देश व समाज का पुनॢनर्माण की आशा कुंए में डाल दी गई है. आज हम गरीब का आखिरी पैसा चूस कर मंदिरों और पाखंड के पुनॢनर्माण में लग गए हैं. किसान आंदोलन गरीब की छटपटाहट है. नागरिकता कानून आंदोलन अल्पसंख्यकों की छटपटाहट है. आज वही छटपटाहट पूरा देश झेल रहा है, कोरोना के कारण और किसी को सरकार पर भरोसा नहीं रह गया है. अच्छे दिन लौट आए है पर विनाश के काले सीमों के.

एक साथ नजर आईं टीवी की सिमर और किन्नर बहू, देखें दीपिका और रुबीना कि ऑफस्क्रीन मस्ती

सीरियल ‘ससुराल सिमर का 2’  जल्द टीवी पर लाइव आने वाला है. ऐसे में दीपिका कक्कड़ इस सीरियल को प्रमोट करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं. कुछ समय पहले ही सिमर सीरियल शक्ति अस्तित्व के एहसास  की सौम्या से मिलने पहुंची हैं.

इस बात का सबूत सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीर है. जिसमें दोनों साथ में पोज देती नजर आ रही हैं. इस तस्वीर में दीपिका कक्कड़ और रुबीना दिलाइक का पोज काफी ज्यादा क्यूट लग रहा है. टीवी की संस्कारी बहुएं अंखियों से गोली मारती नजर आ रही हैं.

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दीपिका कक्कड़ और रुबीना दिलाइक की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है जिसे फैंस खुब ज्यादा प्यार दे रहे हैं. इसके साथ ही तस्वीर की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं.

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टीवी की जानी मानी प्रॉड्यूसर रश्मि शर्मा की वजह से दोनों अदाकारा एक -दूसरे से मिल पाई हैं. रश्मि सीरियल शक्ति अस्तित्व के एहसास कि प्रॉड्यूसर हैं. सेट पर रुबीना दिलाइक कलरफूल साड़ी में नजर आ रही हैं. तो वही दीपिका कक्कड़ ग्रीन यलौ कलर के साड़ी में नजर आ रही हैं. जिसमें दोनों टीवी की बहुएं बेहद प्यारी लग रही हैं.


फैंस दीपिका कक्कड़ और रुबीना दिलाइक को एक साथ देखकर काफी ज्यादा उत्साहित हो गए हैं. दीपिका कक्कड़ तो अपनी देसी अंदाज के लिए ही ज्यादा जानी जाती हैं. ऐसे में उनके फैंस पहले से ज्यादा उन्हें प्यार दे रहे हैं.

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दीपिका कक्कड़ का कातिलाना देसी अंदाज लोगों को खूब पसंद आ रहा है. तीनों मिलकर जमकर मस्ती करते नजर आ रही हैं.

अपनी मेहंदी सेरेमनी में जमकर नाची सुगंधा मिश्रा, वीडियो हुआ वायरल

कॉमेडी नाइट्स विद कपिल में नजर आ चुकी अदाकारा सुगंधा मिश्रा जल्द ही दुल्हन बनने वाली हैं. इन दिनों अपनी शादी की खबरों को लेकर सुर्खियों में बनी हुई हैं. सुगंधा 26 अप्रैल को अपने ब्यॉफ्रेंड संकेत भोसले के साथ सात फेरे लेने वाली हैं.

इस खबर से सोशल मीडिया पर लगातार उनके फैंस उन्हें बधाई दे रहे हैं. शादी से पहले सुगंधा अपनी प्री वेडिंग में व्यस्त नजर आ रही थी. तो वहीं सुगंधा के मेहंदी सेरेमनी की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई है. जिसमें सुगंधा ‘मेंहदी लगाके रखना गाने पर डांस करती नजर आ रही हैं’ इसके अलावा उन्होंने दिलवाली दुल्हनिया ले जाएंगे गाने पर भी जमकर डांस किया है.

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इस दौरान होने वाले दुल्हा संकेत वीडियो कॉ ल के जरिए ताल से ताल मिलाते नजर आएं. इसकी तस्वीर संकते ने खुद अपने सोशल मीडिया पर शेयर किया है.

 

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इसके साथ ही संकेत और सुंगधा अपनी मेहंदी दिखाते हुए भी नजर आ रहे हैं. अपनी मेहंदी में सुगंधा ग्रीन कलर के आउटफिट में नजर आ रही हैं. वायरल हो रही तस्वीर को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सुगंधा ने अपनी शादी पर कोरोना का असर नहीं पड़ने दिया है.

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कुछ समय पहले ही सुगंधा ने इस बात का एलान किया था कि वह संकेत के साथ शादी करने जा रही हैं. जिसके बाद फैंस इस खबर के बाद खुशी से झूम उठे थें. एक रिपोर्ट में कुछ वक्त दावा किया गया था कि सुगंधा और संकते ने सगाई कर ली है लेकिन सुगंधा ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि ऐसा कुछ भी नहीं है. हम 26 अप्रैल को जलंधर में शादी करने जा रहे हैं.

 

अब एम्स पर भ्रामक दावे 

भारत की ध्वस्त हो चुकी स्वास्थ व्यवस्था का हाल आज पूरी दुनिया देख रही है. विश्वगुरु बनने का दावा ठोंकने वाले देश के अस्पतालों में दम तोड़ रहे कोरोना मरीज़ों को प्राणवायु ऑक्सीजन नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं. दवा, इंजेक्शन, वैक्सीन की कालाबाज़ारी पर नकेल नहीं कस पा रहे हैं. कोरोना संक्रमण से मौतों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है. ना अस्पतालों में ज़िंदा लोगों के लिए जगह है और ना श्मशानों में मुर्दा लोगों के लिए. कोरोना का तांडव जारी है और संघ-भाजपा के सारे नेता मुँह छिपाये बैठे हैं. किसी के पास जवाब नहीं है कि बीते सात साल के शासनकाल में स्वास्थ्य व्यवस्था की ऐसी जर्जर हालत कैसे हो गयी? सात साल तक मोदी सरकार आखिर करती क्या रही?

आज जब कोरोना के आगे जब पूरा सिस्टम फेल हो चुका है, भारत की दुर्दशा दुनिया देख रही है, दुनिया भर का मीडिया मोदी सरकार के निकम्मेपन पर उंगलियां उठा रहा है, तो ऐसे में भाजपा का आईटी सेल अब भ्रामक प्रचारों के ज़रिये मोदी सरकार के निकम्मेपन को ढंकने और सारा ठीकरा पिछली यूपीए सरकार के सर मढ़ने के षड्यंत्र में जुट गया है.

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सोशल मीडिया पर भाजपा नेताओं, समर्थकों और अंधभक्तों के ट्वीट चल रहे हैं कि मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में देश में 15 एम्स की स्थापना की, जबकि यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल में केवल एक एम्स संस्थान का निर्माण किया था.

ऐसा झूठ फैला कर, ट्वीट को लाइक, शेयर और रीट्वीट्स के ज़रिये सरकार की छवि चमकाने की कोशिशें हो रही हैं. पिछले दिनों alt news ने भाजपा नेताओं के ऐसे भ्रामक ट्वीट्स पर अपनी एक रिपोर्ट प्रकाशित की. इस रिपोर्ट के साथ alt news ने भाजपा समर्थकों, अंधभक्तों द्वारा सोशल मीडिया पर वायरल और लाइक व रीट्वीट की जा रही उन भ्रामक सूचियों को भी प्रकाशित किया जिनके जरिये भाजपा अपनी छवि चमकाने का षड्यंत्र रच रही है. न्यूज़ एजेंसी लिखती है –

बिहार के कैबिनेट मंत्री नन्द किशोर यादव मोदी सरकार और इंडिया हैशटैग के साथ एक लिस्ट जारी कर ट्वीट करते हैं –

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जवाहरलाल नेहरू के 16 साल के शासनकाल में एक

इंदिरा गाँधी के 11 साल के शासनकाल में ज़ीरो

राजीव गाँधी के 5 साल के शासनकाल में ज़ीरो

अटल बिहारी वाजपेयी के 5 साल के शासनकाल में 6

मनमोहन सिंह के 10 साल के शासनकाल में एक और नरेंद्र मोदी के 7 साल के शासनकाल में 15 अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना हुई.

इस झूठी लिस्ट के साथ उनका ट्वीट सोशल मीडिया पर वायरल है कि –  ‘ये आंकड़े देखने के बाद भी क्या कांग्रेसी और विपक्षी दल मोदी सरकार को ही बदनाम करेंगे….’

राजनीतिक टिप्पणीकार अभिनव प्रकाश भी एक सूची पोस्ट कर दावा करते हैं कि 14 एम्स की घोषणा पीएम मोदी ने की थी, जिनमें से 11 कार्यशील हैं. खबर लिखे जाने तक उनकी पोस्ट को 8,000 से अधिक लाइक और 3,400 से अधिक रीट्वीट मिले हैं.

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भाजपा समर्थक अरुण पुदुर और @ सूत्रधार भी इस सूची को शेयर करते हैं और कमेंट करते हैं – ‘प्रधानमंत्री पद पर 10 साल रहने के दौरान मनमोहन सिंह मात्र एक एम्स खोलने में कामयाब हुए और वो भी अपनी इटालियन माता के निर्वाचन क्षेत्र में.’

भाजपा समर्थकों और अंधभक्तों के दूसरे ट्विटर हैंडल पर भी इसी तरह की झूठी सूची जारी करके देश और दुनिया को गुमराह करने और मोदी सरकार के दामन पर लगी कालिख को छिपाने की कोशिश हो रही हैं. जबकि सच्चाई इससे बिलकुल उलट है.

गौरतलब है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर थीं. उनके नेतृत्व में 1956 में देश में पहला एम्स स्थापित किया गया था. भारत में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई सुधारों के साथ कौर का नाम जुड़ा रहा और एम्स की स्थापना के लिए तो उन्हें हमेशा याद किया ही जाएगा, खास तौर से जब भारत कोरोना महामारी के खिलाफ जंग लड़ रहा है.

एम्स के निर्माण के लिए जब फंड की कमी सामने आयी तब कौर ने न्यूज़ीलैंड सरकार से बड़ी रकम इस प्रोजेक्ट के लिए जुटाई थी. यही नहीं, रॉकेफेलर फाउंडेशन और फोर्ड फाउंडेशन जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ ही ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और नीदरलैंड्स सरकारों से भी अमृत कौर वित्तीय मदद लेकर आईं और एम्स की स्थापना के लिए हर मुश्किल को आसान किया.

अमृत कौर का बड़ा योगदान यह भी था कि उन्होंने एम्स को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का संस्थान बनाने और उसे ऑटोनॉमस दर्जे व अनोखी परंपराओं के लिए संरक्षित करने पर भी ज़ोर दिया. 1956 में एम्स में एडमिशन के लिए प्रवेश परीक्षा के पीछे भी कौर की ही सोच थी. कौर की तमाम मेहनत और लगन तब रंग लाई जब 1961 में एम्स को अमेरिका, कनाडा और यूरोप के संस्थानों के साथ दुनिया के बेहतरीन इंस्टीट्यूट के रूप में पहचान मिली. एम्स के लिए तो अमृत कौर ने अपना शिमला का घर भी दान कर दिया था.

अमृत कौर ने छह नए एम्स की रूपरेखा भी बनाई थी. टाइम मैगज़ीन ने कौर को 20वीं सदी की 100 सबसे प्रभावशाली महिलाओं की लिस्ट में शुमार किया था. कौर को ऐशो आराम की ज़िंदगी छोड़कर भारत के आम आदमी के पक्ष में लड़ने की प्रेरणा देने के लिए याद किया जाता रहेगा.

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2003 में प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य सस्ती और विश्वसनीय तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना था और गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा को बढ़ाना भी था.

2003 में अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपई ने घोषणा की थी कि पीएमएसएसवाई के तहत आधुनिक सुविधाओं वाले छह नए अस्पताल, जैसे दिल्ली में एम्स में उपलब्ध हैं, अगले तीन वर्षों में पिछड़े राज्यों में स्थापित किए जाएंगे. लेकिन अफ़सोस कि वाजपेयी सरकार घोषणा करने के नौ महीने बाद ही सत्ता से बाहर हो गई थी. यानी वाजपेयी सरकार के वक़्त एम्स का कोई काम नहीं हुआ था.

इसके बाद देश में छह अस्पताल यूपीए के शासनकाल में स्थापित किए गए. 2011 में न्यू इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया, ‘एनडीए सरकार ने केवल चुनाव जीतने की मंशा के तहत ये पहल की और अक्टूबर 2003 और मार्च 2004 के बीच भूमि को ठीक से हस्तांतरित किए बिना बिना ही आधारशिला रख कर खामोश हो गयी.

जब  यूपीए सरकार पुनः सत्ता में आयी तब एम्स का प्रोजेक्ट फिर आगे बढ़ा. 2006 में इस प्रोजेक्ट को केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिली और अगले छह साल इस पर काम हुआ. 2009 में सरकार को मंजूरी और डीपीआर मिलने के बाद जून 2010 में ठेकेदारों का चयन और काम का आवंटन हुआ. इसके बाद छह एम्स का काम प्रगति पर रहा और पीएमएसएसवाई के पहले चरण के तहत भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, रायपुर और ऋषिकेश में छह नए एम्स स्थापित किए गए.

पीएमएसएसवाई की वेबसाइट बताती है कि इन एम्स में नियमित एमबीबीएस बैचों की शुरुआत सन 2012 में हुई जबकि नियमित नर्सिंग पाठ्यक्रम 2013 में शुरू हुए.

उल्लेखनीय है कि यह तमाम संस्थान चरणबद्ध तरीके से विकसित किए गए. यूपीए और एनडीए दोनों सरकारों के तहत काम हुआ. उदाहरण के लिए, मेडिकल कॉलेज और आउट पेशेंट डिपार्टमेंट (ओपीडी) सेवाओं को एम्स भोपाल में 2013 में शुरू किया गया था जबकि इन-पेशेंट डिपार्टमेंट (आईपीडी) और निजी वार्डों का उद्घाटन क्रमशः 2014 और 2017 में हुआ.

2019 में कैग की एक रिपोर्ट कहती है कि इन नए एम्स में अभी भी काफी ढांचागत विकास लंबित है, यह अभी उस तरह की क्षमता वाले एम्स नहीं हैं जैसे कि दिल्ली का एम्स राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में पूरी तरह सक्षम और कार्यात्मक है. मोदी सरकार के बीते सात साल के कार्यकाल में इन नए एम्स जिनकी शुरुआत यूपीए सरकार ने की थी, में कोई ख़ास काम नहीं हुआ है.

भाजपा समर्थक और अंधभक्त ये जान लें कि जिन छह एम्स की सूची सोशल मीडिया पर जारी कर वे इन्हे अटल बिहारी वाजपई सरकार की उपलब्धि बता रहे हैं, दरअसल वे कांग्रेस के कार्यकाल में स्थापित हुए थे. मोदी सरकार को चाहिए था कि इनमें ढांचागत कमियों को दूर कर जनता के स्वास्थ्य लाभ के लिए समर्पित करती मगर मोदी सरकार को जनता के स्वास्थ्य की परवाह कहाँ है?
मोदी सरकार ने 2014 में चार नए एम्स, 2015 में 7 नए एम्स और 2017 में दो एम्स का ऐलान किया. फिर 2018 में अपनी चौथी सालगिरह से ऐन पहले, मोदी कैबिनेट ने देश में 20 नये एम्स बनाने का ऐलान किया, पर यह सारे एम्स जुमले ही साबित हुए हैं. काम किसी पर नहीं हुआ.

मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2011 में एक साथ देश में 6 एम्स बने. देश में दिल्ली के अलावा रायपुर, पटना, जोधपुर, भोपाल, ऋषिकेश और भुवनेश्वर में एम्स अस्पतालों को चालू किया गया, लेकिन उसके बाद मोदी सरकार ने जितने भी एम्स बनाने की घोषणा की, उसमें से अब तक एक भी एम्स पूरा नही हुआ है.

खास बात यह है कि इनमे से अधिकांश एम्स बनने की तारीख अप्रैल 2021 बताई गई थी लेकिन किसी भी जगह कोई काम नही हुआ. कही जमीन का पता नहीं है तो कही बजट का आवंटन ही नही किया गया है.
बिहार के दरभंगा में तथा हरियाणा के मनेठी में बनने वाले एम्स की जमीन तक फाइनल नही है, झारखंड के देवघर में बनने वाले एम्स का अभी एक-चौथाई काम ही पूरा हुआ है.

गुवाहाटी में बनने वाले एम्स का अभी तक महज एक तिहाई काम ही पूरा हो पाया है, पश्चिम बंगाल के कल्याणी में बनने वाले एम्स में भी देर हो रही है. आंध्रप्रदेश के मंगलागिरी में बनने वाले एम्स के लिए रेत ही उपलब्ध नहीं है तो वहीँ जम्मू के सांबा में बनने वाले एम्स का भी महज सात फीसदी काम पूरा हुआ है.

गुजरात के राजकोट में बनने वाले एम्स की तो सिर्फ घोषणा भर हुई है. मदुरई में बनने वाले एम्स और जम्मू कश्मीर के अवंतीपुर में बनने वाले एम्स अभी कागजो पर ही हैं. बाकी जगहों पर भी यही हाल है.

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जो एम्स है उसकी घोषणा 2007 में हुई थी, वहाँ भी यह हालत है कि 750 बेड की ओपीडी अब तक ठीक से नही बन पाई है. रायबरेली एम्स की भी बुरी हालत है. सोनिया गांधी का चुनाव क्षेत्र होने की वजह से इसके साथ सौतेला बर्ताव किया जाता है.

2020 जनवरी में कोरोना काल के ठीक पहले सरकार ने घोषणा कर दी कि 2020 खत्म होते होते में देश को छह नए एम्स सुपरस्पेशलिटी अस्पतालों का तोहफा मिलने जा रहा है लेकिन एक भी अस्पताल ठीक से चालू नहीं हुआ है.

कोई मोदी सरकार से पूछे कि आखिर ये सारे एम्स बनेंगे कहां से? कोई पूछे कि मोदी सरकार ने अपने 6 यूनियन बजट में इनको कितने हजार करोड़ अलॉट किये हैं तो आपको सारी हकीकत समझ में आ जाएगी.

आज प्रधानमंत्री देश के हर शहर में कोविड अस्पताल बनाने की बातें कह रहे हैं. कोई पूछे कि कोरोना को आये पूरा एक साल बीत गया, पूरे एक साल सरकार क्या सिर्फ झक मारती रही? सच तो यह है कि एक साल नहीं पूरे सात साल मोदी सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई काम नही किया. जब जनता का वोट ही मंदिर दिखा कर लिया गया तो एम्स जैसे अस्पताल आखिर मोदी सरकार क्यो बनाएगी? इसलिए अगर कोविड के इस भयानक दौर में जनता को इलाज नही मिल रहा है, हजारों लाखों रुपए उससे निजी हस्पताल वाले लूट रहे हैं तो वास्तव में जनता खुद जिम्मेदार है जिसने अस्पतालों के नाम पर नहीं मंदिर के नाम पर वोट देकर एक निकम्मी सरकार के हाथ में पूरा देश सौंप दिया है.

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