लेखक- शाहनवाज

 20 अप्रैल 2021, मंगलवार को अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘रिपोर्टर्स विदआउट बौर्डर्स’ के द्वारा प्रकाशित ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2021 (वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स)’ के अनुसार भारत को पत्रकारिता के लिए “बुरा” माना जाने वाले देशों में सूचीबद्ध किया गया है और पत्रकारों के लिए दुनिया में सब से खतरनाक स्थानों में से एक है. रिपोर्ट ने भारत को पत्रकारों के लिए “दुनिया के सब से खतरनाक देशों में से एक के रूप में लेबल दिया है जो केवल अपना काम ठीक से करने की कोशिश कर रहे हैं”. बता दें की भारत का स्थान पिछले 2 वर्षों से 180 देशों की लिस्ट में 142वे स्थान पर ही है.

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की इस रिपोर्ट के अनुसार भारत की रैंकिंग नीचे नहीं गिरी है, लेकिन भारत को अब भी पत्रकारिता के लिहाज से सुरक्षित देश नहीं माना गया है. बल्कि साफ शब्दों में भारत को पत्रकारिता के लिए सब से खतरनाक देशों में से एक माना है.

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रिपोर्ट के अनुसार, “2019 के लोकसभा चुनाव के बाद जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी द्वारा भारी बहुमत से जीत हासिल की गई है तब से हिंदू राष्ट्रवादी सरकार की लाइन को आगे बढ़ाने और प्रचारित करने के लिए मीडिया पर दबाव बढ़ गया है.”

इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि, “हिंदुत्व का समर्थन करने वाले भारतीयों, वह विचारधारा जिस ने कट्टरपंथी दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवाद को जन्म दिया है, वह पब्लिक डिबेट से ‘राष्ट्र-विरोधी’ विचार की सभी अभिव्यक्तियों को साफ करने की कोशिश कर रहे हैं. उन पत्रकारों के खिलाफ सोशल नेटवर्क पर एकजुटता के साथ हेट कैंपेन (हिंसात्मक अभियान) चलाया जाता है जो हिम्मत करने की कोशिश करते हैं, जो ऐसे विषयों के बारे में बोलते हैं या लिखते हैं जिन से हिंदुत्व के अनुयायी घबराते हैं और उन की हत्याएं भी कर दी जाती है.”

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इस सूचकांक में भारत के पड़ोसी मुल्कों, जिन्होंने इस रिपोर्ट में भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है उन में  नेपाल 106वे स्थान पर है, श्रीलंका 127वे स्थान पर है और मिलिट्री शासन से पहले म्यांमार 140वे स्थान पर है. वहीं पाकिस्तान 145वे, बांग्लादेश 152वे और चीन का स्थान सब से नीचे की ओर 177वे नंबर पर आता है. इस लिस्ट में सब से ऊपर पहले स्थान पर नोर्वे, दुसरे पर फिनलैंड, तीसरे पर स्वीडन आता है. वहीं सब से निचले स्थान पर इरीट्रिया 180वे स्थान पर है.

पत्रकारिता में भारत लगातार पिछड़ रहा

जैसा की वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की रिपोर्ट में यह कहा गया है की पत्रकारिता के मामले में भारत सब से खतरनाक देशों में से एक है, वह किसी कारण से ही कहा गया है. यदि हम ‘रिपोर्टर्स विदआउट बौर्डर्स’ की वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के ही पिछले 10 सालों की रिपोर्ट खंगाले तो पता चलेगा की पत्रकारिता में  भारत का स्थान पिछले 10 साल पहले (2011) जो था वह और भी गिर कर और भी खराब हो चुका है और लगातार खराब ही होता जा रहा है.

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वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2011 और 2012 में पत्रकारिता में भारत 131वे स्थान पर था जो अगले साल 2013 में और अधिक गिर कर 140वे स्थान पर आ गया. 2014 में भारत एक स्थान और खिसक गया और 141वे स्थान पर आ गया. 2015 में भारत में पत्रकारिता की इमेज थोड़ी साफ हुई और भारत 136वे स्थान पर रहा. 2016 से अभी तक लगातार स्थिति और भी खराब होती ही जा रही है. 2016 में भारत 133 वे, 2017 में 136वे, 2018 में 138वे, 2019 में 140वे और 2020 और 21 में 142वे स्थान पर मौजूद है, “दुनिया में पत्रकारिता के लिए सब से खतरनाक देश” के लेबल के साथ.

पत्रकारों को नहीं करने दिया जाता रिपोर्ट

जब बात पत्रकारिता की हो तो भारत में वे पत्रकार जो ग्राउंड पर रह कर ग्रासरूट रिपोर्टिंग करते हैं और सच्चाई तलाशते हैं, उन्हें सब से ज्यादा प्रशासन के द्वारा प्रताड़ित किया जाता है. चाहे वह कहीं भी क्यों न हो. इसी संबंध में सरिता टीम की बात मिलेनियम अखबार में रिपोर्टिंग कर रही निकिता जैन से हुई. निकिता के अनुसार भारत पत्रकारों के लिए बिलकुल भी सुरक्षित देश नहीं है. वह कहती हैं की, “पत्रकारों को रिपोर्टिंग करने के लिए जिस तरह से बेधड़क जेल में डाला जा रहा है मुझे नहीं लगता है की भारत में पत्रकारों के पास प्रेस की स्वतंत्रता है. पत्रकारिता का काम आज के समय में बिलकुल भी सेफ भी नहीं है.”

ग्राउंड पर रह कर रिपोर्टिंग करने के दौरान सामने आने वाली समस्याओं को बताते हुए वह कहती हैं, “ग्राउंड रिपोर्टिंग के समय हमेशा समस्याएं आती ही हैं. पहले तो औफिशियल्स बात करने को तैयार नहीं होते, जब हम प्रोटेस्ट कवर करने जाते हैं तो पुलिस के साथ हैंडलिंग करना बहुत मुश्किल हो जाता है, एडमिनिस्ट्रेशन अलाऊ नहीं करते, जबरदस्ती का रौब झाड़ते हैं, हिंसात्मक हो जाते हैं, कई बार तो हमारे साथ हाथापाई भी करते हैं.”

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वह आगे कहती हैं, “हालांकि रिपोर्टिंग करने के लिए कहीं किसी तरह के नियम कानून नहीं है की किसी को रिपोर्टिंग नहीं करने दिया जाएगा लेकिन अथौरिटीज ने हम पत्रकारों को हमारा काम करने से रोकने के लिए खुद से नियम कानूनों को निर्माण कर दिया है. और इसी वजह से काफी समस्या आती है लोगों से बात करने में, अधिकारियों के पास एप्रोच करने में, क्योंकि उन के ऊपर भी प्रेशर होता है की कहीं कोई जानकारी लीक न हो जाए.”

निकिता ने रिपोर्टिंग के समय उन के साथ हुए प्रशासन के द्वारा पैदा की गई दिक्कतों को बताते हुए कहा कि, “किसान आन्दोलन के दौरान जब मैं अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिए खबरे पोस्ट कर रही थी तो एडमिनिस्ट्रेशन ने मेरे सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म को रेस्ट्रिक्ट कर दिया था ताकि मेरी रिपोर्टिंग आम लोगों तक न पहुंच सके. इसी तरह से हाल ही के दिनों में दिल्ली में कोविड के कारण खराब होते हालातों की रिपोर्टिंग के लिए जब मैं दिल्ली के आर.एम.एल. अस्पताल में गई तो वहां पर मौजूद एडमिनिस्ट्रेशन ने रिपोर्टिंग करने के कारण मुझ से मेरा फोन छीन लिया, मुझ पर जोर जोर से चीखने चिल्लाने लगे, धमकियां देने लगे, पुलिस का डर दिखाने लगे. सिर्फ इसीलिए की मैं कुछ भी वहां से रिपोर्ट न कर सकू.”

ठीक इसी तरह का वाकया बीते कुछ दिनों पहले भी हुआ जब औनलाइन न्यूज पोर्टल चलाने वाले राजेश कुंडू पर हिसार पुलिस ने सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देने और विभिन्न सामाजिक मीडिया प्लेटफार्मों पर कथित रूप से “भड़काऊ” संदेश पोस्ट करने के लिए भारतीय दंड संहिता के तहत मामला दर्ज कर दिया. इसी तरह से इसी साल फरवरी के महीने में औनलाइन न्यूज पोर्टल न्यूज़ क्लिक के दफ्तर पर प्रवर्तन निदेशालय (एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट ई.डी.) ने लगातार 5 दिनों तक रेड चलाए रखा. केवल इसीलिए क्योंकि यह न्यूज़ पोर्टल सरकार की नीतियों को लगातार एक्स्पोस करने के साथ साथ लोगों के सरकार के खिलाफ सवाल खड़े कर रहा था. इस रेड के जरिए न्यूज़ एजेंसी को डराने-धमकाने का प्रयास किया गया जो की असफल रहा.

 

पत्रकारों पर बढ़ रहे हमले

कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल साल 2020 में कम से कम 30 पत्रकारों की हत्या कर दी गई थी, जिन में 21 पत्रकारों को “उनके काम के प्रतिशोध में हत्या” की गई थी. दिसम्बर 2019 में ‘ठाकुर फाउंडेशन’ के द्वारा की गई एक स्टडी ‘गेटिंग अवे विद मर्डर’ में यह पाया गया की 2014-19 के दौरान भारत में 200 से अधिक पत्रकारों पर गंभीर हमले किए गए. जिन में 40 पत्रकारों की हत्याएं की गई.

उसी तरह से भारत में निष्पक्ष तरह से पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों पर मौजूदा सरकार राजद्रोह जैसे गंभीर धाराएं लगा कर उन के काम में बाधा डालने का काम पिछले 7 सालों से करती आ रही है. आए दिन हर साल ही भारत में सही तरह से पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों को आवाज दबाने का काम किया जाता रहा है. इस का ताजा उदाहरण किसान आन्दोलन के दौरान 26 जनवरी के दिन किसानों के द्वारा ट्रेक्टर परेड निकालने के दौरान कुछ गिने चुने मुठ्ठी भर उपद्रवियों के द्वारा भड़की हिंसा में एक किसान की मौत पर देश के नामचीन पत्रकारों के ट्विटर पर ट्वीट करने मात्र से उन पर सेडिशन (राजद्रोह) जैसा आरोप लगाया गया और उन्हें प्रताड़ित किया गया.

निकिता कहती हैं की, “भारत में प्रेस को स्वतंत्रता तब तक नहीं मिल सकती है जब तक देश में राजद्रोह (यूएपीए, एनएसए, सेडिशन) वाले खतरनाक कानूनों को निरस्त नहीं कर दिया जाता. इन सभी कानूनों से समाज में हमेशा डर का वातावरण बना कर रखा गया है ताकि सरकार की पोल खोलने वाला कोई भी सच लोगों के सामने न आ पाए. भारत में हम पत्रकारों के लिए ‘एक्सेस टु इनफार्मेशन’ का होना बहुत जरुरी है अन्यथा सच कभी भी लोगो के सामने नहीं आ पाएगा और जहर की तरह फेक न्यूज हमेशा हवा में घुला मिला रहेगा.”

भारत में आज के समय में केवल वही पत्रकार सुरक्षित हैं जो सरकार की हां में हां मिलाते हैं, जो सरकार के एजेंडे को पूरा करने के लिए सरकार के प्रोपगंडा फैलाने में उन की मदद करते हैं. और ऐसे पत्रकार आज कल टीवी में न्यूज चैनलों में भरे पड़े हैं (कुछ को छोड़ कर). आज के हालात तो यह है की निष्पक्ष पत्रकारों की आवाज दबाने के लिए सरकार पहले के कानूनों में संशोधन कर के सरकार निष्पक्ष पत्रकारिता का गला दबोचने का काम कर रही है, या फिर उन पर राजद्रोह जैसे गंभीर मामले लगा कर उन्हें शांत करने का काम कर रही है. सही मायनों में भारत आज दुनिया में पत्रकारिता के लिए सब से खतरनाक देश बन कर उभर रहा है जिस से भयानक और कुछ नहीं हो सकता.

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