भारत की ध्वस्त हो चुकी स्वास्थ व्यवस्था का हाल आज पूरी दुनिया देख रही है. विश्वगुरु बनने का दावा ठोंकने वाले देश के अस्पतालों में दम तोड़ रहे कोरोना मरीज़ों को प्राणवायु ऑक्सीजन नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं. दवा, इंजेक्शन, वैक्सीन की कालाबाज़ारी पर नकेल नहीं कस पा रहे हैं. कोरोना संक्रमण से मौतों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है. ना अस्पतालों में ज़िंदा लोगों के लिए जगह है और ना श्मशानों में मुर्दा लोगों के लिए. कोरोना का तांडव जारी है और संघ-भाजपा के सारे नेता मुँह छिपाये बैठे हैं. किसी के पास जवाब नहीं है कि बीते सात साल के शासनकाल में स्वास्थ्य व्यवस्था की ऐसी जर्जर हालत कैसे हो गयी? सात साल तक मोदी सरकार आखिर करती क्या रही?
आज जब कोरोना के आगे जब पूरा सिस्टम फेल हो चुका है, भारत की दुर्दशा दुनिया देख रही है, दुनिया भर का मीडिया मोदी सरकार के निकम्मेपन पर उंगलियां उठा रहा है, तो ऐसे में भाजपा का आईटी सेल अब भ्रामक प्रचारों के ज़रिये मोदी सरकार के निकम्मेपन को ढंकने और सारा ठीकरा पिछली यूपीए सरकार के सर मढ़ने के षड्यंत्र में जुट गया है.
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सोशल मीडिया पर भाजपा नेताओं, समर्थकों और अंधभक्तों के ट्वीट चल रहे हैं कि मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में देश में 15 एम्स की स्थापना की, जबकि यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल में केवल एक एम्स संस्थान का निर्माण किया था.
ऐसा झूठ फैला कर, ट्वीट को लाइक, शेयर और रीट्वीट्स के ज़रिये सरकार की छवि चमकाने की कोशिशें हो रही हैं. पिछले दिनों alt news ने भाजपा नेताओं के ऐसे भ्रामक ट्वीट्स पर अपनी एक रिपोर्ट प्रकाशित की. इस रिपोर्ट के साथ alt news ने भाजपा समर्थकों, अंधभक्तों द्वारा सोशल मीडिया पर वायरल और लाइक व रीट्वीट की जा रही उन भ्रामक सूचियों को भी प्रकाशित किया जिनके जरिये भाजपा अपनी छवि चमकाने का षड्यंत्र रच रही है. न्यूज़ एजेंसी लिखती है –
बिहार के कैबिनेट मंत्री नन्द किशोर यादव मोदी सरकार और इंडिया हैशटैग के साथ एक लिस्ट जारी कर ट्वीट करते हैं –
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जवाहरलाल नेहरू के 16 साल के शासनकाल में एक
इंदिरा गाँधी के 11 साल के शासनकाल में ज़ीरो
राजीव गाँधी के 5 साल के शासनकाल में ज़ीरो
अटल बिहारी वाजपेयी के 5 साल के शासनकाल में 6
मनमोहन सिंह के 10 साल के शासनकाल में एक और नरेंद्र मोदी के 7 साल के शासनकाल में 15 अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना हुई.
इस झूठी लिस्ट के साथ उनका ट्वीट सोशल मीडिया पर वायरल है कि – ‘ये आंकड़े देखने के बाद भी क्या कांग्रेसी और विपक्षी दल मोदी सरकार को ही बदनाम करेंगे….’
राजनीतिक टिप्पणीकार अभिनव प्रकाश भी एक सूची पोस्ट कर दावा करते हैं कि 14 एम्स की घोषणा पीएम मोदी ने की थी, जिनमें से 11 कार्यशील हैं. खबर लिखे जाने तक उनकी पोस्ट को 8,000 से अधिक लाइक और 3,400 से अधिक रीट्वीट मिले हैं.
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भाजपा समर्थक अरुण पुदुर और @ सूत्रधार भी इस सूची को शेयर करते हैं और कमेंट करते हैं – ‘प्रधानमंत्री पद पर 10 साल रहने के दौरान मनमोहन सिंह मात्र एक एम्स खोलने में कामयाब हुए और वो भी अपनी इटालियन माता के निर्वाचन क्षेत्र में.’
भाजपा समर्थकों और अंधभक्तों के दूसरे ट्विटर हैंडल पर भी इसी तरह की झूठी सूची जारी करके देश और दुनिया को गुमराह करने और मोदी सरकार के दामन पर लगी कालिख को छिपाने की कोशिश हो रही हैं. जबकि सच्चाई इससे बिलकुल उलट है.
गौरतलब है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर थीं. उनके नेतृत्व में 1956 में देश में पहला एम्स स्थापित किया गया था. भारत में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई सुधारों के साथ कौर का नाम जुड़ा रहा और एम्स की स्थापना के लिए तो उन्हें हमेशा याद किया ही जाएगा, खास तौर से जब भारत कोरोना महामारी के खिलाफ जंग लड़ रहा है.
एम्स के निर्माण के लिए जब फंड की कमी सामने आयी तब कौर ने न्यूज़ीलैंड सरकार से बड़ी रकम इस प्रोजेक्ट के लिए जुटाई थी. यही नहीं, रॉकेफेलर फाउंडेशन और फोर्ड फाउंडेशन जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ ही ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और नीदरलैंड्स सरकारों से भी अमृत कौर वित्तीय मदद लेकर आईं और एम्स की स्थापना के लिए हर मुश्किल को आसान किया.
अमृत कौर का बड़ा योगदान यह भी था कि उन्होंने एम्स को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का संस्थान बनाने और उसे ऑटोनॉमस दर्जे व अनोखी परंपराओं के लिए संरक्षित करने पर भी ज़ोर दिया. 1956 में एम्स में एडमिशन के लिए प्रवेश परीक्षा के पीछे भी कौर की ही सोच थी. कौर की तमाम मेहनत और लगन तब रंग लाई जब 1961 में एम्स को अमेरिका, कनाडा और यूरोप के संस्थानों के साथ दुनिया के बेहतरीन इंस्टीट्यूट के रूप में पहचान मिली. एम्स के लिए तो अमृत कौर ने अपना शिमला का घर भी दान कर दिया था.
अमृत कौर ने छह नए एम्स की रूपरेखा भी बनाई थी. टाइम मैगज़ीन ने कौर को 20वीं सदी की 100 सबसे प्रभावशाली महिलाओं की लिस्ट में शुमार किया था. कौर को ऐशो आराम की ज़िंदगी छोड़कर भारत के आम आदमी के पक्ष में लड़ने की प्रेरणा देने के लिए याद किया जाता रहेगा.
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2003 में प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य सस्ती और विश्वसनीय तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना था और गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा को बढ़ाना भी था.
2003 में अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपई ने घोषणा की थी कि पीएमएसएसवाई के तहत आधुनिक सुविधाओं वाले छह नए अस्पताल, जैसे दिल्ली में एम्स में उपलब्ध हैं, अगले तीन वर्षों में पिछड़े राज्यों में स्थापित किए जाएंगे. लेकिन अफ़सोस कि वाजपेयी सरकार घोषणा करने के नौ महीने बाद ही सत्ता से बाहर हो गई थी. यानी वाजपेयी सरकार के वक़्त एम्स का कोई काम नहीं हुआ था.
इसके बाद देश में छह अस्पताल यूपीए के शासनकाल में स्थापित किए गए. 2011 में न्यू इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया, ‘एनडीए सरकार ने केवल चुनाव जीतने की मंशा के तहत ये पहल की और अक्टूबर 2003 और मार्च 2004 के बीच भूमि को ठीक से हस्तांतरित किए बिना बिना ही आधारशिला रख कर खामोश हो गयी.
जब यूपीए सरकार पुनः सत्ता में आयी तब एम्स का प्रोजेक्ट फिर आगे बढ़ा. 2006 में इस प्रोजेक्ट को केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिली और अगले छह साल इस पर काम हुआ. 2009 में सरकार को मंजूरी और डीपीआर मिलने के बाद जून 2010 में ठेकेदारों का चयन और काम का आवंटन हुआ. इसके बाद छह एम्स का काम प्रगति पर रहा और पीएमएसएसवाई के पहले चरण के तहत भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, रायपुर और ऋषिकेश में छह नए एम्स स्थापित किए गए.
पीएमएसएसवाई की वेबसाइट बताती है कि इन एम्स में नियमित एमबीबीएस बैचों की शुरुआत सन 2012 में हुई जबकि नियमित नर्सिंग पाठ्यक्रम 2013 में शुरू हुए.
उल्लेखनीय है कि यह तमाम संस्थान चरणबद्ध तरीके से विकसित किए गए. यूपीए और एनडीए दोनों सरकारों के तहत काम हुआ. उदाहरण के लिए, मेडिकल कॉलेज और आउट पेशेंट डिपार्टमेंट (ओपीडी) सेवाओं को एम्स भोपाल में 2013 में शुरू किया गया था जबकि इन-पेशेंट डिपार्टमेंट (आईपीडी) और निजी वार्डों का उद्घाटन क्रमशः 2014 और 2017 में हुआ.
2019 में कैग की एक रिपोर्ट कहती है कि इन नए एम्स में अभी भी काफी ढांचागत विकास लंबित है, यह अभी उस तरह की क्षमता वाले एम्स नहीं हैं जैसे कि दिल्ली का एम्स राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में पूरी तरह सक्षम और कार्यात्मक है. मोदी सरकार के बीते सात साल के कार्यकाल में इन नए एम्स जिनकी शुरुआत यूपीए सरकार ने की थी, में कोई ख़ास काम नहीं हुआ है.
भाजपा समर्थक और अंधभक्त ये जान लें कि जिन छह एम्स की सूची सोशल मीडिया पर जारी कर वे इन्हे अटल बिहारी वाजपई सरकार की उपलब्धि बता रहे हैं, दरअसल वे कांग्रेस के कार्यकाल में स्थापित हुए थे. मोदी सरकार को चाहिए था कि इनमें ढांचागत कमियों को दूर कर जनता के स्वास्थ्य लाभ के लिए समर्पित करती मगर मोदी सरकार को जनता के स्वास्थ्य की परवाह कहाँ है?
मोदी सरकार ने 2014 में चार नए एम्स, 2015 में 7 नए एम्स और 2017 में दो एम्स का ऐलान किया. फिर 2018 में अपनी चौथी सालगिरह से ऐन पहले, मोदी कैबिनेट ने देश में 20 नये एम्स बनाने का ऐलान किया, पर यह सारे एम्स जुमले ही साबित हुए हैं. काम किसी पर नहीं हुआ.
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2011 में एक साथ देश में 6 एम्स बने. देश में दिल्ली के अलावा रायपुर, पटना, जोधपुर, भोपाल, ऋषिकेश और भुवनेश्वर में एम्स अस्पतालों को चालू किया गया, लेकिन उसके बाद मोदी सरकार ने जितने भी एम्स बनाने की घोषणा की, उसमें से अब तक एक भी एम्स पूरा नही हुआ है.
खास बात यह है कि इनमे से अधिकांश एम्स बनने की तारीख अप्रैल 2021 बताई गई थी लेकिन किसी भी जगह कोई काम नही हुआ. कही जमीन का पता नहीं है तो कही बजट का आवंटन ही नही किया गया है.
बिहार के दरभंगा में तथा हरियाणा के मनेठी में बनने वाले एम्स की जमीन तक फाइनल नही है, झारखंड के देवघर में बनने वाले एम्स का अभी एक-चौथाई काम ही पूरा हुआ है.
गुवाहाटी में बनने वाले एम्स का अभी तक महज एक तिहाई काम ही पूरा हो पाया है, पश्चिम बंगाल के कल्याणी में बनने वाले एम्स में भी देर हो रही है. आंध्रप्रदेश के मंगलागिरी में बनने वाले एम्स के लिए रेत ही उपलब्ध नहीं है तो वहीँ जम्मू के सांबा में बनने वाले एम्स का भी महज सात फीसदी काम पूरा हुआ है.
गुजरात के राजकोट में बनने वाले एम्स की तो सिर्फ घोषणा भर हुई है. मदुरई में बनने वाले एम्स और जम्मू कश्मीर के अवंतीपुर में बनने वाले एम्स अभी कागजो पर ही हैं. बाकी जगहों पर भी यही हाल है.
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जो एम्स है उसकी घोषणा 2007 में हुई थी, वहाँ भी यह हालत है कि 750 बेड की ओपीडी अब तक ठीक से नही बन पाई है. रायबरेली एम्स की भी बुरी हालत है. सोनिया गांधी का चुनाव क्षेत्र होने की वजह से इसके साथ सौतेला बर्ताव किया जाता है.
2020 जनवरी में कोरोना काल के ठीक पहले सरकार ने घोषणा कर दी कि 2020 खत्म होते होते में देश को छह नए एम्स सुपरस्पेशलिटी अस्पतालों का तोहफा मिलने जा रहा है लेकिन एक भी अस्पताल ठीक से चालू नहीं हुआ है.
कोई मोदी सरकार से पूछे कि आखिर ये सारे एम्स बनेंगे कहां से? कोई पूछे कि मोदी सरकार ने अपने 6 यूनियन बजट में इनको कितने हजार करोड़ अलॉट किये हैं तो आपको सारी हकीकत समझ में आ जाएगी.
आज प्रधानमंत्री देश के हर शहर में कोविड अस्पताल बनाने की बातें कह रहे हैं. कोई पूछे कि कोरोना को आये पूरा एक साल बीत गया, पूरे एक साल सरकार क्या सिर्फ झक मारती रही? सच तो यह है कि एक साल नहीं पूरे सात साल मोदी सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई काम नही किया. जब जनता का वोट ही मंदिर दिखा कर लिया गया तो एम्स जैसे अस्पताल आखिर मोदी सरकार क्यो बनाएगी? इसलिए अगर कोविड के इस भयानक दौर में जनता को इलाज नही मिल रहा है, हजारों लाखों रुपए उससे निजी हस्पताल वाले लूट रहे हैं तो वास्तव में जनता खुद जिम्मेदार है जिसने अस्पतालों के नाम पर नहीं मंदिर के नाम पर वोट देकर एक निकम्मी सरकार के हाथ में पूरा देश सौंप दिया है.