गली के मोड़ पर हांफता हुआ कमल पल भर को ठिठक गया. इतनी दूर से स्कूटर घसीटतेघसीटते उस की सांस फूल गई थी. दफ्तर आते हुए जब एहसास हुआ कि गाड़ी में पैट्रोल कम है, तो उस ने स्कूटर को पैट्रोल पंप की ओर मोड़ दिया. मगर पैट्रोल पंप पर ‘तेल नहीं है’ की तख्ती ने उसे मायूस कर दिया और घर से 1 किलोमीटर पहले ही जब स्कूटर झटका ले कर बंद हो गया तो कमल झल्ला उठा, क्योंकि उसे इतनी दूर तक स्कूटर घसीट कर जो लाना पड़ा था.
‘उफ,’ कमल ने माथे का पसीना पोंछा. उसे एहसास भी नहीं हुआ कि उसी गली से कब लाल रंग की मारुति कार निकली और उस के बगल में आ कर रुक गई.
‘‘कमल,’’ ड्राइविंग सीट पर बैठी एक सुंदर युवती ने उसे पुकारा.
कमल उसे देख कर चौंक गया. उस के चेहरे पर घृणा की रेखा तैर गई, ‘‘तुम?’’
‘‘आज तुम्हें इस हालत में देख कर अफसोस हो रहा है कमल. मैं अभी तुम्हारे घर गई थी. चांदनी भी अपनी रोशनी बिखेर कर चुकती जा रही है,’’ सूरजा ने कहा.
‘‘सूरजा,’’ कमल का स्वर कड़वा हो उठा था, ‘‘मैं ने तुम से कई बार कहा है कि मैं तुम्हारी सूरत से नफरत करता हूं. चांदनी की सहेली होने के नाते मैं तुम्हें घर आने से नहीं रोक सकता. तुम्हें मेरे हालात पर अफसोस करने की कोई जरूरत नहीं, समझी.’’
‘‘जरूरत है कमल, मगर मुझे नहीं तुम्हें. सोचो कमल, सूरजा सदा तुम्हें प्यार करती आई है. तुम ने मेरे प्यार को ठुकरा कर चांदनी और उस की गरीबी का जो कफन ओढ़ा है एक दिन वह तुम्हें मार डालेगा.’’
‘‘मैं मर भी जाऊं तो क्या, सूरजा, अपने हालात से मैं ने शिकवा कभी नहीं किया, रहा प्यार का सवाल तो ये अमीरी के चोंचले किसी और को दिखाना. मैं तुम्हारे इस दिखावटी प्यार को पसंद नहीं करता.’’
‘‘मैं तुम्हारी इस नफरत से भी प्यार करती हूं कमल, और तुम तो जानते ही हो सूरजा कितनी जिद्दी है, तुम मेरा प्यार ही नहीं मेरा अभिमान भी हो. यह अभिमान मैं टूटने नहीं दूंगी. मैं ने प्यार किया है कमल और मैं अपने प्यार को मरता नहीं देख सकती. कमल, गरीबी के फांके तुम्हें मेरी बांहों में आने को मजबूर कर देंगे.’’
‘‘उस दिन से पहले कमल आत्महत्या कर लेगा सूरजा, मगर तेरे दर पर झांकने तक नहीं आएगा,’’ कमल का स्वर घृणा और अपमान से भर उठा. वह तेजी से वहां से आगे बढ़ गया.
‘‘जा रहे हो कमल, लेकिन एक बात तो सुनते जाओ. कमल चांदनी की चमकीली किरणों से नहीं खिलता. उस के लिए सूरज की रोशनी की जरूरत पड़ती है और सूरजा अपने जीतेजी अपने कमल को मुरझाने नहीं देगी. मैं तुम्हें मिटने नहीं दूंगी कमल. कभी नहीं, मैं तुम से दिल से प्रेम करती हूं और सदा करती रहूंगी,’’ और एक झटके से कार स्टार्ट कर वह तेजी से आगे बढ़ गई.
कमल ने घृणा से सिर झटका. सूरजा की बातों से उस का रोमरोम सुलग रहा था, ‘‘बड़ी आई प्रेम करने वाली,’’ घर में घुसते ही उस का आक्रोश भड़क उठा, ‘‘चांदनी… चांदनी…’’
‘‘अरे, आप आ गए, आज बड़ी देर कर दी. आप हाथमुंह धोइए, मैं चाय बनाती हूं,’’ कहती हुए चांदनी कमरे में घुसी, मगर कमल की भावभंगिमा देख कर ठिठक गई, ‘‘क्या बात है बहुत परेशान लग रहे हैं?’’ आगे बढ़ कर उस ने कमल के माथे पर हाथ रखा, ‘‘सचसच बता दो, क्या बात है?’’ चांदनी ने उसे अपनी बांहों में भरना चाहा लेकिन कमल ने तेजी से उस का हाथ झटक दिया, ‘‘सूरजा यहां क्यों आई थी?’’
‘‘सूरजा दीदी,’’ चांदनी पल भर को चकित रह गई. उस ने कमल का गुस्सा कई बार देखा था मगर यह रूप नहीं देखा था.
‘‘हां, तुम्हारी सूरजा दीदी… वही सूरजा दीदी जिस से तुम्हारा कमल नफरत करता है. वह इस घर में क्यों आई थी?’’ कमल बोला.
‘‘सुनिए, अभी आप गुस्से में हैं, सोचिए, इस घर में आने वाले किसी को भी मैं कैसे रोक सकती हूं और फिर सूरजा दीदी तो कालेज से ही हम दोनों को जानती हैं. मैं जानती हूं कि उन का आना आप को अच्छा नहीं लगता मगर मैं उन्हें घर से निकाल भी तो नहीं सकती.’’
दीवाली के कुछ दिन पहले सूरजा फिर मिलने आ गई.
चांदनी ने आंचल से जल्दी से कुरसी को साफ किया, ‘‘कई दिन हो गए आप आई नहीं, दीदी.’’
‘‘हां, इधर दीवाली की खरीदारी चल रही थी न इसलिए चाह कर भी नहीं आ सकी. कमल कहीं गया है क्या?’’
‘‘हां, दफ्तर में कुछ काम था न सो दफ्तर गए हैं,’’ कहतेकहते चांदनी की आंखें झुक गईं.
‘‘चांदनी,’’ सूरजा उठ कर पास आ गई थी, ‘‘मुझ से झूठ बोल रही है न… अपनी दीदी से… मैं जानती हूं आज सारे दफ्तर बंद हैं और मैं बता भी सकती हूं कि कमल कहां गया होगा, वहीं ताश के 52 पत्तों के बीच बैठा होगा.’’
‘‘दीदी,’’ चांदनी की आंखें भर गई थीं.
सूरजा ने उस के आंसुओं को प्यार से पोंछ दिया, ‘‘रो मत चांदनी, मैं जानती हूं, कमल जिस दलदल में फंसा है वहां बरबादी के सिवा कुछ भी नहीं है. तू उसे समझाती क्यों नहीं?’’
‘‘मैं क्या समझाऊं दीदी,’’ चांदनी सिसक उठी, ‘‘अपने घर, अपने प्यार और अपने भविष्य को बरबाद करने वाला और कोई नहीं स्वयं उस का निर्माता है. दीदी, दीवाली की काली रातों का यह अंधेरा कभी छंटने वाला नहीं है.’’
‘‘नहीं पगली, अंधेरा कितना भी घना क्यों न हो, सूरज के उगते ही भाग जाता है. मैं कमल को समझाऊंगी.’’
‘‘नहीं दीदी, आप का तो नाम लेते ही वह नफरत से भर जाते हैं, आप कुछ मत कहिएगा वरना…’’
‘‘जानती हूं चांदनी, कमल मुझ से नफरत करता है, मगर मैं उस की नफरत को भी प्यार करती हूं. मेरा प्यार खुदगर्ज नहीं है, मैं अब कमल को एक दोस्त के रूप में देखती हूं और तू… तू तो मेरी छोटी बहन है… चांदनी, तुम दोनों की खुशियों से मुझे प्यार है. मैं जानती हूं मेरी बहन मुझे गलत नहीं समझती है, इस का मुझे गर्व है. मैं कमल को छेड़ देती हूं सिर्फ इसलिए कि वह जोश में आ कर अपनेआप में सुधार कर ले, मगर अब लगता है कोई दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा. अच्छा, सुन, तू दीवाली की तैयारियां कर. इस बार दीवाली दोनों प्रेम से मनाना.’’