लेखक-डा. शैलेंद्र सिंह
फसल की कटाई के बाद खेत में फसल अवशेष भूल कर भी न जलाएं. इस से खेत के लाभदायक मित्रजीव नष्ट हो जाते हैं और फसल में शत्रुजीवों का प्रकोप बढ़ जाता है. फसल अवशेषों को पशु चारे के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है या उन की कंपोस्टिंग कर के उत्तम किस्म की खाद बनाई जा सकती है. यदि ये दोनों संभव न हो सकें, तो उन्हें खेत में ही रोटावेटर की मदद से महीन कर के मिट्टी में मिलाया जा सकता है, जो आगामी फसल में मृदा जीवांश कार्बन में योगदान करेंगे. कुछ किसान मशरूम उत्पादन के प्रयोग में भूसे को ले सकते हैं. अनाज भंडारण वाले कमरे/पात्र की साफसफाई कर मैलाथियान का छिड़काव करें. धूप में सुखाए हुए अनाज को छाया में ठंडा कर के ही भंडारण करना चाहिए.
भंडारण के समय नमी का उचित स्तर तय कर लेना चाहिए. नमी का स्तर अनाज वाली फसलों में 12 फीसदी, तिलहनी फसलों में 8 फीसदी, दलहनी फसलों में 9 फीसदी, सोयाबीन आदि के दानों में तकरीबन 10 फीसदी से कम रहना चाहिए. खाली खेतों में गहरी की जुताई करें. इस से आगामी फसल में लगने वाले अनेक रोगों, कीटों और खरपतवारों की सुषुप्त अवस्थाएं सूरज की तेज रोशनी से नष्ट की जा सकती हैं. मृदाजनित रोगजनक व कीट और सूत्रकृमि की रोकथाम में यह एक कारगर उपाय है. ग्रीष्मकालीन उड़द और मूंग की जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. इन फसलों में सफेद मक्खी और फुदका कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 1 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें. फलियों की तुड़ाई के बाद शेष फसल को खेत में पलट देने से यह हरी खाद का काम करती है.
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