अंधभक्ति या यूं कहिए कैसी भी भक्ति किसी भी व्यक्ति के लिए सुख और स्मृद्धि की राह नहीं है. यह एक विडंबना ही है कि भक्ति के बावजूद पिछले लगभग 10-12 हजार सालों में मानव ने भरपूर विकास कियया है और ज्यादा सुख से जिया है. यह तय करना आज के प्रोगतिहासिक विशेषज्ञों के लिए भी असंभव है कि बिना भक्ति के मानव विकास ज्यादा होता या कम. पर यह तय है कि जितना विकास भक्ति के कारण हुआ है. उतना और किसी कारण से नहीं. आज जिस कोविड से दुनिया त्राहित्राहि कर रही है, भक्ति इस से ज्यादा कई गुना दुखों का कारण रही है.

प्राकृतिक प्रकोप हमेशा मानव पर भारी रहे हैं पर जब से इतिहास लिखा गया है जब से इतिहास लिखा जा सका है आज की खोजों के अनुसार भक्ति ने मानव से शांति के दिनों में जब प्राकृतिक प्रकोप नहीं थे ज्यादा बड़ी कीमत ली है चाहे वह साधारण टैक्स के रूप में थी या भक्ति यातनाओं व युद्धों के कारण.

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आज भारत को भक्ति के गढ़े में धकेल दिया गया है और हम सब इतने कमजोर हो गए हैं कि कोरोना बायरस के प्राकृतिक प्रकोप के कारण हमारी भक्ति धरी की धरी रह गई है. पूरा देश आज कोरोना का मारा हुआ है और शासक, प्रशासक, पुलिस जो कुछ सालों से केवल भक्ति के प्रचारप्रसार में लगी थी हतप्रथ है कि क्या किया जाए कैसे जाए. पिछले साल मार्र्च में जब इस का कहर सिर पर पड़ा था तो सब भक्ति को छोड़ कर वैज्ञानिकों का मुंह देखने लगे. डाक्टरों अस्पतालों की दुआ करने लगे. पर जैसे ही स्थिति ठीक होने लगी नरेंद्र मोदी और अमित शाह फिर भक्तों के शंहशाह के मूड में आ गए और बजाय  कोरोना के फिर से प्रकोप की तैयारी में लगने के एक छोटे से राज्य पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी को हराने के लिए रातदिन एक करने लगे. यह भक्ति का एजेंडा था हालांकि ममता बैनर्जी कोई भक्त विरोधी नहीं है.

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