कोविड सेक्ट ने लाखों घरों की जमापूंजी समाप्त कर दी है. जो एक बार बिमार पड़ गया उस की जमापूंजी का बड़ा हिस्सा डाक्टरों, हस्पतालों को गया समझो. डेढ़ करोड़ लोग जो देश में बिमार पड़ चुके हैं उन के घरवालों की बड़ी संपत्ति कोविड के इलाज में जा चुकी है. हालांकि सरकारें बड़ीबड़ी बातें करती रही हैं पर सच यही है कि लोगों को जमापूंजी लुटानी पड़ी है.

यह भरपाई होगी यह भी अब दिख नहीं रही. आंकड़ेबाजी के बावजूद लग रहा है कि कोराना वायरस के बारबार के आक्रमण सरकार को तो खोखला नहीं कर रहे पर आम घरों को पूरी तरह खोखला कर देंगे. सरकार के आंकड़े तो कहते हैं कि वे अधिक कर वसूल जमा कर रहे हैं पर वह संभव है कि पैसा अब कुछ हाथों में ज्यादा जमा हो रहा हो. बाजार ठप्प होने से नहीं लगता कि एक आम भारतीय को कहीं से राहत मिल रही हो.

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असल में घर परिवार को हमेशा ही खासी बचत डाक्टरों और वकीलों के लिए रखनी चाहिए. यह ऐसा फंड होना चाहिए जो बेटी की शादी या बच्चों की पढ़ाई पर भी खर्च न हो. लोग अपनी बचत शानदार गाड़ी, बड़ा मकान, बढिय़ा मोबाइल, एक लंबी हौलीडे लेेने से नहीं कतराते. यह गलत है. बचत का एक बड़ा हिस्सा मेडिकल या कानूनी आपदाओं के लिए रखा जाना चाहिए. आज कम में जी लें पर इन 2 मदों पर जब जरूरत पड़ेगी कोई आगे नहीं आएगा.

जो लोग बचत के आधार पर मकान खरीद लेते हैं और उस के लिए कर्ज ले लेते हैं वे अक्सर बेघरबार होते दिखते हैं. कर्ज पर ली गई गाडिय़ां लौटानी पड़ती हैं. इन के पास मैडिकल या लीगल आपदाओं के लिए पैसा नहीं बचता.

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अब जरूरी है कि  लोग अपना पैसा चाहे नकद या सोने में या बैंक में रखें जो 2-3 माह लंबी चलने वाली बिमारी या 2-3 साल चलने वाले कानूनी मुकदमे के बिल पे कर सके. इस पैसे का उपयोग और किसी काम में न हो. इस सरकार से तो उम्मीद नहीं है पर आगे की किसी सरकार से कहा जा सकता है कि इस बचत पर मिलने वाला इंट्रस्ट असल में आय माना ही नहीं जाए. यह सरकार के लिए सुविधाजनक होगा क्योंकि उसे जनता के मुफ्त इलाज के लिए अस्पतालों पर कम खर्च करना पड़ेगा.

बचत का यह पैसा हरगिज पंडेपुजारियों, मंदिरों और तीर्थ यात्राओं पर खर्च होना नहीं चाहिए. यह बात गांठ में बांध लें.

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