देश के हर राज्य, हर शहर में कोरोना संक्रमण के चलते हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. सबसे बुरा हाल राजधानी दिल्ली का है, जहाँ ऑक्सीजन की कमी के कारण मरीजों की सामूहिक मौतें हो रही हैं. दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में 22 और 23 अप्रैल को 25 मरीज अचानक ख़त्म हो गए. हालांकि गंगाराम प्रबंधन सभी मौतों को ऑक्सीजन की कमी से हुई नहीं मान रहा है, उसका कहना है कि मरीज़ों की हालत काफी गंभीर थी, मगर मृतकों के परिवारीजनों का आरोप है कि मौतें ऑक्सीजन ना मिलने की वजह से ही हुई हैं. गंभीर मरीज़ों को भी अस्पताल ऑक्सीजन नहीं दे पा रहा है.

बीती रात जयपुर गोल्डन अस्पताल में 20 मरीजों ने ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ दिया. वहां 200 से अधिक जिंदगियां अभी भी खतरे में हैं. यदि ऑक्सीजन जल्दी ना मिली तो और मौतें निश्चित हैं. कई अन्य अस्पतालों में भी मरीज़ों की सांसें हलक में अटकी हुई हैं. दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सिजन की कमी मरीजों के तीमारदारों की धड़कनें बढ़ा रही है. वो ऑक्सीजन की जुगाड़ में इधर से उधर भागते फिर रहे हैं. लोग रसूखदारों को फ़ोन मिला रहे हैं, उनके आगे गिड़गिड़ा रहे हैं मगर ऑक्सीजन सिलिंडर का जुगाड़ नहीं हो पा रहा है.

दिल्ली के एक और अस्पताल सरोज अस्पताल में भी ऑक्सीजन की भारी किल्लत हो गई है. अस्पताल की ओर से कहा गया कि हम ऑक्सीजन की कमी की वजह से नई भर्तियां नहीं कर रहे और हम मरीजों को डिस्चार्ज कर रहे हैं.

शनिवार 24 अप्रैल की सुबह जब साउथ दिल्ली के मूलचंद अस्पताल में बस आधे घंटे की ऑक्सिजन बची तो मेडिकल डायरेक्टर मधु हांडा बेबसी बयां करते-करते रो पड़ीं. अपनी बेबसी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि अस्पताल के पास सिर्फ 30 मिनट की ऑक्सिजन बची है. मूलचंद अस्पताल कई दिनों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर एलजी तक से ऑक्सीजन सप्लाई पहुंचाने की गुहार लगा रहा है, मगर सप्लाई नहीं पहुंच रही है.

महाराजा अग्रसेन अस्पताल ने ऑक्सीजन दिलाए जाने की मांग लेकर दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उनका कहना है कि हमारे अस्पताल में 106 गंभीर मरीज हैं. हमें तुरंत ऑक्सीजन नहीं मिली तो मजबूरी में अस्पताल को उन्हें डिस्चार्ज करना होगा.

मूलचंद के साथ बत्रा अस्पताल ने भी ऑक्सीजन की अर्जेंट अपील कोर्ट में की है. बत्रा अस्पताल में 300 से ज्यादा मरीज भर्ती हैं, जिसमे से 48 आईसीयू में हैं. उन्हें तुरंत ऑक्सीजन की दरकार है. बत्रा अस्पताल को 7000 लीटर ऑक्सीजन की ज़रूरत है, फिलहाल उनके पास ऑक्सीजन का एक कंटेनर पहुंचा है जिससे 500 लीटर की आपूर्ति की गयी है और स्थिति थोड़ी संभली है.

ये हालत देश की राजधानी दिल्ली के अस्पतालों की है. बाकी देश में स्थितियां कितनी गंभीर हैं इसका अनुमान लगाया जा सकता है. मगर सत्ता साँसों पर सियासत करने में जुटी है. देश भर के अस्पतालों में ऑक्सीजन की फौरी ज़रुरत कैसे पूरी हो, ऑक्सीजन के लिए हांफ रहे मरीजों को कैसे राहत मिले, इस बारे में अभी तक कोई बड़ी तैयारी या कोई नीति नहीं बनी है. अभी तक सिर्फ आरोपों प्रत्यारोपों का दौर चल रहा है.

कोरोना तेजी से खा रहा है ऑक्सीजन

कोरोना का नया वायरस शरीर से ऑक्सीजन तेजी से कम कर रहा है. इसके नए वेरिएंट ने डॉक्टरों को हैरान कर रखा है. तीन से चार दिन के संक्रमण में ही मरीज़ों के शरीर में ऑक्सीजन का स्तर खतरनाक तरीके से नीचे गिर रहा है. कई बार तो यह चंद घंटों में ही हो रहा है.

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के पांडेय हाता निवासी 22 वर्षीय युवक को तीन दिन पहले बुखार हुआ. तीसरे दिन ही उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी और दोपहर तक उसकी हालत बिगड़ गई. ऑक्सीजन सेचुरेशन 65 से 70 के बीच चला गया. उसे निजी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया है. जहाँ ऑक्सीजन मिलने पर हालत स्थिर हुई.

फेफड़े नहीं सोख पा रहे हैं ऑक्सीजन

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट के विभागाध्यक्ष डॉ. अश्वनी मिश्रा कोरोना के नए वेरिएंट के इंसानी शरीर पर हमले की बाबत कहते हैं कि संक्रमण के बाद यह वायरस फेफड़े के अंदर तेजी से परत बना रहा है. इससे फेफड़े हवा की ऑक्सीजन को सोख नहीं पा रहे हैं और खून को ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा है. सांस द्वारा शरीर को मिलने वाली ऑक्सीजन को ऑक्सीडेशन होना कहते हैं, जो कोरोना के गंभीर लक्षणों वाले मरीजों में नहीं हो रहा है. मरीज के खून में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिए उसे 60 लीटर प्रति मिनट की स्पीड से ऑक्सीजन देना पड़ रहा है. जबकि सामान्य तौर पर यह 8 से 10 लीटर प्रति मिनट की दर से दिया जाता है. इस वजह से संक्रमितों के इलाज में ऑक्सीजन की खपत 5 से 6 गुना बढ़ गई है. कोविड वार्ड में भर्ती करीब 40 फीसदी मरीज युवा है. युवाओं की हालत इसमें ज्यादा गंभीर हो रही है. उनकी सीटी स्कैन थोरेक्स की स्कोरिंग 15 से अधिक आ रही है. यह गंभीर संक्रमण की निशानी है. कुछ मरीज तो 20 से 22 स्कोरिंग तक के पहुंचे हुए हैं.

क्या बताता है सीटी थोरेक्स

कोरोना मरीजों को डॉक्टर सिटी स्कैन करवाने को कह रहे हैं. गले और सीने की सही हालत सिटी थोरेक्स के ज़रिये ही पता चलती है. कोरोना की पहचान व इलाज में सीटी स्कैन थोरेक्स का रोल अहम हो गया है. इसमें गले व सीने का स्कैन किया जाता है. यह उनके अंदर संक्रमण के कारण हुए असर की तस्वीर बताता है. इसे स्कोरिंग कहते हैं. अधिकतम स्कोरिंग 25 तक होती है. इसमें संक्रमण जितना अधिक होगा स्कोरिंग उतना ही ज्यादा होती है.

वायरस का नया स्ट्रेन यह चार दिन में ही फेफड़े तक पहुंच कर उसे पूरी तरह संक्रमित कर जाम कर रहा है. फेफड़े के अंदर मौजूद एल्बुलाई और खून की धमनियों के बीच यह वायरस दीवार बना रहा है. जिससे खून में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है. यह प्रक्रिया बेहद तेजी से हो रही है. कई बार तो मरीज को समझने का मौका भी नहीं मिल पाता और देखते ही देखते वह मौत के दरवाज़े पर पहुंच जाता है.

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