अशोक ने कहा, ‘‘आंटीजी, जो भला नहीं कर सकता, वह बुरा कहां से कर पाएगा. आप इस की जरा भी चिंता न करें. मैं उन दोनों को देख लूंगा.’’
अशोक रोज ही लावण्य के यहां जाता रहा. लावण्य के मामा के घर वालों को पता ही था कि उस के साथ लावण्य की शादी होने वाली है. इसलिए उसे सभी घर के सदस्य की तरह ही मानते थे. लगभग 15 दिनों तक एक तरह से अशोक लावण्य के यहां ही रहा. लावण्य एक सामान्य लड़की की तरह सब से व्यवहार कर रही थी.
तमाम लोग लावण्य से मिलने आ रहे थे. ऐसे में अशोक और उस में सिर्फ औपचारिक बातें ही हो पाती थीं. धीरेधीरे लावण्य के सगेसंबंधी जाने लगे थे.
अशोक का कामकाज उन दिनों कुछ ज्यादा ही चल रहा था. दोस्तों के साथ चल रहे कंस्ट्रक्शन के काम में उस की मदद की जरूरत थी. इसलिए 3-4 दिन वह लावण्य के घर नहीं जा सका था. उस ने जया से लावण्य का ध्यान रखने के लिए कह दिया था. दरअसल, उसे शहर से बाहर जाना पड़ा था. लौटते ही वह लावण्य के यहां जाने के लिए तैयार हुआ तो मां बोली, ‘‘अशोक, मैं भी चलूंगी लावण्य के यहां. मु झे भी वहां गए कई दिन हो गए हैं.’’
अशोक मां को भला कैसे मना कर सकता था, जबकि उस दिन वह अकेला ही जाना चाहता था. अशोक मां को ले कर लावण्य के यहां पहुंचा.
लावण्य ड्राइंगरूम में बैठी कुछ पढ़ रही थी. अशोक और उस की मां को देखते ही लावण्य ने पत्रिका रख दी और खड़ी हो कर बोली, ‘‘आइए मांजी.’’
अशोक की मां ने लावण्य के सिर पर हाथ फेरा और सोफे पर बैठ गईं.
‘‘कई दिनों बाद आप आईं मांजी,’’ लावण्य बोली.
‘‘मैं अकेली कैसे आती बेटा. आज अशोक आने लगा, तो इस के साथ आ गई.’’
‘‘आप आईं तो बहुत अच्छा लगा,’’ लावण्य बोली, ‘‘जया आंटी, देखो तो कौन आया है.’’
रसोई से हाथ पोंछते हुए जया आई. अशोक और उस की मां को देख कर बोली, ‘‘अरे ज्योत्सनाजी, आप, बैठिए, मैं पानी ले कर आती हूं.’’
‘‘पानी ही क्यों, गुलाबजामुन भी लाओ न,’’ लावण्य बोली, ‘‘मांजी, मेरे डैडी को गुलाबजामुन बहुत पसंद थे. वे गुलाबजामुन के बिना एक भी दिन नहीं रह पाते थे. वह भी जया आंटी का बनाए हुए. मां के बनाए हुए भी नहीं.
‘‘मैं ठीक कह रही हूं न जया आंटी. अरे आंटी, ये सब लोग आए हैं, डैडी को बुलाओ न.’’
‘‘वे मेरे कहने से कहां आने वाले हैं,’’ जया स्तब्ध हो कर बोली.
‘‘वे पूरे दिन स्टडीरूम में ही क्यों बैठे रहते हैं,’’ लावण्य ने कहा, ‘‘बोलो न अशोक की मां आई हैं. खैर, मैं ही जाती हूं. मेरे गए बगैर वे नहीं आएंगे,’’ कह कर लावण्य उठ खड़ी हुई.
‘‘लावण्य,’’ अशोक बोला पर लावण्य उस की बात पर ध्यान दिए बगैर आगे बढ़ी तो पीछेपीछे अशोक भी चल पड़ा.
‘‘डैडी… डैडी,’’ आवाज लगाते हुए लावण्य सीढि़यां चढ़ने लगी. मेजर विवेक का स्टडीरूम ऊपर की मंजिल पर था. अशोक सीढि़यों के पास ही खड़ा रहा. थोड़ी देर में वह नीचे आ कर बोली, ‘‘आंटी, डैडी कहां हैं?’’
‘‘बेटा, वे तो खेतों में गए हैं,’’ जया आंटी ने कहा.
‘‘अब तो वे शाम को ही आएंगे,’’ लावण्य बोली.
जया अशोक की मां को इशारे से सम झा रही थी कि अब आप जाइए, जबकि उन की सम झ में कुछ नहीं आ रहा था. लेकिन, अशोक सब सम झ गया था.
‘‘चलो मां, आप को घर पहुंचा कर, मु झे यहां फिर आना पड़ेगा,’’ अशोक अपनी हैरानपरेशान मां को ले कर बाहर आ गया.
अशोक को बाहर निकलते देख लावण्य बोली, ‘‘अशोक, तुम जा रहे हो?’’
‘‘नहीं, मां को पहुंचा कर आता हूं.’’
‘‘ठीक है, तब तक डैडी भी आ जाएंगे,’’ लावण्य ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘यह सब देखनेदिखाने के लिए आप ने मु झे ही क्यों चुना,’’ जया बुदबुदाई.
अशोक उन से कुछ भी नहीं कह सका. उस का सिर चकराने लगा था. कहां जल्दी से जल्दी शादी के बारे में सोच रहा था, कहां यह बखेड़ा खड़ा हो गया. वह भी बुदबुदाया, ‘लावण्य, मैं तुम्हारे बगैर नहीं
रह सकता.’
उस ने रणजीत मामा से शादी के लिए बात की, जबकि लावण्य रट लगाए थी कि डैडी कहेंगे तभी वह शादी करेगी. आखिर अशोक ने मेजर विवेक के नाम को अपने फोन में व्हाट्सऐप संदेश दिखा कर उसे शादी के लिए राजी कर लिया.
लावण्य को बहका कर किसी तरह सभी ने अशोक से शादी करा दी. लावण्य जिस तरह भ्रम में थी, उस के भ्रम को उसी तरह बनाए रखने के लिए अशोक ने मेजर विवेक का एक कमरा अपनी कोठी में भी अलग से बना दिया था. उन के नाम से अपने फोन में व्हाटसऐप चला भी रहा था. जब कभी लावण्य मेजर विवेक को ले कर बहकती, वह अपने फोन में मेजर साहब के नाम का संदेश दिखा कर उसे सम झा लेता, क्योंकि जल्दी ही वह उसे सम झाना सीख गया था