औरतों के बारे में हमदर्दी रखने वाले कानूनों और लगातार अदालतों का औरतों की शिकायतों पर आदमियों के जेल में भेज देने से जहां आदमियों के लिए औरतों को खिवाड़ की चीज समझने पर खतरा पैदा कर दिया है, वहीं औरतों का अपनी अपनी जवानी और बदन का इस्तेमाल अपने सुखों को पाने का रास्ता भी बंद कर दिया है. पिछले 10-20 सालों में जिस तरह से औरतें सामाजिक बेइज्जती से डरे बिना  शिकायतें करना शुरू किया है उस से सैंकड़ों लोग देश में जेलों में बंद हैं और छूृृटते हैं तो तब जब शिकायती औरत अपना रवैया बदलती हैं.

एक तरह से तो यह सामाजिक बदलाव अच्छा है और आदमी औरतों को कमजोर नहीं समझ सकते पर दूसरी ओर औरतों के हाथ से अपने बदल का इस्तेमाल कर के अपना काम निकलवाने का मौका भरा गया है. चाहे यह मौका औरतों के अपनी कमजोरियों को पूरा करने में काम आता था पर फिर भी राजनीति, दफ्तरी, छोटी बड़ी नौकरियों में जहां औरतों के पास बदन के अलावा कोई और हुनर नहीं होता वहां कुछ दे देता था. इन कानूनों की वजह से अब औरतों को अपने बदन और अपनी अदाओं से नहीं, अपने काम और गुणों से आदमियों से डील करने की आदत डालनी पड़ेगी.

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जिन लड़कियों को किशोरसन में आदत डाल जाती थी कि एक मुस्कान से वे कुछ पा सकती हैं उन्हें अब सारी मेहनत अपने हुनर को ठीक करने पर लगी होगी. आदमियों के भी एहसास हो गया हैकि औरत कोई कबूतरी नहीं कि कुछ दाने फेंक कर उसे ङ्क्षपतरे में बंद किया जा सकता है. जिन औरतों में योग्यता होगी, हुनर होगा, सिर्फ बदन का इस्तेमाल कर बच्चे पैदा करना आता होगा, वे पीछे रह जाएंगी. मांबाप को अब अपनी सुंदर बेटियों पर नहीं अपनी हुनरमंद लड़कियों पर सिर ऊंचा करना होगा और लडक़ी सांवली है या नारी या सुंदर नहीं है अब बेमतलब का हो गया है.

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