उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव जिस तरह अहम हो गए हैं वह काफी हिम्मत बढ़ाने वाला है. यहां पश्चिमी बंगाल के बाद नरेंद्र मोदी की एक बार और हार देखने को मिलेगी या फिर वह ङ्क्षहदू कार्ड के रास्ते अपनी सत्ता बचा ले जाएंगे यह देखना है.
देश के ज्यादातर किसान इसी उत्तर प्रदेश में हैं और इसीलिए किसानों की नाराजगी को ज्यादा देर तक न पालने के कारण सरकार ने 2 साल पहले बनाए कृषि कानून तो वापिस ले लिए पर वैसे कोर्ई राहत किसानों को दी गई हो लगता नहीं. ये चुनाव साफ दिखाते है कि आज के गांव 20-25 साल पहले जैसे कच्ची गलियों वाले, बदबू से मरे, खुले शौच वाले, बिना नल के पानी वाले, अधपक्के मकानों वाले हैं अपनी सभाओं में भीड़ जमा करने के लिए हर दल को बसों और खानेपीने का इंतजाम करना पड़ता है.
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पंजाब जहां भारतीय जनता पार्टी वैसे भी चुनावों में नहीं है, मैं अगर प्रधानमंत्री सुरक्षा का बहाना बना कर फिरोजपुर की सभा में नहीं शामिल हुए तो इसलिए कि वहां लाई जा रही भीड़ की बसों किसानों आंदोलनकारियों ने गांवों से ही नहीं निकलने दिया. फिरोजपुर शहर में भी 70000 लोग जमा नहीं हुए क्योंकि उन्हें मोहल्लों से ढोकर लाने वाली बसें आंदोलनकोरियों ने रोक ली.
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी से न सिर्फ कई कद्दावर नेता पार्टी छोड़ कर चले गए, पार्टी ङ्क्षहदूमुसलिम झगड़े भी नहीं करवा पा रही है. पाकिस्तान का हैवा भी नहीं खड़ा हो पा रहा है क्योंकि इस बार वे चुनावों में पीछे चीन भी खड़ा है और वह भारत सरकार को पाकिस्तान कार्ड नहीं खेलने दे रहा.
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उत्तर प्रदेश सरकार के पास अपने विकास का ढोल पीटना ही बचा है वर इस में बात वो सिर्फ सडक़ों की जा रही है पर इन सडक़ों पर कब साइकिल, ठेले या स्कूटर वाले चलते हैं. आम जनता को आखिर एक्सप्रेस या यमुना एक्सप्रेस इस्तेमाल आखिर करना क्यों हैं जब उन की जेब में फालतू 50 रुपए तक न हों. उत्तर प्रदेश में आप सस्ती बिजली, गन्ने का बकाया भुगतान, घरों में नल पहुंचाने, टेबलेट देने के बादे सरकारी पार्टी को करने पड़ रहे हैं तो उस का मतलब यही है कि पिछले 5 सालों में राज्य सरकार और 8 सालों में केंद्र सरकार नहीं दे पाई.
भारतीय जनता पार्टी के साथ बड़ी मुसीबत यह भी है कि उस का व्यापारियों से नाता अब अच्छा नहीं रहा. व्यापारी जमात को इन सालों में नोटबंदी, जीएसटी और मंहगाई तो झेलनी ही पड़ी, उसे कोविड की महामारी कोई राहत नहीं मिली. हर बाजार में बीसियों दुकानों पर ‘किराए को खाली है’ के कोई दिख जाएंगे क्योंकि पैसे की किल्लत, औन लाइन खरीदारी, फैक्ट्री के समान को इधर से उधर ले जाने पर बंदिशों को मिलाजुला असर यह है कि व्यापारी जो अपनी दुकानें छोड़ कर भाजपा की राजनीति करने में उतरते थे, अब घरों में बैठे हैं. उत्तर प्रदेश सरकार को अपनी पुलिस से भीड़ जमा करने के लिए गिड़गिड़ाना पड़ रहा है.
उत्तर प्रदेश का चुनाव भाजपा के न चाहते हुए भी योगी बनाम अखिलेश हो गया है. कांग्रेस और मायावती दोनों कहीं दूर पिछड़ गई हैं. भाजपा और सपा दोनों चुनाव में आमने सामने होंगे तो भारतीय जनता पार्टी से नाराज लोगों को एक पार्टी चुनने में बड़ा आराम रहेगा, ऐसा दिख रहा है.