Writer- रमाकांत ‘कांत’

अपर्णा को एयरपोर्ट जाना था. वह सुबह 6 बजे जल्दी घर से निकली थी, फिर भी उसे आसपास औटो कहीं नहीं मिला. निराशहताश अपर्णा सड़क पर अकेली खड़ी बारबार घड़ी देख रही थी कि फ्लाइट मिस न हो जाए. उस ने उबर ट्राई किया पर उस को आने में 15 से 20 मिनट लगने वाले थे. तभी एक कार उस के पास आ कर रुकी. कार चालक उसी के अपार्टमैंट में रहने वाला युवक था. उस ने अपर्णा से पूछा कि वह कहां जा रही है.

एक पल के लिए तो वह ?ि?ाकी लेकिन उसे वाकई उस समय सहायता की जरूरत थी, इसलिए उस ने उस लड़के को बताया कि साक्षात्कार के लिए वह एयरपोर्ट जा रही है किंतु उसे बहुत देर हो चुकी है. कार का अगला दरवाजा खोलते हुए युवक बोला, ‘मु?ो वसंत विहार जाना है. आ जाओ, किसी टैक्सी स्टैंड पर छोड़ दूंगा.’

?ि?ाक के साथ अपर्णा कार में बैठ गई. अभी पंजाबी बाग भी नहीं पहुंचे थे कि युवक ने दिलफेंक व्यक्ति की तरह बातें करनी शुरू कर दीं. अपर्णा यह सोच कर बरदाश्त करती रही कि उसे किसी तरह एयरपोर्ट समय पर पहुंचना है. मगर धौला कुंआ के बाद कार रिज के घने जंगलों की ओर घूम गई. तब वह चौंकी. उस ने युवक से पूछा, ‘हम इधर से कहां जा रहे हैं?’ उस के इस प्रश्न पर युवक ने उसे धमकाते हुए चुप रहने को कहा.

अनहोनी की आशंका से घिरी अपर्णा अब साक्षात्कार की बात भूल कर बचाव के उपाय सोचने लगी. उसे तब राहत महसूस हुई जब एक कार लालबत्ती पर रुकी. कुछ और गाडि़यां भी आ कर रुकीं. युवक बेचैन था. वह जल्दी से सुनसान स्थान पर पहुंच जाना चाहता था. अपर्णा ने मौका देखा और कार की चाबियों का गुच्छा निकाल कर सड़क पर फेंक दिया. तब तक हरी बत्ती हो गई. पीछे वाले वाहन हौर्न बजाए जा रहे थे. इतने में अपर्णा ने कार का दरवाजा खोला और उतर गई.

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