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यूक्रेन में हर घर बना लड़ाई का मैदान

सोवियत संघ के कभी हिस्से रहे यूक्रेन ने रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन का हुक्म मानने से इंकार कर के अपने देश की जमीन को बर्बाद तो करवा दिया और बदले में जो इज्जत उन के नेता ब्लादीमीर जेलेंस्की ने कमाई है उस की कीमत बहुत ज्यादा है. अब दुनियाभर का हर छोटा देश ही नहीं. हर छोटा वर्ग, जाति, रंग का समूह इस भरोसे में रह सकता है कि यदि कोई सही हो और दिखने में कितना कम, छोटा और कमजोर लगे, अपनी पर आ जाए तो बड़ो को हिला सकता है.

हमारे देश पर यह बात पूरी तरह लागू होती है. हमारे देश पर थोड़े से मुट्ठीभर पढ़ेलिखे, जन्म से अपने को ऊंचा समझने वाले, धर्म के रखवाले पूरे देश को गुलाम बना कर सदियों से रखते आए हैं क्योंकि यहां की दबीकुचली जनता को कोई ब्लादीमीर जेलेंस्की नहीं मिला और न ही यूक्रेनी जनता सा जज्बा पनपा. नतीजा यह रहा है कि यहां हमेशा आम जनता अपने ही तानाशाहों के जुल्म सहती रहती है और आज भी सह रही है.

पुतिन जिस झूठ के सहारे यूक्रेन पर कब्जा कर के वहां मनमर्जी के शासक को बैठाना चाहता था, उसी तरह के झूठ का सहारा लिया के उपदेशों, रामायण की कथाओं, महाभारत के किस्सों और पुराणों की कहानियों से यहां के अछूतों और शूद्रों के हलक में डंडेला गया है. फुले या भीमराव अंबेडकर जैसे सैंकड़ों ने झूठ का पर्दाफाश किया पर उन की बात इस तरह हर घर में नहीं पहुंची जैसे यूके्रन में पहुंच गई.

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यूक्रेन में हर घर अब एक लड़ाई का मैदान बन गया है, हर सडक़ पर रूसी सेना को लडऩा पड़ रहा है. यूृक्रेन के घर वैसे ही जलाए जा रहे हैं जैसे गरीबों की बस्तियों को बुलडोजरों से इस देश में नष्ट किया जा रहा है पर इन टूटे मकानों से विरोध की गालियों की बौछार हो रही है.

यूक्रेन की हिम्मत देख कर पूरी दुनिया उस के साथ हो गई है. एटम बमों से लैस विशाल, दुनिया का सब से बड़ा देश रूस अब दुनिया का सब से ज्यादा नफरत का निशाना बन गया है. रूसी जनता को खुद उस पर भरोसा है यह पता नहीं क्योंकि रूसी हमले में साथ देने के लिए भर्ती होने के लिए रूस में कतारे नहीं लग रहीं. हमारे यहां ङ्क्षहदू राष्ट्र, मंदिरों, देवीदेवताओं, गायों के नाम झूठ पर झूठ बोल कर जो जुल्म आज 21वीं सदी में भी गरीबों, दलितों और पिछड़ों पर किए जा रहे हैं और उन के बुलेट नहीं तो बैलेट के हथियार को भी बेमतलब का बनाया जा रहा है, वह रूसी हमले की तरह ही है.

अगर आम जनता में बल हो जो यूक्रेन की जनता में दिख रहा है तो एक नहीं कईकई ब्लादीमीर जेलेंस्की पैदा हो जाएंगे जो दलित और पिछड़ों के नेताओं की तरह अपनी जमात को लूटने वालों के सामने नाक साडऩे की जगह सिर उठा कर खड़े होंगे. रूस एटमबमों की धमकी दे कर अपने छोटे पड़ोसी को धमका रहा है, हमारे देश में छोटा सा वर्ग धर्म के बनतें, कानून के हथियारों और पढ़ाई से आई चतुराई का फायदा उठा कर अपने कब्जे को लगातार सदियों से बनाए रख रहा है. क्या हमारे यहां ब्लादीमीर जेलेंस्की खड़े होंगे?

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तेजस्वी की मांग में दिखा सिंदूर, फैंस ने कहा- मिसेज कुंद्रा

कलर्स टीवी का सुपरहिट सीरियल ‘नागिन 6’ (Naagin 6) में प्रथा यानी तेजस्वी प्रकाश की शादी हो चुकी है. हाल ही में सेट पर तेजस्वी प्रकाश दुल्हन के अवतार में नजर आई थी. वह दुल्हन के लिबास में बेहद खूबसूरत नजर आ रही थी. तेजस्वी प्रकाश का फोटोज सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.

सेट पर तेजस्वी प्रकाश व्हाइट कलर के खूबसूरत लहंगे में नजर आईं. जिसके साथ तेजस्वी प्रकाश ने मांग में सिंदूर लगाया हुआ था. तेजस्वी प्रकाश का ये लुक  देखकर फैंस ने कयूट कमेंट किया. लोगों ने तेजस्वी प्रकाश को मिसेज कुंद्रा कह कर बुलाया.

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बताया जा रहा है कि ‘नागिन 6’ में एक नया ट्विस्ट आने वाला है. खबर है कि शो में एक नई एंट्री होने वाली है जो कि प्रथा यानी तेजस्वी प्रकाश और ऋषभ यानी सिंबा नागपाल की जिंदगी में नया मोड़ लेकर आ सकता है.यह एक्टर कोई और नहीं बल्कि ‘इस प्यार को क्या नाम दूं’ के एनके यानी अबीर सिंह गोदवानी हैं.

 

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रिपोर्ट के मुताबिक, अबीर सिंह गोदवानी ‘नागिन 6’ में अहम किरदार निभाते हुए नजर आएंगे. ‘नागिन 6’ के जरिए अबीर सिंह गोदवानी टीवी की दुनिया में वापसी करेंगे.

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अबीर सिंह गोदवानी से पहले एक्ट्रेस अर्शी श्रीवास्तव के भी ‘नागिन 6’ में एंट्री करने की खबर आई थी. इस बात पर मेकर्स की ओर से अभी तक कुछ नहीं कहा गया है. फिल्हाल शो में तेजस्वी प्रकाश और सिंबा नागपा के अलावा शो में सुधा चंद्रन, अभिषेक वर्मा, उर्वशी ढोलकिया और महक चहल अहम भूमिका निभा रही हैं.

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Lock Upp: पायल रोहातगी को नहीं पता राष्ट्रपति का नाम, हुई ट्रोल

कंगना रनौत (Kangana Ranaut) का रिएलिटी शो ‘लॉकअप’ इन दिनों चर्चे में है. शो में कंटेस्टेंट अपनी लाइफ से जुड़े राज का खुलासा कर रहे हैं. तो वहीं शो में कंटेस्टेंट को इंटरेस्टिंग गेम दिया जा रहा है. हाल ही में शो में दोनों टीम को एक ऐसा टास्क दिया गया, जिसमें कंटेस्टेंट के जनरल नॉलेज का जांच किया गया.

दरअसल इस गेम का नाम था ‘अक्ल बड़ी या भैंस’ और जेल की दो टीम, टीम ब्लू और टीम ऑरेन्ज में से कंटेस्टेंट्स को चुना गया. टास्क में कंटेस्टेंट्स के जनरल नॉलेज का पता किया गया.

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‘लॉकअप’ के इस टास्क में  ऑरेंज टीम से पायल रोहातगी और पूनम पांडे को जनरल नॉलेज का गेम खेलने के लिए चुना गया था तो वहीं सिद्धार्थ शर्मा और बबीता फोगाट को वजन उठाना था. ब्लू टीम से जनरल नॉलेज के गेम के लिए निशा रावल और सारा खान को चुना गया तो वहीं वजन उठाने के लिए शिवम और तहसीन आगे आए.

 

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शो में चार कंटेस्टेंट से भारत के वर्तमान राष्ट्रपति का नाम बताने के लिए कहा गया. लेकिन सारा खान, निशा रावल, पूनम पांडे और पायल रोहातगी में से कोई भी सदस्य सही जवाब नहीं दे पाया. दरअसल इस मामले में पायल रोहातगी ट्रोलर्स के निशाने पर आ गईं.

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बता दें कि पायल रोहातगी सोशल मीडिया पर अक्सर अपने राजनीतिक विचार शेयर करती हैं.  वह प्रधानमंत्री मोदी का भी समर्थन करती हैं लेकिन इसके बाद भी वह भारत के राष्ट्रपति का नाम नहीं बता पाईं. लोग उन्हें सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल कर रहे हैं. पायल रोहातगी से ये भी सवाल किया गया कि ट्विटर पर वर्ड लिमिट कितनी है, उन्होंने गलत जवाब दिया, 140 कहा था.

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शो में कई ऐसे कई कंटेस्टेंट हैं,जिन्हें देश के राष्ट्रपति तक का नाम नहीं मालूम था. इस लिस्ट में पायल रोहातगी सारा खान, पूनम पांडे और निशा रावल का नाम शामिल है.

बिन चेहरे की औरतें: भाग 3

Writer- श्वेता अग्रवाल

‘‘मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था. सिर्फ 3 दिन की ही तो बात थी, फिर मैं भी उसे देखूंगा कि वह कैसी दिखती होगी, कैसी ड्रैसिंग होगी, काली होगी या गोरी, लंबी होगी या नाटी, सीधीसादी होगी या मौडर्न, सुंदर होगी या… इन्हीं कल्पनाओं में 3 दिन कैसे बीत गए, पता ही न चला और वेडनेसडे आ पहुंचा.

‘‘मैं अच्छे से तैयार हो कर उस का इंतजार करने लगा. जब भी डोरबैल बजती, लगता कि कहीं वही तो नहीं. लेकिन उस की जगह किसी और को देख कर मैं खिसिया कर रह जाता. मेरे छोटे भाई रजनीश को मेरी यह हालत देख कर बड़ा मजा आ रहा था और वह बारबार इंतजार से जुड़ा कोई न कोई फिल्मी गाना गा कर मु?ो चिढ़ाने लगा.

‘‘जैसेजैसे दिन बीतता जा रहा था, मेरी खिसियाहट बढ़ती जा रही थी. मैं ने इस से पहले कभी खुद को इतना अपमानित महसूस नहीं किया था. रजनीश को भी शायद मेरी हालत का अंदाजा हो गया था और उस ने मु?ो चिढ़ाना बंद कर दिया था. उस के इंतजार में बैठेबैठे शाम हो गई थी. मेरा मन रोने को होने लगा था. मैं ने कसम खा ली कि अब उस से कभी बात नहीं करूंगा. फिर भी मन के किसी कोने में बारबार यह इच्छा होती कि वह मु?ो फोन करे और न आने की कोई जायज वजह बताते हुए इस के लिए मु?ा से माफी मांगे, पर उस का फोन नहीं आया. एकबारगी तो मेरा यह भी मन किया कि उस के औफिस के नंबर पर फोन कर के उसे खूब खरीखोटी सुनाऊं. फिर लगता कि जब गलती उस की है तो मैं क्यों खुद से उसे फोन करूं.

‘‘इसी कशमकश में एक दिन, दो दिन, पूरा हफ्ता और देखते ही देखते एक महीना बीत गया. मेरे भीतर भरा गुस्सा शांत होने लगा था. अब मु?ो डर लगने लगा था कि कहीं ईगो और नाराजगी के चक्कर में मैं उसे हमेशा के लिए न खो दूं.

‘‘आखिरकार, जब मु?ा से नहीं रहा गया तो मैं ने उस के औफिस में फोन लगा ही दिया और रिसैप्शनिस्ट से उस के बताए एक्सटैंशन नंबर से कनैक्ट करने के लिए कहा.

‘‘‘हैलो,’ उधर से एक पुरुष स्वर सुनाई दिया, जो शायद जयंती के बौस का था.

‘‘‘जी, कैन आई स्पीक टू जयंती जोशी?’ मैं ने संभल कर कहा.

‘‘उधर एक पल के लिए जैसे सन्नाटा छा गया.

‘‘‘हैलो,’ मैं ने फिर कहा.

‘‘‘हैलो, आर यू मि. सुकुमार?’ उस ने विनम्रता से पूछा.

‘‘‘जी,’ मैं ने हैरानी से पूछा, ‘जयंती कहां है?’

‘‘इस के बाद उस ने जो बताया, वह हिला देने वाला था. यह जान कर मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया कि अब वह इस दुनिया में नहीं रही. सैटरडे को जब मेरी उस से आखिरी बार बात हुई थी, उस के तीसरे ही दिन आठ रास्ता चौक के पास उस की स्कूटी एक स्कूलबस की चपेट में आ गई थी. बेहोशी की हालत में उसे अस्पताल पहुंचाया गया, जहां वह 10 दिनों तक मौत से जू?ाती रही और बेहोशी की हालत में ही चल बसी थी.

‘‘अपने इस पहले प्यार की ठंडी राख के अलावा आज मेरे जीवन में कुछ नहीं बचा है. इसे ही अपने दामन में समेट कर मैं जिए जा रहा हूं.’’ सुकुमार बनर्जी की आवाज भर्राने लगी थी. वे आगे बोले, ‘‘मैं आज तक खुद को इस बात के लिए माफ नहीं कर पाया हूं कि मैं ने बेकार के ईगो के चक्कर में उसे फोन नहीं किया. अगर मैं ने उस के औफिस में पहले ही फोन कर लिया होता तो उस के आखिरी पलों में उस के साथ हो सकता था.’’ यह कह कर वे फफक उठे. उन्हें शांत कराने के बजाय मु?ो यही बेहतर लगा कि उन्हें रोने दिया जाए. आखिर वे बेचारे कब तक इस गुबार को अपने हृदय में ढोते रह सकते थे.

‘‘मु?ो अफसोस है मेरी वजह से आप को तकलीफ हुई. 5 मिनट में उन के नौर्मल होने के बाद मैं ने खेद प्रकट करते हुए कहा.

‘‘जी, इस में आप की कोई गलती नहीं है,’’ वे बोले और अचानक उन के फोन की रिंग बजी. वे मु?ा से बोले, ‘‘माफ कीजिए, अब मु?ो चलना होगा, मेरा ड्राइवर आ गया है.’’

मेरे सवाल भी लगभग खत्म हो गए थे. जिस सवाल को पूछने की हिम्मत मैं नहीं कर पाई थी, उस का जवाब मु?ो बिना पूछे मिल गया था. मैं जान चुकी थी कि अपनी पेंटिंग्स में वे स्त्रियों को बिना चेहरे के क्यों दिखाते हैं.

मैं ने खड़े हो कर उन्हें विदा किया और उन के जाते ही सब से पहला काम रजत को फोन करने का किया, जिस से मैं पिछले एक हफ्ते से नाराज चल रही थी और गुस्से में बात नहीं कर रही थी.

‘‘हैलो,’’ उस की आवाज सुनते ही मेरे भीतर जैसे कुछ बहने लगा.

‘‘कुछ नहीं, मु?ो तुम से मिलना है,’’ मैं बमुश्किल इतना ही कह सकी.

‘‘क्या हुआ मनु, कुछ तो बोलो?’’ वह परेशान स्वर में बोला.

‘‘कुछ नहीं. बस, तुम अभी आ जाओ. मैं होटल सिद्धार्थ की लौबी में हूं और तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं 10 मिनट में पहुंचता हूं,’’ उस ने कहा और फोन डिस्कनैक्ट

कर दिया.

Women’s Day Special: जुल्म महिलाओं पर, दोषी भी महिलाएं

‘‘मम्मी पापा मुझे माफ कर देना. मैं ने कोई गलती नहीं की है. इधर जाओ तो लड़के, उधर जाओ तो लड़के, मेरी जिंदगी खराब कर रहे थे. मुझे अब नहीं जीना है. मेरी वजह से आप को यह कमरा खाली करना था न. पर अब मैं नहीं रहूंगी तो खाली करना नहीं पड़ेगा. फिर दोबारा कह रही हूं, मैं ने कोई गलती नहीं की है.’’

सुसाइड नोट के ये शब्द बख्तावरपुर गांव की 12वीं की एक छात्रा के हैं. वह पढ़लिख कर आईपीएस बनना चाहती थी. वह देश की सेवा करना चाहती थी. मगर, पड़ोस के एक लड़के की ज्यादतियों से आजिज आ कर उस ने गत 24 मार्च को अपनी जीवनलीला ही समाप्त कर ली. छोटी सी इस लड़की की आंखों में बड़ेबड़े सपने थे और उन्हें पूरा करने के लिए वह जीतोड़ मेहनत भी कर रही थी. मगर पड़ोसी लड़के मयंक की छेड़छाड़ और मनमानी की वजह से वह खामोश रहने लगी थी. मयंक उस का पीछा करता और शादी करने के लिए मजबूर करता.

लड़की का परिवार जिस घर में रहता था वह मयंक के रिश्तेदार का था. इसलिए मयंक के कहने पर मकान मालिक ने घर खाली करने का अल्टीमेटम दिया था. इस वजह से लड़की ने परेशान हो कर यह कदम उठाया ताकि उस का परिवार शांति से रह सके. मरते वक्त वह घर वालों को यही समझाना चाहती थी कि गलती उस की नहीं. काश, इस लड़की के परिजनों ने पहले ही पुलिस में मयंक के खिलाफ शिकायत कर दी होती. उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि उन्हें डर था कि समाज उन की बेटी को ही गलत कहेगा.

हमारे यहां अकसर लड़की और उस के परिजन लड़कों की ज्यादतियां सिर्फ इस वजह से चुपचाप सहते रहते हैं क्योंकि ऐसे मामलों में लोग लड़कियों को ही कुसूरवार समझते हैं. लड़की की इज्जत का जनाजा निकाला जाता है, पर लड़के सब कर गुजरने के बाद भी सीना चौड़ा किए घूमते रहते हैं. मेरठ की 8वीं कक्षा में पढ़ने वाली एक छात्रा ने गत 12 अक्तूबर को फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. 3 माह पहले अपहरण के बाद उस का गैंगरैप हुआ था. पुलिस ने आरोपियों को क्लीन चिट दे कर केस बंद कर दिया था.

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एक शाम वह दीवाली का सामान खरीदने बाजार गई थी. उसी समय 3 आरोपियों ने उसे सरे बाजार रोक कर छेड़छाड़ की. उन्होंने धमकी दी कि पहले 5 दिनों के लिए उठाया था, इस बार लंबे वक्त के लिए ले जाएंगे. डरीसहमी छात्रा घर पहुंची और फांसी के फंदे पर झूल गई. ऐसी ही एक घटना है राजधानी दिल्ली की. 8 अक्तूबर के दिन लक्ष्मीनगर के एक मौल के पास एक युवक बीच सड़क पर एक लड़की को गालियां दे कर पीट रहा था. रोतीबिलखती लड़की उस से दूरी बनाने की कोशिश कर रही थी, मगर बौखलाया हुआ वह शख्स लगातार उस लड़की के साथ मारपीट कर रहा था. रास्ते चलते लोगों ने आगे बढ़ कर बीचबचाव करना चाहा तो युवक चिल्लाया कि उस के सिर पर खून सवार है, कोई करीब न आए. आखिरकार कुछ लोगों के हिम्मत दिखाई और युवक को पीट डाला. तब तक पुलिस भी बुला ली गई.

जरा सोचिए, यदि हर बार की तरह इस घटना के वक्त भी लोग मूकदर्शक बने रहते तो शायद इस लड़की का भी वही हश्र होता जो इस से पहले बहुत सारी लड़कियों का हुआ. लड़की की सरेराह निर्दयता से हत्या हो जाती या उस पर तेजाब फेंक दिया जाता. अब इस घटनाक्रम के मूल में चलते हैं. वजह बहुत सामान्य थी. उस युवक के साथ लड़की की शादी होने वाली थी. युवक के शराब पीने, गालीगलौज और मारपीट करने की आदतों से परेशान हो कर युवती ने उस के साथ रिश्ता तोड़ दिया था. युवती किसी और युवक से शादी करने वाली थी. बस, यही बात इस पूर्व प्रेमी को हजम नहीं हुई और वह लड़की का पीछा करने व धमकाने का काम करने लगा. साथ बिताए पलों का वीडियो दिखा कर उसे ब्लैकमेल करने का प्रयास करने लगा. इसी क्रम में उस ने इस बार युवती को मौल बुला कर मारपीट की थी.

अंतर मानसिकता का

महिलाओं के साथ आपराधिक वारदातें सिर्फ भारत में ही होती हैं, ऐसा नहीं है. बलात्कार और दूसरे तरह के जुल्मों की घटनाएं तकरीबन हर देश में देखने को मिलती हैं. हां, भारत और उन देशों में एक बहुत बड़ा फर्क है, और वह है मानसिकता का फर्क. यहां जुल्म भले ही औरतों के साथ होता है पर अपराधी भी औरतों को ही घोषित कर दिया जाता है. बलात्कारी या जुल्म करने वाले पुरुष को नहीं वरन पीडि़ता को ही कठघरे में खड़ा किया जाता है. पीडि़ता से ही सवाल पूछे जाते हैं, उसे ही शर्मिंदा और जलील किया जाता है.

यही वजह है कि ज्यादातर महिलाएं चुपचाप जुल्म सहती रहती हैं बजाय समाज, पुलिस, वकील और परिचितों के सवालों, तानों और व्यंग्यभरी नजरों का सामना करने के. परिवार वाले भी अपनी बेटियों को ही सबकुछ चुपचाप सह लेने, दबढक कर रहने और ऊंचे ख्वाब न देखने को कहते हैं. उन्हें हर पल यही भय सताता है कि कहीं उन की बच्ची के साथ कोई हादसा न हो जाए.

ऐसोचैम सोशल डैवलपमैंट फाउंडेशन द्वारा दिल्ली एनसीआर की 2,500 महिलाओं से बात कर के तैयार की गईर् एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाएं रात को बाहर निकलते समय घबराने लगती हैं. कुछ बातें जो हर महिला या लड़की को सहनी पड़ती हैं : भीड़ में अवांछित स्पर्श : टे्रन, मैट्रो व बस वगैरह में सफर करते या बाजार में चलते वक्त महिलाएं सब से ज्यादा परेशान होती हैं गंदे लोगों के अवांछित स्पर्श से. दूषित मानसिकता के शिकार, ओछी प्रवृत्ति के लोग किसी भी तरह स्त्री संसर्ग चाहते हैं. और कुछ नहीं तो भीड़ में मौका मिलते ही ये स्त्री के हाथ, सीने या कंधों को स्पर्श करते हुए निकल जाने से बाज नहीं आते.

औरतें कभी शर्म से तो कभी जल्दी में होने की वजह से ऐसी हरकतों को नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाती हैं. यहां पर यदि हम यह कहें कि औरतें भीड़ में जाती ही क्यों हैं या फिर बच कर क्यों नहीं निकलतीं तो यह बात बिलकुल बेमानी होगी. स्त्रियों को कोई शौक नहीं होता कि अनजान लोगों को छूती फिरें. वे बच कर निकल रही होती हैं, मगर कुछ लोग जबरन आ कर ऐसी हरकतें कर जाते हैं. जहां तक भीड़ में निकलने की बात है तो आजकल दिल्ली हो या कोई दूसरा शहर, हर तरफ भीड़ बढ़ रही है. जरूरी काम हो या स्कूलकालेज व औफिस जाना हो, तो महिलाएं निकलेंगी ही. नजर हर पल : यदि कोई लड़की अकेली रह रही है, तो उस का मकानमालिक बेवजह ही उस के आनेजाने पर खास नजर रखने लगता है. वह कहां जा रही है, किस से मिल रही है, उस के घर कौन आ रहा है, कितनी देर ठहरा है जैसी बातों के प्रति उस की रुचि कुछ ज्यादा बढ़ जाती है. खासतौर पर यदि कोई पुरुष उस के घर आए, तो आसपड़ोस समेत मकानमालिक की नजर भी ज्यादा ही सचेत हो उठती है. लड़की की जिंदगी में हमेशा ताकझांक करना और फिर उस की गलतियों को हाईलाइट करना उन का सब से अच्छा टाइमपास बन जाता है.

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अकेले घूमना एक सपना

कोई जवान लड़की ट्रिप पर अकेली निकलना चाहे तो लोगों की भौंहें तन जाती हैं. यह हर लड़की का सपना होता है कि वह कभी अकेली सफर करने का आनंद ले. मगर, लोगों की मानसिकता कि, अकेली लड़की खुली तिजोरी के समान होती है, लड़कियों के कदम बांध देती है. यदि वह कभी अकेली निकल भी जाए तो रेप, छेड़छाड़ या अपहरण जैसी घटनाओं का शिकार होने का डर उसे सफर का भरपूर आंनद लेने से रोकता है. वह जानती है कि वह कितनी भी मजबूत बने, पर उस की सुरक्षा संदिग्ध ही रहेगी. घूरती निगाहों का सामना : भारतीय महिलाओं की जिंदगी की एक बड़ी त्रासदी है लोगों की कामुक और घूरती नजरों का सामना करना. अमूमन हर लड़की को इस तरह की परिस्थितियों से जूझना ही पड़ता है. वह लाख नजरें बचाए मगर उन्हें अनदेखा नहीं कर पाती.

ऐसा नहीं है कि इस की वजह लड़कियों का पहनावा या हरकते हैं. यदि लड़की साधारण, डीसैंट कपड़े पहने, चेहरे और बालों को दुपट्टे से ढके हुए औटो, रिक्शे, बाइक पर बैठे तो भी घूरने वाला उस के चेहरे को, उस की आंखों को घूरने लगता है. अब भला इस में लड़की की क्या गलती? बातों में गालियों के तीर : भारत में जो एक सब से बड़ी विसंगति देखने को मिलती है वह यह है कि ज्यादातर लोग बातचीत में मांबहन की गालियों का इस्तेमाल जुमले की तरह करते हैं. भारत की राजधानी दिल्ली में ही देखिए जहां औरतें और लड़कियां रिकशेवाले, सब्जीवाले, दूध वाले से ले कर हर किसी को भैया कह कर संबोधित करती हैं वहीं बहुत से पुरुष अपनी सामान्य बातचीत में हर लाइन के साथ मांबहनों की गालियां जोड़ने से नहीं हिचकते.

क्या इस तरह हर वक्त गलत शब्दों का इस्तेमाल उन की मानसिकता को और भी विकृत नहीं करता. महिलाओं और लड़कियों के प्रति शुरू से ही बच्चों के मन में ओछापन विकसित नहीं करता? फिर दोष लड़कियों पर क्यों मढ़ा जाता है? लेट नाइट डैंजर्स : लड़कियां जौब के सिलसिले में देररात तक औफिस में रुकती हैं, तो उन के लिए घर लौटना एक जोखिमभरा हो जाता है. वे निजी वाहन से निकलें, कैब बुक करें या पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग, जोखिम हर स्थिति में रहता है.

धर्म की भेंट चढ़ती महिलाएं

महिला और शोषण का गहरा रिश्ता रहा है. मानव सभ्यता का विकास होने, धर्म का वर्चस्व बढ़ने और मातृसत्तात्मक समाज के पुरुष सत्तात्मक होने के साथसाथ महिलाओं पर जुल्म की कहानियां भी बढ़ती गई हैं. कभी स्त्री पवित्रता के नाम पर तो कभी सतीप्रथा, दहेजप्रथा, परदाप्रथा जैसी परंपराओं की बिसात पर, कभी धार्मिक अनुष्ठानों और व्रतत्योहारों की भेंट चढ़ा कर तो कभी महिला स्वतंत्रता और सम्मान की धज्जियां उड़ा कर पुरुषवादी समाज अपनी खोखली दलीलें पेश करता रहा और महिलाओं का शोषण होता रहा. दोहरेपन की शिकार महिलाएं : आज भले ही औरतों ने वैश्विक स्तर पर अपनी बुलंदियों के झंडे गाड़े हैं मगर पक्षपात हमेशा की तरह बदस्तूर जारी है. घर हो या औफिस, उन के साथ हर जगह दोहरा व्यवहार किया जाता है. समान काम के लिए कम पारिश्रमिक दिया जाता है. एक ग्लोबल रिपोर्ट के अनुसार, 10 में से 4 महिलाओं ने जैंडर पे गैप की बात स्वीकारी. लगभग एकतिहाई महिलाओं ने स्वीकार किया कि उन के साथ कभी न कभी किसी न किसी रूप में शोषण हुआ है.

ट्रौलिंग

सोशल मीडिया के इस जमाने में पुरुष की जिंदगी के सभी खास लमहें तसवीरों में कैद हो कर व्हाट्सऐप, ट्विटर, फेसबुक वगैरह के जरिए सहज उपलब्ध होते हैं, जबकि लड़कियों को ट्रौलिंग की मार सहनी पड़ती है. हाल ही में जानीमानी अदाकारा नीना गुप्ता की बेटी और मशहूर फैशन डिजाइनर मसाबा ट्रौलिंग का शिकार हुईं तो वहीं आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ में रैसलर गीता फोगाट का किरदार निभाने वाली ऐक्ट्रैस फातिमा सना शेख भी सोशल मीडिया में ट्रौलर्स के निशाने पर रहीं. फातिमा ने इंस्टाग्राम पर अपनी सैल्फी पोस्ट की थी. साइड पोज से ली गई इस सैल्फी में उन्होंने कुछ इस तरह से साड़ी पहन रखी थी जिस में कमर और गरदन का कुछ हिस्सा खुला नजर आ रहा था. इसी वजह से कुछ लोगों ने भद्दे कमैंट्स करने शुरू कर दिए. ईशा गुप्ता, प्रियंका चोपड़ा और कल्कि कोचलिन जैसी ऐक्ट्रैसेज भी सोशल मीडिया पर मोरल पुलिसिंग का शिकार हो चुकी हैं.

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बड़े लोगों की सीख

बौलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन ने अपनी पोती आराध्या और नातिन नव्या के लिए एक खास पत्र लिखा था. देश में महिलाओं की खराब स्थिति और उन के प्रति बढ़ रही टीकाटिप्पणियों व अपराधों का जिक्र करते हुए बिग बी ने बतौर लड़कीस्त्री नव्या और आराध्या के लिए सही मार्ग क्या होना चाहिए, यह बताया. उन का लिखा यह खत आम महिलाओं व लड़कियों के लिए भी उतना ही मार्गदर्शक है जितना उन दोनों के लिए.

नव्या और आराध्या को संबोधित करते हुए बिग बी लिखते हैं, ‘‘आप को स्वेच्छा से अपने फैसले लेने चाहिए. कभी भी यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि लोग क्या कहेंगे. लोग आप पर अपनी सोच थोपने और दबाव बनाने के प्रयास करेंगे. वे कहेंगे कि तुम्हें कैसे कपड़े पहनने चाहिए, कैसा व्यवहार करना चाहिए, किस से मिलना चाहिए और कहां जाना चाहिए पर तुम्हें लोगों के फैसलों से दबने की जरूरत नहीं. तुम्हें स्वविवेक से अपने फैसले लेने का हक है.’’ ऐसे ही कुछ विचार कनाडा के युवा प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने एक लेख के जरिए व्यक्त किए. इस लेख में उन्होंने कुछ ऐसे तथ्य लिखे जो आज के दौर की महिलाओं के लिए सटीक और अनुकरणीय हैं. उन्होंने लिखा, ‘‘यह बहुत हैरान करने वाली बात है कि अब भी समाज में गैरबराबरी और लिंग के आधार पर भेदभाव मौजूद है. यह मेरे लिए पागल करने जैसा है कि बेहद होशियार और दूसरों के लिए हमदर्दी रखने वाली मेरी बेटी एक ऐसी दुनिया में बड़ी होगी जहां हर खूबी होने के बावजूद कुछ लोग उस की बातों को गंभीरता से नहीं लेंगे और उसे केवल इसलिए नकार देंगे क्योंकि वह एक लड़की है.

‘‘सब से अच्छी चीज जो हम एला (हमारी बेटी) के लिए कर सकते हैं वह है उसे यह सिखाना कि वह जो है, जैसी है, वैसी ही बेस्ट है. उस के पास कुछ खास करने की क्षमता है जिसे कोई उस से छीन नहीं सकता. बेटे की परवरिश को ले कर मेरा खास नजरिया है. मैं चाहूंगा कि मेरे बेटे उस खास तरह की मर्दानगी दिखाने के दबाव में न आएं जो हमारे आसपास के पुरुषों और दूसरे लोगों के लिए बहुत घातक रहा है. मैं चाहता हूं कि वे जैसे हैं, खुद को ले कर सहज हों और बतौर नारीवादी बड़े हों. ‘‘यह बहुत जरूरी है कि हम अपने बच्चों को नारीवाद के सही माने बता सकें. मुझे उम्मीद है कि लोग सिर्फ अपनी बेटियों को ही नहीं सिखाएंगे, बल्कि बेटों को भी समझाएंगे कि आज के दौर में दोनों जैंडरों के बीच बराबरी क्यों जरूरी है.’’

इस संदर्भ में लेखिका, काउंसलर और सोशल वर्कर रश्मि आनंद कहती हैं, ‘‘महिलाओं पर जुल्म युगों से हो रहा है. सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जहां समानता नहीं, वहां इस तरह की परिस्थितियां आती ही हैं. कोईर् भी रिश्ता या रिश्तों की पवित्रता तभी कायम रह सकती है जब हम एकदूसरे का सम्मान करें. एकदूसरे के वजूद को महत्त्व दें. रिश्ते विश्वास पर टिके होते हैं. हमारे पुरुषप्रधान समाज में महिलाओं को दोयम दर्जा दिया जाता है. परिणामस्वरूप इस तरह की घटनाएं होती हैं. पुरुष कहीं भी अपनी हेकड़ी पर चोट लगने से भड़क उठते हैं. ‘‘जो गलतियां हम ने दोहराईं, बेहतर होगा कि हम अपने बच्चों को इन से बचाएं. उन्हें औरतों को सम्मान करना और रिश्तों को महत्त्व देना सिखाएं. आज के समय में सहीगलत का विभेद बहुत धुंधला हो गया है. लोग जब गलत कर के बच निकलते हैं तो उन के हौसले बढ़ने लगते हैं. जरूरी है कि शुरुआत में ही उन के कदम रोके जाएं. औरतों को दोषी ठहराने के बजाय पुरुषों को उन की सीमा बताएं. उन की जबान पर, नजरों पर और हाथों पर लगाम कसी जाए.’’

यलो कौइन कम्युनिकेशन की डाइरैक्टर और फाउंडर गीता सिंह कहती हैं, ‘‘जब भी कोई महिला उत्पीड़न या बलात्कार की शिकार होती है तो उसे समर्थन और सहानुभूति देने के बजाय समाज उस के फैसलों और कार्यों को अपराध की मूल वजह बताने लगता है, उस के बेढंगे वस्त्र, मुखर व्यवहार, महत्त्वकांक्षाओं आदि को दोष दिया जाता है. यह उचित नहीं है. हम महिलापुरुष समानता की बात तो करते हैं पर आज भी 95 फीसदी महिलाएं इस समानता के अधिकार से वंचित हैं. यह हम हर क्षेत्र में देख सकते हैं. आज महिलाएं जब भी अपनी आवाज उठाती हैं तो कहा जाता है कि ये बड़बोली हैं, हठी हैं. ‘‘महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए समाज को भी कुछ कदम उठाने चाहिए. सब से पहले हमें शिक्षा व्यवस्था में बदलाव लाना चाहिए. यह व्यवस्था घर से ही शुरू होनी चाहिए. ऐसी व्यवस्था जिस में हम बच्चों को खासतौर पर लड़कों को समानता के बारे में बताएं. उन्हें समझाएं कि समानता क्या होती है. उन्हें बताएं कि हमें महिलाओं का सम्मान करना चाहिए. यह निश्चितरूप से एक बेहतर समाज बनने की ओर बेहतर कदम होगा.’’

वास्तव में कानून बदलने या कुछ सफल औरतों का उदाहरण देने से कुछ नहीं होगा. जब तक समाज नहीं बदलेगा, लोगों की सोच नहीं बदलेगी, औरतों पर जुल्म होता रहेगा और दोष भी औरतों को ही दिया जाता रहेगा.

मुआवजा: कमला का पति क्यों लापता हो गया था

सारी उम्मीदें टूटने लगी थीं. सैलाब की त्रासदी को हुए 1 महीने से भी ज्यादा का समय बीत चुका था. परिवार के लोगों ने सब जगह भटक कर देख लिया था, मगर चारधाम की यात्रा पर गए जानकीदास का कुछ भी अतापता नहीं था.

जानकीदास का नाम न तो जिंदा बचने वालों की सूची में था, न ही मरने वालों की सूची में.

जानकीदास मलबे के किसी ढेर के नीचे दबे थे, सैलाब के भयानक और तेज बहाव के साथ बह कर किसी खड्ड या नदी में चले गए थे, इस के बारे में कोई भी ठीक से कुछ नहीं कह सकता था. उन को अनगिनत लापता लोगों में शामिल माना जा सकता था.

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वास्तव में चारधाम की तीर्थयात्रा करने की जानकीदास की इच्छा बहुत पुरानी थी, मगर आर्थिक तंगी के कारण वे अपनी इस इच्छा को पूरा नहीं कर सके थे.

जब घर का खर्च ही बड़ी मुश्किल से चलता था तो किसी तीर्थयात्रा के लिए पैसे कहां से आते? लेकिन इस बार तो जैसे मौत ने खुद ही जानकीदास के लिए चारधाम की यात्रा का इंतजाम कर दिया था.

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जानकीदास काल के गाल में जाने के लिए ही चारधाम की यात्रा पर गए थे.

वास्तव में शहर की एक धार्मिक संस्था ने किसी रईस दानी के सहयोग से मुफ्त चारधाम की यात्रा का प्रबंध किया था. खानापीना, रहना, सबकुछ धार्मिक संस्था की तरफ से ही मुफ्त में था. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो चारधाम की यात्रा के लिए आनेजाने में किसी का एक भी पैसा खर्च नहीं होना था. चारधाम को आनेजाने के लिए धार्मिक संस्था की तरफ से 2 विशेष बसों का इंतजाम किया गया था.

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कई दूसरे लोगों की तरह जानकीदास भी चारधाम की मुफ्त यात्रा के प्रलोभन में आ गए थे. उन को लगा था कि उन्हें इस अवसर को किसी तरह से भी हाथ से जाने नहीं देना चाहिए.

धर्मपत्नी कमला से सलाहमशविरा किए बगैर ही जल्दीजल्दी में जानकीदास ने मुफ्त यात्रा करवाने का बीड़ा उठाने वाली धार्मिक संस्था में अपना नाम पंजीकृत करवा दिया.

जब जानकीदास ने कमला को इस बारे में बताया तो वह उन्हें यात्रा पर जाने से मना नहीं कर सकी. वह मना तब करती अगर सवाल खर्चे का होता. चारधाम की यात्रा एकदम मुफ्त में ही थी इसलिए वह क्या एतराज कर सकती थी.

2 बसों में मुफ्त की चारधाम की यात्रा पर गए सभी लोग, कहा जाता है, उस रात केदारनाथ में ही थे जब तबाही का सैलाब पहाड़ों से उतरते हुए अपने साथ सबकुछ बहा ले गया था.

बहुत ही कम लोग थे जो सैलाब से जिंदा बच कर वापस आ सके थे.

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अधिकांश लोग अचानक आए सैलाब में या तो बह गए थे या फिर धराशायी हुई इमारतों के मलबे में दब गए थे.

जितने लोगों को जिंदा या मुरदा खोजा जा सकता था, खोज लिया गया था. सरकार अब कह रही थी कि जो लोग जिंदा या मुरदा नहीं मिल सके थे उन को लापता लोगों की सूची में शामिल कर लिया जाएगा.

लापता लोगों की संख्या हजारों में थी, मगर सही आंकड़ा किसी के भी पास नहीं था.

जानकीदास का भी कोई अतापता नहीं था इसलिए उन का नाम भी लापता लोगों में शुमार था. लापता होने का अर्थ था न ही जिंदा और न ही मुरदा. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो किसी शख्स के लिए सारी उम्र का दर्द और टीस.

रोरो कर कमला की आंखों के आंसू भी जैसे सूख गए थे. पति के जिंदा होने की उम्मीद खत्म होने पर अब उसे दूसरी चिंताएं सताने लगी थीं. सब से बड़ी और तात्कालिक चिंता थी परिवार के भरणपोषण की.

घर में पहले ही से आर्थिक तंगी थी. तंगी की वजह से ही बड़े लड़के सुधीर को कालेज की पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी थी और वह इन दिनों किसी नौकरी की तलाश में मारामारा फिर रहा था. छोटा लड़का दीपक घिसटघिसट कर अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर रहा था. उसे स्कूल की फीस या किताब के लिए कई बार मिन्नतें करनी पड़ती थीं. कमला की सब से बड़ी और जानलेवा चिंता जवान हो रही बेटी सुमन को ले कर थी.

तंगहाली के कारण कमला पहले ही जवान हो रही बेटी को ले कर चिंता में घुलती रही थी. हमेशा सोचती थी कि बेटी के शादीब्याह के लिए आखिर पैसे कहां से आएंगे?

अब तो कमला की चिंता ने और भी विकराल रूप ले लिया था. कमाने वाला ही नहीं रहा था.

शादीब्याह तो दूर की बात थी, अब तो दो वक्त की रोटी की ही समस्या सामने खड़ी थी. जानकीदास को प्राइवेट दुकान पर काम करने के एवज में सिर्फ 6 हजार रुपए मिलते थे.

घोर अंधकार में अचानक कमला के कानों में राहत देने वाली एक खबर पड़ी. उस ने टीवी पर सुना कि सरकार मृत लोगों के साथसाथ लापता लोगों के परिवार वालों को 3 लाख रुपए का मुआवजा देने जा रही है.

सरकार की मुआवजा देने वाली उक्त घोषणा के बाद कमला ने मुआवजे की रकम को हासिल करने के लिए भागदौड़ शुरू कर दी. इस के लिए कमला ने शहर की उसी धार्मिक संस्था की मदद ली जिस ने चारधाम की मुफ्त यात्रा के लिए 2 बसें भेजी थीं. धार्मिक संस्था ने कमला की पूरी मदद की और मुआवजा पाने के लिए सारी दस्तावेजी औपचारिकताओं को उस से पूरा करवा कर आगे भेजा. दस्तावेजी औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए कमला को कई जगह धक्के भी खाने पड़े.

इस के बाद मुआवजे की रकम के इंतजार में कमला को बारबार धार्मिक संस्था के कार्यालय में चक्कर लगाने पड़े.

आखिर एक दिन कमला को बताया गया कि मृत और लापता लोगों के परिजनों को मुआवजे की रकम के चैक मिलने शुरू हो गए हैं और उस को भी उस के मुआवजे का चैक जल्दी ही मिल जाएगा. धार्मिक संस्था के सचिव ने सिर्फ 5 हजार रुपए मांगे थे सारी मेहनत के बदले, जो कमला ने कह दिया कि वह दे देगी. चैक जल्दी मिलने की उम्मीद में कमला अपनी कल्पनाओं में भविष्य की कई योजनाएं बनाने लगी.

मुआवजे की रकम 3 लाख रुपए की थी. इतनी बड़ी रकम के अपने पास होने का कभी सपना भी कमला ने नहीं देखा था. इतनी बड़ी रकम कई समस्याओं का हल कर सकती थी. कमला इस रकम से नौकरी के लिए भटक रहे अपने बड़े लड़के को कोई छोटामोटा धंधा करवा सकती थी. जवान हो रही बेटी के शादीब्याह के लिए कुछ रकम को संभाल कर रख सकती थी. रकम के हाथ में आने से फाकों वाले हालात का खतरा भी टल सकता था.

3 लाख रुपए की रकम के हाथ में आने के खयाल से कमला के अंदर की 2 ख्वाहिशें भी जाग उठी थीं जो पति के रहते हुए भी कभी पूरी नहीं हो सकी थीं. इन सब के बाद भी जब रात के सन्नाटे में कमला को अपने पति की याद आती तो वह बेचैन हो उठती और सो नहीं पाती. ऐसे ही में एक रात कमला अपने लापता हुए पति के बारे में सोचते हुए बिस्तर पर करवटें बदल रही थी तो घर के दरवाजे पर किसी ने काफी आहिस्ता से दस्तक दी.

पहले तो वह समझी कि वह दस्तक उस का वहम है मगर वह वहम नहीं था.

करवटें बदल रही कमला उठ कर बैठ गई. घड़ी पर नजर डाली. रात के 2 बज रहे थे. बराबर वाले दूसरे कमरे में बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे.

इतनी रात गए कौन हो सकता था?

कमला ने खुद से सवाल किया. उस का दिल धकधक करने लगा. कई खयाल कमला के दिमाग में कौंधे और उस के सारे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई.

कमला ने पहले सोचा कि वह गहरी नींद में सोए अपने तीनों बच्चों में से बड़े बेटे सुधीर को जगा दे और उस को साथ ले कर घर का दरवाजा खोले.

फिर कोई विचार कर के कमला रुक गई और उठ कर ड्योढ़ी पार कर के घर के दरवाजे के पास आ गई.

‘‘कौन है?’’ दरवाजे से कान सटा कर थोड़ा लरजती धीमी आवाज में कमला ने कहा.

दरवाजे के दूसरी तरफ से काफी धीमी, अस्पष्ट और फुसफुसाहट जैसी आवाज सुनाई दी.

एकाएक जैसे कमला का सारा शरीर बर्फ की तरह ठंडा हो गया.

धीमी और अस्पष्ट होने के बाद भी कमला उस आवाज को पहचान सकती थी.

थमती सांस के साथ कमला ने कांपते हाथों से दरवाजा खोल दिया.

दरवाजा खोलते ही सामने जानकीदास खड़े नजर आए. बदहाल, बेहाल. उन की शक्ल उन मुसीबतों की कहानी खुद बयान कर रही थी जिस में से गुजर कर वे पार तक पहुंचे थे. बढ़ी हुई दाढ़ी, लाल आंखें और चेहरे पर जबरदस्त थकान.

‘‘आप, आप जिंदा हैं?’’ कमला के मुख से बरबस ही निकला.

‘‘हां, दीपक की मां. मैं जिंदा हूं. बच्चों को मत जगाना, मैं तुम को अपने बचने की सारी कहानी बतलाता हूं,’’ अंदर दाखिल होते हुए जानकीदास ने कहा.

उन के अंदर आने पर कमला ने धीरे से दरवाजा दोबारा बंद कर के सांकल लगा दी.

कमरे में आ कर जानकीदास धीमे स्वर में सैलाब से अपने बचने की सारी कहानी पत्नी को सुनाने लगे.

जानकीदास ने पत्नी को बताया कि कैसे पानी आने की चेतावनी सुनते ही वे धर्मशाला में से निकल जल्दी से भाग कर एक ऊंचे पहाड़ पर चढ़ गए थे. उन के पहाड़ पर चढ़ते ही तेज सैलाब सारे केदारनाथ को लील गया था. रात के अंधकार में उन को केवल बहते हुए पानी की गड़गड़ाहट और लोगों की चीखपुकार के सिवा कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था. डर कर जानकीदास अंधेरे में ही आगे बढ़ते गए और भटक गए थे. भटकते हुए वे कहां से कहां निकल गए, उन को नहीं मालूम. कई दिनों तक उन को जंगल में भूखाप्यासा भटकना पड़ा. कई लोगों ने अपने घर में पनाह दे कर उन को रोटी खिलाई.

सैलाब से हुई भयानक तबाही के कारण पहाड़ों से निकलने के सारे रास्ते बंद थे. काफी खराब हालत में जानकीदास एक जगह से दूसरी जगह भटकते रहे और फिर गंभीर रूप से बीमार पड़ गए.

बीमारी की हालत में साधुओं की एक टोली ने जानकीदास को कई दिन तक अपने डेरे में रख कर उन का इलाज किया और उन को भोजन खिलाया.

इस दौरान जानकीदास बाकी संसार से कटे रहे. दिन और तारीख का उन को कोई हिसाब नहीं रहा, मगर घर की याद सताती रही. स्वस्थ होने पर जानकीदास को उन्हीं साधुओं ने पहाड़ों में से निकाल घर पहुंचने में मदद की जिन्होंने उन्हें अपने डेरे में रख कई दिन तक उन का इलाज किया और उन को भोजन करवाया.

घर वापस आते हुए जानकीदास को नहीं मालूम था कि इतने दिनों में उन के पीछे दुनिया कितनी बदल चुकी थी.

?पति की आपबीती सुनने के बाद कमला कशमकश वाली हालत में कुछ पल खामोश रही, फिर बोली, ‘‘मैं ने आप के जिंदा वापस आने की सारी उम्मीद खो दी थी, इसलिए सरकार की तरफ से दिए जाने वाले मुआवजे को हासिल करने के लिए दरख्वास्त दे दी थी. मुआवजे की रकम अगले कुछ दिन में मिलने ही वाली थी, मगर उस से पहले आप ही सहीसलामत वापस आ गए.’’

कमला के शब्दों में खुशी के अंदर छिपा जैसे एक दर्द भी था. जानकीदास एकाएक जैसे किसी सोच में पड़ गए.

‘‘मुआवजे की रकम कितनी है?’’ कुछ विचार करते हुए जानकीदास ने पूछा.

‘‘3 लाख रुपए,’’ कमला ने जवाब दिया.

‘‘बहुत बड़ी रकम है. इतनी बड़ी रकम के अपने पास होने का सपना भी शायद हम लोगों ने कभी नहीं देखा था,’’ एक ठंडी सांस भरते हुए जानकीदास ने कहा.

‘‘हां, रकम बड़ी है, मगर आप के जीवन से बड़ी नहीं.’’

‘‘नहीं कमला, जीवन अपनी जगह है और पैसा अपनी जगह. इतने पैसों से हमारे परिवार का रहनसहन संवर सकता है. हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिस से दरवाजे पर आई लक्ष्मी वापस लौट जाए.’’

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’ पति को ताकते हुए कमला ने कहा.

‘‘मुझ को तो सब लोगों ने मुरदा मान ही लिया है, कमला, इस समय मेरे जिंदा सामने आने का मतलब मुआवजे की रकम से हाथ धोना भी हो सकता है. क्या अच्छा नहीं होगा कि अपने परिवार की बेहतरी के लिए मैं फिलहाल मुरदों में ही शुमार रहूं,’’ हंसने की कोशिश करते हुए जानकीदास ने कहा.

‘‘क्या?’’ सदमे वाली हालत में पति को देखते हुए कमला ने कहा.

‘‘बच्चे अभी सो रहे हैं, कमला, इस से पहले कि वे जागें मुझ को यहां से जाना होगा. मेरे जिंदा होने की बात राज ही रहनी चाहिए. मैं जिंदा रह कर अपनी औलाद के लिए कुछ नहीं कर सका, मगर जिंदा होते हुए मर कर मैं शायद उन के लिए बहुतकुछ कर सकता हूं.

‘‘और हां, तुम को अपनी मांग का सिंदूर पोंछने की जरूरत नहीं. एक तो तुम जान गई हो कि मैं जिंदा हूं, दूसरा लापता इंसानों की गिनती न जिंदा इंसानों में होती है और न ही मुरदा इंसानों में, इसलिए दुनिया भी तुम्हारी भरी हुई मांग पर उंगली नहीं उठा सकती. अब चलता हूं. रोशनी होने से पहले मुझ को इस महल्ले से ही नहीं बल्कि इस शहर से भी बाहर निकल जाना होगा,’’

अपनी जगह से उठते हुए जानकीदास ने कहा.

कमला की आंखों में आंसू छलक पड़े. उस ने झुक कर पति के कदमों को  छू लिया.

इस के बाद जानकीदास ने दरवाजा खोला और बाहर अंधकार में गुम हो गए. मुआवजे की रकम उन के जीवन पर भारी पड़ी थी.

Women’s Day Special: महिला माफिया

कभी चंबल के बीहड़ों में फूलन देवी, सीमा परिहार जैसी दस्यु सुंदरियों सहित कुछ गिनती की महिलाएं ही अपराध की राह पर कदम रखने वालों में थीं. लेकिन कुछ सालों का आंकड़ा देखा जाए तो यह साफ होता है कि आपराधिक क्षेत्र में महिलाओं की शिरकत बढ़ी है. अपराध करने के मामले में चाहे वह किसी माफिया गिरोह की बात हो या खुले तौर पर हफ्तावसूली, पौकेटमारी आदि करने का मामला हो, किसी न किसी महिला का नाम हर क्षेत्र में है.

आज के इस आधुनिक दौर में महिलाएं अपराध की दुनिया में भी मर्दों का मुकाबला कर रही हैं. इन औरतों ने इंटरपोल को भी परेशान कर के रख दिया है. भारत की अनेक महिला डौन को पकड़ने के लिए इंटरपोल ने दुनियाभर में नोटिस जारी किए हुए हैं. इन महिलाओं के खिलाफ जालसाजी, धोखाधड़ी व अपहरण के मामले दर्ज हैं.

माफिया डौन दाऊद इब्राहिम के भारत से विदेश भागने के बाद कुछ साल तक तो उस ने यहां के आपराधिक कारोबार पर खुद ही नियंत्रण रखा था लेकिन मुंबई बम धमाकों में प्रमुख अभियुक्त होने के चलते उस पर पुलिस की चौकस निगाह होने और प्रतिद्वंद्वी गिरोहों से बढ़ती तनातनी के कारण उस ने अपने गैंग की यहां की गतिविधियों पर अपना नियंत्रण रखना छोड़ दिया. तभी से मुंबई समेत आसपास के माफिया कारोबार की कमान उस की बहन हसीना पारकर संभाल रही है. यह अलग बात है कि पुलिस को यह सब पता होते हुए भी उस के पास इस बाबत कोई पुख्ता सुबूत नहीं है. इसी कारण से वह हसीना के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा पा रही.

बीवियों की अहम भूमिका

मुंबई के अरुण गवली के बारे में कहा जाता है कि जब वह अपने आपराधिक मामलों के चलते जेल में बंद था तब उस के गिरोह का संचालन उस की पत्नी आशा गवली किया करती थी. माफिया सरगना अश्विन नाईक का मामला भी इसी तरह का था. उस के भी जेल में बंद होने के दौरान गिरोह की कमान उस की पत्नी नीता नाईक के हाथ में थी. बाद में नीता ने राजनीतिक संरक्षण पाने के लिए शिवसेना जौइन कर ली थी और नगरसेविका भी चुनी गई थी लेकिन नीता के चरित्र पर शक होने के बाद अश्विन ने उस की हत्या करवा दी थी.

गिरोह चलाती महिलाएं

ठाणे के उपनगरीय इलाकों में आतंक का पर्याय रहा सुरेश मंचेकर पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. सुरेश की होटल व्यवसायियों और भवननिर्माताओं के बीच जबरदस्त दहशत कायम थी. उस ने हफ्तावसूली और सुपारी ले कर हत्याएं करा कर न केवल मुंबई में बल्कि गोआ, हैदराबाद और मध्य प्रदेश में अकूत संपत्ति बनाई थी. बताते हैं कि सुरेश मंचेकर जब मुंबई में नहीं होता था तो उस के गिरोह की बागडोर उस की बूढ़ी मां लक्ष्मी और पत्नी सुप्रिया के हाथों में हुआ करती थी.

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सुप्रिया की सुरेश के साथ शादी होने की बात भी बहुत दिलचस्प है. यह बात उन दिनों की है जब सुप्रिया केईएम अस्पताल में नर्स थी. सुरेश अपनी किसी बीमारी के इलाज के लिए उस अस्पताल में भरती था. उसी दौरान दोनों में पता नहीं कब नजदीकियां बढ़ीं और वे एकदूसरे को दिल दे बैठे. बाद में उन के प्यार की दास्तान वैवाहिक जिंदगी में बदल गई.

मोनिका बेदी जब बौलीवुड में काम पाने के लिए संघर्ष कर रही थी और उसे कोई भी निर्माता घास नहीं डाल रहा था तब अबू सलेम ने उस की मदद की थी. अबू के धमकाने पर मोनिका को एक नहीं कई फिल्मों में काम मिला था. अबू सलेम के इस एहसान से मोनिका इस कदर दब गई कि बिना आगापीछा सोचे ही वह अबू के हर काम में उस का साथ देने लगी थी.

दौलत और रुतबे की चाह

पिछले साल छोटा शकील गिरोह से जुड़ी रुबीना सिराज सैयद पुलिस के हाथ लगी थी. उस का भी आपराधिक कैरियर कम रोचक नहीं है. कुछ साल पहले तक ब्यूटीशियन का काम करने वाली रुबीना को रुतबा और दौलत की चाहत ने अपराध की दुनिया में खींचा था. छोटा शकील गिरोह में शामिल होने के बाद वह न सिर्फ उस का समूचा आर्थिक कारोबार संभालती थी बल्कि जेल में बंद गिरोह के सदस्यों की मदद करने का काम भी करती थी.

छोटा शकील के गिरोह में ही एक और महिला थी-शमीम ताहिर मिर्जा बेग उर्फ पौल, जो हफ्तावसूली रैकेट के लिए इस गिरोह में अहम भूमिका निभाती थी. वह गिरोह के सरगना छोटा शकील को हफ्तावसूली के संभावित शिकार के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराती थी. इस के अलावा वह हफ्तावसूली की रकम को हवाला के जरिए छोटा शकील के खाते में जमा कराने का काम भी करती थी.

हो रहा है इजाफा

पिछले कुछ सालों में आपराधिक क्षेत्र में महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है. इस की वजह यह है कि महिलाएं अपने महंगे शौकों पर होने वाले खर्च की भरपाई के लिए इस शौर्टकट को अपनाती हैं जो न केवल उन की जिंदगी को तबाह कर देता है बल्कि उन की जान को भी बन जाता है.

महिलाओं को अपने गिरोह से जोड़ने पर माफिया सरगनाओं को एक बड़ा फायदा यह होता है कि महिलाओं पर जल्दी कोई संदेह नहीं करता और वे आसानी से काम को अंजाम दे देती हैं. फिर महिला सिपहसालारों के साथ माफिया सरगनाओं को लेनदेन में भी झंझट नहीं रहता.

लिहाजा, इस तरह की अनेक महिलाएं हैं जो अलगअलग माफिया गिरोहों के लिए हथियार सप्लाई करने से ले कर महत्त्वपूर्ण जानकारी जुटाने तक के काम में लगी हैं. कुछ ऐसी महिलाएं भी हैं जो अलग से अपना आपराधिक कारोबार चला रही हैं.

इस तरह की फरार महिला अपराधियों में अंजली माकन, शोभा अय्यर, शबाना मेमन, रेशमा मेमन, समीरा जुमानी आदि के नाम प्रमुख हैं. शबाना और रेशमा मुंबई में हुए बम विस्फोट कांड के आरोपी अयूब मेमन व टाइगर मेमन की बीवी हैं. समीरा जुमानी पासपोर्ट रैकेट में अभियुक्त है. अंजली माकन एक बैंक से डेढ़ करोड़ रुपए की धोखाधड़ी कर फरार है.

शोभा अय्यर एक प्लेसमैंट एजेंसी चलाती थी. लोगों को रोजगार दिलाने के नाम पर उस ने खासी दौलत बटोरी और फरार हो गई.

क्या कहते हैं आंकड़े

अपराध जगत में अपराधी महिलाओं की संख्या कम नहीं है. महाराष्ट्र ने अब महिला अपराध जगत में भी अपना वर्चस्व साबित कर दिया है. पिछले 3 साल के नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर गौर करें तो इस राज्य की सर्वाधिक 90,884 महिलाओं को विभिन्न अपराधों के तहत गिरफ्तार किया गया है.

महिला अपराध में महाराष्ट्र के बाद आंध्र प्रदेश का नंबर आता है. यहां पिछले 3 सालों में 57,406 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है. इस के बाद मध्य प्रदेश का नंबर आता है. जहां 49,333 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है. इस मामले में गुजरात चौथे नंबर पर है. वहां 3 सालों में 41,872 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है.

देश में 2010, 2011 व 2012 में कुल 93 लाख अपराधियों की गिरफ्तारी हुई है, इन में महिलाओं का सहभाग महज 6 फीसदी ही है.

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महाराष्ट्र में 2010 में विभिन्न अपराधों के तहत 30,118 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है, जबकि 2011 में 30,159 व 2012 में 30,607 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है. महाराष्ट्र में पति पर अत्याचार करने पर 20 हजार महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है. मारपीट करने पर 16,843, हमला करने पर 15,348, चोरी करने पर 3911, हत्या करने पर 1,900 व हत्या का प्रयास करने पर 1,700 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है.

प्रदेश में महिला अपराध में मुंबई की 7,264 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है. इसी तरह जलगांव में 5,384, नासिक ग्रामीण में 5,235, अहमदनगर में 4,984 व पुणे में 4,052 महिला अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है.

पिछले दिनों हरियाणा में एक ऐसी महिला अपराधी को गिरफ्तार किया गया जो स्मैक बेचने का धंधा करती थी. अपराध जगत में ऐसी महिलाएं भी शामिल हैं जो सैक्स रैकेट का धंधा करती हैं. ये महिलाएं पैसे के लिए अपने संपर्क में आने वाली दूसरी युवतियों को भी उसी नरक में धकेल देती हैं.

वजह चाहे जो हो, ऐसे अपराधों में संलिप्त महिलाएं दबंग, निडर व आक्रामक प्रवृति की होती हैं पर इतना तय है कि नजाकत, सौंदर्य, शालीनता और ममता की मूरत मानी जाने वाली महिला का अपराध की कू्रर राह पर कदम रख लेना सेहतमंद समाज के निर्माण का लक्षण नहीं दिखता.

पहली डेट: क्यों उसका मन आशंकाओं से भरा था?

शृंगारमेज के आगे खड़ी हम दोनों अपनीअपनी प्रथम ‘डेट’ के लिए शृंगार कर रही थीं. अदिति अपने मंगेतर रीतेष के लिए आकांक्षाओं से भरा दिल लिए, कंपकंपाते हाथों से अपेक्षाओं को सहेजती हुई और मैं पीयूष के लिए आशंकाओं भरा दिल लिए, थरथराते हाथों से अनिश्चितता का दामन पकडे़.

हम दोनों के होंठ यदाकदा कुछ बुदबुदा देते थे. एकदूसरे के आमनेसामने खड़े हो बात करने का साहस दोनों ही नहीं जुटा पा रही थीं. दर्पण की छवि ही बिना एकदूसरे का सामना किए कभीकभार कुछ बोल देती थी.

चेहरे पर पाउडर लगाते हुए अदिति ने ही पूछा, ‘‘कौन सी साड़ी पहन रही  हो, मां?’’

‘‘शायद नीली, हलकी सी जरी वाली…नहींनहीं…’’ वातावरण में गूंजे शब्द खुद को ही अजीब लगे और बोल पड़ी, ‘‘पिं्रटेड सिल्क वाली, क्यों, ठीक रहेगी न? और हां, मेकअप कैसा है?’’ और पूछते ही उस विचार ने कौंध कर अधरों पर थोड़ी सी मुसकराहट छिटका दी कि एक किशोरी से बेहतर सलाह ‘डेट्स’ के शृंगार पर और कौन दे सकता है.

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मेरी मुसकराहट ने अदिति को भी अछूता न छोड़ा. वह बोली, ‘‘नहीं, नीली जरी वाली…कुछ तो ‘ग्लैमरस’ होना चाहिए न,’’ और उस ने मेरे गालों को हलके से मल कर रूज को हलका कर दिया और ‘आईशैडो’ को करीबकरीब मिटा ही दिया.

मैं ने दर्पण में देखा तो भौंहें अपनेआप ही सिकुड़ गईं, ‘‘अरे, यह तो मेकअप करने से पहले जैसी हो गई हूं.’’

‘‘हां, मां, यह तुम्हारा असली रूप ही है. आप ही ने तो हमें हरदम यह सिखाया है कि अंदर का रूप वास्तविक होता है, बाहर का नहीं. यह एक महत्त्वपूर्ण भेंट है… उस पर गलत प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए.’’

‘‘अरे, तुम कब से मेरी बात सुनने लगी हो?’’

‘‘मां, घबराओ नहीं,’’ अदिति ने कहते हुए शरारत में कंधे उचका दिए, ‘‘यह तो मुलाकात मात्र है.’’

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‘‘अभी तो तुम कह रही थीं कि यह एक महत्त्वपूर्ण भेंट है…मुझे सावधान रहना चाहिए कि उस पर गलत प्रभाव न पड़े.’’

अदिति भी हंस पड़ी और मेरी नकल कर के बोली, ‘‘आप कब से मेरी बात सुनने लगी हैं?’’

तनाव थोड़ा सा कम हो रहा था पर हाथों के कंपन ने फिर भी बिंदी गिरा ही दी.

अदिति बोली, ‘‘मां, थोड़ी देर बैठ जाओ या थोड़ी देर ‘योगा’ कर लो.’’

‘‘क्या? मैं और योगा? अरे, कब देखा है तुम ने मुझे योगा करते हुए?’’

‘‘हां मां,’’ अदिति ने गंभीरता से कहा, ‘‘इस से तुम्हें आराम मिलेगा. जूली रोज योगा करती है. वह कहती है कि इस से तनाव नहीं रहता.’’

थोड़ा सा तनाव दूर होने की हलकी सी जो शांति उपजी थी, वह जूली के नाम से ही कपूर की तरह उड़ गई. शरीर की मांसपेशियां सूखी लकड़ी की तरह अकड़ गईं. मुंह का स्वाद न चाहते हुए भी कसैला हो गया. अपने को शांत रखने की कोशिशों के बावजूद आवाज में व्यंग्य उभर आया, ‘‘हां, जूली को ही योगा की ज्यादा जरूरत है, तुम्हारे पिता के साथ रहने के लिए. उसी को ही योगा से उत्पन्न शांति की जरूरत है. मैं तो अपने हिस्टीरिया के साथ ही सब से ज्यादा आरामदायक स्थिति में हूं, मुझे तो यही आता है.’’

‘‘मुझे खेद है, मां,’’ अदिति ने जल्दी से मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘पता नहीं क्यों मैं ने उस का नाम ले लिया. यह मेरी मूर्खता ही है.’’

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चेहरे पर मुखौटा चढ़ा लेने के बावजूद बेचैनी छिप नहीं रही थी. होंठ वक्र हो कर थरथरा रहे थे, गले की नसें बैठने का नाम नहीं ले रही थीं. अवांछित आंसुओं को रोकने की कोशिश में आंखें फड़फड़ाए जा रही थीं, सबकुछ धुंधला पड़ रहा था.

दूर से आती अदिति की आवाज ने मुझे चौंका दिया, ‘‘शायद मैं भी रीतेष के साथ अपनी प्रथम डेट की वजह से ‘नर्वस’ हूं.’’

सहसा मैं सचेत हो गई. अपने पर ही कोफ्त हुई कि क्यों ऐसा होता है?

किसी तरह अपने को संभालती हुई बर्फीली मुसकान के साथ मैं बोली, ‘‘सब ठीक है बेटा, जूली तुम्हारे पिता की पत्नी है,’’ और जोर से अपने होंठों को दबा अगला वाक्य–‘हालांकि वह इतनी छोटी है कि तुम्हारी बहन जैसी लगती है,’ निकलने से रोक पाई.

बेटी की आंखों में झलकी ममता और दया का मिश्रण मैं झेल न सकी. शीशे की ओर मुंह फेर आंखों के नीचे की लाइन मिटाने लगी. मिटातेमिटाते थक गई पर वह न मिटी. तब आभास हुआ कि यह मिटने वाली लाइन नहीं, यह तो विवाद के उन थपेड़ों की निशानी है जो अब उम्रभर अंकित रहेगी.

‘‘मां, मां, आप ठीक तो हैं न?’’ अदिति की आवाज कानों से टकराई

और न चाहते हुए भी मैं बोल पड़ी, ‘‘हां, ठीक ही तो हूं. 42 साल की हो गई हूं. पति 22 साल का साथ मेरे से आधी उम्र की लड़की के लिए छोड़ गए हैं. ठीक ही तो है, उस की तो उम्र ही नहीं, वजन भी शायद मेरे से आधा होगा.’’

‘‘औपरेशन से पैदा हुए 3 बच्चों के बाद मांसपेशियां कसाव के दायरे में आने का नाम नहीं लेना चाहतीं, जवानी दामन छोड़ दूर खड़ी हो गई है. शादी से पहले कभी डेट नहीं की और शादी के बाद तो उस का प्रश्न ही नहीं उठता. तुम्हारे पिता ही सबकुछ थे. आज जिंदगी में पहली बार डेट पर जा रही हूं. वह आदमी, जो कुछ ही मिनटों में मेरा द्वार खटखटाएगा,  समझ में नहीं आता कि उस से क्या कहूंगी?’’

‘‘मां, याद करो, आप ने हमें क्या शिक्षा दी है,’’ अदिति मुझे उखड़े हुए मूड से निकालने का प्रयत्न करती हुई बोली.

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थोड़ी सी मुसकराहट वापस आई, ‘‘यही कि ज्यादा चपड़चपड़ न करूं?’’

‘‘ओह, मां.’’

‘‘पगली, मैं तो मजाक कर रही थी.’’

‘‘मां, कृपया आज कोई मजाक नहीं, ठीक है न. आज आप सिर्फ आप ही रहें,’’ और उस ने वे ढेर सारे उपदेश, जो कभी मैं ने उसे दिए थे और उस के पहले मेरी मां ने मुझे दिए थे, दे डाले. फिर शरारत से बोली, ‘‘यदि आप ज्यादा नर्वस हों तो बोलिएगा मत, चुपचाप सुनती रहिएगा. पुरुषों को अच्छा लगता है, जब कोई उन्हें सुनता रहे. अपने को वे महत्त्वपूर्ण समझने लगते हैं,’’ कहते हुए अदिति अपने बाल बनाने लगी.

मैं फिर आशंकाओं के अंधेरे कुएं में गिरती चली गई. अपनी आवाज उसी अंधेरे कुएं से आती लगी, ‘यह कैसी विवशता है. अनिल ने तो मुझे अपने जीवन से झाड़बुहार कर कचरे की तरह बाहर फेंक दिया और मैं सारी कटुताओं के साथ उसे अपने में समाए बैठी हूं. किसी भी तरह आंचल झटक कर दूर नहीं हो पा रही हूं.’

अदिति मेरी ओर मुड़ी और एक बार जो मेरे बोलने का प्रवाह चालू हो गया था, वह अबाध गति से बहने लगा, ‘‘अदिति, हालांकि शादी के दूसरे साल से ही अनिल विश्वासघात करने लगे थे, लेकिन मैं अपने को ही दोषी मान कर उन के अनुरूप ढलने का निरंतर प्रयास करती रही.

‘‘लोग कहते हैं कि आदमी का प्यार उस की जिह्वा में समा जाता है. इसलिए मैं ने उन की पसंद की खाने की चीजों में निपुणता हासिल की.

‘‘हर तरह से, हर कोण से अपने को बदला, पर कहीं कोई अंतर न पड़ा.

‘‘उन का अलमस्त, फक्कड़ स्वभाव, उन की इश्कबाजी, जो शादी के प्रथम वर्ष में गुदगुदा जाती थी और जिसे मैं ‘निधि’ की निधि समझे बैठी थी, वही मेरी सौतन बन बैठी. उस निधि पर डाका डालने, उसे हड़पने कई जूलियां आईं और गईं.

‘‘हर प्रेम संबंध धीरेधीरे दिल को नम व जड़ करता गया. फिर 3 बच्चों के साथ जाती भी तो कहां? सच पूछो तो जाना भी नहीं चाहती थी कहीं. अनिल के साथ कुछ इस तरह जुड़ी थी कि सब यातनाओं के बाद भी उसे जीवन का नासूर समझ काट न सकी.’’

अदिति ने सांत्वना भरे अपने हाथों से मेरे हाथों को सहलाया तो लगा कि बच्ची इस माहौल में रह कर अपनी उम्र से बड़ी हो गई है. अनायास मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘बेटा, ऐसा नहीं कि मैं तुम बच्चों के चेहरे पर आए भावों को पढ़ नहीं पाती. मैं जानती हूं कि तुम्हें अपने पिता पर रोष है. रोष क्या मुझे कम है? पर स्नेह तंतु तोड़ने में अपने को असमर्थ पाती हूं.

‘‘मित्रों और हितैषियों ने कई बार समझाया कि मैं अपनी जिंदगी की बागडोर खुद संभालूं, पर संभालती तो कैसे. आत्मप्रताड़ना से फुरसत मिले तब न.

‘‘आत्मग्लानि, रोष, कड़वाहट से भरे दिल में किसी और भावना के लिए कोई जगह ही नहीं बची थी. जिंदगी का हर पहलू इन से भरा हुआ था कि एक सुबह आंखें खुलीं और पाया कि इस दौरान  धीरेधीरे मैं ने सब मित्रों को दूर खिसका दिया. तुम लोगों के चेहरों पर भी मेरे प्रति लुकीछिपी अधीरता दिनबदिन ज्यादा उजागर होने लगी. तब लगा, मेरा यह रोष, मेरी यह प्रताड़ना सिर्फ मुझे ही खा कर संतुष्ट नहीं, मेरे परिवार की ओर भी मुंहबाए खड़ी है.

‘‘उस दिन मैं यह जान गई कि अब मुझे इस दलदल से निकलना ही पड़ेगा और उसी दिन से शुरू हो गया था आत्मसम्मान को पाने का अनंत सफर.

‘‘जिस दिन मैं पहली बार नौकरी पर गई थी, आत्मविश्वास फिर डगमगा गया था. पर तुम लोगों के उल्लसित चेहरे देख डगमगाते कदमों को सहारा मिला था.

‘‘अदिति, यहीं पर दफ्तर में पीयूष से मुलाकात हुई. तुम्हारे पिता से बिलकुल अलग व्यक्तित्व, शांत, गंभीर, अल्पभाषी पर अपनी लगन के पक्के. 2 बार मना करने पर भी आज शाम के रात्रिभोज के लिए पूछ बैठे.

‘‘अब तुम्हीं बताओ, उम्र के इस दौर में कैसे परियों के देश में पहुंच जाऊं? कहां से वह उत्साह लाऊं, जो कब का मुझे छोड़ कर जा चुका है? नहीं, अब मुझ में और निराशाओं को झेलने की शक्ति नहीं रही. मैं न जा पाऊंगी. यह प्रथम डेट शुरू होने से पहले ही समाप्त हो जाए तो बेहतर है.’’

मैं अपना मुंह छिपाते हुए मुड़ने ही वाली थी कि अदिति की दर्पण से झांकती 2 बेबस आंखें मेरे पैरों में बेड़ी डाल गईं और मैं वैसे ही, वहीं जकड़ी खड़ी रह गई.

अदिति की आंखें मुझे बरबस खींचे जा रही थीं. भावनाओं के ज्वारभाटे पर किसी तरह अंकुश लगा कर आवाज को सामान्य बनाते हुए नए संकल्प के साथ मैं बोली, ‘‘नीली हलकी जरी वाली साड़ी ही ठीक रहेगी, कुछ तो ग्लैमरस होना चाहिए न.’’

क्षणभर में अदिति मेरी बांहों में झूम रही थी. मैं ने प्यार से उस के माथे को चूमा. उस के बालों को सहलाते हुए अचानक मेरी नजर दर्पण पर पड़ी, जहां से झांकती अपनी आंखों को देख मैं चौंक पड़ी. उन में प्रथम डेट का भय नहीं था, बल्कि थी आशा की एक किरण.

Women’s Day: महिलाओं की सेहत पर नाइट शिफ्ट का असर

हाल ही की एक रिसर्च मे यह बात सामने आई है कि जो महिलाएं 5 साल या उस से ज्यादा समय तक नाईट शिफ्ट में काम करती हैं, दिन में 9 से 5 बजे तक काम करने वाली महिलाओं की तुलना में, उन्हें दिल के रोग की वजह से मौत होने का खतरा ज्यादा होता है. नर्सों, डाक्टरों, काल सेंटर कर्मचारियों के साथ ही हास्पिटैलिटी इंडस्ट्री में महिलाओं को रात में काम करना पड़ता है.

जामा में प्रकाशित नर्सेस हैल्थ स्टडी के मुताबिक दिन के साथसाथ रात में काम करने वाली महिला नर्सों को कारनरी दिल के रोग होने का खतरा ज्यादा है. इस स्टडी के दौरान दिल के रोगों के लिए जिम्मेदार पारंपरिक खतरों को भी ध्यान रखा गया है. 300000 नर्सों और पूर्व नर्सों पर हुई इस स्टडी में पाया गया है कि जिन नर्सों ने 10 या उस से ज्यादा साल नाईट शिफ्ट में काम किया है उन्हें, उन महिलाओं की तुलना में जिन्होंने इतने लंबे समय के लिए नाईट शिफ्ट में लगातार काम नहीं किया, कार्नरी दिल के रोग होने का खतरा 15 प्रतिशत या उस से भी ज्यादा है. युवा महिलाओं को यह खतरा ज्यादा है.

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इस संदर्भ में एचसीएफआई के अध्यक्ष और आईएसए के सेक्रेटरी, ‘डा. केके अग्रवाल’ कहते हैं कि रात को काम करने की वजह से कर्मचारियों पर तनाव का दबाव बढ़  जाता है. इस वजह से वह सिगरेट और शराब, अस्वस्थ जंक और अत्यधिक ट्रांस फैट युक्त भोजन के आदि हो जाते हैं. उन्हें अकसर व्यायाम करने का वक्त नहीं मिल पाता और उन की नींद का पैटर्न भी अनियमित हो जाता है. यह सब चीजें मिल कर डायबिटीज, हाईपरटैंशन और मोटापे का कारण बनती हैं, जो दिल के रोगों का प्रमुख कारण है. इस के साथ ही रात में काम करने  से महिलाएं डिप्रैशन में चली जाती हैं. माएं और पत्नियां अपने बच्चों और परिवार की रोजाना जीवन की बातों को जान नहीं पाती. वह दिन में सोती हैं जिस वजह से वह सामाजिक जिम्मेदारियों को निभा नहीं पातीं. नर्सों और डाक्टरों की साप्ताहिक छुट्टी का कोई निश्चित दिन नहीं होता जिस से उन के जीवन में अनिश्चितता आती है और उन में तनाव और अकेलापन बढ़ जाता है.

रात के समय काम करने के साईड इफैक्ट्स को कम करने के लिए रोजाना जीवन में कुछ बदलाव करने जरूरी हैं जिस के लिए परिवार और दोस्तों की समझदारी और सहयोग की जरूरत पड़ती है.

पहली और सब से जरूरी बात यह है कि घर का माहौल ऐसा हो कि वह दिन में 6 से 8 घंटे आराम से सो सकें. यह दिन की नींद केवल एक झपकी नहीं है बल्कि रात की पूरी नींद का विकल्प है इसलिए यह गहरी और शांतमयी होनी चाहिए.

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– काम के बाद एक घंटा आराम करें, चाहे दिन हो या रात, आराम देने वाला संगीत या गुनगुने पानी से स्नान मदद कर सकता है.

-सप्ताह के सातों दिन हर वक्त का खाना एक ही समय पर खाएं इस से शरीर की घड़ी सही काम करती रहती है.

-सब्जियां, मूंगफली का मक्खन क्रैकर्ज के साथ, फल आदि उच्च प्रोटीन वाले आहार खाएं ताकि आप सतर्क रह सकें.

-सोने से पहले एल्कोहल युक्त चीजें न लें.

-काफी, चाए, कोला और दूसरे कैफीन युक्त पेय से बचें जो नींद में बाधा डालते हैं. काफी बे्रक के समय संतरे का रस पिएं और चहलकदमी करें. शारीरिक गतिविधियां जगाए रखने में मदद करती हैं.

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– खाली पेट सोने से बचें. अगर खाने का मन न हो तो एक ग्लास दूध या डेयरी उत्पाद लें, जिन से अच्छी नींद आती है.

-सोने के कमरे में अंधेरा हो या आरामदायक आंखों का कवच पहनें. आंखें बंद होते हुए भी रौशनी के प्रति संवेदनशील होती है जो आप को नींद आने में बाधा बनती हैं या भरपर नींद लेने में रुकावट पैदा करती हैं.

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– दिन के शोर को बंद करें जो आप की आरामदायक गहरी नींद को खराब कर सकता है.

-एक दिन छोड़ कर ही सही लेकिन व्यायाम जरूर करें.

– जुकाम और एलर्जी की उन दवाओं से सावधान रहें जिन में नींद से जुड़े साईड इफैक्ट होते हैं.   

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