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संपादकीय
बैसाखी
अपने पति की दोटूक राय मेरी समझ में आ गई और मैं ने फैसला किया कि अपने को इस मामले से दूर रखूंगी.
भाग - 1
गृहस्थी की गाड़ी पतिपत्नी के आपसी सहयोग, सामंजस्य से चलती है. लेकिन रीना अपनी मां के बलबूते पर अपनी गृहस्थी की गाड़ी खींच रही थी. मां का सहयोग उस के लिए बैसाखी बन चुका था...
भाग - 2
रोहित के आने के बाद के शीतयुद्ध का आभास भी मुझे हो जाता था क्योंकि यदाकदा चुनिंदा वाक्य, वह भी ठंडी आवाज में ही सुनाई पड़ते.
भाग - 3
अपनी बाई के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर मुझे हंसी आने लगी पर बातबात में कितनी गहरी बात उस अनपढ़ औरत ने कह दी.
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