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Lock Upp: कंगना रनौत भी हुईं पायल के खिलाफ

निर्माता एकता कपूर और कंगना का ओटीटी प्लेटफार्म पर स्ट्रीम हो रहे शो ‘‘लॉक अप‘‘ लगातार सूर्खियों में बना हुआ. इस शो के सभी कैदी लगातार पायल रोहतगी पर आरोप लगा रहे हैं. अब तो इस शो की संचालक कंगना रानौट ने भी पायल रोहतगी के प्रति तीखा रवैया अपना लिया है. कुल मिलाकर ‘‘लॉक अप’’ के अंदर सभी पायल रोहतगी के खिलाफ हो गए हैं. कुछ लोगों की राय में इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि पायल रोहतगी ने पहले ही एपीसोड में कंगना को जवाब देकर बता दिया था कि वह किसी से कम नहीं है.

यूं भी पायल रोहती अपनी बेबाक राय रखने के लिए जानी जाती हैं.उन्हें पता है कि कब किस तरह का स्टैंड लेना है और कब चुप रहना है.इस शो में करणवीर बेाहरा और मुनव्वर फारूकी किसी व्यक्ति को हराने या नीचा दिखाने के लिए सारे षडयंत्र रचते हैं. लोग देख रहे हैं कि इस शो में यह दोनों किस तरह से चाले चल रहे हैं.

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इनके इस रवैये से यह सीखा जा सकता है कि खुद शेर समझना अच्छी बात है, पर सामने वाले को मुर्ख समझना बेवकूफी है. लोगों को यह बात अब तक पायल रोहती द्वारा उठाए गए सटीक कदमों से अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए. हाल ही में उनकी और करणवीर बोहरा के बीच नोकझोक देखी गई उस समय भी बिना अपना आपा खोए उन्होंने अपनी बात रखी.

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वैसे इस शो के सिद्धार्थ शर्मा, शिवम शर्मा, पूनम पांडे, बबीता फोगाट, सारा खान, साईशा चिंदे, चक्रपाणी,सतेहसीन पूनावाला सहित सभी कैदी एक से ब-सजय़कर एक हैं.लेकिन अभी तक ऐसा कुछ दिखा नहीं, जिससे यह पता लग सके कि यह उनका असली चेहरा है या नहीं. खैर यह तो आने वाले एपीसोड के जरिए पता लग जाएगा.

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Imlie: आर्यन ने चली चाल, आदित्य होगा अरेस्ट

टीवी शो ‘इमली’ (Imlie) में इन दिनों फुल ड्रामा चल रहा है. शो में आपने देखा कि इमली को पता चल गया है कि  आर्यन उसका इस्तेमाल कर रहा है. ये जानकर इमली बहुत टूट जाती है. वह सोचती है कि आर्यन ने उसके लिए जो कुचछ भी किया, वह सिर्फ दिखावा था. शो के आने वाले एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं शो के अपकमिंग एपिसोड के बारे में.

इमली आर्यन का घर छोड़कर चली जाती है तो वहीं अर्पिता आर्यन को खूब खरी-खोटी सुनाती है. इस पर आर्यन कहता है कि इमली जरूर वापस आएगी क्योंकि उसकी सीता मइया इस घर में है. इसके बाद वह कहता है कि वह आदित्य को बर्बाद को करके दी दम लेगा.

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एक तरफ इमली मंदिर में रहने लगी है. वह मंदिर में बैठकर खूब रोती है. दूसरी तरफ आदित्य  अपनी मां को बताता है कि उसने इमली को आर्यन के बारे में जो सच बताया है उसकी वजह से वह एक बार फिर बेघर हो गई है.

 

शो में आप देखेंगे कि  इमली दूसरे दिन ऑफिस जाएगी, उसकी मुलाकात आर्यन से होती है. आर्यन, इमली को अपने केबिन में बुलाता है और उसे काम पर फोकस करने के लिए कहता है फिर इमली उसे आदित्य से बदला लेने की जिद्द छोड़ने के लिए कहती है लेकिन वह मना कर देता है.

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शो के आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि पुलिस आदित्य को गिरफ्तार कर लेती है. पुलिस कहती है कि आदित्य ने चैनल पर मौसम के बारे में गलत जानकारी दी है. उसकी लापरवाही से पूरे शहर का नुकसान हुआ है और उसके खिलाफ वारंट जारी हुआ है. शो में अब ये देखना होगा कि क्या इमली आदित्य का साथ देगी?

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महिलाओं की सुरक्षा के लिए सिर्फ कानून बनाना ही काफी नहीं

जब किसी लड़की को लगता है कि कोई लड़का या आदमी उस का लगातार पीछा कर रहा है, तो उस में एक गहरी दहशत छा जाती है. पहले तो यह संयोग लगता है पर जब पता चल जाए कि पीछा करने वाला घंटों सड़क पर इंतजार करता है, घर के सामने जमा रहता है, तो यह डर लाजिम ही है. इस से न सिर्फ लड़की के दिनरात खराब होते हैं वह पलपल सहमी भी रहती है.

अब सरकार ने एक नया कानून बना कर पीछा करने को भी गंभीर अपराधों की श्रेणी में डाल दिया है. पहले पीछा करना पर नुकसान न पहुंचाना कोई अपराध नहीं था. मगर 2013 में बने कानून में इंडियन पीनल कोड की धारा 354डी के अंतर्गत पीछा करने वाले को 3 साल तक की सजा हो सकती है भले उस पीछा करने वाले ने कोई नुकसान न पहुंचाया हो.

पर यह कानून बनाना एक बात है और इस का इस्तेमाल करवाना दूसरी. आमतौर पर घर वाले इस कदर डर जाते हैं कि वे पुलिस तक जाने की हिम्मत भी नहीं कर पाते. जो यदाकदा पीछा करते हैं वे तो माह 2 माह में अपना रास्ता बदल लेते हैं, पर जो जनून के शिकार हो जाते हैं वे गैंग बना लेते हैं और स्वभाव से अपराधी किस्म के होते हैं, उन से निबटना आसान नहीं होता.

पुलिस में शिकायत करो तो शुरू में पुलिस कानून के बावजूद कोई विशेष ध्यान नहीं देती. अगर पुलिस पीछा करने वाले को पकड़ कर धमका भी दे तो भी बात नहीं बनती. ऐसे में पीछा करने वाला जगह बदल लेता है. घर की जगह दफ्तर, बाजार, रिश्तेदार या फिर किसी के यहां भी पहुंच जाता है.

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पीछा करने वाले शातिर के दोस्तयार भी बहुत होते हैं, क्योंकि जिस के पास पीछा करने का समय होता है उस के पास पैसा भी होता है और सड़कों पर घंटों धूप, सर्दी, बारिश में खड़े होने की शारीरिक ताकत भी. वह अपराध करने में सक्षम होता है. वह दूसरों से पीछा करने के अधिकार पर उलझ भी जाता है, क्योंकि एक लड़की का पीछा करने वाले को दूसरे लोग पहचानने लगते हैं. आसपास के घर वालों, दुकानदारों, चौकीदारों के कहने के बावजूद यदि वह पीछा करना न छोड़े तो लड़की के मन पर गहरा असर पड़ता है.

यह पीछा करने वाले का मानसिक रोग होता है पर लड़की को भी रोगी बना देता है. जब तक नुकसान न हो तब तक पुलिस में जाने का मतलब जगहंसाई कराना होता है. भारत में तो इस तरह के हर मामले में पहला आक्षेप लड़की पर ही लगता है कि उस ने ही कुछ ऐसा किया होगा कि कोई उस पर दीवाना हो गया.

आजकल पीछा करने वाले मोबाइल से भी तंग करने लगते हैं. वे मैसेज, प्रैंक काल, फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजभेज कर परेशान कर देते हैं. यह भी प्राइवेसी के हनन के आरोप में अपराध है पर ऐसे अपराधों पर सजाएं कम मिलती हैं. वैसे भी भारत में कानून बनाना आसान है पर सजा दिलाना मुश्किल. महीनों नहीं सालों मामले चलते रहते हैं.

दिल्ली में एक लड़की का एक शातिर 2008 से 2010 तक पीछा करता रहा. उस की स्कूटी के पीछे अपनी बाइक लगा देता था. वह इतना दुस्साहसी था कि एक बार रैड लाइट पर उस लड़की की स्कूटी पर ही बैठ गया और शादी करने की जिद करने लगा. उस के पास रिवौल्वर भी था. लड़की के मना करने पर उस ने उस की पीठ में गोली मार दी. यह घटना 2010 की है. वह लड़की अब लकवाग्रस्त है पर 2017 तक मामला अदालत में चल रहा है, क्यों?

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जब तक मामला अदालत में होता है पीडि़ता को चैन नहीं होता, क्योंकि कितनी ही तारीखों पर उसे भी मौजूद रहना पड़ता है.

यह सामाजिक गुनाह है पर अफसोस है कि समाज के ठेकेदार, धर्म के दुकानदार, राजनीतिक दल व अदालतें इस तरह के मामलों को मक्खी के भिनभिनाने का सा मान कर नजरअंदाज कर देते हैं पर यह मक्खी नहीं ततैया होती है, जो दिनरात हराम करती है.

Anupamaa: रुपाली गांगुली का रोमांस देख पति ने दिया ये रिएक्शन

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में  रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और गौरव खन्ना (Gaurav Khanna) की जोड़ी को फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. शो में दोनों की केमिस्ट्री शानदार दिखाया जा रहा है. शो में आपने देखा कि अनुपमा ने अनुज से शादी के लिए भी ‘हां’ कह दी है. फैंस को अनुज-अनुपमा का रोमांस काफी पसंद आ रहा है. लेकिन अनुपमा के रियल लाइफ पति अश्विन के वर्मा ने शो को लेकर रिएक्शन दिया है. आइए बताते हैं क्या कहा है अनुपमा के रियल पति ने.

शो में अनुज और अनुपमा का रोमांस भी शुरू हो चुका है.तो वहीं रुपाली गांगुली के पति अश्विन के वर्मा भी सीरियल ‘अनुपमा’ को बड़े चाव से देखते हैं. इतना ही नहीं अश्विन के वर्मा अनुज और अनुपमा के रोमांस को देखकर रिएक्शन भी देते हैं. इस बात का खुलासा रुपाली गांगुली ने खुद किया है.

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रिपोर्ट के अनुसार अनुपमा ने बताया है कि मेरे पति मेरे साथ बैठकर सीरियल ‘अनुपमा’ देखना पसंद करते हैं. उन्हें अनुज और अनुपमा का रोमांस काफी पसंद आ रहा है. अनुपमा ने बताया कि मेरे पति मेरे सबसे बड़े फैन हैं.

 

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रुपाली गांगुली ने आगे कहा कि मेरे पति मेरे सबसे बड़े क्रिटिक और सपोर्टर हैं. कई बार तो उनको मेरे शो में गलतियां नजर आती हैं तो कई बार वो मेरी तारीफ करते हैं. वो मेरी छोटी से छोटी गलती भी पकड़ लेते हैं. वो मुझे बताते हैं कि किस तरह से मुझे अपना काम को बेहतर बनाना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि  मैं हमेशा अपने पति की बातें सुनती हूं.

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खबरों के अनुसार, रुपाली गांगुली ने शो में अनुज-अनुपमा के रोमांस को लेकर कहा ये बहुत शानदार है. अनुपमा में बदलाव की एकमात्र स्थिर चीज है. मैंने इस शो के शुरू होने पर कभी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ होगा. अनुपमा की जिंदगी में कोई दूसरा आदमी आएगा. ट्रैक बहुत ही ऑर्गेनिक है.

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Top 10 Social Story: टॉप 10 सोशल स्टोरी हिंदी में

Top 10 Social Story Of 2022: समाज में रहन के लिए हमें कुछ चुनौतियों को स्वीकार करना पड़ता है. इसके कुछ नियम-कानून होते हैं, जिसे किसी भी हाल में  फॉलो करने के लिए मजबूर किया जाता है.  तो इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं, सरिता की Top 10 Social Story in Hindi. समाज से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जिससे आप समाज में हो रहे घटनाओं से रू-ब-रू होंगे. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौक तो पढ़िए Top 10 Social Story Of 2022.

  1. प्रिया: प्रिया लखनऊ क्यों आई थी

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हर रोज की तरह आज भी शाम को मर्सिडीज कार लखनऊ के सब से महंगे रैस्तरां के पास रुकी और हेमंत कार से उतर कर सीधे रैस्तरां में गया. वहां पहुंच कर उस ने चारों तरफ नजर डाली तो देखा कि कोने की टेबिल पर वही स्मार्ट युवती बैठी है, जो रोज शाम को उस जगह अकेले बैठती थी और फ्रूट जूस पीती थी. हेमंत से रहा नहीं गया. उस ने टेबिल के पास जा कर खाली कुरसी पर बैठने की इजाजत मांगी.

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2. कर्ण : खराब परवरिश के अंधेरे रास्तों से गुजरती रम्या

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न्यू साउथ वेल्स, सिडनी के उस फोस्टर होम के विजिटिंग रूम में बैठी रम्या बेताबी से इंतजार कर रही थी उस पते का जहां उस की अपनी जिंदगी से मुलाकात होने वाली थी. खिड़की से वह बाहर का नजारा देख रही थी. कुछ छोटे बच्चे लौन में खेल रहे थे. थोड़े बड़े 2-3 बच्चे झूला झूल रहे थे. वह खिड़की के कांच पर हाथ फिराती हुई उन्हें छूने की असफल कोशिश करने लगी. मृगमरीचिका से बच्चे उस की पहुंच से दूर अपनेआप में मगन थे. कमरे के अंदर एक बड़ा सा पोस्टर लगा था, हंसतेखिलखिलाते, छोटेबड़े हर उम्र और रंग के बच्चों का.

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3. तेरी मेरी जिंदगी: क्या था रामस्वरूप और रूपा का संबंध?

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रामस्वरूप तल्लीन हो कर किचन में चाय बनाते हुए सोच रहे हैं कि अब जीवन के 75 साल पूरे होने को आए. कितना कुछ जाना, देखा और जिया इतने सालों में, सबकुछ आनंददायी रहा. अच्छेबुरे का क्या है, जीवन में दोनों का होना जरूरी है. इस से आनंद की अनुभूति और गहरी होती है. लेकिन सब से गहरा तो है रूपा का प्यार. यह खयाल आते ही रामस्वरूप के शांत चेहरे पर प्यारी सी मुसकान बिखर गई. उन्होंने बहुत सफाई से ट्रे में चाय के साथ थोड़े बिस्कुट और नमकीन टोस्ट भी रख लिए. हाथ में ट्रे ले कर अपने कमरे की तरफ जाते हुए रेडियो पर बजते गाने के साथसाथ वे गुनगुना भी रहे हैं ‘…हो चांदनी जब तक रात, देता है हर कोई साथ…तुम मगर अंधेरे में न छोड़ना मेरा हाथ …’

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4. ब्लैकमेल: पैसों के चक्कर में जब गलत रास्ते पर गया दिनेश

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कौलबेल की आवाज से रितेश अचानक जैसे नींद से जागा. वह 4 दिन पहले मनाए वेलैंटाइन डे की मधुर यादों में खोया हुआ था. उस की यादों में थी मीनल, जिस के साथ वह सुनहरे भविष्य के सपने संजो रहा था. वह बेमन से उठा, दरवाजा खोला तो कोरियर वाला था. उस ने साइन कर लिफाफा ले लिया, भेजने वाले का नामपता स्पष्ट नहीं दिख रहा था, फिर भी उस ने उत्सुकता से लिफाफा खोला तो कई सारे फोटो लिफाफे में से निकल कर उस के कमरे में बिखर गए. फोटो देखते ही वह जड़ सा हो गया. फोटो उस के और मीनल के प्रेम संबंधों को स्पष्ट बयान कर रहे थे. आलिंगनरत, चुंबन लेते हुए, हंसतेबोलते ये चित्र वेलैंटाइन डे के थे. 4 दिन पहले की ही तो बात है, जब वह मीनल को ले कर लौंग ड्राइव पर निकला था, शाम की हलकी सुरमई चादर धीरेधीरे फैल रही थी, घनी झाडि़यां देख कर उस ने कार सड़क पर ही रोकी और मीनल को ले कर घनी झाडि़यों के पीछे चला गया.

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5. एक कमरे में बंद दो एटम बम: नीना और लीना की कहानी 

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वे चारों डाइनिंग टेबल पर जैसे तैसे आखरी कौर समेट कर उठने के फिराक में थे. दिल के दरवाजे और खिड़कियां अंदुरनी शोर शराबों से धूम धड़ाका कर रहीं थीं.

नीना और लीना दोनों टीन एज बच्चियां अब उठकर अपने कमरे में चली गईं है और कमरे का दरवाजा अंदर से बन्द कर लिया है.

समीर और श्रीजा का चेहरा मेंढ़क के फूले गाल की तरह सूजा है, और उन दोनों के मन में एक दूसरे पर लात घुंसो की बारिश कर देने की इच्छा बलवती हो रही है.

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6. अंधविश्वास की बेड़ियां: क्या सास को हुआ बहू के दर्द का एहसास?

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‘‘अरे,पता नहीं कौन सी घड़ी थी जब मैं इस मनहूस को अपने बेटे की दुलहन बना कर लाई थी. मुझे क्या पता था कि यह कमबख्त बंजर जमीन है. अरे, एक से बढ़ कर एक लड़की का रिश्ता आ रहा था. भला बताओ, 5 साल हो गए इंतजार करते हुए, बच्चा न पैदा कर सकी… बांझ कहीं की…’’ मेरी सास लगातार बड़बड़ाए जा रही थीं. उन के जहरीले शब्द पिघले शीशे की तरह मेरे कानों में पड़ रहे थे.

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7. नो गिल्ट ट्रिप प्लीज: कपिल क्यों आत्महत्या करना चाहता था

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नेहा औफिस से निकली तो कपिल बाइक पर उस का इंतज़ार कर रहा था. वह इठलाती हुई उस की कमर में हाथ डाल कर उस के पीछे बैठ गई फिर मुंह पर स्कार्फ बांध लिया. कपिल ने मुसकराते हुए बाइक स्टार्ट की. सड़क के ट्रैफिक से दूर बाइक पर जब कुछ खाली रोड पर निकली तो नेहा ने कपिल की गरदन पर किस कर दिया. कपिल ने सुनसान जगह देख कर बाइक एक किनारे लगा दी. नेहा हंसती हुई बाइक से उतरी और  कपिल ने जैसे ही हैलमेट उतार कर रखा, नेहा ने कपिल के गले में बांहें डाल दीं. कपिल ने भी उस की कमर में हाथ डाल उसे अपने से और सटा लिया. दोनों काफी देर तक एकदूसरे में खोए रहे.

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8. परिणाम: पाखंड या वैज्ञानिक किसकी हुई जीत?

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“हमारे बेटे का नाम क्या सोचा है तुम ने?” रात में परिधि ने पति रोहन की बांहों पर अपना सिर रखते हुए पूछा.

“हमारे प्यार की निशानी का नाम होगा अंश, जो मेरा भी अंश होगा और तुम्हारा भी,” मुसकराते हुए रोहन ने जवाब दिया.

“बेटी हुई तो?”

“बेटी हुई तो उसे सपना कह कर पुकारेंगे. वह हमारा सपना जो पूरा करेगी.”

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9. रीवा की लीना: कैसी थी रीवा और लीना की दोस्ती

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डलास (टैक्सास) में लीना से रीवा की दोस्ती बड़ी अजीबोगरीब ढंग से हुई थी. मार्च महीने के शुरुआती दिन थे. ठंड की वापसी हो रही थी. प्रकृति ने इंद्रधनुषी फूलों की चुनरी ओढ़ ली थी. घर से थोड़ी दूर पर झील के किनारे बने लोहे की बैंच पर बैठ कर धूप तापने के साथ चारों ओर प्रकृति की फैली हुई अनुपम सुंदरता को रीवा अपलक निहारा करती थी. उस दिन धूप खिली हुई थी और उस का आनंद लेने को झील के किनारे के लिए दोपहर में ही निकल गई.

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10. हिजड़ा: क्यों सिया को खुद से ही चिढ़ थी?

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‘छनाक’ की आवाज के साथ आईना चकनाचूर हो गया था. आईने का हर टुकड़ा सिया का अक्स दिखा रहा था. मांग में भरा सिंदूर, गले का मंगलसूत्र, कानों के कुंडल ये सब मानो सिया को चिढ़ा रहे थे. शायद समाज के दोहरेपन के आगे वह हार मान चुकी थी. एकसाथ कई सवाल उस के मन में उमड़घुमड़ रहे थे.

आईने के नुकीले टुकड़ों में सिया को उस के सवालों का जवाब नहीं मिल सका. आंखों में आंसुओं के साथ पिछली यादें किसी फिल्म की तरह सिया की आंखों के सामने से गुजरने लगी थीं.

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खुशियों के फूल: भाग 2

‘पापा को मैं ने पहले कभी घर पर शराब पीते नहीं देखा था लेकिन अब पापा घर पर ही शराब की बोतल ले कर बैठ जाते हैं. जैसेजैसे नशा चढ़ता है, पापा का बड़बड़ाना भी बढ़ जाता है. इतने सालों से दबाई अतृप्त कामनाएं, शराब के नशे में बहक कर बड़बड़ाने में और हावभावों से बाहर आने लगती हैं. पापा कहते हैं कि उन्होंने अपनी सारी जवानी एक जिंदा लाश को ढोने में बरबाद कर दी. अब वे भरपूर जीवन जीना चाहते हैं. रिश्तों की गरिमा और पवित्रता को भुला कर वासना और शराब के नशे में डूबे हुए पापा मुझे बेटी के कर्तव्यों के निर्वहन का पाठ पढ़ाते हैं.

‘मेरे आसपास अश्लील माहौल बना कर मुझे अपनी तृप्ति का साधन बनाना चाहते हैं. वे कामुक बन मुझे पाने का प्रयास करते हैं और मैं खुद को इस बड़े घर में बचातीछिपाती भागती हूं. नशे में डूबे पापा हमारे पवित्र रिश्ते को भूल कर खुद को मात्र नर और मुझे नारी के रूप में ही देखते हैं.

‘अब तो उन के हाथों में बोतल देख कर मैं खुद को एक कमरे में बंद कर लेती हूं. वे बाहर बैठे मुझे धिक्कारते और उकसाते रहते हैं और कुछ देर बाद नींद और नशे में निढाल हो कर सो जाते हैं. सुबह उठ कर नशे में बोली गई आधीअधूरी याद, बदतमीजी के लिए मेरे पैरों पर गिर कर रोरो कर माफी मांग लेते हैं और जल्दी ही घर से बाहर चले जाते हैं.

‘ऊंचे सुरक्षित परकोटे के घर में मैं सब से सुरक्षित रिश्ते से ही असुरक्षित रह कर किस तरह दिन काट रही हूं, यह मैं ही जानती हूं. इस समस्या का समाधान मुझे दूरदूर तक नजर नहीं आ रहा है,’ कह कर सिर झुकाए बैठ गई थी लिपि. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी थी.

मैं सुन कर आश्चर्यचकित थी कि चौधरी साहब इतना भी गिर सकते हैं. लिपि अपने अविवाहित भाई रौनक के पास भी नहीं जा सकती थी और झांसी में उस की दीदी अभी संयुक्त परिवार में अपनी जगह बनाने में ही संघर्षरत थी. वहां लिपि का कुछ दिन भी रह पाना मुश्किल था.  घबरा कर लिपि आत्महत्या जैसे कायरतापूर्ण अंजाम का मन बनाने लगी थी. लेकिन आत्महत्या अपने पीछे बहुत से अनुत्तरित सवाल छोड़ जाती है, यह समझदार लिपि जानती थी. मैं ने उसे चौधरी साहब और रौनक के साथ गंभीरतापूर्वक बात कर उस के विवाह के बाद एक खुशहाल जिंदगी का ख्वाब दिखा कर उसे दिलासा दी. अब मैं उसे अधिक से अधिक समय अपने साथ रखने लगी थी.  मुझे अपनी बेटी की निश्चित डेट पर हो रही औपरेशन द्वारा डिलीवरी के लिए बेंगलुरु जाना था. मैं चिंतित थी कि मेरे यहां से जाने के बाद लिपि अपना मन कैसे बहलाएगी?

यह एक संयोग ही था कि मेरे बेंगलुरु जाने से एक दिन पहले रौनक लखनऊ से घर आया. मेरे पास अधिक समय नहीं था इसलिए मैं उसे निसंकोच अपने घर बुला लाई. एक अविवाहित बेटे के पिता की विचलित मानसिकता और उन की छत्रछाया में पिता से असुरक्षित बहन का दर्द कहना जरा मुश्किल ही था, लेकिन लिपि के भविष्य को देखते हुए रौनक को सबकुछ थोड़े में समझाना जरूरी था.  सारी बात सुन कर उस का मन पिता के प्रति आक्रोश से?भर उठा. मैं ने उसे समझाया कि वह क्रोध और जोश में नहीं बल्कि ठंडे दिमाग से ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचे जो लिपि के लिए सुरक्षित और बेहतर हो.

अगली सुबह मैं अकेली बेंगलुरु के लिए रवाना हो गई थी और जा कर अर्पिता की डिलीवरी से पूर्व की तैयारी में व्यस्त हो गई थी कि तीसरे दिन मेरे पति ने फोन पर बताया कि तुम्हारे जाने के बाद अगली शाम रौनक लिपि को झांसी भेजने के लिए स्टेशन गया था कि पीछे घर पर अकेले बैठे चौधरी साहब की हार्टअटैक से मृत्यु हो गई.

रौनक को अंदर से बंद घर में पापा टेबल से टिके हुए कुरसी पर बैठे मिले. बेचारे चौधरी साहब का कुछ पढ़ते हुए ही हार्ट फेल हो गया. लिपि और उस की बहन भी आ गई हैं. चौधरी साहब का अंतिम संस्कार हो गया है और मैं कल 1 माह के टूर पर पटना जा रहा हूं.’

चौधरी साहब के निधन को लिपि के लिए सुखद मोड़ कहूं या दुखद, यह तय नहीं कर पा रही थी मैं. तब फोन भी हर घर में कहां होते थे. मैं कैसे दिलासा देती लिपि को? बेचारी लिपि कैसे…कहां… रहेगी अब? उत्तर को वक्त के हाथों में सौंप कर मैं अर्पिता और उस के नवजात बेटे में व्यस्त हो गई थी.

3माह बाद ग्वालियर आई तो चौधरी साहब के उजड़े घर को देख कर मन में एक टीस पैदा हुई. पति ने बताया कि रौनक चौधरी साहब की तेरहवीं के बाद घर के अधिकांश सामान को बेच कर लिपि को अपने साथ ले गया है. मैं उस वक्त टूर पर था, इसलिए जाते वक्त मुलाकात नहीं हो सकी और उन का लखनऊ का एड्रैस भी नहीं ले सका.

लिपि मेरे दिलोदिमाग पर छाई रही लेकिन उस से मिलने की अधूरी हसरत इतने सालों बाद वैंकूवर में पूरी हो सकी.  सोमवार को नूनशिफ्ट जौइन करने के लिए तैयार होते समय मिताली ने कहा, ‘‘मां, मेरी लिपि से फोन पर बात हो गई है. मैं आप को उस के यहां छोड़ देती हूं. आप तैयार हो जाइए. वह आप को वापस यहां छोड़ते समय घर भी देख लेगी.’’

डर- भाग 1: समीर क्यों डरता था?

नेहा महतो के साथ शादी हो जाने के बाद मैं ने एक बड़ी मजेदार बात नोट की है. अब लड़कियों के बीच में मेरी लोकप्रियता पहले से ज्यादा बढ़ गई है. इस बदलाव का कारण भी समझ में आता है. जो चीज आप को आसानी से उपलब्ध नहीं हो, उस में दिलचस्पी का बढ़ जाना स्वाभाविक ही है. हमारे समाज में वैसे तो लड़कियों से मेलजोल आसान नहीं होता पर फिर भी पढ़ते समय, कालेज में, फैक्ट्री में जाते समय, खेत पर कुछ देनेलेने जाते समय मौके मिल ही जाते हैं.

लड़कियां बहुत सुंदर हों, ऐसा नहीं. पर इन के लटकेझटके बहुत होते हैं. कारों में बाप और भाई के घर से बाहर निकलते ही ये आजाद पंक्षी की तरह ऊंची उड़ानें भरनी शुरू कर देती हैं. लड़कियों के साथ फ्लर्ट करना मैं ने बंद तो नहीं किया है पर अब ऐसा करने में पहले जैसा मजा नहीं रहा. उन का दिल जीतने के लिए मेहनत करने का अब दिल नहीं करता. प्यारमोहब्बत की बातें कर के मामला आगे बढ़ाने का फायदा ही क्या जब इंसान उन के साथ मौजमस्ती करने की बात सोच कर मन ही मन भयभीत हो उठता हो?

मेरा कोई पुराना दोस्त कभी विश्वास नहीं करेगा कि मैं अब सिर्फ नेहा के साथ जुड़ा हुआ जी रहा हूं. उन सब का मानना था कि शादी हो जाने के बाद भी मेरा सुंदर लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसाने का शौक बंद नहीं होगा.

हम सब दोस्त मानते थे कि लडक़ी के साथ संबंध न बनें तो मर्दानगी कैसे होगी.

शादी होने तक मैं दसियों लड़कियों से लुकाछिपा का दोषी रहा था. मुझ पर शादी करने के लिए किसी ने जोर डालना शुरू किया या जिस ने सतीसावित्री बनने की कोशिश की, उस को मांबाप और खाप का डर व जाति क्षेत्र की बात कर एकतरफ कर देने में मैं ने कभी देर नहीं लगाई थी.

फिर एक वक्त ऐसा आया कि मेरे जानपहचान के दायरे में जितनी भी लड़कियां मौजूद थीं, वे कभी न कभी मेरी या मेरी किसी दोस्त की प्रेमिका रह चुकी थीं. बस, प्रेमिकाओं की अदलाबदली कर हम दोस्त अपनेअपने मुंह का स्वाद बदल लेते थे. एकदूसरे की जूठन से शादी कर के हंसी का पात्र बनने की मूर्खता करने को कोई तैयार नहीं था.

मुझ जैसे मौजमस्ती के शौकीन इंसान की जिंदगी में भी एक वक्त ऐसा आया कि मन में अपना घर बसाने की इच्छा बड़ी बलवती हो उठी. मुझे जब ऐसा महसूस हुआ तो मैं ने अपनी जीवनसंगिनी ढूंढऩे की जिम्मेदारी अपने मातापिता के ऊपर डाल दी.

नेहा महतो के साथ मेरा रिश्ता पक्का करने में मेरी बूआ ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी. वह हम सब को पहली नजर में पसंद आ गई थी.

रिश्ता पक्का हो जाने के बाद हम दोनों ने मोबाइल पर खूब बातें करनी शुरू कर दीं. सप्ताह में एकदो बार बाहर छिपछिप कर मिलने लगे. ऐसी हर मुलाकात के बाद मेरे दिल में उस के प्रति दीवानगी के भाव बढ़ जाते थे.

उस की पर्सनैलिटी में एक गहराई थी. ऐसी गरिमा थी जो कसबाई लड़कियों में नहीं होती. मैं ने अब तक  अपनी किसी पुरानी जानपहचान वाली नहीं पाई थी. उस की आंखों में झांकते ही मुझे अपने प्रति गहरे प्रेम और पूर्ण समर्पण के भावों का सागर लहराता नजर आता.

हम दोनों साथ होते तो हंसीखुशी भरा वक्त पंख लगा कर उड़ जाता. अभी और ज्यादा देर के लिए उस का साथ बना रहना चाहिए था, सदा ऐसी इच्छा रखते हुए ही मेरा मन उसे विदा लेता था. उस के भाई लोग बहुत सख्त थे. मैं भी बेकार का पंगा नहीं लेना चाहता था.

नेहा एक दिन मुझे अपने कालेज के दोस्त नीरज के घर ले कर गई. उस ने हमे लंच करने के लिए आमंत्रित किया था.

कुछ देर में ही मुझे यह एहसास हो गया कि नेहा को इस घर में परिवार के सदस्य की तरह से अपना समझा जाता था. नीरज चौधरी की पत्नी कविता उसे देख कर फूल सी खिल गई थी. उन के 3 साल के बेटे आशु का नेहा आंटी के साथ खूब खेलने के बाद भी दिल नहीं भरा था. उस का घर 2 कमरे का ही था पर लगता था कि वहां तो दिलों में जगह है.

‘समीर, नेहा का हमारी जिंदगी में बड़ा खास स्थान है. उस की दोस्ती को हम बहुमूल्य मानते हैं. हमारे इस छोटे से घर में तुम्हारा सदा स्वागत है.’ कविता के दिल से निकले इन शब्दों ने मुझे भी इस परिवार के बहुत निकट होने का एहसास कराया था.

मेरी खातिर करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. खाने में चीजें मेरी पसंद की थीं. अपनी भूख से ज्यादा खाने को मुझे उन दोनों के प्यार ने मजबूर किया था.

खाना खाने के बाद जब आशु सो गया तो उन तीनों के बीच सुखदुख बांटने वाली बातें शुरू हो गईं. पहले आशु को अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलाने पर चर्चा हुई. तय यही हुआ कि सरकारी स्कूल में भेजा जाए क्योंकि प्राइवेट में आगे चल कर पढ़ाई बहुत महंगी हो जाएगी.

मैं तो कुछ देर बाद इस चर्चा से उकता सा गया पर नेहा की दिलचस्पी रत्तीभर कम नहीं हुई. करीब डेढ़ घंटे के बाद जब 2 सरकारी स्कूलों के नाम का चुनाव हो गया तो उन सब के चेहरे संतोष व खुशी से चमक उठे थे.

इस के बाद नेहा की शादी के लिए चल रही खरीदारी चर्चा का विषय बनी. इस बार वार्त्तालाप कविता और नेहा के बीच ज्यादा हो रहा था पर नीरज का पूरा ध्यान उन दोनों की तरफ बना रहा, तो मैं अपने बजट के हिसाब से खरीदारी करना चाह रहा था.

मुझे एक बात ने खास कर प्रभावित किया. ये तीनों आपस में बहुत खुले हुए थे. एकदूसरे के समक्ष अपने मनोभावों को खुल कर व्यक्त करने से कोई भी बिलकुल नहीं हिचकिचा रहा था. हर कोई अपनी सलाह दोस्ताना ढंग से दे कर खामोश हो जाता. वह सलाह मानी भी जाए, ऐसा दबाव कोई किसी पर बिलकुल नहीं बना रहा था. हालांकि नीरज चौधरी के घरवालों के रिश्तेदारों में कई पुलिस व पौलिटिक्स में थे पर वह रोबदाब बनाने की कोशिश उस ने कभी नहीं की.

नीरज के माथे पर पुराने घाव का लंबा सा निशान था. इस के बारे में जानकारी प्राप्त करने की उत्सुकता मेरे मन में धीरेधीरे बढ़ती जा रही थी.

‘यह निशान कैसे मिला?’ मेरे इस सवाल को सुन वे तीनों ही खिलखिला कर हंस पड़े थे.

‘यह कैसे मिला और इस से क्या मिला, इन दोनों सवालों का जवाब जानने के लिए तुम्हें एक कहानी सुननी पड़ेगी, समीर,’ नेहा के इस जवाब ने पूरी बात जानने के लिए मेरी उत्सुकता और ज्यादा बढ़ा दी.

उस ने मुझे बताया कि कालेज के दूसरे साल में बाहर से आए कुछ बदमाश युवक जब उसे गेट के पास छेड़ रहे थे तब नीरज इत्तफाक से पास में खड़ा था. उस वक्त तक नेहा और उस की कोई खास जानपहचान नहीं थी.

नीरज ने जब अपने साथ पढऩे वाली नेहा को तंग किए जाने का विरोध किया तो वो लडक़े उस के साथ मारपीट करने पर उतर आए थे. नेहा के बहुत मना करतेकरते भी नीरज उन से लडऩे को तैयार हो गया था. नीरज कुश्ती वगैरह बचपन से करता था पर पांचपांच से भिडऩा तो आसान नहीं था.

Women’s Day Special: जीवन संवारना होगा

रातभर रमा मुझे मनाती रही और सुबहसुबह ही अजय गाड़ी ले कर आ गया, ‘‘चलो बूआ, कुछ दिन हमारे पास ही रहना. मन नहीं लगेगा तो वापस छोड़ जाऊंगा.’’

रमा ने मेरा सामान जल्दी से पैक करवा लिया. अल्सर का औपरेशन हुआ है मेरा जिस की वजह से काफी कमजोरी भी लग रही थी मुझे.

‘‘भाभी कब से देखभाल कर रही हैं, कुछ दिन उन्हें भी आराम हो जाएगा और मायके की सैर भी हो जाएगी आप की. और बूआ, मायके से तो सभी मोटे हो कर आते हैं. आप भी मोटी हो कर आएंगी. देख लीजिएगा, मायके की हवा ही कुछ ऐसी होती है,’’ अजय ने ठिठोली की.

रमा के परिवार में हर पल हलकीफुलकी फुहार बहती है. गंभीर विषय को भी मजाक में उड़ा देना परिवार वालों की आदत है. ऐसा लगता है मुझे, जैसे उन्हें हर बात एक सी लगती है. समस्या आ जाए तो भी हंसते रहना और समस्या न हो तो भी मस्त रहना. अच्छा नहीं लगता मुझे किसी का बिना वजह खुश रहना. बिना वजह दुखी रहने की वजह जो हर पल ढूंढ़ लेती हूं इसलिए खुश रहना भला मुझे पसंद क्यों आएगा.

मायके पहुंची तो सब ने मुझे हाथोंहाथ लिया. बहू ने झट से मेरा सामान रमा की अलमारी में एक खाना खाली कर के लगा दिया. दवाएं एक ट्रे में रख सिरहाने सजा दीं. खाना खाने लगे तो बड़ा विचित्र लगा मुझे. रमा की बहू ने मेरा खाना अलग ट्रे में सजा रखा था जो सिर्फ मुझे ही खाना था. उन का खाना अलग था. मेरा खाना किसी ने नहीं छुआ था. मैं ने अपनी दाल उन्हें खाने को कहा तो हंस पड़ा था अजय, ‘‘आप की दाल में नमकमसाला कम है न बूआ, सब्जी भी अलग है. मैं तो आप की दाल खा लूंगा फिर आप मेरी कैसे खाएंगी?’’

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‘‘मेरी दाल पर मेरा नाम लिखा है क्या जो मेरी दाल मैं ही खाऊंगी और तुम नहीं खा सकोगे.’’ तुनकना तो मेरा स्वभाव है ही. तेरी दाल और मेरी दाल पर ही तुनक गई.

‘‘आप की दालसब्जी में अलग घी डाला गया है न बूआ, एक तरह से आप का ही नाम लिखा है उस पर,’’ हंस पड़ी थी रमा की बहू.

बड़ा विचित्र लगा था मुझे. सभी बड़े स्नेह से खाना खाते रहे थे. बहू भी हंस रही थी. कितनी मस्ती में है न रमा की बहू. इस की इतनी हिम्मत जो आगे से जवाब दे. अगर मैं ने कह ही दिया है मेरी दाल अजय खा ले तो खा लेता न. इतने सवालजवाब क्यों? मूड बिगड़ गया मेरा. दाल एक तरफ सरका दी मैं ने. बूआ हूं मैं अजय की, इस घर की बेटी हूं. मेरी इतनी तो सुनवाई होनी ही चाहिए, न कि मैं कुछ कहूं और सब आंखकान बंद कर लें.

‘‘क्या हुआ, दीदी? थाली क्यों सरका दी? खाना खाइए न?’’

‘‘मुझे भूख नहीं है.’’

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‘‘भूख कैसे नहीं है, अभी तो आप कह रही थीं कि पेट में तेजाब बन रहा है. खाली पेट और तेजाब बनेगा. आप खाना तो खाइए. दाल को ले कर क्यों उलझ रही हैं. आप की दालसब्जी बिलकुल फीकी है. अजय को आप की दाल खाने से कोई परहेज नहीं. वह आप का साथ देने के लिए फीकी ही खा लेगा, लेकिन फिर आप क्या खाएंगी? आप की दालसब्जी खत्म हो जाएगी न. चलिए खाइए, कल से मैं आप का साथ दूंगी. मेघा, कल मेरी और दीदी की दालसब्जी एक ही बनाना.’’

‘‘बूआजी तो बीमार हैं. उन्हें तो कुछ दिन बिलकुल फीका खाना है, यह उन की मजबूरी है. आप एकदम फीका खाएंगी तो आप का ब्लडप्रैशर और कम हो जाएगा, मम्मी. चलिए, कुछ दिन मैं ही फीका खा लूंगी. बूआजी, कल से मेरी व आप की ट्रे एक होगी और इन की अलग.’’

रमा की बहू ने मेरा साथ देने का जिम्मा ले लिया और किस्सा खत्म. उस के बाद 4 दिन बीत गए. वह मेरे साथ ही खाना खाती थी. 5वें दिन इतवार था. उस दिन अजय ने मेरा साथ दिया. एकदूसरे की चिंता थी उन्हें.

‘‘चलो, आज मैं बूआ का साथ देता हूं,’’ अजय ने मुझे खुश करने के लिए मेरे ही साथ खाना खाया और आधा ही पेट खा पाया. रमा और बहू उस पल जरा सी नाराज दिखीं मुझे.

‘‘पूरे हफ्ते औफिस में काम होता है तो ढंग से खा नहीं पाते. कम से कम आज इतवार को तो भरपेट खाइए. हो गया न बूआजी का साथ, अब चलिए, अपना खाना खाइए.’’

‘‘तुम भी तो पिछले 4-5 दिन से खा रही हो. आधा पेट ही खाती होगी न. बरसात में तो तुम्हारे शरीर की नमकचीनी भी कम हो जाती है. यह क्या तमाशा है भई, लाड़प्यार की भी एक हद होती है. जो बीमार है उस की तो मजबूरी है फीका व उबलाखाना. सारे घर का काम तुम अकेली करती हो, कमजोरी आ गई तो हो जाएगी सेवा. तब बूआ की सेवा कैसे करोगी? जवान इंसान की खुराक में ज्यादा घी, ज्यादा नमकचीनी होनी चाहिए क्योंकि उस की ताकत इस्तेमाल होती है. यह सब नहीं चलेगा. सब का अपनाअपना पेट है और सब के शरीर की अपनीअपनी जरूरत. कल से बूआजी अकेली अपना खाना खाएंगी. ऐसा नहीं न होना चाहिए कि बूआ तो ठीक हो जाएं और 2 बीमार नए तैयार हो जाएं.’’

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पतिपत्नी की बातें कानों में पड़ीं. पहली बार मुझे कुछ समझ में आया. मेरे बच्चे तो मुझे खुश करने के लिए वही खाना खाते हैं जो मैं खाती हूं. क्या वे भी आधे पेट ही उठ जाते होंगे? कुछ दिन पहले मुझे याद है देव अपने दोस्त से फोन पर बात कर

रहा था कि उसे उस के घर का खाना बड़ा अच्छा लगता है. वह कह रहा था, ‘मेरे घर वालों को तो खाना बनाना ही नहीं आता.’

क्या सचमुच मेरी बहू को खाना बनाना नहीं आता? आता है, आता क्यों नहीं. जब ब्याह कर आई थी तब सारा परिवार साथसाथ था और रोज का नया व्यंजन एक विषय होता था कि आज भाभी ने क्या बनाया है. मेरे पति दिनरात तारीफ करते थे कि उन की बहू कमाल की कुक है. खुश थे सभी, सिवा मेरे. एक नारीसुलभ जलन कि आज तक मेरे खाने की तारीफ तो किसी ने नहीं की. गुस्सा जताया भी था मैं ने.

‘ऐसा नहीं है कि तुम अच्छा खाना नहीं बनाती हो. अरे, सास बन कर बड़प्पन दिखाओ. तुम तो बहू से भी छोटी बन कर जलने लगी हो. नया बच्चा परिवार में आया है, उस के प्रयास की हम तारीफ नहीं करेंगे तो उसे हौसला कैसे मिलेगा. उस की तारीफ करने का मतलब यह नहीं है कि हम सब तुम्हारा बनाया खाना पसंद नहीं करते. अरे भई, पिछले 30 साल से तुम्हीं खिला रही हो न. कितनी ओछी बात करती हो, छि:.’

एकाएक वे नाराज हो गए थे मुझ से. बहू से मेरी जलन और बढ़ गई थी. कल की आई लड़की की वजह से मेरे पति ने मुझे जलीकटी सुना दी थी. शायद मैं ऐसी ही हूं. मायके में लाड़ली थी जिस वजह से सब की नजरें सदा मुझ पर ही रहीं. किसी की नजरें मुझ से हट कर कहीं और गईं नहीं कि मेरी जलन बढ़ी नहीं. तीनों भाई हाथोंहाथ लेते रहे थे. कभी किसी ने टोका नहीं था. भाभियों की भी मजाल नहीं थी. बस, सब से छोटी भाभी रमा ही थी जो टोकती थी और जिस से सदा मेरी दुश्मनी ही रही थी.

‘मैं चापलूसी कर के आप की गलत आदतों को बढ़ावा नहीं देना चाहती हूं, दीदी. आगे चल कर यही आदतें आप की तकलीफ और बढ़ा देंगी. आप सब को अपने अनुसार चलाना चाहती हैं जो सही नहीं है. कोई अपना जीवन अपने तरीके से जीता है तो आप कुहराम मचा देती हैं. दोनों बड़ी भाभियां भी इसीलिए घर छोड़ कर चली गईं कि उन्हें आप का दखल पसंद नहीं था. मांपापा आप के मांबाप हैं, वे सह सकते होंगे, कोई और क्यों सहेगा. आप का अपना जीवन है, आप के भाइयों का अपना. कोई 2-4 दिन आप को खुश कर सकता है लेकिन सदा कोई क्यों आप का ही चाहा करे?’

देव और मेरी बहू, मेरे पोतापोती वास्तव में वही खाते हैं जो मैं चाहती हूं. और कहीं मेरा बस नहीं तो खाने के बरतनों पर ही मेरा पूरापूरा बस है. आज चावल नहीं बनेंगे तो नहीं बनेंगे. किसी की क्या मजाल जो मनचाहा बना कर खा ले. घर में किसी तरह शांति रहे, इसीलिए कोई कुछ नहीं कहता. बच्चों को यही पता है कि उन के घर में किसी को खाना बनाना ही नहीं आता.

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‘दादी, श्राद्ध कब आएंगे? मुझे श्राद्ध बड़े अच्छे लगते हैं,’ मेरी 10 साल की पोती ने पूछा था. हैरान रह गई थी मैं. इतने छोटे बच्चे दीवाली का इंतजार तो करते हैं श्राद्धों का इन्हें क्या पता?

‘तब घर में कितना अच्छा खाना बनता है, इतना स्वाद.’

बहू ने डपट दिया था बच्ची को. हाथ पकड़ कर मेरे कमरे से बाहर ले गई थी.

आज मन भर आया है मेरा. रमा के बच्चों की बातें सुन कर कड़वाहट भी हो रही है और अपनेआप पर अफसोस भी. श्राद्ध में मरे हुए नातों का खयाल तो रखती हूं स्वादिष्ठ खाना बना कर और जो जिंदा नाते हैं उन्हें तरसातरसा कर मार रही हूं. मैं बीमार हूं. मेरी उम्र भी तो 60 साल की है. 40-50 साल तक मैं ने तो मनचाहा खाया ही है न. तीखा, खट्टा, करारा, मीठा और भारी खाना. मेरा तो आज छूटा इतनी उम्र भोग कर और बच्चों का मैं ने 10 साल की उम्र में ही छुड़ा दिया. वे बेचारे श्राद्धों का इंतजार करते हैं जब पंडितों के साथ उन्हें भी करारा चटपटा स्वादिष्ठ खाना खाने को मिलता है. क्या करें, पोंगापंडितों ने समाज  में श्राद्ध के नाम पर इतना अंधविश्वास फैला रखा है कि जब तक उन्हें श्राद्ध के समय भरपेट स्वादिष्ठ भोजन नहीं खिलाया जाएगा तब तक मरने वालों की आत्मा की शांति नहीं मिलेगी. मैं भी उस परंपरा को तोड़ नहीं पाई थी. शायद बच्चे न निभा पाएं. खैर, सहसा आत्मग्लानि होने लगी है मुझे. बेचारे, बाजार में खाने के शौकीन होते जा रहे हैं जिस वजह से उन का पेट भी खराब रहता है और खर्चा भी ज्यादा होता है. रमा यही तो समझाती रही है सदा मुझे. औरों को मैं अपने साथ न चलाऊं. औरों को जीने दूं और खुद भी जिऊं. मैं तो न खुद चैन से जीती हूं न अपने घर वालों को जीने देती हूं.

रमा के परिवार में सब रमा का कितना खयाल रखते हैं. मेरे पति और मेरा भाई दोनों ही इस संसार से विदा ले चुके हैं और हम दोनों औरतों के जीवन की सांझ में जमीनआसमान का अंतर है. रमा की बहू से रमा का दोस्ती का रिश्ता है और मेरा अपनी बहू से किसी प्रतिद्वंद्वी जैसा, जिस से सदा मुझे हार जाने का डर लगा रहता है. कैसी जीत है जिसे जीत कर भी हारने जैसा लगने लगा है आज.

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हफ्ता भर तो होने ही लगा था मुझे रमा के पास आए हुए. अच्छा हुआ चली आई, जरा सी समझ तो आई. कोई अपना मन और जरूरतें मारमार कर कब तक मेरी सेवा करेगा? सेवा करने से किसी को इनकार नहीं मगर मेरे ही खाने को सब खाएं, यह कैसा अधिकार और कैसा लाड़प्यार? एक इंसान के साथ सभी बीमार हो जाएं, इस में कैसी जिद? पुरानी पीढ़ी की हूं न इसलिए नई पीढ़ी को सदा कोसते ही रहने का अधिकार मानो आरक्षित है मेरे पास.

बेचारे मेरे बच्चे तो चूं तक नहीं करते. रसोई में वही बनता है जो मैं चाहती हूं. सिर्फ इसलिए कि घर में शांति का माहौल रहे. और यही शांति मुझे अच्छी नहीं लगती. कोई हंसता नहीं है मेरे घर में. जराजरा समझ रही हूं. समझाया तो मुझे रमा ने पहले भी था. तब शायद मैं न समझने की जिद लिए बैठी थी. शायद अधिकार मेरे हाथ से छूट न जाए, इसीलिए रसोई में ही अपना वर्चस्व बना लिया था. बेटा, बेटा होने की सजा भोग रहा है, शायद दूध का कर्ज उतार रहा है.

‘‘मां, ढोकला बनाओ न आज.’’

‘‘नहीं बेटा, वह बहुत तीखा होता है न, बूआजी नहीं खा पाएंगी.’’

‘‘वे न खाएंगी तो न सही, हमें तो खाना है.’’

‘‘नहीं बेटा, समझा करो. जब तक बूआजी यहां हैं ऐसी चीजें नहीं बनेंगी.’’

‘‘तो बूआजी जाएंगी कब?’’

‘‘ऐसा नहीं कहते बेटा. पापाजी की बहन हैं वे. दादी मां हैं. जिस तरह यह तुम्हारा घर है उसी तरह यह उन का भी घर है.’’

‘‘मैं ने कब मना किया? लेकिन हमें खाने तो दें.’’

सब दुखी होने लगे हैं मुझ से. मुझ से नहीं शायद मेरी इस जिद से कि घर में सब मेरा साथ दें. मेरे जाने का इंतजार इन बच्चों को है क्योंकि यहां तो मात्र मेहमान हूं मैं. अपने घर वाले शायद मेरे सदा के लिए चले जाने का इंतजार करते होंगे. सोचते होंगे कब दादी जाएं और मनचाहा कुछ बना कर खा पाएं.

अपने बेटे को फोन कर दिया मैं ने. इतवार था. नाश्ते के बाद वह आ गया लेने.

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‘‘अरे, आप कैसे, आ भी गए? न फोन न कोई सूचना. उदास हो गए क्या अपनी मां के बिना? अरे भई, हमारा भी हक है इन पर. मिलने आए हैं तो ठीक है, जाने नहीं देंगे अभी.’’

‘‘यहां काम से आया था, सोचा, मां को भी लेता जाऊं.’’

अप्रत्याशित सी थी मेरी वापसी. उन्हें मेरा जाना अच्छा नहीं लग रहा था. आज स्वीकार करती हूं मैं ने अपनी जिद से सब को दुखी किया है. फिर भी सब मुझे प्यार करते हैं. परेशान न किया होता तो और भी प्यार करते. रमा ने सुंदर साड़ी दे कर विदा किया. बच्चे भी उदास लगे.

अच्छा लगता है न, जाते हुए सब के उदास चेहरे देखना. अब मैं चाहती हूं जब मैं संसार से जाऊं तब मेरे अपने बच्चों के चेहरों पर भी आंसू हों. मेरा प्यार और ममत्व उन्हें रुलाए. उन की दोस्त बनना होगा मुझे. बहू की भी मित्र बनना होगा. मरने का मजा भी तभी आएगा न जब सब चीखचीख कर रोएंगे.

Women’s Day Special: अजातशत्रु- मां घर छोड़कर क्यों चली गई?

मां को जाना था, चली गईं. सब ने शांति की सांस ली, जैसे मां का रहना सब पर बोझ रहा हो. जबकि मां अपना कोई काम किसी से नहीं कराती थीं. वे खुद ही इतना सामर्थ्य रखती थीं कि दूसरों के दो काम कर सकती थीं. विशेषरूप से बेटू और उस की पत्नी मानसी बेहद प्रसन्न थे क्योंकि उन के सपनों को पंख लग गए थे और अब सफलता कुछ ही कदम की दूरी पर थी. आलीशान 6 कमरों वाली कोठी, कोठी के सामने बड़ा सा हरा मखमली लौन, तरहतरह के पेड़पौधे, लौन में एक झूला, 2 प्रकाश स्तंभ मेन गेट पर और 2 कोठी के मुख्यद्वार पर. ऐसे मृदुल सपने जाने कब से बेटू और मानसी की आंखों में पल रहे थे, लेकिन मां इन सपनों के बीच रोड़ा बनी थीं. उन के रहते उन के सपनों में रंग नहीं भर पा रहे थे. बड़ी खीज होती थी उन दोनों को. उन्हें लगता कि मां सारे धन पर कुंडली मारे बैठी हैं. किसी को कुछ बताती भी नहीं हैं और न किसी से कुछ मांगती हैं. बेटू ने लाख उगलवाना चाहा, लेकिन मां चुप्पी साध गईं. अधिक जिद करने पर कहतीं-

‘बेटू, तू व्यर्थ की जिद न कर. जो बात तेरे जानने की नहीं है, हमेशा उसी को जानने के लिए कलह क्यों करता है? मैं तुझ से कोई उम्मीद तो नहीं रखती.’ ‘मां, यदि मुझे बता दोगी तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा? क्या मैं छीन लूंगा? तुम्हें अपने बेटे पर विश्वास नहीं है?’

‘हां, यही समझ ले कि नहीं है. बस, तू मुझे परेशान मत कर.’

‘नहीं करूंगा. तुम मेरे साथ चलो. यहां अकेली रहती हो. कोई ऊंचनीच हो गई तो कौन देखेगा?’ ‘जो बात हुई ही नहीं उस की चिंता क्यों करता है? फिर ऊंचनीच तो कहीं भी, किसी के साथ भी हो सकती है. यहां इतने अपने लोग हैं. कोई भी संभाल लेगा. रोमेश और उस की बहू मेरा बड़ा ध्यान रखते हैं.’ ‘अपनों से ज्यादा गैरों पर विश्वास करती हो?’ ‘यही समझ ले. गैर एहसान तो नहीं जताते. अपने तो अपने होने का एहसास हर पल कराते रहते हैं. जहां अपने नहीं होते वहां गैर अपनों से ज्यादा होते हैं.’

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मां बहस पर उतर आतीं. बेटू को थक कर चुप हो जाना पड़ता. एक दिन बेटू बोला, ‘मां, सुमित इस कोठी के 1 करोड़ रुपए दे रहा है. इस से ज्यादा कोई क्या देगा? 40 साल पुरानी हो गई है. बेचनी तो पड़ेगी ही. जगहजगह से चूना झड़ रहा है. अब पुणे से हम से बारबार नहीं आया जा सकता.’ ‘तो इस बार निश्चय कर के ही आया है कि कोठी बेच कर ही जाएगा. पर मैं ने कहा था कि मेरे रहते कोठी नहीं बिकेगी. मैं अपनी छत क्यों दूं?’

‘इसलिए कि मैं अपनी छत बना लूं.’

‘क्या गारंटी है कि इसे बेच कर तू अपनी छत बना लेगा. कल मैं भी बिना छत के हो जाऊंगी. आज मेरा एक ठिकाना तो है. कहने को अपना घर है. तू अपनी छत अपनी मेहनत से बना. यह तेरे पिताजी की मेहनत की कमाई से बनी है. वे तो चले गए. अब इसे भी जाने दूं. तू नहीं समझेगा. मुझे इस से अपने प्राणों से भी ज्यादा मोह है. यह घर ही नहीं, मेरा सुरक्षा कवच भी है. बड़ी मेहनत से बनाया है.’

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‘मां, तुम अपनी जिद नहीं छोड़ोगी?’

‘नहीं, छोड़ भी देती यदि तू ने कोई जमीन का टुकड़ा ले कर डाला होता. मुझे लगता कि तू गंभीरता से मकान बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. 20 साल हो गए तुझे कमाते. तुझ से जमीन का टुकड़ा नहीं खरीदा गया.’

‘मां, कुछ बचता ही नहीं.’

‘यह तेरी सिरदर्दी है. बचाना चाहेगा तभी बचाएगा न. वहां परदेस में पड़ा क्या कर रहा है, यहीं लौट आ.’

‘मां, तुम बेसिरपैर की बातें करती हो. यहां आ कर क्या करूंगा? वहां का जमाजमाया काम छोड़ कर बच्चों को भूखा मार दूं?’

‘नहीं आ सकता तो वहीं रह. मेरा सिर न खा.’ भिन्ना उठा बेटू और फिर कभी न लौट कर आने की कसम खा कर चला गया. उस दिन से मां ने भी किसी से कोई उम्मीद करनी छोड़ दी. अपनी अकेली दुनिया में ही जीने लगीं. मन को समझा लिया कि जिन के बेटाबेटी नहीं होते या परदेस में जा कर बस जाते हैं वे क्या मर जाते हैं? कुछ दिन के लिए जीवन में ठहराव सा आ गया. मन थोड़ा परेशान रहा, लेकिन वे वक्त की गर्द झाड़ उठ खड़ी हुईं. जीवन फिर राह पर आ गया. शांत प्रकृति की शांता व्यर्थ के आडंबरों से दूर अपनी दुनिया में मस्त रहतीं. ज्यादा शोरगुल, ज्यादा बातचीत उन्हें कभी नहीं सुहाती. उन के पति श्यामलाल भी उन्हीं की तरह शांत प्रकृति के थे. उन के जाने के बाद शांता और भी शांत हो गईं. उन्हें लगा कि जीवनभर वे अपने लिए जीती रहीं, ओढ़तीबिछाती रहीं, जिस समाज ने उन्हें सम्मान, घरपरिवार दिया, उस के प्रति भी कुछ फर्ज बनता है. अब कोई जिम्मेदारी भी नहीं है, थोड़ा वक्त भी है. यह सोच कर उन्होंने एक एनजीओ की सदस्यता ले ली और बच्चों को हस्तशिल्प का प्रशिक्षण देने लगीं. बेकार पड़ी चीजों से वे काम की चीजें बनवा लेतीं. यह शौक उन्हें पहले से था. उन्हें पता ही न चलता कि वक्त कैसे खिसक रहा है. धीरेधीरे शांता अशक्त होने लगीं. उम्र अपना प्रभाव छोड़ने लगी. उन्होंने एनजीओ जाना तक बंद कर दिया. घर पर ही बच्चों को सिखाने लगीं. कुछ अतिरिक्त आमदनी भी हो जाती. वरना श्यामलाल द्वारा छोड़े गए पैसों से ही घरखर्च चलातीं. बूंदबूंद रिसने से भरा घड़ा भी खाली होने लगता है. वह तो उन्होंने होशियारी से काम लिया. श्यामलाल द्वारा छोड़े गए पैसों की बैंक से एफडीआर बनवाई और उस से मिलने वाले ब्याज से वे अपना काम चलातीं. घर में एक किराएदार भी रख लिया. देखभाल के साथ किराए की आमदनी भी हो जाती. फिर भी खूब मितव्ययिता से खर्च करतीं, पर जरूरतमंद की सहायता अवश्य करतीं. यह जीवन भी उन्हें रास आ रहा था. कभीकभी बेटी समिधा उन के पास आ जाती या वे उस के पास चली जातीं. समिधा ज्यादा दूर नहीं थी. इस बार समिधा आई तो मां को मोबाइल खरीद व उस में पैसे डलवा कर दे गई. मां को मोबाइल चलाना भी सिखा गई. जरूरी नंबर उस में डाल दिए. अब शांता के लिए आसानी हो गई. अब वे फोन कर के इलैक्ट्रीशियन या प्लंबर को बुला लेतीं. स्वयं उन्हें दौड़ना न पड़ता, न किसी पड़ोसी को परेशान करना पड़ता. किराने का सामान भी फोन पर ही लिखवा देतीं. दुकान का नौकर सामान रख जाता. समिधा के साथसाथ वे अन्य रिश्तेदारों से भी बातें कर लेतीं. यानी टूटते संपर्क फिर से ताजगी से भर गए.

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समिधा कुछ पोस्टकार्डों पर पते लिख कर और दोचार बौलपैन भी मां की अलमारी में रख गई और कह गई कि मां, चिंता न करना. बीचबीच में आती रहूंगी. पुत्री का स्नेह पा कर पुत्र की तरफ से जो परेशानी उन के दिमाग पर छा गई थी, दूर हो गई. समिधा हर महीने मां का मोबाइल रिचार्ज करा देती. वक्त अपनी गति से चलने लगा. काफी समय से समिधा को मां का न फोन मिला, न पत्र, मां का मोबाइल भी स्विच औफ आता. कई बार सोचा कि जा कर मां का हालचाल ले लूं. पर चाह कर भी गृहस्थी से न निकल पाई. वह रिश्तेदारों से फोन कर मां की कुशलता लेती रहती. उन्हीं से पता चला कि मां का मोबाइल खो गया है. शांता को हमेशा पुत्र का भय लगा रहता. रोज ही अखबार में ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती थीं कि पुत्र ने संपत्ति के लिए पिता को गोली मार दी, मां और भाई को फावड़े से काट डाला आदि. बेटू की नीयत पर उन्हें हमेशा शक रहता. जब भी बेटू आता, वे बेशक बाहर से बोल्ड बनी रहतीं लेकिन अंदर ही अंदर डरती रहतीं और उन्हें अपनी जान का खतरा बना रहता. पता नहीं बेटू कब, क्या कर दे. यह नहीं कि वे बेटू को प्यार नहीं करती थीं, लेकिन प्यार का यह मतलब नहीं कि बेटू से सम्मान और आदर की जगह गालियां खाएं, अपना अपमान और निरादर कराएं. उस की हरकतों के चलते उन का मन उस की तरफ से हटने लगा था, पर वे अपनी मनोस्थिति किसी पर भी प्रकट न करतीं.

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हां, इन दिनों उन्होंने वकील से मिल कर अपनी समस्त चलअचल संपत्ति की वसीयत समिधा के नाम बनवा दी. बैंक में जितना भी पैसा था, सब में समिधा को नौमिनी बनवा दिया. समिधा को आर्थिक मदद की जरूरत थी क्योंकि उस के पास कोई और सहारा नहीं था. धैर्य जब गर्भ में था तभी संयम एक दुर्घटना में चल बसे थे और तभी से समिधा अपना संघर्ष अपनेआप कर रही थी. समिधा का दुख उन्हें चैन से बैठने न देता. वे अपने मन की बात केवल समिधा से ही कर सकती थीं. अभी भी उस की मदद करती रहतीं. बेटू हमेशा इसी ताकझांक में रहता कि मां अपना सबकुछ बेटी को न पकड़ा दें और वह हाथ मलता ही रह जाए. इसीलिए वह समस्त संपत्ति अपने नाम कराने के लिए तरहतरह के हथकंडे अपनाता. ऐसा नहीं कि शांता कुछ समझती न थीं. बेटू में तो इतना भी अपनापन नहीं था कि कभी बहन का सुखदुख बांटता. वे उस की लालची प्रवृत्ति से परिचित थीं. लेकिन उन्होंने अपनी सोचों की भनक किसी को भी न लगने दी. वे समिधा के नाम वसीयत करा कर और अपने खातों में उसे नौमिनी बना कर निश्ंिचत हो गईं कि यदि वे चली भी गईं तो समिधा को परेशानी नहीं होगी. उस का जीवन आराम से कट जाएगा. अभी बैंक से लौट कर बैठी सुस्ता ही रही थीं कि डोरबैल बजी. उन्होंने उठ कर दरवाजा खोला. सामने बेटू खड़ा था.

‘तू, इस समय?’ उसे अचानक अपने सामने देख कर शांता अचंभित हो गईं.

‘क्या मैं यहां नहीं आ सकता? आप इस तरह क्यों चौंक गईं?’

‘क्यों नहीं आ सकता लेकिन जब भी आता है फोन कर के आता है. इस बार अचानक बिना बताए…?’

‘मां, दिल्ली काम से आया था. सोचा आप से भी मिल लूं.’

‘अच्छा किया, आ, अंदर आ, आराम से बैठ.’

समिधा के पास अचानक एक दिन चाची का फोन आया कि समिधा, दीदी नहीं रहीं. पिछले कई दिनों से तबीयत थोड़ी ढीली चल रही थी. हम ने बेटू को भी फोन कर दिया है. यह सुन कर समिधा सन्न रह गई. मां ऐसे कैसे जा सकती हैं? जरूर मां के साथ ऐसा कुछ घटा है जिसे मां ने किसी को नहीं बताया. समिधा कहां रुकने वाली थी. बेटू से पहले उसे मां के पास पहुंचना था. समिधा सूचना मिलने के 2 घंटे में ही मां के पास पहुंच गई. उस के पहुंचने के पहले ही आसपास के रिश्तेदार आ चुके थे. मां को देख कर समिधा फूटफूट कर रोने लगी. आज मां ही नहीं, उस का मायका भी समाप्त हो गया. दुखी मन से मां के पास बैठी समिधा को अचानक याद आया कि मां रोज डायरी लिखा करती थीं. उस ने तुरंत मां की अलमारी खोल कर डायरी निकाल ली. और अंतिम पृष्ठ खोल कर पढ़ने लगी. उस पर 2 दिन पहले की तारीख पड़ी थी. मां ने लिखा था-

‘‘आज बेटू आया है. उस ने सारा गुस्सा थूक दिया है. बड़े प्यार से मिला है. घर का सारा सामान भी लाया है. प्रेमपूर्वक कुशलक्षेम भी पूछा है. बाजार से गाजर का जूस लाया है. उस ने 2 गिलासों में डाला है. मेरे गिलास में कुछ डाला है, कह रहा है मसाला है, इस से स्वाद बढ़ जाएगा. अपने जूस में दूसरी पुडि़या से मसाला डाला है. हम दोनों ने जूस पिया है. मुझे स्वाद कुछ अच्छा नहीं लगा. बेटू ने गिलास धो कर रख दिए हैं. ‘‘‘मां, जरा बाहर घूम आऊं. थोड़ी देर में आता हूं. आप दरवाजा बंद कर लेना,’ कह कर बेटू बाहर चला गया. मैं दरवाजा बंद करने के लिए उठती हूं. दरवाजा बंद कर डायरी लिखने बैठ जाती हूं. मन शांत है पर हलकेहलके चक्कर आ रहे हैं. अब मैं डायरी बंद कर लेट रही हूं.’’

इस के आगे के पृष्ठ खाली हैं. यानी बेटू ने ही जूस में कुछ मिला कर… समिधा का सिर घूमने लगा. इस का मतलब मां की मृत्यु को 2 दिन हो गए और बेटू यहीं कहीं है और शीघ्र ही आ जाएगा. उस ने मोबाइल खोजा. मोबाइल बिस्तर के नीचे छिपा कर रखा गया था पर औफ था. उस ने उसे औन कर के देखा. मां ने 4 माह पहले किसी न पहचाने नंबर पर कई बार बात की थी. समिधा ने फोन किया, ‘‘मैं समिधा, कांताजी की बेटी बोल रही हूं. आप को मां फोन करती थीं. आप कौन हैं…’’

‘‘अच्छा, आप समिधा हैं? कांताजी कैसी हैं.’’

‘‘मां का कल देहांत हो गया.’’

‘‘ओह, बहुत अफसोस हुआ. आप को एक बात बताने के लिए कांताजी ने कहा था. आप मुझे अपने फोन से फोन करें.’’ समिधा ने उस नंबर पर बात की. उस के रोंगटे खड़े हो गए पूरी बात सुन कर. उस का मन हुआ, बेटू के आने से पहले डाक्टर और पुलिस को फोन कर दे. मां का पोस्टमार्टम होना चाहिए. मां मरी नहीं मारी गई हैं. मातृहंता को जेल की सलाखों के पीछे होना चाहिए. अचानक दूसरा विचार मन में उठा. यदि बेटू सलाखों के पीछे चला जाता है तो उस के परिवार का क्या होगा? मां तो लौट कर आने से रहीं. और यदि यह सिद्ध नहीं हुआ कि बेटू ही…? शायद मां की गति ऐसे ही होनी थी. सब मां की मौत को स्वाभाविक ही मान रहे हैं. समिधा ने जा कर मां की अलमारी टटोली. उस में से मां की चैकबुक, पासबुक और जेवर गायब थे. हां, थोड़ी नकदी जरूर रखी थी. समिधा का मन हुआ कि चीखचीख कर सब को बता दे कि मां स्वाभाविक मौत नहीं मरी हैं. मां का असली हत्यारा कौन है. वह अलमारी बंद कर मुड़ी तो पीछे बेटू को खड़ा पाया. उस की आंखों में ऐसा कुछ था कि समिधा सहम गई.

‘‘तू इतनी जल्दी पुणे से कैसे आ गया, बेटू?’’

‘‘मैं तो यहां परसों ही आ गया था और कल मामाजी के यहां चला गया था. वहीं मां की मृत्यु की सूचना मिली. तू मां की अलमारियों में क्या तलाश रही थी?’’

‘‘जो तू नहीं तलाश सका. मां की मौत के दस्तावेज,’’ कह कर समिधा मां के पास जा कर बैठ गई.

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