सारी उम्मीदें टूटने लगी थीं. सैलाब की त्रासदी को हुए 1 महीने से भी ज्यादा का समय बीत चुका था. परिवार के लोगों ने सब जगह भटक कर देख लिया था, मगर चारधाम की यात्रा पर गए जानकीदास का कुछ भी अतापता नहीं था.

जानकीदास का नाम न तो जिंदा बचने वालों की सूची में था, न ही मरने वालों की सूची में.

जानकीदास मलबे के किसी ढेर के नीचे दबे थे, सैलाब के भयानक और तेज बहाव के साथ बह कर किसी खड्ड या नदी में चले गए थे, इस के बारे में कोई भी ठीक से कुछ नहीं कह सकता था. उन को अनगिनत लापता लोगों में शामिल माना जा सकता था.

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वास्तव में चारधाम की तीर्थयात्रा करने की जानकीदास की इच्छा बहुत पुरानी थी, मगर आर्थिक तंगी के कारण वे अपनी इस इच्छा को पूरा नहीं कर सके थे.

जब घर का खर्च ही बड़ी मुश्किल से चलता था तो किसी तीर्थयात्रा के लिए पैसे कहां से आते? लेकिन इस बार तो जैसे मौत ने खुद ही जानकीदास के लिए चारधाम की यात्रा का इंतजाम कर दिया था.

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जानकीदास काल के गाल में जाने के लिए ही चारधाम की यात्रा पर गए थे.

वास्तव में शहर की एक धार्मिक संस्था ने किसी रईस दानी के सहयोग से मुफ्त चारधाम की यात्रा का प्रबंध किया था. खानापीना, रहना, सबकुछ धार्मिक संस्था की तरफ से ही मुफ्त में था. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो चारधाम की यात्रा के लिए आनेजाने में किसी का एक भी पैसा खर्च नहीं होना था. चारधाम को आनेजाने के लिए धार्मिक संस्था की तरफ से 2 विशेष बसों का इंतजाम किया गया था.

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