बिहार के जिला बेगूसराय के थाना साहेबपुर कमाल की रहने वाली चांदबीबी का नाम ऐसे ही चांदबीबी नहीं था. वह चांद जैसी सुंदर भी थी. और किसी के लिए भले ही वह चांद जैसी सुंदर न रही हो, पर मांबाप को तो वह चांद का ही टुकड़ा लगती थी.  यही वजह थी कि उस की अम्मी की नजर हर वक्त उस पर टिकी रहती थी.

चांदबीबी जैसे ही 16 साल की हुई नहीं थी कि अम्मी हर बात में रोकटोक करने लगी थीं. वह घर से निकलने लगती, तुरंत पूछ लेतीं, ‘‘कहां जा रही है चांद? कब तक लौटेगी? किस के साथ जा रही है? क्यों जा रही है?’’

चांदबीबी अम्मी के इन सवालों से खीझ उठती. लेकिन न चाहते हुए भी उसे मां के सवालों के जवाब देने ही पड़ते. भले ही वह झूठ बोल देती. क्योंकि हर बार वह सच बता नहीं सकती थी. अगर सच बता देती तो उस की अम्मी उसे कतई न जाने देतीं.

इतना ही नहीं, उस की अम्मी उस के सजनेधजने और कपड़ों पर ही उतना ध्यान ही रखती थीं. वह कितना सज रही है, कैसे कपड़े पहन रही है, इन बातों पर भी उन की नजर रहती थी.

यही वजह थी कि चांदबीबी को अम्मी का स्वभाव बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. वह उसे रोजाना तो छोड़ो, रविवार को भी देर तक नहीं सोने देती थीं.

सवेरा होते हो वह चिल्लाने लगती थीं, ‘‘चल उठ जा चांद, देख सूरज सिर पर आ गया है. पढ़नेलिखने वाले बच्चों को इतनी देर तक बिलकुल नहीं सोना चाहिए. फिर तू तो लड़की है. लड़कियों को मर्दों से पहले उठ जाना चाहिए. कल को ससुराल जाएगी तो वहां इस तरह देर तक सोएगी तो सासससुर क्या कहेंगे? कहेंगे कि मांबाप ने यही सब सिखाया है. कितनी बदनामी होगी हमारी.’’

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