Writer- रोहित और शाहनवाज

इंसान की यदि एक उंगली टांग बराबर हो और दूसरी नाखून बराबर तो कैसा लगेगा? जाहिर है इसे विकृति से जोड़ा जाएगा. सच मानो इस समय देश आर्थिक गैरबराबरी वाली इसी विकृति से ग्रसित है. यहां किसी के पास खाने को रोटी नहीं तो किसी दूसरे का उस की रोटी पर कब्जा है.

तकरीबन आधी सदी पहले वर्ष 1974 में कांग्रेस ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था. इस नारे को आधार बना कर तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बहुमत से चुनाव में जीत हासिल की थी. उन दिनों देश की राजनीति अमीरीगरीबी के इर्दगिर्द ही बुनी जाती थी. हर पार्टी असमानता के खिलाफ मुखर रहती थी. उन के भाषणों व घोषणापत्रों में, कहने को ही सही, अमीरीगरीबी मुद्दा रहता था. सरकार की जनकल्याण की नीतियां चुनावों में हारजीत के नतीजे तय किया करती थीं. देश में गरीबी उन्मूलन चाहे दिखावा भर रहा हो लेकिन चुनावों में असमानता एक राजनीतिक मु्द्दा रहता था.

आज देश में 5 राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, पंजाब और गोवा में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं लेकिन इन चुनावों में चुनावी पार्टियों के लिए तेजी से बढ़ रही असमानता का मुद्दा दूरदूर तक नहीं है. जिस विपक्ष को इस मुद्दे को जनता के बीच रख कर सरकार को घेरना था वह इसे राजनीतिक चर्चा बनाने में पूरी तरह विफल रहा है. असमानता को मुद्दा बनाए जाने की जगह नित्य नए सामाजिक समीकरण बनाए जा रहे हैं. आज तमाम पार्टियों के जातीय व धार्मिक ध्रुवीकरण के शोर में सभी जगह समाज में बढ़ती असमानता के मुद्दे दब से गए हैं. हमारे नेता कभी हमें मंदिरमसजिद के नाम पर भरमाते हैं तो कभी राजपथों की लंबाई व मूर्तियों की ऊंचाई के नए प्रतिमानों से. आर्थिक असमानता और विषमता के प्रतिमान भी हम ने स्थापित कर रखे हैं, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा.

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