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सांसत में छोटे भाजपा नेता

‘कांग्रेस के जो प्रत्याशी नहीं जीतेगे वह भाजपा को नुकसान पहुंचाएंगे’ कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के इस बयान से उत्तर प्रदेश में नये जातीय समीकरण बन सकते है. अगर जातीयता के आधार पर वोट ट्रांसफर हुआ तो राष्टवाद और मोदी नाम पर चुनाव जीतना भाजपा के छोटे नेताओं के लिये मुश्किल हो जायेगा.

भाजपा ने अपने बडे नेताओं की जीत के लिये भले ही बेहतर फील्डिंग सजाई हो पर छोटे नेताओं की जीत सांसत में फंसी है. सपा-बसपा गठबंधन के बाद अब कांग्रेस ने भी अपनी ताकत भाजपा को हराने में लगा दी है जिससे कई सीटों पर भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी अब सीधे मुकाबले में आमने सामने है. कांग्रेस की बदली चुनावी रणनीति ने भाजपा के सामान्य प्रत्याशियों के सामने संकट खडा कर दिया है.

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भाजपा संगठन भले ही उत्तर प्रदेश में 75 से अधिक सीटे जीतने का दावा कर रही रहा हो पर उसे भी इस बात का डर सता रहा है कि सीधी लडाई में कितना सफल होगे. भाजपा ने अपने बडे नेताओं को जितवाने के लिये हर तरह के दांव पेंच अपना लिये पर सामान्य सासंदो के लिये चुनाव मुश्किल हो गया है.

भाजपा के कार्यकर्ता बड़े नेताओं के चुनाव प्रचार में पूरा समय दे रहे है पर उतनी शिदद्त से छोटे नेताओं का चुनाव प्रचार नहीं हो पा रहा है. छोटे शहरों में प्रचार कर रहे लोगों को जमीनी मुद्दों से उलझना पड़ रहा. यहां जाति का मुद्दा हावी है. इसके साथ मंहगाई, विकास और रोजगार के मुददो पर भी लोग बात कर रहे है. यह मुद्दे भले ही उपर ना दिख रहे हो पर अंदर ही अंदर सत्ता पक्ष को परेशान कर रहे है. भाजपा के लिये परेशानी का सबब यह भी है कि वोटिंग का प्रतिशत कम हो रहा है.

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कम मतदान शहरो और उन लोगों में ज्यादा है जो भाजपा के पक्ष में बात अधिक करते है. वैसे तो भाजपा ने कई ऐसे सांसदों के टिकट काटे जिनके पक्ष में जनता की राय अच्छी नहीं थी. भाजपा के तमाम सांसदों को अपने क्षेत्रों में गुटबाजी का सामना करना पड़ रहा है. भाजपा के ज्यादातर लोग मोदी के नाम पर वोट मांग रहे है. लोगों को अपने सांसद से काम होता है. वह उसको समझना चाहती है. ऐसे में मोदी के नाम पर सामान्य सांसद को वोट क्यों दे ? यह समझ उसे नहीं आ रहा है. ऐसे में कई बार वह मतदान ही करने नहीं जाता है.

चुनाव प्रचार का भी महौल बदल रहा है. अब चुनाव प्रचार सडको और कालोनियों में दिख रहा है. उससे आम जनता के बीच प्रचार नहीं हो पा रहा है. जिससे वहां के वोटर में उदासीनता फैल गई है. वह वोट देने नहीं जा रहे जिससे मतदान का प्रतिशत कम हो रहा है. अब यह डर छोटे नेताओं को सताने लगा है. सपा-बसपा की जातीय गोलबंदी में कांग्रेस के शामिल होने के बाद भाजपा के लिये डगर कठिन हो गई है.

ब्लैंकः सिर्फ सनी देओल के फैंस ही खुश होंगे

निर्देशकः बेहजाद खम्बाटा

कलाकारः सनी देओल, करण कापड़िया,करणवीर शर्मा, इषिता

दत्ता और स्पेशल अपीयरेंस अक्षय कुमार

अवधिः एक घंटा, 51 मिनट

रेटिंगः दो स्टार

कहानीः

फिल्म ‘‘ब्लैंक’’ की कहानी के केंद्र में आत्मघाती हमलावर/आतंकवादी हनीफ (करण कापड़िया) है, जो कि फोन पर कुछ लोगों को निर्देश दे रहा है. फिर वह एक दुकान से सिगरेट खरीदता है, सिगरेट जलाने के चक्कर में एक कार से उसका एक्सीडेंट हो जाता हे. उसे अस्पताल पहुंचाया जाता है. डाक्टरों को उसके सीने पर उसके हृदय के साथ जोड़ा गया आत्मघाती बम नजर आता है. एटीएस चीफ सिद्धू दीवान (सनी देओल) को खबर दी जाती है. पूरा पुलिस महकमा हरकत में आ जाता है. डाक्टर का कहना है कि हनीफ के मौत के साथ ही बम फटेगा. उधर एटीएस चीफ दीवान, हनीफ से कुछ भी कबूल करवाने में सफल नहीं होते हैं.तब पुलिस कमिश्नर अरूणा गुप्ता, शहर से दूर वीराने में ले जाकर हनीफ का इनकाउंटर करने का आदेश देती हैं. दीवान खुदइनकाउंटर करने के लिए जाता है. इधर हनीफ की तस्वीर के आधार पर इंस्पेक्टर रोहित (करणवीर शर्मा) और महिला इंस्पेक्टर हुस्ना (इशिता दत्ता) जांच में लगे हुए हैं. रोहित एक अपराधी फारूक को गिरफ्तार करता है, जिसके बैग में बम होता है, जबकि हुस्ना, हनीफ के अड्डे पर पहुंचती है. इधर दीवान, हनीफ के इनकाउंटर के गोली चलाने का आदेश देते हैं, तभी हुस्ना का फोन आता है और वह रूक जाता है, इस बीच हनीफ गैंग के लोग आकर हनीफ को वहां से ले जाते हैं. उधर हनीफ का सरदार आतंकवादी मकसूद (जमील खान) पाकिस्तान में बैठकर आदेश दे रहा होता है. हनीफ के पकड़े जाने की खबर पाते ही वह मुंबईमें बषीर से बात करता है और खुद वह भारत आने की तैयारी करता है. पता चलता है कि हनीफ के सीने पर लगे बम के साथ मकसूद के चार स्लीपर सेल के बम भी जुड़े हुए हैं.मकसूद ने छोटे छोटे बच्चों को जन्नत पाने के नाम पर जेहाद के लिए तैयार कर रखा है.उधर मकसूद का मकसद एक साथ 25 बम धमाकों के साथ भारत को दहलाने की है.

कहानी अतीत में जाती है, जब हनीफ दस साल का बच्चा था और उसकी एक बड़ी बहन थी. उन दिनों मकसूद एक गुंडा था,जिसने उसकी बस्ती के सारे घर जला दिए थे और सभी की हत्या कर दी थी. हनीफ के पिता ने पुलिस को फोन किया, पर पुलिस नहीं पहुंची, हनीफ के पिता को यकीन था कि एक पुलिस इंस्पेक्टर जरुर पहुंचेगा, पर उस पुलिस इंस्पेक्टर ने अपनामोबाइल फोन ही नहीं उठाया और हनीफ के पिता मारे गए. उसी दिन हनीफ ने बदला लेने की ठान ली थी. इसके बाद की कहानी जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.

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कमियां…

बेसिर पैर की कहानी और घटिया पटकथा के चलते यह फिल्म सिर्फ बोर करती है. इंटरवल से पहले अति धीमी गति के बावजूद हनीफ की असलियत जानने को लेकर दर्शकों में उत्सुकता बनी रहती है, जबकि पूरी कहानी बहुत ही कन्फ्यूजन पैदा करती है. इतना ही नहीं एक भी सीन तर्क की कसौटी पर सही नहीं ठहरता. जब डाक्टर कहता है कि हृदय की धड़कन के साथ हनीफ के सीने पर बंधे बम को जोड़ा गया है और यह बम हनीफ के दिन की धड़कन बंद होते ही फटेगा, तो दर्शक को हंसी आती है. मगर इंटरवल के बाद जिस तरह से उसका सच सामने आता है और जिस तरह कहानी बेतरतीब ढंग से चलती है, उसे देखकर कर दर्शक कह उठता है- ‘कहां फंसायोनाथ.’ फिल्म आतंकवाद पर है, मगर अंत में व्यक्तिगत बदले की कहानी के रूप में उभरती है.

निर्देशनः

बतौर निर्देशक बेहजाद खम्बाटा प्रभावित नहीं करते हैं. लेखक व निर्देशक के तौर पर उन्होने कहानी को फैला दिया, पर उसे किस दिशा में ले जाना है और किस तरह समेटना है, यह सब भूल गए हैं. दीवान के बेटे रौनक के ड्रग्स लेने की कहानी गढ़ी,मगर उसका क्या हुआ, दीवान की पत्नी ने क्या किया, सब गायब.

अभिनयः

यूं तो यह फिल्म करण कापड़िया को लांच करने के लिए बनी है, मगर वह बुरी तरह से हताश करते हैं. उनके चेहरे पर एक्सप्रेशन आते ही नहीं है. करण के किरदार के गढ़ने में भी बेहजाद खम्बाटा और प्रणव प्रियदर्षी मात खा गए हैं. पूरी फिल्म अकेले एटीएस चीफ दीवान के कंधो पर ही आ जाती है. इस किरदार में सनी देओल ने जानदार परफार्मेंस दी है. हुश्ना के किरदार में इशिता दत्ता के लिए कुछ जगह खूबसूरत लगने के अलावा करने को कुछ नहीं है. रोहित के किरदार में करणवीर शर्मा ने ठीक ठाक अभिनय किया हैं.

फिल्म के अंत में अक्षय कुमार का डांस नंबर ‘अली अली’ मजाक बनकर रह जाता है, दर्शक इस गाने को सुनने व डांस देखने के लिए रूकता ही नहीं है.

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निर्माताः डा श्रीकांत भासी,निषांत पिट्टी, एंड पिक्चर्स,टोनी डिसूजा और विषाल राणा

लेखकः बेहजाद खम्बाटा,प्रणव प्रियदर्षी, प्रदीप अटलारी व राधिका आनंद.

संगीतकारः राघव सचर,अरको पारवो मुखर्जी व सोनल प्रधान

लोकसभा चुनाव 2019 : लड़ाई अब सेंचुरी और डबल सेंचुरी की है

चार चरणों के मतदान के बाद अब लोगों की दिलचस्पी इस बात में सिमटती नजर आ रही हैं कि कौन सी पार्टी कितनी सीटें कहां से ले जाकर सरकार बनाएगी. चुनाव का हाल तो गर्भवती बहू जैसा हो गया है जिसकी चाल- ढाल, खान- पान और हाव- भाव देखते घर के बड़े बूढ़े अंदाजा लगाते रहते हैं कि लड़का होगा या फिर लड़की होगी. यही 23 मई को लेकर हो रहा है. सबका अपना-अपना अंदाज हैं कि इस दिन क्या होगा, क्या भाजपा नरेंद्र मोदी के चेहरे और नाम के सहारे अपनी चुनावी नैया पार लगा पाएगी या फिर कांग्रेस उसकी राह में रोड़े अटकाने में कामयाब हो पाएगी. इस बात को लेकर राजनैतिक पंडितों, वैज्ञानिकों, विश्लेषकों और सटोरियों के साथ साथ तोता छाप और ब्रांडेड ज्योतिषों के माथे पर भी बल हैं. यानि कोई दावे या पूरे आत्मविश्वास से यह नहीं कह पा रहा कि 23 तारीख को क्या होगा. यह दिलचस्पी, जैसे जैसे दिन चढ़ते जा रहे हैं, वैसे वैसे रोमांच में बदलती जा रही है. और यही चुनावी लुत्फ भी है कि 23 मई की दोपहर हर कोई यह कहता नजर आए कि देखा…… मैंने तो पहले ही कहा था कि ….. और ऐसा न होता तो बात कुछ और होती.

‘राजनीतिक उदासीनता’ है कम मतदान की वजह

यह चुनाव 2014 के चुनावों से एकदम भिन्न है क्योंकि वोटर की कसौटी पर आस्था नहीं बल्कि पांच साल का कार्यकाल है. प्रचार भले ही धर्म, जाति, भूतपूर्व व वर्तमान भ्रष्टाचार और राष्ट्रवाद को लेकर ज्यादा हो रहा हो लेकिन हकीकत में वोट इस बात पर ज्यादा पड़ रहा है कि मोदी सरकार ने ऐसा किया क्या है, जो उसे दोबारा देश सौंप दिया जाये. सिर्फ यहीं सवाल, जो कोई 90 फीसदी लोग पूछ और सोच रहे हैं. पर कांग्रेस की उम्मीदें टिकी हैं. वजह उसे यह समझ आ रहा है कि एयर स्ट्राइक और आतंकवाद के खात्मे का हल्ला भाजपा को 200 पार नहीं ले जा पाएगा. और वह 100 सीटें बड़े इतमीनान से जीतकर एनडीए को सरकार बनाने से रोक लेगी और दूसरों के दम पर सरकार बना ले जाएगी, ठीक वैसे ही जैसे साल 2004 में 144 सीटें ले जाकर बनाई थी.

इस बात को आंकड़ों की शक्ल में समझने से पहले दो दिग्गज नेताओं के बयानो पर गौर करना जरूरी है जो साफ साफ त्रिशंकु लोकसभा की बात कह चुके हैं. एनसीपी मुखिया शरद पवार ने स्पष्ट कहा कि अगर एनडीए बहुमत में नहीं आता है तो अगला प्रधानमंत्री ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू या फिर मायावती में से कोई एक होगा. उनका मानना है कि इन तीनों के पास खासा प्रशासनिक अनुभव है और ये तीनों भी नरेंद्र मोदी की तरह मुख्यमंत्री रह चुके हैं. बात बड़ी दिलचस्प और अहम इस लिहाज से है कि शरद पवार ने राहुल गांधी का नाम इस सबसे बड़े पद के लिए नहीं लिया और न ही बतौर प्रधानमंत्री खुद को प्रस्तुत किया.

बहुत फर्क है 2014 और 2019 में

सांख्यिकीय लिहाज से देखें तो वे मान रहे हैं कि उनकी पार्टी एनसीपी 10-12 से ज्यादा सीटें नहीं ले जाने बाली और कांग्रेस 140 के लगभग सिमट रही है. उलट इसके ममता बनर्जी की टीएमसी 30 के और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी भी 18 के लगभग सीटें ले जा सकती है और बसपा भी 15 से 20 सीटें ले जा सकती है. 15 से भी ज्यादा सीटें ले जाने का दम भर रही बीजू जनता दल के मुखिया नवीन पटनायक को शरद पवार प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं मानते हैं तो मुमकिन है इसके पीछे उनकी कोई कुंठा या पूर्वाग्रह हो .

गणित कमलनाथ का –

दूसरा अहम बयान बड़े हैरतअंगेज तरीके से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ का यह आया कि कांग्रेस 2014 के मुक़ाबले तीन गुनी यानि 132 सीटें ही ले जा पा रही है. बक़ौल कमलनाथ नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए इतनी सीटें काफी होंगी. इस बयान पर खुद कांग्रेसी सन्न रह गए थे क्योंकि बात एक ऐसे जिम्मेदार नेता ने कही थी जिसके तजुर्बे और गांधी परिवार के प्रति भक्ति पर किसी को रत्ती भर भी शक नहीं है और आमतौर पर चुनाव के वक्त में नेता बढ़ चढ़ कर बातें और दावे करते हैं. मसलन मध्यप्रदेश के ही पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश की सभी 29 और छतीसगढ़ की पूरी 11 सीटें ले जाने की बात कर रहे हैं.

चुनावी लड़ाई से दूर मायावती

कमलनाथ के इस आंकड़े और बयान से एक बात तो जाहिर होती है कि कांग्रेस का मकसद या प्राथमिकता नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने की है. और इस बाबत जरूरत पड़ने पर कांग्रेस किसी के भी नाम पर तैयार हो सकती है. इनमें शरद पवार द्वारा गिनाए और लिए गए तीनों नाम शामिल हैं. कमलनाथ की इस बेबाक बयानी से लगता तो यही है कि कांग्रेस ने अपना लक्ष्य छोटा रखा हैं या फिर इससे ज्यादा की उम्मीद उसे है ही नहीं.

इस बयान या गणित को आसानी से समझने 2014 के नतीजों पर नजर डाला जाना जरूरी है जो इस चुनाव में कहीं ज्यादा निर्णायक हो चले हैं. भाजपा को जो रिकार्ड 282 सीटें मिली थीं उनमें से कांग्रेस 167 पर दूसरे नंबर पर रही थी. 132 न सही अगर कांग्रेस सीटों की सेंचुरी भी लगा लेती हैं तो वह नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोक सकती हैं क्योंकि 167 में से उसे महज 66 सीटें ही वापस चाहिए रहेंगी. कमलनाथ की इस प्रमेय के मुताबिक फिर भाजपा की सीटें 282-66 यानि 216 रह जाएंगी. लेकिन ये वे सीटें होंगी जो कांग्रेस के खाते में जाएंगी. यहां दिलचस्प पुनश्च यह लगा है कि 2014 में ही भाजपा ने सपा और बसपा से जो 38 सीटें छीनी थीं. वे भी इन दलों के खाते में वापस जाएंगी ऐसी स्थिति में अब भाजपा के पास 216-37 यानि 179 सीटें रह जाएंगी और कांग्रेस अगर 132 सीटें ले गई तो भाजपा का आंकड़ा बहुत छोटा हो जाएगा.

‘फ्रेंडली लड़ाई’ से कांग्रेस रोकेगी ‘वोट का बिखराव’

लेकिन क्या ऐसा उतनी आसानी से होना  मुमकिन है जितना कि गुणा भाग में दिख रहा है इस सवाल का जबाब कांग्रेस के लिहाज से उतना ही उत्साहजनक है जितना कि भाजपा के लिहाज से निराशाजनक है. पिछले साल दिसंबर में 3 राज्यों में कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीनकर यह साबित कर दिया था, कि हां यह मुमकिन है बशर्ते कांग्रेस लोकसभा चुनाव में कोई बहुत बड़ा लक्ष्य लेकर न चले तो उसे उम्मीद से कहीं ज्यादा सीटें मिल भी सकती हैं.

उत्तरप्रदेश से कांग्रेस ने बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं रखी हैं क्योंकि वहां महागठबंधन भाजपा पर भारी पड़ता नजर आ रहा है.  बिहार ,दिल्ली , हरियाणा , झारखंड और महाराष्ट्र में उसे अच्छी बढ़त की उम्मीद है.  इन पांच राज्यों में अगर वह 25 सीटें भी ले जाती है तो मोदी को हटाने का लक्ष्य उसके या वह इस लक्ष्य के काफी करीब होगी. दक्षिण भारत से भी ठीकठाक उम्मीदें उसे 2014 के मुक़ाबले है और पूर्वोत्तर भारत में भी उसकी स्थिति पहले से बेहतर हुई है.

कांग्रेस और भाजपा की सीधी और टसल बाली जंग असम की 14, गुजरात की 26, छत्तीसगढ़ की 11, राजस्थान की 25, हिमाचल प्रदेश की 4, उत्तराखंड की 5 और मध्य प्रदेश की 29 सीटों पर है. इन 114 सीटों में से कम से कम 50 सीटें जीतना उसके लिए हालात देखते हुये आसान लग रहा है. कर्नाटक, पंजाब और केरल में कांग्रेस दूसरे राज्यों और दलों के मुक़ाबले कहीं ज्यादा कंफ़र्ट नजर आ रही है. इन राज्यों से मिली सीटें उसे सेंचुरी के अलावा बोनस होगी .

ये दुनिया नहीं जागीर किसी की, राजा हो या रंक यहां तो सब हैं चौकीदार

भाजपा इस समीकरण पर पूरी नजर रखे हुये है. और उसकी हर मुमकिन कोशिश 200 का आंकड़ा छूने की है जिसमें उत्तर प्रदेश में सपा बसपा ने टंगड़ी अड़ा रखी है. मोदी शाह की जोड़ी को बेहतर मालूम है कि भाजपा हिन्दी भाषी राज्यों में 2014 की सी एकतरफा स्थिति में नहीं है इसलिए उनका भी पूरा ज़ोर इन्हीं राज्यों पर है. नरेंद्र मोदी यहां ताबड़तोड़ रैलियां करते धर्म और जाति की राजनीति से भी परहेज नहीं कर रहे सवाल आखिर नाक का जो है. राजनीति में सब जायज है के उसूल के तहत वे अपने कथित उसूलों के दायरे से बाहर आने मजबूर हो गए हैं. इसलिए उन्होंने पश्चिम बंगाल में टीएमसी के 50 विधायकों के अपने संपर्क में होने का भी दांव खेला जो गैरज़रूरी और हास्यास्पद भी था .

बयानों में छिपा संदेश – यह सोचना बेमानी है कि शरद पवार और कमलनाथ ने जोखिम भरे बयान यूं ही दे दिये है. ये दोनों ही मोदी हटाओ की मुहिम पर जुटते वोटर को यह संदेश दे रहे हैं कि उनका मकसद राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी को हटाना है. ये बयान मोदी के उस तंज़ का भी जबाब और स्पष्टीकरण हैं कि विपक्ष के पास कोई चेहरा प्रधानमंत्री पद के लिए नहीं है.

‘चायवाले’ के बाद ‘चौकीदार’ बने प्रधानमंत्री

इसमें कोई शक नहीं कि राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने में कई कूटनीतिक अडचने हैं जिन्हें दूर करने इस तरह के वक्तव्य इनहोने दिये. सीटों का समीकरण आईने की तरफ साफ है कि कांग्रेस जितना 100 के ऊपर जाएगी भाजपा उसी अनुपात में 200 के नीचे आएगी. भाजपा एडी चोटी का ज़ोर कांग्रेस को सेंचुरी लगाने से रोक रही है तो कांग्रेस उसे डबल सेंचुरी ठोकने से रोकने में लगी है. इस खेल या कोशिश में कौन कितना कामयाब हुआ यह तो आखिरी तौर पर 23 मई को ही पता चलेगा.  इस दरमियान आम और खास लोगों को अंदाजे लगाने का पूरा हक है यही इन दिनों उनके मनोरंजन का जरिया भी है .

उम्र 40 से अधिक है तो इन 6 टेस्ट्स को आज ही कराएं

स्वस्थ रहना सबकी चाहत होती है.चाहे पुरुष हो या महिलाएं, सबको अपने सेहत का ख्याल रखना चाहिए. पर देखा जाता है कि घर की जिम्मेदारियों में उलझ कर महिलाएं अपनी सेहत का ख्याल नहीं रख पाती. खास तौर पर जो महिलाएं 40 के पार की होती हैं, वो अपनी सेहत को ले कर काफी लापरवाह होती हैं. जबकि इसी दौरान जरूरी होता है कि आप अपने सेहत को ले कर ज्यादा सजग रहें. क्योंकि इस दौरान स्वास्थ्य की समस्याओं की संभावनाएं और ज्यादा बढ़ जाती हैं. स्वास्थ्य के बारे में पता लगाने के लिए आपको समय रहते कुछ टेस्ट करवा लेनी चाहिए. ये टेस्ट आपके शरीर को स्वस्थ और हेल्दी रखने में मदद करती हैं और यदि किसी प्रकार की कोई समस्या होती है तो उसकी जानकारी भी दे देती है.

ब्लड प्रेशर

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि समय समय पर आप बल्ड प्रेशर नापते रहें. ब्लड प्रेशर संबंधी परेशानी उम्र के किसी पड़ाव पर हो सकती है. सही डाइट, एक्सरसाइज और मेडिकेशन की मदद से आप अपने बल्ड प्रेशर को नियंत्रित रख सकती हैं.

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थायरायड टेस्ट

आजकल महिलाओं में थायरायड की शिकायत तेज हुई है.  इसके कारण उनमें वजन का बढ़ना या घटना, बालों का झड़ना, नाखून के टूटने की शिकायत होती है. इसका कारण थायरायड है. यह ग्रंथि हार्मोन टी 3, टी 4 और टीएसएच को गुप्त करता है और शरीर के चयापचय को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होता है. इसलिए हर 5 सालों में आपको ये टेस्ट कराते रहना चाहिए.

बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट

40 के बाद महिलाओं को ये टेस्ट कराते ही रहना चाहिए क्योंकि ये बीमारी हार्मोन एस्ट्रोजेन के घटते स्तर के कारण होती है. हड्डियों के सुरक्षा में हार्मोन एस्ट्रोजेन की भूमिका अहम होती है. इसलिए इस टेस्ट को कराते रहना जरूरी है.

सेल्फी लेने की आदत है जानलेवा, पढ़ें पूरी खबर

ब्लड शुगर

असंतुलित आहार के कारण ब्लड शुगर का खतरा काफी बढ़ जाता है. इसलिए जरूरी है कि 40 की उम्र के बाद ब्लड शुगर टेस्ट कराया जाए. इसे हर साल करनाना चाहिए ताकि आप अपने ब्लड में शुगर की मात्रा से हमेशा अपडेट रह सकें.

लिपीड प्रोफाइल टेस्ट

ट्राइग्लिसराइड और बैड कोलेस्ट्रौन के स्तर की जांच के लिए ये टेस्ट जरूरी है. कोलेस्ट्रौल एक मोटा अणु है, जो उच्च स्तरों में उपस्थित होने से रक्त वाहिकाओं में जमा हो सकता है और आपके दिल, रक्त वाहिकाओं और मस्तिष्क के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है. इसलिए हर 6 महीने पर इसकी जांच जरूर करवाएं.

पीरियड्स के दर्द से बचना है तो इन बातों का रखें ध्यान

पेल्विक टेस्ट

महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का खतरा काफी अधिक रहता है. इस लिए जरूरी है कि 40 की उम्र के बाद आप स्त्री रोग विषेशज्ञ के संपर्क में रहें.

ग्रीन सैलेड विद फेटा

यह सलाद हरे पत्ते और क्रंची पाइन नट्स के साथ मिलाकर बनाया जाता है और साथ ही इसमें स्वादिष्ट ड्रेसिंग डाली जाती है. इसे बनाना भी बेहद आसान है. तो चलिए जानते हैं, ग्रीन सैलेड विद फेटा बनाने की विधि.

सामग्री

2 नींबू का रस

औरिगेनो (1 फ्रेश टुकड़ों में कटा हुआ)

पुदीने के पत्ते (1 टुकड़ों में कटा हुआ)

ऐसे बनाएं स्ट्फ्ड खीरा, जानिए रेसिपी

नमक (स्वादानुसार)

सलाद के लिए:

हरे पत्ते:

आइसबर्ग लैट्यूस

पालक दाल खिचड़ी रेसिपी

आरूगुला

लोलो रोसो

2 टमाटर

2 प्याज

1/2 औरेंज

1 पाइन नट्स

50 फेटा चीज़

आइसक्रीम सनडे रेसिपी

बनाने की वि​धि

एक बाउल में ड्रेसिंग की सारी सामग्री को अच्छी तरह मिला लें.

सलाद वाले बाउल में सभी हरी चीजों के साथ प्याज और टमाटर को टौस करें.

इसमें फेटा, औरिगेनो और पाइन नट्स डालें.

इसमें ड्रेसिंग डाले और सलाद को सर्व करें.

इंस्टेंट ग्लो पाने के लिए अपनाएं ये 7 फेस मास्क

क्या आप भी अपनी रूखी और बेजान त्वचा से परेशान हैं. कई उपाय करने के बावजूद भी किसी तरह का लाभ नहीं मिल रहा है. और आपके पास फेशियल, ब्लीच आदि के लिए पार्लर जाने का समय नहीं है, तो अपनाइए ये टाप 10 फेस मास्क. इससे आपकी बेजान स्किन में चमक आ जाएगी और आपको मिलेगा इंस्टेंट ग्लो.

3 टिप्स : ऐसे करें अपनी आंखों का मेकअप

  1. गुलाब की कुछ पंखुडियों में 2 टेबलस्पून गाडा दूध मिलाकर बारीक पीस लें. तैयार लेप को दस मिनट के लिए फ्रिज मे रख दें. बाहर निकालकर चेहरे पर लगाएं. 20 मिनट बाद जब लेप सूख जाए तो ठंडे पानी से चेहरा धो लें. गुलाब क्री पंखुडियों से त्वचा की रंगत निखरती हैं.

2. पके हुए केले को छीलकर अराल लें मसल लें. इसमें 3 टेबलस्पून पका हुआ पपीता मसलकर मिलाएं. इसे दो मिनट चम्मच से फेंटें. फिर चेहरे पर अप्लाई करें. 20 – 25 मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. इससे स्किन टाइट होती है और नेचुरली ग्लो करती हैं.

5 होममेड टिप्स: होठों के कालेपन से पाएं छुटकारा

3. मिक्सर यें 2 छोटे साइज के स्ट्राबेरी और 1 टेबलस्पून बटर (नमक वाला नहीं) डालकर पीस लें. तैयार पेस्ट चेहरे पर लगाएं. 15 मिनट बाद कुनकुने पानी में भीगे हुए टावल से चेहरा पोंछ लें. स्ट्राबेरी से स्किन टोन निखरता है और बटर चेहरे को माइश्चाराज करता हैं.

4. 2 चम्मच बेसन में 1 चम्मच दूध और 1 चम्मच आलिव आयल मिलाएं. फिर चेहरे को गुलाब जल से धोएं और फेस पैक लगा लें. 20 मिनट बाद कुनकुने पानी से चेहरा धो लें. इससे स्किन ग्लो करेगी और ब्लैक हेड्स की शिकायत भी दूर हो जाएगी.

समर टिप्स: अब नहीं पड़ेगी सनस्क्रीन लगाने की जरूरत…

5.  1 टेबलस्पून दूध में थोडा सा केसर डालकर 6 घंटे के लिए भिगोकर रखें. इसमें 1 टेबलस्पून शहद मिलाएं. जब फेस पैक गाढ़ा हो जाए, तो इसे चेहरे पर लगाएं. 20 मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें.

6. संतरे के छिलके को धूप में सुखाएं और मिक्सर में पीसकर पाउडर बना लें. अब 1 टेबलस्पून पाउडर में 1 टेबलस्पून दही मिलाकर पेस्ट बना लें और चेहरे पर लगाएं. 20 मिनट बाद जब सूख जाए, तो कुनकुने पानी से धो लें. इससे स्किन को गोल्डन ग्लो मिलेगा.

गरमी में स्किन डैमेज से बचने के लिए अपनाएं ये टिप्स…

7. टमाटर को मिक्सर में पीस लें. इसमें आधा टेबलस्पून शक्कर डालकर अच्छी तरह मिलाएं और चेहरे पर अप्लाई करें. 15 मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. इससे त्वचा नेचुरली ग्लो करने लगती है.

काल्पनिक ईश्वर में विश्वास नहीं करता बौद्ध धर्म

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मैं नास्तिक क्यों हूं…

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बौद्ध धर्म दुनिया का एकमात्र धर्म है जो मानवी मूल्यों और आधुनिक विज्ञान का समर्थक है. बौद्ध अनुयायी काल्पनिक ईश्वर में विश्वास नहीं करते हैं. अल्बर्ट आइंस्टीन, डा. भीमराव अम्बेदकर, बर्नाट रसेल जैसे कई प्रतिभाशाली, बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक लोग बौद्ध धर्म को विज्ञानवादी धर्म मानते हैं. चीन देश की आबादी में 91 प्रतिशत से अधिक लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं. कहना गलत न होगा कि दुनिया में सबसे अधिक नास्तिक लोग चीन में हैं. चीनी मान्यता में इंसान और भगवान के बीच श्रद्धा का कोई सिद्धांत नहीं है. यहां अपने महान पूर्वजों की शिक्षा का अनुसरण करने वालों के नाम पर ही ताओइज्म या कन्फूशियनिज्म की परम्परा है. गैलप सर्वे में करीब 61 फीसदी चीनियों ने किसी ईश्वर के अस्तित्व को नकार दिया. वहीं 29 फीसदी ने खुद को अधार्मिक बताया. अप्रैल 2015 में हुए सर्वे में गैलप ने 65 देशों में कुल 64 हजार इंटरव्यू किये.

अश्लील नाटक नहीं , नजरिया है

स्वीडेन (76 फीसदी)

इस स्कैंडिनेवियन देश में हाल के सालों में सेक्युलरिज्म तेजी से बढ़ा है. स्वीडेन के सरकारी आंकड़ों के अनुसार केवल 8 फीसदी स्वीडिश नागरिक ही किसी धार्मिक संस्था से नियमित रूप से जुड़े हैं. शायद इसीलिए 31 अक्टूबर 2016 को प्रोटेस्टेंट रिफॉर्मेशन की 500वीं वर्षगांठ मनाने के लिए पोप फ्रांसिस ने स्वीडेन को चुना था.

चेक गणराज्य (75 फीसदी)

करीब 30 प्रतिशत चेक नागरिक खुद को नास्तिक कहते हैं. वहीं इसी देश के सबसे अधिक लोगों ने अपनी धार्मिक मान्यताओं के बारे में कोई भी उत्तर देने से मना कर दिया. कुल आबादी का केवल 12 फीसदी ही कैथोलिक या प्रोटेस्टेंट चर्च से जुड़ा है.

ब्रिटेन (66 फीसदी)

करीब 53 प्रतिशत ब्रिटिश लोगों ने खुद को अधार्मिक बताया और करीब 13 फीसदी ऐसे थे जो अपने आपको नास्तिक मानते हैं. पश्चिमी यूरोप में यूके के बाद नीदरलैंड्स नास्तिकता में सबसे आगे हैं.

प्यार की राह का रोड़ा

हांगकांग (62 फीसदी)

पूर्व ब्रिटिश कालोनी और फिर चीन को वापस किये गये हांगकांग की ज्यादातर आबादी पर चीनी परम्पराओं का असर है. बाकी कई लोग ईसाई, प्रोटेस्टेंट, ताओइज्म या बौद्ध धर्म के मानने वाले हैं. गैलप सर्वे में करीब 43 फीसदी हांगकांग वासियों ने माना कि वे किसी भी ईश्वर को नहीं मानते हैं.

जापान (62 फीसदी)

चीन की ही तरह जापान की लगभग सारी आबादी किसी ईश्वर की बजाए जापान के स्थानीय शिंतो धर्म का अनुसरण करती है. शिंतोइज्म के मानने वाले ईश्वर जैसे किसी दिव्य सिद्धांत में विश्वास नहीं रखते हैं. गैलप के आंकड़ों के मुताबिक करीब 31 फीसदी जापानी खुद को नास्तिक बताते हैं.

जर्मनी (59 फीसदी)

मुख्य रूप से ईसाई धर्म के मानने वाले जर्मन समाज में इस्लाम समेत कई धर्म प्रचलित हैं, लेकिन 59 फीसदी किसी ईश्वर को नहीं मानते. स्पेन, औस्ट्रिया में भी किसी ईश्वर को ना मानने वालों की बड़ी संख्या है. पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता का गढ़ माने जाने वाले फ्रांस की करीब आधी आबादी ने खुद को अधार्मिक बताया.

ऐसी भी होती हैं औरतें

धर्म से उचट रहा मन

धर्म ने समाज में लोगों के बीच ऊंच-नीच की ऐसी दीवारें खड़ी कर दी हैं, जिनकी वजह से अनेक बुराइयां और अपराध पनप रहे हैं. बुद्धिजीवियों का बड़ा वर्ग धर्म और ईश्वर को मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन मानता है. यही नहीं अब तो बच्चे तक यह समझने लगे हैं कि धर्म उनको बांटने और आपस में लड़वाने का मुख्य कारक है. यही वजह है कि अब स्कूल के फॉर्म में ज्यादातर धर्म और जाति के कॉलम खाली दिखायी देते हैं. बीते वर्ष मार्च महीने में केरल के 1.24 लाख छात्र-छात्राओं ने कहा कि मेरा कोई जाति और धर्म नहीं है. उन्होंने स्कूल में दाखिले के लिए जमा कराये गये अपने नामांकन पत्र में धर्म और जाति वाला कौलम खाली छोड़ दिया.

केरल में हर साल लाखों छात्र-छात्राएं सरकारी या निजी स्कूलों में दाखिला लेते हैं. लेकिन केरल सरकार ने वर्ष 2018 में एक नया तथ्य सामने रखा है. केरल सरकार का कहना है कि निजी या सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने वाले 1.24 लाख बच्चों ने किसी भी धर्म या जाति से सम्बन्धित बात को मानने से इन्कार कर दिया है. उन्होंने अपने नामांकन पत्र पर यह कौलम खाली छोड़ दिया है. इससे साफ जाहिर होता है कि ये लाखों बच्चे किसी भी जाति या धर्म से अपने को नहीं जोड़ना चाहते हैं.

दीवानगी की हद से आगे मौत

9000 स्कूलों से जमा किये गये आंकड़े

केरल विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान वामनपुरम से सीपीएम के विधायक डीके मुरली ने सरकार से पूछा कि राज्य में ऐसे कितने विद्यार्थी हैं, जो सरकारी या निजी स्कूलों में दाखिला लेते समय नामांकन पत्र में अपने जाति या धर्म के कौलम को नहीं भरते हैं. ये संख्या पहली और दसवीं कक्षा में दाखिला लेने वाले छात्र-छात्राओं की है. जबकि इसी प्रकार से 11वीं और 12वीं के बच्चे भी नामांकन के दौरान अपनी जाति और धर्म के बारे में नहीं बताना चाहते हैं. 11वीं में 278 और 12वी में 239 बच्चे इस सूची में शामिल हैं.

2011 की जनगणना के मुताबिक, करीब 29 लाख लोगों ने ‘धर्म का जिक्र नहीं’ श्रेणी को तवज्जो दी थी. इसे कुल जनसंख्या का 0.2 प्रतिशत माना जा सकता है. 2001 की जनगणना में महज 7 लाख लोग ऐसे थे, जिन्होंने धर्म का जिक्र नहीं किया था. इस संख्या में अब चार गुना से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हो चुकी है.

महाभारत का कटु यथार्थ

इसका मतलब साफ है कि जो लोग धर्म का जिक्र नहीं करना चाहते, उनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है. ऐसा नहीं है कि धर्म को न मानने वालों की संख्या शहरी इलाकों में बढ़ रही है. धर्म का जिक्र नहीं करने वालों की कुल संख्या 29 लाख में से 16.44 लाख लोग ग्रामीण इलाकों से हैं, जबकि 12.24 लाख लोग शहरी इलाके से हैं.

इसी कड़ी में कल आगे पढ़िए मेरी कोई जाति भी नहीं.

क्लब

नए सहायक प्रबंधक नवीन के आने से खूबसूरत व शादीशुदा अर्चना की परेशानियां बढ़ गई थीं. नवीन भंवरे की तरह उस के आसपास मंडराने का प्रयास करता. उस की रोजरोज की दिलफेंक हरकतों से परेशान अर्चना ने थकहार कर उस के आगे हथियार डाल दिए.

नए सहायक प्रबंधक नवीन कौशिक को उस शाम विश्वास हो गया कि अर्चना नाम की सुंदर चिडि़या जल्दी ही पूरी तरह उस के जाल में फंस जाएगी.

सिर्फ महीने भर पहले ही नवीन ने इस आफिस में अपना कार्यभार संभाला था. खूबसूरत, स्मार्ट और सब से खुल कर बातें करने वाली अर्चना ने पहली मुलाकात में ही उस के दिल की धड़कनें बढ़ा दी थीं.

जरा सी कोशिश कर के नवीन ने अर्चना के बारे में अच्छीखासी जानकारी हासिल कर ली.

बड़े बाबू रामसहायजी ने उसे बताया, ‘‘सर, अर्चना के पति मेजर खन्ना आजकल जम्मूकश्मीर में पोस्टेड हैं. अपने 5 वर्ष के बेटे को ले कर वह यहां अपने सासससुर के साथ रहती हैं. सास के पैरों को लकवा मारा हुआ है. पूरे तनमन से सेवा करती हैं अर्चना अपने सासससुर की.’’

बड़े बाबू के कक्ष से बाहर जाने के बाद नवीन ने मन ही मन अर्चना से सहानुभूति जाहिर की कि मन की खुशी और सुखशांति के लिए जवान औरत की असली जरूरत एक पुरुष से मिलने वाला प्यार है. मेजर साहब से दूर रह कर तुम सासससुर की सेवा में सारी ऊर्जा नहीं लगाओ तो पागल नहीं हो जाओगी, अर्चना डार्लिंग.

करीब 30 साल की उम्र वाली अर्चना को मनोज और विकास के अलावा सभी सहयोगी नाम से पुकारते थे. वे दोनों उन्हें ‘अर्चना दीदी’ क्यों कहते हैं, इस सवाल को उन से नवीन ने एक दिन भोजनावकाश में पूछ ही लिया.

‘‘सर, वह हमारी कोई रिश्तेदार नहीं है. बस, मजबूरी में उसे बहन बनाना पड़ा,’’ विकास ने सड़ा सा मुंह बना कर जवाब दिया.

‘‘कैसी मजबूरी पैदा हो गई थी?’’ नवीन की उत्सुकता फौरन जागी.

विकास के जवाब देने से पहले ही मनोज बोला, ‘‘सर, इनसानियत के नाते मजबूर हो कर उसे बहन कहा. उस का कोई असली भाई नहीं है. उस का दिल रखने को काफी लोगों की भीड़ के सामने हम ने उसे बहन बना लिया एक दिन.’’

‘‘आप उस के चक्कर में मत पडि़एगा, सर,’’ विकास ने अचानक उसे बिन मांगी सलाह दी, ‘‘किसी सुंदर औरत का अनिच्छा से भाई बनना मुंह का स्वाद खराब कर देता है.’’

‘‘वैसे मेरा कोई खास इंटरेस्ट नहीं है अर्चना में, पर पति से दूर रह रही इस तितली का किसी से तो चक्कर चल ही रहा होगा?’’ नवीन ने अपने मन को बेचैन करने वाला सब से महत्त्वपूर्ण सवाल विकास से पूछ लिया.

‘‘फिलहाल तो किसी चक्कर की खबर नहीं उड़ रही है, सर.’’

‘‘फिलहाल से क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘सर, अर्चना पर दोचार महीने के बाद कोई न कोई फिदा होता ही रहता है, पर यह चक्कर ज्यादा दिन चलता नहीं.’’

‘‘क्यों? मुझे तो अर्चना अच्छी- खासी ‘फ्लर्ट’ नजर आती है.’’

‘‘सर, जैसे हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती वैसे ही शायद यह ‘फ्लर्ट’ चरित्र की कमजोरी न हो.’’

‘‘छोड़ो, हम क्यों उस के चरित्र पर चर्चा कर के अपना समय खराब करें,’’ और इसी के साथ नवीन ने वार्त्तालाप का विषय बदल दिया था.

अर्चना का कोई प्रेमी नहीं है, इस जानकारी ने नवीन के अंदर नया उत्साह भर दिया और वह डबल जोश के साथ उस पर लाइन मारने लगा.

‘‘सर, हम सब यहां आफिस में काम करने के लिए आते हैं और इसी की हमें तनख्वाह मिलती है. हंसीमजाक भी आपस में चलता रहना चाहिए, पर शालीनता की सीमाओं के भीतर,’’ अर्चना ने गंभीरता से नवीन को कई बार इस तरह से समझाने का प्रयास किया, पर कोई फायदा नहीं हुआ.

‘‘अपने दिल को काबू में रखना अब मेरे लिए आसान नहीं है,’’ ऐसे संवाद बोल कर नवीन ने उस को अपने जाल में फंसाने की कोशिश लगातार जारी रखी.

फिर उस शाम नवीन ने जोखिम उठा कर अपने आफिस के कमरे के एकांत में अचानक पीछे से अर्चना को अपनी बांहों में भर लिया.

नवीन की इस आकस्मिक हरक त से एक बार को तो अर्चना का पूरा शरीर अकड़ सा गया. उस ने अपनी गरदन घुमा कर नवीन के चेहरे को घूरा.

‘‘मैं तुम से दूर नहीं रह सकता हूं…तुम बहुत प्यारी, बहुत सुंदर हो,’’ अपने मन की घबराहट को नियंत्रित रखने के लिए नवीन ने रोमांटिक लहजे में कहा.

‘‘सर, प्लीज रिलेक्स,’’ अर्चना अचानक मुसकरा उठी, ‘‘आप इतने समझदार हैं, पर यह नहीं समझते कि फूलों का आनंद जोरजबरदस्ती से लेना सही नहीं.’’

‘‘मैं क्या करूं, डियर? यह दिल है कि मानता नहीं,’’ नवीन का दिल बल्लियों उछल रहा था.

‘‘अपने दिल को समझाइए, सर,’’ नवीन से अलग हो कर अर्चना ने उस का हाथ पकड़ा और उसे छेड़ती हुई बोली, ‘‘बिना अच्छा दोस्त बने प्रेमी बनने के सपने देखना सही नहीं है, सर.’’

‘‘अगर ऐसी बात है, तो हम अच्छे दोस्त बन जाते हैं.’’

‘‘तो बनिए न,’’ अर्चना इतरा उठी.

‘‘कैसे?’’

‘‘यह भी मैं ही बताऊं?’’

‘‘हां, तुम्हारी शागिर्दी करूंगा तो फायदे में रहूंगा.’’

‘‘कुछ उपहार दीजिए, कहीं घुमाने ले चलिए, कोई फिल्म, कहीं लंच या डिनर हो…चांदनी रात हो, हाथ में हाथ हो, फूलों भरा पार्क हो…सर, पे्रमी हृदय को प्यार की अभिव्यक्ति के लिए कोई मौकों की कमी है?’’

‘‘बिलकुल नहीं है. अभी तैयार करते हैं, कल इतवार को बिलकुल मौजमस्ती से गुजारने का कार्यक्रम.’’

‘‘ओके,’’ अर्चना ने नवीन को उस की कुरसी पर बिठाया और फिर मेज के दूसरी तरफ पड़ी कुरसी पर बैठ कर बड़ी उत्सुकता दर्शाते हुए उस के बोलने का इंतजार आंखें फैला कर करने लगी.

रविवार साथसाथ घूम कर बिताने के उन के कार्यक्रम की शुरुआत फिल्म देखने से हुई. सिनेमाघर के सामने दोनों 11 बजे मिले.

नवीन अच्छी तरह तैयार हो कर आया था. महंगे परफ्यूम की सुगंध से उस का पूरा बदन महक रहा था.

‘‘सर, मुझे यह सोचसोच कर डर लग रहा है कि कहीं कोई आप के साथ घूमने की खबर मेरे सासससुर तक न पहुंचा दे,’’ अर्चना ने घबराए अंदाज में बात की शुरुआत की, ‘‘कल को कुछ गड़बड़ हुई तो आप ही संभालना.’’

‘‘कैसी गड़बड़ होने से डर रही हो तुम?’’

‘‘क ल को भेद खुला और मेरे पति ने मुझे घर से बाहर कर दिया तो मैं आप के घर आ जाऊंगी और आप की श्रीमती जी घर से बाहर होंगी.’’

‘‘मुझे मंजूर है, डार्लिंग.’’

‘‘इतनी हिम्मत है जनाब में?’’

‘‘बिलकुल है.’’

‘‘तब उस मूंछों वाले को हड़का कर आओ जो मुझे इतनी देर से घूरे जा रहा है.’’

नवीन ने दाईं तरफ घूम कर मूंछों वाले लंबेचौड़े पुरुष की तरफ देखा. वह वास्तव में अर्चना को घूर रहा था. नवीन ने माथे पर बल डाल कर उस की तरफ गुस्से से देखा, तो उस व्यक्ति ने अपनी नजरें घुमा लीं.

‘‘लो, डरा दिया उसे,’’ नवीन ने नाटकीय अंदाज में अपनी छाती फुलाई.

‘‘थैंक यू. चलो, अंदर चलें.’’

अर्चना ने हाल में प्रवेश करने के लिए कदम बढ़ाए ही थे कि एक युवक से टकरा गई.

उस युवक के साथी ने अर्चना का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘‘जमाना बदल गया है, दोस्त. आज की लड़कियां खुलेआम लड़कों को टक्कर मारने लगी हैं.’’

‘‘शटअप,’’ अर्चना ने नाराज हो कर उसे डांट दिया.

‘‘इतनी खूबसूरत आंखों के होते हुए देख कर क्यों नहीं चल रही हो तुम?’’ पहले वाले युवक ने अर्चना का मजाक उड़ाते हुए सवाल किया.

‘‘शटअप, यू बास्टर्ड, लेडीज से बात करने की तमीज…’’

नवीन अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि युवक ने फौरन उस का कालर पकड़ कर झकझोरते हुए पूछा, ‘‘क्या है, मुझे गाली क्यों दी तू ने?’’

‘‘मेरा कालर छोड़ो,’’ नवीन को गुस्सा आ गया.

‘‘नहीं छोडं़ूगा. पहले बता कि गाली क्यों दी?’’

नवीन ने झटके से उस युवक से अपना कालर छुड़ाया तो उस की शर्ट के बटन टूट गए. उस का उस युवक पर गुस्सा बढ़ा तो हाथ छोड़ने की गलती कर बैठा.

इस से पहले कि भीड़ व अर्चना उन में बीचबचाव कर पाते, उन दोनों युवकों ने नवीन पर 8-10 हाथ जड़ दिए.

खिसियाया नवीन पुलिस बुलाना चाहता था पर अर्चना उसे खींच कर हाल के अंदर ले गई.

कोने वाली सीट पर अर्चना के साथ बैठ कर नवीन का मूड जल्दी ही ठीक हो गया. उस ने दोचार रोमांटिक संवाद बोले, फिर उस के कंधे से सटा और झटके से अर्चना का हाथ पकड़ कर उसे चूम लिया.

‘‘भाइयो, आज तो डबल मजा आएगा. एक टिकट में 2-2 फिल्में देखेंगे. एक दूर स्क्रीन पर और दूसरी बिलकुल सामने. पहली एक्शन और दूसरी सेक्स और रोमांस से भरपूर होगी,’’ बिलकुल पीछे वाली सीट से एक युवक की आवाज उभरी और उस के 3 दोस्त ठहाका मार कर हंसे.

अर्चना झटके से नवीन की दूसरी दिशा में झुक कर बैठ गई. नवीन ने पीछे घूम कर देखा तो चारों युवक एकदूसरे की तरफ देख कर हंस रहे थे. उन में 2 युवक वही थे जिन के साथ उस का बाहर झगड़ा हुआ था.

नवीन की बगल में 1 मिनट पहले आ कर बैठे आदमी ने उसे बिन मांगी सलाह दी, ‘‘जनाब, आजकल का यूथ बदतमीज हो गया है. उन से उलझना मत. अपनी पत्नी के साथ घर जा कर प्यार मोहब्बत की बातें कर लेना.’’

नवीन ने गरदन मोड़ कर देखा तो पाया कि बाहर अर्चना को घूरने वाला बड़ीबड़ी मूंछों वाला व्यक्ति ही उस की बगल में बैठा था.

नवीन कोई प्रतिक्रिया दर्शाता, उस से पहले ही अर्चना फुसफुसा कर बोली, ‘‘सर, इस हाल का मैनेजर मेरे पति का परिचित है. मैं उस के सामने नहीं जाना चाहती हूं. आप समझदारी दिखाते हुए शांत हो कर बैठें.’’

नवीन मन मसोस कर सीधा बना बैठा रहा. वह जरा भी हिलताडुलता तो पीछे से फौरन आवाज आती, ‘‘अब चालू होगी दूसरी फिल्म.’’

पिक्चर हाल के अंधकार का तनिक भी फायदा न उठा सकने और 4-5 सौ रुपए यों ही बेकार में खर्च करने का अफसोस मन में लिए नवीन 3 घंटे बाद अर्चना के साथ पिक्चर हाल से बाहर आ गया.

अर्चना ने कुछ खाने की फरमाइश की तो फिर से उत्साह दर्शाते हुए नवीन उसे उस के मनपसंद होटल में ले आया.

दुर्भाग्य ने यहां भी नवीन का साथ नहीं छोड़ा और अर्चना के साथ जी भर कर दिल की बातें करने का मौका उसे नहीं मिला.

हुआ यों कि वेटर उन के लिए जो डोसासांभर ले कर आया उस में अर्चना की सांभर वाली कटोरी में लंबा सा बाल निकल आया.

‘‘आज इस होटल के मालिक की खटिया खड़ी कर दूंगी मैं,’’ नवीन को बाल दिखाते हुए अर्चना की आंखों से गुस्से की चिंगारियां उठ रही थीं.

‘‘तुम जा कहां रही हो?’’ उसे कुरसी छोड़ कर उठते देख नवीन परेशान हो उठा.

‘‘मालिक से शिकायत करने…और कहां?’’ अर्चना झटके से उठी तो एक और लफड़ा हो गया.

मेज को धक्का लगा और उस पर रखा खाने का सामान व प्लेटेंगिलास फर्श पर गिर कर टूट गए.

3 वेटर उन की मेज की तरफ बढ़े और अर्चना मालिक के कक्ष की तरफ. हाल में बैठे दूसरे लोगों के ध्यान का केंद्र वही बनी हुई थी.

अर्चना ने होटल के मालिक को खूब खरीखोटी सुनाई. उसे बोलने का मौका ही नहीं दिया उस ने. वह बेचारा मिमियाता सा ‘मैडम, मैडम’ से आगे कोई सफाई नहीं दे पाया.

अर्चना के चीखनेचिल्लाने व धमकियां देने से परेशान होटल मालिक ने अपने सामने दोबारा उन की मेज लगवाई. डोसासांभर इस बार ‘आन दी हाउस’ उन के सामने पेश किया गया, पर अर्चना का मूड ज्यादा नहीं सुधरा. वह वेटरों को लगातार गुस्से से घूरती रही. नवीन ने उसे समझाने की कोशिश की, तो वह भी अर्चना के गुस्से का शिकार हो गया.

जब वे दोनों होटल के बाहर आए तो नवीन ने दबी जबान में कुछ देर बाजार में घूमने की बात कही. अर्चना ने साफ मना कर दिया.

‘‘कुछ देर सामने सुंदर पार्क में चल कर बैठते हैं. मेरा दिमाग शायद वहीं बैठ कर ठंडा होगा,’’ अर्चना के इस प्रस्ताव का नवीन ने मुसकरा कर स्वागत किया.

‘‘आज न जाने किस मनहूस का मैं ने सुबह मुंह देखा, जो इतना अच्छा दिन खराब गुजर रहा है? तुम जैसी सुंदरी के साथ पार्क में घूमना मेरे लिए तो गर्व की बात है.’’

नवीन की बात सुन कर अर्चना मुसकराई, तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

पार्क काफी बड़ा था. अर्चना की मांग पर वे दोनों बातें करते हुए उस का चक्कर लगाने लगे.

पार्क के पीछे का हिस्सा सुनसान व ज्यादा घने पेड़पौधों वाला था. यहीं एकांत में पड़ी बैंच पर अर्चना बैठ गई तो नवीन भी उस की बगल में बैठ गया.

बातें करतेकरते अचानक नवीन ने अर्चना को कंधे से पकड़ा और अपने नजदीक कर अपनी बांहों में भरने की कोशिश की.

अर्चना ने अपने को छुड़ाने की कोई खास कोशिश नहीं की, पर नवीन को फौरन ही अपनी बांहों के घेरे से उसे मुक्त करने को मजबूर होना पड़ा.

2 सादी वरदी में पुलिस वाले एक घनी झाड़ी के पीछे से अचानक उन के सामने प्रकट हुए और शिकारी की नजरों से घूरते हुए पास आ गए.

‘‘शर्म नहीं आती तुम दोनों को सार्वजनिक स्थल पर अश्लील हरकतें करते हुए. समाज में गंदगी फैलाने के लिए तुम जैसे लोगों का मुंह काला कर के सड़कों पर घुमाना चाहिए,’’ लंबे कद का पुलिस वाला नवीन को खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था.

‘‘बेकार में हमें तंग मत करो,’’ नवीन ने अपने डर को छिपाने का प्रयास करते हुए तेज स्वर में कहा, ‘‘हम कोई गलत हरकत नहीं कर रहे थे.’’

‘‘अब थाने चल कर सफाई देना,’’ दूसरे पुलिस वाले ने उन्हें फौरन धमकी दे डाली.

‘‘मैं पुलिस स्टेशन बिलकुल नहीं जाऊंगी,’’ अर्चना एकदम से रोंआसी हो उठी.

‘‘यह इस की पत्नी नहीं हो सकती,’’ लंबे कद का पुलिस वाला अपने साथी से बोला.

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हैं, सर?’’ उस के साथी ने उत्सुकता दर्शाई.

‘‘अरे, अपनी बीवी के साथ कौन इतने जोश से गले मिलने की कोशिश करता है?’’

‘‘इस का मतलब यह किसी और की बीवी के साथ ऐश करने यहां आया है. गुड, हमारा केस इस कारण मजबूत बनेगा, सर.’’

‘‘नवीन, कुछ करो, प्लीज,’’ अर्चना के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.

‘‘देखिए, आप दोनों को जबरदस्त गलतफहमी हुई है. हम कोई अश्लील हरकत…’’

‘‘कर ही नहीं सकते क्योंकि इन के बीच गलत रिश्ता है ही नहीं मिस्टर पुलिसमैन,’’ अचानक झाड़ी के पीछे से निकल कर उन का एक और सहयोगी मनोज उन के सामने आ गया.

उस के साथ विकास भी था. इन्हें देख कर पुलिस वाले ज्यादा सतर्क  और गंभीर से नजर आने लगे.

‘‘आप इन दोनों को जानते हैं?’’ लंबे पुलिस वाले ने सख्त स्वर में सवाल किया.

‘‘जानते भी हैं और इन के साथ भी हैं. यह हैं हमारी अर्चना दीदी,’’ विकास ने परिचय दिया.

‘‘और यह साहब?’’ उस ने नवीन की तरफ उंगली उठाई.

‘‘यह हमारे नवीन भैया हैं, क्योंकि उम्र में सब से बड़े हैं. अब आप ही बताइए कि कहीं भाईबहन अश्लील हरकत…छी, छी, छी,’’ विकास ने बुरी सी शक्ल बना कर दोनों पुलिस वालों को शर्मिंदा करने का प्रयास किया.

‘‘अगर ये भाईबहन हैं तो यह इसे गले लगाने की क्यों कोशिश कर रहा था?’’ दूसरे  पुलिस वाले ने अपने माथे पर बल डाल कर प्रश्न किया.

‘‘जवाब दीजिए, नवीन भाई साहब,’’ मनोज ने उसे ‘हिंट’ देने की कोशिश की, ‘‘अर्चना दीदी आजकल जीजाजी की सेहत के कारण चिंतित चल रही हैं. कहीं आप उन्हें हौसला बंधाने को तो गले से नहीं लगा रहे थे?’’

‘‘बिलकुल, बिलकुल, यही बात है,’’ नवीन अपनी सफाई देते हुए उत्तेजित सा हो उठा, ‘‘मेजर साहब, यानी कि मेरे जीजा की तबीयत ठीक नहीं चल रही है. इसलिए यह दुखी थी और मैं इसे सांत्वना…’’

‘‘क्या आप के पति फौज में मेजर हैं?’’ लंबे पुलिस वाले ने नवीन को नजरअंदाज कर अर्चना से अचानक अपना लहजा बदल कर बड़े सम्मानित ढंग से पूछा.

‘‘जी, हां,’’ अर्चना ने संक्षिप्त सा जवाब दिया.

‘‘यह आप की बहन हैं?’’ दूसरे ने नवीन से पूछा.

‘‘जी, हां.’’

‘‘असली बहन हैं?’’

‘‘जी, नहीं. ये आफिस वाली बहन हैं,’’ मनोज बीच में बोल पड़ा.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि  हम सब एक आफिस में साथसाथ काम करते हैं और वहां सब के बीच भाईबहन का रिश्ता है.’’

‘‘आप को विश्वास नहीं हो रहा है तो नवीन भैया से पूछ लीजिए,’’ विकास बोला था.

दोनों पुलिस वालों ने नवीन को पैनी निगाहों से घूरा तो उस ने फौरन हकलाते हुए कहा, ‘‘हांहां, हम सब वहां भाईबहन की तरह प्यार से रहते हैं.’’

‘‘आप को परेशान किया इसलिए माफी चाहते हैं, मैडम,’’ लंबे कद के पुलिस वाले ने अर्चना से क्षमा मांगी और अपने साथी के साथ वहां से चला गया.

जहां वे बैठे थे वहां से सड़क नजर आती थी. वहां खड़ी एक सफेद रंग की कार में बैठे ड्राइवर ने अचानक जोरजोर से हार्न बजाना शुरू कर दिया.

‘‘मुझे वह बुला रहे हैं,’’ ऐसी सूचना दे कर अर्चना अचानक उठ खड़ी हुई.

‘‘कौन बुला रहा है?’’ नवीन ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘थैंक यू, नवीन भैया, लंच और फिल्म दिखाने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद,’’ उस के सवाल का कोई जवाब दिए बिना अर्चना उस सफेद कार की तरफ चल पड़ी.

‘‘नवीन भैया,’’ मनोज ने ये 2 शब्द मुंह से निकाले और अचानक ठहाका मार कर हंसने लगा.

‘‘सर, वैलकम टू दी अर्चना दीदी क्लब,’’ विकास ने भी अपने सहयोगी का हंसने में साथ दिया.

‘‘देखो, ये बात किसी को आफिस में मत बताना,’’ अपने गुस्से को पी कर नवीन ने उन दोनों से प्रार्थना की.

दोनों ने मुंह पर उंगली रख कर उन्हें अपने खामोश रहने के प्रति आश्वस्त किया, पर वे दोनों अपनी हंसी रोकने में असफल रहे.

नवीन ने जब कार के ड्राइवर को बाहर निकलते देखा तो जोर से चौंका. ड्राइवर वही बड़ीबड़ी मूंछों वाला शख्स था जिसे उन्होंने सिनेमा हाल के बाहर अर्चना को घूरते हुए देखा था और जो अंदर हाल में उस की बगल में बैठा था.

‘‘यह कौन है?’’ नवीन ने उलझन भरे स्वर में पूछा.

‘‘यह मेजर साहब हैं…अर्चना के पति,’’ विकास ने जवाब दिया.

‘‘पर…पर अर्चना ने मुझे सच क्यों नहीं बताया?’’

‘‘सर, हमें भी नहीं बताया था और हम बन गए अर्चना दीदी क्लब के पहले 2 सदस्य. अपने फौजी जवानों की मदद से…होटल व सिनेमा हाल के मालिक से उन की दोस्ती है और उन दोनों की मदद से मेजर साहब अपनी छुट्टियों में अर्चना दीदी को तंग करने वाले हमारेतुम्हारे जैसे किसी रोमियो को ‘अर्चना दीदी क्लब’ का सदस्य बनवा जाते हैं.’’

‘‘और ये दोनों पुलिस वाले नकली थे?’’

‘‘नहीं, सर, ये मिलिटरी पुलिस के लोग थे.’’

‘‘किसी को यों बेवकूफ बनाने का तरीका बिलकुल गलत है,’’ नवीन अपनी कमीज के टूटे बटनों को छू कर उस घटना को याद कर रहा था जब 2 युवकों ने, जो यकीनन फौजी सिपाही थे, उस पर हाथ उठाया था.

‘‘सर, आप के साथ जो गुस्ताखी हुई है, यह उस गुस्ताखी की सजा है जो आप ने यकीनन अर्चना दीदी के साथ की होगी. वैसे मेजर साहब दिल के अच्छे इनसान हैं और उन का एक संदेशा है आप के लिए.’’

‘‘क्या संदेशा है?’’

‘‘आर्मी क्लब में आप सपरिवार उन के डिनर पर मेहमान बन सकते हैं. आज वह दोनों पारिवारिक मित्र हैं और आप  चाहें तो उसी श्रेणी में शामिल हो सकते हैं.’’

‘‘सर, आप को क्लब जरूर आना चाहिए. अपनी भूल को सुधारने व क्षमा मांगने का यह अच्छा मौका साबित होगा,’’ बहुत देर से खामोश मनोज ने नवीन को सलाह दी.

कुछ पलों तक नवीन खामोश रह कर सोचविचार में डूबे रहे. फिर अचानक उन्होंने अपने कंधे उचकाए और मुसकरा पडे़.

‘‘दोस्तो, हम ‘अर्चना दीदी क्लब’ के सदस्यों को मिलजुल कर रहना ही चाहिए. मैं सपरिवार क्लब में पहुंचूंगा.’’

नवीन की इस घोषणा को सुन कर विकास और मनोज कुछ हैरान हुए और फिर उन तीनों के सम्मिलित ठहाके से पार्क का वह कोना गूंज उठा.

सप्ताह का एक दिन

अजय अभी भी अपनी बात पर अडिग थे, ‘‘नहीं शोभा, नहीं… जब बेटी के पास हमारे लिए एक दिन का भी समय नहीं है तब यहां रुकना व्यर्थ है. मैं क्यों अपनी कीमती छुट्टियां यहां रह कर बरबाद करूं…और फिर रह तो लिए महीना भर.’’

‘‘पर…’’ शोभा अभी भी असमंजस में ही थीं.

‘‘हम लोग पूरे 2 महीने के लिए आए हैं, इतनी मुश्किल से तो आप की छुट्टियां मंजूर हो पाई हैं, फिर आप जल्दी जाने की बात कहोगे तो रिचा नाराज होगी.’’

‘‘रिचा…रिचा…अरे, उसे हमारी परवा कहां है. हफ्ते का एक दिन भी तो नहीं है उस के पास हमारे लिए, फिर हम अभी जाएं या महीने भर बाद, उसे क्या फर्क पड़ता है.’’

अजय फिर बिफर पड़े थे. शोभा खामोश थीं. पति के मर्म की चोट को वह भी महसूस कर रही थीं. अजय क्या, वह स्वयं भी तो इसी पीड़ा से गुजर रही थीं.

अजय को तो उस समय भी गुस्सा आया था जब फोन पर ही रिचा ने खबर दी थी, ‘‘ममा, जल्दी यहां आओ, आप को सौरभ से मिलवाना है. सच, आप लोग भी उसे बहुत पसंद करेंगे. सौरभ मेरे साथ ही माइक्रोसौफ्ट में कंप्यूटर इंजीनियर है. डैशिंग पर्सनैलिटी, प्लीजिंग बिहेवियर…’’ और भी पता नहीं क्याक्या कहे जा रही थी रिचा.

अजय का पारा चढ़ने लगा, फोन रखते ही बिगड़े थे, ‘‘अरे, बेटी को पढ़ने भेजा है. वह वहां एम.एस. करने गई है या अपना घर बसाने. दामाद तो हम भी यहां ढूंढ़ लेंगे, भारत में क्या अच्छे लड़कों की कमी है, कितने रिश्ते आ रहे हैं. फिर हमारी इकलौती लाड़ली बेटी, हम कौन सी कमी रहने देंगे.’’

बड़ी मुश्किल से शोभा अजय को कुछ शांत कर पाई थीं, ‘‘आप गुस्सा थूक दीजिए…देखिए, पसंद तो बेटी को ही करना होगा, तो फिर यहां या वहां क्या फर्क पड़ता है. अब हमें बुला रही है तो ठीक है, हम भी देख लेंगे.’’

‘‘अरे, हमें तो वहां जा कर बस, उस की पसंद पर मुहर लगानी है. उसे हमारी पसंद से क्या लेनादेना. हम तो अब कुछ कह ही नहीं सकते हैं,’’ अजय कहे जा रहे थे.

बाद में रिचा के और 2-3 फोन आए थे. बेमन से ही सही पर जाने का प्रोग्राम बना. अजय को बैंक से छुट्टी मंजूर करानी थी, पासपोर्ट, वीजा बनना था, 2 महीने तो इसी में लग गए…अब इतनी दूर जा रहे हैं, खर्चा भी है तो कुछ दिन तो रहें, यही सब सोच कर 2 महीने रुकने का प्रोग्राम बनाया था.

पर यहां आ कर तो महीना भर काटना भी अजय को मुश्किल लगने लगा था. रिचा का छोटा सा एक कमरे का अपार्टमेंट. गाड़ी यहां अजय चला नहीं सकते थे, बेटी ही कहीं ले जाए तो जाओ…थोड़ेबहुत बस के रूट पता किए पर अनजाने देश में सभी कुछ इतना आसान नहीं था.

फिर सब से बड़ी बात तो यह कि रिचा के पास समय नहीं था. सप्ताह के 5 दिन तो उस की व्यस्तता के होते ही थे. सुबह 7 बजे घर से निकलती तो लौटने में रात के 8 साढे़ 8 बजते. दिन भर अजय और शोभा अपार्टमेंट में अकेले रहते. बड़ी उत्सुकता से वीक एंड का इंतजार रहता…पर शनिवार, इतवार को भी रिचा का सौरभ के साथ कहीं जाने का कार्यक्रम बन जाता. 1-2 बार ये लोग भी उन के साथ गए पर फिर अटपटा सा लगता. जवान बच्चों के बीच क्या बात करें…इसलिए अब खुद ही टाल जाते, सोचते, बेटी स्वयं ही कुछ कहे पर रिचा भी तो आराम से सौरभ के साथ निकल जाती.

‘‘सबकुछ तो बेटी ने तय कर ही लिया है. बस, हमारी पसंद का ठप्पा लगवाना था उसे, पर बुलाया क्यों था हमें जब सप्ताह का एक दिन भी उस के पास हमारे लिए नहीं है,’’ अजय का यह दर्द शोभा भी महसूस कर रही थीं, पर क्या कहें?

अजय ने तो अपना टिकट जल्दी का करवा लिया था. 1 ही सीट खाली थी. कह दिया रिचा से कि बैंक ने छुट्टियां कैंसल कर दी हैं.

‘‘मां, तुम तो रुक जातीं, ठीक है, पापा महीना भर रह ही लिए, छुट्टियां नहीं हैं, और अभी फिलहाल तो सीट भी 1 ही मिल पाई है.’’

शोभा ने चुपचाप अजय की ओर देखा था.

‘‘भई, तुम्हारी तुम जानो, जब तक चाहो बेटी के पास रहो, जब मन भर जाए तो चली आना.’’

अजय की बातों में छिपा व्यंग्य भी वह ताड़ गई थीं, पर क्या कहतीं, मन में जरूर यह विचार उठा था कि ठीक है रिचा ने पसंद कर लिया है सौरभ को, पर वह भी तो अच्छी तरह परख लें, अभी तो ठीक से बात भी नहीं हो पाई है और फिर उस के इस व्यवहार से अजय को चोट पहुंची है. यह भी तो समझाना होगा बेटी को.

अजय तीसरे दिन चले गए थे.

अब और अकेलापन था…बेटी की तो वही दिनचर्या थी. क्या करें…इधर सुबह टहलने का प्रोग्राम बनाया तो सर्दी, जुकाम, खांसी सब…

जब 2-3 दिन खांसते हो गए तो रिचा ने ही उस दिन सुबहसुबह मां से कह दिया, जब वह चाय बना रही थीं, ‘‘अरे, आप की खांसी ठीक नहीं हो रही है, पास ही डा. डेनियल का नर्सिंग होम है, वहां दिखा दूं आप को…’’

‘‘अरे, नहीं,’’ शोभा ने चाय का कप उठाते हुए कहा, ‘‘खांसी ही तो है. गरम पानी लूंगी, अदरक की चाय तो ले ही रही हूं. वैसे मेरे पास कुछ दवाइयां भी हैं, अब यहां तो क्या है, हर छोटीमोटी बीमारी के लिए ढेर से टेस्ट लिख देते हैं.’’

‘‘नहीं मां, डा. डेनियल ऐसे नहीं हैं. मैं उन से दवा ले चुकी हूं. एक बार पैर में एलर्जी हुई थी न तब…बिना बात में टेस्ट नहीं लिखेंगे, और उन की पत्नी एनी भी मुझे जानती हैं, अभी मेरे पास टाइम है, आप को वहां छोड़ दूं. वैसे क्लिनिक पास ही है. आप पैदल ही वापस आ जाना, घूमना भी हो जाएगा.’’

रिचा ने यह सब इतना जोर दे कर कहा था कि शोभा को जाना ही पड़ा.

डा. डेनियल का क्लिनिक पास ही था… सुबह से ही काफी लोग रिसेप्शन में जमा थे. नर्स बारीबारी से सब को बुला रही थी.

यहां सभी चीजें एकदम साफसुथरी करीने से लगी हुई लगती है और लोग कितने अनुशासन में रहते हैं.

शोभा की विचार शृंखला शुरू हो गई थी, उधर रिचा कहे जा रही थी, ‘‘मां, डा. डेनियल ने अपनी नर्स से विवाह कर लिया था और अस्पताल तो वही संभाल रही हैं, किसी डाक्टर से कम नहीं हैं, अभी पहले डा. डेनियल की मां आप का बायोडाटा लेंगी…75 से कम उम्र क्या होगी, पर सारा सेके्रटरी का काम वही करती हैं.’’

‘‘अपने बेटे के साथ ही रहती होंगी,’’ शोभा ने पूछा.

‘‘नहीं, रहती तो अलग हैं. असल में बहू से उन की बनती नहीं है, बोलचाल तक नहीं है पर बेटे को भी नहीं छोड़ पाती हैं, तो यहां काम करती हैं.’’

शोभा को रिचा की बातें कुछ अटपटी सी लगने लगी थीं. उधर नर्स ने अब शोभा का ही नाम पुकारा था.

‘‘अच्छा, मां, मैं अब चलूं, आप अपनी दवा ले कर चली जाना, रास्ता तो देख ही लिया है न, बस 5 मिनट पैदल का रास्ता है, यह रही कमरे की चाबी,’’ कह कर रिचा तेजी से निकल गई थी.

नर्स ने शोभा को अंदर जाने का इशारा किया.

अंदर कमरे में बड़ी सी मेज पर कंप्यूटर के सामने डा. मिसेज जौन बैठी थीं.

‘‘हाय, हाउ आर यू,’’ वही चिर- परिचित अंदाज इस देश का अभिवादन करने का.

‘‘सो, मिसेज शोभा प्रसाद…व्हाट इज योर प्रौब्लम…’’ और इसी के साथ मिसेज जौन की उंगलियां खटाखट कंप्यूटर पर चलने लगी थीं.

शोभा धीरेधीरे सब बताती रहीं, पर वह भी अभिभूत थीं, इस उम्र में भी मिसेज जौन बनावशृंगार की कम शौकीन नहीं थीं. करीने से कटे बाल, होंठों पर लाल गहरी लिपस्टिक, आंखों में काजल, चुस्त जींस और जैकेट.

हालांकि उन के चेहरे से उम्र का स्पष्ट बोध हो रहा था, हाथ की उंगलियां तक कुछ टेढ़ी हो गई थीं, क्या पता अर्थराइटिस रहा हो. फिर भी कितनी चुस्ती से सारा काम कर रही थीं.

‘‘अब आप उधर जाओ…

डा. डेनियल देखेंगे आप को.’’

शोभा सोच रही थीं कि मां हो कर भी यह महिला यहां बस, जौब के एटीकेट्स की तरह  ही व्यवहार कर रही हैं…कहीं से पता नहीं चल रहा है कि     डा. डेनियल उसी के बेटे हैं.

डा. डेनियल की उम्र भी 50-55 से कम क्या होगी…लग भी रहे थे, एनी भी उसी उम्र के आसपास होगी…पर वह काफी चुस्त लग रही थी और उस की उम्र का एहसास नहीं हो रहा था. बनावशृंगार तो खैर यहां की परंपरा है.

‘‘यू आर रिचाज मदर?’’ डा. डेनियल ने देखते ही पूछा था.

शायद रिचा ने फोन कर दिया होगा.

खैर, उन्होंने कुछ दवाइयां लिख दीं और कहा, ‘‘आप इन्हें लें, फिर फ्राइडे को और दिखा दें…आप को रिलीफ हो जाना चाहिए, नहीं तो फिर मैं और देख लूंगा.’’

‘‘ओके, डाक्टर.’’

शोभा ने राहत की सांस ली. चलो, जल्दी छूटे. दवाइयां भी बाहर फार्मेसी से मिल गई थीं. पैदल घर लौटने से घूमना भी हो गया. दिन में कई बार फिर मिसेज जौन का ध्यान आता कि वह भी तो मां हैं पर रिचा ने कैसे इतनी मैकेनिकल लाइफ से अपनेआप को एडजस्ट कर लिया है. वहां देख कर तो लगता ही नहीं है कि मां की बेटेबहू से कोई बात भी होती होगी. रिचा भी कह रही थी कि मां अकेली हैं, अलग रहती हैं. अपने टाइम पर आती हैं, कमरा खोलती हैं, काम करती हैं.

पता नहीं, शायद इन लोगों की मानसिकता ही अलग हो.

जैसे दर्द इन्हें छू नहीं पाता हो, तभी तो इतनी मुस्तैदी से काम कर लेते हैं.

शोभा को फिर रिचा का ध्यान आया. इस वीक एंड में वह बेटी से भी खुल कर बात करेंगी. भारत जाने से पहले सारी मन की व्यथा उड़ेल देना जरूरी है. वह थोड़े ही मिसेज जौन की तरह हो सकती हैं.

वैसे डा. डेनियल की दवा से खांसी में काफी फायदा हो गया था. फिर भी रिचा ने कहा, ‘‘मां, आप एक बार और दिखा देना…चाहो तो इन दवाओं को और कंटीन्यू करा लेना.’’

वह भी सोच रही थीं कि फ्राइडे को जा कर डाक्टर को धन्यवाद तो दे ही दूं. पैदल घूमना भी हो जाएगा.

सब से रहस्यमय व्यक्तित्व तो उन्हें मिसेज जौन का लगा था. इसलिए उन से भी एक बार और मिलने की इच्छा हुई थी…आज अपेक्षाकृ त कम भीड़ थी, नर्स ने बताया कि आज एनी भी नहीं आई हैं, डाक्टर अकेले ही हैं,…

‘‘क्यों…’’

‘‘एनी छुट्टी रखती हैं न फ्राइडे को.’’

‘‘अच्छा, पर सेक्रेटरी,’’

‘‘हां, आप इधर चली जाओ, पर जरा ठहरो, मैं देख लूं.’’

मिसेज जौन के कमरे के बाहर अब शोभा के भी पैर रुक गए थे. शायद वह फोन पर बेटे से ही बात कर रही थीं.

‘‘पर डैनी…पहले ब्रेकफास्ट कर लो फिर देखना पेशेंट को…यस, मैं ने मफी बनाए थे…लाई हूं और यहां काफी भी बना ली है…यस कम सून…ओके.’’

‘‘आप जाइए…’’

नर्स ने कहा तो शोभा अंदर गईं… वास्तव में आज मिसेज जौन काफी अच्छी लग रही थीं…आज जौन वाला एटीट्यूड भी नहीं था उन का.

‘‘हलो, मिसेज शोभा, यू आर ओके नाउ,’’ चेहरे पर मुसकान फैल गई थी मिसेज जौन के.

‘‘यस…आय एम फाइन…’’ डाक्टर साहब ने अच्छी दवाइयां दीं.’’

‘‘ओके, ही इज कमिंग हिअर… यहीं आप को देख लेंगे. आप काफी लेंगी,’’ मिसेज जौन ने सामने रखे कप की ओर इशारा किया.

‘‘नो, थैंक्स, अभी ब्रेकफ ास्ट कर के ही आई हूं.’’

शोभा को आज मिसेज जौन काफी बदली हुई और मिलनसार महिला लगीं.

‘‘यू आर आलसो लुकिंग वेरी चियरफुल टुडे,’’ वह अपने को कहने से रोक नहीं पाई थीं.

‘‘ओह, थैंक्स…’’

मिसेज जौन भी खुल कर हंसी थीं.

‘‘बिकौज टुडे इज फ्राइडे…दिस इज माइ डे, मेरा बेटा आज मेरे पास होगा, हम लोग नाश्ता करेंगे, आज एनी नहीं है इसलिए, यू नो मिसेज शोभा, वीक का यही एक दिन तो मेरा होता है. दिस इज माई डे ओनली डे इन दी फुल वीक,’’ मिसेज जौन कहे जा रही थीं और शोभा अभिभूत सी उन के चेहरे पर आई चमक को देख रही थीं.

शब्द अभी भी कानों में गूंज रहे थे …ओनली वन डे इन ए वीक…

फिर अजय याद आए, बेटी के पास सप्ताह भर में एक दिन भी नहीं है हमारे लिए …अजय का दर्द भरा स्वर…और आज उसे लगा, मानसिकता कहीं भी अलग नहीं है.

वही मांबाप का हृदय…वही आकांक्षा फिर अलग…कहां हैं हम लोग.

‘ओनली डे इन ए वीक…’ वाक्य फिर ठकठक कर दिमाग पर चोट करने लगा था.    द्

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