उद्योग जगत को वित्तमंत्री की राहत भरी घोषणाओं से यह अंदाजा तो लग रहा है कि सरकार को अब देश की आर्थिक हालत का अंदाजा हो गया है. यह बात और है कि सरकार अभी भी अपनी गलत आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार नहीं मान रही है. देश आर्थिक मंदी की चपेट में है. जिम्मेदार मंत्री और अफसर अभी भी मुख्य कारणों की बात ना करके केवल सरकार के मनपसंद बयान दे रहे हैं.
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने उद्योग जगत को लेकर जो घोषणाएं की है यह पहले होनी चाहिये थी. सरकार को यह बताना चाहिए कि जीएसटी, आयकर और नोटबंदी को लेकर जो काम हुए उनका देश पर कितना सकारात्मक प्रभाव पड़ा. अगर सरकार की आर्थिक नीतियां देश और उद्योग जगत के हित में थी तो देश का कारोबार डूब क्यों रहा है? जीएसटी और आयकर को लेकर सरकार ने जो नियम बनाए. उससे कारोबारियों पर लालफीताशाही हावी हो गई. कारोबारी इंस्पेक्टर राज में फंस गये. आयकर विभाग के नोटिस, छापे कारोबारियों को तोड़ने में सफल रहे. वित्तमंत्री ने अब इस बात को समझा और आयकर कर नोटिस के स्वरूप को बदलने की बात कही है.
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बड़े कारोबारी से लेकर सड़क पर दुकान लगाने वाला छोटा रेहडी वाला तक लाल फीताशाही का शिकार हो रहा था. सरकार यह तर्क दे रही थी कि अगर देश की जनता उसके कामों से खुश नहीं थी तो उनको चुनाव में जीत कैसे मिल रही थी? केन्द्र सरकार ने अपने इस तर्क के आगे हर बात को अनसुना कर दिया. अपनी किसी नीति में सुधार नहीं किया. लिहाजा देश लगातार आर्थिक मंदी के दौर में फंसता गया. जब पानी गले तक आ गया तो उद्योग जगत में त्राहि त्राहि मच गई. तब सरकार के कानून पर जूं रेगीं और वित्त मंत्रालय ने आनन फानन में कुछ सुविधाओं का ऐलान कर दिया. सरकार अब भी यह मानने को तैयार नहीं है कि देश की आर्थिक मंदी गलत आर्थिक नीतियों का खामियाजा है.