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राजभाषा हिंदी का सफर

हिंदी को संविधान में राजभाषा का स्थान प्राप्त हुए 69 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं और अगर हम गंभीरता से इस बार विचार करें तो ये पायेंगे कि इतने वर्षों में अगर इस लक्ष्य की और हमने एक कदम भी बढ़ाया होता तो मंजिल के बहुत करीब होते.  हमने तो सिर्फ दशकों में उसे अधिनियम में परिवर्तन किया और कुछ परिवर्तन भी नहीं किया बल्कि उसको गोल गोल घुमा कर वहीं ला कर रख दिया गया.  हमने इसको इतने वर्षों में इस दिशा में कार्य करने सितम्बर माह की 14 तारीख, प्रथम पखवारा, अंतिम पखवारे तक सीमित कर दिया है.  प्रयास चाहे सरकारी हों या  संस्थानीय. अगर निरंतर प्रयास किया गया होता या फिर हम आज भी करें तो सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं.  अच्छे कार्य  के लिए देर कभी भी नहीं होती है.  अब भी सिर्फ राजभाषा के लिए नहीं अपितु हिंदी भाषा के लिए प्रगति और उसको गतिमान बनाये रखने की दिशा में हम बहुत काम कर चुके होते.

सरकार ने नीतियां बनाई लेकिन राजभाषा के साथ अंग्रेजी को हमेशा जोड़े रखा, आखिर क्यों ? अंग्रेजी हमारी देश की किसी भी राज्य की मातृभाषा नहीं है.  इसको तमिलनाडु की राजभाषा घोषित क्यों गया ? वहां की अपनी मातृभाषा है. संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं पास करके  समस्त  राज्यों से अधिकारी बनते हैं तो फिर उन समस्त विषयों के साथ राजभाषा की परीक्षा अनिवार्य क्यों नहीं रखा गया क्योंकि नौकरशाही और राजनीतिक महत्वाकांक्षा हिंदी को उसका   समुचित स्थान देने के लिए प्रतिबद्ध हुए ही नहीं है.

हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में १४ सितम्बर सन् १९४९ को स्वीकार किया गया. इसके बाद संविधान में अनुच्छेद ३४३ से ३५१ तक राजभाषा के साम्बन्ध में व्यवस्था की गयी. इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये १४ सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है. केंद्रीय स्तर पर भारत में दूसरी सह राजभाषा अंग्रेजी है.

धारा ३४३(१) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी एवं लिपिदेवनागरी है. संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप (अर्थात 1, 2, 3 आदि) है.

हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था.[2][3] संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है. परन्तु राज्यसभा के सभापति महोदय या लोकसभा के अध्यक्ष महोदय विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं. {संविधान का अनुच्छेद 120} किन प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अंतर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए निदेशों द्वारा निर्धारित किया गया है.

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हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने का औचित्य

हिन्दी को राजभाषा का सम्मान कृपापूर्वक नहीं दिया गया, बल्कि यह उसका अधिकार है. यहां अधिक विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है, केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा बताये गये निम्नलिखित लक्षणों पर दृष्टि डाल लेना ही पर्याप्त रहेगा, जो उन्होंने एक ‘राजभाषा’ के लिए बताये थे-

(१) अमलदारों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए.(२) उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए.(३) यह जरूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हों.(४) राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए.(५) उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए.

इन लक्षणों पर हिन्दी भाषा बिल्कुल खरी उतरती है.

 अनुच्छेद 343 संघ की राजभाषा

(१) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा.(२) खंड (१) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था, परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा.(३) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात्‌, विधि द्वारा(क) अंग्रेजी भाषा का, या(ख) अंकों के देवनागरी रूप का,

ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं.

अनुच्छेद 351 हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश

संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्थानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे.

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राजभाषा संकल्प, 1968

भारतीय संसद के दोनों सदनों (राज्यसभा और लोकसभा) ने १९६८ में ‘राजभाषा संकल्प’ के नाम से निम्नलिखित संकल्प लिया-

  1. जबकि संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी रहेगी और उसके अनुच्छेद 351 के अनुसार हिंदी भाषा का प्रसार, वृद्धि करना और उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, संघ का कर्तव्य है :

यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के प्रसार एंव विकास की गति बढ़ाने के हेतु तथा संघ के विभिन्न राजकीय प्रयोजनों के लिए उत्तरोत्तर इसके प्रयोग हेतु भारत सरकार द्वारा एक अधिक गहन एवं व्यापक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा और किए जाने वाले उपायों एवं की जाने वाली प्रगति की विस्तृत वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट संसद की दोनों सभाओं के पटल पर रखी जाएगी और सब राज्य सरकारों को भेजी जाएगी.

2. जबकि संविधान की आठवीं अनुसूची में हिंदी के अतिरिक्त भारत की 21 मुख्य भाषाओं का उल्लेख किया गया है , और देश की शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि इन भाषाओं के पूर्ण विकास हेतु सामूहिक उपाए किए जाने चाहिए :

यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के साथ-साथ इन सब भाषाओं के समन्वित विकास हेतु भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से एक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा ताकि वे शीघ्र समृद्ध हो और आधुनिक ज्ञान के संचार का प्रभावी माध्यम बनें.

3. जबकि एकता की भावना के संवर्धन तथा देश के विभिन्न भागों में जनता में संचार की सुविधा हेतु यह आवश्यक है कि भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के परामर्श से तैयार किए गए त्रि-भाषा सूत्र को सभी राज्यों में पूर्णत कार्यान्वित करने के लिए प्रभावी किया जाना चाहिए :

यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी तथा अंग्रेजी के अतिरिक्त एक आधुनिक भारतीय भाषा के, दक्षिण भारत की भाषाओं में से किसी एक को तरजीह देते हुए, और अहिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रादेशिक भाषाओं एवं अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी के अध्ययन के लिए उस सूत्र के अनुसार प्रबन्ध किया जाना चाहिए.

4.  यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि संघ की लोक सेवाओं के विषय में देश के विभिन्न भागों के लोगों के न्यायोचित दावों और हितों का पूर्ण परित्राण किया जाए

यह सभा संकल्प करती है कि-(क) कि उन विशेष सेवाओं अथवा पदों को छोड़कर जिनके लिए ऐसी किसी सेवा अथवा पद के कर्त्तव्यों के संतोषजनक निष्पादन हेतु केवल अंग्रेजी अथवा केवल हिंदी अथवा दोनों जैसी कि स्थिति हो, का उच्च स्तर का ज्ञान आवश्यक समझा जाए, संघ सेवाओं अथवा पदों के लिए भर्ती करने हेतु उम्मीदवारों के चयन के समय हिंदी अथवा अंग्रेजी में से किसी एक का ज्ञान अनिवार्यत होगा; और(ख) कि परीक्षाओं की भावी योजना, प्रक्रिया संबंधी पहलुओं एवं समय के विषय में संघ लोक सेवा आयोग के विचार जानने के पश्चात अखिल भारतीय एवं उच्चतर केन्द्रीय सेवाओं संबंधी परीक्षाओं के लिए संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित सभी भाषाओं तथा अंग्रेजी को वैकल्पिक माध्यम के रूप में रखने की अनुमति होगी.

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संगोष्ठी के उद्देश्य –

  • राजभाषा को दस्तावेजों से उठाकर वास्तव में प्रयोग करने की दिशा में कार्ययोजना तैयार करना
  • ‎प्राथमिक स्तर से उच्चतर माध्यमिक स्तर तक हिंदी की अनिवार्यता पर विचार किया जाय.
  • ‎शिक्षा के स्तर का समय समय और परीक्षण होना ज़रूरी है.
  • ‎प्राथमिक शिक्षकों के हिंदी के ज्ञान के स्तर का परीक्षण के पश्चात नियुक्ति की जाय. अथवा नियुक्ति से पहले एक परीक्षा हिंदी व्याकरण आदि के ज्ञान पर आधारित पास करना अनिवार्य हो.
  • ‎अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में भी स्कूलों में हिन्दी का पाठ्यक्रम सतही ना होकर सभी शिक्षा बोर्डों में समान हो, ताकि हिंदी को दोयम दर्जे का ना समझ जाये.
  • ‎राजभाषा को इतने वर्षों में पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है, संविधान में परिभाषित इसके सफर को इतने वर्ष बाद गति देने के विषय में विमर्श किया जाए.
  • ‎अंग्रेजी को हिन्दी के स्थान और कुछ वर्षों तक रहने का प्राविधान किया गया था लेकिन आज भी अंग्रेजी ऊपर और हिन्दी नीचे है.
  • ‎हिन्दी को समुचित स्थान पर लाने का प्रयत्न करना है.
  • ‎अभिजात्य वर्ग की राजभाषा को उसके स्थान से चित्त रखने में भूमिका पर विचार.
  • ‎विश्व के पटल पर छायी रहने वाली हिन्दी और देश में प्रयोग होने वाली हिन्दी का स्थान सुनिश्चित कैसे हो. सोशल मीडिया द्वारा हिन्दी को विकृत करने की दिशा में उसकी भूमिका पर विमर्श एवं अंकयश पर प्रस्ताव.
  • ‎राजभाषा को मिलने वाले अनुदान पुरस्कार तथा अन्य सहायता का समुचित प्रयोग.

इतने वर्षों में यदि शिक्षा के स्तर पर हिंदी को देखा जाय तो मीडिया , मोबाइल और नेट से उपलब्ध सामग्री ने गहन ज्ञान में सेंध लगाई है . हिंदी का स्वरूप बिगड़ रहा है. न स्कूली शिक्षा में, न कार्यालयीन कार्यों में. जितने वर्ष हमने  हिंदी माह, पखवाड़ा, सप्ताह और दिवस मना रहे हैं, उतना ही हिंदी को प्राथमिकता देते तो ये दिवस बेमानी हो चुका होता .

अजब गजब: ये है दुनिया का सबसे भारी बच्‍चा

आज आपकोे दुनिया का सबसे भारी बच्चे के बारे में बताएंगे, जी हां इस  बच्चे का वजन महज 14 साल के उम्र में 237 किलोग्राम तक पहुंच गया था.  इस बच्चे का नाम मीहिर है और ये बच्चा दिल्ली का रहने वाला है. इसके परिवार वाले उसे दिल्‍ली में साकेत स्‍थित मैक्स हौस्पिटल ले कर गए जहां उसका मोटापा देख कर डौक्‍टर भी हैरान हो गए.

इसके बाद डौक्‍टरों ने फैसला किया कि उसकी  गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी की जाये. हांलाकि ये काफी चुनौती पूर्ण था. इससे पहले 2010 में जब मिहिर को डाक्‍टरों को दिखाया गया था तो उन्‍होंने उसकी कम उम्र के कारण सर्जरी करने से इंकार कर दिया था. डाक्टरों के अनुसार ये सर्जरी कराने वाला मिहिर दुनिया का सबसे भारी बच्चा था.  डौक्टरों के लिए ये एक चुनौती था, क्‍योंकि इतने भारी बच्‍चे को एनीस्थीसिया कैसे दी जायेगी.

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परिवार वालों का कहना है कि वैसे 2003 में जन्‍म के समय मिहिर का वजन सामान्‍य बच्‍चों की तरह ही 2.5 किलोग्राम था, पर उम्र बढ़ने के साथ ये खतरनाक हद तक बढ़ता चला गया. पांच साल तक होते होते वो 60 से 70 किलो तक पहुंच गया और 14 साल में ये 237 किलो हो गया. उसके लिए चलना फिरना दूभर हो गया. बिना मदद के वो खड़ा नहीं हो पाता था और ज्‍यादातर बेड पर पड़ा रहता था.

आपको बता दें,  बाद में मिहिर की सफल गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी की गई, और अब उसका वजन घट कर सामान्‍य हो गया है. इलाज की प्रक्रिया कई चरणों में चली. जैसे पहले चरण में पास्‍ता और पिज्‍जा के शौकीन मिहिर की डाइट को नियंत्रित करके उसको 2,500 कैलोरी से कम करके 800 कैलोरी पर लाया गया. जिससे उसका वजन करीब 10 किलो घटा.

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डौक्टर के सीने में डायलिसिस की गोली: भाग 2

डौक्टर के सीने में डायलिसिस की गोली: भाग 1

भाग-2

 अब आगे पढ़ें- 

पुलिस ने पहले तो परिवार के लोगों से जानकारी ली कि उन्हें कभी किसी ने फिरौती के लिए तो फोन नहीं किया था या फिर किसी के साथ उन का झगड़ा तो नहीं हुआ था. इस बारे में परिवार के सदस्यों से कोई जानकारी नहीं मिल पाई.

इस के बाद पुलिस की एक टीम ने अस्पताल के डाक्टरों, नर्सों और कर्मचारियों से पूछताछ की. किसी मरीज ने डाक्टर के साथ झगड़ा किया हो, किसी मरीज की मौत के बाद उस के घर वालों ने झगड़ा किया हो या कोई धमकी दी हो. पर ऐसा कोई वाकया सामने नहीं आया.

इस हत्या के बाद शहर के सभी डाक्टर डरे हुए थे. अभी तक डाक्टर की हत्या के कारणों का खुलासा नहीं हुआ था. पुलिस इस मामले को फिरौती व पुरानी रंजिश से भी जोड़ कर देख रही थी.

पुलिस ने दोबारा डा. राजीव गुप्ता के ड्राइवर साहिल से गहराई से पूछताछ कर जानकारी ली. तीनों आरोपी कैसे दिखते थे?  इस पूछताछ में ड्राइवर ने बताया कि एक आरोपी सेहत में हट्टाकट्टा था और बाकी के 2 आरोपी दुबलेपतले थे.

2 लोगों ने अपने चेहरे ढंके हुए थे और बाइक चालक का चेहरा खुला था, पर वह उन्हें ठीक से देख नहीं पाया था क्योंकि गोली चलते ही वह कार से उतर कर पास वाली झुग्गियों की तरफ भाग गया था.

साहिल के इस बयान के बाद पुलिस ने आसपास के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई तो एक के बाद एक तार जुड़ते चले गए. बाइक पर सवार एक व्यक्ति डा. राजीव गुप्ता के ही अस्पताल का पूर्व कर्मचारी था. पुलिस ने उस की कुंडली खंगाली तो पता चला कि वह  डायलिसिस तकनीशियन था और गांव पाढ़ा का रहने वाला था. लेकिन फिलहाल वह आर.के. पुरम में रह रहा था.

वह डा. गुप्ता के पास पिछले 10 सालों से काम कर रहा था. बाद में डा. गुप्ता ने दिसंबर, 2018 में किसी बात पर उसे अस्पताल से निकाल दिया था. दूसरी ओर पुलिस की एक टीम शहर के चौक चौराहे पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाल रही थी.

इन फुटेज में वारदात से पहले बाइक पर सवार 3 युवकों को सेक्टर-16 में जाते देखा गया था. उस फुटेज को पुलिस ने ड्राइवर सहित अस्पताल के स्टाफ को दिखाया तो उन्होंने आरोपी पवन दहिया को पहचान लिया.

फिर क्या था. पुलिस की 8 टीमों ने ड्राइवर के बताए हुलिए से 10 घंटों में यानी सुबह पांच बजे तक पवन दहिया सहित 2 युवकों रमन उर्फ सेठी निवासी बड़ा मंगलपुर, शिवकुमार उर्फ शिबू निवासी रामनगर को गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों को हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा के पास से गिरफ्तार किया गया.

पुलिस ने तीनों आरोपियों से वह देसी कट्टा भी बरामद कर लिया, जिस से उन्होंने डाक्टर पर गोलियां चलाई थीं. 8 जुलाई, 2019 को तीनों आरोपियों को अदालत में पेश कर उन का 7 दिनों का पुलिस रिमांड लिया गया.

रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में डा. राजीव गुप्ता की हत्या का जो कारण सामने आया, वह था नौकरी से निकाले गए एक कर्मचारी की रंजिश. मुख्य आरोपी पवन डा. राजीव गुप्ता के पास काम करता था.

पवन डा. गुप्ता के साथ 10 साल तक बतौर डायलिसिस टेक्नीशियन के तौर पर काम कर चुका था. उस ने इस वारदात को अपने 2 साथियों के साथ मिल कर अंजाम दिया. डा. राजीव गुप्ता ने पवन को नौकरी से निकाल दिया था, जिस के बाद उसे कहीं और काम नहीं मिल रहा था. इसलिए वह डा. राजीव से रंजिश रखने लगा था.

दरअसल पवन दहिया को बचपन से ही हथियार रखने का शौक था. उस के फेसबुक पेज पर उस का जो फोटो लगा था, वह भी हथियारों के साथ था. उसे एक शौक यह भी था कि हर समय उस के साथ 3-4 चेले रहें और उस के कहे अनुसार काम करें.

पवन ने साल 2009 में असलहे का लाइसेंस बनवा कर एक रिवौल्वर खरीदा था. तभी से उस के रंगढंग बदल से गए थे. वह दुबलापतला इंसान था. लेकिन रिवौल्वर की धाक जमाने के लिए उस ने जिम जौइन किया और अपनी सेहत बना कर हट्टाकट्टा जवान बन गया.

अब वह हर समय रिवौल्वर अपने पास रखता था और लोगों पर धौंस जमाता था. यहां तक कि वह अस्पताल भी अपनी रिवौल्वर के साथ आता था. उस के यारदोस्त भी किसी पर रौब जमाने के लिए उसे साथ ले जाने लगे थे. इसी वजह से वह कभी भी समय पर अस्पताल नहीं पहुंचता था. मरीज उस का घंटों बैठ कर इंतजार करते और थकहार कर वापस लौट जाते.

डा. राजीव को जब पवन की इस हरकत का पता चला तो उन्होंने अस्पताल का मालिक और बड़ा होने के नाते पवन को समझाया. एक बार नहीं, बारबार समझाया. उसे मौखिक और लिखित चेतावनियां दी गईं. पर पवन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया.

अपने अस्पताल की प्रतिष्ठा को देखते हुए राजीव गुप्ता ने पवन को दिसंबर 2018 में नौकरी से निकाल दिया था. नौकरी से निकाले जाने के बाद वह जहां भी नौकरी मांगने जाता, उसे नौकरी नहीं मिलती थी. धीरेधीरे पवन के दिमाग में यह बात घर करने लगी थी कि डा. राजीव ही दूसरे डाक्टरों को उसे नौकरी देने से मना करता होगा. वह डा. राजीव से रंजिश रखने लगा और उन से बदला लेने की फिराक में रहने लगा.

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अमृतधारा अस्पताल के संचालक व आईएमए के पूर्व प्रधान डा. राजीव गुप्ता की हत्या को अंजाम देने के लिए पवन दहिया ने अपने लाइसैंसी रिवौल्वर का इस्तेमाल नहीं किया था, बल्कि उस ने उत्तर प्रदेश से 50 हजार रुपए में देसी पिस्तौल खरीदा था.

इस के बाद उस ने अपने दोस्त शिव कुमार और रमन निवासी मंगलपुर को पैसे का लालच दे कर डाक्टर की हत्या करने के लिए तैयार कर लिया. पवन ने दोनों को कहा कि वह उस के साथ मिल कर एक काम करेंगे तो मोटा पैसा आएगा, जो भी पैसा मिलेगा उसे आपस में बांट लेंगे.

रिमांड के दौरान पवन ने बताया कि उसे हुक्का पीने का शौक है. वह घर के बाहर ही मजमा लगा कर दोस्तों के साथ हुक्का पीता था. मंगलपुर निवासी शिव कुमार और रमन भी इसी हुक्के के कारण उस के दोस्त बने थे.

पवन ने उन्हें अपना चेला बना लिया था. वे उस के कहे अनुसार काम करते थे. पूछताछ में रमन और शिव कुमार ने बताया कि उन के पास रोजगार नहीं था, कुछ ही दिनों में पवन ने अच्छा पैसा कमा लिया था, इसलिए वे उस के साथ जुड़ गए ताकि पैसा कमाया जा सके.

डा. राजीव गुप्ता की हत्या के समय शिव कुमार बाइक चला रहा था, जबकि उस के पीछे रमन बैठा था और सब से पीछे मुंह ढके पवन दहिया बैठा हुआ था. शाम 5 बज कर 5 मिनट पर तीनों बदमाश बाइक से जाते हुए आईटीआई चौक के कैमरे में कैद हुए थे.

डा. गुप्ता नमस्ते चौक के पास से होते हुए जब होटल येलो सफायर, सेक्टर-16 से अमृतधारा अस्पताल की ओर जा रहे थे, तभी बदमाशों ने सेक्टर-16 के चौक के पास ब्रेकर पर बाइक खड़ी कर दी थी और डाक्टर के वापस आने का इंतजार करने लगे थे.

जब डा. राजीव वापस आए तो ब्रेकर पर गाड़ी धीमी होते ही पवन ने फायरिंग शुरू कर दीं. डाक्टर गुप्ता ड्राइवर साहिल के साथ अगली सीट पर बैठे हुए थे. एक के बाद एक बदमाशों ने शीशे पर 3 गोलियां दागीं, जो डाक्टर गुप्ता के हाथों पर लगीं.

इस के बाद पवन ने साइड के आधे खुले शीशे के पास जा कर डाक्टर की छाती पर 3 गोलियां दाग दीं. डाक्टर की हत्या करने के बाद तीनों आरोपी पहले पवन के घर गए. वहां से पवन ने अपनी स्विफ्ट कार ली और फिर वे उसी में सवार हो कर उत्तर प्रदेश भाग रहे थे. इस दौरान पुलिस को इस बात की भनक लग गई थी. सुबह 5 बजे ही पुलिस ने तीनों आरोपियों को उत्तर प्रदेश-हरियाणा सीमा पर गिरफ्तार कर लिया.

जिस बाइक पर सवार हो कर इन तीनों आरोपियों ने वारदात को अंजाम दिया था, वह बाइक शिवकुमार की थी. इस बाइक की नंबर प्लेट आरोपियों ने उतार दी थी ताकि कोई नंबर नोट ना कर सके. जिसे रिमांड के दौरान पुलिस ने बरामद कर लिया. इस पूरी वारदात को बदले की भावना से अंजाम दिया गया था.

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7 जुलाई को शाम साढ़े 5 बजे जुंडला गेट स्थित शिवपुरी के श्मशानघाट में डा. राजीव गुप्ता का अंतिम संस्कार किया गया.

रिमांड की समाप्ति के बाद तीनों आरोपियों को अदालत में पेश कर जिला जेल भेजा गया. पवन दहिया इतना चालाक था कि डाक्टर राजीव गुप्ता की हत्या करने के बाद उस ने यह खबर रात 9 बजे बड़े दुख के साथ अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट की थी ताकि कोई उस पर संदेह ना करे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां

सावधान! एसी है स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

अगर आप भी हैं एसी की हवा के शौकिन तो हो जाये सावधान. आजकल हर कोई एसी की सुकून भरी हवा में रहना पसंद करता हैं लेकिन ये ठंडी हवा आपकी सेहत पर भारी पड़ सकती हैं और आपको कई बीमारियों से पीड़ित बना सकती हैं. लोगों को एसी वरदान की तरह लगता हैं दफ्तर हो या घर एसी की हवा ही सुहाती हैं इतना ही नहीं बच्चों को स्कूल भी वही भाते हैं जिनमे हर क्लास मे एसी की ठंडक मिले.

अगर बात सफर की करें तो बिना एसी की गाड़ी तो अब किसी को भाती ही नहीं. एसी में गर्मी से राहत तो मिलती हैं लेकिन आपकी सेहत पर बुरा असर डालती है. तो आइए जानते हैं, एसी में रहने के क्या नुकसान है.

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जोड़ों में दर्द -अक्सर लोग शिकायत करते हैं कि उनके घुटनो मे दर्द रहने लगा है. लेकिन वो यह नहीं समझ पाते कि ये दर्द होता क्यों है. लगातार एसी के कम तापमान में बैठने से सिर्फ घुटनों की समस्या ही नहीं होती बल्कि आपके शरीर के सभी जोड़ों में दर्द के साथ-साथ अकड़न पैदा करता है और उनकी कार्यक्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है. आगे चलकर यह हड्डियों से जुड़ी बीमारियों को जन्म भी दे सकता है.

नमी कम करता है : एसी में ज्यादा देर तक रहने से शरीर के कई अंगो मे मौइस्चर की कमी आ जाती है आपकी आंखों के अंदर भी नमी की कमी हो जाती है जिस कारण आपको आंखों मे दर्द व खुजली महसूस होती है. एसी के दुस्प्रभाव आपकी त्वचा को  भी झेलने पड़ते है. जिससे आपकी त्वचा में रूखी व बेजान लगने लगती है.

रक्तसंचार: एसी में बैठने से शारीरिक तापमान कृत्रिम तरीके से ज्यादा कम हो जाता है जिससे कोशिकाओं में संकुचन होता है और सभी अंगों में रक्त का संचार बेहतर तरीके से नहीं हो पाता, जिससे शरीर के अंगों की क्षमता प्रभावित होती है.

ताजी हवा खाएं

एसी चलते समय रूम ठंडा करने के लिये, हमें कमरे के खिड़की दरवाजे बंद करने पड़ते है जिस कारण हमें ताजी हवा नहीं मिल पाती और यह नुकसान दायक होती है. ताजी हवा की कमी से हम जल्दी थक जाते हैं.

एसी से हो सकती हैं ये बीमारियां

कमरे का तापमान जरूरत से ज्यादा ठंडा हो तो हमारे शरीर की सहने की क्षमता कम हो जाती है. ठंड की वजह से सिरदर्द और बदन दर्द जैसी समस्याएं भी हो जाती हैं. जरूरत से ज्यादा ठंड से जो़ड़ों में दर्द और गठिया की दिक्कतें भी हो जाती हैं. अगर आपके एसी का फ़िल्टर साफ सुथरा नहीं है तो आपको सांस से जुड़ी बीमारियां भी घेर सकती हैं और लंग इन्फेक्शन भी हो सकता है.

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अगर आपको ब्लडप्रेशर संबंधित समस्याएं हैं तो आपको एसी से परहेज करना चाहिए. यह लो ब्लडप्रेशर के लिए जिम्मेदार हो सकता है और सांस संबंधी समस्याएं भी पैदा कर सकता है. अस्थमा के मरीजों को भी एसी के संपर्क में आने से बचना चाहिए.

एसी का करते है प्रयोग तो इन बातों का रखें ख्याल

हर साल सर्विस करवाएं.

एसी के फिल्टर हर महीने खुद ही साफ कर के लगाए.

स्प्लिट एसी विंडो एसी के मुकाबले ज्यादा बेहतर गैस की क्वालिटी का ध्यान रखें.

गलत गैस डालने से भी दिक्क़त होती है.

सारे वक्त कमरे, खिड़कियों को बंद न रखें ताकि प्रदूशित हवा निकल सके.

घरों या दफ्तरों में एसी का तापमान 25-26 डिग्री सेल्सियस ही रखना चाहिए. ऐसा करने से सेहत भी ठीक रहेगी और बिजली का बिल भी कम आएगा.

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अगर आप अपने गुस्से पर काबू करना चाहते हैं तो पढ़ें ये खबर

यह सच है कि गुस्सा एक प्राकृतिक और सामान्य भावना है. यह इंसान की एक शारीरिक प्रतिक्रिया है. अगर यह कहें कि गुस्सा इंसान की खुशी और गम की तरह एक भावना है तो गलत नहीं होगा.

क्या आप ने ‘एंग्री बर्ड’ मूवी देखी है? इस में मुख्य पात्र को गुस्सा आता है, इसलिए वह पक्षियों की बस्ती से दूर सागर के किनारे रहता है. मगर जब वह अपने गुस्से पर नियंत्रण करना सीख जाता है तो बस्ती का हीरो बन जाता है. मूवी में यही सीख है कि गुस्सा किसी भी चीज का हल नहीं है.

यह सच है कि गुस्सा एक प्राकृतिक और सामान्य भावना है. यह इंसान की एक शारीरिक प्रतिक्रिया है. अगर यह कहें कि गुस्सा इंसान की खुशी और गम की तरह एक भावना है तो गलत नहीं होगा. लेकिन कभीकभी गुस्सा इतना बढ़ जाता है कि वह स्वयं की और आसपास के लोगों की खुशियों पर अपना प्रभाव डालने लगता है.

जीवन में खुशियां, परेशानियां आतीजाती रहती हैं. गुस्सा कर के रिश्तों में दरार न पैदा करें. यह पता लगाएं कि किन हालात में गुस्सा बढ़ता है. हालात और कारणों को समझें और उन से उपजी परेशानियों को दूर करने का प्रयास करें. गुस्से को दबाएं नहीं, बल्कि इस के कारणों को पहचानें और दूर करने का प्रयास करें. आप के गुस्से से किसी और का फायदा हो सकता है, लेकिन आप का सिर्फ नुकसान ही होगा. आप का गुस्सा आप का नुकसान. गुस्सा रिश्तों को बिगाड़ता है, गलतफहमियों को भी जन्म देता है. ठंडे दिमाग से ही चीजें सुलझती हैं. गुस्से का अंत पछतावे पर होता है. यह चारित्रिक दोष है.

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यूं शांत करें गुस्सा

जब भी गुस्सा आए, ये आसान टिप्स आजमा कर देखें, गुस्सा छूमंतर हो जाएगा:

– पानी पीएं.

– तय कर लें कि जिस बात पर आप को गुस्सा आया है, उस की प्रतिक्रिया आप 48 घंटे बाद देंगी. क्या चमत्कार होगा, आप देख कर स्वयं ही हैरान रह जाएंगी.

– जब भी गुस्सा आए, कोई गाना गाना शुरू कर दें या कोई म्यूजिकल इंस्ट्रूमैंट बजाएं.

– जब गुस्सा आ रहा हो अपने स्मार्टफोन का फायदा उठाएं, नोटिफिकेशन देखना शुरू कर दें. डिस्काउंट्स देखना शुरू कर दें. फिर देखिए आप का गुस्सा अपनेआप गायब होता चला जाएगा.

– एक आजमाया हुआ फार्मूला-उलटी गिनती यानी 100 से 0 तक उलटी गिनती मन ही मन शुरू कर दें.

– गुस्से के समय आई ऐनर्जी का यूज करें. लंबी सैर पर निकल सकती हैं तो निकल जाएं. लौटने तक खुद को अच्छा, खुश और शांत महसूस करेंगी.

– कमान से निकला तीर, मुंह से निकला शब्द कभी वापस नहीं आता. गुस्सा जब आए तो बोलें नहीं. लिखना शुरू कर दें. आप को बाद में लगेगा वाह, क्या राइटर हैं आप.

– गहरी सांसें लें

– बुजुर्गों से बातें करें. बच्चों के साथ खेलना शुरू कर दें.

– जिस जगह गुस्सा आ रहा हो, उस जगह से फौरन हट जाएं.

– खूब अच्छी नींद लें. सो कर उठने पर गुस्सा स्वत: शांत हो चुका होगा.

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क्या कहती हैं हस्तियां

कई मशहूर हस्तियों ने भी क्रोध पर अपने विचार व्यक्त किए हैं:

– क्रोध के कारण की तुलना में उस के परिणाम कितने गंभीर होते हैं- मार्क्स औरलेस

– एक क्रोधित व्यक्ति अपना मुंह खोल लेता है और आखें बंद कर लेता है- कैटो

– अपने दुश्मनों को हमेशा खीझ भरे खत लिखें, उन्हें कभी भेजें नहीं- जोन्स फैलोज

– क्रोध वह तेजाब है जो किसी भी चीज, जिस पर वह डाला जाए, से ज्यादा उस पात्र को हानी पहुंचा सकता है, जिस में वह रखा है- मार्क ट्वेन.

अब जब गुस्से से सब से ज्यादा नुकसान गुस्सा करने वाले को ही पहुंचता है, तो अपना नुकसान क्यों करें? गुस्सा दूर करने के उपायों पर गौर करें, शांत रहें, प्रसन्न रहें. जो गुस्सा किसी काम का नहीं, फौरन उस से छुटकारा पा लें.

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गाय लें या कार

इधर कई दिनों से मैं भी सोच रहा था कि बहुत हो गया जिंदगी के 55 बजट बिना कार के सिटी बसों में धक्के खाते और देते गुजार दिये अब मुझे भी एक फोर व्हीलर यानि कि एक अदद कार ले ही लेना चाहिए . इसके लिए मैंने जरूरी रकम 2 लाख रु जिसे बैंक की भाषा में डाउन पेमेंट कहते हैं जुगाड़ भी ली थी. बाकी 6-8 लाख दूसरे निम्न मध्यमवर्गियों की तरह कर्ज लेने जरूरी जानकारियां भी जुटा ली थीं. यह अब तक की सबसे बड़ी राशि थी जो मेरे बचत खाते में इकट्ठा हुई थी .

एक भारतीय लेखक के लिए इतनी बड़ी राशि जुगाड़ लेना किसी चंद्रयान बना लेने से कम उपलब्धि नहीं होती जो हरेक रचना के पारिश्रमिक के लिए प्रकाशक नाम की शोषक बिरादरी का मोहताज रहता है. अभी चार दिन पहले ही ऐसा ही हजार रु का चेक लेकर बैंक पहुंचा और एंट्री के लिए पासबुक क्लर्क के आगे प्रस्तुत की तो उसने मेरी तरफ जेबी जासूस की तरह देखा और बोला क्या बात है प्रेमचंद जी, लगता है लिखने का धंधा खूब चकाचक चल रहा है. मैंने हमेशा की तरह उसके इस ताने का बुरा नहीं माना .

सालों से मैं अपने इकलौते खाते में चेक ही जमा कर रहा हूं लेकिन बीते 2 सालों से पैसा कम निकाल रहा हूं. बाबू भी मेरे खाते की तरह प्राचीन है जो जानता है कि यह वही शख्स है जो चेक जमा होने के दूसरे दिन से ही बैंक आकर पूछना शुरू कार देता है कि चेक क्लियर हुआ या नहीं जबकि उसे यानि मुझे मालूम है कि इसमें हफ्ता भर तो लग ही जाता है .

उस दिन मैं फोर व्हीलर को लेकर जोश में था क्योंकि उसके भ्रूण के दिमाग में विकसित होने का वक्त पूरा हो चुका था. इसलिए डिलिवर हो ही गई कि सोच रहा हूं कि फोर व्हीलर ले लूं. कहा भी इस रईसी अंदाज में मानों भाजी तरकारी खरीदने की बात कर रहा हूं.

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इतना सुनना भर था कि बाबू को गश सा आ गया.  अभी तक वह मुझे शक भरी निगाहों से देख रहा था लेकिन अब उसको यकीन हो आया कि मैं जरूर कोई बड़ी गड़बड़ लिखने के नाम पर कर रहा हूं.  उसकी नजरों में तरस का सितारा भी चमकता हुआ मुझे साफ साफ दिखा. कुछ संभलकर उपहास  उड़ाने के अंदाज में वह बोला ले लो, आप भी ले लो शायद कोई दूसरा बैंक कर्ज दे दे .

आदतन बाबू की बातों को ईर्ष्या समझ मैं उसे सकपकाया हुआ छोड़ कर वापस आ गया और सड़क पर आती जाती दर्जनों कारों के मौडलों का मुआयना करता रहा कि कौन सी ठीक रहेगी. जानें क्यों हर बार वे ही कारें जमी जिन्हें कोई खूबसूरत महिला चला रही थी. मैं खुद नहीं समझ पा रहा था कि मैं पसंद क्या कर रहा हूं, खूबसूरत कार या खूबसूरत महिला .

बाबू पर दिल का राज खोल चुका था इसलिए घर आकर पत्नी को भी सूचित कर दिया कि जल्द ही हम लोग भी कार वाले हो जाएंगे. उम्मीद थी कि सुनकर वह फिल्मी हीरोइनों की तरह गले से लिपट जाएगी और कहेगी ओह डार्लिंग तुम कितने अच्छे हो.  लेकिन उसने चाकू और सब्जी किनारे रखकर पास आकर मेरे नथुनो में अपने नथुने घुसाकर यह तसल्ली कर ली कि भरी दोपहर में मैं पीकर नहीं आया हूं और जो कह रहा हूं वह अविश्वसनीय ही सही. लेकिन  वैसा सच नहीं है जैसा यह था कि सभी के खाते में 15 – 15 लाख आएंगे .

पहले तो उसने इन्कमटेक्स अधिकारियों की तरह सारी पूछताछ की फिर एक और तसल्ली हो जाने के बाद कार आने की खुशी में पैसा छिपाने के इल्जाम से मुझे बाइज्जत बरी कर दिया. फिर शुरू हुई आगे की प्लानिंग कि चलो जैसे तैसे कार ले भी ली तो उसकी किश्तें कहां से भरेंगे. लिखने के धंधे में भी मंदी आती रहती है अगर दो तीन महीने भी काम नहीं चला तो कार बैंक वाले घसीट ले जाएंगे. एक तो पहले से ही अपनी समाज और रिश्तेदारी में कोई खास इज्जत नहीं है इसलिए बेइज्जती कराने के पहले हजार बार सोच लो क्योंकि वह अभी तक बहुत ज्यादा नहीं हुई है.

इतना सुनना भर था कि सालों की भड़ास निकल पड़ी कि बेइज्जती तो तब होती है जब लोग हमें अपने कार विहीन होने को लेकर ऐसे देखते है. जैसे पैसे वाले भक्त मंदिर के बाहर खड़े भिखारी को  याद कर रहे हैं. रिश्तेदार कैसे कैसे हमें बेज्जत करते हैं पिछले महीने ही मुन्नू ( मेरा फुफेरा भाई ) का फोन आया था कि मिलने आपके घर आ रहा हूं, रास्ते में हूं यह बताएं कि क्या मेरी कार आपकी गली में घुस पाएगी, अभी उठाई है 12 लाख की है थोड़ी बड़ी है इसलिए पूछ रहा हूं .

याद करो लोग कैसे कैसे अपनी कारों के बारे में बताकर हमें नीचा दिखाते हैं. दूर दराज के मेरिज गार्डन में किसी शादी में जाओ तो हाल चाल से पहले भाई, भतीजे, भांजे तक यह पूछते हैं कि अरे कैसे आए.  इतनी रात गए तो आटो रिक्शा मिलता नहीं और मिल भी जाये तो मुंह मांगा पैसा वसूलते हैं जिसे देना हर किसी ( आपके) के बस की बात नहीं होती  और अब जाएंगे कैसे.  मैं आप लोगों को ड्रौप कर देता लेकिन वो क्या है कि अभी एक शादी में और जाना है खैर कुछ न कुछ इंतजाम हो ही जाएगा. लेकिन  अब आप भी कार ले ही लो आजकल तो आसानी से लोन मिल जाता है.

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ऐसे कई पीड़ादायक संदर्भ प्रसंगों का पुण्य स्मरण करने के बाद ईएमआई बगैरह गौण लगने लगीं और पत्नी को समझ आ गया कि अब  मैं बिना कार लिए मानने वाला नहीं तो वह सालों बाद असली प्यार से मेरे खिचड़ी बालों में अपनी सख्त हो गई उंगलियां फिराते बोली , कहो तो छोटू से बात करूं उससे 2-3 लाख उधार ले लेंगे फिर अपनी सहूलियत से लौटाते रहेंगे .

छोटू यानि उसका इकलौता भाई और मेरा इकलौता साला जो पुलिस में हवलदार है और उसकी चार कारें किराए पर चलती हैं. लाख  दो लाख उसके लिए उतनी ही मामूली रकम है जितनी मेरे लिए सौ दो सौ रु की होती है. प्रस्ताव हालांकि आकर्षक था लेकिन मेरे स्वभाव और स्वाभिमान से मेच करता हुआ नहीं था इसलिए मैंने उसे क्रूरता पूर्वक ठुकराते पत्नी को कुछ पुरानी बातें याद दिलाईं कि दहेज में मैंने तुम्हारे पूज्य जमींदार पिता से एक ढेला भी नहीं लिया था. उल्टे फिल्मी स्टाइल में हीरो की तरह डायलौग मारा था कि बेटी को एक जोड़ी कपड़ों में विदा कर दो और वे भी न हों तो कोई बात नहीं. मैं अभी शुभम वस्त्रालय से मगा लेता हूं मेरा उधारी खाता उसी के यहां चलता है .

इस पर ससुर जी खूब पछताए थे कि बेटी ने एक फक्कड़ लेखक के प्यार में फंसकर प्रेम विवाह कर डाला कोई खास हर्ज वाली बात नहीं पर बेचारी अब खुद ज़िंदगी भर पछताएगी. उन्होंने तो मुझे यह पेशकश तक की थी कि लिखते हो कोई बात नहीं, अक्सर जवानी में कुछ लोगों को यह रोग लग जाता है लेकिन इससे गृहस्थी नहीं चलती.  तुम लिखते रहो पर कहो तो कहीं मास्टरी दिलवा दूं या पटवारी बनवा दूं . कई नेता चंदे के लिए हर चुनाव में मेरी चौखट पर मत्था टेकते हैं .

आदर्श और प्रलोभनों की लड़ाई में आदर्श हमेशा की तरह जीते और ससुर जी बेचारे अपनी फूल सी बेटी की चिंता में कुम्हलाकर देव लोक प्रस्थान कर गए. इन भूतपूर्व बातों से पत्नी को समझ आ गया कि अब कुछ नहीं हो सकता यह आदमी बीस साल बाद भी नहीं बदला , नहीं तो छोटू तो एक फोन पर लाख दो लाख तो क्या पूरी कार ही भेज देता .

खैर अतीत के झरोखों से उतर कर बात कारों के माडलों पर आकर रुक गई . तय यह हुआ कि बेटा कालेज से आ जाये तो उससे ही पूछते हैं कि कौन सी ठीक रहेगी. सोचने की देर थी कि बेटा अरुण जिन्न की तरह प्रगट हो गया. उसने पूरी गंभीरता से पूरी रामायण सुनी और विशेषज्ञ अर्थशास्त्रियों की तरह ज्ञान बघारा कि आजकल आटो मोबाइल सेक्टर मंदी के दौर से गुजर रहा है और उसमें हम जैसे अभावग्रस्त लोग योगदान न ही दें तो बेहतर है .

उसके इस दो टूक जवाब से मेरी हिम्मत जीडीपी की तरह गिरने लगी तो मेरा उतरा चेहरा देखकर उसने ही वित्त मंत्री की तरह हिम्मत बंधाई कि आप टेंशन मत लो भगवान की कृपा से आज नहीं तो कल मंदी का कोहरा चीर कर रोजगार का सूरज निकलेगा और नौकरी लगते ही मैं आपको पसंद की कार गिफ्ट करूंगा . तब तक और सड़कें नाप लेते हैं अब तो और नई नई बन गईं हैं .

फिर उसने कार न लेने की ढेरों वजहें गिना दीं कि लोग दिखावे के लिए ले तो लेते हैं लेकिन वे गाय भैंसो की तरह खड़ी रहती हैं क्योंकि उनका चारा यानि पेट्रोल दिनोंदिन महंगा होता जा रहा है. अचानक उसकी नजर पास पड़े अखबार के मुख पृष्ठ पर पड़ी तो वह चहकते हुये बोला देखिये आपका फोर व्हीलर का शौक यूं पूरा हो सकता है कि अपन एक गाय खरीद लें . प्रधानमंत्री जी तक मथुरा में कह रहे हैं कि गाय का नाम सुनते ही लोगों के कान खड़े हो जाते हैं .

आप ही बताइये हमारे कितने रिश्तेदारों के पास गाय है. फिर उसने गाय के फायदे गिनाना शुरू कर दिये कि गाय पशु नहीं देवता है उसे पालने से दरिद्रता दूर होती है.  अभी हम जो हजार बारह सौ रु महीने का दूध खरीदते हैं वह पैसा बच जाएगा और कार में तो ईएमआई देना पड़ेगी. यहां तो गाय ही हमें ईएमआई देगी और हम देसी मुख्यधारा से जुड़ जाएंगे यानि दोहरी बचत होगी. आप व्हाट्सएप पर सक्रिय होते तो आपको पता चलता कि गाय की महिमा अपरमपार है .उस पर हाथ फेरने से हाइ ब्लड प्रेशर ठीक हो जाता है, जो आर्थिक तनाव के चलते आपको और मम्मी को हो गया है. गाय के मूत्र से कैंसर जैसी  कई लाइलाज बीमारियां ठीक हो जाती हैं और जरा सोचिए वह खूब खाकर खूब गोबर देगी जिससे उपले बनेंगे इससे हमारा महंगे गेस सिलेन्डर का खर्च कम होगा .

मुमकिन है कल को सरकार गाय पालने वालों को पद्म श्री बगैरह देने लगे जो लेखन से तो इस जिंदगी में पूरी होने से रही. मुमकिन यह भी है कि सरकार यह घोषणा भी कर दे कि गाय पालकों को धर्म और संस्कृति का सम्मान व रक्षा करने पर पेंशन दी जाएगी. गाय की महिमा का बखान करते करते वह वाकई जोश में आ आकर बोला मुमकिन यह भी है कि सरकार यह एलान भी कर दे कि गौ पालकों की संतानों को नौकरियों में आरक्षण देगी फिर तो मुझे बैठे बिठाये नौकरी मिल जाएगी.

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रही बात गौ माता के खाने की तो बात चिंता की नहीं आजकल लोग रोटी खिलाने गाय को कोहिनूर की तरह ढूंढते नजर आते हैं.  हम चाहें तो ऐसे धर्म प्रेमियों से अपनी गाय को रोटी खिलाने का शुल्क भी वसूल सकते हैं और बची रोटियाँ खुद भी खा सकते हैं  . उसने यह ज्ञान वृद्धि भी की कि चारे की चिंता भी न करें आजकल की  गाय दिन भर यहां वहां मुंह मार कर पेट भर लेती है लेकिन दूध मालिक को ही देती है .

अब मैं कार के मौडलों के बजाय गायों की उन्नत नस्लों की जानकारियां एकत्रित कर रहा हूं और सोच रहा हूं कि आस्तिक होते गाय के माथे पर ऊं गुदवा दूंगा आखिर लोग फोर व्हीलर पर साईं, शंकर, या फलां देवी माता या बाबा कि कृपा लिखवाते हैं तो मैं अपने फोर व्हीलर पर  ऊं गुदवाकर मुन्नू जैसे  फुफेरे, मौसेरे, चचेरे और ममेरे भाइयों के कानों के साथ साथ बाल भी खड़े कर दूंगा कि मेरे पास तो देवों वाला फोर व्हीलर है. जो धर्म और संस्कृति का प्रतीक है तुम्हारे लोन के फोर व्हीलर की तरह भौतिकता का भ्रम और छलावा नहीं है.

अभिनेता : भाग 4

उस दिन सागर के पास से लौटी सरिता ने फिर उससे कोई कौन्टैक्ट नहीं किया. सागर ने भी चैन की सांस ली कि चलो पीछा छूटा. छह महीने बीत गये. अचानक एक दिन सागर को सरिता की शादी का कार्ड मिला. वह किसी विनय शर्मा से शादी कर रही थी. शादी का कार्ड देखकर वह हैरान तो बहुत हुआ, मगर खुशी भी हुई कि चलो झंझट से पूरी तरह मुक्ति मिल गयी. उसे उम्मीद नहीं थी कि सरित इतनी जल्दी नॉर्मल लाइफ में लौट आएगी. हालांकि शूटिंग में व्यस्त होने के कारण सागर उसकी शादी में नहीं पहुंच सका. सच पूछो तो अब वह सरिता का सामना नहीं करना चाहता था, इसलिए नहीं गया. उसके मन में कहीं न कहीं गहरी ग्लानि भरी हुई थी. लेकिन कुछ दिनों बाद शिमला में एक सीरियल की शूटिंग के दौरान उसके पास सरिता का फोन आया. वह काफी गुस्से में लग रही थी.

‘तुम मेरी शादी में क्यों नहीं आये? मेरा तोहफा भी हजम कर गये? बहुत बेइमान हो?’ उसने उलाहना दिया.

‘अरे सरिता… यह बात नहीं है… मैं सचमुच बहुत व्यस्त था… शिमला में शूटिंग चल रही है… नया सीरियल है…’ वह सफाई देता हुआ सा बोला.

‘दोस्त तो हूं न तुम्हारी… या सब खत्म…?’ सरिता ने तंज मारने के लहजे पूछा.

‘अरे नहीं यार… ऐसा कैसे हो सकता है… तुम मेरी दोस्त थी, हो और हमेशा रहोगी…’ सागर उसकी बेबाकी पर हैरान था.

‘तो चलो न दोस्ती की नई परिभाषा लिखते हैं… बिल्कुल तुम्हारे अनुकूल…’ सरिता हंसते हुए बोली.

‘क्या मतलब…?’ सागर उसकी बात सुनकर हैरान हुआ.

‘मतलब भी पता चल जाएगा, अभी तो सिर्फ इतना जान लो कि हम दोनों भी शिमला आये हुए हैं, यहां विनय की पैतृक जमीन है पुरानी झील के पास और वहीं एक कॉटेज भी… और आज शाम तुम हमारे घर खाने पर आ रहे हो… आओगे न…?’ उसने बड़े प्यार और इसरार से पूछा.

‘हां-हां, जरूर आऊंगा… सरिता, एक बात पूछूं… तुम खुश तो हो न…?’ सागर ने कुछ जलन महसूस की.

‘हां सागर… मैं बहुत खुश हूं… और तुम आओगे तो खुशी दोगुनी हो जाएगी…’ वह खिलखिलाते हुए बोली.

‘अच्छा तुम्हें तोहफे में क्या चाहिए…?’

‘जब तुम आओगे तब बताऊंगी… ओके… चलो मेरा पता नोट करो’ उसने कह कर सागर को अपना पता नोट करवाया.

आठ बजते-बजते सागर एक बड़ा सा गुलदस्ता लेकर सरिता के बताये पते पर पहुंच गया. बेहद खूबसूरत जगह थी… झील के किनारे… चारों ओर हरियाली… ठंडे-ठंडे हवा के झोंके… पेड़ों पर सफेद रुई के गुच्छों सी बर्फ उस वक्त को और रोमांटिक बना रही थी. आकाश में यहां वहां बादलों के बीच झिलमिलाते हुए तारे, ठंड से कंपकपाते प्रतीत हो रहे थे… इस प्राकृतिक सुन्दरता के बीच बना वह छोटा सा सुन्दर कॉटेज, जिसके छोटे से बरामदे में कई जगह कलात्मक कंदीलें जगमगा रही थीं.

सागर सीढ़ियां चढ़कर जैसे ही खुले हुए दरवाजे पर पहुंचा, सरिता ने बड़ी गर्मजोशी से उसका स्वागत किया. प्रसन्नता के अतिरेक में वह उसके सीने से लिपट गयी. सागर हड़बड़ा गया, इधर-उधर देखने लगा कि कहीं किसी ने देखा तो नहीं… मगर ड्राइंग रूम में उन दोनों के सिवा और कोई भी नहीं था. सरिता सुहागिन के रूप में अपने पूरे श्रृंगार के साथ बहुत खूबसूरत लग रही थी. वह उसका हाथ थाम कर भीतर डायनिंग रूम में पहुंची, जहां उसका पति विनय शर्मा कोने में पड़े एक बीम-बैग पर बैठा टीवी प्रोग्राम देख रहा था.

‘सागर… मैं कबसे तुम्हारा इंतजार कर रही थी… कितनी देर कर दी तुमने…’ वह उसका हाथ थामे विनय के पास पहुंची, ‘आओ… तुम्हें विनय से मिलवाऊं…’ वह सागर को लिए विनय और टीवी के बीच में जाकर खड़ी हो गयी.

‘विनय… यह मेरे दोस्त हैं… सागर कपूर… हलो करो… और सागर, यह हैं मेरे पति… विनय शर्मा…’

विनय ने मचलते हुए उससे हाथ मिलाया और फिर मस्त हो गया अपने टीवी प्रोग्राम में. सागर को लगा जैसे वह चकराकर वहीं गिर पड़ेगा.

‘ये…? मानसिक विकलांग…? सरिता का पति…?’

सागर आंखें फाड़कर सरिता की ओर देखने लगा… ‘सरिता… तुम्हें लड़कों की कमी थी क्या…? ये किससे शादी कर ली…? ऐसा खेल क्यों किया अपनी जिन्दगी के साथ…?’

‘अरे इसमें नाराज होने वाली क्या बात है…?’ सरिता सागर को लेकर वापस ड्राइंग रूम में आ गयी, ‘सच कहूं सागर, विनय बहुत अच्छा है… बहुत प्यारा है… वह शारीरिक रूप से तो आदमी हैै मगर मानसिक रूप से मात्र 9-10 साल का बच्चा ही है… हंसता है, खेलता है, रोता है, जिद्द करता है… मुझे उसके साथ बहुत अच्छा लगता है… उसमें कोई छल-कपट नहीं है… वह बहुत मासूम है… बहुत सच्चा है… मैं उसकी पत्नी भी हूं और परिचारिका भी.’

सागर हैरानी से सरिता की बातें सुन रहा था. सरिता बताती जा रही थी, ‘असल में विनय की मां ने अखबार में एक विज्ञापन दिया था, उन्हें अपने इकलौते बेटे के लिए एक परिचारिका की आवश्यकता थी. तुम छोड़ कर चले गये तो मैंने अखबार की नौकरी भी छोड़ दी. काफी वक्त तक खाली बैठी रही. मगर जिन्दगी जीने के लिए पैसे तो चाहिए थे. फिर मैंने ये विज्ञापन देखा. मुझे किसी की सेवा करने की यह नौकरी अच्छी लगी तो मैंने ज्वाइन कर ली. ज्वाइन करने के कुछ वक्त बाद मुझे पता चला कि विनय की मां को कैंसर है, उनका इलाज तो चल रहा है परन्तु वह जीवित रहेंगी या नहीं, कह नहीं सकते. उन्हें हर वक्त यह चिंता खाए जाती थी कि उनके बाद इस बेचारे की देखभाल करने वाला कोई भी नहीं है. इसका क्या होगा? इसके पिता काफी सम्पत्ति भी छोड़ गये हैं, उसकी देखभाल कौन करेगा? फिर मैंने उनके सामने एक प्रस्ताव रखा कि अगर वे मुझे अपनी बहू बना लें तो मैं जीवनपर्यन्त उनके बेटे की देखभाल करूंगी… मैंने उनको विश्वास दिलाया कि इसके पीछे मेरा कोई लालच या स्वार्थ नहीं है… दरअसल मैं नॉर्मल लोगों के साथ रहते-रहते तंग आ चुकी हूं… विनय मेरे साथ काफी हिलमिल भी गया था, मैं उसकी अच्छी तरह देखभाल कर रही थी…. इसलिए वे हमारी शादी के लिए राजी हो गयीं…’

एक सांस में सारी कहानी सुनाने के बाद सरिता ने रुक कर एक गहरी नजर सागर के चेहरे पर डाली. सागर सिर झुकाए बैठा था. उसको इस तरह देखकर सरिता हौले से हंसी और बोली, ‘जिन्दगी एक रंगमंच है सागर… तुम्हीं तो कहते थे न… इस रंगमंच पर बहुत से किरदार मिलते हैं… तुमसे जुदा होने के बाद मुझे भी एक बिल्कुल अलग किरदार के साथ रहने का मौका मिला…’ वह जोर-जोर से हंसने लगी.

‘यह तुमने अच्छा नहीं किया सरिता…’ सागर के चेहरे पर उदासी थी. उसने सरिता से ऐसी उम्मीद नहीं की थी. उसकी शादी का कार्ड मिलने पर उसने सोचा था कि उससे जुदा होकर सरिता उसे भुलाने के लिए अपने किसी पत्रकार मित्र से शादी कर रही है. अब उसको ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उससे प्यार करने के जुर्म में सरिता ने खुद अपने लिए सजा तय की है.

‘अरे… तुम किस सोच में डूब गये यार… मैं बहुत खुश हूं विनय के साथ… अच्छा ये बताओ क्या पियोगे…? कॉफी…?’ वह चहकती हुई सी बोली.

‘हां…’ सागर ने धीरे से कहा.

‘पता है… तुम्हारे लिए क्या-क्या पकाया है…? सब तुम्हारी पसंद का…’ कहती हुई वह किचेन की ओर चली गयी.

खाना खाते-खाते काफी रात हो गयी थी. सरिता का पति तो कबका सो चुका था अपने टेडिबियर के साथ.

‘अच्छा सरिता… रात काफी हो गयी है… अब मैं चलूं…?’ सागर उठने को हुआ.

‘सागर… मेरा तोहफा नहीं दोगे…?’ उसने धीरे से पूछा.

‘अरे हां… तुमने बताया ही नहीं… तुम्हें क्या चाहिए…?’ सागर ने अधीरता से पूछा.

‘अन्दर आओ…’ वह सागर का हाथ थामे बेडरूम की ओर बढ़ गयी.

धर्म: समाधि की दुकानदारी कितनी कमजोर

साधुसंतों का रहनसहन और खानपान तो आम लोगों से भिन्न रहता ही है मगर वे मरने के बाद भी विशिष्ट दिखना चाहते हैं. इस के पीछे उन की व उन के संप्रदायों की मंशा महज धर्म के नाम पर चल रही दुकानदारी को और चमकाना होती है. धर्म के धंधे की बुनियाद ही यह है कि धर्म के रखवाले कहे जाने वाले साधुसंत ही हकीकत में धर्म के नाम पर लोगोें का तरहतरह से शोषण करते हैं, व्यवस्थित और संगठित समाज से अलगथलग दिखना चाहते हैं.

महज लंगोट और गेरुए वस्त्र पहन सांसारिकता त्यागने का ढिंढोरा पीटने वाले साधुसंत शरीर पर भभूत और माथे पर बड़ा सा तिलक जरूर लगाते हैं. ये लोग हाथ में भाला, डंडा या त्रिशूल भी रखते हैं. यह ‘त्याग’ भक्तों में श्रद्धा पैदा करने के लिए किया जाता है. यह दीगर बात है कि हकीकत में यह हुलिया मुफ्त कमानेखाने यानी चढ़ावा और दक्षिणा हथियाने के लिए रखा जाता है.

अपनी सहूलियत के लिए साधुसंत रिहायशी इलाकों से कुछ दूर मंदिरों में रहते हैं. हाथ में पकड़ा डंडा या त्रिशूल दरअसल, दुष्टों के संहार के लिए नहीं बल्कि कुत्ते, बिल्लियों और दूसरे जंगली जानवरों से बचाव के लिए रखा जाता है. इस से सहज ही समझा जा सकता है कि भगवान के ये तथाकथित दूत और धर्मरक्षक असल में कितने चमत्कारी होते होंगे.

बीते 2 दशकों से साधुसंतों में विचित्र तरह की एकजुटता देखने में आ रही है कि ये लोग भी साथसाथ रहने लगे हैं. ऐसा पहले की तरह शैव, वैष्णव या किसी दूसरे संप्रदाय की विचारधारा के अनुयायी होने न होने के कारण नहीं हो रहा बल्कि मुफ्त की रोटी तोड़ने तथा एक और एक ग्यारह बनने का सिद्धांत इस के पीछे काम कर रहा है. इन्हें मुफ्त की जमीन की चाहत रहती है जिस से मेहनत न करनी पड़े. साधुसंत भी समझने लगे हैं कि बुढ़ापे में अशक्तता के चलते भीख भी नहीं मिलनी है, इसलिए भलाई इसी में है कि बुरे वक्त के लिए पैसा व जमीनजायदाद इकट्ठी की जाए. इन की इस कमाई व गहनों को लूटने में चोर, लुटेरे और डाकू भी कोई रहम, लिहाज या रियायत नहीं करते.

मामूली जानवरों और चोरलुटेरों से जो धर्म अपने ही दूतों का बचाव करने में नाकाम हो उस की पोल तो अपनेआप ही खुल जाती है. और जब बड़े पैमाने पर यह पोल खुलती है तब मुद्दे की बात से आम लोगों का ध्यान बंटाने के लिए ये साधु खासा हंगामा व फसाद खड़ा कर देते हैं. ऐसा ही कुछ पिछले दिनों भोपाल में हुआ.

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फसाद भोपाल का

भोपाल की उपनगरी भेल, जोकि देश के बड़े औद्योगिक केंद्रों में से एक है, के भूतनाथ मंदिर में एक नागा संन्यासी विष्णु गिरि की मौत हुई तो साधुसंत उसी जगह उस की समाधि बनाने की जिद पर अड़ गए जहां पर संन्यासी मरा था.

समाधि बनाने में आड़े आया भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड का प्रबंधन जो अपनी बेशकीमती जमीन पर समाधि जैसा अनुपयोगी स्थल नहीं बनने देना चाहता था. जाहिर है इस से उत्पादन व कारखाने के कर्मचारियों पर बुरा असर पड़ता और जमीन भी बेकार हो जाती. वैसे भी यह भेल का हक था कि वह अपनी जमीन के बाबत खुद फैसला करे.

इस इलाके में कोई 3 लाख लोग रहते हैं जो विष्णु गिरि के भक्त भले ही न हों मगर यह जरूर जानते हैं कि यह संन्यासी भूतनाथ मंदिर में कोई 70 साल से रह रहा था. कुछ लोग मानते हैं कि यहां ऊपरी बाधाओं का इलाज होता है यानी नियमित चढ़ावे के अलावा भी भूतप्रेत, पिशाच जैसी काल्पनिक चीजें आमदनी का बड़ा जरिया थीं.

यह आमदनी बनी रहे, इस मंशा से विष्णु गिरि की मौत के बाद उस के चेलेचपाटे व शहर के दूसरे साधुसंतों ने गड्ढा खोद कर समाधि बनाने की तैयारी शुरू कर दी. भेल प्रबंधन को भनक लगी तो उस ने मनमानी पर उतारू इन साधुसंतों को रोकने की खातिर अपना अमला भेजा और जिला प्रशासन से भी सहयोग मांगा जो वक्त रहते मिला भी.

मगर साधु नहीं माने. अपने मंसूबों के लिए उन के पास कोई ठोस दलील भी नहीं थी सिवा इस के कि संन्यासी की समाधि मौत की जगह पर ही बनाना धार्मिक परंपरा है और इस में सरकार, प्रशासन, कानून और भेल को अड़ंगा नहीं डालना चाहिए. न मानने पर पुलिस ने हलका बल प्रयोग किया तो साधुसंत तिलमिला उठे. इसी बीच धक्कामुक्की में विष्णु गिरि की लाश नीचे गिर गई. इस के बाद भी साधु लोग लाश को घसीट कर समाधि तक ले जाने में किसी तरह कामयाब हो गए. मगर भेल प्रबंधन की पहल और जागरूकता के चलते उसे दफना नहीं पाए.

दफना लेते तो धर्म की एक और दुकान बन कर तैयार हो जाती, जिस पर चढ़ावा चढ़ता, रोज सैकड़ों श्रद्धालु आते, मनौतियां मांगते और इन साधुसंतों को विष्णु गिरि के नाम पर मुफ्त का पैसा मिलता.

बवाल के बाद बातचीत शुरू हुई तो संत समुदाय ढीला पड़ गया. उस के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि भेल प्रशासन अपनी जमीन पर समाधि क्यों बनाने दे. भेल प्रबंधन की समझदारी इस मामले में वाकई तारीफ के काबिल कही जाएगी कि वह संतों की जिद के आगे नहीं झुका. भेल के महाप्रबंधक ने स्पष्ट कहा कि किसी भी कीमत पर समाधि बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती. हालांकि दुकान चलाने के लिए संत समुदाय यह बात लिखित में देने को भी तैयार था कि समाधि के ऊपर कोई निर्माण कार्य नहीं किया जाएगा.

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कितना कमजोर धर्म

यह विवाद धर्म की कई कमजोरियों को उजागर कर गया. मसलन, धर्म मोहताज है लिखापढ़ी का, पुलिस का और कानून का और उस की जड़ में पैसा कमाने का लालच भर है. भक्तों की तमाम समस्याएं धार्मिक चमत्कार से सुलझाने और दूर करने का दावा करने वाले संत जब खुद एक समाधि बनाने के लिए कानून के मोहताज हों तो उन के चमत्कार के दावों पर कोई क्या खा कर भरोसा करे.

अगर वाकई धर्म में चमत्कार होता तो क्यों विष्णु गिरि की मौत के साथ ही समाधि खुदबखुद नहीं बन गई? लाठीचार्ज कर रहे पुलिस वालों की लाठी गायब क्यों नहीं हो गई? भेल प्रबंधन की बुद्धि क्यों किसी भगवान ने नहीं हर ली? समाधि बनाने के लिए उपद्रव कर रहे साधु सीधे भगवान की अदालत में क्यों नहीं चले गए?

आम नागरिकों की अदालत की शरण व संतों की कानूनी मोहताजी बताती है कि इन में कोई खास बात नहीं होती न ही कोई दैवीय शक्ति या चमत्कार होता है.

सिर्फ मुफ्त की कमाई के लिए ये आम लोगों की तरह जीना तो दूर मरना भी पसंद नहीं करते. अगर विष्णु गिरि को जला दिया जाता तो उन का शरीर राख हो जाता फिर कोई चमत्कारों के दावों पर यकीन नहीं करता. मंशा इस प्रकार की थी कि संन्यासी का मृत शरीर जमीन के अंदर रह कर भी भक्तों का भला काल्पनिक चमत्कारों के जरिए करता रहता है क्योंकि संत मरता नहीं है देह त्यागता है.

यह अगर सच है तो फिर उस की लाश घसीटने की नौबत क्यों आई, क्यों नहीं वह खुद चल कर समाधि स्थल तक पहुंच गई? इन हकीकतों के बाद भी साधु समुदाय ने लोगों को बरगलाने के लिए हिंदू धर्म की मान्यताओं का खुला मखौल उड़ाते श्मशानघाट में यज्ञ व हवन किया तो धर्म की और इन की हकीकत जरूर खुदबखुद उजागर हो गई कि कैसे धर्म के नाम पर पैसा कमाने के लालच में नियम बनाए व तोड़े जाते हैं. यह दोहरापन अपनेआप में जरूर एक चमत्कार है.

पूरे बवाल में हैरत की बात है कि कोई कानूनी लिखापढ़ी नहीं हुई. भेल प्रबंधन के एक अधिकारी की मानें तो उन्होंने जिला प्रशासन को मौखिक सूचना ही दी थी. कथित लाठीचार्ज के वक्त भेल का कोई अधिकारी घटनास्थल पर मौजूद नहीं था.

आम लोग तो दूर की बात है, कई धार्मिक लोग भी साधुओं की इस हरकत से नाराज दिखे. एक देवीभक्त रामजीवन दुबे की मानें तो ‘‘यह धर्म की दुकानदारी  चमकाने का तरीका भर था. मरने के बाद भी साधु खास क्यों माना जाए. ये लोग मरने के बाद आम लोगों की तरह जलने से क्यों डरते हैं. इस तरह के बेवजह के फसाद आम लोगों में धर्म की छवि बिगाड़ते हैं.’’

इस के उलट एक दूसरे संत पवन गिरि ने खुलेआम पुलिस वालों और भेल प्रबंधन को अनिष्ट का शाप तक दे डाला जिस का कोई असर नहीं हुआ. यह बात शायद ही कोई बता पाए कि क्यों सुभाष नगर विश्राम घाट में कचरा फेंकने की जगह मृत साधु की समाधि बनाई गई.

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हकीकत में विष्णु गिरि का असली अपमान पुलिस या भेल प्रबंधन ने नहीं, खुद संतों ने उन के मरने के बाद किया है.

खेती योजनाओं की भरमार किसानों को जानकारी की दरकार

सरकारें किसानों की हिमायती बनने का दिखावा कर के उन को लुभानेरिझाने में लगी हैं, इसलिए हर रोज नई स्कीमों के फरमान जारी हो रहे हैं. नेता गाल और अफसर खड़ताल बजा रहे हैं. यह बात अलग है कि ज्यादातर किसान आज भी बदहाल हैं, क्योंकि बहुत से किसानों को सरकारी स्कीमों का फायदा मिलना तो दूर उन्हें पता तक नहीं चलता, क्योंकि निकम्मे व भ्रष्ट सरकारी मुलाजिम किसानों को उन के फायदे की योजनाओं की कानोंकान खबर तक नहीं लगने देते.

सरकारी योजनाओं के ज्यादातर घोड़े कागजों पर दौड़ते हैं. छुटभैए नेता और बिचौलियों की मिलीभगत से हिस्साबांट हो जाता है. सरकारी स्कीमों की छूट व सहूलियतों का फायदा लेने के लिए किसानों को खुद ही जागना होना. अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए उन्हें पत्रपत्रिकाओं का सहारा लेना पड़ेगा.

नईनई तकनीकें सीख कर खेती की लागत घटे, बेहतर इंतजाम से नुकसान घटे व प्रोसैसिंग से आमदनी बढ़े, ऐसी बातें सीखनी होंगी. खेती में कम आमदनी की अहम वजह सही जानकारी की कमी भी है.

दर्जनों व स्कीमें

खाद, बीज, कीड़ेमार दवा व खेती की मशीनें उधार लेने के लिए हर बार किसानों को कर्ज लेने के पहले अपनी खेती के कागज जमा कराने पड़ते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में अब ऐसा नहीं है. ज्यादातर किसान नहीं जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में खेती महकमे की?स्कीमों का फायदा लेने के लिए ह्वश्चड्डद्दह्म्द्बष्ह्वद्यह्लह्वह्म्द्ग.ष्शद्व पर महज एक बार औनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है. फिर इस के बाद बारबार कागज जमा कराने का झंझट खत्म.

किसान अपनी जमीन की खतौनी, आधारकार्ड व बैंक पासबुक की फोटोकौपी ले कर अपने जिले में खेती महकमे के दफ्तर, जनसेवा केंद्र या साइबर कैफे में यह काम करा सकते हैं.

अगर इस तरह की बुनियादी जानकारी किसानों को मिले तो सरकारी स्कीमों का फायदा आसानी से लिया जा सकता है.

उत्तर प्रदेश में किसान अपने खेत से मिट्टी का नमूना ले कर बिना कुछ खर्च किए ही खेती महकमे की लैब से उस की जांच करा सकते हैं. इस की जानकारी ब्लौक दफ्तर के सहायक विकास अधिकारी, कृषि से ली जा सकती है. मृदा स्वास्थ्य कार्ड पर दर्ज जांच रिपोर्ट के आधार पर खेत की मिट्टी में जिन चीजों की कमी हो, जरूरी खुराक खेत में डाल कर किसान अपनी पैदावार व आमदनी में इजाफा कर सकते हैं.

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खेती में बीज का चुनाव व खरीद सब से अहम होती?है. अच्छी?क्वालिटी के बीज वाजिब कीमत पर किसानों को मुहैया कराने के लिए उत्तर प्रदेश में सामान्य बीज वितरण की योजना चल रही?है. इस के तहत दलहन व तिलहन के बीजों पर 13,00 रुपए से 7,000 रुपए प्रति क्विंटल तक छूट दी जा रही?है. इस के लिए किसान अपने जिले के कृषि अधिकारी से मिल सकते हैं.

तरक्कीपसंद किसानों की खेती दिखा कर दूसरे किसानों को उसी राह पर चलाने के लिए सरसों की खेती के उम्दा प्रदर्शन पर खाद, बीज वगैरह पर खर्च का 50 फीसदी या 3,000 रुपए प्रति हेक्टेयर, बीज ग्राम स्कीम में गेहूं व धान के प्रदर्शन पर खर्च का 75 फीसदी व आत्मा योजना में तकनीकी प्रदर्शन पर 3,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से छूट दी जाती है.

मशीनों पर छूट

खेती में समय और मेहनत बचा कर बेहतर काम के लिए मशीनों का इस्तेमाल करना बहुत ही फायदेमंद साबित हुआ है इसलिए सरकार उन की खरीद पर माली इमदाद देती?है ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान उन्हें खरीद सकें.

उत्तर प्रदेश में हाथ से चलने वाली छोटी मशीनों पर 50 फीसदी तक की?छूट दी जा रही है. इस में किसान चैप कटर पर 2,500 रुपए, विनोइंग फैन पर 1,500 रुपए व स्प्रेयर पर 600 रुपए तक की?छूट का फायदा उठा सकते हैं.

पावर से चलने वाली खेती की बड़ी मशीनों की कीमत ज्यादा होती है इसलिए नैपसेक स्प्रेयर पर 3,000 रुपए, डीजल पंप सैट पर 10,000 रुपए, जीरो टिल फर्टिलाइजर ड्रिल पर हैप्पी सीडर व शुगर केन प्लांटर पर

19-19 हजार रुपए, मल्टीक्रौप थ्रेशर, हैरो कल्टीवेटर व पावर चैप कटर पर 25-25 हजार रुपए, रोटावेटर पर 36,000 रुपए, रिपर पर 63,000 रुपए, रिपर कम बाइंडर पर 1 लाख रुपए व लेजर लैवलर पर किसान समहों को

डेढ़ लाख रुपए तक की छूट है. किसान इस की जानकारी कृषि उपनिदेशक के दफ्तर से ले सकते हैं.

छोटे किसानों को खेती की मशीनें किराए पर मुहैया कराने के लिए अगर 8-10 किसान मिल कर अपना एक समूह बनाएं तो वे अपना खुद का कस्टम हायरिंग सैंटर या फार्म मशीनरी बैंक खोल सकते?हैं. हायरिंग सैंटर खोलने के लिए 4 लाख रुपए व फार्म मशीनरी बैंक खोलने के लिए 10 लाख रुपए कीमत की फार्म मशीनों पर 8 लाख रुपए की छूट मिलती है.

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सिंचाई में सहायता

गांव में अमूमन बिजली कम ही आती है. बिजली आए भी तो वोल्टेज कम आती है. उधर डीजल की बढ़ती कीमतों ने फसलों की सिंचाई को महंगा कर दिया है. ऐसे में सोलर पंप सैट का इस्तेमाल करना फायदेमंद है.

किसान अगर बोरिंग खुद करा लें तो 2, 3 व 5 हौर्सपावर का सोलर पंप लगाने पर उत्तर प्रदेश का खेती महकमा 40 से 70 फीसदी तक की छूट देता है.

जमीन के अंदर का पानी सब से ज्यादा फसलों की सिंचाई में खर्च होता है. पानी की कमी वाले इलाकों में फव्वारा यानी स्प्रिंकलर सिस्टम को बढ़ावा दिया जा रहा?है. इस की एक यूनिट लगाने में तकरीबन 70,000 रुपए खर्च होते?हैं, जो हर आम किसान के बस की बात नहीं है इसलिए सरकार सिंचाई के इस तरीके पर 90 फीसदी तक की छूट दे रही?है ताकि पानी बरबाद न हो. किसानों को कम खर्च में सिंचाई की सहूलियत देने के मकसद से मुहैया कराए जाने वाले एचडीपीई पाइप पर 50 रुपए मीटर की दर से 15,000 रुपए तक की छूट दी जाती है.

केंचुआ खाद में माली इमदाद

कैमिकल खाद के अंधाधुंध इस्तेमाल ने जमीन की सेहत को काफी हद तक खराब कर दिया है इसलिए केंचुओं की खाद यानी वर्मी कंपोस्ट के उत्पादन व इस्तेमाल पर खासा जोर दिया जा रहा है. इस की एक यूनिट लगाने पर तकरीबन 8,000 रुपए का खर्च आता है.

ज्यादातर किसानों को पता ही नहीं है कि वर्मी कंपोस्ट को बढ़ावा देने की गरज से फी यूनिट पर 6,000  रुपए की छूट दी जाती है.

खेती का कचरा यानी अवशेष (पराली) का इस्तेमाल कंपोस्ट बना कर जमीन की उपजाऊ ताकत को बढ़ाने में बखूबी किया जा सकता है, जबकि इस को जलाने से माहौल खराब होता है.

देश की राजधानी दिल्ली व उस के आसपास के इलाकों में तो हर साल पराली जलाने से धुंध छा जाती है. गेहूं, धान, गन्ना, दलहन व तिलहन वगैरह फसलों की कटाई के बाद बचे अवशेष का सही इंतजाम करने वाली मशीनों की खरीद पर उत्तर प्रदेश में 50 फीसदी तक की छूट दी जा रही है.

किसानों को खेती से जुड़े रोजगार देने की गरज से सरकार ने एक अच्छी पहल की है. बीएससी कृषि पास बेरोजगारों को हर विकास खंड में एक एग्रीजंक्शन यानी खेती से जुड़ी चीजें बेचने के लिए मुफ्त लाइसैंस, 1,000 रुपए की दर से 1 साल का दुकान किराया व लिए गए बैंक कर्ज पर 3 साल के लिए 5 फीसदी ब्याज तक की छूट दी जाती है.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से अलग राष्ट्रीय पशुधन बीमा योजना में पशुपालक जानवरों के नजदीकी अस्पताल में अपने लिए 5 जानवरों का 3 साल तक के लिए बीमा करा सकते हैं.

इस स्कीम में उत्तर प्रदेश का पशुपालन महकमा, बीमा प्रीमियम पर सामान्य तबके के पशुपालकों को 75 फीसदी व अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के पशुपालकों को 90 फीसदी तक की छूट देता है.

अकेले उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि देश के बाकी राज्यों में भी किसानों के लिए बहुत सी सरकारी योजनाएं चल रही हैं.

मसलन दिसंबर, 2018 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में किसानों की कर्जमाफी का ऐलान होते ही झारखंड, ओडि़सा व पश्चिम बंगाल में भी कर्जमाफी चालू हो गई और हरियाणा में इस की तैयारी है इसलिए किसानों को जागरूक होना चाहिए.

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सावधानी

गौरतलब है कि सभी स्कीमों में दी जाने वाली छूट किसानों के बैंक खातों में जमा की जाती है इसलिए अपना बैंक खाता जरूर चालू रखें. साथ ही, जो भी चीज नकद या उधार कृषि विभाग के स्टोर से खरीदें, उस की पक्की रसीद जरूर लें वरना छूट नहीं मिलेगी. किसान गूगल प्ले स्टोर से यूपी पारदर्शी किसान नामक मोबाइल एप भी डाउनलोड कर सकते हैं.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: शो के प्रोड्यूसर ने बताई वजह, जश्न में हिना खान क्यों थी गायब

स्टार प्लस का मशहूर शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के प्रोडयूसर काफी समय से ट्रोलिंग का सामना कर रहे हैं, जी हां, सोशल मीडिया पर यूजर्स उन्हें काफी ट्रोल हो रहे हैं. इस सीरियल के प्रोड्यूसर राजन शाही ने आखिरकार इस बात का खुलासा कर दिया है, किस वजह से उन्होंने हिना खान को 3000 एपिसोड की सफलता का श्रेय नहीं दिया गया है.

मीडिया रिपोर्टस के अनुसार राजन शाही ने इस बारे में बताया कि हमने 3000 एपिसोड पूरे किए हैं. लेकिन यह अकेले हमारा सफर नहीं है यह तो पूरी टीम का जर्नी है. मैं यहां पर शो के पास्ट की बात नहीं कर सकता. क्योंकि इस समय मेरी टीम में 150 लोग हैं और मैं सभी लोगों का सम्मान करता हूं. यही वजह है कि, मैंने मेरी टीम के हर सदस्य को सफलता के श्रेय दिया है.

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ट्रोल की वजह आपको बता दें,  दरअसल इस शो के 3000 एपिसोड पूरे हो चुके हैं और इसका जश्न शो के सेट पर सेलिब्रेट किया जा रहा था, जिसका एक वीडियो राजन शाही ने सोशल मीडिया पर शेयर किया था. जिसके जरिए उन्होंने शो की सभी स्टाराकस्ट को उनके योगदान के लिए धन्यवाद कहा था. इस वीडियो में सीरियल की 10 साल तक नजर आ चुकी पूरी स्टारकास्ट है लेकिन इसमें हिना खान और करन मेहरा नदारद नजर नहीं आ रहे हैं.

इसे वीडियो को शेयर करते ही राजन शाही, हिना खान और करण मेहरा के फैंस के निशाने पर आ गए थे क्योंकि, पूरी वीडियो में शो से जुड़े इन दोनों की सितारों का कहीं भी जिक्र नहीं था.

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