30 वर्षीय निरंजन सिंह भोपाल के पंजाबी बाग इलाके में रेफ्रीजेशन का कारोबार करते हैं. रेफ्रीजेशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद मूलतः विदिशा के रहने वाले इस युवा ने कोई 6 साल पहले बहुत छोटे स्तर से कारोबार शुरू किया था लेकिन दूरदर्शिता और मेहनत के चलते आज उन्होंने अपनी खुद की कंपनी बना ली है जिसमें 12 नियमित कर्मचारी हैं. निरंजन के पास अब वह सब कुछ है जिसके सपने हरेक युवा देखता है लेकिन खासा पैसा होने के बाद भी निरंजन ने अपनी कार नहीं खरीदी है. बिजनेस के सिलसिले में कहीं भी आने जाने वे उसी ओला या उबर टैक्सी का इस्तेमाल करते हैं जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन आटो मोबाइल सेक्टर में मंदी की वजह मानती हैं. यानि वे इस मुद्दे पर गलत कुछ नहीं कह रही हैं लेकिन दिक्कत यह है कि वे अपनी अर्थ व्यवस्था को अनावृत करते पूरा सच भी नहीं बोल पा रही हैं.

निरंजन जैसे लाखों युवाओं की माने तो कार खरीदना अब बेकार का और घाटे का सौदा कई लिहाज से हो चला है. इन दलीलों को सिलसिलेवार देखें तो तस्वीर कुछ यूं बनती है.

  1. कार अब पहले की तरह शान की चीज नहीं रह गई है, यह एक जरूरत भर है जो किसी और जरिये से सस्ते में पूरी हो तो क्यों खरीदी जाये .
  2. पुणे के एक नामी बैंक में 18 लाख रु. सालाना के पैकेज पर काम कर रहीं अदिति की माने तो 10 लाख की कार फाइनेंस कराने पर 16 लाख रु से भी ज्यादा चुकाना पड़ते हैं यह एक घाटे का सौदा है. बकौल अदिति हम जैसे युवा जो कार खरीदना अफोर्ड तो कर सकते हैं लेकिन खरीदते नहीं तो उसकी एक बड़ी वजह ज्यादा ब्याज और कम उपयोगिता है.

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